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-चंदन कुमार जजवाड़े
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए जब एनडीए में सीटों का बंटवारा हुआ था तब कई लोगों को इस बात पर हैरानी हुई थी कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) राज्य में 29 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
इस बंटवारे के तहत बिहार की 243 सीटों में बीजेपी और जेडीयू को बराबर 101 सीटें मिलीं. वहीं अन्य सहयोगी दल जैसे- जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा के हिस्से में छह-छह सीटें दी गईं.
शुक्रवार को आए बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि चिराग पासवान के मामले में एनडीए ने कोई ग़लती नहीं की है.
एलजेपी (आर) को इन चुनावों में 19 सीटों पर जीत मिली है. इसे दूसरे नज़रिए से देखें तो चिराग पासवान की पार्टी के पास राज्य के सबसे प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी से महज़ 6 सीटें कम हैं.
सियासी तौर पर देखें तो चिराग पासवान ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को न केवल बचाकर रखा है, बल्कि उसे कई मायनों में आगे भी बढ़ाया है.
ख़ासकर बिहार यानी राज्य से जुड़े मुद्दों पर चिराग पासवान अपने पिता से कहीं आगे दिखते हैं और विधानसभा चुनावों में भी उन्हें बड़ी कामयाबी मिल गई है.
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, "चिराग पासवान पिछले विधानसभा चुनावों में नीतीश के साथ नहीं थे तो उन्होंने दिखा दिया कि वो नीतीश को कितना कमज़ोर कर सकते हैं. इस बार वो साथ थे तो अपनी ताक़त भी दिखा दी."
वो याद करते हैं, "साल 1999 में बिहार के शंकर बिगहा में 22 दलितों की हत्या कर दी गई थी. इनमें से ज़्यादातर पासवान थे. इसका आरोप अगड़ी जाती की रणवीर सेना पर लगा था, लेकिन जब रामविलास पासवान एनडीए में चले गए तो दलितों ने एनडीए को वोट दिया, जिसे आमतौर पर अगड़ी जाति की पार्टी का गठबंधन माना जाता था."
सुरूर अहमद के मुताबिक़ यह दिखाता है कि राज्य की 6.31 पासवान आबादी मूल रूप से पहले रामविलास पासवान के साथ थी और अब चिराग पासवान के साथ है.
वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं, "चिराग पासवान की सियासत को लेकर मैं निकट भविष्य के लिए एक भविष्यवाणी करना चाहता हूं कि बिहार की नई सरकार में वो उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं. वो हाजीपुर लोकसभा सीट से अपनी माँ को संसद भेज देंगे और ख़ुद राज्य में सक्रिय हो जाएंगे."
वो कहते हैं, "यह अनोखा मामला नहीं होगा, इससे पहले सिद्धेश्वर प्रसाद को भी कांग्रेस ने 1970 के दशक में केंद्र में मंत्री के पद से बिहार का मंत्री बनाया था."
लव कुमार मिश्रा मानते हैं कि एलजेपी टूटने के बाद भी खुलकर कभी केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला, वो जल्दबाज़ी में नहीं रहते हैं और बहुत नपी-तुली राजनीति करते हैं.
अगर ऐसा होता है तो चिराग पासवान के लिए भी इस लिहाज़ से यह सुरक्षित मौक़ा हो सकता है कि इस बार बिहार विधानसभा चुनावों का परिणाम राज्य में एक स्थिर सरकार का रास्ता खोलने वाली है.
दरअसल पिछली विधानसभा में नीतीश कुमार एक बार एनडीए छोड़कर महागठबंधन और फिर महागठबंधन छोड़कर एनडीए में गए थे.
लेकिन इस बार अगर वो विपक्ष के साथ आते भी हैं तो राज्य में सरकार बनाना उनके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि विपक्ष के पास उनको समर्थन करने के लिहाज़ से ज़्यादा सीटें नहीं होंगी.
जब बिहार की सियासत में बने विवाद की वजह
साल 2020 में चिराग पासवान बिहार की सियासत में विवादों के केंद्र में रहे जब एनडीए में रहकर भी एलजेपी 135 सीटों पर चुनाव लड़ी. चिराग की पार्टी को भी महज़ एक सीट मिली.
उन्होंने चुनावों के दौरान लगातार नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ बयान दिए. जेडीयू ने ख़ुद को हुए नुक़सान का आरोप चिराग पासवान पर लगाया. जेडीयू को 115 सीटों पर चुनाव लड़कर भी उन चुनावों में महज़ 43 सीटें मिली थीं.
बाद में जब साल 2022 में नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन के साथ चली गई तब चिराग पासवान के सियासी फ़ैसलों को भी इसका एक कारण माना गया और उस समय इसे राजनीति का 'चिराग मॉडल' भी कहा गया.
यह समय शायद सियासत में एंट्री के बाद चिराग पासवान के लिए सबसे चुनौती भरा था. और फिर यहीं से उन्होंने वापसी भी शुरू की.
कहा जाता है कि इस दौरान आरजेडी ने भी कई बार कोशिश की कि चिराग पासवान उनके साथ जुड़ जाएं.
नीतीश के एनडीए से अलग होने के बाद चिराग पासवान ने राज्य में हुए कुछ विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी का सीधा समर्थन किया और बीजेपी को मिली सफलता का श्रेय चिराग के हिस्से में भी आया.
वरिष्ठ पत्रकार माधुरी कुमार कहती हैं, "चिराग पासवान बहुत मंझे हुए राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं. सच बताऊं तो मुझे भी लग रहा था कि वो 6-7 सीटें जीत पाएंगे. उन्होंने चुपचाप काम किया. वो काफ़ी मैच्योर हो गए हैं."
माधुरी कुमार मानती हैं, "चिराग पासवान तारीफ़ के काबिल हैं. उन्होंने कभी दावा नहीं किया कि इतनी सीटें जीतूंगा. किसी सभा में भी कोई बड़ा दावा नहीं किया. मुझे लगता है कि आने वाला समय चिराग के लिए काफ़ी अच्छा होगा."
अकेले दम पर की वापसी
साल 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद साल 2021 में उनकी पार्टी एलजेपी दो हिस्सों में टूट गई थी. इस टूट में पार्टी के पाँच सांसद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ चले गए थे और चिराग पासवान तक़रीबन अकेले नज़र आ रहे थे.
माना जाता है कि चिराग पासवान के मन में इस बात को लेकर शिकायत थी कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अगर कोशिश करता तो एलजेपी में टूट नहीं होती.
लेकिन पार्टी में टूट के बाद भी चिराग पासवान ने अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत पर अपना दावा नहीं छोड़ा और बिहार की राजनीति में लगातार सक्रिय रहे.
वो सभाएं और रैलियाँ करते रहे और इस तरह अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को काफ़ी पीछे छोड़ दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने पशुपति पारस को किनारे कर चिराग पासवान के धड़े एलजेपी (आर) को समझौते के तहत पांच सीटें दीं.
चिराग पासवान की पार्टी ने इन पाँचों सीटों पर जीत दर्ज की और अपनी अहमियत साबित की.
इससे पहले साल 2019 के चुनावों में भी एलजेपी को बिहार में अपने हिस्से की सभी छह सीटों पर सफलता मिली थी, हालाँकि उस वक़्त रामविलास पासवान जीवित थे.
यानी लोकसभा चुनावों के लिहाज़ से चिराग ने अपने पिता की विरासत को बिखरने नहीं दिया.
चिराग पासवान का सियासी भविष्य
बिहार में दलितों के बीच रामविलास पासवान को हमेशा एक बड़े नेता के तौर पर देखा गया. चिराग पासवान भी अपने इस कोर वोट बैंक को बरकरार रखने में कामयाब दिखते हैं.
यही नहीं बिहार में दलितों को महादलितों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में लगे नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी से चिराग की एक दौड़ भी दिखती है. जानकार इस मुद्दे को तीनों नेताओं के बीच तनाव की एक दबी हुई भावना के तौर पर भी देखते हैं.
हालाँकि इस मामले में चिराग पासवान अभी युवा हैं और वो भी अपने पिता की तरह 'बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट' की बात करते रहे हैं. यानी अपने कोर वोटरों के अलावा वो एक व्यापक छवि बनाने की कोशिश में भी दिखते हैं.
लव कुमार मिश्रा कहते हैं, "मेरा मानना है कि चिराग पासवान को साथ रखकर एनडीए दलितों और पिछड़ों के बीच अपनी जगह और बढ़ा सकता है."
"बिहार की जो नई सरकार होगी वो काफ़ी स्थिर सरकार होगी और मुझे लगता है कि इस बार कुछ चेहरों को मंत्रिमंडल से बाहर रखा जा सकता है जिन पर हाल-फिलहाल में कुछ आरोप लगे हैं. ज़ाहिर तौर पर नई सरकार में पीएम की सलाह भी होगी और चिराग पासवान को पीएम पसंद भी करते हैं."
सुरूर अहमद कहते हैं, "नीतीश कुमार को भले ही बड़ी जीत मिली हो लेकिन उम्र की वजह से उनका और उनकी पार्टी का कोई भविष्य नहीं दिखता है. इस मामले में चिराग पासवान के पास बड़ा मौक़ा है क्योंकि वो युवा हैं."
हालाँकि यह भी माना जाता है कि चिराग पासवान के भविष्य का अनुमान केवल इसी आधार पर नहीं लगाया जा सकता है. इस मामले में आरजेडी के तेजस्वी यादव भी हैं, जिनके साथ इस बुरे प्रदर्शन में भी उनका कोर वोट दिखता है.
साल 2010 में भी आरजेडी का प्रदर्शन इसी तरह काफ़ी कमज़ोर रहा था और महज़ 22 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. जबकि जेडीयू को 115 और बीजेपी को 91 सीटों पर कामयाबी मिली थी.
चिराग पासवान अक्सर 'बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट' की बात करते रहे हैं. हालाँकि राज्य को लेकर ऐसी बात उनके पिता रामविलास पासवान भी करते थे, लेकिन रामविलास आमतौर पर केंद्र की राजनीति में ज़्यादा सक्रिय नज़र आते थे.
जबकि चिराग पासवान ने बिहार के लॉ एंड ऑर्डर, पलायन, रोज़गार जैसी समस्याओं को कई बार मुद्दा बनाया है. यहाँ तक कि हाल ही में एनडीए में होते हुए भी उन्होंने लॉ एंड ऑर्डर पर नीतीश सरकार पर सवाल खड़े किए. (bbc.com/hindi)


