अंतरराष्ट्रीय

ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने क़ानून में 'महिला' की परिभाषा को लेकर चल रहे विवाद में फ़ैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा है कि 'महिला' की क़ानूनी परिभाषा 'जैविक लिंग' यानी 'बायलॉजिकल सेक्स' पर आधारित है.
ये फ़ैसला स्कॉटिश सरकार और महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले ग्रुप 'फॉर विमेन स्कॉटलैंड' के बीच लंबे समय से चल रही क़ानूनी लड़ाई के बाद आया है.
जजों ने 'फॉर वीमेन स्कॉटलैंड' ग्रुप का पक्ष लिया, जिसने स्कॉटिश सरकार के ख़िलाफ़ मामला दायर किया था. इस ग्रुप का तर्क था कि लिंग-आधारित सुरक्षा केवल उन लोगों पर लागू होनी चाहिए, जो महिला के रूप में पैदा हुए हैं.
वहीं स्कॉटिश सरकार ने अदालत में तर्क दिया था कि जेंडर रिकॉग्निशन सर्टिफिकेट (जीआरसी) यानी लिंग पहचान प्रमाणपत्र वाले ट्रांसजेंडर्स भी लिंग-आधारित सुरक्षा के हक़दार हैं.
जीआरसी एक क़ानूनी डॉक्यूमेंट है, जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से यूके और कुछ अन्य देशों में किया जाता है. ये सर्टिफिकेट इस बात की पुष्टि करता है कि किसी व्यक्ति की कानूनी लिंग पहचान (जेंडर आइडेंटिटी), जन्म के समय उसे दी गई लिंग पहचान से अलग है.
ये क़ानूनी लड़ाई साल 2018 में शुरू हुई थी, जब स्कॉटिश संसद ने जेंडर बैलेंस को लेकर एक विधेयक पारित किया था. 'फॉर वीमेन स्कॉटलैंड' ने शिकायत की थी कि इस क़ानून में ट्रांसजेंडर लोगों को भी शामिल किया गया है, जो कि नहीं होना चाहिए.
ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट को समानता अधिनियम 2010 की उचित व्याख्या पर निर्णय लेना था.
16 अप्रैल को अपना फ़ैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि यूके के समानता अधिनियम 2010 में 'महिला' और 'सेक्स (लिंग)' शब्द का मतलब 'बायलॉजिकल महिला' और 'बायलॉजिकल सेक्स' है.
इस ऐतिहासिक फ़ैसले में जजों ने कहा है कि यह किसी एक पक्ष की दूसरे पर जीत नहीं है और क़ानून अभी भी ट्रांसजेंडर लोगों को भेदभाव के ख़िलाफ़ संरक्षण देता है.(bbc.com/hindi)