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रायपुर, 15 जुलाई। दादाबाड़ी में आत्मोत्थान चातुर्मास 2025 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला के दौरान शनिवार को साध्वी हंसकीर्ति ने कहा कि कोई भी चीज — चाहे वह सांसारिक वस्तु हो, राजनीतिक पद हो या स्वयं मनुष्य जीवन — एक बार हाथ से निकल जाने के बाद दोबारा वैसी ही रूप में प्राप्त नहीं होती। दुनिया का सुख भी वैसा ही है जैसे किसी पराई वस्तु को कुछ समय के लिए धारण कर लेना — यह केवल क्षणिक खुशी देता है, स्थायी सुख नहीं। असली सुख तब मिलता है जब हम अपने पास उपलब्ध साधनों में ही संतोष करना सीख लेते हैं। संतोष ही वह कुंजी है, जो हमें भीतर से शांति और संतुलन प्रदान करती है।
हम अक्सर बाहर सुख की तलाश में भटकते हैं — कभी भौतिक वस्तुओं में, कभी रिश्तों में और कभी किसी ऊंचे पद या प्रतिष्ठा में। लेकिन सच्चाई यह है कि सुख बाहर नहीं, हमारे भीतर ही छिपा होता है। हमारे पास जो कुछ है, अगर हम उसी में संतुष्ट रहना सीख जाएं, तो वही साधन हमें गहराई से शांति का अनुभव करा सकते हैं। बाहर की कोई भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति हमें स्थायी रूप से सुखी नहीं कर सकती। असली सुख हमारे भीतर के भावों, विचारों और दृष्टिकोण से उत्पन्न होता है।
संसार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम दूसरों में दोष देखना आसान समझते हैं, लेकिन स्वयं में कमियाँ स्वीकार करना कठिन लगता है। हम बार-बार दूसरों की गलतियों को गिनते हैं, लेकिन अपनी त्रुटियों की ओर ध्यान नहीं देते। हम यह देखने में व्यस्त रहते हैं कि कौन कितना गहरे पानी में है, पर कभी यह विचार नहीं करते कि हम स्वयं कहां खड़े हैं। जबकि सही दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि हम पहले अपने दोषों को समझें और स्वीकार करें, फिर दूसरों के गुणों को पहचानें और सराहें।
यदि हम यह अभ्यास कर लें कि खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान दें और दूसरों में अच्छाइयां देखें, तो जीवन न सिर्फ शांतिपूर्ण बनेगा, बल्कि भीतर से भी समृद्ध अनुभव होगा। यही आत्मिक विकास का मार्ग है।
श्री ऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय कुमार भंसाली, आत्मोत्थान चातुर्मास समिति 2025 के अध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि दादाबाड़ी में सुबह 8.45 से 9.45 बजे साध्वीजी का प्रवचन होगा। आप सभी से निवेदन है कि जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।