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'ग़ज़ा में लोग चलती-फिरती लाशें बन गए हैं', वहां काम करने वाले पत्रकारों की आपबीती
26-Jul-2025 9:42 AM
'ग़ज़ा में लोग चलती-फिरती लाशें बन गए हैं', वहां काम करने वाले पत्रकारों की आपबीती

-योलांद नेल

बीबीसी ग़ज़ा में अपनी रिपोर्टिंग करने के लिए जिन भरोसेमंद पत्रकारों पर निर्भर है उनमें से तीन ने बताया है कि अब वो अपना परिवार का पेट भरने में असमर्थ हैं. कई बार तो इन्हें दो दिन या उससे ज्यादा समय तक बिना कुछ खाए रहना पड़ता है.

इन पत्रकारों ने ऐसे हालात में भी कैमरा चालू रखा और बीबीसी को ज़रूरी वीडियो भेजे.

चाहे उनके क़रीबी रिश्तेदार मारे गए हों, उनके घर तबाह हो गए हों या फिर इसराइली सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए परिवार के साथ भागना पड़ा, इन पत्रकारों ने अपना काम नहीं छोड़ा.

इनमें से एक पत्रकार इससे पहले एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट के दौरान इसराइली बमबारी में गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

कहा जा रहा है कि ग़ज़ा में ग़ज़ा ह्यूमनटेरियन फ़ाउंडेशन (जीएचएफ़) की ओर से बांटा जा रहा खाना बहुत कम लोगों तक पहुंच पा रहा है. इससे वहां भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है.

संयुक्त राष्ट्र समेत कई मदद एजेंसियों का कहना है कि जीएचएफ़ का खाना बांटने का तरीका सही नहीं है.

उनका आरोप है कि जो लोग जीएचएफ़ के भोजन वितरण केंद्र पर मदद लेने के लिए आ रहे हैं उन पर इसराइली सुरक्षा बल गोलियां चला रहे हैं.

लेकिन इसराइल का कहना है कि हमास यहां से खाना और दूसरी मदद सामग्रियां लूट कर उन्हें ऊंचे दाम पर बेच रहा है और इसराइल को बदनाम कर रहा है.

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक़ एक सौ से अधिक सहायता संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने बुधवार को कहा कि ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर भुखमरी फैल रही है.

बीबीसी के लिए रिपोर्टिंग के दौरान घायल होने वाले पत्रकार ने कहा कि ये उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल समय है.

अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञों ने ग़ज़ा की स्थिति को अभी तक औपचारिक तौर पर 'अकाल' घोषित नहीं किया है.

लेकिन संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि वहां भुखमरी तेजी से फैल रही है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये भुखमरी 'मानवजनित' है.

अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया है. क्योंकि वो फ़लस्तीनी इलाके में जाने वाली सप्लाई को नियंत्रित करता है.

जिन पत्रकारों ने कहा है कि उनका परिवार भुखमरी का सामना कर रहा है, बीबीसी ने उनकी पहचान न बताने पर सहमति जताई है. ऐसा इसलिए किया गया है कि ताकि वो सुरक्षित रह सकें.

इन पत्रकारों ने बताया कि उनके लिए सबसे दुख की बात ये है कि वो अपने छोटे और सबसे असहाय बच्चों के लिए भोजन भी नहीं जुटा पा रहे हैं.

बीबीसी के लिए ग़ज़ा सिटी में काम करने वाले एक कैमरामैन चार बच्चों के पिता हैं.

उन्होंने कहा "मेरा बेटा ऑटिज़्म से जूझ रहा है. उसे पता ही नहीं कि उसके आसपास क्या हो रहा है. वह बोलता नहीं है और उसे यह भी नहीं मालूम कि हम युद्ध में फंसे हैं.''

उन्होंने कहा "हाल के दिनों में वह इतना भूखा हो गया है कि वह अपना पेट थपथपाकर हमें संकेत देता है कि उसे खाना चाहिए."

दक्षिणी ग़ज़ा में बीबीसी के सबसे युवा सहयोगी अपने माता-पिता और भाई-बहनों के लिए एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं.

वो कहते हैं, "मैं लगातार इस चिंता में रहता हूं कि अपने परिवार के लिए खाना कहां से लाऊं. मेरी 13 साल की छोटी बहन बार-बार खाना और पानी मांगती है, लेकिन हम उसके लिए कुछ नहीं ला सकते. जो पानी मिलता है वो भी दूषित होता है."

बीबीसी न्यूज़ और समाचार एजेंसी एएफपी, एपी और रॉयटर्स ने इसराइली अधिकारियों से पत्रकारों को ग़ज़ा में प्रवेश और बाहर जाने की अनुमति देने की मांग की है.

बीबीसी ने अन्य मीडिया संगठनों के साथ एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि वह ग़ज़ा में काम कर रहे फ्रीलांस पत्रकारों की हालत को लेकर 'गंभीर रूप से चिंतित' है

बयान में कहा गया, "पिछले कई महीनों से, ये स्वतंत्र पत्रकार ही दुनिया की आंखें और कान बने हुए हैं. ग़ज़ा की ज़मीनी हक़ीक़त दिखा रहे हैं. लेकिन अब वे उन्हीं कठिन हालात का सामना कर रहे हैं, जिनकी वो रिपोर्टिंग कर रहे हैं.''

ग़ज़ा सिटी में बीबीसी के लिए काम कर रहे एक वरिष्ठ पत्रकार अपनी मां, बहनों और दो से 16 वर्ष की उम्र के पांच बच्चों की देखभाल कर रहे हैं,

वो कहते हैं "मुझे हर समय थकान और चक्कर महसूस होता है. मैं कई बार ज़मीन पर गिर जाता हूं. पिछले 21 महीनों में मेरा वजन 30 किलो कम हो गया है.''

वो "पहले मैं तेज़ी से रिपोर्ट तैयार कर लेता था, लेकिन अब अपनी खराब सेहत और मानसिक स्थिति के कारण मैं बहुत धीमा हो गया हूं. हर समय भ्रम और थकावट महसूस होती है."

दक्षिणी ग़ज़ा में काम कर रहे बीबीसी के कैमरामैन ने कहा "मैं कैसा महसूस कर रहा हूं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता. मेरे पेट में मरोड़ उठते हैं. सिर में दर्द रहता है और शरीर कमजोर हो गया है. शरीर बिल्कुल सूख गया है. पहले मैं सुबह सात बजे से रात दस बजे तक लगातार काम करता था, लेकिन अब मुश्किल से एक स्टोरी कर पाता हूं. हमेशा चक्कर सा आता है."

हाल ही में वह शूटिंग के दौरान बेहोश हो गए थे, लेकिन फिर उठकर काम करने लगे.

पहले जिन लोगों को बाहर से वेतन मिलता था, वे ऊंची कीमत पर बाजार से कुछ सामान खरीद सकते थे. लेकिन अब स्थानीय बाजार भी लगभग खाली हो चुके हैं.

ग़ज़ा में काम करने वाले पत्रकार और चार बच्चों के पिता, कहते हैं, "अब मैं चैरिटी किचन से खाना ले रहा हूं. मेरे बच्चे दिन में सिर्फ एक बार खाना खा पा रहे हैं. जैसे दाल, चावल या पास्ता."

दो पत्रकारों ने बताया कि उन्होंने भूख दबाने के लिए नमक मिला पानी पीना शुरू कर दिया है.

एक ने कहा कि कभी-कभी वह 50 ग्राम का बिस्किट खरीदते हैं, जो उन्हें 30 शेकेल (नौ डॉलर या 6.60 पाउंड) में मिलता है.

पैसे निकालना भी एक जटिल प्रक्रिया बन गया है. अब यह मनी मर्चेंट्स के ज़रिए होता है.

एक कैमरामैन कहते हैं, "अगर मुझे कैश चाहिए होता है तो वो मिलता नहीं है. जब मिलता है तो उस पर 45 फ़ीसदी कमीशन देना पड़ता है. मतलब अगर मैं 1,000 डॉलर निकालूं, तो मुझे सिर्फ 550 डॉलर मिलते हैं. यह पूरी प्रक्रिया थका देने वाली है और अब तो सभी दुकानदार कैश ही मांगते हैं."

बीबीसी के लिए दक्षिणी ग़ज़ा में काम करने वाले पत्रकार कहते हैं, "बैंक बंद होने की वजह से कैश ट्रांसफर भी एक परेशान करने वाली प्रक्रिया बन गया है.''

पहले इसराइल से मान्यता प्राप्त बीबीसी के पत्रकार ग़ज़ा की यात्रा कर सकते थे. युद्ध के दौरान भी वो ऐसा कर सकते थे.

लेकिन 7 अक्टूबर 2023 को युद्ध शुरू होने के बाद से इसराइल और मिस्र (जब रफ़ाह क्रॉसिंग खुला था) ने विदेशी पत्रकारों को ग़ज़ा में स्वतंत्र रूप से जाने से रोक दिया है.

केवल इसराइली सेना के साथ सीमित एम्बेड के जरिए ही रिपोर्टिंग हो रही है.

बीबीसी और दूसरे न्यूज़ संगठनों ने फिर से अपील की है कि पत्रकारों को ग़ज़ा आने-जाने की अनुमति दी जाए.

बीबीसी के एक सहयोगी ने कहा " इस वक्त पूरी तरह तबाही है. भूख हर घर में पहुंच चुकी है. यह जैसे मौत की सज़ा है, जिसे अभी टाल दिया गया है."

संयुक्त राष्ट्र की फ़लस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) ने कहा है कि ग़ज़ा सिटी में हर पांच में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है और मामलों की संख्या हर दिन बढ़ रही है.

गुरुवार को जारी एक बयान में यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर-जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने अपने एक सहयोगी का हवाला देते हुए कहा, गज़ा के लोग न ज़िंदा हैं, न मरे हुए. वे चलती-फिरती लाशों की तरह हैं."

एक से अधिक अंतरराष्ट्रीय राहत संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने भी बड़े पैमाने पर भुखमरी की चेतावनी दी है और सरकारों से तत्काल कार्रवाई की अपील की है.

गज़ा में सभी सप्लाई की एंट्री को नियंत्रित करने वाले इसराइल का कहना है कि वहां कोई घेराबंदी नहीं है . ग़ज़ा में कुपोषण के मामलों के लिए वह हमास को ज़िम्मेदार ठहराता है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के मुताबिक़, पिछले दो महीनों में भोजन हासिल करने की कोशिश कर रहे एक हजार से अधिक फ़लस्तीनी, इसराइली हमलों में मारे जा चुके हैं.

इनमें से कम से कम 766 लोगों की मौत उन चार वितरण केंद्रों के आसपास हुई है, जिन्हें जीएचफ़ संचालित करता है.

इसके अलावा 288 लोगों की मौत संयुक्त राष्ट्र और अन्य सहायता केंद्रों के पास हुई है.

जीएचएफ़ का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र ग़ज़ा के हमास-नियंत्रित स्वास्थ्य मंत्रालय के "झूठे" आंकड़ों का इस्तेमाल कर रहा है. (bbc.com/hindi)


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