बेमेतरा
मंदिर का निर्माण छ: मासी की रात में हुआ
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 17 अक्टूबर। जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर ग्राम रांका की पुरानी बस्ती के अंतिम छोर में जमीन से प्रकट हुई कुल देवी के नाम से प्रसिद्ध मां महामाया लोगों की मुराद पूरी कर आनंद और खुशियां बरसा रही हैं। यह स्थान महज धार्मिक महत्व ही नहीं वरन आस्था का केंद्र भी बन चुका है, जो रांका को एक नई पहचान दे रही है। लोग बताते हैं कि मंदिर में आने वाला भक्त कभी खाली हाथ वापस नहीं जाता।
मां महामाया के दुर्लभ दर्शन ग्रामीणों को हुए
बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के स्थान में पहले जंगल था। एक दिन गांव का एक भैंस उस जंगल में चारे की तलाश में गया था। भैंस वापस डीह गांव पहुंचा तो उसके शरीर में चीला (खाई का अवशेष कीचड़) लगा हुआ था। गांव के लोग भैंस के शरीर में कीचड़ देख हैरान हो गए और जंगल की खोज शुरू की। तालाब के किनारे झाडिय़ों से घिरी खंडहर नुमा मंदिर में मां महामाया के दुर्लभ दर्शन ग्रामीणों को हुए किन्तु इससे गांव वाले अनजान थे। एक दिन अचानक गांव में बाढ़ आई।
गांव के एक व्यक्ति को माता ने सपने में कहा कि बाढ़ में डूब जाउंगी, मेरी प्राण प्रतिष्ठा करवा दो। ग्रामीणों के सहयोग से मां महामाया की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई। इसी दिन से लोगों में माता की आस्था बढ़ती चली गई।
माता की मूर्ति हो गई तिरछी
ग्रामीण नरेश साहू ने बताया कि मां महामाया की मूर्ति उत्तर दिशा की ओर थी। भक्तजनों के सहयोग से मां की आंखों को सोने से बनवाया गया था, जिसे चोरी कर लिया गया। चोर जिस दिशा में मां के सोने के नयन को चोरी कर भागा था, उसी दिशा में मां की मूर्ति तिरछी हो गयी है, जो आज भी वैसी ही है। धीरे-धीरे भक्तों के सहयोग से साल 2000 में मंदिर को विशाल रूप देकर छत का निर्माण किया गया। एक कक्ष में ज्योति कलश की स्थापना की जाती है। वहीं बगल में भगवान राम, शिव व दूसरी मंजिल में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की गई है।
मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में हुआ
मां महामाया मंदिर का निर्माण छ:मासी रात में हुई, जो 14 वीं शताब्दी की मानी जाती है। मंदिर किनारे राजा महाराजा इसी जगह पर ठहरते थे। अब मंदिर से लेकर एक किमी तक करीब 8 हजार की संख्या में गांव की बसाहट हो गई है। छ: मासी रात में निर्मित मंदिर को विशाल पत्थर से कारीगरों ने विशेष आकृतियों से तराश कर बनाया है। मंदिर के गर्भगृह में मां महामाया की मूर्ति है।
बलि प्रथा हुई बंद
बैगा सनत ने बताया कि प्राचीन काल में लोग मनोकामना पूर्ण होने पर पड़वा, भेड़ी की बलि देते थे। पड़वा प्रथा बंद हुई तो लोग बकरे की बलि देने लगे। किन्तु समय के साथ लोगों में जागरूकता आई और वर्तमान में बलि प्रथा पूरी तरह बंद हो गई है। केवल श्वेत प्रथा से माता रानी की आराधना की जाती है। अधिकांश भक्त संतान सुख प्राप्ति और परिवार में सुख, शांति व समृद्धि के लिए मन्नतें मांगने मां के दरबार में दर्शन करने पहुंचते है। माता रानी की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो रही है।


