चंदन कुमार जजवाड़े
बिहार की सियासत में ललन सिंह बीते कई दिनों से सियासी चर्चा के केंद्र में हैं.
ललन सिंह जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वो फ़िलहाल बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से सांसद भी हैं.
मंगलवार को बिहार का सियासी पारा अचानक उस वक़्त चढ़ गया, जब ललन सिंह के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़े की ख़बरें न्यूज़ चैनलों पर दिखने लगीं. इस ख़बर का खंडन करने के लिए बिहार सरकार में मंत्री विजय चौधरी को सामने आना पड़ा.
विजय चौधरी ने पत्रकारों से कहा, “ऐसी ख़बर आप लोगों को भले ही मिल रही हो, लेकिन हम लोंगों या पार्टी कार्यालय को ऐसी सूचना नहीं है. अटकलें आपलोग ख़ुद पैदा करते हैं और मार देते हैं. जेडीयू में अंदरूनी खाई की बात छोड़ दीजिए, कोई खरोंच तक नहीं है.”
यानी विजय चौधरी ने ललन सिंह के इस्तीफ़े की ख़बर को मनगढंत और काल्पनिक बताया है. उनका कहना है कि बीजेपी नेता सुशील मोदी जेडीयू की बात इसलिए करते हैं कि उनको अपनी पार्टी में कोई नहीं पूछता है, वो पार्टी के किसी कार्यक्रम में नहीं दिखते हैं.
वहीं जब पत्रकारों ने अध्यक्ष पद पर ललन सिंह से सवाल पूछा तो वो एक तरह से ग़ुस्से में नज़र आए और कहा, “राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में क्या होता है, इस पर आपसे सलाह मशवरा कर लेंगे कि क्या करना है. आप सलाह दीजिए कि क्या करना है?”
दरअसल 29 दिसंबर को दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक प्रस्तावित है. उस बैठक में जेडीयू आने वाले लोकसभा चुनावों और साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी रणनीति पर भी विचार कर सकती है.
कौन हैं ललन सिंह
इससे पहले बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने दावा किया था कि लालू प्रसाद यादव से निकटता की वजह से ललन सिंह को जेडीयू के अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है.
नीतीश कुमार पर एक बार फिर से यह आरोप लगाया जा रहा है कि उनकी पार्टी में न तो नंबर दो पर कोई टिक पाता है और न ही उनको चुनौती देने वाला.
इसके लिए कभी जॉर्ज फ़र्नांडिस और शरद यादव का नाम गिनाया जाता है तो कभी प्रशांत किशोर, आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं का.
ललन सिंह का असली नाम राजीव रंजन सिंह है. वो राजनीति में ललन सिंह के नाम से मशहूर हैं. जुलाई 2021 में जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. वो पहले जेडीयू के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
इससे पहले साल 2021 में जब आरसीपी सिंह पर पार्टी ने आरोप लगाया था कि पार्टी अध्यक्ष होते हुए उन्होंने केंद्र में अपने लिए मंत्री पद ले लिया, तब आरसीपी सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. उसके बाद आरसीपी सिंह को पार्टी से भी हटना पड़ा था.
ललन सिंह को नीतीश कुमार के काफ़ी क़रीबी माना जाता है. ललन सिंह ने भी अपनी राजनीति की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी. वो बिहार के प्रभावी सवर्ण भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं.
जेपी आंदोलन और नीतीश के साथ क़रीबी
लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी की तरह ललन सिंह भी जेपी के छात्र आंदोलन से जुड़े हुए थे. साल 1970 के दशक में केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ नारा दिया था.
इस आंदोलन के बाद बिहार में कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे. उस समय ललन सिंह उनके क़रीबी माने जाते थे.
इसी दौरान ललन सिंह की नज़दीकी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं से भी हुई.
बाद में ललन सिंह नीतीश के क़रीब आ गए और उनके साथ ही रहे. जनता दल में टूट और जेडीयू बनने के दौरान भी ललन सिंह नीतीश के साथ ही थे.
हालाँकि साल 2009-10 में ललन सिंह और नीतीश कुमार के बीच दूरी भी बढ़ी और ललन सिंह पार्टी से भी दूर हो गए.
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “उस दौरान ललन सिंह कांग्रेस के लिए प्रचार भी कर रहे थे और माना जा रहा था कि वो कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. हालाँकि ऐसा नहीं हुआ और 2013 में वो पार्टी में वापस आए और सक्रिय हो गए.”
अगस्त 2022 में बिहार में नीतीश और लालू के साथ आने के पीछे भी ललन सिंह की बड़ी भूमिका मानी जाती है. उसी समय बिहार में दूसरी बार महागठबंधन की सरकार बनी थी, जिसमें कांग्रेस और वाम दल भी शामिल हैं.
संसद के भीतर भी ललन सिंह जेडीयू की सबसे अहम आवाज़ माने जाते हैं. हाल के समय में उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर कई बार तीखा हमला बोला है. ललन सिंह विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन की भी मज़बूती से पैरवी करते रहे हैं.
इस्तीफ़े की सच्चाई
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जेडीयू के अंदर इस तरह के फेरबदल की अटकलों को कई लोग बेबुनियाद मानते हैं. माना जाता है कि अगर पार्टी के अंदर इस तरह की खींचतान रही तो इससे चुनावों में जेडीयू का ही नुक़सान होगा.
राजनीतिक समीक्षक और पटना के एनएन सिंहा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं, “मेरा मानना है कि ललन सिंह के इस्तीफ़े की ख़बरों में कोई दम नहीं है. यह केवल बीजेपी की फैलाई ख़बर है ताकि बिहार सरकार और विपक्षी गठबंधन को कमज़ोर किया जा सके.”
इससे पहले बीजेपी के कई नेता बिहार में आरजेडी और जेडीयू को लेकर लगातार बयान देते रहे हैं. बीजेपी यह भी दावा करती रही है कि जेडीयू में बड़ी टूट हो सकती है और इसके नेताओं में भगदड़ मच सकती है.
दरअसल माना जाता है कि जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के एक साथ आने से कई सांसदों के मन में यह डर हो सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में गठबंधन के बीच सीटों के बँटवारे में उनका टिकट कट सकता है.
लेकिन यह बात एनडीए पर भी लागू होती है क्योंकि एनडीए में भी बीजेपी, एलजेपी के दो धड़ों, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी के बीच लोकसभा सीटों का बँटवारा होना है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीती थीं. इनमें बीजेपी 17, जेडीयू 16 और एलजेपी को 6 सीटें मिली थीं. लेकिन अभी एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने पर किसी को लोकसभा का टिकट मिलना निश्चित नहीं दिखता है.
डीएम दिवाकर के मुताबिक़, “बीजेपी ख़ुद से ज़्यादा लालू और नीतीश की बात करती है. यह नीतीश कुमार की सफलता है. उन्होंने बिहार में बीजेपी में ऐसा नेता उभरने नहीं दिया जो पार्टी का चेहरा बन सके. नीतीश की राजनीतिक समझ भी कहती है कि ललन सिंह को लेकर जो कुछ कहा जा रहा है उसमें ज़्यादा दम नहीं है.”
हालाँकि बिहार के सियासी गलियारों में ललन सिंह के इस्तीफ़े की ख़बरों के पीछे कुछ और वजह भी देखी जा रही है. दरअसल ललन सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और इस हैसियत से उन्हें ‘इंडिया’ की बैठक के अलावा पार्टी की बाक़ी ज़िम्मेदारियां भी संभालनी होती हैं.
क्या ललन सिंह ने खुद इस्तीफ़े की पेशकश की थी?
माना जाता है कि बीजेपी विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में हराने की पूरी कोशिश करेगी.
इस लिहाज से भी ललन सिंह के लिए अपनी मुंगेर की सीट पर ध्यान देना ज़रूरी होगा.
चर्चा यह भी है कि ललन सिंह को हराने के लिए बीजेपी यहाँ से केंद्रीय मंत्री और बड़े भूमिहार नेता माने जाने वाले गिरिराज सिंह को भी खड़ा कर सकती है.
नचिकेता नारायण कहते हैं, “हमें जो सूचना मिली है उसके मुताबिक़ पिछले हफ़्ते ही नीतीश कुमार के साथ एक मीटिंग के दौरान ललन सिंह ने ख़ुद को अध्यक्ष पद से मुक्त करने की बात कही थी, ताकि वो अपने लोकसभा क्षेत्र में समय दे सकें."
"लेकिन इससे नीतीश नाराज़ हो गए थे, क्योंकि लोकसभा चुनावों के ठीक पहले ऐसा करना ग़लत संदेश दे सकता है.”
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “ललन सिंह ने ख़ुद पद छोड़ने की बात की है, इसमें थोड़ी सच्चाई हो सकती है क्योंकि मुंगेर लोकसभा सीट का जातीय समीकरण भी बताता है कि ललन सिंह को इस सीट को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.”
मुंगेर सीट पर भूमिहार वोटरों का बड़ा असर माना जाता है. पिछली बार ललन सिंह भले ही जीते हों लेकिन उस वक़्त बीजेपी और नीतीश कुमार एक साथ थे.
जबकि इस सीट पर साल 2014 में सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हरा दिया था. उन चुनावों में नीतीश बीजेपी से अलग हो गए थे.
सोची समझी चाल?
बीजेपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि ललन सिंह लालू प्रसाद यादव के क़रीबी हो गए हैं, इसलिए नीतीश उनसे नाराज़ हैं. लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि ललन सिंह से लालू को कोई फ़ायदा नहीं होगा, बल्कि इससे नीतीश ही नाराज़ हो सकते हैं.
सुरूर अहमद के मुताबिक़ अगर ऐसा है तो यह लालू और नीतीश की सोची समझी चाल हो सकती है. ललन सिंह को आरजेडी के चुनाव चिह्न पर मुंगेर से चुनाव लड़ाया जाए, ताकि आरजेडी के सभी वोट पूरी तरह से ललन सिंह के पक्ष में जाएँ और उनकी जीत पक्की हो सके.
बिहार की सियासत में एक और चर्चा ज़ोरों पर है कि जातिगत जनगणना के आधार पर लोकसभा चुनावों में उतरने के लिए नीतीश ख़ुद पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं या रामनाथ ठाकुर को जेडीयू का अध्यक्ष बना सकते हैं.
रामनाथ ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं. वो लगातार दूसरी बार जेडीयू के राज्यसभा सांसद बने हैं. बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर को ‘जन नायक’ कहा जाता है और आज भी उन्हें राज्य की सियासत में पिछड़े वर्ग का बड़ा चेहरा माना जाता है.
इससे नीतीश कुमार को जातीय गणना के मुद्दे पर पिछड़े, दलितों और महादलितों के वोट को अपने पक्ष में करने में भी मदद मिल सकती है. लेकिन संभव है कि इस राजनीति में पार्टी का अध्यक्ष अगड़ी जाति का होना उनके दांव में फ़िट नहीं बैठ रहा हो.
बैठक में सीटों के बँटवारे पर चर्चा
हालाँकि वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी मानते हैं कि राजनीति से जुड़े लोगों को पूरी तरह कोई नहीं समझ सकता है. इन सब ख़बरों के पीछे ख़ुद नीतीश कुमार भी हो सकते हैं ताकि वो ख़ुद को विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाने के लिए कांग्रेस पर दबाव डाल सकें.
दरअसल विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए नीतीश कुमार ने ही पहल की थी और इसके लिए विपक्षी दलों की पहली बैठक भी बिहार की राजधानी पटना में हुई थी. इसलिए अगर बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन या कोई दल प्रभावित होता है तो इसका असर पूरे देश में पड़ सकता है.
इसी महीने यानी दिसंबर की 29 तारीख़ को जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एनई) और राष्ट्रीय परिषद (एनसी) की बैठक दिल्ली में होनी है. इसी दिन दिल्ली में ही कांग्रेस के साथ जेडीयू और आरजेडी की भी सीटों के बँटवारे पर बात होने की संभावना है.
जेडीयू के एक नेता ने नाम न लेने की शर्त पर बताया है कि आमतौर पर पार्टी की इस तरह की मीटिंग बहुत औपचारिक होती है, जिसमें हम सारा अधिकार अपने सर्वोच्च नेता को सौंप देते हैं कि वो पार्टी के हित में ख़ुद फ़ैसला करें.
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, “मेरी जानकारी में ललन सिंह इस्तीफ़ा दे चुके हैं. एनई की बैठक तो आम बात है लेकिन एनसी की बैठक विशेष स्थिति में बुलाई जाती है, जब कोई बड़ा फ़ैसला लेना हो. जैसे किसी बड़े चेहरे को पद पर लाना हो या किसी को हटाना हो.”
नीतीश की नाराज़गी?
कन्हैया भेलारी के मुताबिक़ यह सच है कि कुछ समय से नीतीश कुमार पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह से नाराज़ चल रहे हैं.
सुरूर अहमद का मानना है कि नीतीश कुमार को हाल के समय से कई बार नाराज़ होते देखा गया है, यह कई वजहों से हो सकता है. जैसे अंग्रेज़ी बोलने के मुद्दे पर हाल ही में वो ‘इंडिया’ की बैठक में नाराज़ हुए थे.
इसी साल अगस्त के महीने में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव के समर्थन में जेडीयू सांसद ललन सिंह ने काफ़ी तीख़े शब्दों में केंद्र सरकार पर हमला बोला था.
कन्हैया भेलारी कहते हैं, “उस दौरान ललन सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह पर भी काफ़ी तल्ख़ टिप्पणी की थी. नीतीश कुमार उसी समय से ललन सिंह के तेवर से नाराज़ चल रहे थे. इसके अलावा हाल के दिनों पर ललन सिंह पर लालू के क़रीबी होने का आरोप भी लग रहा है.”
ऐसी ख़बरों से जेडीयू के नेता असहज ज़रूर दिखते हैं, लेकिन इन बातों में कितना दम है यह शुक्रवार को दिल्ली में जेडीयू के बैठक के बाद स्पष्ट हो जाएगा. यह नीतीश कुमार की पार्टी की बात है जिन्हें सियासत बड़ा खिलाड़ी माना जाता है.
ऐसे में उनके हर कदम पर न केवल ‘इंडिया’ के सहयोगी दलों बल्कि एनडीए की भी नज़र होगी, क्योंकि विपक्षी गठबंधन बनने के बाद पटना विपक्ष की गतिविधियों का अहम केंद्र बना हुआ है. (bbc.com)