रायगढ़

कुम्हीचुंवा के प्रायमरी स्कूल का हाल
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 17 जुलाई। धरमजयगढ़ विकासखंड के कापू क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत कुम्हीचुंवा स्थित प्राथमिक विद्यालय की स्थिति इन दिनों बदहाल और चिंताजनक हो चली है।
यह विद्यालय अब शिक्षा का मंदिर कम और उपेक्षा की बानगी अधिक प्रतीत होता है। जर्जर भवन, कीचड़ से लबालब भरा आंगन, और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित मासूम बच्चे सब कुछ इस शाला की पीड़ा को मौन किंतु मुखर रूप से व्यक्त करता है। वहीं विद्यालय भवन की हालत ऐसी है कि हर वक्त एक अनहोनी की आहट देता प्रतीत होता है। अतिरिक्त कक्ष जरूर बना है, पर वह पांच कक्षाओं की पढ़ाई के लिए पर्याप्त नहीं है। बच्चों की संख्या अधिक और स्थान सीमित होने के कारण, कक्षा दो और चार के छात्रों को एक ही कक्ष में भेड़-बकरियों की तरह ठूंसा जाता है। और वहीं पेयजल की स्थिति भी अत्यंत दयनीय है। परिसर में एक मात्र हेडपंप है, जो केवल नाम का अस्तित्व रखता है।
इस संबंध में रसोईया करमकुंवर बताती हैं, कि पानी की अनुपलब्धता के कारण भोजन निर्माण अत्यंत कठिन हो गया है। प्रतिदिन आधा किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। रसोई कक्ष का हाल भी बेहाल है फ्रश जर्जर अवस्था में है और जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। वहीं विद्यालय का आंगन अब बच्चों के लिए खेलने का स्थान नहीं, बल्कि पानी से लबालब भरी कीचडय़ुक्त बाधा बन गया है। बच्चों को उसी में चलकर कक्षाओं तक पहुँचना पड़ता है। पढ़ाई के लिए उनका यह संघर्ष वाकई सराहनीय है, पर अफसोसजनक यह कि ऐसी स्थिति में शिक्षा का उद्देश्य कहीं खोता जा रहा है।
लेकिन एक और बड़ी विडंबना यह भी है जिसके बारे में स्कूली बच्चों ने बताया कि भोजन में प्रतिदिन सिर्फ मसूर दाल और आलू परोसा जाता है, जिससे पोषण की बात करना ही व्यर्थ प्रतीत होता है। न तो भोजन में विविधता है, न ही संतुलन। शाला शिक्षकगण इस दिशा में उदासीन बने हुए हैं।
वहीं मामले में प्रधान पाठक संग्राम राठिया ने बताया कि वे 6 जून से पदस्थ हैं और यह दुर्दशा उनके आने से पहले की है। उन्होंने कई बार सरपंच और सचिव को गड्ढे और जलभराव की स्थिति से अवगत कराया, किंतु हर प्रयास व्यर्थ साबित हुआ। अब तक किसी भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि ने विद्यालय की सुध नहीं ली है। और जब सरपंच लोकेश्वर राठिया से संपर्क की कोशिश की गई तो वे अनुपलब्ध मिले। फोन पर उनके परिजनों ने बताया कि वे किसी कार्य से बाहर हैं।
बहरहाल ग्राम कुम्हीचुंवा का यह प्राथमिक विद्यालय शासन की योजनाओं और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी के बीच फंसा ऐसा उपेक्षित द्वीप बन गया है, जहां शिक्षा के दीपक को बचाने के लिए बच्चों को खुद मशाल उठानी पड़ रही है। क्या अब भी शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधि आंखें खोलेंगे या यह शाला यूँ ही जर्जर दीवारों और सूखी टोंटियों के बीच दम तोड़ती रहेगी?