अंतरराष्ट्रीय
-कैरोलिन हॉली
सऊदी अरब में इस साल सज़ा-ए-मौत पाने वालों की संख्या पिछले साल की तुलना में बढ़ गई है.
आंकड़ों के मुताबिक़, इस साल अब तक कम से कम 347 लोगों को सज़ा-ए-मौत दी जा चुकी है, जबकि पिछले वर्ष यह संख्या 345 थी.
ये आंकड़े ब्रिटेन स्थित समूह रिप्रीव की ओर से जारी किए गए थे, जो सऊदी अरब में सज़ा-ए-मौत की निगरानी करता है और वहां यह सज़ा पाए कै़दियों के लिए वकालत करता है.
रिप्रीव का कहना है कि निगरानी शुरू होने के बाद से यह सऊदी अरब में 'सबसे ख़ूनी साल' रहा है.
हाल ही में जिन लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई है, उनमें दो पाकिस्तानी नागरिक शामिल हैं, जिन्हें ड्रग से जुड़े मामलों में दोषी ठहराया गया था.
इस साल जिन अन्य लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई, उनमें एक पत्रकार और दो युवा भी शामिल हैं, जो कथित विरोध प्रदर्शनों से जुड़े मामलों में उस समय नाबालिग थे. सज़ा पाने वाले लोगों में पांच महिलाएं भी शामिल हैं.
हालांकि रिप्रीव के मुताबिक़ कुल मामलों में से क़रीब दो-तिहाई लोग ऐसे अपराधों में दोषी पाए गए थे, जिनमें किसी की जान नहीं गई थी और जो ड्रग से जुड़े थे.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ऐसे मामलों में सज़ा-ए-मौत देना 'अंतरराष्ट्रीय मानकों और नियमों के ख़िलाफ़' है.
रिप्रीव के मुताबिक़, सज़ा-ए-मौत पाने वालों में आधे से ज़्यादा विदेशी नागरिक थे और ऐसा लगता है कि उन्हें सऊदी अरब में चलाए जा रहे 'ड्रग्स के ख़िलाफ़ युद्ध' के तहत मौत की सज़ा दी गई.
बीबीसी ने इस मामले पर सऊदी अरब के अधिकारियों से टिप्पणी के लिए कहा है लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला. (bbc.com/hindi)


