महासमुन्द

व्यासपीठ पर बैठने का हक उन सभी को, जो वेद पुराणों के जानकार हैं, चाहे महिला हो या शूद्र-यामिनी
03-Apr-2022 12:48 PM
व्यासपीठ पर बैठने का हक उन सभी को, जो वेद पुराणों के जानकार हैं, चाहे महिला हो या शूद्र-यामिनी

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0 सोशल मीडिया में फैल रहा यामिनी का एक नया आडियो
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 3 अप्रैल। व्यासपीठ पर बैैठकर कथा प्रवचन करने वाली यामिनी साहू को धमकाने और समझाने का क्रम बंद नहीं हो रहा है। कर्मकांड करके अपने जीवन यापन करने वालों की यजमानी अब खतरे में है और वे लगातार यामिनी को फोन कर यही सलाह दे रहे हैं कि व्यासपीठ पर सिर्फ और सिर्फ ब्राम्हणों का हक है, महिलाएं अथवा शूद्रों का नहीं। इस वक्त यामिनी और एक ब्राम्हण पुत्र का नया आडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, जिसमें यामिनी वेदों और उपनिषदों में लिखे तर्कों का हवाला देकर ब्राम्हण पुत्र के इस बात का खंडन करती हैं कि व्यासपीठ पर बैठने का हक उन सभी को है, जो वेद पुराणों के जानकार हैं। चाहे वह महिला हो, अथवा शूद्र।

यामिनी के साथ इस बार अनंश कुमार शुक्ला रायपुर से फोन पर थे, उन्होंने पहले यामिनी से उनका नाम पूछा फिर उसने तुरंत कहा कि ये क्या है, धर्म को कुछ भी ऐसा वैसा कर रहे हो। आप जो व्यासपीठ पर बैठकर प्रवचन करते हो, ये गलत है। ब्राम्हण फिर क्या करेंगे। देखो, मैं पंडित हूं मैं भी व्यासपीठ पर बैठकर प्रवचन करता हूं। उसने किसी सौरभ राजिम वाले की बात भी कही। फिर पूछा कि गायत्री परिवार से हो? यामिनी ने कहा-हां भैया, गायत्री परिवार से जुुड़ी हुई हूं। अनंश ने कहा-व्यासपीठ की बात है तो व्यासपीठ में वेदव्यास जी महाराज बैठे थे। अब उस पीठ पर केवल ब्राम्हणों को बैठने का अधिकार है। वैष्णवों तक को व्यासपीठ में बैठने का अधिकार नहीं दिया गया है।

इस पर यामिनी का जवाब था-व्यक्ति कर्म से भी तो ब्राम्हण बन सकता है भैया। अनंश ने कहा-कर्म से ब्राम्हण तो बन सकता है पर आपकी शादी हो गई है, आप तो कतई व्यासपीठ पर बैठकर प्रवचन नहीं कर सकती।

यामिनी ने कहा-आपके समाज में भी तो बहुत सी महिलाएं बैठती हैं, वेदों का अधिकार तो है महिलाओं को। लोकामुद्रा भी तो अगस्तमुनि की पत्नी थीं, भारतीय देवी मंडल मिश्र की पत्नी थीं, वे वेदाचार्य थीं। समाज बदल गया है, समाज परिवर्तनशील है। मैं प्रवचन कर रही हूं तो ज्ञान ही दे रही हूं, कोई गलत बात नहीं कर रही हूं।

अनंश महाराज ने तत्काल कहा-कीजिए, लेकिन व्यासपीठ पर बैठकर मत कीजिए। आपके व्यासपीठ में बैठने से ब्राम्हणों का अपमान हो रहा है। आजकल कोई भी भागवत करने बैठ जाता है, क्या है न क्या।

यामिनी ने कहा-सूतजी पुराणों के वक्ता थे जो कि ब्रम्हण नहीं हैं। इस पर अनंश ने कहा-देखो, मैं स्पष्ट बता रहा हूं, सूत जी से अपनी तुलना मत करो। यामिनी ने कहा-जाति की बात हो रही है न भैया। तो आज के जितने भगवताचार्य हैं, उनकी तुलना भी व्यास जी से नहीं हो सकती। मैं अपनी तुलना सूत जी से नहीं कर रही हूं। मैं भी बताना चाह रही हूं कि सूत जी ब्राम्हण नहीं थे। मैं बताना चाह रही हूं कि पुराणों पर सबका अधिकार है।

इस पर अनंश महाराज ने कहा कि पुुराणों पर केवल ब्रम्हणों का अधिकार है। फिर यामिनी ने कहा-ऐसा नहीं है भैया, समय बदल रहा है। पहले तो सती प्रथा थी, आज सती प्रथा है क्या बताइए।

अनंश महाराज ने कहा-सुनिए सुनिए, चार वेद हैं, अठारह पुराण हंै। आगे चलकर क्या 18 पुराण से 36 पुराण हो जाएगा। 4 वेद हैं तो 8 वेद हो जाएंगे।

यामिनी ने कहा-ये वेद पुराण भी एक समय में नहीं लिखा गया है। अलग-अलग अवतार हुए और उन अवतारों के अनुसार पुराण लिखे गए। हमारा 19 वां पुराण है, प्रज्ञा पुराण। इस पर अनंश महाराज ने कहा-तो भई जिसको अधिकार है कथा कहने का, उसे दीजिए न।

इस पर यामिनी ने कहा-हमें क्यों अधिकार नहीं है, कथा कहने का? अनंश महाराज ने कहा-नहीं है अधिकार आपको कथा कहने का।

यामिनी ने जवाब दिया-भागवत में आत्मा और परमात्मा की बात आती है। रास लीला की बात आती है कि आत्मवत शिवो अहम्। तो हम शरीर की बात क्यों करते हैं। गीता के एक अध्याय में अष्टावक्र जी ने साफ साफ कहा था कि जो सिर्फ शरीर को देखता है, वह ज्ञानी कैसे हो सकता है, लेकिन हर ज्ञानी उपदेशक हो सकता है। जो मेरे समझ में आता है, उसी हिसाब से काम कर ही हूं। मैं अब तक किसी ब्राम्हण के विरोध में नहीं बोली और न आगे कभी बोलूंगी। तो आप लोग भी सहयोग कीजिए मेरा, विरोध मत कीजिए।

दोनों के बीच फोन पर वर्णों पर आधारित बहस भी हुई। अनंश महाराज ने आखिर तक यामिनी से कहा कि कथा सुनाइए लेकिन व्यास पीठ पर बैठकर नहीं। इस पर यामिनी ने कहा कि वेदों पर मेरा मौलिक आधार है। मैं जिस समाज की हूं इस समाज की कर्मा माता को संत को दर्जा मिला है। व्यक्ति कर्म के आधार पर ब्रम्हण कहलाता है। पर अनंश का मानना है कि व्यक्ति जन्म से ब्राम्हण होता है। यामिनी ने कई उदाहरण देकर उसे ज्ञान बांटा लेकिन अनंश महाराज हैं कि यही कहते रहे-महिलाओं और शूद्रों को व्यासपीठ पर बैठने का हक नहीं है।
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