पाकिस्तान में प्रतिबंधित धार्मिक और राजनीतिक दल तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ने इमरान ख़ान हुकूमत के साथ बातचीत में नाकाम होने का दावा करते हुए बुधवार को राजधानी इस्लामाबाद और जीटी रोड पर अपने कार्यकर्ताओं के काफिले के साथ अपना 'लॉन्ग मार्च' फिर से शुरू कर दिया है.
इस काफ़िले को पुलिस आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रही है, वहीं गुजरांवाला प्रशासन ने भी रेंजर्स की मदद लेने का फैसला किया है. बीबीसी के शहजाद मलिक से बात करते हुए, तहरीक-ए-लब्बैक के नेता मुफ्ती उमर अल-अज़हरी ने दावा किया कि उनके कार्यकर्ताओं ने रास्ते की सभी बाधाओं को हटा दिया और आगे बढ़ गए.
संवाददाता तरहाब असगर के मुताबिक़, मार्च फिर शुरू होने के बाद साधुकी नाम की जगह पर पुलिस ने फिर से काफिले को रोकने की कोशिश की और आंसू गैस के गोले छोड़े. पुलिस और तहरीक-ए-लब्बैक कार्यकर्ताओं के बीच भी झड़पें हुई हैं.
पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक ताज़ा झड़पों में कसूर पुलिस के एएसआई अकबर की मौत हो गई और 64 अन्य घायल हो गए, जबकि तहरीक-ए-लब्बैक ने पुलिस पर तेज़ाब की बोतलें फेंकने और फायरिंग करने का आरोप लगाया है. गुजरांवाला पुलिस के अनुसार, घायल पुलिस कर्मियों को स्थानीय अस्पतालों में भर्ती किया गया है.
शुक्रवार को लॉन्ग मार्च शुरू होने के बाद से झड़पों में तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है और 100 से अधिक घायल हो गए हैं. तहरीक-ए-लब्बैक ने यह भी दावा किया है कि उसके दस से अधिक कार्यकर्ता मारे गए और सैकड़ों घायल हुए, लेकिन स्वतंत्र स्रोतों से इस दावे की पुष्टि नहीं हो सकी है.
फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन की मांग
तहरीक-ए-लब्बैक के इस मार्च के कारण गुजरांवाला ज़िले में मोबाइल इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है. फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन और साद रिज़वी की रिहाई की मांग को लेकर तहरीक-ए-लब्बैक ने 22 अक्टूबर को लाहौर से एक जुलूस निकालना शुरू किया और 23 अक्टूबर की रात को गुजरांवाला जिले के मुरीदके इलाके में पहुंचा.
सरकार और तहरीक-ए-लब्बैक के बीच शुरुआती बातचीत के बाद, तहरीक-ए-लब्बैक ने अपने काफिले को मुरीदके में रहने की घोषणा की और सरकार को 26 अक्टूबर की शाम तक मांगों को पूरा करने की मोहलत दी.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के नेता मुफ्ती उमर अल-अजहरी ने बीबीसी उर्दू के शहजाद मलिक से बात करते हुए कहा कि सरकार की मांगें पूरी नहीं होने के बाद बुधवार सुबह पार्टी ने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया कि इस्लामाबाद की ओर आगे बढ़े.
इस आदेश के बाद हज़ारों की संख्या में कार्यकर्ता जीटी रोड पर मुरीदके से इस्लामाबाद की ओर यात्रा करने लगे हैं. काफिले को रोकने के लिए इस्लामाबाद की ओर जाने वाली सड़कों पर भी नाकाबंदी कर दी गई है, जबकि साधुकी के पास सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे खोद दिए गए हैं.
इस्लामाबाद और रावलपिंडी
साधुकी में जीटी रोड को पहले ही कंटेनरों से बंद कर दिया गया था. इस्लामाबाद और रावलपिंडी के प्रवेश और निकास पर कंटेनर और बैरियर लगाने का सिलसिला मंगलवार शाम से शुरू हो गया था. हालांकि सरकार और टीएलपी के बीच बातचीत शुरू होते ही बाधाओं को अस्थायी रूप से हटाने के आदेश जारी किए गए थे.
इमरान ख़ान हुकूमत के अनुसार इस्लामाबाद और रावलपिंडी को जोड़ने वाले फैज़ाबाद चौक को चारों तरफ़ से पूरी तरह से बंद कर दिया गया है जबकि रावलपिंडी के मुख्य मार्ग मर्री रोड पर भी कंटेनर रखे गए हैं. दोनों शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इस्लामाबाद में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस बलों और रेंजर्स को तैनात किया गया है. सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक़, बुधवार सुबह से दोनों शहरों में मेट्रो बस सेवा और मोबाइल फोन सेवा बंद करने का फैसला किया गया है.
मुरीदके में तहरीक-ए-लब्बैक के प्रदर्शनस्थल पर मौजूद मुफ्ती उमर ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी के नेतृत्व ने सरकार को उनकी मांगों को मानने के लिए मंगलवार रात तक का समय दिया था, जो अब ख़त्म हो चुका है.
तहरीक-ए-लब्बैक की चेतावनी
इन मांगों में सबसे बड़ी थी पाकिस्तान में फ्रांसीसी राजदूत का निर्वासन. मुफ्ती उमर अल-अजहरी ने कहा कि इस्लामाबाद की ओर फिर से मार्च करने का फ़ैसला पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने आम सहमति से लिया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इस्लामाबाद ज़रूर पहुंचेंगे भले ही इसमें कुछ हफ्ते लग जाएं.
तहरीक-ए-लब्बैक के एक सदस्य का कहना था कि मंगलवार को गृह मंत्री शेख रशीद ने पार्टी के मजलिस-ए-शूरा के केवल एक सदस्य पीर इनायत शाह के साथ बैठक की थी, जबकि मंगलवार की रात को उन्हें फिर बुलाया गया था जिसमें कोई प्रगति नहीं हुई.
मुफ्ती उमर ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, पार्टी अपना मार्च खत्म नहीं करने वाली है. उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले केंद्रीय गृह मंत्री के नेतृत्व में उनकी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत हुई थी जिसमें सरकारी प्रतिनिधिमंडल ने आश्वासन दिया था कि उनकी मांगों को लागू किया जाएगा लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ.
टीएलपी की मजलिस-ए-शूरा के सदस्य पीर इनायत शाह ने बीबीसी को बताया कि सरकार की टीम ने वार्ता करने वाले दल के सदस्यों को आश्वासन दिया था कि टीएलपी के अनुरोध पर फ्रांसीसी राजदूत की नियुक्ति के संबंध में राजनयिक स्तर पर किए गए पत्राचार का आदान-प्रदान टीएलपी नेतृत्व के साथ भी किया जाएगा, लेकिन कोई दस्तावेज़ अब तक उनकी पार्टी को नहीं दिया गया है.
इंटीरियर मिनिस्टर शेख राशिद का बयान
पीर इनायत ने कहा कि उन्होंने सरकारी प्रतिनिधिमंडल को सुझाव दिया था कि फ्रांसीसी राजदूत के निर्वासन का मामला नेशनल असेंबली की समिति को भेजा जाना चाहिए और समिति जो भी फैसला करेगी, उनकी पार्टी इसे स्वीकार करेगी.
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के नेताओं ने दावा किया है कि संघीय गृह मंत्री ने मंगलवार को मामलों को सुलझाने के लिए गलत बयानी का इस्तेमाल किया.
गृह मंत्री शेख रशीद ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "फ्रांस के राजदूत का निष्कासन टीएलपी की पहली और सबसे बड़ी मांग है, जिसे पूरा करना हमारे लिए मुश्किल है."
उन्होंने ये भी कहा कि वह ऐसी कोई अशांति नहीं चाहते जो पाकिस्तान की अखंडता और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करे.
इसके पहले तहरीक-ए-लब्बैक के अमीर (प्रमुख) साद रिज़वी ने पैगंबर मोहम्मद की ईशनिंदा के मुद्दे पर फ्रांसीसी राजदत के निष्कासन की मांग करते हुए इस्लामाबाद की ओर एक 'लॉन्ग मार्च' की धमकी दी थी. जिसके बाद लाहौर पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था. वे अभी भी क़ैद हैं.
साद रिज़वी पर सरकार के विरोध में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उकसाने का आरोप लगा था, इस दौरान हिंसा में कई लोग मारे गए और घायल हुए थे.
साद रिज़वी की गिरफ्तारी के बाद, तहरीक-ए-लब्बैक ने देश भर के कई शहरों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें कम से कम चार पुलिसकर्मी मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए. (bbc.com)