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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऐसा तानाशाह चुना था, अब अमरीका भुगते...
सुनील कुमार ने लिखा है
03-Sep-2025 5:49 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ऐसा तानाशाह चुना था, अब अमरीका भुगते...

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अमरीका में ट्रम्प के कुछ बड़े करीबी रहे सहयोगी उन पर यह आरोप लगा रहे हैं कि अपने पारिवारिक कारोबार को बढ़ाने के लिए वे पाकिस्तान के साथ हमबिस्तर हो रहे हैं, और भारत से दूरियां खड़ी की हैं। इनमें ट्रम्प के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे हुए दो लोग हैं, और एक वरिष्ठ सांसद ने भी ऐसी ही बात कही है। अमरीकी शासन व्यवस्था बड़ी अजीब है, वहां राष्ट्रपति को संविधान में ही तानाशाह सरीखे हक दे दिए गए हैं, उसे संसद में जाना नहीं पड़ता, वहां जवाबदेही नहीं रहती, और संसद राष्ट्रपति का कुछ बिगाड़ भी नहीं सकती। जब तक बजट या संविधान संशोधन जैसे कुछ मामले न हो, राष्ट्रपति को संसद की जरूरत भी नहीं रहती। ट्रम्प ने यह भी साबित कर दिया है कि बड़ी लोकतांत्रिक समझी जाने वाली अमरीकी शासन प्रणाली में किस तरह राष्ट्रपति अदालतों के भी पर कतर सकता है, और अदालत से मुजरिम से मुजरिम साबित होने के बाद भी राष्ट्रपति बन सकता है। अमरीकी लोकतंत्र के विरोधाभास, उसकी विसंगतियां, और उसमें तानाशाही की संभावनाएं अमरीकी इतिहास में पहली बार इस बुरी तरह सामने आ रही हैं। आज की ही खबरें बताती हैं कि अमरीकी कारोबार के कुछ बहुत बड़े लोग ट्रम्प के सख्त खिलाफ हो गए हैं, और उन्होंने अमरीका को तानाशाही की तरफ बढऩे का खतरा याद दिलाया है। ऐसा लगता है कि अभी भारत के साथ व्यापार शर्तों में मनमानी करके ट्रम्प ने भारत को जिस तरह चीन और रूस के खेमे में धकेल दिया है, उससे भी अमरीकी लोग परेशान हैं, कि यह दुनिया में अमरीका के खिलाफ जाता हुआ एक शक्ति संतुलन है।

हमारे पाठकों को याद होगा कि कुछ अरसा पहले हमने लिखा था कि रूस, भारत, चीन, और ब्राजील को मिलकर एक साथ आना चाहिए, और उससे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की मनमानी पर लगाम लग सकेगी। पिछले चार-छह दिनों में चीन में ठीक यही नजारा देखने मिला है। आज अमरीकी राष्ट्रपति का एक सलाहकार भारत को याद दिला रहा है कि वह लोकतांत्रिक देश है, और वह चीन और रूस सरीखे तानाशाही वाले देशों के साथ जा रहा है, जबकि उसे अमरीका के साथ रहना चाहिए था। इस सलाहकार को पहली सलाह तो खुद अमरीकी राष्ट्रपति को देनी थी कि वह एक लोकतांत्रिक नेता और देश की तरह बर्ताव करे, दुनिया के सबसे बड़े मवाली की तरह नहीं जो कि अलग-अलग शहरों में नशे के धंधे, चकलाघर, जुआघर, और सट्टे के कारोबार का एकाधिकार बांटने के लिए अपने मर्जी से सबसे कम या अधिक महीना बांधता है। ट्रम्प न सिर्फ एक फौजी तानाशाह की तरह काम कर रहा है, बल्कि वह एक माफिया सरगना की तरह भी काम कर रहा है। इसलिए उसके किसी सलाहकार का दुनिया को लोकतांत्रिक-नैतिकता सिखाने का कोई हक नहीं बनता। चीन में अभी हुए शंघाई सहयोग संगठन के कार्यक्रम में ईरान नहीं था, लेकिन अमरीका के खिलाफ दुनिया में जब भी कोई गठबंधन बनेगा, ईरान उसमें शामिल होना चाहेगा। इसी तरह उत्तर कोरिया बाकी दुनिया के लिए अछूत बना हुआ है, वह अमरीकी आर्थिक प्रतिबंधों का शिकार है, लेकिन वह रूस का फौजी साथी है, और यूक्रेन के मोर्चे पर रूस की फौज में हजारों उत्तर कोरियाई सैनिक भी शामिल थे। अभी भी चीन और रूस के साथ उत्तर कोरिया के तानाशाह की तस्वीरें दुनिया में एक बदले हुए माहौल को दिखा रही हैं।

अमरीकी लोकतंत्र जिस तरह के पूंजीवाद पर खड़ा है, उसके नुकसान उसे अभी देखने मिल रहे हैं। किसी राष्ट्रपति का पूरा परिवार कारोबार में लगा हुआ है, और देश की विदेश नीति, अलग-अलग देशों के साथ उसके सौदे और उसकी शर्तें, इन सबमें राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के परिवार के हितों का ध्यान रखा जा रहा है। यह बात ट्रम्प के आलोचक नहीं, बल्कि ट्रम्प के सबसे करीबी सहयोगी रहे लोग बोल रहे हैं। फिर अभी कुछ महीने पहले तक जो ट्रम्प की नाक के बाल थे, टेस्ला और एक्स के मालिक एलन मस्क अपने कारोबार की मनमानी दुनिया की सरकारों पर थोप रहे थे, और बिना किसी सरकारी जिम्मेदारी के वे अमरीका पहुंचे हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपने पूरे परिवार सहित मिले थे। जाहिर है कि यह मुलाकात पहले से तय थी क्योंकि मोदी मस्क के बच्चों के लिए तोहफे लेकर गए थे। ट्रम्प का बेटा, ट्रम्प का दामाद, ये सब दुनिया भर के देशों में, वहां की सरकार, और वहां के कारोबार के साथ तरह-तरह के सौदों में लगे हुए हैं। हितों का ऐसा खुला टकराव भारत जैसे देश में सोचा भी नहीं जा सकता, लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था के चलते अमरीका में यह धड़ल्ले से चल रहा है। दुनिया के कुछ और लोकतंत्र में दबे-छुबे, पर्दे के पीछे कारोबार के साथ सरकार की हमबिस्तरी चलती है, लेकिन अमरीका में ट्रम्प ने मानो न्यूयॉर्क के टाईम स्क्वायर पर सरकार और कारोबार के लिए एक पलंग लगवा दिया था।

 

हो सकता है कि आने वाले कुछ बरस भारत को कई किस्म का लंबा-चौड़ा घाटा झेलना पड़े, लेकिन ट्रम्प नाम के बददिमाग तानाशाह के लिए भारत जैसा देश और तो कुछ कर भी नहीं सकता था। इस देश ने हवन किए, ट्रम्प का चुनाव प्रचार किया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार ट्रम्प सरकार जैसा हैरान करने वाला नारा लगाया, इसके बाद भी ट्रम्प ने हिन्दुस्तान को दर्जनों बार बेइज्जत किया। उसका हाल कुछ दशक पहले मुम्बई पर राज करने वाले दाऊद इब्राहिम सरीखा है कि वह आज कुछ भी कर सकता है। लेकिन यह वक्त भारत के लिए अपने आत्मसम्मान को बचाने, और रूस सरीखे अपने पुराने देखे, परखे, और खरे दोस्त के साथ जाने का है। वामपंथियों को गाली देते हुए जिन लोगों का गला दिन में तीन-चार बार सूख जाता है, उन्हें पुतिन और शी के साथ मोदी की घरोबे की तस्वीरें अच्छी तो नहीं लगेंगी, लेकिन ऐसा लगता है कि ट्रम्प के रहते भारत के लिए यही तस्वीर बेहतर है। फिलहाल इस तस्वीर से भारत के छोटे-छोटे दुकानदारों को राहत है कि इस दीवाली उनकी दुकानों से चीनी झालरों को निकालकर तोडफ़ोड़ नहीं होगी, और भारत में चलने वाले चीनी रेस्त्रां भी तोडफ़ोड़ से बचेंगे, और मुम्बई के मिडलैंड चाईना जैसे बड़े रेस्त्रां के कर्मचारियों को भी कुछ बरस पिटाई से आजादी रहेगी, ऐसा लगता है। एक बददिमाग तानाशाह ने चौथाई सदी में मेहनत से सुधरे हुए भारत-अमरीकी रिश्तों को किस रफ्तार से तबाह किया है, यह देखने लायक है, लेकिन यह दुनिया के बाकी देशों के मुखिया लोगों के लिए एक बड़ा सबक भी है, दूसरे देशों के साथ रिश्तों के मामले में भी, और अपने ही देश के भीतर राज-काज के लिए भी।

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