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सभी बाल न्यायालयों को फैसले की कॉपी भेजने का निर्देश
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 8 जुलाई । चार साल से जेल में बंद एक युवक को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। 16 साल की उम्र में हत्या के केस में पकड़े गए इस नाबालिग को चिल्ड्रन कोर्ट ने वयस्क समझकर 10 साल की सजा दे दी थी। अब हाईकोर्ट ने इस फैसले को पूरी तरह गलत ठहराते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया है।
यह मामला कोरबा जिले के कटघोरा का है। साल 2020 में हुई हत्या के एक मामले में पुलिस ने एक 16 साल के किशोर को गिरफ्तार किया था। उसकी जन्म तारीख 15 जुलाई 2004 और घटना की तारीख 22 अगस्त 2020 थी। यानी वह पूरी तरह नाबालिग था। लेकिन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने जांच के बाद उसे सीधे चिल्ड्रन कोर्ट भेज दिया।
चिल्ड्रन कोर्ट ने 30 दिसंबर 2022 को फैसला सुनाते हुए उसे 10 साल की कैद और 500 रुपए जुर्माना देने की सजा दे दी। लेकिन जब ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो जस्टिस संजय के अग्रवाल की बेंच ने पाया कि पूरे केस में कई बड़ी खामियां थीं।
हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग होने के बावजूद न तो उसकी मानसिक हालत का मूल्यांकन कराया गया, न ही सामाजिक रिपोर्ट की कॉपी उसे या उसके वकील को दी गई। जो प्रक्रिया जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में तय है, उसका पालन ही नहीं हुआ।
हाईकोर्ट ने 'अजीत गुर्जर' और 'वरुण ठाकुर' केस का ज़िक्र करते हुए कहा कि अगर किसी नाबालिग पर वयस्क की तरह केस चलाना है, तो पहले उसकी सोच, समझ और हालात की गहराई से जांच ज़रूरी होती है। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
अब जब आरोपी की उम्र 21 साल हो गई है, तो उस वक्त की मानसिक स्थिति का दोबारा मूल्यांकन भी संभव नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट ने चिल्ड्रन कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले की कॉपी छत्तीसगढ़ के सभी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और चिल्ड्रन कोर्ट को भेजी जाए, ताकि आगे ऐसी गंभीर गलती दोबारा न हो।