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रकम मिलने से ही कोई घूस लेने का दोषी नहीं होता, मंडल संयोजक को बरी किया हाईकोर्ट ने
08-Jul-2025 1:01 PM
 रकम मिलने से ही कोई घूस लेने का दोषी नहीं होता, मंडल संयोजक को बरी किया हाईकोर्ट ने

'छत्तीसगढ़' संवाददाता 
बिलासपुर, 8 जुलाई।
 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में कहा है कि सिर्फ रिश्वत की रकम बरामद होने से कोई आरोपी दोषी नहीं माना जा सकता, जब तक ये साबित न हो जाए कि उसने पैसे अपनी मर्जी से रिश्वत के तौर पर लिए थे। इस आधार पर हाईकोर्ट ने रायपुर की भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट का फैसला पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया।

यह फैसला मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकल पीठ ने सुनाया।

मामला करीब 11 साल पुराना है। शिकायतकर्ता बैजनाथ नेताम उस समय एक सरकारी प्राथमिक स्कूल में शिक्षक और आदिवासी हॉस्टल के अधीक्षक थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेन्द्र ने जनवरी 2013 की छात्रवृत्ति स्वीकृति के लिए उनसे 10,000 रुपये की रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता ने पहले 2,000 रुपये दिए और बाकी रकम बाद में देने का वादा किया। इसके बाद एसीबी में शिकायत दर्ज कराई गई और ट्रैप कर आरोपी को पकड़ा गया।

हाईकोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता संदिग्ध थी। वह खुद सेवा से बर्खास्त हो चुका था और जिस छात्रवृत्ति को लेकर रिश्वत मांगे जाने का आरोप लगाया गया था, वह पहले ही मंजूर हो चुकी थी और राशि भी जारी हो चुकी थी। इतना ही नहीं, मंडल संयोजक खुद शिकायतकर्ता के खिलाफ 50,700 रुपये की छात्रवृत्ति गबन की जांच कर रहे थे और उसके खिलाफ वसूली के आदेश भी दिए जा चुके थे। इस कारण कोर्ट ने माना कि शिकायत शायद बदले की भावना से की गई हो।

 

 


 

कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रैप पार्टी में मौजूद गवाहों की गवाही एक-दूसरे से मेल नहीं खा रही थी। शिकायतकर्ता ने जो ऑडियो रिकॉर्डिंग सौंपी थी, उसकी न तो आवाज की पुष्टि कराई गई और न ही कोई फॉरेंसिक जांच कराई गई। ऐसे में रिकॉर्डिंग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो गए।

मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के 'बी. जयाराज बनाम आंध्रप्रदेश राज्य' और 'नीरज दत्ता बनाम दिल्ली सरकार' जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि जब तक रिश्वत की मांग और उसकी स्वेच्छा से स्वीकारोक्ति साबित न हो, तब तक केवल रकम मिलने से सजा नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने कहा कि आरोपी पहले से ही जमानत पर है, इसलिए उसकी जमानत छह महीने तक बनी रहेगी ताकि अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाना चाहे तो उसके पास वक्त हो।


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