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क़तरगेट क्या है, जिसकी वजह से इसराइल की राजनीति में मचा है हंगामा
26-Dec-2025 11:30 AM
क़तरगेट क्या है, जिसकी वजह से इसराइल की राजनीति में मचा है हंगामा

इसराइल के प्रवासी मामलों के मंत्री अमिखाई चिकली ने बुधवार को सार्वजनिक रूप से क़तरगेट की पूरी जाँच की मांग की है.

ऐसी मांग करने वाले वह वर्तमान सरकार के पहले मंत्री बन गए हैं.

कान रेशेत बेट रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में चिकली ने क़तरगेट को "चौंकाने वाला" बताया और कहा कि इनकी गहन जाँच ज़रूरी है.

उन्होंने कहा, "इस चीज़ का बचाव करने का कोई तरीक़ा नहीं है. यह चौंकाने वाला है. इन मामलों की पूरी तरह जाँच होनी चाहिए."

क़तरगेट मामला उन आरोपों से जुड़ा है, जिनमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के वरिष्ठ सलाहकारों और उनके सहयोगियों ने क़तर के हितों को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई.

इसमें मीडिया को प्रभावित करने की कोशिशें भी शामिल थीं. यह सब ऐसे समय में हुआ, जब इसराइल अहम कूटनीतिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों से जूझ रहा था.


इसराइली मीडिया की हालिया रिपोर्टिंग से पता चला है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के क़रीबी लोगों और एक क़तरी लॉबिस्ट के बीच संवाद हुआ था.

इससे राजनीतिक और सार्वजनिक स्तर पर कई गंभीर सवाल उठे हैं.

चिकली ने क़तर के बारे में कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा, "मेरी नज़र में यह एक दुश्मन और बीमार देश है. मैं क़तरगेट से जुड़े आरोपों का बचाव नहीं कर सकता. यह चौंकाने वाला है."

उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस मामले से जुड़े कुछ मीडिया घरानों को आर्थिक लाभ मिला हो सकता है.

इससे पहले सोमवार को इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट ने क़तरगेट मामले में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से इस्तीफ़ा मांगा था.

विपक्ष नेतन्याहू पर हमलावर
बेनेट को अगले साल होने वाले चुनाव में प्रमुख दावेदार माना जा रहा है.

पूर्व प्रधानमंत्री ने नेतन्याहू के कार्यालय पर उनके सहायकों को कथित रूप से क़तर से मिली फंडिंग के मामले में "देशद्रोह" का आरोप लगाया.

बेनेट ने सोशल मीडिया पोस्ट में आरोप लगाया, "युद्ध के दौरान नेतन्याहू के कार्यालय ने इसराइल और आईडीएफ (इसराइली सेना) के सैनिकों के साथ विश्वासघात किया और लालच के चलते क़तर के हित में काम किया.''

बेनेट ने कहा कि नेतन्याहू ख़ुद इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह इसराइल के इतिहास में देशद्रोह का सबसे गंभीर कृत्य है."

क़तरगेट क्या है?
'क़तरगेट' के नाम से जाना जाने वाला यह मामला इस आरोप पर आधारित है कि नेतन्याहू के मीडिया सलाहकारों को क़तर के एक प्रतिनिधि ने इसराइली न्यूज़ मीडिया में क़तर के हितों को बढ़ावा देने के लिए फंड किया था.

इस दावे ने कई इसराइलियों को नाराज़ कर दिया है. इस आरोप को हितों के टकराव के रूप में भी देखा जा रहा है.

क़तर हमास के नेताओं की मेज़बानी करता रहा है और उस पर हमास को फ़ंड देने का भी आरोप लगता रहा है.

शिन बेट (इसराइल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी) के प्रमुख को बर्ख़ास्त करने की नेतन्याहू की हालिया कोशिशों ने इस विवाद को और भड़का दिया है.

दरअसल, नेतन्याहू के सहायकों के ख़िलाफ़ जाँच की शुरुआत सबसे पहले शिन बेट ने ही की थी.

नेतन्याहू ने इस मामले को सत्ता से हटाने के मक़सद से चलाया जा रहा एक "राजनीतिक शिकंजा/राजनीतिक शिकार अभियान" क़रार दिया है.

क़तर की सरकार ने एक बयान में कहा कि ये आरोप निराधार हैं.

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अदालती दस्तावेज़ों के मुताबिक़ पुलिस इस बात की जाँच कर रही है कि नेतन्याहू के दो सहायकों, जोनातान उरिच और एली फेल्डस्टीन ने क्या इसराइली न्यूज़ मीडिया में क़तर की सकारात्मक छवि को बढ़ावा देने की कोशिश की.

कहा गया है कि वे एक तीसरे व्यक्ति के साथ काम कर रहे थे, जिसका नाम रिकॉर्ड में नहीं है.

मिस्र और क़तर की भूमिका

मिस्र और क़तर दोनों ही 2023 के अंत से हमास और इसराइल के बीच मध्यस्थता करते रहे हैं.

हालाँकि दोनों देशों में मध्यस्थता को लेकर बहुत तालमेल नहीं रहा है.

अदालती दस्तावेज़ों में कहा गया है कि इन तीनों पर यह संदेह है कि उन्होंने यह धारणा बनाने की कोशिश की कि ग़ज़ा में युद्धविराम सुनिश्चित करने के कूटनीतिक प्रयासों में क़तर ने मिस्र से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

क़तर की सरकार ने अपने बयान में इस दावे से इनकार किया और मिस्र की "निर्णायक भूमिका" की सराहना की. साथ में कहा कि दोनों देश "क़रीबी तौर पर साथ काम कर रहे हैं."

इसी साल मार्च में उरिच और फ़ेल्डस्टीन को गिरफ़्तार किया गया था. हालाँकि कई पाबंदियों के साथ अप्रैल महीने के आख़िरी हफ़्ते में उन्हें हिरासत से छोड़ दिया गया था.

जोनातान उरिच इसराइली सेना के पूर्व मीडिया अधिकारी हैं और नेतन्याहू के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में से एक रहे हैं.

उन्होंने हाल के कई चुनावों में प्रधानमंत्री की संचार रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, अपनी आत्मकथा में नेतन्याहू ने उन्हें 'लगभग परिवार जैसा' बताया है.

इसी साल मार्च महीने के आख़िर में इसराइली मीडिया ने एक ऑडियो रिकॉर्डिंग पब्लिश की थी, जिसमें एक कारोबारी को यह कहते हुए सुना गया कि उसने क़तर के लिए काम करने वाले एक अमेरिकी लॉबिस्ट की ओर से फ़ेल्डस्टीन को फ़ंड ट्रांसफ़र किया था.

उस समय फ़ेल्डस्टीन के वकीलों ने कहा था कि ये फ़ंड 'प्रधानमंत्री कार्यालय को फ़ेल्डस्टीन' की ओर से संचार सेवाओं के लिए दिए गए थे न कि क़तर के लिए.

उन्होंने यह भी कहा था कि फ़ेल्डस्टीन को उस कारोबारी और क़तर सहित अन्य पक्षों के बीच किसी भी तरह के संबंध की जानकारी नहीं थी.

दूसरी तरफ़ पुलिस के एक प्रतिनिधि ने जज मिज़राही को बताया था कि उरिच पर यह भी संदेह है कि उन्होंने क़तर से जुड़े एक सोर्स से पत्रकारों तक संदेश पहुँचाए, जिन्हें इस तरह पेश किया गया जैसे वे इसराइल के वरिष्ठ राजनीतिक या सुरक्षा अधिकारियों से आए हों.

क़तर का क्या कहना है?
क़तर के एक अधिकारी ने फाइनैंशियल टाइम्स से कहा था, "यह पहली बार नहीं है, जब हमें उनके बदनाम करने के अभियान का निशाना बनाया गया है. ये वही लोग हैं, जो ग़ज़ा युद्ध का अंत नहीं देखना चाहते या बचे हुए बंधकों की उनके परिवारों में वापसी नहीं चाहते."

क़तरगेट पर ही 25 दिसंबर को इसराइल के प्रमुख अख़बार यरुशलम पोस्ट ने एक संपादकीय लिखा है.

यरुशलम पोस्ट ने संपादकीय में लिखा है, ''क़तर की क्षेत्रीय भूमिका अपने आप में कोई रहस्य नहीं है. वर्षों से इसराइली और अंतरराष्ट्रीय मीडिया मध्य पूर्व में इस्लामी आंदोलनों, जिनमें मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े नेटवर्क भी शामिल हैं, को दिए गए राजनीतिक और वित्तीय समर्थन को उजागर करता रहा है. अल जज़ीरा के स्वामित्व और फ़ंडिंग पर भी रिपोर्ट आती रही है. ये कोई छोटे या छुपे हुए तथ्य नहीं हैं. इन्हीं के संदर्भ में किसी भी कथित संपर्क, समन्वय या प्रभाव की जाँच की जानी चाहिए.''

यरुशलम पोस्ट ने लिखा है, ''इसी समय इसराइल ने क़तर के साथ सीमित और व्यावहारिक संदर्भों में संपर्क भी रखा है. ख़ासकर बंधकों और युद्धविराम से जुड़ी मध्यस्थता की कोशिशों में. अधिकारियों ने इस जुड़ाव को रणनीतिक नहीं बल्कि तकनीकी बताया है.''

''कुछ सीमित मामलों में इसकी उपयोगिता व्यापक रणनीतिक चिंताओं को समाप्त नहीं करती. यही कारण है कि इन जाँचों को केवल राजनीतिक असुविधा मानकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता. पुलिस प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े संदिग्ध संपर्कों और संदेशों से संबंधित गतिविधियों की जाँच कर रही है.'' (bbc.com/hindi)

 


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