राष्ट्रीय
शशि थरूर
एक असामान्य घटना में अम्बेडकर के दिवंगत पिता के श्राद्ध कर्म में उनकी पत्नी रमाबाई शामिल हुई थीं। श्राद्ध के बाद सामान्यत: ब्राह्मणों को भोजन कराने और मिठाई देने की परंपरा थी, लेकिन अम्बेडकर ने इसकी बजाय अपने समुदाय के 40 छात्रों को मांस और मछली का भोजन कराया।
अम्बेडकर अपने प्यारे रामू (प्यार से जिस नाम से वह उस महिला को बुलाते थे) की मृत्यु से टूट गए थे। उसने उनके लिए बहुत कुछ सहा था, उनकी उपेक्षा बर्दाश्त की थी और सार्वजनिक जीवन के प्रति उसकी व्यस्तता को चुपचाप सहन किया, अपने परिवार को खाना खिलाने के लिए खुद भूखी रही, वर्षो के उस समय का बोझ बर्दाश्त किया जब परिवार का गुजर-बसर बमुश्किल हो पाता था, और अपने तीन बेटों और एक बेटी को खोने का दु:ख सहा।
अम्बेडकर ने 1928 में 'बहिष्कृत भारत' में एक लेख में खुलासा किया था, आर्थिक तंगी के दिनों में वह अपने सिर पर गोबर की टोकरी ढोने से भी नहीं झिझकीं। और यह लेखक 24 घंटे में से आधा घंटा भी अपनी इस बेहद स्नेही, मिलनसार और आदरणीय पत्नी के लिए नहीं निकाल सका।
अम्बेडकर ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी पत्नी का अंतिम संस्कार पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाए, हालांकि उस समय उनके शरीर पर उनकी पंसदीदा सफेद साड़ी थी न कि पारंपरिक तौर पर हरी साड़ी। इसके बाद वह अपने कमरे में चले गए और पूरी रात रोते रहे।
पांच साल बाद, जब उन्होंने अपनी पुस्तक 'पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया' प्रकाशित की तो अम्बेडकर ने इसे रमाबाई को समर्पित किया और रामू की याद में अंकित किया।
उनके दिल की अच्छाई, दिमाग की कुलीनता और चरित्र की शुद्धता की मेरी प्रशंसा के प्रतीक के रूप में, और मेरे साथ पीड़ा सहने के लिए शांत धैर्य और तत्परता के लिए भी, जो उन्होंने हमारे लोगों पर गुजरे तंगी और चिंता के उन दिनों में दिखाए जब हमारा कोई मित्र नहीं था।
अम्बेडकर एक शुरुआती नारीवादी थे। उनकी पहली पत्नी, रमाबाई के साथ उनका रिश्ता, असहमति के बावजूद दोस्ती और बहस पर आधारित था और कई मायनों में बीसवीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली नारीवादी नारों में से एक 'द पर्सनल इज पॉलिटिकल' का सटीक प्रतिनिधित्व करता है।
घर के भीतर अम्बेडकर का नारीवाद निश्चित रूप से एक भारतीय के लिए असामान्य था, और खासकर उस समय के भारतीय पुरुष व्यावहारिक रूप से इससे अज्ञात थे। उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका पर विस्तार से बात की। समानता पर जोर देते हुए उन्होंने महिलाओं को इससे अलग नहीं रखा - उन्होंने जाति और लिंग आधारित भेदभाव दोनों पर समान जोर दिया।
अम्बेडकर ने 1916 में 'कास्ट्स इन इंडिया' पर अपने अग्रणी कोलंबिया व्याख्यान में तर्क दिया था कि सजातीय विवाह - विशेष रूप से एक ही जाति और समुदाय के भीतर विवाह - जाति के स्थायीकरण का सबसे बड़ा कारण था। विशेषाधिकार और वर्णक्रम के लिए उनकी चुनौती घर के भीतर भी इन धारणाओं को विस्तार करने वाले मानदंडों पर सवाल उठाती है।
उन्होंने अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन (1942) में महिला दर्शकों से बातचीत में इस विचार के बारे विस्तार से बताया: अपने बच्चों को शिक्षा दें। उनमें महत्वाकांक्षा पैदा करें.. शादी करने में जल्दबाजी न करें: विवाह एक दायित्व है। आपको इसे बच्चों पर तब तक नहीं थोपना चाहिए जब तक कि वे आर्थिक रूप से उनसे उत्पन्न होने वाली देनदारियों को पूरा करने में सक्षम न बन जाएं.. और सबसे बढ़कर प्रत्येक लड़की जो शादी करती है अपने पति का सामना करे, अपने पति की दोस्त और उसके बराबर होने का दावा करे, और उसका गुलाम बनने से इनकार कर दे।
एक ऐसे समाज में जहां एक महिला की वैवाहिक स्थिति को बहुत महत्व दिया जाता है, विवाह की पवित्रता को कमजोर करने का साहसिक कार्य और वैवाहिक जीवन में महिलाओं को पुरुषों के बराबर खड़ा करने की उनकी मांग ने भारतीय महिलाओं के लिए उनके अपने परिवार के भीतर गरिमा की एक अद्वितीय और साहसिक घोषणा की। वे उन्नीसवीं सदी के मध्य में मुक्ताबाई साल्वे से लेकर बीसवीं की शुरूआत में जयबाई चौधरी तक दलित नारीवाद की परंपरा में एक दुर्लभ और अग्रणी पुरुष स्वर थे।
अम्बेडकर ने 1938 में बॉम्बे विधान सभा में घोषणा की, यदि पुरुषों को प्रसव के दौरान महिलाओं को होने वाली पीड़ा को सहन करना पड़ता है, तो उनमें से कोई भी अपने जीवन में एक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए सहमत नहीं होता।
असेम्बली में अपने काम में, अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए उपलब्ध सीमित चिकित्सा सहायता और अपर्याप्त सस्ती स्वास्थ्य देखभाल के कारण होने वाली मौतों पर भी प्रकाश डाला, एक ऐसा मुद्दा जो अब भी काफी हद तक अनसुलझा है।
जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करने और बाद में जोखिम भरे गर्भपात का विकल्प चुनने की बजाय, अम्बेडकर ने खुलकर महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के हित में परिवार नियोजन की सिफारिश की। अम्बेडकर ने 1938 में बॉम्बे लेजिस्लेटिव एसेम्बली में सरकार द्वारा वित्त पोषित परिवार नियोजन के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित करने की मांग की। लेकिन उनका प्रस्ताव गिर गया, 11 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में और 52 सदस्यों ने इसके विरोध में मतदान किया (इस आधार पर कि यह अनैतिकता फैलाएगा और भारतीय परिवार इकाई के टूटने का कारण बनेगा)। उनकी प्रतिक्रिया की कल्पना मात्र की जा सकती है।
(प्रकाशक अलेफ की अनुमति से शशि थरूर द्वारा लिखित 'अंबेडकर ए लाइफ' के अंश)


