रायगढ़

दो राज्यों के लोगों को जोड़ती है यहां की आस्था
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 10 अक्टूबर। शारदीय नवरात्रि में जहाँ पूरे भारत में माँ दुर्गा की सुबह व शाम विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना की जा रही हैं, वहीं जिला मुख्यालय से महज 16 किमी की दूरी में ओडिशा सीमा से लगे साँपखंड में भी रोजाना हजारों की संख्या में भक्तगण पहुंच कर सर्पदेवी की पूजा पाठ कर मनोकामना मांग रहे हैं।
रायगढ़ के पूर्वांचल क्षेत्र में छत्तीसगढ़ और ओडिशा सीमा पर बीच जंगल में स्थित सांपखण्ड में नवरात्रि पर माँ दुर्गा के नव रूपों के अलावा माँ साँपखण्डनी सर्पदेवी की भी पूजा की जाती है। इस दौरान छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले गांव सकरभोगा, कोसमपाली, विश्वनाथ पाली, भोजपल्ली, बनोरा, महापल्ली के अलावा ओडिशा राज्य के गांव दयाडेरा, झारगांव, कौआकुंडा, बादीमाल, कनकतुरा, लोहबाधा, बरदरहा से भी हजारों की संख्या में लोग रोजाना यहाँ पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं।
गाँव के ग्रामीण बताते हैं कि साँपखण्डनी सर्पदेवी को लेकर एक मान्यता व किवदंति भी हैं। पूर्वजों द्वारा बताया गया था कि 200साल पहले साँपखण्ड के घने जंगलों से होकर ओडिशा से एक महिला रोजाना सर पर एक मटका लेकर रोजाना दूध बेचने जाती थी। जैसे ही महिला साँपखण्ड के पास पहुंचती थी वैसे ही पहाड़ के गुफा से एक विशालकाय सांप निकलता था और पीछे से मटका का सारा दूध पी जाता था। जिसके बाद महिला खाली हाथ ही घर लौट जाती थी और यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा, फिर एक दिन महिला ने अपने साथ हो रही इस घटना की जानकारी अपने पति को दी। जिसके बाद महिला का पति भी एक दिन उसके पीछे पीछे छुपते-छुपते पहुंच गया, और फिर जैसे ही उसकी पत्नी सांपखण्ड जंगल में पहुंची तब अपने गुफा से विशालकाय साँप निकला और दूध पीना शुरु कर दिया। इतने में वह अपने पास रखें टांगी से उस साँप को 7 टुकड़ों में विभाजित कर दिया जिसके तुरंत बाद साँप का वह टुकड़ा पत्थर में तब्दील हो गया।
गांव के ग्रामीणों ने बताया कि पत्थर के 7 टुकड़ों में से एक हिस्से को जिसे साँप का सर मानते है उनकी पूर्वजों के समय से वे पूजा पाठ करते आ रहे हैं। पहले इस मार्ग से गुजरने वाले राहगीर यहाँ मत्था टेक कर ही आगे का रास्ता तय करते थे। साथ ही साथ एक छोटा सा पत्थर या फिर पेड़ पौधों के डंगाल श्रद्धा स्वरूप चढ़ाते थे, ताकि सफर के दौरान उनके साथ कुछ अनिष्ठ न हो।
गाँव के ग्रामीण बताते है कि शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र हमेशा यहाँ धूमधाम के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के शुरुआत से आखरी दिन तक रोजाना अलग-अलग गाँव से आये भजन कीर्तन मंडलियों द्वारा यहाँ शानदार भजन किया जाता है, वहीं शारदीय नवरात्र के बाद दशहरा में यहाँ रावण दहन का भी आयोजन होता है, जिसमें 50 से अधिक गाँव के ग्रामीण उपस्थिति रहते हैं।
समिति के एक सदस्य ने बताया की पिछले कुछ सालों के दौरान ओडिशा राज्य के 5गाँव के 10 ग्रामीण और छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले के 5 गाँव के 10 ग्रामीणों को मिलाकर कुल 20 लोगों की समिति का गठन उनके द्वारा किया गया है। ताकि इस जगह को और भी बेहतर ढंग से सजाया और संवारा जा सके, ताकि आने वाली पीढ़ी को भी इस जगह की कहानी के बारे में बेहतर ढंग से बताया जा सके।
समिति के सदस्यों ने बताया की नवरात्रि के अवसर पर साँपखण्डनी मंदिर परिसर में रोजाना सुबह से ही पूजा पाठ का दौर शुर हो जाता है और दोपहर 2 बजते ही यहाँ भंडारे का आयोजन किया जाता है, नवरात्रि के पहले दिन से आखरी दिन तक रोजाना डेढ़ से दो क्विंटल तक का चावल बनता है और दशहरा के दिन 10 क्विंटल से अधिक का चावल बनाया जाता है।