बेमेतरा

महिलाओं ने हासिल किए राजनीति में बेहतर मुकाम
08-Mar-2021 4:47 PM
महिलाओं ने हासिल किए राजनीति में बेहतर मुकाम

युद्ध हथियार से नहीं हौसले से लड़ा जाता है

आशीष मिश्रा

बेमेतरा, 8 मार्च (‘छत्तीसगढ़’)।  विधानसभा में महिला नेतृत्व को धकेलने की चलन जमाने से है ,सत्यता तो यह है कि यदि आरक्षण न हो तो महिलाओं को सरपंच न बनने दे।  विधानसभा के कुछ महिलाओं ने अपने दम पर मुकाम हासिल कर यह साबित कर दिया कि युद्ध हथियार से नहीं हौसले से लड़ा जाता है।   

राजनीतिक दिशा बदलने में सक्षम 
विधानसभा की राजनीतिक दिशा बदलने  में सक्षम महिलाओं में  जिला पंचायत सदस्य प्रज्ञा निर्वाणी एक है, जिन्हें त्रिस्तरीय पंचायत का खासा अनुभव है।  निर्वाणी  के बढ़ते प्रभाव से आहत लोगों ने राजनीतिक ग्राफ गिराने का हर सम्भव प्रयास किया पर सफलता की राह बनती गई। राजनीति समाज सेवा है, आवाज है गरीबों की यह साबित करते हुए इस जिला पंचायत सदस्य ने एक दशक से कम समय मे  एक शतक से अधिक समाजिक सरोकार के कार्य किया। पति डॉ. सौरभ निर्वाणी, कुशल, उदार,रणनीतिकार है जो  विरोधियों को फील्ड में घूमने मजबूर कर देते हैं। सास प्रभा निर्वाणी  नगर  पालिका बेमेतरा की अध्यक्ष रही ,ससुर पेशे से वकील है, घर राजनीति का किताब की जगह पूरी लाइब्रेरी है।   जिसका असर नवागढ़ विधानसभा के  बालसमुंद से केबाछी तक दिखाई दे रहा है। 

टिकट नहीं मिलने पर भी जीता निर्दलीय चुनाव
विधानसभा में इन दिनों जिला पंचायत सदस्य सुशीला जोशी के सितारे बुलंदियों पर है, राजनीति में स्नातकोत्तर जोशी चर्चा में उस समय आई जब बतौर मुर्रा सरपँच  तत्कालीन मंत्री दयालदास बघेल के खिलाफ सडक़ की लड़ाई लड़ी। पुरुष दावेदारों के मुकाबले जोशी ने  जमकर विरोध किया। सत्ता परिवर्तन के बाद जोशी के बढ़ते प्रभाव को रोकने का  प्रयास किया गया।  जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने टिकट नहीं  दी। सत्ता के तमाम चतुर खिलाड़ी जोशी को राजनीति से बाहर करने पूरी तैयारी के साथ लड़े, पर जनता की अदालत का फैसला आया और बतौर निर्दलीय चुनाव जीतकर साबित कर दिया कि सत्ता जागीर नहीं ,जनता गुलाम नहीं। 

पिता की विरासत को संभाल रहीं शशि
पूर्व मंत्री डेरहु प्रसाद घृतलहरे की पुत्री जिला पंचायत सदस्य शशि प्रभा गायकवाड़, करीब एक दशक से नवागढ़ विधानसभा की राजनीति में सक्रिय हैं।  पिता की राजनीतिक विरासत सम्हालने की लालसा लिए पूरे विधानसभा की गलियां छान चुकी शशि ने सक्रियता बरकरार रखी है।  विधानसभा टिकट की दावेदारी करने वाली इस जिला पंचायत का प्रभाव कम नहीं है, यदि पिता की राह पकड़ी तो दिग्गजों को जमीन नजर आ जाएगा। बेमेतरा में बैठकर नवागढ़ पर नजर रखने वाली इस महिला नेत्री को नेतृत्व विरासत में मिला है।

बालकुमारी की पकड़ है मजबूत
नवागढ़ विधानसभा के दाढ़ी क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य बनी बालकुमारी  धु्रव की राजनीतिक लगाव यह बताता है कि वे दीर्घकालिक राजनीति के पक्षधर हैं, अन्य जिला पंचायत सदस्यों की तरह इनका भी प्रभाव कम करने का प्रयास जारी है पर सेमरिया से झालम तक आदिवासी बाहुल्य ग्राम है जो परिणाम  प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है। 

कम समय में मिली अधिक लोकप्रियता 
रसोई से सीधे राजनीति में आई जिला पंचायत सदस्य बनी बिंदिया अश्वनी मिरे ने कम समय मे अधिक लोकप्रियता हासिल की है। पद मिलने के बाद मतदाताओं को भूलकर आराम करने वाले जनप्रतिनिधियों को आईना दिखाने का काम मिरे ने किया है।  मिरे ने राजनीति में नई शुरुआत यह की है कि लोगों को जनप्रतिनिधियों के दरवाजे जाने की जगह जनप्रतिनिधि खुद मतदाता के दरवाजे जाए, सूखा , बाढ़, अकाल , बीमारी, महामारी, जन्मोत्सव, मेला, खेल, सुख हो दुख मिरे अपने मतदाता के घर तक दस्तक देती है, जिला पंचायत में मुखर हैं।  शिक्षक पति का निलंबन स्वीकार किया पर सत्ता का रोटी नहीं कबूला। 

सामाजिक बुराई के खिलाफ महिलाओं को खड़ाकर बदली गांव की सूरत 
समाज सेवा के लिए जरूरी नहीं की राजनीति का झंडा हो, हौसले के डंडे से भी बाहुबलियों को घर में कैद होना पड़ता हैं, विषम परिस्थितियों के बाद नवागढ़ विधानसभा में सामाजिक बुराई के खिलाफ महिला कमांडो का गठन कर नवागढ़ निवासी शबीना खान ने महिलाओं में एक नई समाजिक चेतना जागृत किया।  पूरे ब्लाक में अवैध शराब , शराबियों के हुड़दंग के खिलाफ महिलाओं को डंडा व टार्च पकड़ाया ,नतीजा सफल रहा। 

शाम को शीशी से गुलजार गली में सन्नाटा पसरा, पियक्कड़ ढीले पड़ गए, इस अभियान को दूसरा बड़ा लाभ स्वच्छता में मिला  जब सडक़ व गली चलने लायक हुई। शबीना के साथ चली महिलाएं यही नहीं रुकी, गाँव मे टीम बनाकर स्वच्छता अभियान को गति दिया, कोरोना संकट में जनसेवा की मिसाल बनी। स्वरोजगार से घर परिवार चलाने में सहयोगी है , स्वसहायता समूह बनाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सफल है। नवागढ़ ब्लाक की महिलाओं का पैरा आर्ट राज्य की सीमा से आगे निकल चुकी है। जनसेवा व स्वालम्बन में आगे ब्लाक की इन महिलाओ को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
 


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