विशेष रिपोर्ट

ताड़ोबा-कान्हा नेशनल पार्क आवाजाही में बाघों के लिए नांदगांव का जंगल सुरक्षित कारीडोर
28-Jul-2020 4:07 PM
ताड़ोबा-कान्हा नेशनल पार्क आवाजाही में बाघों के लिए नांदगांव का जंगल सुरक्षित कारीडोर

फाईल फोटो


    29 जुलाई : राष्ट्रीय बाघ दिवस    

प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 28 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। राजनांदगांव जिले के घने जंगलों में भले ही बाघों का स्थाई ठिकाना नहीं है, लेकिन यहां के जंगल बाघों की निगाह में सुरक्षित कारीडोर रहा है। साल में कम से कम दो बार देश के दो बड़े प्रख्यात राष्ट्रीय अभ्यारण्य ताड़ोबा (गढ़चिरौली) और कान्हा नेशनल पार्क (मध्यप्रदेश) के बीच बाघ राजनांदगांव जिले के जंगल को एक सुरक्षित कारीडोर मानकर आवाजाही करते हैं। 

वन महकमे को बाघों की मौजूदगी के प्रमाण उनके पदचिन्हों से मिलता है।  बताया जाता है कि बाघनदी के रास्ते दोनों नेशनल पार्क से बाघों का आना-जाना होता है। यह बाघ एक तरह से इसे कारीडोर के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हालांकि बीते दो दशक में राजनांदगांव जिले में बाघों का स्थाई ठौर नहीं रहा है। 
बताया जा रहा है कि यहां की आबो-हवा पूरी तरह से अनुकूल है। पिछले कुछ सालों में बाघों का शिकार होने के कारण भी राजनांदगांव जिले से उनकी बसाहट खत्म हो गई है। ताड़ोबा और कान्हा नेशनल पार्क को बाघों के लिए ही जाना जाता है। बाघ औसतन सालभर में दो बार राजनांदगांव के भीतरी जंगलों से होकर दोनों पार्कों के बीच फासला तय करते हैं। बताया जाता है कि बाघनदी के रास्ते साल्हेवारा के जंगलों से होकर बाघ कान्हा नेशनल पार्क में पहुंचते हें। यह एक सुखद पहलू है कि बाघों  की आवाजाही के लिए यहां का जंगल अनुकूल है। 

बताया जाता है कि 70-80 के दशक में ही बाघों की नांदगांव जिले में दहाड़ सुनाई देती थी। साल्हेवारा क्षेत्र में विशेषकर बाघों का स्थाई डेरा रहता था। धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे बाघों की संख्या घटना के कारण जिले में उनकी धमक कम हो गई। इस संबंध में राजनांदगांव डीएफओ बीपी सिंह ने च्छत्तीसगढ़’ से कहा कि बाघ अब इस जिले को कारीडोर के रूप में उपयोग कर रहे हैं। एक निश्चित रास्ता बनाकर यहां से बाघों की आवाजाही होती है। 

मिली जानकारी के मुताबिक राजनांदगांव वन मंडल  925 वर्ग किमी में फैला हुआ है। बाघों के लिए बाघनदी से लेकर साल्हेवारा का इलाका बेहतर माना जाता है। इन इलाकों में पहाड़ी होने के कारण बाघों की सुरक्षा  में कोई अड़चने नहीं होती है। लंबे समय से साल्हेवारा क्षेत्र बाघों की मौजूदगी के लिए माना जाता  रहा है।
 
गौरतलब है कि 2012-13 में छुरिया इलाके में ग्रामीणों की भीड़ ने बाघ को मार डाला था। उस समय भी बाघ ताड़ोबा से भटककर राजनांदगांव जिले के जंगल में दाखिल हुआ था। दो साल पहले भी बाघनदी क्षेत्र में बाघ भटककर सडक़ में नजर आया था। कुल मिलाकर राजनांदगांव के जंगल में अनुकूल वातावरण है। बाघ के लिए हिरण और जंगली सूअरों की जिले में भरमार भी है। फिलहाल नांदगांव के जंगल से बाघों का सालों से गुजरने का सिलसिला जारी है। 


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