दुर्ग

परमात्मा को जानने से पहले स्वयं को जानना जरूरी-ई. वी. गिरीश
25-Dec-2025 7:52 PM
परमात्मा को जानने से पहले स्वयं को जानना जरूरी-ई. वी. गिरीश

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 25 दिसंबर।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय आनंद सरोवर बघेरा वाह जिंदगी वाह  कार्यक्रम के चौथे दिन परम सत्ता का ज्ञान विषय पर बोलते हुए प्रोफेसर ब्रह्माकुमार ई. वी. गिरीश ने कहा कि परमात्मा के विषय में अनेक प्रकार की गलतफहमी लोगों के अंदर है। आपने सभा से पूछा की क्या परमात्मा कैंसर को ठीक करेगा? और दूसरा प्रश्न आपने पूछा कि क्या परमात्मा कैंसर को ठीक कर सकता है? तो कुछ लोगों ने हां और कुछ लोगों ने ना में जवाब दिया। आपने नहीं बताया कि भगवान हमारी कोई भी बीमारी को ठीक नहीं कर सकता अगर भगवान सब की बीमारी ठीक कर देता है तो इतने सारे अस्पताल इतने सारे डॉक्टर की जरूरत नहीं पड़ती। परमात्मा या ईश्वर आपको शांति शक्ति प्रेम संबल दे सकता है जिससे आपकी बीमारी ठीक हो सकती है, क्योंकि परमात्मा गुना एवं शक्तियों का भंडार है।
ईश्वर के विषय में अनेक प्रकार की मान्यताएं हैं विश्वास है पर ईश्वर की सत्य स्वरूप का ज्ञान केवल ईश्वर को ही है और वहीं आकर के स्वयं की सत्य परिचय देते हैं। सत्य सबके लिए समान होता है और सत्य सार्वभौमिक है हम स्वयं के बारे में भी गलत तथ्य और गलत मानता रखते हैं दुख का कारण कसरत के आधार पर जिंदगी है सत्य अविनाशी होता है जिसमें किसी के लिए भी किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता अंतर नहीं होता। परमात्मा को जानने से पहले स्वयं को जानना जरूरी है जब हम खुद को जान पाएंगे तभी हम खुद को जान सकते हैं। जैसे मोबाइल में सिम कार्ड होता है वैसे ही शरीर में भी एक सिम कार्ड है जिसे हम आत्मा कहते हैं। जब तक शरीर में आत्मा होती है तब तक शरीर रेस्पॉन्ड करता है लेकिन जैसे ही शरीर से आत्मा निकल गए आप उन्हें अपमानित करो गाली दो गुस्सा करो लेकिन हमें वह कोई रिस्पांस नहीं करेगा। आत्मा अजर अमर अविनाशी है आत्मा की मृत्यु नहीं होती केवल डे का अंत होता है जैसे हम प्रतिदिन साफ सुथरा कपड़ा स्त्री करके इत्र लगाकर पहनते हैं और खुश होते हैं वैसे ही आत्मा पुराने शरीर का त्याग कर नए शरीर को धारण करती है। आत्मा शरीर को चलने वाली एक एनर्जी है जब तक शरीर में आत्मा है तभी तक शरीर के सभी अंग काम करते हैं, लेकिन जैसे ही आत्मा शरीर से बाहर निकल गई तो वह सारे अंग काम करना छोड़ देते हैं।

यद्यपि उन अंगों को किसी दूसरे के शरीर में लगा दिया जाए तो उसे शरीर में वह काम करने लगते हैं जैसे किसी ने नेत्रदान किया हो किडनी दान की हो शरीर के किसी भी अंग को दान किया हो तो वह अंग दूसरे के शरीर में यथावत काम करने लगता है। इससे यह पता चलता है की शरीर को चलने वाली कोई एनर्जी है उसे ही हम आत्मा कहते हैं और हम सभी यह शरीर नहीं बल्कि इसे चलाने वाली चैतन्य शक्ति है आत्मा है एक लिटिल स्टार है जो इस संसार से परे एक दुनिया जिसे परमधाम कहते हैं वहां से आई हुई है।
कोई भी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी कोई प्रोडक्ट बनता है तो उन उसे प्रोडक्ट के साथ उसे ऑपरेट करने का मैनुअल भी देता है और हम उसे मैनुअल के अनुसार ही उसे प्रोडक्ट को ऑपरेट करते हैं मेंटेनेंस करते हैं। लेकिन हमारे जीवन रूपी प्रोडक्ट का मैन्युअल कहां है। ईश्वर ने हमें जिंदगी के साथ उन्हें जीने का एक मैन्युअल दिया है जिसे ही हम आध्यात्मिकता कहते हैं। आध्यात्मिकता रूपी जीवन जीने का मैनुअल है दो संबंध के प्रति हमारा ध्यान आकर्षित करवाता है पहले स्वयं का स्वयं से संबंध और दूसरा है स्वयं का परमात्मा से संबंध हम स्वयं स्वयं का मित्र बने जैसे एक दोस्त आपके प्रति सहानुभूति रखता है प्यार करता है मदद करता है वैसे ही हम स्वयं के प्रति मित्र भाव रखें सेल्फ रिस्पेक्ट सेल्फ एस्टीम सेल्फ कॉन्फिडेंस रखें तो जीवन आसान हो जाएगा। जनरली देखा गया है कि व्यक्ति स्वयं ही स्वयं को क्रिटिसाइज करता है। खुद ही खुद को मन ही मैन कोसता है और दुखी होता है। स्वयं ही स्वयं का दोस्त बने प्यार से मां को समझाएं तो मन खुशियों से भर जाएगा।
      दूसरा है परमात्मा से संबंध। जितना हमारा परमात्मा से संबंध गहरा होता जाएगा हमारे जीवन सुख, शांति, प्रेम, आनंद आदि से भरपूर हो जाएगा। हमें किसी से प्रेम शांति खुशी मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि परमात्मा सुख शांति आनंद प्रेम का मुख्य स्रोत है। हमें सब कुछ परमात्मा से प्राप्त करना है और सारे संसार को प्रेम शांति दया करना सहानुभूति बंटनी है तो जिंदगी वाह वाह हो जाएगा। 25 दिसंबर को वाह जिंदगी वाह शिविर का अंतिम दिन है। शिविर में सम्मिलित होने के लिए बायपास रोड से आने वाले नगर वासियों को सडक़ निर्माण कार्य के कारण असुविधा हो रही थी उसे अब दुरुस्त कर दिया है। अब आप बाईपास से भी आनंद सरोवर बघेरा आ सकते हैं।


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