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केन्द्र सरकार ने जीएसटी के कई स्लैब घटाकर अब कुल दो स्लैब रखे हैं जिनमें 99 फीसदी सेवा और सामान आ जाएंगे। बहुत थोड़े से गिने-चुने दारू-तम्बाकू किस्म के सामानों के लिए बहुत अधिक जीएसटी वाला एक स्लैब पहले भी था, और अभी भी रखा गया है। लेकिन जिंदगी की तकरीबन तमाम चीजें अब 5 फीसदी, और 18 फीसदी जीएसटी के दायरों में आ जाएंगी। सरकार का दावा है कि पहले जो दूसरी स्लैब चली आ रही हैं, उन्हें इन दो स्लैब में मिला दिया गया है, और हर सामान या सेवा पर टैक्स पहले के मुकाबले कम होगा, या उतना ही बना रहेगा। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि लोग त्यौहारों के इस मौसम में खर्च का अपना जो बजट रखते हैं, उसमें तो कोई कटौती करेंगे नहीं, और जो कुछ भी बचत होगी, उससे अतिरिक्त खरीददारी ही होगी, और बाजार में उतना ही पैसा आएगा। कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि इससे बाजार में अधिक रकम आएगी, और अर्थव्यवस्था का चक्का घूमेगा।
जीएसटी जब से लागू हुआ था तब से उसकी विसंगतियों ने लोगों को बड़ा परेशान किया था, लेकिन अब जब सारे कारोबारियों ने जीएसटी हिसाब-किताब का सिस्टम बना लिया है, तब स्लैब घटाकर कुल दो स्लैब कर देना उनके काम को आसान ही करेगा। ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार को बीते बरसों में जीएसटी से उम्मीद से भी अधिक, छप्पर फाडक़र जितनी कमाई हुई है, उसके चलते उसने अब कुछ रियायतें देने की सोची है। इसके पीछे बिहार, और बंगाल के चुनावों को प्रभावित करने की नीयत भी हो सकती है, अमरीकी टैरिफ की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो बोझ पड़ रहा है, उससे लोगों को उबारने के लिए भी जीएसटी रियायत दी गई है, ऐसा भी कुछ लोगों का मानना है। तीसरी बात यह कि सरकार की जिन-जिन बातों को लेकर आलोचना हो रही थी, उस तरफ से जनता का ध्यान हटाने के लिए भी ऐसा किया गया हो सकता है। जो भी वजह हो, यह तो सरकार के हाथ में ही रहता है कि वह कब कौन से फैसले लेकर जनता के बीच चल रही कोई सुगबुगाहट या नाराजगी दूर करने की कोशिश करे।
हम बहुत सी छोटी-छोटी चीजों पर घटे हुए जीएसटी की अधिक चर्चा करना नहीं चाहते क्योंकि वह तो खबरों में आ चुकी बात है, लेकिन जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा इन दोनों पर अब तक लग रहे 18 फीसदी जीएसटी को खत्म कर देना एक बड़ी बात है, जिससे बीमा प्रीमियम घट जाएगा, और लोग अपनी जिंदगी का, और इलाज के लिए बीमा करवाने की तरफ बढ़ेंगे। आज देश की आधी आबादी के पास भी जीवन और इलाज बीमा नहीं है। दूसरी तरफ बड़ी कारों, बहुत बड़े इंजन की मोटरसाइकिलों, और तम्बाकू पान-मसाला, कोल्डड्रिंक, इन सबको 40 फीसदी जीएसटी में रखा गया है, जो कि अच्छी बात है। इससे किसी उच्च-मध्यवर्गीय तबके का भी कोई लेना-देना अनिवार्य रूप से नहीं है, बाकी अपने नशे और शौक के लिए तो गरीब भी अगर तम्बाकू-गुटखा खाए, तो वह कैंसर के सरकारी इलाज का टैक्स भी देते चले। बुरी लत, और महंगे शौक के कुछ सीमित सामानों पर लगा यह टैक्स जायज ही दिखता है। 2017-18 के जीएसटी संग्रह से 2024-25 का जीएसटी संग्रह दोगुना से अधिक बढ़ गया है।
आम जनता को किसी समझदारी की बात सिखाना तालाब तक घोड़े को ले जाकर पानी पिलाने के मुकाबले अधिक मुश्किल काम है। इसलिए हमारे यह कहने का कोई खास मतलब रहेगा नहीं कि जिन लोगों ने अपना बीमा नहीं कराया है, वे जीएसटी से होने वाली बचत से अपनी जिंदगी और अपनी सेहत का बीमा करवा लें। मौत और बीमारी पहले से चिट्ठी लिखकर नहीं आते, और देश की शायद तीन चौथाई से अधिक आबादी इस खर्च के लिए तैयार नहीं रहती है। परिवार के किसी कमाऊ सदस्य की मौत के लिए तो शायद 90 फीसदी आबादी तैयार न हो। ऐसे में बीमा टैक्सफ्री कर दिया गया है, तो लोगों को जीएसटी की बचत का उसमें पूंजीनिवेश करना चाहिए। हम यह बात इसलिए भी सुझा रहे हैं कि हेल्थ बीमा करने वाली कंपनियों के लिए भारत में एक रेगुलेटरी एजेंसी बनाई गई है, लेकिन उसकी सारी कोशिशों के बावजूद आज भी देश में अधिक उम्र तक पहुंच गए लोगों के लिए नया बीमा पाना असंभव सा है। इसलिए सबके भले के लिए यह है कि कम या अधिक, अपनी जरूरत और क्षमता के मुताबिक इलाज-बीमा हर किसी को उम्र रहते, और बीमारियों से घेरने के पहले करवा लेना चाहिए, ताकि जिंदगी का आखिरी हिस्सा अभाव और तनाव में न गुजरे।
जीएसटी का यह फेरबदल 22 सितंबर से लागू होने जा रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों को बाजार और कारखानों पर यह नजर भी रखनी चाहिए कि वहां से सामान घटे हुए जीएसटी के साथ निकलें, और सही रेट पर ही उन्हें बेचा जाए। भारत का आम तजुर्बा यह है कि टैक्स घट जाता है, लेकिन ग्राहक तक नहीं पहुंचता। और जब बढ़ता है, तो अपने असली बोझ के मुकाबले अधिक बोझ के साथ ग्राहक तक पहुंच जाता है। यहां पर सरकार के संबंधित विभागों को यह देखना होगा कि फेरबदल का यह दौर ग्राहकों के लिए नुकसान का न हो जाए। यही दौर त्यौहारों के वक्त बाजार की खरीददारी का भी रहेगा। इतना जरूर है कि दीवाली के वक्त लोगों को टैक्स से कुछ राहत मिलेगी। साथ ही सरकार को यह भी देखना चाहिए कि इतनी निगरानी के बाद भी जीएसटी चोरी साथ-साथ चलती ही रहती है। जीएसटी चोरों से सिर्फ सरकार को नुकसान नहीं होता, बाजार में उन्हीं के सरीखा कारोबार करने वाले दूसरे लोगों को भी इससे नुकसान होता है जो कि जीएसटी भरकर काम करते हैं। मोदी सरकार की जीएसटी योजना आलोचना का दौर झेल चुकी है। उसके बाद के बरसों में धीरे-धीरे यह व्यवस्थित भी होती गई, और सरकारों की कमाई भी अंधाधुंध बढ़ी। अब इसके सरलीकरण के साथ यह लोगों के लिए बोझ कुछ कम कर रही है, और कारोबारियों को ग्राहकों तक यह फायदा जाने देना चाहिए।