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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन की वैधता पर सवाल उठाए
20-Nov-2025 8:50 PM
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन की वैधता पर सवाल उठाए

आमिर अंसारी

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन पर सवाल उठाए है और पूछा कि क्या यह प्रथा आज के सभ्य समाज में जारी रहनी चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 19 नवंबर को इस्लाम में "तलाक-ए-हसन" की प्रथा पर गंभीर सवाल उठाए. यह प्रथा पति को तीन महीने में हर महीने एक बार "तलाक" कहकर विवाह समाप्त करने की अनुमति देती है. 2017 में अदालत ने तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक करार दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका एक पत्रकार बेनजीर हीना ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि यह प्रथा "अतार्किक, मनमानी और असंवैधानिक" है, उनका कहना है कि यह प्रथा महिलाओं के सम्मान और समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है.

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"तलाक-ए-हसन" पर अदालत की प्रतिक्रिया
"तलाक-ए-हसन" को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आधुनिक समाज में यह कैसे स्वीकार्य है?" सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता बेनजीर हीना के मामले पर हस्तक्षेप किया, जिनके बच्चे के स्कूल में दाखिले की प्रक्रिया तलाक के दस्तावेजों में पति के हस्ताक्षर न होने के कारण अटकी हुई है. उनके पति ने वकील के जरिए तलाक (तलाक-ए-हसन) दिया और बाद में दोबारा शादी कर ली. अदालत ने इस तरीके पर नाराजगी जताते हुए कहा, "तलाक के लिए भी पति सीधे बात नहीं कर सकता? यह महिलाओं की गरिमा का सवाल है."

जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने तलाक का नोटिस वकील द्वारा भेजे जाने को "व्यक्तिगत कानून के तहत भी संदिग्ध" बताया. दरअसल, अदालत उन याचिकाएं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें कुछ मुस्लिम महिलाओं ने "तलाक-ए-हसन" का सामना किया और भेदभावपू्र्ण व्यवहार का आरपो लगाया है. कानूनी खबरों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध मुख्य याचिका बेनजीर हीना द्वारा दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया कि उनके पति ने उन्हें 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के जरिए "तलाक-ए-हसन" का पहला नोटिस भेजा और दूसरा और तीसरा नोटिस अगले महीनों में उन्हें भेजा गया.

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तलाक के नोटिस पर पति के हस्ताक्षर नहीं
हीना के वकील ने अदालत को यह भी बताया कि पति द्वारा जो तलाक का नोटिस भेजा गया उसपर पति के हस्ताक्षर नहीं थे. वहीं हीना के पति की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से कहा कि इस्लाम में तलाक का नोटिस पति के वकील द्वारा दिया जाना आम बात है. इस पर अदालत ने पूछा, "ऐसे नए-नए तरीके क्यों ईजाद किए जा रहे हैं? क्या यह प्रथा हो सकती है?" बेंच ने तलाक की प्रक्रिया में पति की सीधी भागीदारी को आवश्यक बताया.

अदालत ने बेनजीर हीना की कनूनी लड़ाई की सराहना करते हुए कहा कि हर महिला के पास कानूनी लड़ाई लड़ने के संसाधन नहीं होते. बेंच ने कहा, "अगर कोई गरीब महिला पुनर्विवाह करती है और पहला पति आकर कहता है कि वह बहुविवाह कर रही है, तो क्या सभ्य समाज ऐसी प्रथाओं को स्वीकार कर सकता है?"

सुप्रीम कोर्ट ने "तलाक-ए-हसन" की वैधता पर विस्तृत जानकारी मांगी है और अगली सुनवाई में पति को पेश होने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा, "उसे यहां आकर महिला को जो चाहिए, वह बिना शर्त देना होगा."

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इस्लाम में तलाक के तरीके
तलाक-ए-हसन तलाक का एक जरिया है जिसके द्वारा एक मुस्लिम व्यक्ति तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार तलाक का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है. इस दौरान पति और पत्नी में सुलह-समझौते की कोशिश होनी चाहिए. अगर किसी सूरत में समझौता नहीं हो जाता है तो तीसरी बार तलाक कहने पर पति-पत्नी अलग हो जाते हैं.

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तलाक देने के और भी तरीके हैं. जैसे कि तलाक-ए-अहसान. इसमें एक ही बार तलाक बोलना होता है, जब पत्नी मेंस्ट्रुअल साइकिल से न गुजर रही हो. इसे शादी खत्म करने का सबसे अस्वीकृत तरीका बताया जाता है. तलाक के बाद पति एक ही घर में पत्नी से अलग रहता है और पत्नी 90 दिन इद्दत में बिताती है. इस अवधि में पति दो गवाहों या अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाकर तलाक वापस ले सकता है.

एक बार में तीन तलाक बोलकर भी शादी तोड़ी जा सकता है लेकिन अब ऐसा करना भारत में गैर कानूनी है. 2019 में भारत सरकार ने तीन तलाक पर बैन लगाने के लिए संसद में कानून पारित कराया था. इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को बैन कर दिया था.

मुस्लिम महिलाओं के पास भी तलाक लेने के विकल्प हैं. वह खुला के जरिए अपने पति से तलाक ले सकती हैं. इस तलाक में पत्नी को निकाह के वक्त दी गई मेहर की राशि पति को लौटानी होगी.

 

 

 

 


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