बेमेतरा

अनुमति के बाद भी पुरातत्व मंदिरों के आसपास अब तक खुदाई शुरू नहीं
27-Dec-2022 3:34 PM
अनुमति के बाद भी पुरातत्व मंदिरों के आसपास अब तक खुदाई शुरू नहीं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा,27 दिसंबर।
शताब्दियों पूर्व के पुरातत्व महत्ता को देखते हुए केन्द्र से खुदाई के लिए अनुमति मिलने के बाद भी आज तक इस गांव में गर्भ में छुपे प्राचीनता को सामने लाने का प्रयास नहीं किया गया है। ग्राम जौंग के गर्भ में छुपा हुआ इतिहास खुदाई के बाद जिले के साथ-साथ पूरे प्रदेश की प्राचीनता को समझने व जानने के लिए मददगार साबित हो सकता है। बताना होगा कि जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर ग्राम जौंग अपने मंदिर के अनूठे रंग की वजह से ख्याति प्राप्त है।
शिवनाथ नदी के तट पर बसे गांव 11 वीं शताब्दी के दैारान फण नागवंशी कालीन का प्राचीन मंदिर व प्रतिमाओ शिलालेख के परिपूर्ण है। जानकर बताते है मंदिर का निर्माण करीब 7 सौ साल पुराना है। मंदिर का जीर्णोद्धार का चुना का प्रयोग कुछ साल पहले किया जाना शुरू किया गया है। गांव के दौलत राम साहू ने बताया कि मंदिर के आसपास अनेक पुरात्व महत्व वाली प्रतिमाएं है। प्रांगण में अनेक समाज द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया है।
मंदिर के आसपास तालाब खुदाई में निकलती हैं प्रतिमाएं व शिलालेख 
गांव के सरपंच छोटू क्षत्रिय के अनुसार गांव में जब तालाब की खुदाई किया गया था जिसमें काला पत्थर से बनी मूर्ति मिला था जिसे तत्कालीन दुर्ग जिला प्रशासन को सौंपा गया था इसके अलावा कई मूर्तियां भी मिली थी जिसे सुरक्षित तरीके से मंदिर परिसर में रखवाया गया था। सदियों पुरानी इतिहास को समेटे इस मंदिर के रखरखाव व प्राचीन महत्व के संपदा के संरक्षण के लिए अब तक किसी तरह का सरकारी प्रयास नहीं किया गया है। ग्रामीणों द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था साथ ही देखरेख भी किया जाता है। जानकार मानतेे हैं कि स्थल के संरक्षण के लिए प्रशासन को सामने आना होगा जिससे जिले की महत्वपूर्ण संपदा बना रहे हैं।
साल में तीन बार शिवलिंग 
का स्वरूप बदलता है 
बारिश के दिनों में काला चिकना व स्लेटी होता है। ठंड में काले रंग का होता है। गर्मियों में भूरा रंग व खुरदुरा व दरारे नजर आता है। इस तरह साल में तीन बार शिवलिंग के स्वरूप में परिवर्तित होते रहता है जिसके कारण भी मंदिर को प्रसिद्धी मिली है।
 मंदिर के करीब नहीं बन सका कक्ष, 
सुरक्षा जरूरी
 पुरात्व महत्व को देखते हुए फरवरी 2016 के दैारान पुराने मंदिर के आसपास के करीब 2 किमी के परिधि में पुरात्व संबंधी खुदाई के लिये राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिया जा चुका है। खुदाई के लिए आदेश हुए सात साल बित जाने के बाद भी आज तक फंड के अभाव में खुदाई का कार्य प्रारभ नहीं हो पाया है। कक्ष के अभाव में कई वर्ष से मंदिर व आसपास में रखे हुऐ शिलालेख व प्रतिमाओं का शासन ने सुध नहीं लिया है। बारामासी मौसम में खुले आसमान के नीचे पूरा धरोहर रखा हुआ है। कई प्रतिमाए आधे जमीन में धस चुका है। ग्राम जौग में खुदाई के दौरान निकले शिलालेख को बचाने के लिए एक कक्ष बनाया जाना था जो कागज में ही है। पुरातत्व मामले के जानकार अरूण शर्मा व टीम द्वारा 7 साल पूर्व विश्लेषण किया गया। टीम में शामिल रहे भानू सोनी मानते हैं इस गांव के साथ प्रदेश का प्राचीनता छुपा हुआ है। खुदाई होने पर अनेक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएगा जिससे जिले को भी नई पहचान मिल सकेगा।

 


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