राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जोगी नितीश के साथ चाय पर
15-Nov-2025 6:11 PM
	 राजपथ-जनपथ : जोगी नितीश के साथ चाय पर

जोगी नितीश के साथ चाय पर

अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री थे। जब भी मंच पर कोई उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री कहता, तो वे तत्काल टोका करते थे, मुझे प्रथम मुख्यमंत्री कहिए। भूपेश बघेल जब गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के उद्घाटन के लिए गए थे, तब भी यही वाकया दोहराया गया था।

भले ही उनकी प्रतिमा प्रदेश में कहीं स्थापित नहीं हो पाई। यहां तक कि उनके अपने गांव-घर में भी नहीं। लेकिन छत्तीसगढ़ को जानने समझने वालों के बीच जोगी हर समय मौजूद हैं- कटु आलोचक और प्रशंसक- सब तरह के लोग हैं। उनके बेटे, पूर्व विधायक अमित जोगी ने बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाले मुख्यमंत्री नितीश कुमार के साथ स्व. अजीत जोगी की एक तस्वीर आज सोशल मीडिया पर साझा की है।

भूपेश राहुल की गजब जोड़ी

बिहार विधानसभा चुनाव, और राज्यों के उपचुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल बिहार में पार्टी के पर्यवेक्षक थे। उनके पास पंजाब का प्रभार भी है। पंजाब में तरनतारन विधानसभा सीट पर उपचुनाव भी हुए, जिसमें कांग्रेस चौथे नंबर पर चली गई। जिस समय चुनाव नतीजे घोषित हो रहे थे, उस वक्त पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह उर्फ राजा बरार रायपुर में थे।

राजा बरार, पूर्व सीएम भूपेश बघेल से उनके निवास पर मिले। दोनों के बीच काफी देर चर्चा हुई। इसके बाद राजा बरार सेंट्रल जेल गए, और वहां पूर्व सीएम के बेटे चैतन्य बघेल से मुलाकात की। उनकी पूर्व मंत्री कवासी लखमा से भी मुलाकात हुई। पूर्व मंत्री लखमा पिछले 10 महीने से जेल में हैं। मुलाकात के बाद राजा बरार मीडिया से बचते रहे, और बात किए बिना निकल गए।

चुनाव में बुरी हार हुई, तो विरोधियों को भूपेश पर हमला बोलने का मौका भी मिल गया। स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने भूपेश पर तीखा हमला बोला, और कहा कि भूपेश बघेल व राहुल गांधी की जोड़ी अद्भुत है। ये जहां भी जाते हैं, वहां बचा खुचा भी साफ कर देते हैं। इन बयानों से परे पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष की पूर्व सीएम भूपेश बघेल से मीटिंग की पार्टी हलकों में काफी चर्चा हो रही है।

इंदिरा का शुरू किया विभाग मर्ज

प्रदेश में कांग्रेस की पिछली सरकारों की योजनाएं, हितग्राही कार्यक्रम और विभागों को बंद करने का सिलसिला जारी रखा हुआ है।  इस बार राज्य सरकार ने  केंद्र सरकार के दो माह पहले लिए गए निर्णय अनुसार बीस सूत्रीय कार्यक्रम को पृथक रूप से बंद कर उसे आर्थिक योजना सांख्यिकी विभाग में मर्ज कर दिया है। यानी अब 20 सूत्रीय कार्यक्रम अलग से संचालित नहीं होंगे। दरअसल ये 20 सूत्रीय कार्यक्रम 1974-1978 के दौरान तत्कालीन इंदिरा गांधी (भारत) सरकार ने पांचवीं पंचवर्षीय योजना में बीस सूत्री कार्यक्रम शुरू किया था। और  इस कार्यक्रम में पहली बार 1982 और फिर 1986 में संशोधन किया गया।

बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग नहीं, बल्कि यह एक कार्यक्रम है जिसकी निगरानी के लिए भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा समितियों और विभागों का गठन किया जाता है। इसका उद्देश्य गरीबी उन्मूलन और आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार करना है। भारत सरकार में, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय केंद्रीय स्तर पर इसकी निगरानी करता है।

राज्यों में, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली बीस सूत्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन समितियां होती हैं, और संबंधित विभागों जैसे कि आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय इसके क्रियान्वयन की समीक्षा करते हैं। इसके लिए पृथक से मंत्री (श्याम बिहारी जायसवाल) भी बनाए जाते रहे। अब यह वित्त मंत्री के अधीन होगा। राज्य सरकार ने केंद्र के फैसले का अनुमोदन किया है।इसी तरह से सार्वजनिक उपक्रम विभाग को भी उद्योग विभाग में मर्ज कर दिया गया है। निकट भविष्य में युवक कार्यक्रम और खेल विभाग भी केवल खेल विभाग कहलाएगा। यह निर्णय लेकर केंद्र ने सभी राज्यों को अनुमोदन के लिए भेजा है।

छत्तीसगढ़ में बिहार की ख़ुशी बिखरी

बिहार में जीत से भाजपा में जश्न का माहौल है। सीएम विष्णुदेव साय से लेकर पार्टी के कई प्रमुख नेता बिहार में चुनाव प्रचार के लिए गए थे। नतीजे अच्छे आए हैं, तो पार्टी नेताओं का खुश होना स्वाभाविक है। प्रदेश भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जम्वाल तीन महीने बिहार में कैंप किया। वो संगठन का काम देख रहे थे। उन्हें एनडीए के 50 सीटों की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसमें से 25 सीटें भाजपा की थी।

जिन 50 सीटों पर जम्वाल को जिम्मेदारी मिली थी। उनमें से 45 सीट एनडीए जीतने में कामयाब रही। भाजपा तो सभी 25 सीटें जीत गई। इसी तरह रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल को दो विधानसभा हाजीपुर, और लालगंज सीट की जिम्मेदारी दी गई थी। दोनों ही सीट कठिन मानी जा रही थी। बृजमोहन करीब 18 दिन दोनों जगहों में बूथ प्रबंधन का काम संभाला, और प्रचार खत्म होने तक डटे रहे। लालगंज में तो भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार सिंह के मुकाबले बाहुबली पूर्व सांसद मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला चुनाव मैदान में थी। मगर दोनों ही सीट पर भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई।

छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन 52 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की। यह उनकी अब तक की सबसे बड़ी जीत है। जीत के बाद नबीन और बिहार के अन्य नेताओं ने यहां प्रदेश के नेताओं से चर्चा कर उनकी भूमिका की सराहना की है।

बिहार का नतीजा छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लिए आईना

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर विपक्षी महागठबंधन को करारी शिकस्त दी। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो यह हार सिर्फ बिहार की नहीं, बल्कि 2023 में यहां कांग्रेस की करारी पराजय का भी सटीक आईना है। तब वोट चोरी कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, मगर कुछ ठोस और ज्वलंत कारण थे, जिन्होंने मतदाताओं को कांग्रेस से दूर और भाजपा के पक्ष में मजबूती से खड़ा किया, जैसे हर महिला को एक हजार रुपये प्रतिमाह का वादा, जिसने सीधे दिल और जेब दोनों पर असर डाला। और, कांग्रेस अपनी सरकार होते हुए भी यह समझाने में विफल रही कि बेमेतरा की घटना सांप्रदायिक नहीं थी। यह तथ्य तो भाजपा की सरकार आने के लगभग डेढ़ साल बाद अब जाकर सीबीआई ने बताया। मगर, तब तक राजनीतिक नुकसान हो चुका था। राहुल गांधी की एच-फाइल्स, वोटर अधिकार यात्रा और महादेवपुरा में कथित वोट चोरी के मुद्दों ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस पर भी दबाव बढ़ा दिया कि वह मतदाता सूची की अनियमितताओं को उजागर करें। पर कांग्रेसियों से पूछना चाहिए कि उनके कितने बूथ-लेवल एजेंट अब तक फर्जी वोटरों की सूची तैयार कर पाए हैं? टीएस सिंहदेव बेहद मामूली अंतर से हारे। उन्होंने करीब 200 फर्जी वोटरों का दावा किया, मगर अभी तक न चुनाव आयोग में और न अदालत में इसे चुनौती दी। अगर मुद्दा इतना गंभीर था, तो वे खामोश क्यों बैठ गए?

राज्य गठन के बाद से देखें तो 2023 के चुनाव में कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सिर्फ 35 सीटें मिलीं। दूसरी ओर भाजपा 54 सीटों पर पहुंच गई। वोट शेयर में दोनों दलों के बीच 10 प्रतिशत से ज्यादा का अंतर दर्ज हुआ। भाजपा का 41 प्रतिशत के मुकाबले कांग्रेस मात्र 29 प्रतिशत पर सिमट गई। क्या इतना बड़ा फर्क सिर्फ वोट चोरी से संभव है? इधर, जमीन पर शून्य, मीडिया में उपस्थित- कांग्रेस नेता बयानबाजी कर रहे हैं कि वोट चोरी से भाजपा ने छत्तीसगढ़ में सरकार बनाई।

हाल का ही मामला देख लें। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए कांग्रेस ने बड़े धूमधाम से साक्षात्कार की कवायद की थी, लेकिन जल्द ही वह रस्सी ढीली पड़ गई। नाम उजागर ही नहीं हो रहे हैं। बृहस्पत सिंह के आरोपों को अलग रख दें कि प्रभारी लोग, नियुक्तियों के नाम पर उगाही कर रहे हैं, तब भी आम कार्यकर्ताओं के मन में सवाल बचा रहता है कि सूची लटकाने में क्या कोई घोटाला हो रहा है ?

कांग्रेस का बड़ा नुकसान यही है कि उसके अधिकतर कार्यकर्ता और नेता अपनी मेहनत पर नहीं, बल्कि विरोधियों की गलतियों पर निर्भर रहते हैं। राजनीति में यह रणनीति ज्यादा देर तक नहीं चलती। मोदी की कितनी ही गारंटियां पूरी नहीं हो पाई हैं, पर कांग्रेस मजबूर कर पा रही है क्या सरकार को कि वह वादा निभाए। बिहार का ताजा नतीजा बता रहा है कि कांग्रेस फिलहाल सालों तक एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में रहने के लिए ही तैयार है।


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