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नई दिल्ली, 28 जुलाई। भारत में बुज़ुर्ग आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। अनुमान है कि 2011 में 10.4 करोड़ से बढ़कर 2050 तक यह तादाद 34.7 करोड़ तक पहुँच जाएगी- यानी कुल आबादी का पाँचवाँ हिस्सा। सबसे ज़्यादा बुज़ुर्ग दक्षिण भारत के राज्यों में हैं: केरल में 12.6% और तमिलनाडु में 10.4%, जबकि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह अनुपात 7–8% के बीच है। दादरा–नगर हवेली में केवल 4% लोग ही 60 वर्ष से ऊपर हैं।
बुज़ुर्गों की बदलती स्थिति और ज़रूरतों को लेकर 1 अगस्त को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है - “भारत में वृद्धावस्था: उभरती वास्तविकताएं, विकसित होती प्रतिक्रियाएं”। इसका उद्देश्य है वृद्धावस्था को एक अवसर के रूप में देखना और देश-दुनिया की सफल नीतियों से सीख लेना। यह आयोजन संकला फाउंडेशन कर रहा है, जिसमें सरकार, निजी क्षेत्र, शिक्षाविद और सामाजिक संगठनों की भागीदारी होगी। इसी मौके पर एक रिपोर्ट भी जारी होगी: “भारत में वृद्धावस्था: चुनौतियाँ और अवसर”।
भारत में बुज़ुर्गों के लिए क़ानून, योजनाएँ और नीतियाँ मौजूद हैं - जैसे 1999 की राष्ट्रीय नीति, 2007 का माता-पिता कल्याण अधिनियम, और हाल में आयुष्मान भारत योजना में 70+ नागरिकों को शामिल किया गया है। फिर भी ज़मीनी हक़ीक़त चिंताजनक है : 70% बुज़ुर्ग आर्थिक रूप से परिवार या पेंशन पर निर्भर हैं; केवल 17–18% के पास स्वास्थ्य बीमा है। अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोग व्यापक हैं।
बुज़ुर्गों की सामाजिक भागीदारी, गरिमा और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए नई सोच और मज़बूत अमल की दरकार है।