जातिगत जनगणना की घोषणा कर बीजेपी ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. लेकिन एक अरसे से इसका विरोध करने वाली बीजेपी ने आखिर क्या सोच कर अब यह फैसला लिया? जानिए विस्तार से.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
भारत सरकार ने 30 अप्रैल को घोषणा की कि वह देश में जातिगत जनगणना करवाएगी. सरकार द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति ने फैसला लिया है कि आगामी जनगणना में जातिवार गणना को शामिल किया जाएगा.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सितंबर 2024 में कहा था कि सरकार "बहुत जल्द" जनगणना की आधिकारिक घोषणा करेगी. गृह मंत्रालय ने फरवरी 2024 में संसद में एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि कोविड-19 महामारी की वजह से जनगणना और उससे संबंधित गतिविधियों को आगे बढ़ा दिया गया था.
बीजेपी का बदल गया रुख
हालांकि अभी किसी समयरेखा की घोषणा नहीं की गई है, जिससे यह पता चल सके कि जनगणना कब शुरू होगी, कब तक पूरी होगी और उसके नतीजे कब तक घोषित किए जाएंगे. जनगणना 2021 में ही होनी थी, लेकिन अभी तक नहीं हुई है. पिछली जनगणना 2011 में हुई थी.
इसलिए इस समय पहला बड़ा सवाल तो यही बना हुआ है कि जनगणना आखिर होगी कब. दूसरा सवाल है कि जातिगत जनगणना के विषय पर बीजेपी का रुख बदला कैसे? कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी पार्टियां जातिगत जनगणना कराने की मांग कई साल से उठा रही हैं लेकिन बीजेपी ने अभी तक इस मांग को लेकर सावधानी भरा रवैया अपनाया हुआ था.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अप्रैल 2024 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था, "हम जातिगत जनगणना कराने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस इसे करवा कर लोगों को विभाजित करना चाहती है." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातिगत जनगणना की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए दिसंबर 2023 में कहा था कि उनके लिए "गरीब, युवा, महिलाएं और किसान चार सबसे बड़ी जातियां हैं" और उनके उत्थान से ही देश का विकास होगा.
पार्टी के कई अन्य नेताओं ने भी बीते कुछ सालों में ऐसे ही बयान दिए हैं जिनमें जातिगत जनगणना की मांग को स्पष्ट रूप से ना तो ठुकराया है और ना ही उसका स्वागत किया है. ऐसे में सरकार ने अचानक इसे कराने के अपने इरादे की घोषणा कैसे कर दी?
अभी क्यों की गई घोषणा
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का अंदेशा है कि सबसे पहले तो इस घोषणा के लिए इस समय को इसलिए चुना गया ताकि मीडिया का ध्यान पहलगाम हमले और उसके बाद की गतिविधियों से हटाया जा सके. हमले को नौ दिन बीत चुके हैं और मीडिया कवरेज में लगातार यह सवाल उठाया जा रहा है कि मोदी सरकार इस हमले की प्रतिक्रिया में कोई कदम कब उठाएगी.
जब से जातिगत जनगणना की घोषणा की गई है तब से यह सवाल मीडिया रिपोर्टों से लगभग गायब हो गया है. राजनीतिक समीक्षक सुहास पल्शिकर ने एक्स पर लिखा कि यह "सिनिकल अजेंडा सेटिंग" का उद्दाहरण है जिसके तहत अब सबलोग पहलगाम हमले को भूल जाएंगे और "नए मास्टरस्ट्रोक पर कूद पड़ेंगे."
दूसरा कारण है बिहार चुनाव. कांग्रेस ने सबसे पहले आरजेडी के साथ मिलकर बिहार में जातिगत जनगणना का सवाल उठाया था. उस समय शुरू में बीजेपी इस जनगणना के खिलाफ थी. बाद में समर्थन दिया भी तो कई शर्तों के साथ.
जब बिहार वाली जनगणना का फैसला लिया गया था तब वहां कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की सरकार थी, जिस वजह से अब राज्य में विपक्ष में बैठीं कांग्रेस और आरजेडी बीते कुछ समय से यह कह रही हैं कि पिछड़ी जातियों की असली हितैषी वो हैं, ना कि एनडीए.