राजनांदगांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 26 जुलाई। श्री विनय कुशल मुनि के सुशिष्य एवं 171 दिन तक उपवास का रिकॉर्ड बनाने वाले जैन मुनि वीरभद्र ने कहा कि सम्यक दृष्टि अपनाए। आपकी क्रियाओं का लाभ केवल आपको ही नहीं दूसरों को भी मिले। उन्होंने कहा कि एक दृष्टि वह है। जिससे आप अपनी क्रियाओं का आनंद स्वयं उठाते हैं। एक दृष्टि वह है। जिससे अपनी क्रियाओं का आनंद आप तो स्वयं प्राप्त करते ही हैं। इससे दूसरों को भी लाभान्वित करते हैं। यह विनियोग दृष्टि कहलाती है।
मुनिश्री ने कहा कि इस दृष्टि से आया जीव अपनी काया से लेश मात्र भी मोह नहीं रखता। वह अपने अंदर समता सुख में रहता है। इस सुख को खत्म करने की शक्ति किसी के भी पास नहीं रहती। ऐसे जीव के पास कोई इच्छा. अपेक्षा नहीं रहती। इनके मुख से निकलने वाली अमृतवाणी लोगों के लिए कल्याणकारी होती है। उनके मन में किसी के लिए भी कोई द्वेष भाव नहीं होता।
मुनि श्री वीरभद्र ने कहा कि राग और द्वेष व्यक्ति के पतन का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि इस दृष्टि में आए जीव को शास्त्रों की जरूरत नहीं होती। इनकी आत्मा में स्वयं ही ज्ञान का आनंद आ जाता है। इस दृष्टि वाले व्यक्ति को आलंबन की भी जरूरत नहीं पड़ती।
उन्होंने कहा कि जब तक संकल्प-विकल्प चलता है, तब तक आलंबन की जरूरत होती है। संकल्प-विकल्प नहीं तो आलंबन की भी जरूरत नहीं पड़ती। अपने जीवन का लक्ष्य इस दृष्टि को पाने का होना चाहिए। अपने जीवन का लक्ष्य साधना-आराधना से आत्म कल्याण का होना चाहिए। साधना-आराधना ही हमारे काम आएंगे और हमें मोक्ष मार्ग पर ले जाएंगे। हमारे भीतर किसी के प्रति दुर्भाव नहीं रहना चाहिए। अपने संस्कारों को अपनाएं और उसका पालन करें। हमारी स्थिति यह होनी चाहिए कि हम समाधिपूर्वक मौत को गले लगा लें। आज का पल आपके पास है, कल के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए साधना-आराधना कर आत्म कल्याण के मार्ग में आगे बढ़े।