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पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने धार्मिक ग्रंथों के अनादर को एक गंभीर जुर्म मानते हुए कड़ी सजा देने का एक विधेयक विधानसभा में पेश किया है, और यहां से अगर यह पारित होता है, तो राजभवन या राष्ट्रपति भवन से होते हुए यह कानून बन सकता है। इसके बाद किसी पवित्र समझे जाने वाले धर्म ग्रंथ का अपमान करने पर दस बरस की कैद से लेकर उम्रकैद तक का कानून बन जाएगा। सरकार की तरफ से मंत्रिमंडल में इस विधेयक के मसौदे को मंजूरी मिलने के बाद यह बताया गया कि श्री गुरूग्रंथ साहिब, भगवत गीता, बाइबिल, और कुरान सहित पवित्र ग्रंथों के अपमान के लिए यह नई और अधिक कड़ी, अधिक लंबी सजा रखी गई है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि पहले इन धार्मिक ग्रंथों में से कुछ की बेअदबी की घटनाएं हुई हैं जिसमें जनभावनाओं को गहरी ठेस पहुंची, और समाज में अशांति हुई थी।
‘पंजाब पवित्र धर्मग्रंथों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम विधेयक 2025’ के प्रावधान शायद भारत के किसी भी दूसरे राज्य में नहीं है। इसके पहले से भारतीय कानून में, आईपीसी की धारा 295, और 295ए चली आ रही थीं, जो कि भारत में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के खिलाफ थीं। लेकिन पंजाब और हरियाणा दो ऐसे राज्य रहे जहां अलग से कानून भी प्रस्तावित किए गए, लेकिन करीब दस बरस बाद भी पंजाब विधानसभा द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति से मंजूरी नहीं पा सका क्योंकि वह देश के कानून, आईपीसी से टकराता था। 2016 में पहली बार पंजाब की अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने उम्रकैद की सजा का कानून प्रस्तावित किया था, लेकिन इसी गठबंधन की सरकार केन्द्र में होने पर भी यह राज्यपाल और राष्ट्रपति से मंजूर नहीं हुआ। 2021 में कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर कड़े कानून की कोशिश की, लेकिन उसका विधेयक भी राष्ट्रपति की मंजूरी के इंतजार में हैं। पंजाब से लगे हुए हरियाणा में 2023 में सरकार ने एक विधेयक पास करवाया जिसमें गुरूग्रंथ साहिब, रामायण, गीता, कुरान, बाइबिल जैसे ग्रंथों की सूची थी, और दस साल तक की कैद सुझाई गई थी, लेकिन यह भी केन्द्र के कानून से ऊपर प्रस्तावित होने की वजह से अभी तक संवैधानिक अनुमति नहीं पा सका है। कुल मिलाकर देखें तो ये दोनों ही प्रदेश पंजाब में हुई कुछ घटनाओं को लेकर दबाव झेल रहे थे जिनमें गुरूग्रंथ साहब की बेअदबी के आरोप लगे थे।
यह याद रखने की बात है कि इसी पंजाब से लगा हुआ सरहद पार का पाकिस्तान बेअदबी कानून को बनाकर कई तरह के दबाव, तनाव, और खतरे झेल रहा है। कुरान के कुछ पन्ने कहीं मिल जाते हैं, किसी पर आरोप लगा दिया जाता है कि उसने पन्ने फाड़े, या जलाए, और इसके बाद भीड़ की किसी को घेरकर पीट-पीटकर मार डालती है। यहां तक हुआ है कि किसी गिरफ्तार को थाने पर हमला करके वहां से निकाल लिया गया, और सडक़ पर पीट-पीटकर मार डाला गया। कड़े कानून बनाना बड़ा आसान रहता है, लेकिन कड़े कानूनों को बेजा इस्तेमाल से रोक पाना उतना ही मुश्किल रहता है। एक बार जब धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी का कोई आरोप मुद्दा बन जाता है, तो उसके बाद उसे काबू कर पाना किसी के बस का नहीं रहता क्योंकि उसे जारी रखना एक धार्मिक समुदाय के तथाकथित स्वाभिमान से भी जुड़ जाता है, और धार्मिक कट्टरता लीडरशिप संभाल लेती है। यह भी हो सकता है कि लगे हुए पंजाब में बेअदबी को लेकर जितने बवाल चलते रहे हैं, समाज जितना धर्मान्ध रहा है, वह भी पंजाब-हरियाणा में पहले तो सरकार पर एक दबाव बना होगा, और उसके बाद एक के बाद एक, भाजपा-अकाली सरकार, कांग्रेस सरकार, और अब आम आदमी पार्टी की सरकार ने सजा कड़ी करने के कानून बनाने की कोशिश की है। ऐसी कोशिशों का यह दसवां बरस चल रहा है, सबको यह अच्छी तरह मालूम है कि यह देश के कानून को टक्कर देने वाला विधेयक है, लेकिन उसे बार-बार पेश करके ऐसा लगता है कि पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टियां जनता के बीच, खासकर बहुसंख्यक सिक्ख तबके के बीच एक शोहरत पाने के लिए भी ऐसी कोशिश करती हैं। देश का संविधान बनाने वालों ने बहुत सोच-समझकर धार्मिक भावनाओं के अपमान का कानून बनाया रहा होगा। लेकिन किसी धार्मिक समुदाय की तुष्टिकरण की राजनीतिक-सरकारी दीवानगी बढ़ती ही चलती है, हर सत्तारूढ़ पार्टी देश भर में हर प्रदेश में यह साबित करने की कोशिश करती है कि उसने किसी धर्म के सम्मान के लिए ऐसा कुछ किया है जो कि उसके पहले की किसी दूसरी पार्टी की सरकार ने नहीं किया था। कुछ अभूतपूर्व करने की यह मजबूरी राजनीतिक दल खुद होकर ओढ़ लेते हैं, और एक बार अगर ऐसा कानून बन जाएगा, तो फिर पांच-दस बरस बाद इस उम्रकैद को फांसी तक बढ़ाने की कोशिशें चालू हो जाएंगी। देश के कानून बिना उन पर ठीक-ठाक अमल हुए उस पेनिसिलिन की इंजेक्शन की तरह खारिज कर दिए जाते हैं जो कि दशकों तक करिश्मा दिखाने के बाद अब बेअसर हो चुका है, और अब एंटीबायोटिक की भी एक के बाद एक अगली जनरेशन इस्तेमाल होने लगी है। मौजूदा कानून पर ठीक से अमल न करना, जनता के बीच वाहवाही पाने के लिए उससे अधिक कड़ा कानून बनाने से घटिया और कोई बात नहीं होती। इससे ऐसा लगता है कि मौजूदा कानून बेअसर है, जबकि उस कानून पर अमल करने की नीयत कमजोर रहती है। ऐसा सिर्फ इसी धर्मग्रंथ-बेअदबी कानून के साथ नहीं है, हर कानून के साथ है। कई प्रदेश बलात्कार पर अतिरिक्त सजा, या मौत की सजा के कानून बना चुके हैं, जबकि उनके यहां मौजूदा कानून के तहत भी लोगों को सजा दिलवाने का अनुपात बड़ा ही कम रहते आया है।
धर्म हिन्दुस्तान में एक बहुत ही नाजुक मामला बन गया है, और पंजाब का यह मामला इसकी एक जलती-सुलगती मिसाल है क्योंकि वहां राज करने वाली तीन अलग-अलग पार्टियों या गठबंधनों ने एक सरीखी कोशिश की है। इसके बाद सडक़ों पर किसी धर्म के प्रतीक लेकर चल रहे लोगों को छू लेने पर किसी कार या मोटरसाइकिल को राजसात करने का कानून बनना बाकी रहेगा, और फिर हो सकता है कि उसे भी बेअदबी कानून में शामिल करके ऐसे ड्राइवरों को उम्रकैद देने की मांग भी होने लगे, और किसी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए यह जरूरी लगने लगे कि पिछली सरकारों से आगे बढक़र उसे सडक़ पर धार्मिक प्रतीक को छूने वाली गाडिय़ों के ड्राइवरों को उम्रकैद देने का कानून बनाना चाहिए। इस सिलसिले का कोई अंत नहीं है, और पंजाब की मिसाल बताती है कि राजनीतिक दलों में समझदारी की बात करने का कोई हौसला भी नहीं है। फिलहाल राहत की बात यही है कि राज्य में ऐसी लुभावनी हरकतें देश के कानून से ऐसे टकरा रही हैं कि उन्हें संवैधानिक मंजूरी नहीं मिल रही है।