फ़ैसल मोहम्मद अली
हवा में लकड़ी के जलने की तेज़ गंध कई सप्ताह बीत जाने के बाद भी मौजूद है. थोड़ा और क़रीब जाने पर एक गुंबदनुमा ढाँचा दिखता है, पीले फ़ीते से घिरा हुआ, जिस पर काले रंग से लिखा है, क्राइम सीन, डू नॉट क्रॉस.
यहीं ‘नाबालिग़ सुगंधा को कथित सामूहिक बलात्कार के बाद ईंट पकाने वाले भट्ठे में ज़िंदा जला देने का आरोप है.
सुगंधा के चचेरे भाई किशन कहते हैं, ''हम जब दूसरी बार खेत पर गए तो वहां मौजूद पाँच में से एक भट्टी जल रही थी, मगर वो पूरी तरह से बंद भी नहीं थी, जैसा कि लकड़ी से कोयला तैयार करते वक़्त किया जाता है. लकड़ी के साथ कुछ दूसरी तरह की गंध भी हमें आ रही थी. मेरे छोटे भाई ने लकड़ी का एक डंडा भट्टी में डाला तो हड्डी का एक टुकड़ा निकला, दूसरी बार में कंगन बाहर आ गया.
छोटी बहन को चांदी का वो कंगन किशन के परिवार ने ही दिया था.
पुलिस उप-अधीक्षक श्याम सुंदर कहते हैं, ग्यारह अभियुक्तों ने भट्ठे से लड़की के शरीर को बाहर निकालकर फ़ावड़े से टुकड़े-टुकड़े किए और उसे प्लास्टिक की एक बोरी में भरकर घटनास्थल से एक से डेढ़ किलोमीटर दूर पानी से भरी एक जगह के पास फेंक दिया.
पुलिस ने दो महिलाओं समेत ग्यारह लोगों के ख़िलाफ़ चार्टशीट दाखिल की है.
बलात्कार की चार हज़ार से अधिक घटनाएँ

सुगंधा का मामला बलात्कार के उन चार हज़ार से अधिक मामलों में से एक है, जो साल 2023 में अगस्त तक राजस्थान में दर्ज किए गए हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़े के अनुसार, राजस्थान में साल 2020 में सबसे अधिक बलात्कार के पुलिस केस दर्ज हुए.
राज्य सरकार, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ वकील मानते हैं कि बलात्कार के बढ़ते दिख रहे मामले दरअसल, पुलिस केस दर्ज होने में आसानी का नतीजा हैं.
लेकिन बहुत सारे लोग और राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर अशोक गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.
मणिपुर में जारी हिंसा पर काफ़ी विलंब के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बयान दिया तो उसमें भी उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का ज़िक्र किया था क्योंकि ये कांग्रेस शासित प्रदेश हैं जबकि मणिपुर में बीजेपी सत्ता में है.
प्रधानमंत्री ने कहा, “मणिपुर की घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है. सभी मुख्यमंत्रियों को अपने यहाँ क़ानून व्यवस्था को बेहतर करना चाहिए. ख़ास तौर पर महिला सुरक्षा को लेकर. घटना चाहे राजस्थान की हो, घटना चाहे छत्तीसगढ़ की हो, घटना चाहे मणिपुर की हो.”
महिला अधिकार के लिए काम करने वाले कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि मणिपुर में हिंसा रोकने में बीजेपी की सरकार की नाकामी छिपाने के लिए महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों का राजनीतिकरण किया जा रहा है.
क्या राजस्थान में सचमुच बुरे हालात हैं?

राजस्थान के दूर-दराज के इलाकों में हालात और भी खराब
पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव कहती हैं, "मुझे लगता है, ये चुनाव का वक़्त है, नरेंद्र मोदी मणिपुर में औरतों के ख़िलाफ़ अपराध की राजस्थान से तुलना कर रहे हैं. मणिपुर में जो हो रहा है, वो राज्य समर्थित जातीय हिंसा है. ऐसे मामलों में महिलाओं के शरीर का राजनीतिक-सामाजिक इस्तेमाल किया जाता है. आप मणिपुर में हर प्रकार की हिंसा रोकी जानी चाहिए, वहाँ हर तरह की हिंसा जारी है. चुनाव प्रचार के लिए कोई भी कुतर्क न कीजिए. राजस्थान में एक दूसरे तरह का अपराध है."
उत्तर प्रदेश के बीजेपी से जुड़े नेताओं चिन्मयानंद और बृजभूषण शरण सिंह के मामलों की भी सामाजिक कार्यकर्ता याद दिलाते हैं, जिन्हें कथित तौर पर बचाने की कोशिशें हुई हैं.
कांग्रेस के कार्यकर्ता तर्क देते हैं कि राजस्थान में बलात्कार का आरोप झेल रहे किसी व्यक्ति को सरकार या पार्टी बचाने की कोशिश नहीं कर रही है.
बीजेपी की तरफ़ से एक दावा ये भी किया गया था कि राजस्थान में महिलाओं के ख़िलाफ़ कुल अपराध सबसे ज़्यादा होते हैं. हालांकि आंकड़े बताते हैं कि ऐसे अपराधों के मामले उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा हैं.
राजस्थान में बलात्कार या महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में अचानक ही बढ़ोतरी नहीं हुई है. अगर साल 2015 से मौजूद आंकड़ों पर ही नज़र डालें तो इन अपराधों में राजस्थान भारत के कुछ राज्यों के साथ थोड़ा आगे या थोड़ा पीछे रहा है.

हालांकि जनसंख्या के आधार पर अपराधों की संख्या प्रति लाख के हिसाब से देखने पर राजस्थान का नाम असम, हरियाणा और दूसरे कई राज्यों की तुलना में बहुत नीचे आता है.
राज्य के पुलिस प्रमुख उमेश मिश्रा का कहना है कि बलात्कार और दूसरे महिला विरोधी अपराधों के मामलों में एफ़आईआर दर्ज करवाने की प्रक्रिया को बेहद आसान कर दिया गया है, जिसके कारण ऐसे मामलों की तादाद बढ़ गई है.
उमेश मिश्रा कहते हैं, “हम प्रारंभिक जांच करके एफ़आईआर दर्ज नहीं करते हैं बल्कि मामला दर्ज होने के बाद जांच करते हैं और फिर नतीजों के आधार पर पर आगे की कार्रवाई की जाती हैं.”
बलात्कार कितने झूठे मामले?

रेप के 45% मामले झूठे पाए जाते हैं- राजस्थान पुलिस
पुलिस प्रमुख कहते हैं कि सरकार को इस बात का आभास रहा है कि पंजीकरण में आसानी होने से मामलों की तादाद बढ़ेगी.
कविता श्रीवास्तव कहती हैं, “अधिक मामले दर्ज होने का एक सकारात्मक पहलू भी है, ज़्यादातर औरतों के बीच ज़ुल्म न सहने को लेकर जागरूकता आ रही है और उसके ख़िलाफ़ न्याय व्यवस्था की तरफ़ क़दम उठाने को वे एक विकल्प के तौर पर देखने लगी हैं. अगर पुलिस केस दर्ज कराने की प्रक्रिया को और आसान किया जाएगा तो और अधिक महिलाएं शिकायत लेकर सामने आएँगी.”
मगर राजस्थान पुलिस का ये भी कहना है कि बलात्कार के मामलों में तक़रीबन 45 फ़ीसदी मामले झूठे पाए जाते हैं.

विधानसभा में विपक्षी दल के नेता राजेंद्र सिंह राठौर सवाल करते हैं कि अगर झूठे केस दर्ज हो रहे हैं तो उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है जो लोग ऐसा कर रहे हैं? सरकार हमें आधा दर्जन भी वैसे केस दिखा दें जहाँ मामला झूठा था और कार्रवाई की गई.
राज्य के पुलिस प्रमुख उमेश मिश्रा कहते हैं, "महिला बयान नहीं देना चाहती है. केस दर्ज करवाने के बाद बयान देने से बचती है, अगर देती भी है तो कई बार दबाव में अभियुक्त के पक्ष में देती है तो उसमें पुलिस की क्या ग़लती है, वो झूठे बयान लिखने से तो रही.”
बलात्कार और महिलाओं के विरूद्ध अपराध के मामलों में ख़ुद कांग्रेस नेताओं के बयानों ने विवाद खड़े किए हैं

सियासी विवाद के बीच पीड़ित परिवार को इंसाफ का इंतज़ार
कांग्रेस से निलंबित नेता राजेंद्र गुढ़ा ने मणिपुर पर सदन में बहस के दौरान कह दिया कि दूसरों पर उंगली उठाने से पहले हमें अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए.
वहीं मंत्रिमंडल में वरिष्ठ नेता शांति धारीवाल पहले बयान दे चुके हैं कि ये मर्दों का प्रदेश है.
इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के विरुद्ध महिला अपराध के मुद्दे पर आक्रमकता जारी रखी है.
पिछले सप्ताह भी चित्तौड़गढ़ की एक रैली में कहा, "इस सरकार ने राजस्थान को बर्बाद कर डाला है, और जब भी वो राज्य में महिला अपराध के बारे में सुनते हैं विचलित हो जाते हैं."
कितना आसान मुक़दमा दर्ज कराना?
बलात्कार के सभी मामलों में एफ़आईआर दर्ज कर पाना हालांकि अब भी उतना आसान नहीं.
बलात्कार पीड़िता सीमा ने हमसे बताया कि उसके मामले में पुलिस वालों ने उस पर और उसके परिवार पर झूठा मामला चलाने का आरोप लगाया था. साथ ही, पैसे लेकर सुलह करने की सलाह भी दी थी.
सीमा कहती हैं, "पुलिस ने हमको धमकाया भी था कि ये लोग छूटकर आ गए हैं, अब वो लोग बाहर हैं और हम पर दोबारा हमला कर सकते हैं."
सीमा का मामला साल 2020 के मध्य में सामने आया था हालांकि पुलिस केस के अनुसार नाबालिग़ सीमा से डेढ़ साल तक बलात्कार का सिलसिला जारी रहा था.
इस मामले दर्जन भर लोगों ने, जिसमें उसके रिश्ते के चाचा और शिक्षक शामिल थे, उसका नग्न विडियो बनाया गया और फिर उसे वायरल करने की धमकी देकर बलात्कार जारी रहा. घटना के समय वो महज़ 11 या 12 साल की थी.
समाज का रवैया नहीं बदला है
नाबालिग़ों के लिए तैयार यौन शोषण क़ानून में ज़मानत का प्रावधान नहीं है. एक ओर जहां अभियुक्त खुलेआम घूम रहे हैं, वहीं सीमा के परिवार का हुक्क़ा-पानी गांव के बहुत से लोगों ने बंद कर रखा है.
सीमा की माँ राधा कहती हैं कि लोग उनका गेहूँ पीसने से मना कर देते हैं, खेतों में काम करने के लिए नहीं बुलाते, कई लोग कहते हैं कि उनके परिवार को गांव से निकाल देना चाहिए.
राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाड कुमारी जैन चार सितंबर 1987 के रूपकंवर सती कांड का उदाहरण देती हैं और कहती हैं, "36 साल हो गए मगर तबसे लेकर अभी तक मानसिक और सामाजिक बदलाव न के बराबर हुआ है. पितृसत्ता और सामंतवादी सोच का आज भी बोलबाला है."
रूपकंवर को पति की चिता पर ज़िंदा जला दिया गया था. हालांकि सति का महिमामंडन अपराध है लेकिन 'चुनरी महोत्सव' के नाम से राजस्थान में दर्जनों सती मंदिरों में कार्यक्रम का आयोजन आज भी होता है.
लाड कुमारी जैन कहती है कि दोनों मुख्य राजनीतिक दलों और दूसरी पार्टियों में इस तरह के लोग हैं जो इन प्रथाओं के पूरी तरह विरुद्ध नहीं हैं और ये सब कम्युनिटी के मामलों को लेकर एक हो जाते हैं.
युवा अभियुक्तों के मामले
इस साल अगस्त माह तक राज्य पुलिस के मुताबिक़ बलात्कार के 4756 मामले दर्ज हो चुके हैं. पिछले साल इसकी तादाद 7093 थी.
जयपुर स्थित सरकारी वकील ललिता मेहरवाल बताती हैं कि हाल के सालों में कम उम्र के लड़कों के विरुद्ध सेक्स अपराध के मामलों के दर्ज होने की संख्या तेज़ी से बढ़ी है, जिसकी एक वजह वो क़ानून है जो अव्यस्कों के साथ यौन अपराध को लेकर है.
ललिता मेहरवाल कहती हैं, "बहुत सारे मामलों में कम उम्र के लड़के और लड़कियों या किसी मर्द के बीच संबंध स्थापित हो जाते हैं लेकिन चूंकि क़ानून में सेक्स के लिए सहमति की उम्र अठारह साल है तो पकड़े जाने पर लड़कियां अक्सर ज़बरदस्ती का आरोप लगा देती हैं, बहुत बार ये परिवार के दबाव में किया जाता है."
पूर्व जज और हाई कोर्ट के सीनियर वकील एके जैन कहते हैं कि राजस्थान में भी दूसरे राज्यों की तरह न्याय व्यवस्था सुस्त है.
एके जैन अपने एक मुअक्किल का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उन्होंने बलात्कार के एक मामले में उसे पंद्रह साल पहले ज़मानत दिलवाई थी लेकिन वो मामला आज तक दोबारा सुनवाई के लिए नहीं आ पाया है.
कुछ महीनों में होने वाले चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक रैलियां तेज़ हो गई हैं और राजनीतिक संदेश भी जनता तक पहुंच रहे हैं लेकिन फिर भी महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध या बलात्कार बड़ा मुद्दा बनता नज़र नहीं आ रहा है, जनता से पूछने पर ही इसका ज़िक्र करती है.
वैसे भी सच्चाई यही है कि हाल के सालों में दिल्ली के निर्भया कांड के अलावा शायद ही महिला के ख़िलाफ़ अपराध बड़े रूप मे कहीं चुनावी मुद्दा बना है. (bbc.com)