अंतरराष्ट्रीय
-शुमाएला जाफ़री
इस्लामाबाद, 4 नवंबर । चीन के नेता के रूप में तीसरी बार शी जीनपिंग के चुने जाने के बाद, शहबाज़ शरीफ़ दुनिया के पहले ऐसे नेता हैं, जो चीन के दौरे पर पहुँचे हैं.
शरीफ़ के इस दौरे की वैसे तो प्रतीकात्मक अहमियत है. लेकिन, जानकारों का मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ असल में चीन इसलिए गए हैं, ताकि वो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के रुके हुए काम को दोबारा शुरू करा सकें.
उनके दो दिनों के चीन दौरे का एक बड़ा मक़सद, चीन से लिए क़र्ज़ को लौटाने में कुछ रियायत हासिल करना भी है.
शहबाज़ शरीफ़ और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के बाद जो बयान जारी किया गया, उसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को पूरा करने की रफ़्तार तेज़ करने और इसका विस्तार करने की मज़बूत इच्छाशक्ति जताई गई है.
सीपीईसी को चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का बेहद अहम पहलू माना जाता है. इसका मक़सद मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप से नए ज़मीनी और समुद्री संपर्क बढ़ाना है.
कई विश्लेषक इसे आज के दौर का 'सिल्क रोड' कहते हैं.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, असल में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़ी कई परियोजनाओं का गुलदस्ता है, जिसमें सड़कें, रेल लाइनें, बिजलीघर और औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करना शामिल है.
सीपीईसी की शुरुआत
इस परियोजना की कल्पना 2013 में की गई थी और इसकी औपचारिक शुरुआत 2015 में हुई थी. तब दोनों देशों के नेताओं ने इस विशाल परियोजना की शुरुआत के लिए 51 सहमति पत्रों पर दस्तख़त किए थे.
उस वक़्त, चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की लागत लगभग 46 अरब डॉलर आंकी गई थी. हालांकि अब इसमें कई नई परियोजनाएं जुड़ जाने से इसकी लागत 62 अरब डॉलर तक पहुँच गई है.
चीन का मक़सद है कि वो इस गलियारे के ज़रिए अपने पश्चिमी शिनजियांग सूबे को गिलगित-बल्तिस्तान से होते हुए, अरब सागर में स्थित पाकिस्तान के दक्षिणी बंदरगाह ग्वादर से जोड़ सके.
सीपीईसी को चीन और पाकिस्तान की दोस्ती का 'संग-ए-मील' और ख़ुद पाकिस्तान की नज़र में उसका कायाकल्प करने वाली परियोजना माना जाता है.
इस गलियारे के तहत जिन 100 से ज़्यादा परियोजनाओं की योजना बनाई गई है, उनमें से आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ 31 तो पूरी हो गई हैं, जबकि 27 परियोजनाओं पर अभी भी काम चल रहा है.
पहले चरण में सबसे ज़्यादा ज़ोर ऊर्जा और मूलभूत ढाँचे की परियोजनाएं पूरी करने पर था. वहीं दूसरे दौर में इस प्रोजेक्ट के ज़रिए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास किया जाना है. इस गलियारे के दूसरे चरण का काम काफ़ी धीमा चल रहा है.
ख़बरों के मुताबिक़ कुछ परियोजनाओं को वापस भी ले लिया गया है, हालाँकि इनके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है.
इस परियोजना से पाकिस्तान को बिजली की भारी क़िल्लत और मूलभूत ढाँचे की कमियों जैसी समस्याओं से पार पाने में काफ़ी मदद मिली है.
किन बातों पर सहमति बनी है?
पाकिस्तान के पीएम के बीजिंग पहुँचने से पहले ही चीन के सरकारी अंग्रेज़ी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने शहबाज़ शरीफ़ का एक लेख प्रकाशित किया था.
इस लेख में शरीफ़ ने लिखा था कि शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के आग़ाज़ के साथ ही, 'चीन और पाकिस्तान के रिश्तों के नए युग का आग़ाज़ हो गया है.' अब सवाल ये है कि शहबाज़ शरीफ़, क्या सिर्फ़ शी जिनपिंग को मुबारकबाद देने के लिए चीन के दौरे पर गए थे.
उनके दौरे का एजेंडा तो अलग ही कहानी कहता है.
शहबाज़ शरीफ़ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के बाद जारी बयान में कहा गया था कि दोनों नेताओं ने सीपीईसी को लेकर साझा प्रतिबद्धता जताई.
दोनों नेता इस बात पर भी सहमत थे कि ये परियोजना सामरिक रूप से काफ़ी अहम है.
इस बयान में ख़ास तौर से सीपीईसी से जुड़ी दो परियोजनाओं का ज़िक्र किया गया था और ये दावा किया गया था कि दोनों देशों के नेताओं ने एमलएल-1 ( ML-1) को जल्द से जल्द पूरा करने को लेकर अपने मज़बूत इरादे जताए.
कराची सर्कुलर रेलवे
दोनों नेताओं ने इस बात पर भी सहमति जताई थी कराची सर्कुलर रेलवे परियोजना शुरू करने से जुड़ी सभी ज़रूरी औपचारिकताएँ जल्द से जल्द पूरी की जाएँगीं.
एमएल (ML-1) यानी मेन लाइन वन, जिसे शरीफ़ के दौरे के बाद के साझा बयान में बेहद महत्वपूर्ण परियोजना कहा गया था, वो असल में कराची और पेशावर के बीच 1733 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन को अपग्रेड करने की परियोजना है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ये सीपीईसी की सबसे बड़ी परियोजना है, जिसकी लागत छह अरब डॉलर से भी अधिक है. इतनी अधिक लागत होने के चलते, पिछले पाँच साल से ये परियोजना हरी झंडी मिलने का इंतज़ार कर रही है.
वहीं, दूसरी तरफ़ कराची सर्कुलर रेलवे को पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में आवाजाही की दिक़्क़त दूर करने के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा है. इस परियोजना की लागत 1.9 अरब डॉलर आने का अनुमान है.
46 बिंदुओं वाले साझा बयान में आपसी रिश्तों के साथ साथ, कई क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का भी ज़िक्र था. साझा बयान में हर अहम क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की बात कही गई थी.
हालांकि, इस बयान में ग्वादर बंदरगाह को सीपीईसी का सबसे अहम प्रोजेक्ट बताते हुए कहा गया था कि, 'ये अलग-अलग क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी बनाने वाला बेहद महत्वपूर्ण ठिकाना है.'
दोनों नेताओं ने इस बंदरगाह के विकास के लिए चलाई जा रही सभी परियोजनाओं में तेज़ी लाने पर भी सहमति जताई.
इस यात्रा के दौरान, शी जिनपिंग और शहबाज़ शरीफ़ ने अफ़ग़ानिस्तान में भी अपनी साझा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर रज़ामंदी जताई.
पाकिस्तान में चीन की मदद से चल रही परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूंजी मुहैया कराने और अमेरिकी डॉलर वाली पेचीदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से बचने के लिए, चीन और पाकिस्तान ने चीन की करेंसी में लेन देन के एक समझौते पर भी दस्तख़त किए.
पाकिस्तान में भुगतान की व्यवस्था का केंद्र स्थापित करने का मतलब ये भी है कि अब पाकिस्तान को चीन से कारोबार करने के लिए अपने बेशक़ीमती डॉलर भंडार को ख़र्च नहीं करना पड़ेगा.
चीन के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान में बाढ़ के बाद राहत और पुनर्वास की कोशिशों में मदद के लिए 6.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त राहत पैकेज का भी एलान किया.
सीपीईसी की रफ़्तार धीमी क्यों पड़ गई?
शहबाज़ शरीफ़ के चीन दौरे से ठीक पहले साझा सहयोग समिति की 11वीं बैठक हुई.
ये समिति सीपीईसी से जुड़े फ़ैसले लेने का अहम मंच है, जिसकी वर्चुअल बैठक, शरीफ़ के दौरे की ज़मीन तैयार करने के लिए हुई थी. इस बैठक में दोनों देश अभी चल रही परियोजनाओं में तेज़ी लाने और नई परियोजनाओं पर काम शुरू करने पर सहमत हुए थे.
चीन के नागरिकों और निर्माण में काम कर रहे मज़दूरों पर पाकिस्तान में हुए हमलों के चलते चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विकास की रफ़्तार धीमी हो गई है.
आतंकवादी और ख़ास तौर से दक्षिणी पश्चिमी बलोचिस्तान सूबे के उग्रवादी, चीन के हितों और उसके नागरिकों को निशाना बनाते रहे हैं. इन हमलावरों ने चीन को बार-बार इन परियोजनाओं से बाज़ आने और पाकिस्तान से चले जाने या फिर अंजाम भुगतने की धमकियां दी हैं.
इसी साल अप्रैल में एक महिला फिदाइन ने चीन के तीन नागरिकों की जान ले ली थी. जिसके बाद चीन को पूरे पाकिस्तान में मैंडेरिन पढ़ाने वाले अध्यापकों को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा था.
इससे पाकिस्तान की फौज पर भी दबाव काफ़ी बढ़ गया था. 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के आग़ाज़ के वक़्त, पाकिस्तान की फ़ौज ने सीपीईसी की सुरक्षा की गारंटी ली थी.
कोविड और लचर अर्थव्यवस्था
सीपीईसी की रफ़्तार धीमी होने में कोविड-19 महामारी और पाकिस्तान में सियासी और आर्थिक उठा-पटक ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की सरकार, पाकिस्तान में तेज़ी से बदल रहे हालात को सशंकित नज़रों से देख रही है.
पहले भी क़र्ज़ लौटा पाने में पाकिस्तान की नाकामी के चलते, चीन के निवेशक नई परियोजनाएं शुरू करने को लेकर आना-कानी कर रहे हैं और ख़ुद चीन में आर्थिक सुस्ती के चलते भी गलियारे से जुड़ी परियोजनाओं पर काम धीमा हो गया है.
कुछ विश्लेषकों की राय में 2018 में इमरान ख़ान के सत्ता में आने के बाद से सीपीईसी की रफ़्तार ख़ास तौर से धीमी हो गई.
इमरान ख़ान को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने के नाम पर हुकूमत हासिल हुई थी और वो सीपीईसी से जुड़े ऐसे कई प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की कमी का सवाल उठा रहे थे, जो उनके पहले के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के राज में शुरू हुई थीं.
नवाज़ और सीपीईसी कनेक्शन
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चूंकि 2015 में नवाज़ शरीफ़ की सरकार ने ये परियोजना शुरू की थी, इसीलिए चीन के अधिकारियों और नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML-N) के बीच इस परियोजना को लेकर रिश्ते अधिक सहज रहे हैं.
हो सकता है कि शहबाज़ शरीफ़ के हुकूमत में आने के बाद से परियोजनाओं को पूरा करने में तेज़ी आई हो.
विल्सन सेंटर के दक्षिण एशिया के निदेशक माइकल कुगेलमैन का मानना है कि मौजूदा सरकार इन परियोजनाओं की पारदर्शिता को लेकर वैसे सवाल नहीं करेगी, जैसे इमरान ख़ान की हुकूमत उठाती थी. ये वो सवाल थे, जो चीन की सरकार को पसंद नहीं आते थे.
पाकिस्तान और चीन, दोनों ही परियोजना लागू करने में सुस्ती की बात से इनकार करते हैं. इसे ग़लत जानकारी का प्रचार कहते हैं. लेकिन दोनों ही देश ये मानते हैं कि शहबाज़ शरीफ़ के दौरे से परियोजना में नई जान आएगी.
पाकिस्तान क़र्ज़ में रियायत क्यों मांग रहा है?
हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ के दो दिनों के चीन दौरे के बाद जो साझा बयान जारी किया गया था, उसमें चीन को क़र्ज़ लौटाने की मियाद में बदलाव या किसी तरह की रियायत का कोई ज़िक्र नहीं था.
लेकिन, चीन के सरकारी मीडिया ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक बयान का ज़िक्र ज़रूर किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को उसकी माली हालत सुधारने में चीन लगातार मदद करता रहेगा.
विश्लेषकों का मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ के इस दौरे में चीन से वित्तीय मदद मांगने का एजेंडा प्रमुख था क्योंकि क़र्ज़ के भारी बोझ और ख़तरनाक स्तर तक कम हो चुके विदेशी मुद्रा भंडार के चलते, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है.
पहले भी चीन ने पाकिस्तान को कई बार आर्थिक संकट से उबारा है. हालांकि, आलोचकों के मुताबिक़, पाकिस्तान की लगातार बढ़ती आर्थिक मुश्किलों की बड़ी वजह ख़ुद सीपीईसी ही है.
आलोचक कहते हैं कि इस परियोजना ने पहले ही नक़दी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के इर्द-गिर्द क़र्ज़ का एक और जाल बुन डाला है और उसकी लंबे समय से चली आ रही वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाने का काम ही किया है.
पाकिस्तान के चीनी कर्ज़ के जाल में फंसने के आरोप?
इस साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें ये बात सामने आई थी कि पाकिस्तान पर लदे विदेशी क़र्ज़ का 30 फ़ीसदी तो अकेले चीन का ही लोन है, इसमें चीन के सरकारी बैंकों का दिया हुआ क़र्ज़ शामिल है.
पाकिस्तान पर क़र्ज़ के बोझ में चीन के बैंकों की हिस्सेदारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के ऋण से भी अधिक है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था, जितनी बड़ी तादाद में पाकिस्तान ने चीन से क़र्ज़ लिया हुआ है, उसी के चलते जब भी भुगतान का संकट होता है, तो चीन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरह ही पाकिस्तान की मदद करके उसे आर्थिक रूप से संभलने में मदद करता है.
विदेशी क़र्ज़ के भुगतान के लिए और लोन देता है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन, पाकिस्तान के क़र्ज़ लौटाने की मियाद को अक्सर बढ़ाता रहता है.
सीपीईसी के उलट, चीन की बिजली कंपनियों ने पाकिस्तान में 12 बिजलीघर बनाए हैं.
पाकिस्तान पर इन कंपनियों का एक अरब डॉलर से ज़्यादा का उधार बाक़ी है. कुछ हफ़्ते पहले, पाकिस्तान की सरकार ने स्वतंत्र बिजली ख़रीदारों (IPPs) को पैसे का भुगतान करने की बात कही थी और ये एलान भी किया था कि वो इन कंपनियों को नियमित रूप से भुगतान के लिए एक मासिक प्रक्रिया तय करेगा.
पहले चरण में पाकिस्तान ने चार बिजली ख़रीदारों (IPP) को दिवालिया होने से बचाने के लिए 20 करोड़ डॉलर के भुगतान का वादा किया था. हालांकि ये रक़म क़र्ज़ के समंदर में महज़ एक बूंद है.
और ये पहली बार नहीं था जब पाकिस्तान ने उधार लौटाने की मियाद पर पैसा नहीं दिया. ऐसा कई बार हो चुका है. यही वजह है कि चीन के निवेशक कोई नई परियोजना शुरू करने में हिचकिचा रहे हैं. रिज़वान शेख़ और चिएन-काई चेन ने 'चीन के क़र्ज़ के जाल में फंसा पाकिस्तान?' नाम से एक रिपोर्ट तैयार की है.
इसमें सीपीईसी की एक परियोजना की केस स्टडी में कहा गया था कि पाकिस्तान के कमज़ोर आर्थिक सूचकांक ये बताते हैं कि वो क़र्ज़ का समय पर भुगतान कर पाने में नाकाम रहेगा. क्योंकि चीन ने जो क़र्ज़ पाकिस्तान को दिए हैं, उनकी ब्याज दर बहुत ज़्यादा है.
शहबाज़ का दौरा क्यों अहम?
हालांकि, चीन की नज़र में पाकिस्तान की भू-सामरिक अहमियत काफ़ी अधिक है. दोनों देशों के रिश्ते सिर्फ़ व्यापार तक सीमित नहीं हैं.
इसीलिए, अगर पाकिस्तान, चीन के निवेश से क़र्ज़ के जाल में फ़ंसता है, तो ये ख़ुद चीन के लिए फ़ायदे का सौदा नहीं होगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के बाद से चीन के साथ पाकिस्तान के ऊर्जा संबंधी सौदों पर भी आईएमएफ की कड़ी नज़र है.
पाकिस्तान ने मुद्रा कोष को भरोसा दिया है कि वो स्वतंत्र बिजली ख़रीदारों (आईपीपी) को क़र्ज़ लौटाने की मियाद बढ़ाकर उनसे ब्याज दरों और क़र्ज़ में कुछ छूट की मांग भी करेगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और चीन के बीच तालमेल बनाए रखना, पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है. इस नज़रिए से भी शहबाज़ शरीफ़ का चीन दौरा काफ़ी अहम था.
इससे भारत को क्या फ़र्क़ पड़ता है?
भारत, चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध करता है और इस परियोजना को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ मानता है.
ये बात हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान, विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान से भी ज़ाहिर हुई थी. इस बैठक में जयशंकर ने कहा था कि कनेक्टिविटी की परियोजनाओं को किसी भी सदस्य देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए.
भारत के विदेश मंत्री परोक्ष रूप से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का ही ज़िक्र कर रहे थे. भारत के अलावा, चीन और पाकिस्तान भी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ ) के सदस्य हैं.
चूंकि भारत गिलगित-बल्तिस्तान पर अपना दावा करता है और चूंकि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा उस इलाक़े से होकर गुज़रता है, इसीलिए भारत उसका विरोध करता है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जयशंकर में अपने बयान में जिस तरह इस परियोजना का दबे-ढँके शब्दों में ज़िक्र किया, उसका मक़सद पाकिस्तान और चीन को ये याद दिलाना था कि भारत इसका विरोध करता रहेगा.
हालांकि, भारत का विरोध भी, चीन और पाकिस्तान को इस परियोजना का दायरा बढ़ाकर अन्य क्षेत्रीय देशों जैसे अफ़ग़ानिस्तान को शामिल किए जाने के एलान से रोक नहीं सका. (bbc.com/hindi)