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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 3 जुलाई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उरला क्षेत्र के ग्राम बाना में हुई एक महिला और उसके दो मासूम बच्चों की हत्या के मामले में आरोपी की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि घटना से पहले और बाद की परिस्थितियां, आरोपी की संदिग्ध गतिविधियां और सबूतों की बरामदगी यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि हत्या उसी ने की है।
मामला साल 2019 का है, जब दुलौरिन बाई, उनके बेटे सोनू निषाद और संजय निषाद की हत्या कर दी गई थी। 10 अक्टूबर 2019 को उरला पुलिस को चंद्रकांत निषाद ने सूचना दी थी कि गांव बाना में तीन लोगों की मौत आग में झुलसने से हो गई है। लेकिन जब पुलिस पहुंची और जांच की, तो साफ हुआ कि तीनों की हत्या किसी भारी चीज से सिर पर वार करके की गई थी, और फिर लाशों को जलाने की कोशिश की गई, ताकि मामला दुर्घटना लगे।
जांच में पता चला कि घटना की रात शिकायतकर्ता चंद्रकांत निषाद ही मृतकों के साथ था। उससे सख्ती से पूछताछ की गई, तो उसने कबूल किया कि जमीन और संपत्ति के झगड़े को लेकर पहले दुलौरिन बाई की हत्या की, फिर जब बच्चे जाग गए तो उन्हें भी मार डाला। उसने यह भी बताया कि हत्याओं में इस्तेमाल की गई लाठी और खून लगे कपड़े उसने खारून नदी किनारे फेंक दिए थे, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिए।
जांच के दौरान एक गवाह ने बताया कि आरोपी पुलिस विभाग में था और मृतका का दामाद भी था। वह अक्सर वर्दी में मृतका के घर आता था, कभी-कभी रात में भी वहीं रुकता था। यह जानकारी केस में अहम सबूत बनी।
इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को तीन हत्याओं के लिए उम्रकैद और सबूत मिटाने के लिए पांच साल की सजा सुनाई थी। आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद कहा कि मृतकों की हत्या साबित है। घटना से पहले और बाद में आरोपी की मौजूदगी पाई गई। घटना के तुरंत बाद आरोपी से खून से सनी टी-शर्ट और हत्या में इस्तेमाल की गई लकड़ी जब्त की गई। आरोपी ने यह नहीं बताया कि उसे यह सब जानकारी कैसे थी, और उसका जवाब झूठा निकला। ऐसे में निचली अदालत का फैसला सही है। मृतका दुलौरिन बाई को पति की मौत के बाद कुछ ही दिन पहले लोक निर्माण विभाग में अनुकंपा नियुक्ति मिली थी।