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पाकिस्तान के ये तीन भाई, सूरज डूबते ही हो जाते थे, 'लकवाग्रस्त'
29-Nov-2025 11:31 AM
पाकिस्तान के ये तीन भाई, सूरज डूबते ही हो जाते थे, 'लकवाग्रस्त'

-मोहम्मद काज़िम

लगभग नौ साल पहले पाकिस्तानी मीडिया में चलने वाली उन ख़बरों ने मेडिकल साइंस और पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तऱफ खींचा था कि बलूचिस्तान में तीन भाई ऐसे हैं, जो 'सूरज की रोशनी पर चलते हैं'.

असामान्य मेडिकल कंडीशन से परेशान इन भाइयों के बारे में मीडिया में इस तरह के दावे किए गए थे कि वह दोनों "सूरज के साथ उगते हैं और सूरज के साथ ही डूब जाते हैं."

और मामला सच में कुछ ऐसा ही था.

ये तीनों भाई दिन में तो आम लोगों की तरह अपनी ज़िंदगी जीते थे, लेकिन सूरज डूबते ही उनकी ज़िंदगी मानो ठहर सी जाती थी और शाम से अगले दिन सूरज निकलने तक वे बेबस पड़े रहते थे.

इस केस ने पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. इन बच्चों को होने वाली बीमारी की जांच की पेचीदा प्रक्रिया शुरू हुई. न केवल पाकिस्तान बल्कि विदेशों में भी उनके टेस्ट कराए गए और फिर दावा किया गया कि वे तीनों भाई "दुनिया में अब तक पाई गई अपनी तरह की पहली बीमारी" से पीड़ित हैं.

इस बीमारी की पहचान के बाद उन्हें एक दवा दी गई, जिसकी वजह से 'सोलर किड्स' के नाम से दुनिया-भर में मशहूर हुए ये तीनों भाई पिछले नौ साल से रात में भी कुछ हद तक सामान्य ज़िंदगी जीने के क़ाबिल तो हो गए हैं लेकिन उनकी मुश्किलें न सिर्फ़ बरक़रार हैं बल्कि वक़्त के साथ बढ़ती जा रही हैं.

क्वेटा में रहने वाले इन बच्चों के माता-पिता ग़रीबी की वजह से उनके इलाज में मुश्किलों का सामना तो कर ही रहे हैं, उन्हें उनके भविष्य को लेकर भी फ़िक़्र है.

इन भाइयों के इलाज से जुड़े मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ 'सोलर किड्स' जिस बीमारी से पीड़ित हैं, वह दुनिया में अब तक मिलने वाली अपनी तरह की पहली बीमारी है.

इस बीमारी की वजह से नौ साल पहले तक ये भाई नहीं जानते थे कि रात कैसी होती है, वह कब आती है और उस दौरान उनकी ज़िंदगी कैसी होती है क्योंकि उन्हें होश अगले दिन सूरज निकलने के बाद ही आता था.

सन 2016 से इन बच्चों की बीमारी की जांच और इलाज से जुड़े पाकिस्तान के डॉक्टर प्रोफ़ेसर जावेद अकरम कहते हैं कि इस बीमारी के बारे में न सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर टेस्ट्स हुए, बल्कि ये अब भी जारी हैं.

दूसरी तरफ़ बलूचिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री बख़्त मोहम्मद काकड़ का कहना है कि राज्य सरकार इन बच्चों के इलाज के लिए हर संभव सुविधाएं मुहैया कराएगी.

तो इन बच्चों को कौन-सी बीमारी है और अब उनका क्या इलाज चल रहा है? इसकी चर्चा बाद में, पहले उन बच्चों को होने परेशानियों को जान लेते हैं.

सोलर किड्स कौन हैं?
सोलर किड्स क्वेटा के पास के इलाक़े मियां ग़ंडी के रहने वाले मोहम्मद हाशिम के बच्चे हैं. मोहम्मद हाशिम के नौ बच्चों में से पाँच इसी अजीब बीमारी से पीड़ित थे.

मोहम्मद हाशिम ने बताया कि उनके दो बच्चे तो इसी बीमारी की वजह से चल बसे लेकिन बाक़ी तीन में से दो अब जवान हो चुके हैं जबकि एक अभी छोटा है.

'सोलर किड्स' में सबसे बड़े भाई शोएब अहमद हैं, उनकी उम्र अभी 19 साल है. उनसे छोटे भाई रशीद अहमद की उम्र लगभग 17 साल है जबकि तीसरे भाई मोहम्मद इलियास की उम्र कम है.

दोनों बड़े भाइयों शोएब और रशीद को बचपन में हज़ारगंजी में स्थित एक मदरसे में दाख़िल कराया गया था लेकिन वह अपनी बीमारी की वजह से पढ़ाई नहीं कर सके.

उनके चाचा शब्बीर अहमद ने बताया कि जिस तरह की बीमारी बच्चों को थी, उसकी वजह से मदरसे के कर्ता-धर्ता के लिए उन्हें संभालना मुश्किल था जबकि घरवाले भी हर वक़्त परेशान रहते थे.

उन्होंने बताया कि इस हालत की वजह से वह मदरसे में अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके और इस बीमारी की वजह से किसी स्कूल में भी नहीं पढ़ सके.

"रात की ज़िंदगी गोलियों पर निर्भर"
'सोलर किड्स' में सबसे बड़े भाई शोएब अहमद से हमने बात की. शोएब कहते हैं कि डॉक्टरों ने उनकी बीमारी की जांच के बाद उन्हें खाने के लिए सिर्फ़ एक ही टैबलेट दिया, जिसे वह और उनके भाई पिछले नौ साल से ज़्यादा वक़्त से खा रहे हैं.

"इस गोली की भी एक टाइमिंग है और जब इसका असर ख़त्म हो जाता है तो उसके बाद हमारा बदन रात को फिर वैसे ही हिलना-डुलना बंद कर देता है जैसे इलाज से पहले होता था."

उन्होंने बताया, "हम दो भाई जवान हो गए हैं लेकिन सही इलाज न होने की वजह से हम किसी काम-धंधे के क़ाबिल नहीं और ख़ास तौर पर आर्थिक रूप से हम अब भी माता-पिता पर ही निर्भर हैं."

वह कहते हैं, "हम चाहते हैं कि हमारा स्थायी इलाज हो ताकि हम तीनों भाई भी सामान्य ज़िंदगी जीने के क़ाबिल हो जाएं और आर्थिक व सामाजिक रूप से अपने पैरों पर खड़े हो जाएं."

स्थायी इलाज न होने से माता-पिता भी परेशान

इन बच्चों के पिता मोहम्मद हाशिम ने बताया कि बच्चे जिस गोली को खा रहे हैं, उसकी वजह से रात में अब उनकी हालत कुछ हद तक बेहतर होती है, लेकिन वह चाहते हैं कि बच्चों का स्थायी इलाज हो ताकि उनकी चिंता और परेशानी ख़त्म हो सके.

वह कहते हैं, "जब ये बच्चे बाहर निकलते हैं या कभी-कभार किसी ज़रूरी काम से उन्हें बाहर जाना पड़ता है तो हम यह सोचकर परेशान रहते हैं कि इस बीमारी की वजह से कहीं गिर न जाएं और उन्हें कोई तकलीफ़ न हो जाए.'

इलाज का ख़र्च उठाना मुश्किल
हाशिम का कहना है कि तीनों बच्चे जो गोली इस्तेमाल कर रहे हैं वह भी महंगी है और "हमारी आमदनी में उसे हर वक़्त ख़रीदना भी मुश्किल है."

उन्होंने बताया कि जब डॉक्टरों ने शुरुआत में इन बच्चों के लिए गोली लिखी थी, वह एक-दो बार तो मुफ़्त मिली लेकिन उसके बाद से वे ख़ुद अपनी जेब से ख़रीद रहे हैं.

बच्चों के चाचा शब्बीर अहमद ने बताया कि बच्चों के पिता मोहम्मद हाशिम ख़ुद एक सिक्योरिटी गार्ड हैं जिनकी तनख़्वाह बहुत कम है और इस महंगाई में खाने-पीने के ख़र्च मुश्किल से पूरे होते हैं.

मोहम्मद हाशिम का कहना था कि प्रांतीय सरकार को उनके बच्चों के लिए वज़ीफ़ा तय करना चाहिए, उनके रोज़गार का इंतज़ाम करना चाहिए और इलाज का ख़र्च भी उठाना चाहिए.

जब इन बच्चों की बीमारी के अलावा इलाज में आने वाली माता-पिता की मुश्किलों की तरफ़ बलूचिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री बख़्त मोहम्मद काकड़ का ध्यान दिलाया गया तो उनका कहना था कि सरकार इस मामले को देखेगी.

उनका कहना था कि इन बच्चों के इलाज लिए जो भी मुमकिन होगा, सरकार वह करेगी.

'सबसे अनोखी बीमारी'
जब मोहम्मद शोएब और उनके छोटे भाई मदरसे में पढ़ रहे थे तो उस वक़्त यह बात सामने आई कि सूरज डूबते ही दोनों भाइयों का शरीर सुन्न पड़ जाता जाता था.

मोहम्मद हाशिम का कहना है कि शुरुआत में उन्होंने इन बच्चों को क्वेटा और दूसरे इलाक़ों के डॉक्टरों को दिखाया लेकिन बीमारी पकड़ने और इलाज में बहुत कामयाबी नहीं मिली.

फिर उसी मदरसे में पढ़ाई के दौरान उनकी बीमारी मीडिया में उजागर हुई जिसकी वजह से देशी-विदेशी मेडिकल एक्सपर्ट्स का ध्यान उनकी तरफ़ गया.

चूंकि उनकी सामान्य ज़िंदगी सूरज की रोशनी पर निर्भर थी, इसलिए उन्हें 'सोलर किड्स' का नाम दिया गया.

प्रोफ़ेसर डॉक्टर जावेद अकरम उन मेडिकल एक्सपर्ट्स में शामिल हैं जो इन बच्चों की बीमारी की जांच और इलाज से सबसे ज़्यादा जुड़े रहे.

उन्होंने बीबीसी उर्दू को बताया कि 'सोलर किड्स' का जो मामला है, उस तरह के मामले वाला अभी तक पूरी दुनिया में एक ही परिवार है.

उनके मुताबिक़ "शायद दुनिया में यह अपनी तरह की अनोखी बीमारी है."

उनका कहना था कि इससे मिलती-जुलती बीमारी जापान में कुछ परिवारों को है जिसे हम सेगावा सिंड्रोम कहते हैं, लेकिन उसमें और इन बच्चों की बीमारी के लक्षणों में फ़र्क़ है.

'दुनिया भर में हुए टेस्ट'
डॉक्टर जावेद अकरम ने बताया कि पौने दो साल की मेहनत और खोजबीन के बाद पता चला कि ये बच्चे सूरज की रोशनी ख़त्म होते ही लकवाग्रस्त क्यों हो जाते हैं.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया में इन बच्चों के टेस्ट किए गए, उनके सैंपल्स ब्रिटेन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैरीलैंड और दुनिया के दूसरे विश्वसनीय संस्थानों को भेजे गए और फिर इस्लामाबाद ले जाकर मर्ज़ की डायग्नोसिस की कोशिशें की गईं.

अपनी याददाश्त पर ज़ोर देते हुए डॉक्टर जावेद अकरम ने कहा कि वह मई की एक रात थी जब पिम्स (पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़) में हमने उन्हें एक थैरेप्यूटिक ट्रायल दिया. थैरेप्यूटिक ट्रायल से पहले वह दोनों बच्चे उस रात भी पहले की तरह बिल्कुल लकवाग्रस्त थे.'

उन्होंने बताया कि जब उन्हें डोपामाइन की एक-एक गोली दी गई तो वे उठ खड़े हुए.

उन्होंने कहा, "वह हमारी ज़िंदगी की पहली रात थी जिसे न मैं और न ही वह बच्चे भूलेंगे क्योंकि वह अब रात को उठ सकते थे, वॉशरूम जा सकते थे, रात को खाना खा सकते थे और दौड़-भाग कर सकते थे.'

डॉक्टर जावेद अकरम ने बताया कि गोली खाने के बाद वह इतने ख़ुश हो गए थे कि पिम्स अस्पताल के गलियारों में दौड़ते फिर रहे थे.

प्रोफ़ेसर डॉक्टर जावेद अकरम ने बताया कि इन भाइयों की सेंगर सीक्वेंसिंग, नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग की गई और बहुत सारे टेस्ट्स किए गए तब जाकर पता चला कि रात को उनके दिमाग़ में डोपामाइन की कमी हो जाती है.

"उनके दिमाग़ या बेसल गैंग्लिया में डोपामाइन की कमी हो जाती है जिसकी वजह से वे लकवाग्रस्त हो जाते हैं. यह उनकी ऑप्टिक (नर्व) को ख़त्म कर देती है. इस बीमारी का एक ख़ास नाम है जो आईवीडी जीन कहलाता है और यह आईवीडी जीन में एब्नॉर्मलिटी है."

उन्होंने बताया, "इसमें हम उन्हें रात को डोपामाइन देते हैं जिससे उनकी शाम और रात नॉर्मल गुज़रती है."

'अनोखी बीमारियों का ज्वालामुखी है पाकिस्तान'
डॉक्टर जावेद अकरम ने कहा कि अभी तक इन बच्चों की बीमारी का डायग्नोसिस पूरा नहीं हुआ बल्कि इसके टेस्ट अभी भी जारी हैं.

उनका कहना था कि यह जो दुर्लभ या अनोखी बीमारियां होती हैं वह दुनिया में बहुत कम होती हैं लेकिन पाकिस्तान में दुर्लभ या अनोखी नहीं क्योंकि यहां कज़न मैरिज बहुत ज़्यादा होती हैं.

"कज़न मैरिज जिसे हम कंसैंग्विनिटी कहते हैं वह लगभग 50 फ़ीसद से ज़्यादा लोगों में है. इसी वजह से पाकिस्तान में जेनेटिक बीमारियों का एक ज्वालामुखी है जो फटता रहता है."

उनका कहना था कि 'सोलर किड्स' को जो बीमारी है वह भी इसी तरह की एक आनुवंशिक बीमारी है लेकिन "अल्लाह का शुक्र है कि अब इस पर बहुत सारे प्रोग्राम और बहुत सारी रिसर्च हो रही हैं."

उन्होंने कहा, "मैंने पहले भी बताया कि इस बीमारी से पूरी दुनिया में केवल यही एक परिवार पीड़ित है, इसलिए मैं सावधानी के साथ कह सकता हूं कि यह दुनिया की बेहद दुर्लभ बीमारी है." (bbc.com/hindi)


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