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राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने महीने भर में मांगा जवाब
अध्यक्ष ने कहा कि संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट करेंगे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 21 जनवरी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने नक्सल हिंसा से भयभीत होकर बस्तर से पलायन करने वाले आदिवासियों के मुद्दे पर सख्त रवैया अपनाया है। उसने छत्तीसगढ़ सहित ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को नोटिस भेजकर इस मुद्दे पर 30 दिन के भीतर जवाब मांगा है।
आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हर्ष चौहान ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते हुए इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि हमने राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा है कि उन्होंने इन आदिवासियों के पुनर्वास के लिए क्या कार्रवाई की। आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसने अपने फॉर्मेट के अनुसार ही जवाब मांगा है। हमारी दी गई नोटिस के जवाब में यदि यह मालूम होता है कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो फिर उनको समन भेजेंगे और जवाबदेह अधिकारियों से पूछेंगे। उन्हें कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए कहेंगे। यदि जवाब फिर भी संतोषजनक नहीं मिला तो केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों को भी कार्रवाई के लिए कहेंगे। आयोग एक जज की भूमिका में है और वह देखेगा कि राज्यों ने आदिवासियों के अधिकारों को संरक्षित किया है या नहीं। समन का जवाब मिलने पर प्रतिप्रश्न के लिये भी उन्हें बुलाया जा सकता है। समाधान हो जाता है तो ठीक है वरना हम सरकारों को कार्रवाई के लिये लिखेंगे। इन सब पर भी संतोषजनक हल नहीं निकला तो इसे राष्ट्रपति को सौंपी जाने वाली सालाना रिपोर्ट में दर्ज करेंगे और वे उचित कार्रवाई के लिये निर्देशित करेंगे।
ज्ञात हो कि सन् 2005 में नक्सली हिंसा से करीब 644 गांव के हजारों आदिवासियों ने पड़ोसी राज्यों में जाकर शरण ले लिया था। इस पर कोई अधिकारिक सर्वे शासन की ओर से नहीं कराया गया है जिससे पलायन करने वालों की अधिकृत संख्या का पता चल सके। जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और प्रदेश में भाजपा की, तभी यह मुद्दा लगातार उठता रहा। मीडिया में लगातार खबरें छपने के बाद तत्कालीन अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंद कुमार साय की ओर से भी इन आदिवासियों को बस्तर में वापस लाकर उनकी जमीन पर पुनर्वास करने के लिए पत्राचार किया था। पर अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें भी शिकायत रही कि राज्य सरकार ने इसमें रुचि नहीं ली।
बस्तर क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष कांग्रेस विधायक लखेश्वर पटेल लगातार इस मामले को उठाते रहे हैं। विधानसभा में उनके द्वारा उठाए गए सवाल पर 4 मार्च 2021 को गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने जवाब दिया था कि बस्तर संभाग से किसी भी परिवार का नक्सल पीडि़त होने के कारण अन्य राज्यों में पलायन नहीं हुआ है। अन्य नक्सल पीडि़त व्यक्तियों को मुआवजा देने और पुनर्वास के लिए 16 नवंबर 2015 को स्वीकृत पुनर्वास कार्य योजना के प्रावधान के अंतर्गत कार्रवाई की जा रही है। विधायक पटेल के ध्यान में यह जवाब बहुत देर बाद आया। उन्होंने 24 दिसंबर 2021 को विधानसभा के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर इस जवाब पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि हाल ही में मुझे 500 परिवारों ने पत्र लिखकर सूचित किया है कि वे छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या से त्रस्त होकर सन् 2005 में पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पलायन कर चुके हैं। मुझे ऐसी सूचना मिली है ओडिशा और महाराष्ट्र में भी बड़ी संख्या में परिवारों ने पलायन किया है। मंत्री के इस जवाब की फिर से समीक्षा की जाये।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति मार्च निकाल चुके शुभ्रांशु चौधरी का भी दावा है कि उन्होंने भी पलायन करने वाले परिवारों की सूची बनाई है और लोग आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर हजारों की संख्या में रह रहे हैं। जिस जंगल को काटकर इन लोगों ने अपने रहने का ठिकाना बनाया था और खेती कर रहे थे वहां की सरकारों ने वहां पेड़ लगवा दिये हैं और अधिकारी उन पर वापस अपने इलाके में लौटने का दबाव बना रहे हैं।
आयोग के परामर्शक आलोक द्विवेदी ने बताया कि इस नोटिस को भेजे जाने से पहले राज्यों के साथ इस मुद्दे पर बैठक हो चुकी है, पर इसका कोई संतोषजनक हल नहीं निकला था। अब 12 जनवरी को राज्यों के प्रमुख सचिवों को जारी नोटिस में जवाब मांगा गया है कि नक्सल हिंसा से प्रभावित राज्यों के लोगों को पुनर्वास व जीवनयापन के लिये क्या व्वयस्था की गई है। उन्हें संविधान में दिये गये अधिकारों का लाभ दिया जा रहा है या नहीं। जो आदिवासी अपने घर वापस लौटना चाहते हैं उनके लिये क्या व्यवस्था की गई और जहां पर उन्होंने पलायन किया उन्हें वहां मकान, रोजगार, आवास, राशन कार्ड, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था की गई है या नहीं।



