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नोडल एजेंसी घोषित करने का मामला
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 3 जुलाई। वन विभाग ने जनसंगठनों के विरोध के बाद उस आदेश को वापस ले लिया है जिसममें ग्राम सभाओं के सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों (CFRR) के क्रियान्वयन में वन विभाग को नोडल एजेंसी घोषित कर दिया था। जिसे व्यापक स्तर पर वन अधिकार कानून, 2006 का उल्लंघन माना गया।
वन विभाग के 15 मई को जारी इस आदेश पर जन संगठनों ने आपत्ति जताई थी, और साफ कर दिया था कि ग्रामसभाओं के अधिकारों से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
आज जारी एक नये पत्र में वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि 15 मई और 23 जून 2025 को जारी दोनों पत्रों को वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप के निर्देशानुसार द औपचारिक रूप से वापस लिया गया है। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि पूर्ववर्ती आदेश में "नोडल एजेंसी" शब्द एक टंकण त्रुटि थी, जिसे बाद में "समन्वयक" के रूप में संशोधित किया गया था।
हालांकि, विभाग यह भी दोहराता है कि CFRR योजनाओं का क्रियान्वयन राष्ट्रीय वर्किंग प्लान कोड, 2023 के अनुरूप किया जाना चाहिए, और इसी कारण फील्ड अधिकारियों को परामर्श जारी किया गया था।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला,और छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच के अनुभव शोरी ने वन मंत्री के हस्तक्षेप से आदेश की वापसी का स्वागत करते हुए इसे जन संगठनों और ग्रामसभाओं की एकता और प्रतिरोध की जीत बताया। नए आदेश पर संतोष जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि हम आशा रखते है कि भविष्य में, समुदायों और ग्रामसभाओ के अधिकारों पर कुठाराघात करने की विभाग दोबारा चेष्टा नहीं करेंगा।
आंदोलन ने यह चिंता भी व्यक्त की है कि वन विभाग की यह धारणा कि ग्रामसभाएं अपने वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन नहीं कर सकतीं, एक लोकविरोधी, केंद्रीकृत और कॉरपोरेट-परस्त वन प्रबंधन नीति को बढ़ावा दे सकती है।
वास्तव में, वन विभाग और ग्रामसभाओं के बीच टकराव की कई घटनाएं CFRR के क्रियान्वयन के दौरान सामने आई हैं — जैसे: वर्किंग प्लान के तहत कूप कटाई का ग्रामसभा द्वारा विरोध, वन विकास निगम द्वारा आपत्ति कर CFRR को रोकना, और टाइगर रिज़र्व क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को प्रबंधन करने से रोकना है।
वन-विभाग के इस कदम का प्रदेश भर में आदिवासी संगठनो और ग्रामसभाओं ने न सिर्फ विरोध किया, बल्कि, वनअधिकार मान्यता की धीमी गति को बढाने, अब तक अपूर्ण रहे और लंबित दावों पर विचार करने, संरक्षित क्षेत्रों से विस्थापन न करने, ग्रामसभाओं को वनसंसाधन प्रबंध के लिए निधि उपलब्ध कराने और वनोपज का ग्रामसभा को स्वामित्व सौंपने जैसी मांग उठाए हैं।