बेमेतरा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 15 सितंबर। पोला पर्व आंचल में पारंपरिक रूप से मनाया गया। पोला के दिन किसानों ने अपने बैलों को धोकर एवं सजा कर उसकी पूजा अर्चना की। साथ घरों में बैलों के प्रतिरूप में मिट्टी से बने नंदिया बैल, पोला,चुकिया व जाता को पाठ में रखकर पूजा अर्चना की। फिर बच्चों ने नदिया बैलों को खींचकर खेल का आनंद लिया। गुरुवार को किसान अपने-अपने बैलों को सजाकर रामधुनी के साथ पोरा स्थल पर ले गए और मौके पर हुई बैल दौड़ में हिस्सा लिया।
ज्ञात हो कि तीजा मनाने के लिए मायके पहुंची बेटियों ने गुरूवार को जिला मुख्यालय में बांधा तालाब के किनारे पिकरी में पोरा पाटकर त्यैाहर मनाया। पोला पटकने के स्थान पर महिलाओं से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया। महिलाओं ने कुसी दौड़, फुगड़ी और कबड्डी में भी भाग लिया। पोरा स्थल पर पिकरी समेत वार्डों में रामधुनी मंडली द्वारा राम नाम संकीर्तन कर भोजली विसर्जन किया गया। वार्ड नंबर एक, दो, पिकरी व बेमेतरा में धूमधाम से पोला त्यौहार मनाया गया। लोगों ने एक-दूसरे को गुलाल का टीका लगाया।
मानपुर व अन्य वार्ड का भोजली विसर्जित हुआ
मानपुर पारा से कन्या भोजली रखकर विसर्जन के लिए पिकरी तालाब पहुंचीं। इस अवसर पर जिला मानस संघ अध्यक्ष अनिल रजक, नगर पालिका उपाध्यक्ष पंचू साहू, कोमल यादव, अशोक साहू, तारण वर्मा, बनवाली साहू, संतोष साहू, उमाशंकर साहू, सूरज वर्मा, अजय वर्मा, धरमू वर्मा, गोपी वर्मा, योगेश साहू, खेलन साहू, प्रियंक वर्मा, तुलसी निर्मलकर, प्रेम वर्मा, सुनिता रजक, चिम्मनलाल आदि उपस्थित थे।
पोला पर्व अंचल में पारंपरिक रूप से मनाया गया। पोला के दिन किसानों ने अपने बैलों को धोकर एवं सजाकर उनकी पूजा अर्चना की। साथ ही घरों में बैलों के प्रतिरुप में मिट्टी से बने नंदिया बैल, पोला, चुकिया व जांता को पाट में रखकर पूजा अर्चना की। फि र बच्चों ने नंदिया बैलों को खींचकर खेल का आनंद लिया। गुरूवार को किसान अपने अपने बैलों को सजाकर रामधुनी के साथ पोरा स्थल पर ले गए और मौके पर हुई बैल दौड़ में हिस्सा लिया।
खेती-किसानी से जुड़े औजार की पूजा की परंपरा
डॉ.अशोक सारथी ने बताया कि त्यौहार में खेती किसानी से जुड़े औजार या दैनिक जीवन में उपयेाग की जाने वाली वस्तुओं की पूजा करने की परंपरा रही है। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि कण-कण में भगवान रहते हैं। गांव में किसानों एवं माता बहनें खेती की निंदाई गुड़ाई का काम पूरा कर विश्राम के लिए मायका पहुंचती हैं।
बेटियों का त्यौहार कहा जाता है
कमरछठ के 8 दिन बाद मनाए जाने वाले पोला त्यौहार में ससुराल जा चुकी बेटियां अपने मायके तीजा पोला मनाने जरुर पहुंचती हैं। विवेक शर्मा ने बताया कि बेटियों एवं बहनों को तीजा पोला में मायके से लेने आने वालों का इंतजार रहता है।
ठेठरी-खुरमी बनाया गया
तीजा पोला पर हर घर में ठेठरी खुरमी बनाई गई। प्रत्येक घरों में बेसन से बनी ठेठरी व गेहूं व मैंदा से बने खुरमी का छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध व्यंजन बनाया गया है।