-मर्लिन थॉमस और विबेके वेनेमा
रोशनी से चमचमाते समुद्री तट, विशाल रेगिस्तान में लगाए गए अरबों पेड़, बहुत तेज़ गति से चलने वाली ट्रेनें, नकली चांद और बिना कारों के 170 किलोमीटर लंबी सीधी रेखा में बसा एक शहर. ये सारी योजनाएं निओम प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं.
इस प्रोजेक्ट के तहत सऊदी अरब में भविष्य की एक इको-सिटी बसाए जाने की योजना है. इस शहर में सब कुछ पर्यावरण के अनुकूल होगा. लेकिन असल सवाल यही है कि क्या यह योजना वाक़ई सच हो जाएगी?
निओम प्रोजेक्ट आने वाले वक़्त का ख़ाका होने का दावा करता है और कहता है कि बिना पृथ्वी की सेहत बिगाड़े मानव सभ्यता भी फल फूल सकती है. इस परियोजना की लागत 500 अरब डॉलर (क़रीब 37 लाख करोड़ रुपए) है. और यह कच्चा तेल मुक्त सऊदी अरब के 'विज़न 2030' का एक हिस्सा है.
यह इको-सिटी विकसित करने वाले डेवलपर्स के मुताबिक़ यह शहर 26,500 वर्ग किमी (क़रीब इसराइल और फ़लीस्तीन जितना बड़ा इलाक़ा) में फैला होगा. वहीं यहां पर सऊदी अरब की न्यायिक प्रणाली काम नहीं करेगी, बल्कि इस प्रोजेक्ट में निवेश करने वाले इसके लिए ख़ुद स्वायत्त क़ानूनी व्यवस्था तैयार करेंगे.
निओम प्रोजेक्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल पूर्व बैंकर अली शिहाबी के अनुसार, यह शहर 170 किमी लंबी सीधी रेखा में बसेगा, जिसका नाम 'द लाइन' होगा.
सुनने में यह प्रोजेक्ट भले असंभव लगे, लेकिन अली शिहाबी कहते हैं कि द लाइन को कई चरणों में बसाया जाएगा. वे बताते हैं, "लोग कहते हैं कि यह प्रोजेक्ट पागलपन है. इसकी लागत बहुत ज़्यादा है, लेकिन इसे चरणबद्ध तरीक़े से बनाया जा रहा है."
वो बताते हैं कि यह शहर स्पेन में बार्सिलोना के ट्रैफ़िक-मुक्त "सुपरब्लॉक्स" की तरह का होगा. उनके अनुसार, ''हर खंड अपने पर ही निर्भर होगा. इसमें दुकानें और स्कूल जैसी सुविधाएं भी होंगी ताकि लोगों को जो भी चाहिए वो सब 5 मिनट पैदल या साइकिल से चलने पर मिल जाए.''
इस प्रोजेक्ट को विकसित करने वालों का दावा है कि जब यह शहर पूरा बस जाएगा तब यहां के छोर से दूसरे छोर की यात्रा हाइपर स्पीड ट्रेनों के ज़रिए पूरी की जाएगी, जिसमें सबसे लंबी यात्रा करने पर भी 20 मिनट से अधिक नहीं लगेगा.
निओम प्रोजेक्ट में इसके अलावा 'ऑक्सागन' नाम का पानी पर तैरता एक शहर होगा. आठ भुजाओं की आकृति वाला यह शहर दुनिया का सबसे बड़ा तैरता हुआ स्ट्रक्चर होगा, जो किलोमीटर में फैला होगा.
निओम के सीईओ नदमी अल-नस्र के अनुसार, इस बंदरगाह शहर में 2022 से ही लोग आकर रहने लगेंगे.
निओम ने एलान किया है कि इस "औद्योगिक केंद्र" के आगे लाल सागर के तट पर, दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ़ (प्रवाल भित्ति) रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट चलाई जाएगी.
निओम प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि इस विशाल परियोजना का पहला चरण 2025 तक पूरा हो जाएगा. हालांकि इसकी वेबसाइट कभी कभी विज्ञान की फंतासी कहानियों वाले किसी उपन्यास जैसी लगती है.
सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें जब देखते हैं तो रेगिस्तान में फ़िलहाल एक वर्गाकार आकृति बनी हुई है. इसमें क़तारों में सैकड़ों घर बने हुए हैं. इसमें दो स्वीमिंग पूल और एक फ़ुटबॉल ग्राउंड भी बना हुआ है.
अली शिहाबी बताते हैं कि यह निओम के कर्मचारियों के लिए बना शिविर है. हालांकि बीबीसी ने वहां जाकर इसका सत्यापन नहीं किया.
हालांकि रेगिस्तान के बीचोबीच पर्यावरण अनुकूल मानदंडों पर खरा उतरने वाला ऐसा अत्याधुनिक शहर बना पाना कितना संभव है?
इसका जवाब ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के एक इनर्जी एक्सपर्ट डॉ. मनल शेहाबी से मांगा. तो उन्होंने कहा कि निओम की कामयाबी का मूल्यांकन करते समय कई बातों पर विचार करना चाहिए. वे पूछते हैं कि खाने पीने की चीज़ें क्या वहीं पर बिना बहुत अधिक संसाधनों का उपयोग किए तैयार की जा सकेंगी या खाद्य पदार्थों को विदेश से मंगाया जाएगा?
हालांकि वेबसाइट का दावा है कि निओम "दुनिया का सबसे अधिक खाद्य आत्मनिर्भर शहर" होगा. यहां 'वर्टिकल फार्मिंग' करके खाद्य पदार्थों का उत्पादन किया जाएगा. यह एक ऐसे देश के लिए बड़ी बात होगी, जो कि फ़िलहाल अपने भोजन का लगभग 80 फ़ीसदी हिस्सा आयात करता है.
लेकिन क्या खाद्य उत्पादों का स्थानीय उत्पादन हमेशा होता रह पाना संभव है?
वहीं आलोचकों का आरोप है कि इस परियोजना की मुख्य प्रेरक शक्ति और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, देश के वास्तविक हालात से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पर्यावरण से जुड़े बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं.
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान चाहते हैं कि सऊदी अरब को हरित देश बनाया जाए और "गीगा-प्रोजेक्ट" उनके इसी विज़न का एक हिस्सा है.
जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क़रीब तीन महीने ग्लासगो में हुए COP26 सम्मेलन के एक सप्ताह पहले उन्होंने 'सऊदी ग्रीन इनिशिएटिव' को लॉन्च किया. इसमें 2060 तक कार्बन का उत्सर्जन ज़ीरो करने का लक्ष्य तय किया गया है.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता की जानकार डॉ. जोआना डेप्लेज कहती हैं कि शुरू में इसे एक बड़ा क़दम माना गया, लेकिन बाद में जब अच्छे से देखा गया तो उसके एलान हक़ीक़त पर खरे नहीं उतर सके.
वो बताती हैं कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने के लिए अभी से 2030 के बीच दुनिया के तेल उत्पादन में हर साल लगभग 5 फ़ीसदी की कमी करने की ज़रूरत है.
लेकिन COP26 जलवायु सम्मेलन में वादा करने के केवल कुछ ही हफ्तों बाद उसने तेल उत्पादन को बढ़ाने की बात कही. ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने कहीं कहा कि उनका देश कच्चे तेल का उत्पादन करना बंद नहीं करेगा. उन्होंने कहा, "हम अभी भी इस पांत के अंतिम व्यक्ति होंगे और हाइड्रोकार्बन का हर अणु बाहर आएगा."
डॉ. डेप्लेज कहती हैं, "मुझे लगता है कि यह वाक़ई काफ़ी चौंकाने वाली बात है कि सऊदी अरब अभी भी सोचता है कि आज के माहौल में भी वह कच्चे तेल का दोहन करना और उसे निकालना जारी रख सकता है."
किसी देश का कार्बन उत्सर्जन किसी ईंधन को जलाने से होता है, न कि उसे पैदा करने से. इसलिए सऊदी अरब जैसे देश हर साल लाखों बैरल कच्चे तेल निकाल कर उसे दूसरे देशों को बेचते हैं, तो कार्बन का उत्सर्जन उनके खाते में नहीं गिना जाएगा.
वैसे दूसरे देशों की बात तो छोड़ ही दीजिए घरेलू स्तर पर भी सऊदी अरब को अभी काफ़ी लंबा रास्ता तय करना है. उसने कहा है कि उनका देश 2030 तक 50 फ़ीसदी बिजली अक्षय ऊर्जा से पैदा करेगा, लेकिन 2019 में यह उत्पादन देश के कुल बिजली उत्पादन का महज़ 0.1 फ़ीसदी ही था.
'रचनात्मक सोच'
निओम प्रोजेक्ट के समर्थकों का कहना है कि नए सिरे से शुरुआत करके पवन और सौर ऊर्जा पर निर्भर एक स्मार्ट और टिकाऊ शहर बनाना बहुत आवश्यक है. इस शहर में पानी की ज़रूरत समुद्री जल साफ़ करके पूरी की जाएगी, लेकिन इसमें भी कार्बन का उत्सर्जन ज़ीरो होना चाहिए.
निओम के सलाहकार बोर्ड के सदस्य अली शिहाबी कहते हैं, "सऊदी अरब को कुछ रचनात्मक सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि मध्य पूर्व में पानी अब ख़त्म हो रहा है."
मालूम हो कि सऊदी अरब रेगिस्तानी देश है, जहां का आधा पानी समुद्री जल को साफ़ करके हासिल किया जाता है. लेकिन इसके लिए काम करने वाली मशीनें परंपरागत ईंधन से चलती हैं.
यह प्रक्रिया न केवल महंगी है, बल्कि पानी साफ़ करने के बाद नमकीन और ज़हरीले केमिकल का मिश्रण भी हासिल होता है, जिसे वापस समुद्र में ही फेंक दिया जाता है. हालांकि यह मिश्रण समुद्र में रहने वाले जीवों के लिए ख़तरनाक होता है.
निओम प्रोजेक्ट के तहत पानी साफ़ करने की पूरी प्रक्रिया को बदलने का दावा किया जा रहा है. इसके लिए न केवल अक्षय ऊर्जा का उपयोग होगा, बल्कि इस दौरान हासिल नमक और केमिकल के मिश्रण का उपयोग उद्योगों के लिए कच्चे माल के तौर पर किया जाएगा.
हालांकि इस राह की एक बड़ी अड़चन है, जो ये कि अभी तक पानी साफ़ करने वाले संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा के सहारे चलाने की कोशिश कामयाब नहीं हो सकी है.
अली शिहाबी कहते हैं कि यदि इस प्रोजेक्ट का यह प्रयोग सफल रहा तो मध्य पूर्व में पानी की समस्या हल हो सकती है, जो निओम प्रोजेक्ट के लिए काफ़ी सार्थक होगा.
हालांकि जलवायु विशेषज्ञ बिना भरोसे वाली टेक्नोलॉजी पर विश्वास करने को एक ख़तरा मानते हैं. इनका मानना है कि यदि इससे संबंधित टेक्नोलॉजी कामयाब न हुई, तो जलवायु परिवर्तन से लड़ने के मिशन पर फ़र्क पड़ेगा और लक्ष्य पाने में देरी हो सकती है.
वैसे नियोम प्रोजेक्ट है किसके लिए, इससे जुड़े कई बड़े सवालों के जवाब दिए जाने बाक़ी हैं. (bbc.com)