राष्ट्रीय

'पहलगाम पर भारत के साथ खड़ा रहेगा अंतरराष्ट्रीय समुदाय'
25-Apr-2025 12:47 PM
'पहलगाम पर भारत के साथ खड़ा रहेगा अंतरराष्ट्रीय समुदाय'

पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हमले पर मशहूर दक्षिण एशिया विश्लेषक और फॉरेन मैगजीन में कॉलमनिस्ट माइकल कूगलमन ने डीडब्ल्यू से बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस हमले का कहां और कितना असर पड़ेगा.

डॉयचे वैले पर साहिबा खान की रिपोर्ट-

कश्मीर के पहलगाम के बाइसरन में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के असर अब हर जगह दिखाई पड़ रहे हैं. हाल ही में हुई आपातकालीन बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने कई कदम उठाए, जिनमें से सिंधु जल संधि स्थगित करना और अटारी बॉर्डर बंद करना अहम हैं. वहीं जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौता निलंबित करने समेत कई कदम उठाए हैं.

डीडब्ल्यू ने माइकल कूगलमन से इस मुद्दे पर बात की. माइकल मशहूर दक्षिण एशिया विश्लेषक हैं और फॉरेन पॉलिसी मैगजीन में कॉलमनिस्ट भी हैं. वो सालों से कश्मीर -समझते आ रहे हैं. हमने उनसे जानने की कोशिश की कि आखिर ऐसे हमले से आतंकवादी क्या साबित करना चाहते हैं और इस हमले का प्रभाव कहां कहां तक और कितनी गहराई तक देखने को मिल सकता है. पढ़िए, ईमेल के जरिए हुए इस इंटरव्यू के अहम हिस्से.

डीडब्ल्यू: ये पहली बार नहीं है जब कोई बड़ा अमेरिकी नेता भारत दौरे पर आया हो और तब भारतीय नागरिकों पर कोई बड़ा हमला हुआ हो. ऐसा 2000 और 2002 में भी हुआ था. क्या आपको लगता है कि इसके इन हमलों का विदेशी नेताओं के आने के समय से कोई लेना-देना है?

माइकल कूगलमन:  हो सकता है कि यह एक इत्तेफाक ही हो. लेकिन इससे ऐसा भी लगता है जैसे आतंकवादी बड़ी विदेशी नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचना चाह रहे हों. और इस मामले में वो चाह रहे हों कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वैंस कश्मीर पर ध्यान दें. इस (हमले) के पीछे जो भी लोग हैं, वो साफ तौर पर भारतीय नीतियों और कश्मीर पर भारत के नियंत्रण को स्वीकार नहीं करते हैं, और इसलिए इन हमलों के जरिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश है, जो कश्मीर पर ज्यादा ध्यान नहीं देता है.

इस हमले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि पर कैसा असर डाला है, खासकर जब भारत कश्मीर में ‘सामान्य होते हालातों' की बात करता है?

यह सच है कि यह हमला कश्मीर में सामान्य होते हालात, जिसमें पर्यटन के लिए अनुकूल माहौल भी शामिल है, के बारे में नई दिल्ली के दावे को कमजोर करता है. लेकिन दुनिया भारत का पक्ष ही लेगी. चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी समेत पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस हमले की निंदा की है और भारत के साथ एकजुटता की बात कही है.

इस हमले को अमेरिका कैसे देख रहा है?

वैसे तो आतंकवाद के मसले पर खास तौर पर सख्त रुख अपनाने वाले ट्रंप प्रशासन ने भारत को पक्ष लिया ही होता. लेकिन चूंकि वैंस भी तब भारत दौरा कर रहे थे, उससे एक बात समझ आती है कि अमेरिका ने यह प्रतिक्रिया अब और भी ज्यादा मजबूती के साथ दी है.

ऐसा भी सुनने में आया कि हमले के ठीक बाद वैंस ने मोदी से संपर्क किया और उनसे कथित रूप से अमेरिका की पूरी सहायता का वादा भी दिया.

पाकिस्तान का कहना है कि यह हमला भारत की अपनी नीतियों की वजह से हुआ है. क्या यह हमला वाकई अनुच्छेद 370 के हटाने का जवाब था? आप इससे क्या समझते हैं?

 

हालांकि शुरुआत में तो ध्यान अपराधियों पर और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने पर होगा, लेकिन भारत को अंत में इस कठिन प्रश्न का उत्तर तो देना ही होगा कि इस तरह का अचूक और भीषण हमला इतने उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में कैसे हो सकता है - जो दुनिया में सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्रों में से एक है. आने वाले दिनों में, विपक्ष, भारत के अंदर और विदेश में नई दिल्ली के और भी आलोचक, सभी नई दिल्ली पर इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए दबाव डालेंगे.

कश्मीर में पर्यटन बढ़ने को कई बार ‘हालात सामान्य हो गए हैं' से जोड़ा जाता रहा है. लेकिन क्या वाकई में ये एक तथ्य है या फिर एक कही जाने वाली बात?

यह बात सच है कि बढ़ता पर्यटन भले ही पर्यटकों द्वारा महसूस की जाने वाली सहजता को दर्शाता हो, लेकिन ये भी सच है कि स्थानीय समुदायों की प्रतिक्रिया हमेशा सकारात्मक नहीं होती है. खासकर कश्मीर जैसे जटिल और अशांत इलाके में यह एक मुद्दा है, जहां कई लोगों को डर है कि बाहरी लोगों की बड़ी उपस्थिति जनसांख्यिकीय और अन्य सामाजिक वास्तविकताओं को बदल सकती है.

वास्तव में, कुछ स्थानीय लोगों के लिए, बहुत ज्यादा पर्यटन, एक समय के बाद स्थानीय समुदायों के लिए स्थिरता लाने वाला नहीं, बल्कि अस्थिर करने वाला कारक बन सकता है. (dw.com/hi)


अन्य पोस्ट