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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एआई की चेतावनी सुनने की जरूरत, मानसिक सेहत के लिए कदम उठाएं
सुनील कुमार ने लिखा है
29-Oct-2025 9:09 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : एआई की चेतावनी सुनने की जरूरत, मानसिक सेहत के लिए कदम उठाएं

दुनिया में आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए सबसे अधिक खबरों में बना हुआ चैटजीपीटी बताता है कि उससे बातचीत करने वाले लोगों में से हर हफ्ते 10 लाख लोग खुदकुशी का इरादा जाहिर करते हैं। पूरी दुनिया में करोड़ों लोग इसका इस्तेमाल करते हैं, फिर भी 10 लाख का आंकड़ा बहुत बड़ा है। जिन लोगों ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से बातचीत नहीं की है, उन्हें अंदाज नहीं होगा कि वह एक दोस्त और शुभचिंतक की तरह बात करता है, कभी परामर्शदाता बन जाता है, तो कभी दुनिया भर के मुद्दों पर सलाह की जानकारी देने लगता है। हाल के महीनों में यह बात भी सामने आई है कि एआई कई लोगों को भावनात्मक रूप से ऐसा जोड़ लेता है कि पश्चिमी देशों में दसियों लाख किशोर-किशोरियां उसे ही अपने प्रेमी-प्रेमिका की तरह देखने लगते हैं, उसके साथ दिल का रिश्ता जोड़ लेते हैं। कुछ महीने पहले यह बात भी आई थी कि एआई चैटबॉट ने भावनात्मक रूप से अस्थिर लोगों को खुदकुशी की राह दिखाने की कोशिश भी की थी। और लोगों को लगता है कि वे दुनिया के सबसे उम्दा एआई से बात कर रहे हैं, जिसकी बात सही और सच होने की ही गुंजाइश अधिक है। अभी ताजा खबर बताती है कि दुनिया के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह मानते हैं कि एआई चैटबॉट से भावनात्मक मदद लेने वालों में से जो कमजोर मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं, वे खतरे में पड़ सकते हैं।

अब हम कमजोर मानसिक स्थिति की एक दूसरी खबर देखें, तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक सरकारी साईंस कॉलेज में पढऩे वाली छात्रा अपने बीमार पिता से मिलकर आई थी, और किराए के मकान में जहां वह रहती थी, वहां उसने खुदकुशी कर ली। आज की ही एक दूसरी खबर है कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के परिवार में एक कमउम्र लडक़े ने खुदकुशी कर ली है। ऐसी खबरें चारों तरफ से आती हैं, और दिल दहलाती हैं कि प्रेम, कर्ज, इम्तिहान में नाकामयाबी, परिवार में डांट, मोबाइल फोन न मिलने, मोबाइल गेम न खेलने देने जैसे किसी भी बहुत छोटे मामले को लेकर लोग खुदकुशी करने लगे हैं। इसके लिए न तो कोई उम्र सीमा रह गई है, न आय सीमा। आदिवासी इलाकों में भी हॉस्टल में रह रही छात्राओं की खुदकुशी की खबर तकरीबन हर पखवाड़े या महीने देखने मिलती है। यह नौबत देश में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति बताती है।

हिन्दुस्तान की बात करें तो यहां पर दो पीढिय़ों के बीच खुलकर बात करने के रिश्ते नहीं रहते। नई पीढ़ी अगर अपनी मर्जी से प्रेम और विवाह करना चाहती है, तो उसके मां-बाप, चाचा-ताऊ मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं, और कभी भाड़े के हत्यारों से, तो कभी अपने सामाजिक अहंकार का पेट भरने के लिए अपने हाथों से तथाकथित ऑनरकिलिंग कर देते हैं। ऐसे समाज में नौजवान पीढ़ी अपनी हसरतों को खुलकर किसी के सामने रख भी नहीं पाती। देश में मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता, या किसी और किस्म के रिलेशनशिप-सलाहकार गिने-चुने हैं। भारत के अधिकतर नौजवानों को अपनी उलझन सुलझाने के लिए कोई जरिया हासिल नहीं है। ऐसे में हम हर दिन कहीं न कहीं एक प्रेमीजोड़े की खुदकुशी की खबर पढ़ते हैं, और अलग-अलग खुदकुशी करने वाले लोग तो एक साथ खबरों में आते भी नहीं हैं। शादीशुदा जिंदगी के रिश्ते इतने हिंसक हो चुके हैं कि पति-पत्नी के बीच शक आकर एक अलग किस्म का त्रिकोण बना देता है, और बात मरने-मारने पर आ जाती है, पहले मार देने, और फिर मर जाने पर। फिर यह भी है कि पति-पत्नी के बीच किसी एक प्रेमी या प्रेमिका के आ जाने से जो खूनी त्रिकोण बनता है, वह आमतौर पर एक या दो के कत्ल करवाता है, और बचे हुए को जेल भिजवाता है। भारत रिश्तों में शक से लेकर रिश्तों के टूटने तक किसी चीज को झेलने की दिमागी हालत में नहीं है, और आने वाले कुछ दशकों में देश की मानसिक स्वास्थ्य सेवा की इतनी क्षमता विकसित होते नहीं दिखती जो कि 140 करोड़ आबादी के बीच पनपती मानसिक कुंठाओं, और हिंसक भावनाओं का कोई इलाज कर सके।

हम अपने अखबार, और यूट्यूब चैनल इंडिया-आजकल पर बार-बार इस बात को उठाते हैं कि समाज की सोच में जो जटिलता और हिंसा बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए देश-प्रदेश की सरकारों को चाहिए कि अपने विश्वविद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्श, और रिलेशनशिप को लेकर सलाह के कोर्स शुरू करे ताकि शिक्षित-प्रशिक्षित लोग समाज के आम लोगों को हासिल हो सकें। आज भारत में मनोवैज्ञानिक चिकित्सा बड़ी महंगी पड़ती है, और परामर्शदाता भी पौन घंटे की एक मुलाकात के कई हजार रूपए लेते हैं। अगर देश में हर बरस कई हजार परामर्शदाता पढ़-लिखकर, प्रशिक्षण पाकर निकलने लगेंगे, तो ही गरीबों को मानसिक मदद मिल सकेगी। हमारा यह भी मानना है कि जिस तरह स्कूली शिक्षकों में कुछ लोगों को योग शिक्षा सिखाई जाती है, उसी तरह शिक्षक-शिक्षिकाओं का रूझान देखकर उन्हें मानसिक परामर्श के पाठ्यक्रम करने के लिए बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वे कम से कम अपने स्कूल, या अपने शहर-कस्बे के बच्चों की मदद कर सकें। आज भारत में मानसिक स्वास्थ्य बहुत बुरी तरह उपेक्षित विषय है, और यही वजह है कि देश में आत्मघाती, या हत्यारी हिंसा इतनी बुरी तरह बढ़ी हुई है, और बढ़ती चल रही है। मानसिक स्वास्थ्य ठीक न रहने से हत्या या बलात्कार से परे भी परिवार के भीतर माहौल बड़ा खराब रहता है, और समाज की उत्पादकता, और सामूहिक मानसिक सेहत का बड़ा नुकसान होता है। कुल मिलाकर जिम्मेदारी की गेंद सरकारों के पाले में है कि वे हर विश्वविद्यालय में मानसिक परामर्श के पाठ्यक्रम शुरू करवाए, और शिक्षकों जैसे अपने बड़े अमले के लिए इस पढ़ाई को करने के लिए कुछ प्रोत्साहन योजना भी लागू करे।

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