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ढेबर के इलाज मामले में सर्जन के खिलाफ एफआईआर रद्द की हाईकोर्ट ने, बर्खास्तगी पहले ही हो चुकी खारिज
03-Sep-2025 7:56 PM
ढेबर के इलाज मामले में सर्जन के खिलाफ एफआईआर रद्द की हाईकोर्ट ने, बर्खास्तगी पहले ही हो चुकी खारिज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बिलासपुर, 3 सितंबर। छत्तीसगढ़ के चर्चित रायपुर शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर के इलाज से संबंधित मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन डॉ. प्रवेश शुक्ला के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने डॉ. शुक्ला के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से अभियोजन चलाया।  

डॉ. प्रवेश शुक्ला डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में संविदा पर सर्जन के रूप में 11 जुलाई 2023 को नियुक्त हुए थे। उन्होंने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि 8 जून 2024 को अनवर ढेबर को इलाज के लिए जेल से अस्पताल लाया गया था। डॉ. शुक्ला ने उन्हें कोलोनोस्कोपी के लिए एम्स, रायपुर या अन्य सरकारी अस्पताल में रेफर किया, क्योंकि डीकेएस अस्पताल में वयस्क कोलोनोस्कोपी उपकरण उपलब्ध नहीं था।

एक जुलाई 2024 को डॉ. शुक्ला को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने अनवर ढेबर को गलत तरीके से अन्य अस्पताल में रेफर किया, जबकि अस्पताल में कोलोनोस्कोपी की सुविधा उपलब्ध थी। डॉ. शुक्ला ने जवाब में स्पष्ट किया कि वयस्क कोलोनोस्कोपी अन्य एंडोस्कोपी से अलग है और अस्पताल में यह सुविधा उस दिन नहीं थी। इसके बावजूद, 8 अगस्त 2024 को उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं।

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी में पता चला कि डीकेएस अस्पताल में 2022 से कोलोनोस्कोपी उपकरण काम नहीं कर रहा है। एक जनवरी 2024 से 31 अगस्त 2024 तक अस्पताल में एक भी वयस्क कोलोनोस्कोपी टेस्ट नहीं हुआ। यह जानकारी याचिकाकर्ता के दावे को पुष्ट करती है कि उन्होंने सही प्रक्रिया का पालन किया था।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि डॉ. शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत 26 मार्च 2025 को दर्ज एफआईआर में लगाए गए आरोप बेतुके हैं और कोई अपराध सिद्ध नहीं करते। कोर्ट ने कहा कि यह मामला दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का उदाहरण है। इसके आधार पर, एसीबी, ईओडब्ल्यू और पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया।

डॉ. शुक्ला के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं, जिनके पास एमबीबीएस, एमएस (सर्जरी), और डॉ. एनबी (सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) की डिग्री है। डॉ. शुक्ला को प्रताड़ित किया गया और उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए।

इससे पहले, 3 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट के एकल पीठ ने डॉ. शुक्ला की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें ड्यूटी जॉइन करने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद, दोबारा याचिका दायर की गई, जिसके परिणामस्वरूप डिवीजन बेंच ने एफआईआर रद्द करने का फैसला सुनाया है।


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