अंतरराष्ट्रीय
-मार्गारीटा रोड्रिगेज़
डॉ. टैमर गेफेन अमेरिका के इलिनॉय में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के सुपरएजिंग प्रोग्राम में शोध करती हैं.
वह जिस सुपरएजर महिला के दिमाग़ का अध्ययन कर रही थीं, उनकी मौत हो चुकी है लेकिन डॉ गेफ़ेन का शोध अब भी जारी है.
डॉ गेफ़ेन न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट हैं.
उनका कहना है, "उनका हिप्पोकैम्पस (इंसानी दिमाग़ का एक हिस्सा) बहुत सुंदर था,"
डॉ. टैमर गेफेन बताती हैं, "उनके न्यूरॉन मोटे और स्वस्थ थे. मुझे याद है, मैंने सोचा था कि कितना अद्भुत है कि इतनी सुंदर और जटिल संरचना में इतनी दर्दनाक यादें भी रह सकती हैं."
हालांकि वह 'सुपरएजर' महिला होलोकॉस्ट से बची थीं, लेकिन शोधकर्ता को उनकी खुशमिज़ाजी, हिम्मत और हंसी याद है.
डॉ. गेफेन ने कहा, "अब दस साल से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन मैं आज भी उनके बारे में सोचती हूं."
यह बात डॉ. गेफेन ने मार्टिन विल्सन को बताई, जो 'व्हाट वी कैन लर्न फ्रॉम सुपरएजर्स' नामक लेख के लेखक हैं. यह लेख नॉर्थवेस्टर्न मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था.
यह प्रोग्राम 25 साल से चल रहा है. इसका मतलब है कि वैज्ञानिकों और इसमें हिस्सा लेने वाले लोगों के बीच लंबे समय से जान-पहचान है.
जैसा कि डॉ. गेफेन के अनुभव से पता चलता है, जिन लोगों ने अपने दिमाग़ डोनेट किए हैं, उनके साथ यह रिश्ता बहुत गहरा हो सकता है.
सुपरएजिंग से संबंधित पहला मामला
सुपरएजिंग' शब्द नॉर्थवेस्टर्न अल्ज़ाइमर डिज़ीज़ रिसर्च सेंटर में गढ़ा गया था.
इसके सुपरएजिंग प्रोग्राम की शुरुआत को समझने के लिए हमें 1990 के दशक के मध्य में जाना होगा, जब एक घटना संयोगवश हुई.
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी सुपरएजिंग प्रोग्राम के पहले 25 सालों पर आधारित लेख के वैज्ञानिकों ने लिखा था, "हमें एक 81 वर्षीय महिला का मरणोपरांत दिमाग़ मिला था."
यह महिला पहले एक और रिसर्च प्रोजेक्ट में शामिल थीं और उनमें 'किसी भी तरह के काम करने की क्षमता में कमी के कोई संकेत नहीं थे.'
असल में, मेमोरी टेस्ट में उन्होंने अपनी उम्र के मुकाबले 'बहुत अच्छे' अंक हासिल किए थे- लगभग 50 साल की उम्र के लोगों के समान.
शोधकर्ताओं को यह जानकर हैरानी हुई कि उस महिला के दिमाग़ के एंटोराइनल कॉर्टेक्स हिस्से में सिर्फ़ एक 'न्यूरोफिब्रिलरी टैंगल' मिला था.
यह दिमाग़ का वह हिस्सा है जो कई अन्य क्षेत्रों से जुड़ा होता है और माना जाता है कि यह जगहों, घटनाओं और निजी यादों को सहेजने में अहम भूमिका निभाता है.
न्यूरोफिब्रिलरी टैंगल असल में टाऊ नामक प्रोटीन के महीन रेशों के गुच्छे होते हैं, जो न्यूरॉन्स के अंदर आपस में उलझ जाते हैं.
इन टैंगल्स का दिमाग़ में फैलना याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट से जुड़ा माना जाता है.
शोधकर्ताओं के अनुसार, उस महिला के दिमाग़ में सिर्फ एक टैंगल का मिलना 'उस उम्र में बहुत दुर्लभ बात थी, भले ही व्यक्ति को किसी तरह की याददाश्त की समस्या न हो.'
बीबीसी के कार्यक्रम हेल्थ चेक में, इस स्टडी की प्रमुख शोधकर्ताओं में से एक और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर डॉ. सैंड्रा वाइनट्रॉब ने शुरुआती दौर को याद किया.
वह कहती हैं, "हमारे पहले सुपरएजर के दिमाग़ में सिर्फ एक टैंगल था और हमने सोचा, 'ओह माय गॉड! हमने दिमाग़ को स्वस्थ रखने का राज़ खोज लिया है- टैंगल न बनाना."
"लेकिन अगले सुपरएजर के दिमाग़ में उतने ही टैंगल थे जितने कि अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित व्यक्ति के दिमाग़ में पाए जाते हैं."
सुपरएजर्स कौन हैं?
सुपरएजिंग प्रोग्राम से जुड़े वैज्ञानिक बताते हैं कि 'सुपरएजर' वे लोग होते हैं जिनकी उम्र 80 साल या उससे ज़्यादा होती है, लेकिन शब्दों की लिस्ट याद करने वाले टेस्ट में वे उतने ही अंक हासिल करते हैं जितने उनसे 20 या 30 साल छोटे लोग करते हैं.
वे इसके लिए रे ऑडिटरी वर्बल लर्निंग टेस्ट का इस्तेमाल करते हैं.
यह टेस्ट न्यूरोसाइकोलॉजी में याददाश्त और अन्य मानसिक क्षमताओं को मापने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. अन्य कॉग्निटिव क्षमताओं का आकलन करने के लिए अलग-अलग उपकरणों का भी उपयोग किया जाता है.
वैज्ञानिकों ने 'एपिसोडिक मेमोरी' यानी घटनाओं को याद रखने की क्षमता को मुख्य सूचक (मार्कर) चुना, क्योंकि सामान्य तौर पर बढ़ती उम्र में यही क्षमता सबसे ज़्यादा घटती है.
इसलिए, किसी को 'सुपरएजर' के रूप में वर्गीकृत करने के लिए उन्होंने बहुत ऊंचा मानदंड तय किया- किसी ऐसे व्यक्ति जैसी याददाश्त होना जो कम से कम 30 साल छोटा हो.
इसके बाद आए नतीजे वाकई चौंकाने वाले हैं.
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की साइकियाट्री और बिहेवियरल साइंसेज़ की असिस्टेंट प्रोफेसर मॉली ए. माथर ने बीबीसी मुंडो को बताया, "यह देखना हैरान करने वाला होता है कि कोई 90 साल का व्यक्ति इतनी नई जानकारी याद रख सकता है, जबकि मैं देखती हूं कि 50 या 60 साल के मरीज़ कभी-कभी इससे कहीं आसान मेमोरी टेस्ट में संघर्ष करते हैं."
सुपएजर्स के दिमाग़ कैसे अलग होते हैं?
सुपरएजर इस धारणा को चुनौती देते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ याददाश्त या सोचने की क्षमता का कम होना तय है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि सुपरएजर लोगों में ऐसी न्यूरोसाइकोलॉजिकल और न्यूरोबायोलॉजिकल विशेषताएं होती हैं जो उन्हें समान उम्र के सामान्य लोगों से अलग बनाती हैं.
उदाहरण के तौर पर, उनके 'कॉर्टिकल वॉल्यूम' यानी मस्तिष्क की बाहरी परत में मौजूद टिश्यू (ऊतक) की मात्रा 20 से 30 साल छोटे लोगों जैसी होती है.
कॉर्टिकल वॉल्यूम दिमाग़ की उस बाहरी परत से जुड़ा होता है जो सोचने की क्षमता के लिए ज़रूरी है.
दिमाग़ का यह हिस्सा याददाश्त और भाषा समझने जैसी क्षमताओं से जुड़ा होता है.
एक और दिलचस्प खोज यह थी कि सुपरएजर लोगों के दिमाग़ में 'वॉन इकॉनोमो न्यूरॉन' की संख्या उनके साथियों की तुलना में कहीं ज़्यादा होती है, बल्कि उनसे बहुत छोटे लोगों से भी अधिक.
यह विशेष प्रकार के न्यूरॉन सामाजिक संबंधों और जटिल सामाजिक व्यवहारों को समझने में अहम भूमिका निभाते हैं.
यह खोज उस बात से मेल खाती है जो विशेषज्ञों ने सुपरएजर लोगों में देखी है- वे अपने रिश्ते मज़बूत बनाए रखना पसंद करते हैं.
माथर कहती हैं, "लेकिन हमें नहीं पता कि पहले क्या हुआ- क्या वे शुरू से ही ऐसे थे, या फिर सामाजिक रहने की वजह से उनके दिमाग़ में यह बदलाव आया?"
सेलुलर स्तर पर भी सुपरएजर के दिमाग़ में अल्ज़ाइमर से जुड़ी गड़बड़ियों के संकेत बहुत कम दिखाई देते हैं.
माथर बताती हैं, "मुझे यह बात बेहद आश्चर्यजनक लगती है कि इनमें से कई लोग 80 या 90 साल के हैं, कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा उम्र के, फिर भी उनके दिमाग़ में टैंगल्स बहुत कम हैं, जबकि आम तौर पर उस उम्र में हम इनकी संख्या ज़्यादा देखते हैं."
वैज्ञानिक अभी तक नहीं जानते कि ऐसा क्यों होता है.
वे यह भी सोचते हैं कि शायद कोई ऐसी प्रक्रिया है जो इन टैंगल्स के बनने को रोकती है.
जिन सुपरएजर लोगों के दिमाग़ में टैंगल्स पाए भी जाते हैं, उनकी याददाश्त कैसे सुरक्षित रहती है- यह अब भी एक रहस्य है.
अलग-अलग आदतें
1934 में जन्म राल्फ़ रेबॉक उन लोगों में शामिल हैं, जिन पर यह स्टडी की गई है.
वह नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के बनाए एक वीडियो में कहते हैं, "मुझे सुपरएजर होने पर बहुत गर्व है."
इस प्रोग्राम की शुरुआत से अब तक 290 सुपरएजर इसमें शामिल हो चुके हैं और 77 दिमाग़ों का इंसान की मौत के बाद अध्ययन किया जा चुका है, ताकि यह समझा जा सके कि उम्र बढ़ने के बावजूद उनकी याददाश्त इतनी मज़बूत कैसे बनी रहती है.
फिलहाल इस शोध में 133 सक्रिय प्रतिभागी हैं.
अपने लेख में मार्टिन विल्सन लिखते हैं कि कोई 'सामान्य' सुपरएजर नहीं होता. इसके उलट, यह बहुत अलग-अलग जीवनशैली वाले लोगों का समूह है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक़, "कुछ सुपरएजर ऐसे थे जो स्वस्थ जीवन के लगभग हर सुझाव का पालन करते थे."
"लेकिन कुछ लोग ठीक से नहीं खाते थे, शराब और सिगरेट का आनंद लेते थे, व्यायाम से बचते थे, तनाव भरी ज़िंदगी जीते थे और नींद भी पूरी नहीं लेते थे."
उन्होंने आगे लिखा, "इसका कोई आसान फॉर्मूला नहीं है. शायद किसी दिन हमें यह मालूम हो जाए, लेकिन फिलहाल हम उस स्थिति से बहुत दूर हैं."
डॉ. गेफेन चेतावनी देती हैं, "हमेशा ऐसा होगा कि जीवविज्ञान, अनुवांशिकी और दूसरे कई कारकों के बीच परस्पर असर होता रहेगा, जो किसी व्यक्ति की मानसिक मज़बूती में योगदान देता है."
डॉ. वाइनट्रॉब ने बीबीसी को बताया, "सिर्फ़ अच्छा खाना, अच्छी नींद या शराब छोड़ देने से कोई अचानक सुपरएजर नहीं बन जाएगा."
"लेकिन हमें पता है कि ये सभी चीज़ें उम्र बढ़ने के साथ याददाश्त कम होने के ख़तरे को घटाती हैं. इसलिए हमारा संदेश यही है- जितना हो सके, अपने जोख़िम को कम करें. अगर आप ऐसा करते हैं और आपके जीन भी अनुकूल हैं, तो आपके पास सुपरएजर बनने का मौक़ा हो सकता है."
तो क्या हमारे दिमाग़ भी सुपरएजर जैसे हो सकते हैं?
डॉ. वाइनट्रॉब बीबीसी मुंडो को बताती हैं, "जैसा कि हमने देखा, कोई 'सुपरएजर दिमाग़' नहीं होता. असल में सुपर उनकी याददाश्त और जीवन को देखने का नज़रिया है."
वह बताती हैं कि मरने के बाद जांच में कुछ लोगों के दिमाग़ उम्र से संबंधित नुक़सान से लगभग मुक्त पाए जाते हैं, जबकि कुछ में अल्ज़ाइमर रोग से जुड़ा असामान्य प्रोटीन पाया जाता है, जो आम तौर पर दिमाग़ की स्वस्थ कोशिकाओं को नुक़सान पहुंचाता है और याददाश्त घटाता है.
डॉ. वाइनट्रॉब का कहना है, "किसी वजह से सुपरएजर या तो उन प्रोटीन को उतनी तेज़ी से नहीं बनाते जितना आम बुज़ुर्गों में होता है, या फिर वे उन्हें बनाते हैं लेकिन उनके असर से किसी तरह सुरक्षित रहते हैं. यही चीज़ हमें सबसे ज़्यादा रोमांचित करती है." (bbc.com/hindi)
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)


