महासमुन्द

वनमंडल अधिकारी की अपील-अब ये पेड़ न लगाएं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 20 अक्टूबर। वर्तमान में महासमुंद शहर में छातिम के पौधों में झूमकर फूल आया है। वातावरण में चारों तरफ इसकी तेज खुशबू से लोग हलाकान हैं और सांस-दमे के मरीजों को काफी तकलीफ है। कुछ लोगों को इसकी खुशबू से एलर्जी की भी शिकायत है।
जिला प्रशासन महासमुंद के वन मंडल अधिकारी पंकज राजपूत ने लोगों से, स्कूल-कॉलेज प्रबंधन से अपील की है कि सप्तपर्णी और कोनोकार्पस के पेड़ न लगाएं। इसके फूल से निकलने वाला परागकण दमे के मरीजों के लिए घातक है और इसकी खुशबू काफी तेज होती है जिससे एलर्जी की भी संभावना है। उन्होंने बताया कि आरंग-रायपुर रास्ते में एक किसान ने कोनोकार्पस की नर्सरी लगाई है, यह भी सेहत के लिए काफी नुकसानदेह पेड़ है। इसके फूल जरूर खूबसूरत होते हैं लेकिन इनके परागकण से सांसों से संबंधित कई तरह की बीमारियों को बढ़ावा मिलता है।
गौरतलब है कि छातिम, सप्तपर्णी को पांच साल से पहले महासमुंद शहर के मुख्य मार्ग के किनारे, वन मंडल के आसपास रोपे गये थे। अब ये पेड़ बड़े हो गये हैं और इन दिनों में काफी मात्रा में फूल लगे हैं। इसकी तेज खुशबू से लोगों के सिर में दर्द, दमे के मरीजों को सांस में तकलीफ और त्वजा में एलर्जी की शिकायत है। छातिम का पेड़ इन दिनों फूलों से लदा हुआ है। उसकी तीक्ष्ण गंध लोगों को विचलित कर रहा है। डाक्टरों का भी मानना है कि इसकी तेज खुशबू से कई लोगों को एलर्जी होती है और खासकर अस्थमा के मरीजों को खतरा रहता है। चूंकि यह फूल रात में ही खिलता है। अत:सबसे अधिक परेशानी रात में होती है। रात में इसकी मादकता और बढ़ जाती है। अभी अक्टूबर का महीना चल रहा है और हर साल अक्टूबर माह में इन पेड़ों पर पराग कण निकलते हैं। जिसकी वजह से अक्टूबर में ही इनमें से तीक्ष्ण गंध निकलती है।
मालूम हो कि कुछ साल पूर्व छत्तीसगढ़ शासन ने इसे बेन कर दिया था और राजधानी स्थित इंदिरागांधी कृषि विज्ञान केन्द्र तथा मेडिकल कॉलेज में लगे छातिम पेड़ों की कटाई कराई गई थी। जबकि कोनोकार्पस को गुुजरात सरकार ने बैन लगा दिया है। लगभग पांच सालों से शहर के बीटीआई मार्ग में सडक़ किनारे छातिम के घने पेड़ हैं। किस उद्देश्य से उक्त पौधे का रोपण किया गया था, यह तो नहीं मालूम लेकिन जब से इन पेड़ों में फूल आना शुरू हुआ है, इसके तेज गंध से लोगों को परेशानी शुरू हो चुकी है। हर साल नगर पालिका इन पेड़ों की टहनियों की छंटाई करवाता है और अक्टूबर तक यह फूलों से लद जाता है।
जिन-जिन स्थानों पर यह पेड़ ज्यादा ताजात में है, वहां के रहवासियों के सिर में दर्द, शरीर में एलर्जी व अस्थमा के मरीजों को परेशानी हो रही है। त्योहारी सीजन में काफी तादाद में लोग शहर पहुंच रहे हैं और वे भी इस फूल के गंध के शिकार हो रहे हैं। बीटीआई मार्ग, वन विद्यालय, हाउसिंग बोर्ड, सीएमएचओ दफ्तर, रेंजर ऑफिस आदि स्थानों पर स्थित पेड़ में खूब फूल खिला हुआ है। रात में इन पेड़ों के आसपास दूर तक इसके फूल की गंध आती है। पेड़ के नजदीक 5 मिनट रुक जाना खतरे से कम नहीं होता है। कोरोना काल के दौरान भी इन पेड़ों को काटने की मांग उठी थी।
गौरतलब है कि सप्तपर्णी का पेंड़ सालभर हरा-भरा रहता है। यह किसी भी प्रकार की भूमि पर, बगैर किसी विशेष देखभाल के, आसानी से बड़ा हो जाता है। इसीलिये सडक़ों के किनारे या बगीचों में इसे लोग लगाते हैं। जड़ी-बूटी के जानकारी कहते हैं कि इसके औषधीय गुण: दुर्बलता कम करने, घाव ठीक करने, मलेरिया, नपुंसकता, पीलिया तथा कई अन्य प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रचलित और काफी प्रभावी है। जच्चा को प्रसव के बाद इसकी छाल का रस पिलाया जाता है। जिससे उसमें दूध बढ़ जाता है। लेकिन इस पौधे के कुछ हानिकारक प्रभाव भी होते हंै।
इस संबंध में वनस्पति शास्त्र विभाग शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार उक्त पौधे का हिंदी नाम छातिम है, जिसे सप्तपर्णी भी कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम एलस्टोनिया स्कॉलरिस है। इसका उपयोग औषधि एवं अन्य चीज के लिए किया जाता है। इसके पेड़ों में फूल लगने के दौरान इससे निकलने वाले परागकणों में तेज गंध होती है। जिसका असर दमा, अस्थमा, एलर्जी के मरीजों को ज्यादा होता है। इसकी गंध सांस की बीमारियों में घातक असर करता है।
हिंदी में इसे सातवीण, सप्तपर्ण, छातिम, यक्षिणी वृक्ष, छितवन, व सतौना तथा इंग्लिश में डेविलट्री, डिताबार्क या शैतानवुड कहते हैं। नाम के पीछे का कारण: इसकी पत्तियां सात के गोल समूह में लगी होती है। इसीलिए इसे सप्तपर्णी कहते हैं। पत्तियों के समूह के बीच में छोटे हरे.सफेद रंग के फूल अक्टूबर से मार्च तक लगते हैं जिनसे तेज और विशिष्ट सुगंध आती है। इसी सुगंध के कारण पर बुरी आत्माओं के बास होने का अंर्ध ावश्वास दुनिया भर में फैला है।
डॉ बसंत कुमार माहेश्वरी मेडिकल सुप्रीटेंडेंट मेकाहाम महासमुंद का कहना है कि छातिम विदेशी वृक्ष है। खासतौर पर यह चीन के उष्ण कटिबंधीय इलाके में पाया जाता है। इस पेड़ के हानिकारक प्रभाव को देखते हुए इसके रोपण पर बेन लगाया गया है। इससे अस्थमा, दमा, एलर्जी सहित अनेक बीमारियां होती है। यह वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित है। रायपुर मेडिकल कॉलेज में लगे इन पेड़ों को अस्पताल प्रशासन ने इसे कटाया था।
पंकज राजपूत, वन मंडल अधिकारी,महासमुंद का कहना है कि महासमुंद में छातिम के पेड़ पांच साल उम्र से अधिक के हैं और काफी तादात में हैं। इतने सारे पेड़ों को खत्म करने से बेहतर है कि आगे कोई भी इन पेड़ों को न लगाएं। एक उम्र के बाद इन पेड़ों का जीवन स्वत: ही समाप्त हो जाएगा और नये पौधे नहीं लगाने से इसकी संख्या धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी। यह सही है कि इन पेड़ों के फूलों से निकले मकरंद सांस की बीमारियों को जटिल बनाता है। इसी किस्म के कुछ और पौधे भी स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हैं। अत: ऐसे पौधों की पहचान होने के बाद दुबारा न लगाएं और आसपास भी ऐसे पौधों की पहचान करें ताकि वातावरण से घातक तथा रोगजनित वायु से बचा जा सके। इसी तरह महासमुंद-रायपुर मार्ग किनारे कोनोकार्पस की नर्सरी है। ये सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है।