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'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 16 जून। दिव्यांगता के बावजूद हुनर के बलबूते गुजर बसर करने का जज्बा रखने वाले बलौदाबाजार के कामगार सोमवार को श्रमिक टे्रन से गाजियाबाद से छत्तीसगढ़ पहुंचे। इनके अलावा उम्र के आखिरी पड़ाव में भीख मांगकर गुजार करने वाले उम्रदराज कुछ लोगों की भी घर वापसी हुई।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता से कुछ कामगारों ने अपने अनुभवों को साझा किया। बलौदाबाजार लकडिय़ा गांव के पोलियोग्रस्त कामदेव गीत लहरे ने बताया कि गांव में उनकी पत्नी, मां और बच्चे रहते हैं। पोलियोग्रस्त होने के कारण गांव में उन्हें कोई काम नहीं देता था इसलिए थकहार कर वह पड़ोसी गांव के एक व्यक्ति के कहने पर गाजियाबाद चले गए थे। वहां रहते हुए 50 रूपए रोजी पर उन्होंने दो पहिया, चार पहिया गाडिय़ों में सीट कवर लगाना सीखा। काम अच्छे से सीख लेने पर कंपनी ने उन्हें काम पर रख लिया। ढाई सौ, तीन सौ की दर से उन्हें रोजी मिलने लगी और उनकी जिंदगी संवर गई।
कामदेव कहते हैं गांव में भले चंगों को तो काम मिलता नहीं है फिर हमें कौन काम देगा? कोई हमारे ऊपर भरोसा ही नहीं करता है। गांव तो लौट गए हैं लेकिन काम नहीं मिला तो वापस गाजियाबाद जाएंगे।
36 वर्षीय, 8वीं पढ़े बुलाकी बंजारे ने बताया कि उनकी 3 लड़कियां हैं जो गांव में पढ़ रही हैं। गाजियाबाद में रहकर उन्होंने सीट कवर का काम सीख लिया है। उन्हें उम्मीद है कि हुनर की बदौलत अब गांव में उन्हें काम मिल जाएगा, लेकिन काम न मिलने पर गांव छोड़कर गाजियाबाद जाना उनकी मजबूरी होगी। बुलाकी कहते हैं 75 प्रतिशत विकलांगता के बावजूद मैंने सीट कवर का काम सीखकर अपने परिवार का सहारा बना लेकिन अफसोस कि हम पर लोग भरोसा नहीं करते हैं। रोजगार दिलाने के नाम पर हम दिव्यांगों से भी पैसे वसूल लेते हैं।
बलौदाबाजार के सकरी गांव की बुजुर्ग सुशीला बाई की गांव वापसी हो गई है। फिलहाल वह क्वॉरंटीन सेंटर में है। सुशीला के बेटे वरू टंडन ने बताया कि उनकी छोटी सी दुकान है। उनके 3 भाई और 5 बहनें हैं लेकिन मां सुशीला गांव के और लोगों के साथ गाजियाबाद में रहते हुए भीख मांगकर गुजारा करती है। बीच-बीच में वह गांव आती रहती थी लेकिन इस बार कोरोना के कारण गांव वापस आई है।
गाजियाबाद में रहकर भीख मांग कर गुजारा करने वाली बलौदाबाजार की विमला और उनके पति काशीराम गांव वापस नहीं आ पाए।
फोन पर उनकी बेटी मनीषा ने बताया 6 महीने पहले मां-पिताजी, पति और बच्चों के साथ वह गाजियाबाद आई थी लेकिन छत्तीसगढ़ वापसी के लिए फार्म नहीं भर पाई जिसके कारण टे्रन चूक गई।
मनीषा ने बताया कि उसका पति हमाली का काम करता है और मां-बाप भीख मांगकर गुजारा करते हैं। गांव में बहन भाई हैं, लेकिन पेट की खातिर मां-बाप गाजियाबाद में ही रहते हैं। यहां गांव के और लोग भी इसी तरह गुजारा करते हैं। जिस दिन टे्रन से वापसी के लिए फोटो वगैरा जमा हो रहा था उस दिन उसके पति काम पर चले गए थे जिसके कारण वह लौटने से चूक गए।