-विष्णु पोखरेल
ढाई साल पहले दो नेपाली नौजवानों को बुटवाल में पुराने राष्ट्रगान को गाने की वजह से पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. पुलिस ने उन पर 'अभद्रता के प्रदर्शन' का आरोप लगाया था.
इन दोनों ही नौजवानों की गिरफ़्तारी के बाद काठमांडू में उनके साथियों ने देश भर में पुराने राष्ट्रगान को गाने का अभियान शुरू करने की घोषणा की. ये नौजवान नेपाल में फिर से राजतंत्र और हिंदू राज की स्थापना की मांग कर रहे थे.
नौजवानों के इस समूह ने राजा ज्ञानेंद्र और महारानी कोमल की तस्वीर वाली टी-शर्ट भी लोगों के बीच में बांटनी शुरू की.
टी-शर्ट बांटने के दौरान वे पुराने राष्ट्रगान को भी गाते थे. नौजवानों के इस ग्रुप का नाम है 'वीर गोरखाली अभियान.'
कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी से असंतुष्ट नौजवानों ने इस अभियान की शुरुआत की थी.
टी-शर्ट बांटने और राष्ट्रगान गाने से आगे बढ़ते हुए राजतंत्र की मांग करने वाला यह अभियान अब विरोध-प्रदशर्नों की शक्ल लेने लगा है. देश भर में अब इसे लेकर आंदोलन खड़े होने लगे हैं.
कई गैर मान्यता प्राप्त पार्टियाँ इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. खास तौर पर बड़े शहरों में नौजवान मोटर बाइक पर रैलियाँ निकाल रहे हैं और 'राजा ही आकर देश को बचाएंगे' का नारा दे रहे हैं.
लोग अपनी इन गतिविधियों को सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर प्रचारित-प्रसारित करने में भी लगे हुए हैं.
हालांकि आंदोलन की शक्ल लेते इन विरोध प्रदर्शनों को लेकर लोकतंत्र समर्थकों का कहना है कि यह मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के अंसतोष की वजह से हैं. इसकी वजह से राजतंत्र की हिमायत करने वाले लोगों को मौका मिल गया है.

आंदोलन का नेतृत्व
देश के कई हिस्सों में चलने वाले ये विरोध-प्रदर्शन विभिन्न समूहों की ओर से आयोजित किए जा रहे हैं.
विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने वालों में से एक सौरभ भंडारी के मुताबिक हाल में हुए इन विरोध-प्रदर्शनों की 'वीर गोरखाली अभियान' के बैनर तले 8 सितंबर से शुरुआत हुई है.
उन्होंने बताया कि प्रशासन की ओर से इसे दबा देने की वजह से यह हमारे उम्मीदों के हिसाब से नहीं हो पाया और हमें कुछ समय के लिए अपना आंदोलन रोकना पड़ा.
लेकिन इसके बाद 30 अक्तूबर को बुटवाल में मोटर बाइक रैली के रूप में इसकी फिर से शुरुआत की गई.
माना जाता है कि उसमें बड़े पैमाने पर लोगों ने हिस्सा लिया था. इसके बाद से ही कई बैनरों के तले अब तक राजतंत्र की फिर से बहाली को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो चुके हैं.
इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व राष्ट्रवादी नागरिक समाज, नेपाल विद्वत् परिषद्, स्वतन्त्र देशभक्त नेपाली नागरिक, पश्चिमांचलबासी नेपाली जनता, नेपाल राष्ट्रवादी समूह, राष्ट्रिय शक्ति नेपाल, 2047 का संविधान पुनर्स्थापना अभियान जैसी संस्थाएँ कर रही हैं.
हालांकि सौरभ भंडारी का कहना है कि वीर गोरखाली अभियान के माध्यम से जिन नौजवानों को इकट्ठा किया जा रहा है वो इन सभी संगठनों के विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं.
राष्ट्रीय नागरिक आंदोलन की ओर से शनिवार को काठमांडू में विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया जबकि दूसरे ग्रुप्स ने देश के दूसरे हिस्सों में धरना-प्रदर्शन किया.
कोरोना वायरस महामारी को लेकर नेपाल की सरकार ने इन विरोध-प्रदर्शन के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी दी है. लेकिन सरकार की चेतावनी को अनसुना कर देश के कई हिस्सों में मोटर बाइक रैली और विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे है.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनके आंदोलन का कोई अकेला नेता नहीं है और न ही कोई एक ताक़त इसका नेतृत्व कर रही है.
'राष्ट्रिय नागरिक आन्दोलन' के को-ऑर्डिनेटर बालकृष्ण न्यौपाने कहते हैं, "यह नागरिकों की ओर से शुरू होने वाला तात्कालिक आंदोलन है. इसमें कोई नेता नहीं है. कल की तारीख़ में लोग इसके नेतृत्व का फ़ैसला करेंगे."
पत्रकार और लेखक युवराज गौतम नेपाल में राजतंत्र की ज़रूरत की वकालत करते हैं. वे कहते हैं, "इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है लेकिन एक नीति ज़रूर है इसलिए इससे कोई नेता निकल सकता है."

BISHNU POKHAREL / BBC
आंदोलनकारियों की मांग
आंदोलन में हिस्सा लेने वाले प्रदर्शकारी मुख्य तौर पर पुराने संविधान की बहाली की मांग कर रहे हैं. आंदोलन में शामिल सभी समूह राजतंत्र की फिर से बहाली को लेकर तो एकमत है लेकिन हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर उनके विचार अलग-अलग हैं. कुछ समूह जहाँ धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं वहीं कुछ हिंदू साम्राज्य की स्थापना चाहते हैं.
इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाला वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन हिंदू सम्राज्य की मांग कर रहा है.
वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन की इंटरनेशनल कमिटी की महासचिव अस्मिता भंडारी कहती हैं, "हम हिंदू साम्राज्य में यकीन रखते हैं. इसलिए हम इस आंदोलन का समर्थन और सहयोग कर रहे हैं."
'राष्ट्रिय नागरिक आन्दोलन' के को-ऑर्डिनेटर न्यौपाने कहते हैं कि नेपाल को हिंदू, बौद्ध और किरंत आधारित धार्मिक राज्य होना चाहिए.
वो कहते हैं, "हम इस बात को मानते हैं कि नेपाल को सिर्फ़ हिंदू राज्य नहीं बल्कि बौद्ध और किरंत धर्मों वाला भी होना चाहिए."

क्यों चाहते हैं राजतंत्र
पत्रकार युवराज गौतम का कहना है कि राजनीतिक दलों के द्वारा देश को बर्बाद किया जा रहा है. जो लोग एक मजबूत राष्ट्रवाद की जरूरत की वकालत करते हैं, वो इस आंदोलन के साथ जुड़ते हुए नज़र आ रहे हैं. वे एक मज़बूत विकल्प की तलाश कर रहे हैं.
वे कहते हैं कि नेपाल के युवा इस बात को लेकर काफ़ी नाराज़ हैं कि नेपाल राष्ट्र हित के नाम पर विदेशियों और नेताओं के हाथ की कठपुतली बनता जा रहा है.
वहीं दूसरी ओर प्रोफ़ेसर कृष्ण खनाल जैसे लोग लोकतंत्र के मज़बूत पैरोकार हैं. वे कहते हैं कि इस आंदोलन के प्रति युवाओं का आकर्षण मौजूदा सरकार के कामकाज के तरीकों की वजह से बढ़ रहा है.
वे कहते हैं कि सरकार लोगों की उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर पाई है.
वे कहते हैं, "सरकार की नाकामी और सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव इस आंदोलन के बढ़ने की वजह मालूम होती है."
वे राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के ऊपर भी संदेह जताते हैं कि इस आंदोलन के पीछे उनका हाथ है.
वे कहते हैं, "यह देखते हुए कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी कोई खास असर नहीं पैदा कर पा रही है ऐसा लगता है कि सिविल मूवमेंट के सहारे इसे करने की कोशिश की जा रही है."
लेकिन प्रदर्शनकारी इन आरोपों को ख़ारिज करते हैं.
न्यौपाने कहते हैं, "राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी की वजह से ही इस तरह के हालात पैदा हुए हैं और उन्होंने राजतंत्र को ख़त्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हमने कहा कि हर किसी की संपत्ति की जांच होनी चाहिए. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेताओं की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए."
बीबीसी से पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के निजी सचिव सागर तिमिलसिनिया साफ़ करते हैं कि राजतंत्र के लिए पूरे देश में चल रहे मौजूदा आंदोलन में राजा की कोई भूमिका नहीं है.
वे कहते हैं, "हमारा कुछ भी लेनादेना नहीं है लेकिन हम आंदोलन पर नज़र बनाए हुए हैं."
ये आंदोलन अभी ज़ोर पकड़ रहा है इसके पीछे कुछ दूसरी वजहें भी हैं.
बीबीसी को दिए इंटरव्यू के दौरान इतिहासकार महेश राज पंत ने कहा था कि नेपाल में पहली बार मंदिरों में पूजा बंद की गई है.
कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए सरकार ने मंदिरों को बंद करने का फ़ैसला लिया है.
ऐसा माना जा रहा है कि पशुपतिनाथ मंदिर को बंद करने के फ़ैसले ने हिंदुओं को काफ़ी नाराज़ किया है. ये लोग अब राजतंत्र की मांग कर रहे हैं और प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक जनकपुर में 26 नवंबर को नेपाल नेशनलिस्ट ग्रुप की ओर से आयोजित कार्यक्रम का प्रबंधन मंदिर के पुजारियों ने ही किया था.
वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन की अस्मिता भंडारी का कहना है कि कई धार्मिक समूह इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि नेपाल की संस्कृति को बदलने की कोशिश की जा रही है.

सरकार का पक्ष
देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को लेकर गृह मंत्रालय का कहना है कि इनके लिए स्थानीय प्रशासन से किसी भी तरह की अनुमति नहीं ली गई है.
मंत्रालय ने इस हफ़्ते ये सारे विरोध-प्रदर्शन कोरोना वायरस का हवाला देते हुए बंद करने को कहा है.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता चक्र बहादुर बुढा ने कहा है, "अगर विरोध-प्रदर्शन बंद नहीं होते हैं तो क़ानून के हिसाब से प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की जाएगी."
सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने कहा कि लोकतंत्र, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता के ख़िलाफ़ ये आंदोलन कामयाब नहीं हो पाएगा. वो इसे 'प्रतिक्रियावादियों की ओर से दिन में सपने' देखने जैसा बता रहे हैं.
सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के प्रवक्ता नारायणकाजी श्रेष्ठ ने इसी सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि प्रतिगामी ताक़तें फिर से कामयाब होने की उम्मीद न करें.
उन्होंने कहा, "हम लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में आने वाली किसी भी बाधा की समीक्षा करते हुए आगे बढ़ रहे हैं लेकिन प्रतिगामी ताक़तें खुद को फिर से स्थापित करने के बारे में न सोचे." (bbc.com)