रायपुर

कोर्ट की अवमानना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ लोक अदालत लगे- झा
12-Oct-2025 7:13 PM
कोर्ट की अवमानना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ लोक अदालत लगे- झा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 12 अक्टूबर। कर्मचारी संघ के पूर्व  प्रदेश अध्यक्ष और आप नेता विजय कुमार झा ने छत्तीसगढ़ के  अधिकारी में सर्वोच्च, उच्च  सहित विभिन्न न्यायालयों के आदेशों की  हमेशा उपेक्षा करते हैं। न्यायालय के आदेश के बाद भी पद के मद में इतना चूर रहते हैं कि पीडि़त पक्ष को जहां जाना है वहां जाइए, कहकर न्यायालयीन आदेशों को फाइलों में धूल खाने के लिए बंद कर देते हैं। झा ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अपील की है कि एक बार केवल देश और प्रदेश में लंबित अवमानना प्रकरणों के लिए लोक अदालत लगाया जाकर आदेश का पालन न करने वाले अधिकारियों व पीडि़त पक्षकार को समक्ष में निर्णय के लिए बाधित किया जाना चाहिए। श्री झा ने बताया है कि अकेले रायपुर राजधानी में ही केंद्रीय सहकारी बैंक के लगभग 750 कर्मचारियों को माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी वेतन वृद्धि का लाभ नहीं दिया जा रहा है। आदेश का पालन न करने वाले अधिकारी के पांवों उंगली घी में, सर कढ़ाई में है। वे ऐ सी में बैठकर मजा ले रहे हैं। पीडि़त पक्ष अवमानना का प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय में भी प्रस्तुत किया है?ं। लेकिन ऑनलाइन व्यवस्था के कारण अवमानना प्रकरण को भी नंबर में आने में साल 2 साल लग जाते हैं। श्री झा ने कहा है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों के अधिकारी नियम कानून के अंतर्गत कार्य न कर, कर्मचारियों, जनता, किसानों व बेरोजगारों का शोषण करते हैं। उसे प्रताडि़त करते हैं यदि न्यायालय जाता है तो उसे राग-द्वेष की भावना से और प्रताडि़त करना शुरू कर देते हैं। माननीय उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय में आदेश होने में स्वाभाविक है दो-चार 10 साल लग जाते हैं। उसे आदेश के बाद भी अधिकारी न्यायालय आदेश के पालन में याचिका कर्ता को उसके संवैधानिक अधिकार एवं लाभों से वंचित रखते हैं। ऐसी स्थिति में हमेशा लगने वाले लोक अदालत को एक बार केवल उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में लंबित अवमानना प्रकरण के लिए लगाया जाकर दोषियों पर कार्यवाही की जाए। तभी न्यायालय आदेशों का गंभीरता से अधिकारी पालन करेंगे एवं उससे डरेंगे। बिना भय के प्रीत नहीं होता है। वर्तमान में मात्र ?10 घूस लेने वाले लिपिकीय संवर्ग के कर्मचारी को 40 साल तक न्यायिक संघर्ष करने के बाद उनको मुक्ति मिली। इसी प्रकार सरगुजा के पटवारी परमानंद राजपूत को घूस और ठगी के मामले में 23 साल बाद बरी किया गया। यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि प्रदेश में बहुत अधिकारी कर्मचारी किसान बेरोजगार मजदूर श्रमिक परेशान है। हर कोई आर्थिक मानसिक रूप से उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिए सक्षम नहीं होता है।


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