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बड़े जरूरी छोटे बांध उपेक्षित
सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में लूती बांध के टूटने से मलबा और पानी 4-5 किलोमीटर तक बह गया। सात लोग बह गए, जिनमें से 4 के शव मिले हैं। अब तक जिस तरह से बात हो रही है, वह इसे भारी बारिश के कारण हुई दुर्घटना के रूप में पेश किया जा रहा है। चूंकि बांध बने 4 दशक हो चुके थे, इसलिए लोग मानकर चल रहे हैं कि यह प्राकृतिक आपदा ही है लेकिन ऐसा नहीं है। छत्तीसगढ़ में तांदुला, मुर्रम सिल्ली, खुडिय़ा, खूंटाघाट जैसे बांध ब्रिटिश काल से पहले के बने हैं। हसदेव बांगो, गंगरेल, दुधावा बांध आजादी के बाद बने। ऐसे करीब 12 बांध है, जिनका कैचमेंट एरिया और क्षमता बहुत अधिक है और लाखों हेक्टेयर में सिंचाई होती है। सिंचाई के अलावा पेयजल और बिजली उत्पादन में भी इनका योगदान है। छत्तीसगढ़ में मध्यम क्षमता वाले करीब 34 बांध भी हैं। पर लूती जैसे बांधों की संख्या सैकड़ों में है। लूती 400 एकड़ में ही सिंचाई के काम आता था। यह आसपास के दर्जनों गावों में भू जल स्तर को भी अच्छा बनाए रखता था। अब बांध के टूट जाने से तत्काल प्रभाव तो कई परिवारों को उजडऩे के रूप में देखा जा रहा है पर भविष्य में किसानों की खेती पर तथा पेयजल तथा निस्तारी पर संकट देखने को मिलेगा। सिंचाई विभाग के अफसरों का कहना है कि बड़े और मध्यम आकार के बांधों के रखरखाव ध्यान दिया जाता है। बारिश शुरू होने से पहले और बारिश के दौरान और उसके बाद भी। मगर छोटे बांधों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इन सैकड़ों बांधों में कौन-कौन अपनी उम्र पूरी कर चुके, किन्हें रखरखाव और मरम्मत की जरूरत है, इसकी ओर विभाग का ध्यान नहीं है। बलरामपुर के मामले में पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का बयान आया है। उन्होंने कहा कि लूती बांध से दो तीन सालों से रिसाव हो रहा था। अधिकारियों को इसकी जानकारी थी। समय रहते मरम्मत हो जाती तो यह हादसा नहीं होता। शायद लूती की घटना के बाद सरकार और जल संसाधन विभाग प्रदेश के छोटे बांधों की सुरक्षा और उनकी उपयोगिता पर अधिक ध्यान दें, जो छोटी-छोटी इकाइयों में राज्य की खेती, पेयजल और निस्तार में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
रिश्वत में फंसे संत-महात्मा!!
निजी मेडिकल कॉलेज मान्यता घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। सीबीआई ने रायपुर के विशेष कोर्ट में प्रस्तुत चार्जशीट में कई खुलासे किए हैं। चार्जशीट में मेडिकल कॉलेज संचालक, और मान्यता के निरीक्षण दलों के सदस्यों को मैनेज करने रिश्वत देने के सुबूत भी हैं। यही नहीं, वॉट्सएप चैट भी पेश किए गए हैं।
सीबीआई ने निजी मेडिकल कॉलेजों के संचालकों, निरीक्षण दलों के सदस्यों और बिचौलियों के फोनकॉल्स इंटरसेप्ट किए हैं। इसमें मान्यता को लेकर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। चार्जशीट के मुताबिक रायपुर के रावतपुरा सरकार निजी मेडिकल कॉलेज के प्रमुख रविशंकर महाराज को रिश्वत देकर मान्यता हासिल करने का सुझाव एक अन्य आध्यात्मिक गुरु स्वामी भक्तवत्सलदास ने दिया था।
दरअसल, रावतपुरा संस्थान के डायरेक्टर अतुल तिवारी ने स्वामी भक्तवत्सलदास से संपर्क किया, और स्वामीजी ने उन्हें गुजरात के मयूर रावल का नंबर दिया, जो कि मान्यता दल के सदस्यों से परिचित था।
स्वामी भक्तवत्सलदास खुद अपने संस्थान की सीट बढ़ाने के लिए 50 किलो यानी 50 लाख घूस दिए थे। घूस की रकम के लिए 'किलो’ कोडवर्ड था। एक किलो का आशय एक लाख था।
सीबीआई ने रविशंकर महाराज और अतुल तिवारी के फोनकॉल इंटरसेप्ट किए हैं। यह बताया गया कि बिचौलिया ने प्रति सीट 2 लाख रुपए मान्यता के लिए डिमांड की गई है। यानी सौ सीट के 2 करोड़ रुपए की डिमांड की गई है। बाद में 55 लाख रुपए में सौदा तय हुआ, और हवाला के जरिए रकम पहुंची। इंटरसेप्ट फोनकॉल्स में कई जगह रेरा चेयरमैन संजय शुक्ला, और रायपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएशन प्रोफेसर डॉ अतिन कुंडू का भी जिक्र है। यह कहा गया कि दोनों की जानकारी में सब कुछ हो रहा था। चार्जशीट पेश बाद रावतपुरा महाराज और संजय शुक्ला व डॉ. अतिन कुंडू की मुश्किलें बढ़ गई है। चर्चा है कि ये सभी अग्रिम जमानत के अदालत की रूख कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
डिप्टी कलेक्टरों से तौबा
मंत्रियों के निजी स्थापना में पदस्थ निज सचिव, निज सहायक और अन्य बंगला आफिस स्टॉफ को हटाने का सिलसिला जारी है। वैसे इसकी शुरुआत सरकार बनने की पहली छमाही से ही मंत्रियों ने कर दी थी। एक डिप्टी सीएम ने दो निज सचिव बदले, तो दो वरिष्ठ मंत्रियों ने भी निज सहायक बदले हैं। एक मंत्री ने तो राप्रसे के अफसर को ही बंगले से बाहर फील्ड का रास्ता दिखा दिया था। एक मंत्री ने अपने ओएसडी, विशेष सहायक को रवाना किया। एक मंत्री ने ऐसे निज सहायक को बदला जो जेल में बंद पूर्व मंत्री के पास काम कर चुके थे। मंत्री ऐसे ही किसी को नहीं हटाते, किसी खास और गंभीर शिकायत पर पूरी जांच के बाद करते हैं। हाल में बिलासपुर संभाग के एक मंत्री ने दो दिन पहले ही अपने आफिस स्टाफ के डाटा एंट्री आपरेटर को वापस जिला कार्यालय भेज दिया। इसकी रवानगी के लिए मंत्री ने सचिव को साफ लिखा कि इसकी आवश्यकता ही नहीं है आफिस में। राजनांदगांव जिला कार्यालय का यह कर्मी एक वर्ष से पदस्थ था। ऐसी खबरों और हरकतों के प्रकाश में तीनों नए मंत्रियों ने राप्रसे के अफसरों को पर्सनल स्टाफ में न लेने का फैसला किया है। इनका कहना है कि डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टरों से खौफ खाते हैं इसलिए मानिटरिंग सही नहीं कर पाते। इनकी जगह मंत्री स्वयं, निज सहायक मात्र से काम करने तैयार हैं। संगठन ने भी इससे सहमति जताई है।
जब पीडि़त ही अपराधी लगने लगे
तुम एक धर्म से दूसरे धर्म में जा रही हो, इस पर पुलिस की कार्रवाई सही है। यह कहना है महिला आयोग की एक सदस्य का, जिन्होंने नारायणपुर की उन आदिवासी लड़कियों की शिकायत पर कल सुनवाई की। एक सदस्य ने पूछा- नारायणपुर में भी तो नौकरी मिल सकती थी, तुम्हें बाहर जाने की क्या जरूरत थी? एक और सवाल था कि क्या तुमने पुलिस को लिखित में सूचित किया था कि एक शहर से तुम दूसरे शहर जा रही हो?
आयोग में नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों- कमलेश्वरी प्रधान, ललिता उसेंडी, और सुमति मंडावी की शिकायत पर सुनवाई हुई। इन युवतियों ने केरल की दो ननों के साथ आगरा जाना तय किया था। भिलाई स्टेशन पर उन्हें रोक लिया गया था। बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा और उनके कुछ साथियों पर शारीरिक और मानसिक उत्पीडऩ के गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन सुनवाई के दौरान आयोग के कुछ सदस्यों ने ऐसी टिप्पणियां और सवाल किए, जो पीडि़तों के लिए अपमानजनक थे। इस मामले ने महिला आयोग की कार्यप्रणाली और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन युवतियों ने सबसे पहले दुर्ग के पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज करने की कोशिश की, लेकिन उनकी एफआईआर दर्ज नहीं हुई। निराश होकर उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया, इस उम्मीद से कि उन्हें न्याय मिलेगा। आयोग ने दो बार उन लोगों को बुलाया, जिन पर उत्पीडऩ का आरोप है, पर दोनों बार वे नहीं पहुंचे। न ही रेलवे ने भिलाई स्टेशन पर हुई घटना के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराए। पीडि़त युवतियों से ही बयान लिया गया, लेकिन सदस्यों ने उत्पीडऩ के बारे में जानकारी लेने के बजाय उनसे धर्मांतरण और बाहर जाने को लेकर सवाल किए। एक अन्य सदस्य ने तो आवेदन देखकर कहा कि लगता है कि किसी और से लिखवाया है, तुमने इसे खुद नहीं लिखा। एक और सदस्य ने सलाह दी कि यदि तुम मंदिर और चर्च जाती हो तो मस्जिद भी जाओ।
जब बड़ी-बड़ी अदालतों में सुनवाई के दौरान और फैसलों में भी अजीबोगरीब टिप्पणियां सुनने को मिलती रहती हों, तब आयोग की सदस्यों से बहुत अच्छे बर्ताव की उम्मीद करना ठीक नहीं है। बात इतनी जरूर है कि यह आयोग महिलाओं के उत्पीडऩ को रोकने का काम करती है लेकिन वहां जो सुनवाई में हुआ, वह तो इसके बिल्कुल विपरीत था। आयोग के पास व्यापक न्यायिक शक्तियां नहीं है। इसीलिये जिन पर आरोप हैं वे आयोग की नोटिस की परवाह नहीं कर रहे हैं। मगर, आयोग पीडि़त युवतियों की बात सहानुभूति तो प्रदर्शित कर रही सकता था। सुनवाई के बाद बाहर निकले एक परिजन ने कहा- हमारी बेटियों को ज्योति शर्मा और उनके साथियों ने पीटा, गैंगरेप की धमकी दी। हमने इसके खिलाफ शिकायत दी, लेकिन आयोग इसे धर्मांतरण के मुद्दे की ओर मोड़ रहा है। हमें नहीं लगता कि हमें यहां से न्याय मिलेगा।