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नगर निगम की जल्दबाजी पर नाराजगी जताते हुए जज ने पूछा- 2003 में पास लेआउट पर 2012 का नियम कैसे लागू होगा,
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 15 नवंबर। तिफरा सेक्टर-डी की 19 एकड़ जमीन को नगर निगम द्वारा अवैध कॉलोनी बताकर राजसात किए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए स्टे जारी रखा और राज्य शासन को भी पक्षकार बनाने के निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि पूरी प्रक्रिया की स्पष्टता के बिना इस तरह की बड़ी कार्रवाई उचित नहीं है। अब अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने बताया कि इस जमीन का लेआउट वर्ष 2003 में पास हुआ था और 2008 तक खरीदी-बिक्री होती रही। कॉलोनी अधिनियम 2012 में लागू हुआ, इसलिए यह जमीन उसके दायरे में आती ही नहीं। उनका कहना था कि 2008 के बाद से यहां कोई नया विकास कार्य नहीं हुआ, इसलिए धारा 292-च और 292-छ लागू नहीं होते। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी 50 साल पुरानी जमीन को निगम जबरन कब्जाने का प्रयास कर रहा है।
जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू की सिंगल बेंच ने निगम की जल्दबाजी पर नाराजगी जताई। चार नवंबर को निगम ने कोर्ट में जवाब देने के लिए समय मांगा था और 12 नवंबर को अपना जवाब भी प्रस्तुत किया। इसके बावजूद उसे यह पता होते हुए कि 13 नवंबर को सुनवाई तय है, उसने उससे पहले ही जमीन को राजसात करने का आदेश जारी कर दिया और एसडीएम को राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव का निर्देश भेज दिया। कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कार्रवाई पर तत्काल रोक लगा दी।
नगर निगम ने अपनी ओर से दलील दी कि कॉलोनी अवैध है और कॉलोनाइजर सुरेंद्र जायसवाल को पहले तीन नोटिस दिए गए थे। दावा-आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कलेक्टर ने दस सदस्यीय जांच समिति बनाई थी। समिति ने छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धाराओं 292-ग, 292-च और 292-छ के तहत कार्रवाई की सिफारिश की थी, जिसके आधार पर 19.35 एकड़ जमीन को राजसात घोषित किया गया। इस दौरान कई खसरा नंबरों को अवैध प्लॉटिंग का हिस्सा माना गया। दूसरी ओर कॉलोनाइजर ने इन नोटिसों को अलग-अलग याचिकाओं में हाईकोर्ट में चुनौती दी हुई है, जो अभी लंबित हैं।
इसी दिन हाईकोर्ट ने औद्योगिक प्रदूषण से श्रमिकों के बीमार होने के मामले में भी सुनवाई की और 37 और उद्योगों को पक्षकार बनाने के निर्देश दिए। कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट पर आगे की सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।


