बेमेतरा

नवागढ़ में हाफ नदी तक फैल रही गुड़ की महक
24-Dec-2023 3:23 PM
नवागढ़ में हाफ नदी तक फैल रही गुड़ की महक

जिले के गुड़ को आज तक अपना ब्रांड नहीं मिल सका

आशीष मिश्रा

बेमेतरा, 24 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।  जिले में इन दिनों किसान गुड़ बनाने में जुट गए हैं, नवागढ़ ब्लॉक में हाफ नदी का तट गुड़ की सोंधी महक से गुलजार है।

कृषि विभाग के आंकड़े में बेमेतरा ब्लॉक में 647 हेक्टेयर, साजा में 245 हेक्टेयर, नवागढ़ ब्लॉक में 323 हेक्टेयर एवं बेरला ब्लॉक में 236 हेक्टेयर रकबे में किसानों ने गन्ना की खेती की है। कुल 1451 हेक्टेयर रकबे में हुए गन्ना से यदि किसान गुड़ का कारोबार करते हैं तो यह पचास करोड़ के आसपास का कारोबार होगा। प्रति एकड़ 40 से 50 क्विंटल तक गुड़ बनता है जो बाजार में 34 से 36 सौ रुपए के आसपास बिक रहा है।

प्रति एकड़ मिलने वाले लाभ का आधे से अधिक का खर्च तय है, बंधाई ,कटाई, पानी के लिए बिजली, कोल्हू के लिए बिजली, मजदूरी पर खर्च करने के बाद किसानों को जो मिलता है वह है केवल मिठास।

 हाफ नदी के तट पर ग्राम जेवरा एन में स्थानीय किसान हरिराम साहू एवम हरियाणवी किसान गुड़ बनाने में जुटे हैं तो ग्राम धनगांव में इन दिनों एक दर्जन से अधिक कोल्हू गुड़ बनाने गन्ने की पेराई कर रहे हैं।

 धनगांव में, विमल सोनी, विजय तिवारी,  दीपक तिवारी, विजय पांडे, कौशल साहू सहित गन्ना की खेती करने वाले किसान गुड़ बनाने दिन रात ठंड में पसीना बहा रहे है। गुड़ कारोबार ने जिले में दो दशक की यात्रा पूर्ण कर ली है। जिले के गुड़ को अब तक अपना ब्रांड नहीं मिल सका है। इस जिले के किसान तत्कालीन जोगी सरकार के खिलाफ कोर्ट जाकर गुड़ बनाना शुरू किए, जो अब तक जारी है।

 गुड़ बनाने के लिए आज भी यूपी-हरियाणा से एक्सपर्ट आते हैं। राज्य में इस कारोबार के लिए कुशल श्रमिकों की कमी है जिसके चलते किसानों की मोटी रकम बाहरी मजदूरों के जेब में चला जाता है, गन्ना उत्पादक किसानों को राज्य सरकार से आजतक उचित प्रोत्साहन नहीं मिला, जिसके चलते अब किसानों की रुचि घटते क्रम में है। स्थानीय स्तर पर कोई खुली मंडी नही होने से किसान खुले बाजार में गुड़ बेचने मजबूर हैं।

धान का रुझान बढ़ा

कभी इस जिले में दो अरब का सफेद सोना यानी सोयाबीन की खेती होती थी, जो धीरे-धीरे समाप्त हो गई, चने की खेती को भी ऐसा ग्रहण लगा की अब रकबा सिमट गया, धान का रुझान ऐसा बढ़ा कि अब ग्रीष्मकालीन रकबा जिले में 40 हजार एकड़ को पार कर गया है। इस वर्ष इसमें वृद्धि संभावित है, गंभीर जलसंकट वाले इस जिले में ग्रीष्मकालीन धान का रकबा बढऩा चिंताजनक है। यदि यही स्थिति रही तो गन्ना की खेती के साथ वही होगा जो सोयाबीन के साथ हुआ।


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