अंतरराष्ट्रीय
यूक्रेन के 10 लाख से ज्यादा बच्चे शरणार्थी बन चुके हैं. रातोंरात शरणार्थी बनने की पीड़ा बच्चों के दिल-दिमाग पर असर कर रही है. कोई पीछे छूटे पिता के लिए परेशान है तो किसी को अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है.
10 साल की अनामारिया मसलोव्स्का का घर खारकीव में था. जब वहां बमबारी शुरू हुई, तो अनामारिया के दोस्त, उनके खिलौने और यहां तक कि उसका देश यूक्रेन भी उससे छूट गया. उसे अपना सबकुछ पीछे छोड़कर मां के साथ एक लंबी यात्रा पर निकलना पड़ा. कई दिन लंबी इस यात्रा का हासिल बस इतना है कि अब अनामारिया और उनकी मां सुरक्षित हैं. इस सुरक्षा के लिए उन्हें सबकुछ गंवाकर शरणार्थी बनना पड़ा है.
"मुझे अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है"
अनामारिया और उनकी मां उन सैकड़ों शरणार्थियों के दल का हिस्सा थे, जो बहुत मशक्कतों के बाद ट्रेन के रास्ते हंगरी सीमा पार करने में कामयाब रहे. हालांकि वो अनामारिया खुश नहीं हैं. उन्हें खारकीव में रह रहे अपने दोस्तों की चिंता है. उसने अपने दोस्तों को वाइबर पर कई संदेश भेजे, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.
हंगरी के सीमावर्ती शहर जाहून में रेलवे स्टेशन के भीतर बैठी अनामारिया बताती हैं, "मुझे उनकी बहुत याद आती है. मेरा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. वे बस मेरे भेजे मेसेज पढ़ते हैं, उनका जवाब नहीं आता. मुझे सच में बहुत चिंता हो रही है क्योंकि मैं नहीं जानती कि वे कहां हैं."
अनामारिया की परवरिश उनकी मां ने अकेले ही की है. वह उन 10 लाख शरणार्थी बच्चों में शामिल है, जिन्हें रूसी हमले के बाद यूक्रेन से जान बचाकर भागना पड़ा. पिछले दो हफ्तों में यूक्रेन से निकले शरणार्थियों की संख्या 20 लाख से ज्यादा हो गई है. इनमें आधे बच्चे हैं. कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें जान बचाने की यात्रा अकेले ही करनी पड़ी. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी 'यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज' (यूएनएचसीआर) ने इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक का यूरोप का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट बताया है.
बच्चों पर इस त्रासदी का गहरा असर
बहुत छोटे बच्चों को अभी यह समझ नहीं आ रहा होगा कि उनकी जिंदगी कैसे सिर के बल उलट गई है. मगर थोड़े बड़े बच्चे हालात को समझ पा रहे हैं. उन्हें सामने आई परेशानियां महसूस हो रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन बच्चों पर युद्ध की विभीषिका और शरणार्थी होने की पीड़ा का मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है.
37 साल की विक्टोरिया फिलोनचुक अपनी एक साल की बेटी मारगोट को साथ लेकर कीव से रोमानिया पहुंची हैं. वह बताती हैं, "मारगोट को यह यात्रा किसी एडवेंचर जैसी लगी. उसके जैसे छोटे बच्चों को शायद समझ ना आए, लेकिन तीन-चार साल के बच्चे त्रासदी को समझ रहे हैं. मुझे लगता है कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल अनुभव है."
डैनियल ग्रैडिनारु रोमानिया की सीमा पर शरणार्थियों के लिए काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन 'फाइट फॉर फ्रीडम' के संयोजक हैं. उन्हें डर है कि अचानक घर छूट जाने और ठंड में कई दिनों की लंबी यात्रा का अनुभव शायद बच्चों की आगे की पूरी जिंदगी पर निशान छोड़ेगा. डैनियल कहते हैं, "मैं उम्मीद करता हूं कि ये लोग जहां भी जाएं, वहां के लोग इनकी काउंसलिंग कराने में मदद करें."
रूस पर नागरिकों के दमन का इल्जाम
ज्यादातर शरणार्थी यूक्रेन की पश्चिमी सीमा- हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और मोलदोवा की ओर से आ रहे हैं. सबसे ज्यादा लोग पोलैंड पहुंच रहे हैं. पोलिश बॉर्डर गार्ड एजेंसी के मुताबिक, अब तक 13 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके हैं. हालिया दिनों में कई यूक्रेनी मानवीय गलियारों के रास्ते संघर्ष वाले इलाकों से निकल रहे हैं. यूक्रेन में यूएन की अधिकारी नतालिया मुदरेंको रूस पर महिलाओं और बच्चों समेत आम लोगों को रोकने का आरोप लगाती हैं. उन्होंने इल्जाम लगाया कि यूक्रेन के कुछ संघर्ष वाले शहरों में रूस भागने की कोशिश कर रहे लोगों को रोककर उन्हें बंधक बना रहा है.
8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की एक बैठक में नतालिया ने कहा कि नागरिकों को बाहर नहीं आने दिया जा रहा है और मानवीय सहायता उनतक पहुंचाने में भी रुकावट डाली जा रही है. रुंधे गले से नतालिया ने आरोप लगाया, "अगर लोग भागने की कोशिश करते हैं, तो रूसी उनपर गोलियां चलाकर उन्हें मार डालते हैं. लोगों के पास खाना-पानी खत्म हो रहा है, वे मर रहे हैं." 7 मार्च को मरियोपोल शहर में मर गई एक छह साल की बच्ची के बारे में बताते हुए नतालिया ने कहा, "अपने जीवन के आखिरी पलों में वह बच्ची बिल्कुल अकेली थी. उसकी मां रूसी गोलीबारी में पहले ही मारी गई थी."
त्रासदी का अनुभव
9 साल की वलेरिया वरेनको यूक्रेन की राजधानी कीव में रहती थीं. जब यहां रूसी बमबारी शुरू हुई, तो उसे अपनी इमारत के बेसमेंट में छुपना पड़ा. अपने छोटे भाई और मां जूलिया के साथ एक लंबा सफर तय करके 9 मार्च को वलेरिया हंगरी पहुंची है. इन तीनों को यहां बाराबास शहर के एक अस्थायी शरणार्थी शिविर में जगह मिल गई है. अब वलेरिया यूक्रेन में छूट गए बच्चों को कहना चाहती हैं कि वे सावधान रहें. सड़क पर पड़ी किसी लावारिस चीज को न छूएं क्योंकि "वे बम हो सकते हैं और बच्चों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं." वलेरिया के पिता भी यूक्रेन में ही हैं. वह रूसी हमलावर सैनिकों से कीव की रक्षा करने में हाथ बंटा रहे हैं. वलेरिया को अपने पिता पर गर्व है, लेकिन उसे पापा की बहुत याद आ रही है. वह कहती है, "मैं चाहती हूं कि पापा भी हमारे पास आ जाएं, लेकिन उन्हें आने की इजाजत नहीं है."
वलेरिया केवल नौ साल की है. युद्ध ने उसे रातोरात बहुत अनुभवी बना दिया है. त्रासदी में बच्चों का यूं एकाएक इतना समझदार हो जाना कितना भीषण है!
एसएम/एनआर (एपी)
रूस और यूक्रेन के विदेश मंत्रियों की तुर्की के अंताल्या में हुई बातचीत का कोई बड़ा नतीजा नहीं निकल सका है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दोनों देशों के बीच यह अब तक की सबसे बड़े स्तर की बातचीत थी.
तुर्की के अंताल्या में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरो और उनके यूक्रेनी समकक्ष डिमित्रो कुलेबा ने बातचीत की. बैठक में तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कोवुसोग्लु भी शामिल हुए. उम्मीद की जा रही थी कि दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम पर कोई समझौता इस बैठक से निकल सकता है. दमित्रो कुलेबा का कहना है कि "कोई प्रगति नहीं" हुई है, यहां तक कि 24 घंटे के संघर्ष विराम पर भी. कुलेबा ने निराशा जताते हुए कहा, "ऐसा लगता है कि इस मामले पर फैसला लेने वाला रूस में कोई और है." इसके साथ ही कुलेबा ने यह भी दोहराया कि उनका देश पीछे नहीं हटेगा. कुलेबा ने कहा, "मैं यह दोहराना चाहता हूं कि यूक्रेन ने समर्पण नहीं किया था और समर्पण नहीं करेगा."
कुलेबा ने बैठक को "कठिन" बताया और आरोप लगाया कि रूसी विदेश मंत्री यूक्रेन के बारे में "पारंपरिक बयान" के साथ ही टेबल पर आए थे. यूक्रेनी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि वो लावरोव के साथ फिर इस फॉर्मेट में बात करेंगे, अगर समाधान निकालने के लिए चर्चा करने की कोई गुंजाइश हो.
बेलारूस की बैठक पर जोर
यूक्रेन और रूस के बीच इस दौरान प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत बेलारूस में भी हो रही है, लेकिन रूस की ओर से आई टीम इस बार थोड़े छोटे स्तर की है. इसमें कोई मंत्री शामिल नहीं है. हालांकि रूसी विदेश मंत्री ने बेलारूस में हो रही बैठक को ज्यादा अहम बताया और कहा, "आज की बैठक ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि बेलारूस में चल रही रूसी यूक्रेनी फॉर्मेट का कोई विकल्प नहीं है." लावरोव का कहना है, "हम हर तरह के संपर्क के पक्ष में हैं ...ताकि यूक्रेन के संकट का हल हो...लेकिन हमने जान लिया है कि उन्हें बेलारूस में चल रही मुख्य बातचीत को ज्यादा महत्व देना चाहिए और उसे कम करके नहीं देखना चाहिए."
बैठक की तस्वीरों में रूसी, तुर्क और यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल यू आकार वाले टेबल के सभी ओर बैठे हैं. हर मंत्री के साथ केवल दो अधिकारी ही मौजूद थे. दोनों पक्षों ने बैठक से पहले हाथ मिलाया या नहीं इस बात के भी कोई संकेत नहीं मिले हैं.
बैठक ऐसे समय में हुई जब दुनिया भर में यूक्रेन के बच्चों के अस्पताल पर हुई बमबारी के लिए नाराजगी है. यूक्रेन के मुताबिक इसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हुई है, जिसमें एक बच्चा भी शामिल है. कुलेबा का कहना है कि उन्हें बैठक से मारियोपोल के लिए मानवीय गलियारे की उम्मीद थी लेकिन, "दुर्भाग्य से मंत्री लावरोव उस पर वादा करने की हालत में नहीं थे." यूक्रेनी विदेश मंत्री का कहना है कि लावरोव, "इस मामले पर संबंधित अधिकारियों से बात करेंगे."
उधर लावरोव का दावा है कि यह अस्पताल कट्टरपंथी आजोव बटालियन के "राष्ट्रवादियों के लिए सैन्य अड्डे" का काम कर रहा था. रूसी विदेश मंत्री ने यूरोपीय संघ और दूसरे देशों पर यूक्रेन को हथियारों की "खतरनाक सप्लाई" देने का आरोप लगाया है.
"रूस ने हमला नहीं किया"
तुर्की के एक पत्रकार ने पूछा कि क्या रूस दूसरे देशों पर भी हमले की योजना बना रहा है. इसके जवाब में लावरोव ने कहा, "हम दूसरे देशों पर हमले की योजना नहीं बनाते हैं और हमने यूक्रेन पर हमला नहीं किया है." रूसी विदेश मंत्री ने जोर दिया कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी को यह ऑपरेशन इसलिए शुरू किया कि यूक्रेन, "रूसी फेडरेशन के लिए सीधा खतरा बन गया था."
बैठक के मेजबान तुर्क विदेशमंत्री ने माना कि यह आसान नहीं था, लेकिन इसके साथ ही कहा कि बातचीत "बहुत सभ्य" तरीके से हुई और गुस्से में आवाजें ऊंची नहीं की गईं. कावुसोग्लु ने बताया कि कुलेबा ने इस बात की पुष्टि की है कि राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पुतिन के साथ बैठक के लिए तैयार थे और लावरो ने भी कहा कि पुतिन सैद्धांतिक रूप से इसके खिलाफ नहीं हैं. तुर्क विदेश मंत्री का मानना है, "बैठक एक अहम शुरूआत थी. किसी को भी एक मुलाकात में करिश्मे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए."
यूक्रेन और रूस के बीच सुलह के लिए चल रहे कूटनीतिक प्रयासों में तुर्की की बातचीत भी एक कोशिश है. इस बीच इस्राएल भी जेलेंस्की और पुतिन की बातचीत कराने की कोशिश में है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों भी इसी उम्मीद में अक्सर पुतिन को फोन कर रहे हैं.
तुर्की यूक्रेन का पारंपरिक साझीदार है और उसने बायराक्टर ड्रोन की सप्लाई भी यूक्रेन को की है. यूक्रेन इनका इस्तेमाल मौजूदा युद्ध में कर रहा है. हालांकि तुर्की गैस के आयात पर निर्भरता और सैलानियों से होने वाली कमाई के कारण रूस के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है. तुर्क राष्ट्रपति ने स्थायी संघर्ष विराम की उम्मीद जताई है.
एनआर/एसएम(एएफपी, एपी)
चीन में आठ बच्चों की एक मां को जंजीरों में बांध कर रखने की घटना पिछले महीने सामने आने के बाद मानव तस्करी को लेकर चर्चा तेज हो गई है. यहां तक कि चीन में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में भी यह मामला उठाया गया.
जंजीरों में जकड़ी महिला पूर्वी हिस्से में मौजूद शुझोउ शहर के बाहरी इलाके में पिछले महीने मिली. उसे बार-बार बेचा गया है और जिस आदमी ने उसे आखिरी बार खरीदा, उससे उसके आठ बच्चे हैं. महिला की मानसिक हालत भी अच्छी नहीं थी. चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने जब शनिवार को नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस (एनपीसी) में सरकार के कामकाज के बारे में सालाना रिपोर्ट पेश की, तो उसमें भी मानव तस्करी का जिक्र था. आमतौर पर ऐसा कम ही होता है.
मानव तस्करी के खिलाफ नए कदम
स्थानीय सरकारों ने महिलाओं को शिकार बना रहे मानव तस्करी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कदमों का एलान किया है, जबकि सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय देश भर में मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चला रहा है. इसका लक्ष्य लंबित मामलों से निपटना है और यह काम हर स्तर पर होगा. मंगलवार को चीन के शीर्ष अभियोजक झांग जुन ने घोषणा कि है कि विभाग अपहरण और तस्करी के खिलाफ कानूनों को "सख्ती से लागू" करेगा.
चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि कानूनी सुधार के कम से कम आधा दर्जन प्रस्ताव नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के सदस्यों और उसकी सलाहकार समिति की ओर से लाए गए हैं. इस हफ्ते नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस का सालाना सत्र चल रहा है. इसमें सरकार के कामकाज की समीक्षा होती है और उस पर सहमति की मुहर लगाई जाती है.
आपराधिक जुर्माना
कांग्रेस के सदस्य जियां शेंगनान ने प्रस्ताव दिया है कि तस्करी के मामलों में आपराधिक जुर्माना लगाया जाए जिससे कि बेचने वाले के साथ ही खरीदने वाले को भी सजा मिले. सरकारी अखबार बीजिंग यूथ डेली ने शेंगनान का बयान छापा है. इसमें उन्होंने कहा है, "उचित तरीके से जुर्माना बढ़ा कर और खरीदने पर आपराधिक जुर्मान लगाना एक निश्चित प्रतिरोध का काम करेगा." सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के प्रस्तावों का स्वागत किया है. हालांकि कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या आपराधिक जुर्माना लगाना इससे लड़ने का सबसे बढ़िया तरीका है. फेंग युआन बीजिंग इक्वलिटी नाम की संस्था के सहसंस्थापक हैं, जो लिंग आधारित अपराध पर ध्यान देती है. फेंग युआन का कहना है, "निजी रूप से मैं मानती हूं कि सारे प्रस्ताव बहुत सकारात्मक और सार्थक हैं, लेकिन मुझे लगता है कि कई अहम बातें नहीं हैं." फेंग का कहना है कि प्रस्तावों में जरूरत से ज्यादा ध्यान खरीदने वाले के ऊपर आपराधिक जुर्मान लगाने पर दिया गया है.
मौजूदा चीनी कानूनों के तहत जो लोग महिलाओं या बच्चों की तस्करी करते हैं, उन्हें 5-10 साल की कैद या फिर मौत की सजा भी दी जा सकती है. खरीदने वाले के लिए तीन साल से ज्यादा की सजा नहीं है.
आरोपियों की संख्या घटी
जियांग के प्रस्ताव में पीड़ितों को छुड़ाए जाने के बाद उनकी स्थिति पर नजर रखने के लिए तंत्र बनाने की भी बात कही गई है. दूसरे लोगों का यह भी कहना है कि सरकार को तस्करी के पीड़ितों की सही पहचान करनी होगी, जिनके गलत नाम दर्ज हैं. इसके लिए देश भर में अपहरण के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक अलर्ट सिस्टम बनाने के साथ ही आपराधिक जुर्माने को बढ़ाना भी होगा.
एनपीसी के सदस्य सीधे विधेयक तैयार नहीं करते हैं, बल्कि उनके प्रस्ताव संबंधित मंत्रालयों को भेजे जाते हैं. इसके बाद उनकी स्थायी समिति कानूनी जानकारों की मदद से कानून तैयार करती है.
जंजीर में बंधी महिला का मामला सामने आने के बाद लोग काफी उत्तेजित हैं और मांग कर रहे हैं कि तस्करी के खिलाफ कार्रवाई हो. झांग की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं और बच्चों की तस्करी के आरोपियों की संख्या साल 2000 में 14,458 से घट कर पिछले साल 1,135 पर आ गई है. हालांकि यह साफ नहीं है कि संख्या में कमी तस्करी घटने की वजह से है या फिर कानून का पालन नहीं होने की वजह से. पिछले महीने चीन में विंटर ओलिंपिक हो रहे थे और मुमकिन है कि ऐसे वक्त में कोई विवाद खड़ा ना हो इसलिए सरकार ने इस मुद्दे पर तेजी दिखाई हो.
महिला अधिकार कार्यकर्ता फेंग ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इस मामले को आपराधिक जुर्माने से अलग करके भी देखे. ज्यादा जरूरी चीजों में पीड़ितों की पहचान करना और छुड़ाए जाने के बाद उन्हें स्वतंत्र रूप से रहने में मदद देना शामिल है. इसके साथ ही उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से तंदुरुस्त होने के लिए संसाधन मुहैया कराना भी जरूरी है. सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता यह भी है कि जब नए नाम के साथ पीड़ितों का पुनर्वास कराया जाएगा, तो क्या उन्हें सार्वजनिक सेवाओं का लाभ मिल सकेगा या नहीं.
चीन की कैबिनेट ने अप्रैल 2021 में कुछ मसलों का हल निकाला था. इनमें उनके शादी के दस्तावेजों की पुष्टि और दूर-दराज के इलाकों में तस्करी के खिलाफ ज्यादा लोगों को शिक्षित करना शामिल है. नए उपाय इन कोशिशों को और मजबूती दे सकते हैं.
तस्करी का कुछ संबंध देश में बड़े लैंगिक असंतुलन से भी है. इसकी एक बड़ी वजह रही है चीन की एक बच्चा नीति, जो अब बदल दी गई है. चीन में हर साल बड़ी संख्या में लोगों की बंधुआ मजदूरी और सेक्स के लिए तस्करी की जाती है. हालांकि इनमें से ज्यादातर लोगों को चीन के अंदर ही तस्करी कर के लाया और बंधक बना कर रखा जाता है. यह समस्या दुनिया के कई देशों में है और चीन की आबादी ज्यादा होने की वजह से इसका परिमाण भी काफी ज्यादा बड़ा है.
एनआर/एसएम(एपी)
पाकिस्तान की सेना ने गुरुवार को दावा किया कि बहुत ज़्यादा ऊंचाई से एक सुपरसोनिक ऑब्जेक्ट भारत से आया और पाकिस्तानी इलाक़े में क्रैश कर गया. पाकिस्तान ने कहा कि यह ऑब्जेक्ट ख़ुद गिरा है और लेकिन पाकिस्तान की वायु सेना इसकी निगरानी कर रही थी.
पाकिस्तान की सेना ने कहा है कि यह पैसेंजर उड़ानों के लिए बेहद ख़तरनाक था. पाकिस्तान ने भारत से इस पर जवाब भी मांगा है. पाकिस्तान के इस दावे पर भारत की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
पाकिस्तान के डायरेक्टर-जनरल इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन यानी आईएसपीआर के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा, ''9 मार्च भारतीय क्षेत्र से तेज़ गति से उड़ता हुआ एक ऑब्जेक्ट आया. यह पाकिस्तान के मियां चन्नू के पास दिखा था. लेकिन यह नाकाम रहा और इससे आम जनों की संपत्ति को नुक़सान पहुँचा है. इसने पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया था. पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स की नज़र इस पर बनी हुई थी. यह भारत के सिरसा से आया था. पाकिस्तान इसकी कड़ी निंदा करता है.''
पाकिस्तानी सेना ने कहा कि इस मामले में जो कुछ भी हुआ है, भारत इस पर स्पष्टीकरण दे. बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा कि इस मामले में पाकिस्तानी सेना जाँच कर रही है. जनरल बाबर ने कहा कि पाकिस्तान भारत की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी क्षेत्र में यह तीन मिनट तक रहा है.
अभी पाकिस्तान की राजनीति में भारी उठा-पटक की स्थिति है. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहा है. इसे लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष में जुबानी हमले जारी है. जनरल बाबर से पूछा गया कि इमरान ख़ान कहते हैं कि सेना और सरकार साथ हैं, इस पर सेना का क्या कहना है? इस सवाल के जवाब में जनरल बाबर ने कहा कि सेना का सियासत से कोई लेना-देना नहीं है. (bbc.com)
बच्चों को जिस स्पोर्ट्स में मज़ा आने लगता है, वे उसमें जल्दी ही महारत हासिल कर लेते हैं. हालांकि कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने ठीक से बोलना भी न सीखा हो, लेकिन गेम्स में वो बड़े-बड़ों को पछाड़ दें. एक ऐसी ही छोटी सी बच्ची का वीडियो इस वक्त वायरल हो रहा है, जो जंगल में जमी बर्फ पर बड़े आराम से स्कीइंग करती हुई दिख रही है.
एडिया लीडम्स नाम की बच्ची की उम्र भले ही महज 3 साल है, लेकिन इसकी सुपर स्कीइंग को देखकर आप हैरान रह जाएंगे. एडिया घने जंगल में जमी बर्फ पर धड़ाधड़ स्कीइंग कर रही है. खास बात ये है कि बच्ची न तो डरती है और न ही किसी पेड़ से उसकी टक्कर होती है.
स्कीइंग करते हुए गाती रही गाना
ब्रिटिश कोलंबिया की रहने वाली ये बच्ची फर्नी में स्कीइंग कर रही थी. वो अपने परिवार के साथ वहां गई हुई थी. बच्ची के माता-पिता एरिक और कोर्टनी ने बच्ची को बेहद कम उम्र से स्कीइंग करना सिखा दिया था. उन्होंने बच्ची की स्कीइंग के वक्त उसे एक माइक्रोफोन पहना रखा था. फर्नी एल्पाइन रिसॉर्ट में बच्ची स्कीइंग करते हुए धीरे-धीरे गाना गा रही थी. एडवेंचर की शौकीन इस बच्ची को इसमें खूब मज़ा भी आ रहा था. वो अपने माता-पिता से बात करती हुई भी सुनी जा सकती है.
लोगों को पसंद आया वीडियो
रिसॉर्ट की ओर से भी इस वीडियो अपलोड किया गया है और लोगों को वीडियो काफी पसंद भी आ रहा है. पूरे वीडियो के दौरान एनी का हंसना, खिलखिलाना और खुद से ही बातें करना बहुत ही प्यारा है. वीडियो को अब तक लाखों लोगों ने देख लिया है. एडिया के दो और भाई-बहन हैं, जिन्हें स्कीइंग करना पसंद है, लेकिन एडिया ने ये बेहद छोटी उम्र में सीखकर सुर्खियां बटोर ली हैं.
बैंकॉक, 10 मार्च | थाईलैंड ने 1 जुलाई तक देश में कोरोना महामारी के एंडेमिक स्टेज का समर्थन करने के लिए चार फेज वाली योजना को मंजूरी दी है। ये जानकारी स्वास्थ्य अधिकारियों ने दी। न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय संचारी रोग समिति (एनसीडीसी) द्वारा आयोजित एक बैठक में स्वीकृत इस योजना का उद्देश्य धीरे-धीरे नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के कारण होने वाले नए मामलों और मौतों को रोकना है और देश में वायरस को एक एंडेमिक स्टेज के रूप में तैयार करना है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री अनुतिन चरनवीराकुल ने बैठक की अध्यक्षता करने के बाद संवाददाताओं से कहा कि थाईलैंड की अर्थव्यवस्था को महामारी से उबरने में मदद करने के साथ-साथ सख्त उपायों को लागू करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए यह निर्णय लिया गया।
स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, शनिवार से अप्रैल की शुरूआत तक देश में अभी संक्रमण में और वृद्धि होगी, जबकि अप्रैल से मई तक मामलों की संख्या अधिक रहने का अनुमान है, लेकिन गिरावट शुरू हो जाएगी।
तीसरे चरण, मई के अंत से जून तक, 1 जुलाई से देश में एंडेमिक स्टेज में प्रवेश करने से पहले दैनिक संक्रमणों में लगभग 1,000 से 2,000 तक की बड़ी कमी देखने की उम्मीद है।
थाईलैंड में अब तक कोरोना के 3,111,857 मामले दर्ज किए गए और 23,438 लोगों की मौत हुई हैं।
अब तक, देश की लगभग सात करोड़ आबादी में से लगभग 71.7 प्रतिशत को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका है, जबकि 30.6 प्रतिशत को बूस्टर शॉट दिया गया है। (आईएएनएस)
लंदन, 10 मार्च | लंदन में आधे मिलियन से अधिक निवासियों को किराए के बकाया के कारण अपने घरों से संभावित निष्कासन का सामना करना पड़ रहा है। सिटी हॉल की एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सिटी हॉल और पोलस्टर्स यूगोव के शोध का अनुमान है कि राजधानी में घर किराए पर लेने वाले 2.4 मिलियन वयस्कों में से एक चौथाई अपने किराए पर पीछे रह गए हैं, या कोविड-19 महामारी के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में ऐसा करने की संभावना है।
लंदन के मेयर सादिक खान ने बुधवार को सरकार से उन्हें दो साल के लिए निजी किराए को फ्रीज करने की शक्ति देने का आह्वान किया, ताकि निवासियों को शहर में रहने की आसमान छूती लागत से निपटने में मदद मिल सके।
बुधवार को अपने विश्लेषण में, सिटी हॉल ने कहा कि दो साल में किराए पर फ्रीज करने से लंदन के औसत किराएदार को लगभग 3,000 पाउंड (3,950 डॉलर) की बचत होगी।
खान ने कहा, "निजी किराएदार राजधानी में रहने वाले सभी लोगों का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं और वे कीमतों और बिल वृद्धि के विनाशकारी संयोजन से प्रभावित होने के लिए तैयार हैं।"
होमलेट द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, एक किरायेदार बीमा कंपनी, लंदन में नए किरायेदारों के लिए औसत किराये का मूल्य 1,757 पाउंड प्रति माह है।
लंदन में किराए में पिछले साल की तुलना में 11.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 10 मार्च | एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने 48 नये स्टारलिंक उपग्रह को लांच किया है।
कंपनी ने बताया कि इन उपग्रहों को बुधवार को फ्लोरिडा के केप कैनवेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से फाल्कन 9 रॉकेट के जरिये लांच किया गया था।
मस्क ने ट्वीट करके कहा कि 48 नये स्टारलिंक सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में पहुंचे।
कंपनी 2019 से 2,000 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह को लांच कर चुकी है। कंपनी को 12,000 स्टारलिंक सैटेलाइट लाचं करने की अनुमति प्राप्त है और उसने 30,000 उपग्रहों को लांच करने की अनुमति मांगी है। (आईएएनएस)
रूस ने प्रतिबंधों पर जवाबी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वेस्ट उसके तेल और गैस का बहिष्कार करना चाहता है, तो वह इसके लिए तैयार है. रूस ने कहा कि उसको पता है कि ऐसी स्थिति में अपनी एनर्जी सप्लाई कहां भेजनी है.
रूस ने पश्चिमी देशों और अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों पर पलटवार की चेतावनी दी है. उसने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वह खुद पर लगे प्रतिबंधों की विस्तृत प्रतिक्रिया तैयार कर रहा है और उसके उठाए कदमों का असर पश्चिमी देश वहां महसूस करेंगे, जो उनके सबसे संवेदनशील पक्ष हैं.
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस की अर्थव्यवस्था अभी सबसे गंभीर स्थिति में है. यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस की करीब-करीब समूची वित्तीय और कॉर्पोरेट व्यवस्था पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. अब रूस ने जवाबी प्रतिक्रिया की चेतावनी दी है. रूसी विदेश मंत्रालय के आर्थिक सहयोग विभाग के निदेशक दिमित्री बिरिचेव्स्की ने कहा, "रूस की प्रतिक्रिया तीव्र और सोची-समझी होगी. जो इसके निशाने पर होंगे, उन्हें इसका असर महसूस होगा."
अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन पर हुए हमले के जवाब में 8 मार्च को रूसी तेल और बाकी एनर्जी आयात पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया. इसी हफ्ते रूस ने चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन रूस से क्रूड आयात रोकते हैं, तो तेल की कीमत 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है.
रूस का कहना है कि यूरोप सालाना 50 करोड़ टन तेल का इस्तेमाल करता है. इसका लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा रूस निर्यात करता है. साथ ही, वह आठ करोड़ टन पेट्रोकेमिकल का भी निर्यात करता है. 8 मार्च को ही रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने टीवी पर प्रसारित अपने संबोधन में यूरोप को चेतावनी दी थी, "यह बिल्कुल स्पष्ट है कि रूसी तेल का बहिष्कार करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार को बेहद गंभीर नतीजे भुगतने होंगे."
रूसी अर्थव्यवस्था को तेल और गैस निर्यात की जरूरत है
जर्मनी के नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन के सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया रोके जाने के फैसले का जिक्र करते हुए नोवाक ने कहा, "हमें भी पूरा अधिकार है कि हम भी ऐसा भी फैसला लें और नॉर्ड स्ट्रीम 1 गैस पाइपलाइन से होकर जा रही गैस की आपूर्ति रोक दें. यूरोपीय नेताओं को चाहिए कि वे अपने नागरिकों और उपभोक्ताओं को ईमानदारी से आगाह कर दें कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है." नोवाक ने ब्योरा दिए बिना कहा, "अगर आप रूस की ऊर्जा सप्लाई ठुकराना चाहते हैं, तो ठीक है. हम इसके लिए तैयार हैं. हमें पता है कि हम अपनी सप्लाई की दिशा किस तरह मोड़ सकते हैं."
रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है. वह प्राकृतिक गैस का भी बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. रूस की कमाई का एक बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन के निर्यात से आता है. 2011 से 2020 के बीच रूस के संघीय बजट का लगभग 43 प्रतिशत हिस्सा तेल और गैस से मिले राजस्व से आया था.
बड़े खरीदार
रूस के तेल उत्पादन की क्षमता 1.13 करोड़ बैरल प्रतिदिन है. इनमें से ज्यादातर सप्लाई पूर्वी साइबेरिया, यमल और तातरस्तान इलाके से आती है. वह करीब 34.5 लाख बैरल तेल प्रतिदिन का घरेलू इस्तेमाल करता है और 70 लाख बैरल से ज्यादा क्रूड ऑइल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद प्रतिदिन निर्यात करता है. पिछले साल यूरोपीय संघ ने जितने कच्चे तेल का आयात किया, उसमें से लगभग एक चौथाई की आपूर्ति रूस ने की थी.
रूसी ऊर्जा आयात पर निर्भरता के मामले में यूरोपीय संघ के देशों की अलग-अलग स्थिति है. इनमें सबसे ज्यादा आयात जर्मनी और पोलैंड ने अपनी घरेलू जरूरतों के लिए किया. स्लोवाकिया, फिनलैंड, हंगरी और लिथुआनिया भी ज्यादातर रूसी आयात पर निर्भर हैं. मध्य और पूर्वी यूरोप के देश रूसी तेल के बड़े खरीदारों में शामिल हैं. बेलारूस ने अपने कुल तेल आयात का 95 प्रतिशत रूस से खरीदा.
चीन बन सकता है और बड़ा खरीदार
यूरोप के अलावा चीन भी रूसी तेल का बड़ा खरीदार है. अक्टूबर 2021 को खत्म हुए साल में चीन ने रूस से 16 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कच्चा तेल खरीदा. सऊदी अरब के बाद चीन को सबसे ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति रूस ने ही की. चीन के कुल तेल आयात का 15 हिस्सा रूस से आया. पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के बाद रूस, चीन को बिक्री बढ़ा सकता है. भारत भी एक संभावित खरीदार हो सकता है. उसे रोजाना करीब 43 लाख बैरल तेल की जरूरत है. इसका 85 प्रतिशत हिस्सा भारत आयात करता है. हालांकि अभी इसमें से तीन प्रतिशत से भी कम हिस्सा वह रूस से खरीदता है.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
-डेनियल सैंडफ़ोर्ड
पुतिन ने अपने सहयोगियों को कई सालों से ऐसी किसी स्थिति के लिए आगाह किया हुआ था, ख़ास तौर पर क्राइमिया के विलय के बाद जब अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ रूस के संबंधों में कड़वाहट आ गई थी.
मगर जहाँ, उनके कुछ क़रीबी लोगों ने उनकी सलाह मानी और अपना निवेश रूस में ही रखा, वहीं कई अन्य ने विदेशों में आलीशान इमारतें और फ़ुटबॉल क्लब ख़रीद लिए, और उनकी कंपनियाँ विदेशी शेयर बाज़ारों में सूचीबद्ध रहीं.
अब ऐसे ही रूसी अरबपति अपनी संपत्तियों को लेकर चिंता में पड़ सकते हैं.
आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ रूसी अरबपतियों के बारे में.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और अमेरिका की सरकारों ने रूस के कई अरबपति कारोबारियों के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों का एलान किया जिन्हें राष्ट्रपति पुतिन का क़रीबी माना जाता है और सत्ता पर उनकी ख़ासी पकड़ है.
अलीशेर उस्मानोव, व्लादिमीर पुतिन के ना केवल क़रीबी लोगों में से एक हैं बल्कि उनकी गिनती वहाँ के सबसे अमीर लोगों में भी होती है. फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार उनकी अनुमानित संपत्ति 17.6 अरब डॉलर है.
वे एक प्रोफ़ेशनल तलवारबाज़ रहे हैं, जिन्हें यूरोपीय संघ एक "बिज़नेसमैन अधिकारी" बताता है जो राष्ट्रपति को उनकी समस्याओं को सुलझाने में मदद करते हैं.
उनका जन्म उज़्बेकिस्तान में हुआ था जो तब सोवियत संघ का हिस्सा था. वो यूएसएम होल्डिंग्स नाम का एक कंपनियों का समूह चलाते हैं जिनमें खनन और टेलिकॉम कंपनियाँ शामिल हैं, और जिनमें रूस का सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क मेगाफ़ोन शामिल है.
यूरोपीय संघ ने उनके ख़िलाफ़ 28 फ़रवरी को प्रतिबंधों का एलान किया, उसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने भी ऐसी ही घोषणाएँ कीं. उन्होंने प्रतिबंधों को नाजायज़ बताते हुए कहा कि उनपर लगाए गए सारे आरोप ग़लत थे.
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ब्रिटेन में, उनका निवेशक प्रॉपर्टी में दिखाई देता है. लंदन के बीचों-बीच बीचवुड हाउस नाम का उनका एक घर है जिसकी कीमत साढ़े छह करोड़ पाउंड है, और लंदन से ठीक बाहर सरे में, उनके पास एक हवेली है जिसनका नाम है सटन प्लेस.
ब्रिटेन सरकार ने दोनों को ज़ब्त कर लिया है.
उनके बिज़नेस पार्टनर फ़रहाद मोशिरी एक जानी-मानी फ़ुटबॉल कंपनी एवर्टन के मालिक हैं.
और उनकी कंपनियाँ यूएसएम, मेगाफ़न और योटा इस क्लब के मुख्य स्पॉन्सर हैं, और कई लोगों का ये भी मानना है कि उनकी इसमें और ज़्यादा भूमिका हो सकती है.
एवर्टन ने उनके साथ स्पॉन्सरशिप को बुधवार को रोक दिया, और मोशिरी ने यूएसएम के बोर्ड की सदस्यता छोड़ दी.
किसी ने नहीं लगाया प्रतिबंध
रोमन अब्रामोविच रूस के एक जाने-माने अरबपति हैं जो इंग्लैंड के जाने-माने फ़ुटबॉल क्लब चेल्सी के मालिक हैं. मगर उनके ऊपर अभी तक पाबंदी नहीं लगाई गई है, शायद इसलिए क्योंकि समझा जाता है कि पुतिन के दूसरे दोस्तों की अपेक्षा उनका रसूख कम है.
रूस में उनका कितना प्रभाव है, ये भी बहस का विषय रहा है. कुछ का मानना है कि पुतिन उन्हें बस झेल रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि उनका रिश्ता कहीं ज़्यादा क़रीबी है.
अब्रामोविच पुतिन या उनकी क्रेमलिन सरकार से क़रीबी संबंध की बात का पुरज़ोर तरीक़े से खंडन करते हैं, मगर यदि प्रतिबंध लगे तो उनकी 12.4 अरब डॉलर की संपत्ति पर ख़तरा हो सकता है.
पिछले सप्ताह उन्होंने घोषणा की कि वो चेल्सी क्लब को 3 अरब पाउंड (लगभग 300 अरब रुपये) में बेचना चाहते हैं, और बताया जाता है कि लंदन के केन्सिंग्टन पैलेस गार्डेन्स में 15 करोड़ पाउंड यानी लगभग 15 अरब रुपये का उनका घर भी बिक्री के लिए उपलब्ध है.
अब्रामोविच ने अपनी संपत्ति 1990 के दशक में बनाई और उनकी गिनती बोरिस येल्तसिन के दौर के असल ओलिगार्कों में होती है.
उन्हें सबसे बड़ा मौक़ा मिला जब उन्होंने सिबनेफ़्ट नाम की तेल कंपनी को कौड़ी की कीमतों में ख़रीदा.
उनकी संपत्तियों में एक्लिप्स शामि है, जो दुनिया की तीसरी सबसे लंबी यॉट है, जो पिछले सप्ताह ब्रिटिश वर्जिन आइल्स में सैर कर रही थी. साथ ही उनकी संपत्ति में सोलैरिस नाम की एक दूसरी यॉट भी आती है जो बार्सिलोना में तट पर टिकी थी.
उन्होंने हाल के कुछ सालों में ब्रिटेन से अपने आप को समेटना शुरू कर दिया है. 2018 में उन्होंने फ़ैसला किया कि वो ब्रिटिश वीज़ा को रिन्यू नहीं करवाएँगे. उन्होंने हाल में इसराइल का पासपोर्ट हासिल किया और अब वो उसी पासपोर्ट पर लंदन आवाजाही करते हैं.
और पहले वो इंग्लैंड में चेल्सी के अपने मैदान स्टैमफ़ोर्ड ब्रिज में होनेवाले टीम के हर मैच में मौजूद होते थे, वहाँ अब वो बहुत कम ही दिखाई देते हैं.
अमेरिका ने लगाया प्रतिबंध
राष्ट्रपति पुतिन जब सत्ता में आए थे, तो ओलेग डेरिपाक्सा के पास पहले से ही अकूत संपत्ति थी, तब उनके पास 28 अरब डॉलर की संपत्ति थी. मगर अब समझा जाता है कि उनकी संपत्ति घट कर 3 अरब डॉलर रह गई है.
90 के दशक में वो अल्युमिनियम के कारोबार में संघर्ष करते हुए शिखर तक पहुँचे. अमेरिका ने कहा कि वो मनी लॉन्डरिंग, रिश्वतख़ोरी, उगाही और गुटबाज़ी में लिप्त थे.
अमेरिका ने साथ ही आरोप लगाए कि "उन्होंने एक बिज़नेसमैन की हत्या के आदेश दिए और उनके तार एक रूसी संगठित आपराधिक गुट से जुड़े थे". वो इन आरोपों से इनकार करते हैं.
साल 2008 के वित्तीय संकट में उन्हें भारी घाटा हुआ, और उन्हें इससे उबरने के लिए पुतिन की ज़रूरत महसूस हुई. राष्ट्रपति पुतिन ने उन्हें बेइज़्ज़त किया जब सबके सामने उन्होंने ऐसे संकेत दिए कि उन्होंने एक पेन चुराया है.
उसके बाद से, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी स्थिति बदली, और मुएलर रिपोर्ट में उनका नाम एक ऐसे शख्स के तौर पर लिया गया, जो राष्ट्रपति पुतिन के काफ़ी क़रीबी थे. मुएलर रिपोर्ट 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की रूसी कोशिशों की अमेरिकी जाँच के बाद आई थी.
उन्होंने एक ग्रीन एनर्जी और मेटल्स कंपनी, एन+ ग्रुप की स्थापना की जो लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट की गई, मगर बाद में उन्होंने इस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 50% से कम कर ली.
जब उनपर 2018 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए. उस समय, उनकी एक बड़ी कंपनी बेसिक एलिमेंट ने एक बयान जारी किया था जिसमें इन प्रतिबंधों को "निराधार, हास्यास्पद और बकवास" बताया गया था.
उनके पास ब्रिटेन की सरे काउंटी के वेब्रिज में हैमस्टोन हाउस नाम की एक आर्ट डेको प्रॉपर्टी है जिसे वो ब्रिटेन में एक रूसी जासूस स्क्रिपाल को ज़हर देने की घटना के बाद ब्रिटेन और रूस के बीच गहराए विवाद के बाद से ही 1 करोड़ 80 लाख पाउंड यानी लगभग एक अरब 80 करोड़ रुपये में बेचना चाह रहे हैं.
उनके पास क्लियो नाम की एक यॉट भी है जो पिछले सप्ताह मॉलदीव में थी.
प्रतिबंधों का सामना करने वाले दूसरे ओलिगार्कों से अलग डेरिपास्का इस युद्ध को लेकर खुलकर राय जताते रहे हैं और सोशल मीडिया पर शांति की अपील करते रहे हैं. उन्होंने एक पोस्ट में लिखा- "जितनी जल्दी हो सके बातचीत शुरू होनी चाहिए."
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने लगाए प्रतिबंध
व्लादिमीर पुतिन के साथ इगोर सेचिन के संबंध पुराने और गहरे हैं - ये कहते हुए यूरोपीय संघ ने 28 फ़रवरी को उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंधों की घोषणा की. समझा जाता है कि वो पुतिन के सबसे वफ़ादार और क़रीबी सलाहकारों में से एक हैं, साथ ही वो उनके निजी मित्र भी हैं, और समझा जाता है कि दोनों में रोज़ाना बात होती है.
उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को निर्दयता से हटाते हुए तरक्की की, और इसलिए रूसी प्रेस में उनको डार्थ वेडर के नाम से पुकारा जाता है. 2008 के समय की अमेरिकी दूतावास के एक लीक दस्तावेज़ में उन्हें एक ऐसा शख़्स बताया गया था "जो इतना रहस्यमय है कि ये मज़ाक किया जाता है कि शायद उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है, बल्कि वो एक मिथक है, जिसे रूसी सत्ता ने भय पैदा करने के लिए गढ़ा है."
अमेरिका ने उनके ऊपर 2014 में प्रतिबंध लगाया था, जिसे उन्होंने पूरी तरह से "नाजायज़ और ग़ैर-क़ानूनी" बताया. अमेरिका ने 24 फ़रवरी को नए प्रतिबंधों का एलान किया.
सेचिन ने राजनीति और कारोबार दोनों में हाथ आज़माया, कई बार तो वो एक साथ दोनों ही क्षेत्रों में ऊँचे ओहदों पर रहे.
उन्होंने इसके पहले 90 के दशक में से पुतिन के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में मेयर दफ़्तर में काम किया था, और ऐसा बहुत लोग मानते हैं कि वो सोवियत ज़माने में ख़तरनाक मानी जाने वाली ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी के साथ थे, हालाँकि उन्होंने खुलकर इसे कभी स्वीकार नहीं किया है.
वो रूस में ही बसे हैं, मगर किसी को नहीं पता उनके पास कितने पैसे हैं. फ़्रांस ने एक समय उनकी एक यॉट अमॉरे वेरो को सीज़ कर लिया था, जिसका संपर्क उनसे बताया गया था जब उनकी दूसरी पत्नी ओल्गा सेचिना इस यॉट से तस्वीरें पोस्ट करती रहीं. उसके बाद उनका तलाक़ हो गया है.
मगर इन बातों के बावजूद, इस बात के आसार बहुत कम ही हैं कि उनकी विदेशों में जमा संपत्ति का आसानी से पता लगाया जा सकेगा, और इस यॉट के अलावा उनकी और संपत्तियों को ट्रैक कर उसे फ़्रीज़ किया जा सकेगा.
अमेरिका ने लगाया प्रतिबंध
अलेक्सी मिलर पुतिन के एक और पुराने दोस्त हैं. उन्होंने भी कामयाबी राष्ट्रपति पुतिन की वफ़ादारी के ज़रिए बनाई. इसकी शुरुआत तब हुई जब वो 90 के दशक में सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर कार्यालय की विदेशी संबंध समिति में पुतिन के सहायक थे.
वो 2001 से रूस की सरकारी तेल कंपनी गैज़प्रॉम के ताक़तवर प्रमुख रहे हैं, मगर उनकी नियुक्ति चौंकाने वाली थी, और ये माना जाता रहा है कि वो बस अपने पुराने आका का हुक्म बजा रहे हैं.
2009 में रूस में अमेरिका के राजदूत ने गैज़प्रॉम को एक "अक्षम, राजनीतिक और भ्रष्ट" कंपनी बताया था.
मिलर पर 2014 में क्राइमिया के विलय के बाद उनपर प्रतिबंध नहीं लगा था, मगर 2018 में जब अमेरिका का नाम लिस्ट में शामिल किया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसपर गर्व है.
तब उन्होंने कहा था, पहली लिस्ट में नाम नहीं आने के बाद मुझे तो संदेह होने लगा - "शायद कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं? मगर आख़िरकार मेरा नाम जोड़ा गया. इसका मतलब है कि हम जो भी कर रहे हैं वो सही है."
ऐसा लगता नहीं कि रूस के बाहर उनकी संपत्ति का आसानी से पता लगाया जा सकता है, और इस बात की जानकारी नहीं है कि उनकी कुल संपत्ति कितनी है.
यूरोपीय संघ से प्रतिबंधित
यूरोपीय संघ ने प्योत्र एवन (तस्वीर में बाईं ओर) को राष्ट्रपति पुतिन के सबसे क़रीबी ओलिगार्कों में से एक बताया है. और वो मिखाइल फ़्रिडमैन को पुतिन के अंदरुनी कुनबे को चलानेवाला शख़्स मानता है.
दोनों ने मिलकर रूस का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक अल्फ़ा बैंक बनाया.
मुएलर रिपोर्ट में कहा गया है कि एवन ने साल में लगभग चार बार पुतिन से मुलाक़ात की, और वो बैठकों मे पुतिन जो भी सुझाव या आलोचनाएँ किया करते थे, उसे निर्देश माना करते थे, और अगर वो उनका पालन नहीं करते तो उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता था."
इन दोनों को पुतिन ने 2016 में भविष्य में लग सकने वाले प्रतिबंधों को लेकर आगाह कर दिया था.
पिछले सप्ताह इन दोनों लोगों ने लंदन स्थित लेटरवन इन्वेस्टमेंट ग्रुप से इस्तीफ़ा दे दिया जिसे उन्होंने 10 साल पहले गठित किया था. यूरोपीय संघ ने 28 फ़रवरी को उनके शेयर फ्रीज़ कर दिए थे.
एवन ने लंदन के प्रतिष्ठित संगठन रॉयल एकेडमी ऑफ़ आर्ट्स के ट्रस्टी पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया है.
दोनों व्यवसायियों ने कहा कि वो "उन फ़र्ज़ी आधारों को पुरज़ोर तरीके़ से और हर उपलब्ध तरीक़े से चुनौती देंगे जिनके नाम पर प्रतिबंध लगाए गए हैं".
समझा जाता है कि फ़्रिडमैन की संपत्ति लगभग 12 अरब डॉलर होगी, और वो लंदन में लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंट से लगे एक घर में रहते हैं, और उनके पास लंदन में ऐथलॉन हाउस नाम की एक और विशाल प्रॉपर्टी है जो उन्होंने 2016 में साढ़े छह करोड़ पाउंड यानी लगभग साढ़े छह अरब रुपये में ख़रीदी थी.
पिछले सप्ताह लंदन में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने यूक्रेन युद्ध को एक बड़ी त्रासदी बताया, मगर कहा कि वो पुतिन सरकार की सीधी आलोचना नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने से सैकड़ों हज़ारों कर्मचारियों की नौकरियों पर ख़तरा हो सकता है. (bbc.com)
देश पर हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की रूस के आगे घुटने नहीं टेक रहे हैं लेकिन अब उन्होंने संकेत दिए हैं कि वो 'समझौते' के लिए तैयार हैं.
लगातार बातचीत की बात कह रहे ज़ेलेंस्की ने दोनेत्स्क, लुहांस्क और नेटो में यूक्रेन के शामिल होने पर खुलकर बात की है.
उन्होंने अमेरिकी टीवी चैनल एबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में कहा है कि वो यूक्रेन के लिए नेटो की सदस्यता के लिए ज़ोर नहीं लगा रहे हैं.
नेटो ही वो बड़ा मुद्दा है, जिसको लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बेहद असहज रहे हैं और कहा जाता है कि यही यूक्रेन पर रूसी हमले की एक बड़ी वजह है. पुतिन नहीं चाहते हैं कि नेटो उनके किसी पड़ोसी देश तक पहुँच बना सके.
इसके साथ ही ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन के दो रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क पर भी अपनी बात रखी है.
नेटो क्या है?
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे. इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था. तब दुनिया दो ध्रुवीय थी. एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन.
शुरुआत में नेटो के 12 सदस्य देश थे जो अब बढ़कर 30 हो गए हैं. नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे. नेटो में शामिल हर देश एक दूसरे की मदद करेगा.
लेकिन दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद कई चीज़ें बदलीं. नेटो जिस मक़सद से बना था, उसकी एक बड़ी वजह सोवियत यूनियन बिखर चुका था. दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी थी. अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा था. सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूस बना और रूस आर्थिक रूप से टूट चुका था.
रूस एक महाशक्ति के तौर पर बिखरने के ग़म और ग़ुस्से से ख़ुद को संभाल रहा था. कहा जाता है कि अमेरिका चाहता तो रूस को भी अपने खेमे में ले सकता था लेकिन वो शीत युद्ध वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हुआ और रूस को भी यूएसएसआर की तरह ही देखता रहा.
नेटो के विस्तार को लेकर पुतिन नाराज़ रहे हैं. मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, इस्टोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे. क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए. जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं.
नेटो पर क्या बोले ज़ेलेंस्की
एबीसी के इंटरव्यू में ज़ेलेंस्की से पूछा गया कि रूस की नेटो में न शामिल होने की मांग पर वो क्या कहते हैं? इस पर ज़ेलेंस्की ने कहा, "मैं बातचीत के लिए तैयार हूँ. जब हमें समझ आ गया कि नेटो हमें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, इसके बाद मैं काफ़ी पहले ही इस सवाल को पीछे छोड़ चुका था."
ज़ेलेंस्की ने कहा कि 'नेटो विवादित चीज़ों और रूस के साथ टकराव को लेकर काफ़ी डरता रहा है.
नेटो की सदस्यता पाने का हवाला देते हुए ज़ेलेंस्की ने कहा कि वो ऐसे देश के राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं जो घुटनों के बल गिरकर किसी चीज़ की भीख मांग रहा हो.
दो अलगाववादी क्षेत्रों पर क्या बोले
यूक्रेन पर 24 फ़रवरी को हमला करने से एक दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के दो अलगाववादी रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित कर दिया था.
ज़ेलेंस्की से इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि रूस यूक्रेन पर हमला बंद करने के लिए तीन मांगें कर रहा है, जिनमें पहली नेटो में न शामिल होना, दूसरी क्राइमिया को रूसी क्षेत्र मानना और तीसरी दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित करना शामिल है.
इस सवाल पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उनके दरवाज़े बातचीत के लिए पूरी तरह खुले हुए हैं.
उन्होंने कहा, "मैं सुरक्षा गारंटी की बात कर रहा हूँ. मुझे लगता है कि अस्थायी तौर पर क़ब्ज़ा किए गए क्षेत्र को रूस को छोड़कर किसी ने भी मान्यता नहीं दी है और ये छद्म राष्ट्र हैं. लेकिन हम इस पर बात कर सकते हैं और इस पर समझौता कर सकते हैं कि कैसे ये क्षेत्र आगे चल सकते हैं."
"मेरे लिए यह ज़रूरी है कि इन क्षेत्रों में रह रहे लोग कैसे ज़िंदगी जीने वाले हैं और यूक्रेन का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो भी यूक्रेन में हैं वो कहेंगे कि वो उन्हें चाहते हैं. इसलिए यह सवाल उनको मान्यता दे देने से अधिक कठिन है."
इसके बाद ज़ेलेंस्की ने सीधे रूसी राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पुतिन को 'इन्फ़ॉर्मेशन बबल' से निकलकर बातचीत करने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, "ये फिर से अतिंम चेतावनी है और हम अंतिम चेतावनियों के लिए तैयार नहीं हैं. राष्ट्रपति पुतिन को यह करने की ज़रूरत है कि वो बातचीत शुरू करें. बिना ऑक्सीजन के इन्फ़ॉर्मेशन बबल में रहने की जगह वो बातचीत शुरू करें. वो उस बबल में रह रहे हैं, जहाँ पर उन्हें हक़ीक़त का पता नहीं चल रहा है."
उन्होंने कहा कि अगर वो यूक्रेन छोड़ देंगे तो वो ज़िंदा ज़रूर रहेंगे लेकिन वो कभी एक इंसान नहीं रह पाएंगे.
वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति के रूसी तेल और गैस के आयात को रद्द करने के फ़ैसले का ज़ेलेंस्की ने स्वागत किया है. उन्होंने ट्वीट करके राष्ट्रपति जो बाइडन को शुक्रिया कहा है.
ज़ेलेंस्की ने कहा है कि दुनिया के दूसरे नेताओं को भी ऐसे ही क़दम उठाने की ज़रूरत है ताकि 'पुतिन की युद्ध की मशीन के सीधे दिल' पर हमला हो.
इसके अलावा ज़ेलेंस्की ने मंगलवार को ब्रिटिश संसद को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों से रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
ज़ेलेंस्की ने ब्रिटिश संसद को संबोधित करते हुए कहा कि यूक्रेनी लड़ते रहेंगे. उन्होंने पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का हवाला देते हुए कहा कि 'हम लड़ेंगे.. हम लड़ेंगे जंगलों में, मैदानों में, तटों पर और सड़कों पर.'
रूस की क्या है मांग
रूसी सरकार के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था कि अगर उसकी शर्तों को मान लिया जाता है तो वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ 'बिना देरी किए तुरंत' सैन्य अभियान रोकने के लिए तैयार हैं.
प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोफ़ ने कहा था कि मॉस्को की मांग है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को बंद करे, अपने संविधान में बदलाव करते हुए तटस्थता स्थापित करे, क्राइमिया को रूसी क्षेत्र के रूप में मान्यता दे और अलगाववादी क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे.
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस का यह बेहद स्पष्ट बयान है. पेस्कोफ़ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ इंटरव्यू के दौरान कहा कि यूक्रेन को इन शर्तों के बारे में मालूम है और 'उनसे कहा जा चुका है कि सब कुछ एक लम्हे में रोका जा सकता है.'
इंटरव्यू के दौरान रूसी सरकार के प्रवक्ता ने साफ़ किया था कि रूस यूक्रेन में किसी ज़मीन पर दावा नहीं कर रहा है और न वो किसी क्षेत्र को क़ब्ज़ा करना चाहता है. साथ ही उन्होंने कहा कि राजधानी कीएव को रूस को सौंप देने की मांग 'सच नहीं' है.
"हम वास्तव में यूक्रेन के सैन्यीकरण को समाप्त कर रहे हैं. हम इसे ख़त्म करेंगे. लेकिन मुख्य चीज़ यह है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को रोके. उन्हें अपनी सैन्य कार्रवाई को रोकना चाहिए और फिर कोई भी गोली नहीं चलाएगा."
संविधान में बदलाव और तटस्थ रहने पर रूस का कहना है कि यूक्रेन को अपने संविधान में ऐसे बदलाव करने चाहिए ताकि वो किसी भी गठबंधन को अपने देश में घुसने से रोक सके.(bbc.com)
नई दिल्ली, 9 मार्च | अमेरिका में रूसी राजदूत, अनातोली एंटोनोव ने कहा कि अमेरिका यूक्रेन में जैविक हथियारों के नियमों के उल्लंघन के तथ्यों की पुष्टि से चिंतित है। आरटी ने इसकी जानकारी दी है। इससे पहले उप विदेश मंत्री विक्टोरिया नुलैंड ने कहा था कि अमेरिका रूस की सेना को यूक्रेन में जैविक प्रयोगशालाओं से अनुसंधान सामग्री प्राप्त करने से रोकने की कोशिश कर रहा है।
आरआईए नोवोस्ती ने कहा, "यूक्रेन में जैविक अनुसंधान के लिए सुविधाएं हैं। हम चिंतित हैं कि रूसी सेना उन पर नियंत्रण करने की कोशिश कर सकती है, इसलिए हम यूक्रेनियन के साथ काम कर रहे हैं कि इन शोध सामग्री को रूसी सेना के हाथों में गिरने से कैसे रोका जाए।"
आरटी ने बताया, दूतावास द्वारा उनके शब्दों को संदर्भित करते हुए एंटोनोव ने कहा, "विदेश विभाग के एक प्रतिनिधि के बयान से संकेत मिलता है कि अमेरिका को डर है कि इन सुविधाओं में संग्रहीत रोगजनक रूसी विशेषज्ञों के हाथों में पड़ जाएंगे। इस मामले में, यूक्रेन और अमेरिका द्वारा जैविक निषेध पर कन्वेंशन का उल्लंघन और टॉक्सिन वेपन्स की पुष्टि की जाएगी।"
एंटोनोव ने कहा, "विशेष रूप से खतरनाक रोगजनकों के विनाश के बारे में जानकारी है जिनमें प्लेग, एंथ्रेक्स, टुलारेमिया, हैजा और अन्य घातक बीमारियों के प्रेरक शामिल हैं।
रूस ने पहले कहा था कि अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य जैविक कार्यक्रम के तहत लविवि, खारकोव और पोल्टावा में 30 से अधिक प्रयोगशालाएं खतरनाक संक्रामक एजेंटों के साथ काम कर रही हैं। (आईएएनएस)
रूस के यूक्रेन पर जारी हमले के दौरान बढ़ते शरणार्थी संकट के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस से तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. मंगलवार को बाइडेन ने इसका ऐलान किया.
अमेरिका ने रूस से तेल आयात पर बैन लगा दिया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार को इसकी घोषणा की. सुरक्षा विशेषज्ञ इस कदम को बहुत बड़ी कार्रवाई मानते हुए कह रहे हैं कि यही एक ऐसा कदम है जो रूस को कदम पीछे हटाने पर मजबूर कर सकता है. हालांकि माना जा रहा है कि इस कार्रवाई का असली असर तभी होगा जबकि यूरोपीय देश भी इसे लागू करें. लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कितने यूरोपीय देश यह कदम उठा पाएंगे. हालांकि ब्रिटेन ने मंगलवार को कहा है कि वह साल के आखिर तक रूस से तेल का आयात चरणबद्ध तरीके से बंद कर देगा.
अमेरिका के मुकाबले रूस पर यूरोप की ऊर्जा निर्भरता कहीं ज्यादा है. सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. लेकिन अमेरिका उससे थोड़ी मात्रा में ही तेल आयात करता है जिसका विकल्प खोजना आसान है. लेकिन यूरोप के लिए निकट भविष्य में तो ऐसा करना आसान नहीं दिखता.
एक और खतरा तेल कीमतों में बेतहाशा वृद्धि भी है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही दुनियाभर में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. अगर रूस से आयात बंद कर दिया जाता है तो उपभोक्ताओं, उद्योगों और वित्तीय बाजारों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.
अमेरिकी प्रतिबंध का असर
अमेरिका में गैसोलिन के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं. बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन की मांग मानते हुए रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है. हालांकि रूस पर इसका बहुत ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है क्योंकि अमेरिका बहुत कम तेल रूस से खरीदता है और प्राकृतिक गैस तो बिल्कुल नहीं लेता है.
पिछले साल अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात का सिर्फ 8 प्रतिशत रूस से आया था. 2021 में इसकी मात्रा 24.50 करोड़ बैरल थी, यानी लगभग 6,72,000 बैरल प्रतिदिन. लेकिन रूस से आयात रोजाना घट रहा है क्योंकि खरीदार भी रूसी तेल को ना कह रहे हैं.
लेकिन रूस पर फिलहाल इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि इतनी ही मात्रा में वह अपना तेल कहीं और बेच सकता है. चीन और भारत उसके संभावित ग्राहक हैं. पर उसे यह तेल कम कीमत पर बेचना होगा क्योंकि उसके तेल के ग्राहक लगातार घट रहे हैं.
वेनेजुएला, ईरान को होगा फायदा
रिस्टाड एनर्जी में विश्लेषक क्लाउडियो गैलिम्बेर्टी कहते हैं कि आने वाले समय में अगर रूस को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाता है तो ईरान और वेनेजुएला जैसे तेल विक्रेता देशों की वापसी अंतरराष्ट्रीय बाजार में हो सकती है, जिनकी अपनी छवि अच्छी नहीं है. इनकी वापसी से तेल की कीमतों को दोबारा स्थिर किया जा सकता है.
पिछले हफ्ते ही अमेरिका का एक दल वेनेजुएला में था और प्रतिबंध हटाने पर बातचीत हुई है. अमेरिकी प्रेस सचिव जेन साकी ने बताया कि इस दल ने ऊर्जा सहित कई मुद्दों पर विचार-विर्मश किया है.
क्लीयव्यू एनर्जी पार्टनर्स के प्रबंध निदेशक केविन बुक कहते हैं, "कुछ मांग घटाकर हम रूसी तेल के दामों में कमी को बाध्य कर रहे हैं. इससे रूस का रेवन्यू कम होगा. सिद्धांत में तो यह रूस की आय को कुछ हद तक कम कर सकता है. लेकिन सबसे जरूरी सवाल यह है कि महाद्वीप के दूसरी तरफ से भी कुछ प्रतिक्रिया होती है या नहीं.”
ऊर्जा कंपनी शेल ने मंगलवार को कहा है कि वह रूस से तेल और प्राकृतिक गैस नहीं खरीदेगी और वहां अपने पेट्रोल पंप भी बंद कर देगी. लेकिन इसका असर कीमतों पर बहुत अधिक हो सकता है. पिछले महीने तेल 90 डॉलर प्रति बैरल था जो अब 130 डॉलर तक जा पहुंचा है. विशेषज्ञों को आशंका है कि यह 200 डॉलर प्रति बैरल तक भी जा सकता है.
कॉलराडो स्कूल ऑफ माइंल में पाएन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर मॉर्गन ब्राजीलियन कहते हैं, "अमेरिका द्वारा रूस के तेल पर प्रतिबंध राजनीतिक रूप से तो आकर्षक कदम लगता है लेकिन जब अमेरिका में तेल के दाम बढ़ेंगे तो यह बाइडेन सरकार पर ही चोट करेगा."
क्या यूरोप साथ देगा?
यूरोप को यह कदम उठाने के लिए बहुत दर्द सहन करना होगा. यूरोप में गैस हीटिंग, बिजली और अन्य ओद्यौगिक इस्तेमाल के लिए 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस रूस से आती है. यूरोप के नेता रूस पर अपनी निर्भरता घटाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उसमें समय लगेगा.
ब्रिटेन के व्यापार मंत्री क्वासी क्वार्टेंग कहते हैं कि उनका देश चरणबद्ध तरीके से साल के आखिर तक रूस के तेल को खरीदना बंद करेगा ताकि "बाजार को इनका विकल्प खोजने के लिए समुचित समय मिल पाए.”
जर्मनी, जो कि रूस का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उपभोक्ता है, फिलहाल तो प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार नहीं है. देश के अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्टन हाबेक ने मंगलवार को यूरोप के रूस पर ऊर्जा प्रतिबंध ना लगाने के फैसले का बचाव किया.
हाबेक ने कहा, "प्रतिबंधों को सोच-समझकर चुना गया है ताकि वे रूसी अर्थव्यवस्था और पुतिन सरकार को गंभीर नुकसान पहुंचाएं. लेकिन उनका चुनाव करते वक्त यह भी ध्यान में रखा गया है कि एक अर्थव्यवस्था और एक देश के रूप में हम इन प्रतिबंधों को लंबे समय तक कायम रख सकें. बिना सोचे-समझे फैसला लेने का असर एकदम उलटा हो सकता है.”
वीके/एए (रॉयटर्स, डीपीए)
यूक्रेन युद्ध के व्यापक आर्थिक असर नजर आने लगे हैं. हालांकि यूरोप और अमेरिका में व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है लेकिन भारत के कम से कम गेहूं व्यापारियों को खासा फायदा हुआ है.
भारत ने पिछले कुछ दिनों में पांच लाख टन गेहूं निर्यात के समझौते किए हैं. व्यापारियों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के कारण कीमतों में बहुत तेजी आई है, जिसका फायदा दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश भारत को हो रहा है.
कुछ व्यापारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि पिछले कुछ दिनों में उन्हें विदेशों से बहुत सारे खरीदारों ने संपर्क किया है जो काला सागर के रास्ते आने वाले गेहूं का विकल्प खोज रहे हैं क्योंकि रूस के यूक्रेन पर हमले ने इस सप्लाई रूट को प्रभावित किया है. रूस और यूक्रेन को गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र हासिल है. दुनिया के कुल गेहूं निर्यात का 30 फीसदी इन्हीं दोनों देशों से आता है.
भारत में पिछली पांच फसलों से रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन हुआ है. इसके चलते उसके गेहूं भंडार भरे हुए हैं और व्यापारी निर्यात की संभावनाओं को लेकर खासे उत्सुक हैं. चूंकि भारत में सरकारी न्यूनतम मूल्य ऊंचा है इसलिए भारत को गेहूं निर्यात का फायदा तभी ज्यादा होता है जबकि वैश्विक बाजार में दाम ऊंचे हों. एक ग्लोबल ट्रेडिंग फर्म में काम करने वाले डीलर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "वैश्विक बाजार में ऊंचे दामों ने भारतीय निर्यातकों के लिए गेहूं की मांग पूरी करना आसान बना दिया है.”
गेहूं की कीमतें आसमान पर
सोमवार को यूरोपीय गेहूं की कीमत 400 यूरो प्रति टन यानी लगभग 33 हजार रुपये पर पहुंच गई थी जो कि पिछले 14 साल में सबसे ज्यादा है. इसके उलट भारत में गेहूं उत्पादकों को लगभग 19,700 रुपये प्रति टन का न्यूनतम मूल्य मिलता है.
यूक्रेन युद्ध को लेकर एक चिंता यह भी है कि रूस खाद के भी सबसे बड़े निर्यातकों में से है. रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों के चलते वहां से फर्टिलाइजर आने बंद होंगे तो घरेलू बाजारों में खाद के दाम बढ़ जाएंगे. जिसका असर फसलों की कीमतों पर भी पड़ेगा.
फर्टिलाइजर की कीमत पिछले साल से लगभग दोगुनी हो चुकी है. नाइट्रोजन आधारित यूरिया और दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला फासफोरस आधारित डायमोनियम फास्फेट पिछले साल के मुकाबले क्रमशः 98 प्रतिशत और 68 प्रतिशत महंगा हो चुका है. यह महंगाई किसानों को चिंतित कर रही है और इसका असर उनकी खरीद पर दिखने लगा है.
भारत का रिकॉर्ड निर्यात
इस साल भारत रिकॉर्ड 70 लाख टन गेहूं का निर्यात करेगा. एक डीलर के मुताबिक, "जो खरीदार यूक्रेन और रूस से सप्लाई बाधित होने के लेकर चिंतित हैं, वे जानते हैं कि इस वक्त सिर्फ भारत इतना बड़ा और स्थिर सप्लायर हो सकता है. इसलिए वे भारत की ओर रुख कर रहे हैं.” इस डीलर ने बताया कि कुछ ही दिन में पांच लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे हो चुके हैं.
यूनिकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड में काम करने वाले ट्रेडर राजेश पहाड़िया जैन कहते हैं, "ज्यादातर सप्लायर 340 से 350 डॉलर प्रति टन के भाव पर सौदा कर चुके हैं.” इससे पहले 305-310 डॉलर प्रति टन के भाव पर भी गेहूं निर्यात हुआ है.
इस बारे में भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि सरकार निर्यात को प्रोत्साहित करेगी. इस अधिकारी ने कहा, "हमारा रुख निर्यात के प्रति समर्थक है और हम निजी क्षेत्र के जरिए गेहूं की सप्लाई की सुविधा उपलब्ध कराएंगे.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
रूस और पश्चिमी देशों के तकरार से इंडो-पैसिफिक देशों के लिए शीत युद्ध जैसी स्थिति अचानक सामने आ गई जिससे निपटने का फार्मूला उनके पास पहले से था. ये चुप्पी पश्चिम की भूमिका और अमेरिकी प्रतिबद्धता तय होने के बाद ही टूटेगी.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट-
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन में रूस के तथाकथित स्पेशल मिलिट्री आपरेशन की शुरुआत के बाद से विश्व व्यवस्था में मानो भूचाल सा आ गया है. यूरोप में बेचैनी का माहौल है तो अमेरिका इस बात को लेकर परेशान है कि बिना युद्ध के मैदान में कूदे रूस को कैसे पटखनी दी जाय.
रूस और यूक्रेन की सेनाओं के बीच लगातार चल रही जवाबी सैन्य कार्रवाई और हिंसा के चलते राजधानी कीव समेत यूक्रेन के कई शहर तेजी से मलबे में बदल रहे हैं. अब तक 20 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी के तौर पर यूरोप और दुनिया के दूसरे इलाकों में शरण ले चुके हैं. लगता है कि आने वाले दिनों में यह संख्या चालिस लाख के आंकड़े को भी पार कर जायेगी.
रूस-यूक्रेन युद्ध का आम जनजीवन पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. रूस से सहानुभूति रखने वाली यूक्रेनी जनता के साथ-साथ वहां शिक्षा और रोजगार की तलाश में गए दूसरे देशों के लोग भी युद्ध में हो रही तबाही की चपेट में आ रहे हैं.
रूस ने किसे मित्र नहीं माना
रूस को हमला रोकने से मनाने की कोशिशें अब तक नाकाम रही हैं. इसी घटनाक्रम में 7 मार्च को रूस ने उन देशों की सूची जारी की जिन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के साथ मित्रता के दायरे में रह कर व्यवहार नहीं किया. यूरोपीय संघ के 27 देशों और ताइवान के अलावा एक दर्जन से अधिक देशों की इस दिलचस्प सूची में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, और सिंगापुर के अलावा इंडो पैसिफिक का कोई दक्षिण पूर्वी एशियाई देश नहीं है.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन तमाम देशों में ज्यादातर वही देश हैं जिनके अमेरिका से मजबूत सैन्य और कूटनीतिक रिश्ते हैं. अगर इस मुद्दे पर इंडो-पैसिफिक के तमाम देशों के नजरिये पर गौर किया जाय तो साफ पता चलता है कि इस क्षेत्र के तमाम देश रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर चुप ही हैं.
यह भी अपने आप में एक विडंबना ही है कि भारत, चीन और पाकिस्तान इस मुद्दे पर लगभग एक जैसी राय रखते हैं. भारत, चीन, और संयुक्त अरब अमीरात - तीनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में तटस्थ रूख अपनाया. कमोबेश यही हाल दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया, और हिन्द महासागर क्षेत्र के तमाम देशों का रहा है. मोटे तौर पर यही तीन क्षेत्र इंडो-पैसिफिक की भौगोलिक सीमा का निर्धारण करते हैं.
चीन ने रूस से क्या सीखा
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तमाम छोटे बड़े देशों में खास तौर से चीन के पड़ोसी देशों में इस बात को लेकर खासी चिंता है कि कहीं रूस की अपने छोटे पड़ोसी देश पर हमले की घटना और उसे लेकर अमेरिका की लचर नीति से सबक लेकर कहीं चीन भी ऐसा ना करे. दबी जबान में इस बात का विरोध करने के बावजूद यह देश मुखर तौर पर रूस या यूक्रेन (और पश्चिमी देशों) का साथ देने से बचने की कोशिश कर रहे हैं. इस बात की कई वजहें हैं जिन्हे समझना जरूरी है.
पहली बात यह है कि इंडो-पैसिफिक के यह तमाम देश दशकों से गुटनिरपेक्षता और दूसरे देशों के मामलों में दखल ना देने की नीति पर यकीन और अमल करते रहे हैं. रूस और पश्चिमी देशों के बीच इस तकरार से इंडो-पैसिफिक के इन तमाम देशों के लिए शीत युद्ध जैसी स्थिति अचानक सामने आ गयी है जिससे निपटने की तरकीब उनके पास पहले से ही थी. तो जब तक स्थिति स्पष्ट न हो जाय यह देश तटस्थ ही रहेंगे यह बात साफ है.
दूसरी बात यह कि भारत समेत इंडो-पैसिफिक के तमाम देशों के लिए रूस एक भरोसेमंद सहयोगी रहा है. खास तौर पर रक्षा संबंधों के मामले में वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार, ईरान, और चीन जैसे देशों के लिए भी भारत जैसी स्थिति ही है.
यूरोप की कमजोर हालत
तीसरा और शायद सबसे महत्वपूर्ण कारण है यूक्रेन के मामले में यूरोप की कमजोर हालत और अमेरिका की लचर भूमिका. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस युद्ध से यूरोप के वैश्विक राजनीति में स्थान पर असर पड़ा है. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप की इंडो-पैसिफिक में रुचि भले ही रहे, प्राथमिकताएं जरूर बदल जाएंगी.
रूस के यूरोप को गैस आपूर्ति बंद करने की धमकी के बाद यूरोप की स्थिति और गंभीर हो गयी है. यूरो पिछले कई सालों में अमेरिकी डालर के मुकाबले सबसे कम स्तर पर पहुंच गया है और शायद अभी इसके संभलने में और समय लगेगा.
पिछले लगभग डेढ़ दशक से यूक्रेन को रूस के खिलाफ तथाकथित तौर पर तैयार करने और भड़काने के बावजूद आज जब यूक्रेन पर हमला हुआ है तो यूक्रेन छोड़िये अमेरिका, यूरोप के साथ भी अपनी वचनबद्धता नहीं दिखा रहा है.
अमेरिका का रुख
रहा सवाल अमेरिका का तो नाटो के विस्तार, यूरोपीय संघ में जगह, अमेरिका की सोहबत जैसे बड़े - बड़े वादों के बीच आज यूक्रेन की हालत यह है कि जो बाइडेन ने साफ कर दिया है कि अमेरिका रूस-यूक्रेन के मामले में कोई सैन्य कार्यवाही नहीं करेगा.
इस बात ने कहीं ना कहीं दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में संशय तो पैदा ही किया है. बाइडेन प्रशासन ने इंडो-पैसिफिक पर अपना खासा ध्यान केंद्रित कर रखा है शायद इसीलिए अमेरिका को इंडो-पैसिफिक देशों की चिंताएं समझने में ज्यादा समय नहीं लगा और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के साथ बातचीत की कोशिश की खबर सामने आ गयी.
जहां भारत की रूस से नजदीकियों को अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने ऑस्ट्रेलिया में हुई बैठक में 'समझा' तो वहीं दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के नजरिये को समझने के लिए राष्ट्रपति बाइडेन ने मार्च के अंत में आसियान देशों के साथ बैठक की पेशकश की है.
हालांकि वर्तमान आसियान अध्यक्ष कंबोडिया ने पहले ही बैठक को स्थगित करने की बात कह दी है लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों को इंडो-पैसिफिक देशों के साथ संवाद कायम रखना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो इंडो-पैसिफिक व्यवस्था स्थापित करने का अमेरिकी सपना सपना ही रह जायेगा.
पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती दादागीरी रोकने के लिए दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों को सामरिक तौर पर पास लाने की कोशिश की है. दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों पर लगाम लगाने की कोशिश में अमेरिका को सफलता तो मिली है लेकिन बुरे समय में अमेरिका इन देशों के लिए साथ खड़ा होगा या नहीं यह फिलहाल एक यक्ष प्रश्न है. (dw.com)
रूसी हवाई सीमा और रूसी विमानों पर प्रतिबंध के दायरे में दुनिया भर के विमानों की सेवाएं आएंगी. रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का दायरा इतना बड़ा है कि इसके असर का आकलन बहुत जटिल है.
रूस के विशाल आकार और दुनिया के विमानन उद्योग से करीबी रिश्ते का मतलब है कि यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंधों का असर ईरान और उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों की तुलना में बहुत ज्यादा होगा. एयरोफ्लोट, एस सेवन और एयर ब्रिज कार्गो जैसे एयरलाइनों के लिए विमान बनाने से लेकर लीज पर देने वाली और इंश्योरेंस से लेकर रखरखाव की चिंता करने वाली कंपनियों के लिए इन प्रतिबंधों का मतलब भारी नुकसान है.
इनके अलावा विदेशी एयरलाइनें इस बीच रूसी एयरस्पेस से बचने के कारण लंबा रूट लेने पर विवश हैं. लंबा रूट यानी ज्यादा ईंधन का खर्च और इन सब का नतीजा टिकटों और माल ढुलाई की बढ़ी कीमतें.
विमानों के लीज और इंश्योरेंस पर असर
रूसी एयरलाइन दुनिया में किराए पर विमान देने वाले उद्योग पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. एयरलाइनों को अपने बेड़े में एयरबस और बोइंग के विमानों को आधुनिक बनाने के लिए इनकी बहुत जरूरत है. रूसी एयरलाइनों के पास यात्री सेवा में 980 विमान हैं. इनमें से 777 लीज यानी किराये पर हैं. ये आंकड़े एनालिटिक्स फर्म सिरियम के हैं. इन 777 विमानों में से 515 की कीमत तकरीबन 10 अरब डॉलर है और इन्हें एयरकैप और एयरलीज जैसी विदेशी फर्मों से किराये पर लिया गया है.
यूरोपीय संघ ने किराये पर विमान देने वाली कंपनियों को रूस में किए करारों को खत्म करने के लिए 28 मार्च तक का समय दिया है. हालांकि एयरस्पेस पर पाबंदी और स्विफ्ट पेमेंट ट्रांसफर में दिक्कतों के चलते इन विमानों को वापस लाना भी एक बड़ी चुनौती होगी. ऐसे में डर यह है कि रूसी सरकार घरेलू क्षमता को बनाए रखने के लिए विमान के बेड़ों का राष्ट्रीयकरण कर सकती है.
रूस की सरकारी विमानन प्राधिकरण ने निर्देश दिए हैं कि जिन एयरलाइनों के पास विदेशी विमान लीज पर हैं, उन्हें वो देश के बाहर भेजना बंद कर दें. अगर ये विमान आनन फानन में वापस ले भी लिए गए, तो इनकी बड़ी संख्या को कहीं और किराये पर डालना होगा. विश्लेषकों का कहना है कि इसकी वजह से दुनिया भर में किराये में भारी कमी आ सकती है.
रूसी एयरलाइनों को यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बाजार से इंश्योरेंस और रिइंश्योरेंस भी बंद कर दिया गया है. इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि यह साफ नहीं है कि विमान लीज पर देने वाला अगर विमान वापस नहीं दे पाता है, तो उसे घाटे के लिए बीमा कंपनी से सुरक्षा मिलेगी या नहीं. आमतौर पर इंश्योरेंस में ऐसे प्रावधान होते हैं कि प्रतिबंध लगने की स्थिति में बीमा की सुरक्षा अपने आप रद्द हो जाएगी. इन मामलों को सुलझाने के लिए कानूनी कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है.
बिक्री, रख रखाव, मरम्मत और कलपुर्जे पर पाबंदी
रूसी एयरलाइनों ने एयरबस और बोइंग से 62 विमान ऑर्डर पर लिए हैं, लेकिन अब इनकी डिलीवरी पर रोक लग जाएगी. फिलहाल उनके पास जो विमान हैं उनके रख रखाव से लेकर मरम्मत और कलपुर्जे की आपूर्ति देने वाली कंपनियां भी अपना काम बंद कर देंगी. जर्मनी की लुफ्थांसा टेक्निक ने कहा है कि उसने रूसी ग्राहकों की सेवा बंद कर दी है, उनके पास सैकड़ों विमानों के लिए करार था.
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने खबर दी है कि रूसी परिवहन मंत्रालय ने एयरलाइनों की मदद के लिए एक ड्राफ्ट बिल तैयार किया है. इसके तहत सितंबर 2022 तक किसी थर्ड पार्टी से रख रखाव का काम कराया जा सकेगा. इसके साथ ही एयरलाइनों का निरीक्षण भी रद्द हो जाएगा.
एविएशन के जानकार इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि प्रतिबंधों के कारण विमान बनाने वाली कंपनियां सर्विस बुलेटिन साझा नहीं करेंगी और साथ ही हवाई सुरक्षा के निर्देशों का भी, जो सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम हैं.
तेल की बढ़ती कीमत और लंबी उड़ानें
पेट्रोलियम की कीमतें 2008 के बाद अपने सर्वोच्च स्तर पर हैं. इस बीच अमेरिका ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. फ्यूल सरचार्ज और किराया बढ़ा कर एयरलाइन कुछ दबाव को घटाने की कोशिश कर रही हैं, खासतौर से ऐसे समय में जब महामारी के चलते विमान यात्रियों की संख्या पहले ही बहुत कम है. रूसी एयरस्पेस के प्रतिबंधों की वजह से विमानों को लंबा रूट लेना पड़ रहा है और ऐसे में तेल की ऊंची कीमतों का दर्द और ज्यादा महसूस होगा. कई उड़ानों के लिए तो इसकी वजह से उड़ान का समय 3.5 घंटे तक बढ़ गया है.
सबसे ज्यादा असर यूरोप और जापान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे उत्तर एशियाई देशों को जाने वाले विमानों पर हुआ है. इसके अलावा दक्षिण पूर्वी एशिया, यूरोप, और भारत पर भी एयस्पेस की पाबंदी का असर है.
लंबी उड़ानों का मतलब केवल तेल ही नहीं बल्कि कर्मचारियों पर होने वाला खर्च, कम सामान की ढुलाई और रख रखाव पर ज्यादा खर्च के साथ ही उन विमानों के बढ़े किराये के रूप में सामने आता है जिन्हें उड़ान के घंटों के हिसाब किराये पर लिया गया है.
एनआर/एसएम(रॉयटर्स)
रूसी हमले के बाद लाखों लोग यूक्रेन से निकलकर आसपास के देशों में शरण ले चुके हैं. अभी भी पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया जैसे देशों में लगातार यूक्रेनी शरणार्थी पहुंच रहे हैं. इन शरणार्थियों में शामिल एक बच्चे ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. 11 साल का यह बच्चा अकेले 1,200 किलोमीटर की यात्रा कर यूक्रेन के ज़ेपोरज़िया से स्लोवाकिया पहुंचा है.
इस बच्चे का नाम हसन है. हसन की मां उसकी बुज़ुर्ग नानी को अकेला नहीं छोड़ सकती थीं, इसलिए उन्होंने एक पासपोर्ट, 2 छोटे बैग और रिश्तेदार के फ़ोन नंबर के साथ उसे बॉर्डर तक जाने वाली ट्रेन में चढ़ा दिया. जहां कस्टम अधिकारियों ने स्लोवाकिया पहुंचने में उसकी मदद की.
अधिकारियों ने बच्चे को बहादुर बताते हुए कहा कि उसकी मुस्कुराहट ने लोगों का दिल जीत लिया.
यह बच्चा स्लोवाकिया सीमा पर एक प्लास्टिक बैग, एक छोटे लाल बैग और अपने पासपोर्ट के साथ पहुंचा था. वहां वॉलेंटियर्स ने उसे खाने-पीने की चीज़ें दीं, वहीं बॉर्डर पर अधिकारियों ने स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में उसके रिश्तेदार से संपर्क किया.
स्लोवाकिया की पुलिस द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो में बच्चे की मां ने बेटे की मदद के लिए सबको शुक्रिया कहा है. उन्होंने इस वीडियो में बताया है कि रूसी हमले के बीच बच्चे को इतनी लंबी यात्रा क्यों करनी पड़ी.
हसन की मां जुलिया पिसेका ने इस वीडियो में कहा, ''मेरे शहर के पास एक पावर प्लांट है, जहां रूसी गोलाबारी कर रहे हैं. मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकती और वो कहीं जाने की हालत में नहीं है. इसलिए मैंने अपने बेटे को स्लोवाकिया भेज दिया.'' जुलिया के पति की पहले ही मौत हो चुकी है.
ज़ेपोरज़िया न्यूक्लियर पावर प्लांट यूरोप में सबसे बड़ा है. इसे पिछले हफ़्ते रूसी सेना ने अपने क़ब़्जे में ले लिया था. पावर प्लांट पर रूसी हमले के बाद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने चेताया था कि रूसी गोलीबारी की वज़ह से यहां चेर्नोबिल से भी बड़ा हादसा हो सकता है.
रूसी हमले के बाद 20 लाख से ज़्यादा यूक्रेनी पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं. इनमें अकेले 12 लाख से ज़्यादा लोगों ने पोलैंड में शरण ली है, जबकि 1.4 लाख लोग स्लोवाकिया पहुंचे हैं.
जुलिया ने इस वीडियो में नम आंखों से गुहार लगाई कि यूक्रेन के बच्चों को सुरक्षित ज़गह पर रखा जाए.
स्लोवाकिया के गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि हसन ने अपनी मुस्कुराहट, निर्भिकता और दृढ़ निश्चय से लोगों का दिल जीत लिया.
गृह मंत्री रोमन मिकुलेक ने सोमवार को हसन से मुलाक़ात की. उन्होंने बताया कि उसके भाई ने पहले ही अस्थायी संरक्षण की मांग की थी.
स्लोवाकिया के अधिकारियों ने बच्चे की मां और नानी की मदद के इच्छुक लोगों से स्लोवाक क्रिश्चिन यूथ एसोसिएशन ज़ेडकेएसएम में दान की अपील की है. (bbc.com)
-सरोज सिंह
यूक्रेन पर रूस हमला करेगा तो इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा, यह बात बहुत पहले से ही कही जा रही थी. अब ऐसा होता दिख भी रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें रिकॉर्ड तोड़ रही हैं. ज़ाहिर है आने वाले दिनों में इसका असर भारत में भी होगा.
भारत की मुद्रा रुपया भी इस संकट की चपेट में है. 24 फ़रवरी को रूस ने यूक्रेन में 'विशेष सैन्य अभियान' की घोषण की थी. 13 दिन बाद इस हमले का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता दिख रहा है.
रुपया डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हो रहा है. सात मार्च को ये रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया था, जब एक डॉलर की कीमत 77 रुपये से अधिक हो गई थी.
रुपए के कमज़ोर या मज़बूत होने का सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है.
रुपए और डॉलर के गणित को इस तरह समझा जा सकता है. किसी के पास 67,000 रुपए हैं और किसी के पास 1000 डॉलर. डॉलर का भाव 67 रुपये है तो संख्या में रुपया ज़्यादा होकर भी डॉलर के ही बराबर है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मुख्यतः डॉलर में ही होता है इसलिए किसी भी मुल्क के पास डॉलर का होना बहुत ज़रूरी है. डॉलर की तुलना में किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा कितनी मज़बूत है, इसके कई कारण होते हैं. पहला यह कि विदेशी मुद्रा भंडार कितना बड़ा है. आयात की तुलना में निर्यात कितना है.
जब रुपया कमज़ोर होता है तो डॉलर के लिए ज़्यादा रुपए देने होते हैं. यानी आप विदेश जा रहे हैं और डॉलर की ज़रूरत है तो जो एक डॉलर 67 रुपए देकर मिल जाता था, वह अब 77 रुपए में मिलेगा.
दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश - सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं.
दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है.
अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो ज़ाहिर है, इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी.
भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और बाक़ी खाड़ी के देशों से होता है.
दुनिया के ज़्यादातर देश डॉलर में ही चीज़े ख़रीदते और बेचते हैं. इस वजह से डॉलर को वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त है.
अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं कि अब जब भारत को 85 फ़ीसदी तेल आयात करने के लिए ज़्यादा ख़र्च करना पड़ेगा, तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ेगा.
दूसरी बात है कि अनिश्चितता के समय में लोग सोना बहुत ख़रीदते हैं. इस समय सोने का आयात भी बहुत बढ़ रहा है.
इन दोनों पर भारत ख़र्च ज़्यादा कर रहा है, इस वजह से हम रुपया डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हो रहा है.
1. महंगाई बढ़ेगी
आसान भाषा में रुपया के कमज़ोर होने का मतलब है, जितनी भी चीज़ें भारत, बाहर के देशों से ख़रीद रहा है, वे सब महँगी हो जाएंगी.
वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं, आईफ़ोन, इलेक्ट्रॉनिक्स के दूसरे सामान, ऑटो पार्ट्स, विदेशों में पढ़ाई का ख़र्च ये सब महँगे हो जाएंगे. पेंट बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल होता है. पिछले एक महीने में पेंट के दाम 50 फ़ीसदी बढ़ गए हैं.
इसके अलावा लोकल में मिलने वाली चीज़ों पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है.
युद्ध की वजह से तेल के दाम बढ़े हैं, तेल के दाम बढ़ने का सीधा असर पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों पर पड़ेगा. खाने-पीने के सामान को खेतों से फैक्ट्री तक, फैक्ट्री से दुकानों तक पहुँचाने में वाहनों का इस्तेमाल होता है, जो पेट्रोल डीज़ल से चलती हैं. इस वजह से खाने पीने की सभी चीज़ें महँगी होंगी. यानी आपकी पॉकेट ज़्यादा ख़ाली होगी.
आलोक जोशी ये भी कहते हैं कि कच्चे तेल की बढ़ी हुई क़ीमतों का सीधा असर अब खाने के तेल पर पड़ने लगा है. अब दुनिया के कई देशों में खाने के तेल का इस्तेमाल फ़्यूल की जगह होने लगा है. जैसे भारत में ब्लेडिंग के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल होता है, वैसे ही दुनिया के दूसरे देशों में पाम ऑयल की ब्लेडिंग होती है. इस वजह से खाने के तेल की कीमतें भी बढ़ जाएंगी.
2. निवेश कम होगा
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, महँगाई का असर निवेश पर पड़ता है. अगर चीज़ें महँगी होंगी तो निवेश के लिए लोग कम सोचेंगे. निवेश कम होने का सीधा असर रोज़गार के अवसर से है. अगर लोगों के पास इन्वेस्टमेंट के लिए पैसा कम होगा, तो नौकरियां कम आएंगी और नौकरियां कम होने का मतलब सीधे बेरोज़गारी और देश के विकास दर से है.
3. विकास दर कम होगी
प्रोफ़सर अरुण कुमार के मुताबिक़ विकास दर का सीधा रिश्ता निचले तबके (ग़रीबों) की आमदनी से है. विकास दर कम होने से निचले तबके के लोगों की आमदनी भी कम होगी. असंगठित क्षेत्र पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा. कोरोना महामारी के बाद जिस अर्थव्यवस्था की पटरी पर लौटने की उम्मीद जताई जा रही है, वो एक बार फिर प्रभावित हो सकती है.
क्या रुपया के कमज़ोर होने से कुछ फ़ायदा भी होगा?
प्रोफ़सर अरुण कुमार कहते है, डॉलर के मज़बूत होने का सकारात्मक असर निर्यातकों पर पड़ता है. वो एक उदाहरण से इस बात को समझाते हैं.
यूक्रेन और रूस दुनिया में गेहूं के बड़े निर्यातक देश हैं. दोनों के बीच जंग की स्थिति में भारत के गेहूं के निर्यातकों के लिए ये अच्छी ख़बर हो सकती है. गेहूं के दाम भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहे हैं. अगर भारत के निर्यातक दूसरे देशों को गेहूं बेचते हैं तो भुगतान डॉलर में होगा. इससे उनको लाभ होगा. लेकिन ये भी हो सकता है कि भारतीय बाज़ार में भी कीमतें बढ़ जाएं, इससे भारत में गेहूं के दाम बढ़ जाएंगे.
आम लोगों को रुपया के कमज़ोर होने का असर ज़्यादा ना पता चले इसके लिए प्रोफ़ेसर अरुण कुमार उपाए भी सुझाते हैं. वो कहते हैं कि सरकार लोगों के हाथ में ज़्यादा पैसा दे और जनता की 'परचेजिंग पावर' यानी ख़रीदने की क्षमता बढ़ाए. इससे लोगों की आर्थिक स्थिति और ख़राब नहीं हो पाएगी. (bbc.com)
नई दिल्ली, 8 मार्च | प्रमुख क्रिप्टोक्यूरेंसी एक्सचेंजों में से एक, कॉइनबेस ने अवैध गतिविधियों में लिप्त रूसी व्यक्तियों या संस्थाओं से संबंधित 25 हजार से अधिक अकाउंट्स को अवरुद्ध कर दिया है।
कॉइनबेस ने कहा कि जब कोई यूजर (उपयोगकर्ता) अकाउंट खोलता है, तो वह अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, सिंगापुर, कनाडा और जापान द्वारा प्रदान की गई स्वीकृत व्यक्तियों या संस्थाओं की सूची के साथ-साथ क्रीमिया, उत्तर कोरिया, सीरिया और ईरान जैसे स्वीकृत क्षेत्रों से यूजर्स को अवरुद्ध करने के लिए प्रदान की गई जानकारी की जांच करता है।
इसने सोमवार देर रात एक बयान में कहा, अगर किसी ने एक कॉइनबेस खाता खोला है और बाद में उसे मंजूरी दे दी गई है, तो हम उस खाते की पहचान करने और उसे समाप्त करने के लिए चल रही स्क्रीनिंग प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। क्योंकि प्रतिबंध से बचने वाले अक्सर अपनी पहचान छिपाने की कोशिश करते हैं, कॉइनबेस भी संस्थाओं और विशेष रूप से सरकारों द्वारा चिह्न्ति व्यक्तियों से परे लेनदेन को मैप करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
मुख्य कानूनी अधिकारी पॉल ग्रेवाल ने कहा, उन्नत ब्लॉकचैन विश्लेषण के माध्यम से, हमने संभावित रूप से स्वीकृत व्यक्ति से जुड़े 1,200 से अधिक अतिरिक्त एड्रेस यानी पतों की पहचान की है, जिन्हें हमने अपनी आंतरिक ब्लॉकलिस्ट में जोड़ा है।
कंपनी ने खुलासा किया कि उसने कॉइनबेस के बाहर स्वीकृत लोगों द्वारा रखे गए खातों की एक सूची तैयार की है।
इसने अपने बयान में कहा, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2020 में एक रूसी नागरिक को मंजूरी दी, तो उसने विशेष रूप से तीन संबद्ध ब्लॉकचेन पते सूचीबद्ध किए थे।
कॉइनबेस ने बताया है कि उसने हजारों रूसी खातों को ब्लॉक किया है। इस वेबसाइट ने यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को सफल बनाने में पूरा सहयोग करने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की है। सोमवार रात जारी एक बयान में कॉइनबेस ने कहा कि उसने रूस से संबंधित 25 हजार से ज्यादा खातों को ब्लॉक किया है।
बयान के अनुसार, उन्नत ब्लॉकचेन विश्लेषण के माध्यम से, हमने संभावित रूप से स्वीकृत व्यक्ति से जुड़े 1,200 से अधिक अतिरिक्त पतों की पहचान की, जिन्हें हमने अपनी आंतरिक ब्लॉकलिस्ट में जोड़ा है।
कॉइनबेस ने यह भी दावा किया कि डिजिटल संपत्ति स्वाभाविक रूप से प्रतिबंध चोरी के लिए सामान्य ²ष्टिकोण को रोकने में सक्षम है।
कई अवरुद्ध रूसी व्यक्तियों या संस्थाओं को कॉइनबेस ने अपनी सक्रिय जांच के माध्यम से पहचाना है।
इसने सूचित करते हुए कहा, रूसी सरकार और अन्य स्वीकृत एक्टर्स को वर्तमान प्रतिबंधों का सार्थक रूप से मुकाबला करने के लिए लगभग अप्राप्य मात्रा में डिजिटल संपत्ति की आवश्यकता होगी। अकेले रूसी केंद्रीय बैंक के पास बड़े पैमाने पर स्थिर आरक्षित संपत्ति में 630 अरब डॉलर से अधिक हैं।
यह एक डिजिटल संपत्ति को छोड़कर सभी के कुल बाजार पूंजीकरण से बड़ा है और सभी डिजिटल परिसंपत्तियों के कुल दैनिक कारोबार की मात्रा का 5-10 गुना है। (आईएएनएस)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 8 मार्च | पाकिस्तानी महिलाओं ने लगातार पांचवें वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को पुरुष समाज के वर्चस्व वाले देश में उत्पीड़न, बुनियादी अधिकारों से वंचित, यौन हिंसा और समान अवसरों की कमी के रूप में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर रैलियों, प्रदर्शनों, कार्यक्रमों और बहस के साथ चिह्न्ति किया।
पाकिस्तान में जहां महिलाओं से जुड़े मुद्दे बद से बदतर होते जा रहे हैं, वहीं संबंधित आवाजों का भी समग्र जागरूकता पर असर पड़ा है और उनके अधिकारों की मांग भी बढ़ी है।
कई लोगों का मानना है कि महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों के निपटारे और उन पर बहस शुरू करने से कई उत्पीड़ित महिलाओं को मदद मिली है, जिन्होंने सम्मान और अधिकारों की मांग को उठाना शुरू कर दिया है। लेकिन यह महिलाओं के खिलाफ पुरुषों द्वारा बढ़ती हिंसा का एक कारण भी बन गया है।
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि वे श्रेष्ठ हैं और अपनी बहनों और माताओं के उद्धारकर्ता हैं और यही विचार उनके बड़े होने तक और परिपक्व हो जाते हैं। यह वर्तमान समाज में परिलक्षित भी होता है। पाकिस्तान में महिलाओं के मूल अधिकारों के दमन की घटनाएं आम हैं।
ऐसा समाज महिलाओं को, स्वतंत्रता की ओर खुद को सशक्त बनाने और इस्लाम द्वारा बेटे, भाइयों, पति और पिता के रूप में सौंपे गए कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए मुखर होने के लिए तैयार नहीं लगता है।
इसे मुख्य कारणों में से एक पर रखा जा सकता है, क्योंकि कई पुरुष, जो पुरुष प्रधान सामंती परिवार के पालन-पोषण का एक उत्पाद हैं, सशक्त महिलाओं द्वारा खतरा महसूस करते हैं और उनके अधिकारों को दबाने के लिए शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक शोषण के चरम कदम उठाने का विकल्प चुनते हैं।
औरत मार्च ने निश्चित रूप से महिलाओं के अनसुलझे मुद्दों को एक खुली बहस में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसने उत्पीड़ित महिलाओं को यह अहसास कराया है कि वे इस तरह के उत्पीड़न एवं गालियों का सामना करने वाली अकेली नहीं हैं, बल्कि उन्हें इस बात से भी अवगत कराया है कि उनके अपने अधिकार हैं और वे भी अपनी इच्छा से जिंदगी जी सकती हैं। औरत मार्च में महिलाओं को मजबूत बनने के लिए प्रेरित किया जाता है और उन्हें उनके अधिकारों का एहसास कराया जाता है, ताकि वे अपने भविष्य की भलाई का फैसला करने के लिए दूसरों पर निर्भर न रहें।
लेकिन दूसरी तरफ औरत मार्च पहले से ही कई आरोपों से घिर चुका है। इस पर देश में गर्भपात को वैध बनाने और एलजीबीटी अधिकारों को बढ़ावा देने के विदेशी एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया गया है।
उन पर जानबूझकर आपत्तिजनक बैनर ले जाने और राज्य संस्थानों की आलोचना करने वाले नारे लगाने का भी आरोप लगाया गया है।
औरत मार्च को कुलीनों का एक अश्लील जमावड़ा भी कहा गया है, जिसका न तो कोई प्रभाव पड़ा है और न ही ग्रामीण क्षेत्रों में इसे जमीनी स्तर पर कामयाब बताया गया है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जमीनी स्तर पर वंचित महिलाओं को बुनियादी अधिकार और कानूनी मदद के प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए कुछ खास नहीं किया गया है।
धार्मिक संगठन औरत मार्च के आयोजकों और प्रतिभागियों को इस्लाम के दुश्मन के रूप में देखते हैं और इस पहल का कड़ा विरोध करते हैं।
उनका कहना है कि इस तरह के मार्च केवल महिलाओं को पुरुषों के खिलाफ खड़े होने और उन्हें अपने दुश्मन के रूप में देखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे कहते हैं कि धर्म और एक परिवार के मूल सिद्धांत को चोट पहुंचाई जा रही है, जिसके लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को समृद्ध होना जरूरी है। (आईएएनएस)
-मारियाना स्प्रिंग
यूक्रेन पर रूस के हमले लगातार जारी है. इस बीच सोशल मीडिया पर ख़ुद के देश से जुड़ी गलत जानकारी और अराजकता से जुड़ी ख़बरों के बीच यूक्रेन में रह रहे एक युवा के लिए यह सब कैसा अनुभव है?
कैटरीन यूक्रेन की राजधानी कीएव में रहती थीं. उम्र सिर्फ़ 24 साल है. बीते गुरुवार कीएव में जब एक ज़ोरदार धमाका हुआ तो वो डरकर उठ गईं. इसके बाद जब उन्होंने सोशल मीडिया खोला तो उन्हें एक के बाद एक ऐसे अपडेट्स मिले जो वाकई डराने वाले थे.
उन्होंने मुझे बताया कि उस धमाके से जगने के बाद और सोशल मीडिया पर वो पोस्ट्स पढ़ने के बाद पहला काम जो उन्होंने किया वो ये कि उन्होंने अपने साथी के साथ फ़टाफ़ट अपना सामान बांधा और बेसमेंट में चली गईं. फिलहाल वह लवीएव से कुछ दूर अपने गृहनगर में हैं और अपने पुरुष मित्र, पड़ोसियों और अपने पालतू कुत्ते के साथ छिपी हुई हैं.
वह बताती हैं, "छिपने के बाद जब मैंने सोशल मीडिया देखा तो ये मेरे लिए डरावना था."
वह बताती हैं कि उनके इंस्टाग्राम फ़ीड में और स्टोरीज़ में यूक्रेन पर रूस के हमले से जुड़े ही पोस्ट्स थे. ज़्यादातर पोस्ट्स डराने वाली थीं. उनके दोस्तों ने भी कुछ फ़ैक्चुअल पोस्ट्स डाल रखी थीं. लेकिन सिर्फ़ फ़ैक्चुअल (तथ्यात्मक जानकारी) पोस्ट्स नहीं थीं. बहुत सी फ़ेक जानकारी भी मौजूद थी.
इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे अकाउंट्स पर कई ऐसी पोस्ट्स थीं जिसमें दावा किया जा रहा था कि यूक्रेन-रूस के बीच छिड़ी जंग 'वास्तविक' नहीं है यह सिर्फ़ 'एक धोखा' है.
कैटरीन बताती हैं, "ऐसे ही एक अकाउंट को मैंने ब्लॉक कर दिया लेकिन उसे ब्लॉक करने के बाद, तुरंत ही एक दूसरी लड़की की प्रोफ़ाइल फ़ोटो के साथ एक दूसरे अकाउंट से मुझे मैसेज आने लगे. इस प्रोफ़ाइल से रूसी भाषा में लिखा जा रहा था."
ट्रोलर्स बहुत एक्टिव तौर पर काम कर रहे हैं. ख़ास बात यह है कि वे पूरे यूक्रेन में महिलाओं से अलग-अलग तरह से संपर्क भी कर रहे हैं.
टेलीग्राम पर अफ़वाहें
अलीना 18 साल की हैं. उन्हें भी कई ऐसी पोस्ट्स मिलीं, जिन्हें पढ़ने के बाद वो दहशत में आ गयीं. एक ऐसी ही पोस्ट में रूसी लोगों की तरफ़ से दावा किया गया था कि दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन में ज़ैपोरिज़्ज़्या के आस-पास की जगह नष्ट होने वाली है. हालांकि ये अफ़वाहें झूठी थीं.
अलीना जिस समय मुझसे बात कर रही थीं, अपने बेडरुम में थीं. वह हर रात होने वाली हवाई फ़ायरिंग और हमलों से थक चुकी हैं.
मुझसे बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमले से जो नुकसान हो रहा है वो तो है ही, लेकिन चैट-ऐप्स जैसे टेलीग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर फैली अफ़वाहें भी दहशत पैदा कर रही हैं.
वह कहती हैं, "रूसी लोग ख़ासतौर पर हमारी चैट खोजते हैं और फिर हमें लिखते हैं कि कहीं विस्फ़ोट हो रहा है. कोई लिखता है कि फलां जगह पर बम विस्फ़ोट की सूचना है तो कुछ लोग उस जानकारी को झूठ बताते हैं."
उन्होंने टेलीग्राम पर एक और वीडियो देखा था, जिसमें बताया गया कि उनके गृहनगर में एयरपोर्ट के पास बम विस्फ़ोट हुआ है. लेकिन यह विस्फ़ोट उनके गृहनगर में नहीं बल्कि मारियुपोल में हुआ था.
मार्टा 20 साल की हैं. और फिलहाल वो ब्रिटेन में फंसी हुई है. वो यहां अपने दोस्तों से मिलने आयी थीं और तभी युद्ध छिड़ गया. वह बताती हैं कि उन्होंने सीरिया और इराक के वीडियो देखे हैं जिन्हें यूक्रेन का बताकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया है.
वह कहती हैं कि टिकटॉक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर पोस्ट किये गए इन वीडियोज़ की वजह से वो डरी हुई हैं और कुछ हद तक नाराज़ भी.
ट्रोलर्स का मुक़ाबला
जिन तीनों महिलाओं से हमने बात की उनका कहना है कि वे युद्ध की इस स्थिति में ख़ुद को एक और युद्ध से भी जूझते हुए पा रही हैं. एक ऐसा युद्ध जो सोशल मीडिया पर जारी है और जिसकी कोई सीमा नहीं है.
मार्टा कहती हैं, "सोशल मीडिया पर बहुत सी ऐसी पोस्ट्स हैं जिनमें यूक्रेन को झूठा कहा गया है."
मार्टा
कुछ वीडियो ऐसे भी हैं जिनमें इस युद्ध के लिए यूक्रेन को ही ज़िम्मेदार ठहराया गया है और रूस का महिमामंडन कर रखा गया है. कुछ वीडियो में ये दावा किया गया है कि ये युद्ध की स्थिति जानबूझकर चुनी गयी है.
मार्टा कहती हैं, "मैंने जब उन अकाउंट्स की पड़ताल की तो पाया कि ना ही उनके कोई फ़ॉलोवर्स थे और ना ही वे किसी को फ़ॉलो करते थे. कोई प्रोफ़ाइल जानकारी भी नहीं. सिर्फ़ रूस का झंडा मिला, जिसे उन्होंने प्रोफ़ाइल पिक्चर के तौर पर लगा रखा था."
फ़ेक जानकारी
वो एक ऐसे ही अकाउंट का ज़िक्र करते हुए कहती हैं कि 'जेस' नाम के एक अकाउंट से इसी तरह का कंटेंट पोस्ट किया गया था. उस अकाउंट का सिर्फ़ एक फ़ॉलोवर था. उस अकाउंट से सिर्फ़ एक ही वीडियो भी पोस्ट किया गया था. ये वीडियो भी हाल ही में पोस्ट किया गया था, जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अकाउंट कुछ दिन पहले ही बना होगा.
कैटरीन का अनुभव भी ऐसा ही रहा है. वह कहती हैं कि उन्होंने इस तरह के कई अकाउंट्स को वेरिफ़ाई करने की कोशिश की लेकिन ज़्यादातर फ़ेक अकाउंट निकले.
ऐसे में ये पता लगा पाना बेहद मुश्किल है कि इनके पीछे कौन है जो इस तरह की भ्रामक जानकारियाँ साझा कर रहा है.
ऐसा लगता है रूस ने इस तरह की भ्रामक ख़बरें फैलाने के लिए पहले से ही इस तरह के अप्रमाणिक अकाउंट्स बना रखे हैं. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि इन अकाउंट्स के पीछे वाकई असली चेहरे हों जो झूठी ख़बरों को फैलाने में भरोसा करते हों.
सोशल मीडिया से जुड़ी नीति
सोशल मीडिया पर फ़ेक ख़बरों का मौजूद होना या पब्लिश किया जाना एक बड़ी समस्या है और सोशल मीडिया कंपनियां इस समस्या से लंबे समय से जूझ रही हैं. लेकिन अब उनकी नीतियों को लेकर नए सिरे से जांच की जा रही है.
मेटा, ट्विटर और गूगल समेत सभी बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों और ब्राउज़िंग प्लेटफ़ॉर्म ने यूक्रेन में युद्ध से जुड़ी ग़लत सूचना और जानकारी के प्रचार और प्रसार से निपटने के लिए प्रतिबद्धता जतायी है.
लेकिन टेलीग्राम और टिक्कॉक जैसे कई ऐप हैं जो यूक्रेन के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है और इन ऐप्स के माध्यम से इस तरह की भ्रामक जानकारी काफी तेज़ी से फैलायी जा रही है.
यह बहुत स्पष्ट है कि वास्तविक दुनिया में जो हो रहा है वो ज़िंदगी और मौत से जुड़ा मसला है लेकिन यह भी सच है कि ऑनलाइन फैल रही इस तरह की ख़बरों और वीडियो ने 'दहशत' और 'दर्द' को और बढ़ा दिया है. (bbc.com)
फिलीपींस में करीब एक सदी पुराने कानून में संशोधन कर यौन संबंध बनाने की सहमति की उम्र बढ़ाकर 16 साल कर दी गई. पहले सहमति से सेक्स की न्यूनतम आयु 12 साल थी. संशोधन लड़कियों को बलात्कार और यौन शोषण से बचाने में मदद करेगा.
फिलीपींस सरकार के फैसले पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और बाल यौन शोषण विरोधी संगठनों ने संतोष जाहिर किया है. संशोधित कानून अब कम उम्र के बच्चों को बलात्कार और यौन शोषण से बचाने में मदद करेगा. कैथोलिक बहुसंख्यक देश में दुनिया में सहमति से सेक्स की सबसे कम उम्र थी. वयस्कों को 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन संबंध रखने की इजाजत थी, अगर वे सहमत हों.
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुर्तर्ते ने शुक्रवार को संशोधित कानून पर हस्ताक्षर किए और 7 मार्च को इसे सार्वजनिक किया गया. कानून के मुताबिक 16 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन संबंध बनाना अवैध होगा और ऐसा करने पर अधिकतम 40 साल की जेल की सजा हो सकती है.
वहीं संशोधित कानून यह भी कहता है कि सहमति से यौन संबंध रखने वाले किशोर जोड़ों के लिए अपवाद बने रहेंगे और जिनकी उम्र में तीन साल से अधिक का अंतर नहीं है.
यूनिसेफ की फिलीपींस शाखा में बाल संरक्षण विशेषज्ञ मार्गरेटा अर्दिवेला के मुताबिक, "इस संशोधित कानून के साथ, अब हमारे देश में बच्चों को यौन अपराधों और यौन हिंसा से बचाना आसान हो जाएगा."
उन्होंने कहा कि यह स्वागत योग्य है कि फिलीपींस में पहले की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से यह निर्णय लिया गया कि किस तरह की यौन स्थिति को कानूनी रूप से एक युवा लड़के या लड़की का बलात्कार माना जाएगा.
सरकार ने देश के उस कानून में संशोधन किया है, जो 1930 से लागू था. बाल अधिकार समूहों ने लंबे समय से तर्क दिया था कि सहमति से सेक्स के लिए न्यूनतम 12 वर्ष की आयु किसी भी तरह से समझने योग्य या स्वीकार्य नहीं थी.
इस बिल को पिछले साल दिसंबर में संसद के दोनों सदनों ने मंजूरी दी थी. फिलीपींस, ऑनलाइन बाल यौन संबंध के लिए सबसे बड़ा वैश्विक केंद्र है. देश में छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार और बाल यौन शोषण की घटनाएं भी आम हैं.
2015 में यूनिसेफ द्वारा सरकार के सहयोग से पूरे किए गए एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में पाया गया कि फिलीपींस में 13 से 17 वर्ष की आयु के पांच बच्चों में से एक का यौन शोषण किया गया था और 25 बच्चों में से एक का बचपन में बलात्कार किया गया था.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
दक्षिण-पूर्व एशिया में किसान कुछ बड़ा कर रहे हैं. वे ड्रोन से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि जैसी तकनीक की मदद से खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.
मनित बूंखीव जब बालक थे तो अपने दादा-दादी को बैंकॉक के पास धान के खेतों में काम करते देखा करते थे. खेत जोतने के लिए उनके दादा दादी भैंसे से काम लेते थे. बुआई और छिड़काव वह हाथों से ही करते थे. फिर वक्त बदला और उनके माता-पिता उसी काम को ट्रैक्टर और थ्रैशर से करने लगे. अब एक बार फिर वक्त बदल गया है. मनित बूंखीव अपने खेत में ड्रोन प्रयोग करते हैं.
धान, ऑर्किड और फलों की खेती करने वाले मनित के पास मान बाई इलाके में लगभग 40 एकड़ जमीन है. बान माई के किसानों ने मिलकर थाईलैंड की सरकार की एक योजना की मदद से ड्रोन खरीदा है, जो खेती में उनके खूब काम आ रहा है.
यह ड्रोन बीजाई से लेकर खाद और दवाएं छिड़कने आदि तक तमाम तरह के काम करता है. जो बान माई में हो रहा है, वह दक्षिण पूर्वी एशिया में खेती में आ रहे बदलाव की एक झलक है. महामारी के बाद मजदूरों की भयंकर कमी से जूझ रहे इन देशों में ड्रोन खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.
बान माई में सामुदायिक धान केंद्र के नेता, 56 वर्षीय मनित बताते हैं, “मजदूर हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है. एक तो मिलते नहीं हैं और फिर महंगे भी बहुत हैं.” बान माई सामुदायिक धान केंद्र 57 सदस्यों की एक समिति है जिसके पास करीब 400 एकड़ जमीन है. समिति को ड्रोन के प्रयोग से कई फायदे हुए हैं.
मनित बताते हैं, “ड्रोन ने ना सिर्फ हम पैसे बचा रहे हैं बल्कि काम ज्यादा सटीक हो गया है. यह तेज है और सुरक्षित भी, क्योंकि हम रसायनों के सीधे संपर्क में नहीं हैं. और यह हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कम बारिश आदि से निपटने में भी मददगार है.”
क्रांतिकारी बदलाव
एशिया पैसिफिक में खेतीबाड़ी में तकनीक का इस्तेमाल अब मशीनों से बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर जा रहा है. किसान रोबोट, बिग डाटा प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की मदद से ना सिर्फ फसल और आय बढ़ाने मे कामयाब हो रहे हैं बल्कि खेती की तकनीक में भी सुधार हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की एक रिपोर्ट बताती है कि डेटा-आधारित खेती और अन्य डिजिटल युक्तियां प्रयोग करने की वजहों में जलवायु परिवर्तन के अलावा जनसंख्या में आ रहे बदलाव और तकनीकी विकास का भी योगदान है.
तकनीक के प्रयोग के बारे में संगठन की रिपोर्ट कहती है, “वे किसानो को कम पानी, जमीन, ऊर्जा और मजदूरी में ज्यादा उत्पादन में मदद करती हैं. जैव-विविधता के संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी सहायक हैं.”
लेकिन कृषि-तकनीकी या एग्री-टेक के अपने खतरे भी कम नहीं हैं. जैसे कि इसके कारण नौकरियां घटती हैं और बेरोजगारी बढ़ने से सामाजिक गैरबराबरी बढ़ती है. फिर डेटा की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं. कई विशेषज्ञ तकनीकी के कीमत पर सवाल उठाते हैं.
भारत जैसे हालात में
अलायंस फॉर सस्टेनेबेल ऐंड होलीस्टिक एग्रीकल्चर नामक संस्था के साथ काम करने वाले नचिकेत उदूपा कहते हैं, “भारत में तो चिंताएं बहुत गंभीर हैं जिनकी ओर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. हमने भारत में किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए विशाल प्रदर्शन होते देखे हैं. ड्रोन हासिल करना उनके लिए सबसे बड़े मुद्दे नहीं हैं.”
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीकों ने खेतीबाड़ी से जुड़ी कई गतिविधियों में बिग डेटा के प्रयोग को आसान बनाया है. इन गतिविधियों में सिंचाई नियंत्रकों से लेकर मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम और फसल उत्पादन आदि के अनुमानों के लिए डेटा कलेक्शन शामिल हैं. डिजिटल फार्मिंग के लिए एशिया पैसिफिक सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बन गई है. इसमें सूचनाएं, वित्तीय युक्तियां, ब्लॉकचेन तकनीक आदि का प्रयोग खूब जमकर किया जा रहा है.
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इस क्षेत्र में छोटे किसानों की संख्या बहुतायत में है. एफएओ का कहना है कि ऐसे किसानों के लिए भी सस्ती तकनीक जैसे मिट्टी की गुणवत्ता की जांच, ऐप या टेक्स्ट मेसेज आधारित सेवाओं के जरिए मौसम का पूर्वानुमान आदि जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिन्हें वे वहन कर सकते हैं.
गरीबों की मदद कैसे हो?
एक अन्य चुनौती इन तकनीकों तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना भी है. उदूपा कहते हैं कि भारत में, जहां जोत का औसत आकार दो एकड़ जितना छोटा है और तकनीकों का इस्तेमाल महंगा बना देता है. फसलों का विश्लेषण करने की सुविधा देने वाले एआई आधारित ऐप बनाने वाली डेटावैल ऐनालिटिक्स के सहसंस्थापक एम हरिदास कहते हैं भारत में दो करोड़ किसान खेती में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं जो 50 करोड़ किसानों के देश में रत्तीभर है.
हरिदास कहते हैं, “डेटा से खेती ज्यादा लोकतांत्रिक हो जाती है. छोटे किसान भी एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. सबसे बड़ी चुनौती है इंटरनेट की कनेक्टिविटी, कम डिवाइस और ट्रेनिंग ना होना.”
एफएओ ने इंटरनेट को ज्यादा दूर तक उपलब्ध करवाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहयोग से ‘डिजिटल विलेज’ नाम की योजना शुरू की है. दुनियाभर की एक हजार से ज्यादा जगहों पर चल रही यह योजना नेपाल, बांग्लादेश, फिजी, इंडोनेशिया. पापुआ न्यू गिनी और वियतनाम के किसानों की मदद कर रही है.
एफएओ में वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी श्रीधर धर्मपुरी का कहना है, “इस योजना का मकसद तकनीक की मदद से खेती को आधुनिक बनाना, उसमें सुधार करना और ग्रामीण आबादी के लिए स्वास्थ्य और पोषण उपलब्ध बनाना है. जैसे 4जी सेवाएं फैलती हैं और 5जी सेवाओं का विस्तार होता है, और स्मार्टफोन की कीमतें कम होती हैं तो डिजिटल सेवाओं का विस्तार होगा और छोटे किसानों और उनके परिवारों का भी सशक्तिकरण होगा.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा है कि भारत का रूस के खिलाफ वोट ना करने का फैसला उसकी रूस पर निर्भरता के चलते हैं. ट्रस ने भारत से रूस के खिलाफ खड़ा होने को भी कहा.
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा है कि भारत कुछ हद तक रूस पर निर्भर करता है, जो उसकी संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा में लाए गए प्रस्ताव पर वोट के दौरान गैरहाजिर रहने के लिए जिम्मेदार है. रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया था, जिस पर मतदान से भारत गैरहाजिर रहा था.
ब्रिटिश मंत्री ने एक संसदीय समिति को बताया, "यहां मुद्दा यह है कि भारत कुछ हद तक रूस पर निर्भर करता है. यह निर्भरता रक्षा संबंधों में भी है और आर्थिक संबंधों में भी. और मेरा मानना है कि आगे बढ़ने के लिए भारत के साथ रक्षा और आर्थिक संबंधों में नजदीकियां बढ़ानी होंगी."
ट्रस ने कहा कि उन्होंने इस बारे में भारतीय विदेश मंत्री से बात की है. उन्होंने कहा, “मैंने अपने समकक्ष जयशंकर से बात की है और भारत को रूस के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित किया है.”
भारत रूस के साथ?
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फिर महासभा में भी रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. सुरक्षा परिषद में लाए गए प्रस्ताव में भारत के अलावा यूएई और चीन ने भी मतदान से गैरहाजिर रहने का फैसला किया था, जिसे पश्चिमी देश रूस के समर्थन के रूप में देख रहे हैं.
यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र की महासभा के विशेष आपात सत्र बुलाने पर सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ और इस बार भी भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. भारत का कहना है कि हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए और कूटनीति और बातचीत से समस्या को सुलझाना चाहिए.
भारत ने इस बारे में एक बयान जारी कर बताया था कि उसने मतदान में हिस्सा ना लेना का फैसला क्यों किया. अपने बयान में उसने कहा, “भारत यूक्रेन के ताजा घटनाक्रम से बहुत व्याकुल है. हम आग्रह करते हैं कि हिंसा रोके जाने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए. सभी सदस्य देशों को संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए एक रचनात्कम हल खोजना चाहिए.”
पश्चिमी देश नाखुश
भारत के इस रुख से पश्चिमी देश बहुत ज्यादा खुश नहीं रहे हैं. हाल ही में भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडनर ने उम्मीद जताई थी कि आने वाले दिनों में भारत रूस को लेकर संयुक्त राष्ट्र में अपना रवैया बदलेगा. लिंडनर ने 'द हिंदू' अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भले ही यूक्रेन भारत से दूर हो, "लेकिन अगर हम यूक्रेन के नागरिकों के खिलाफ हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को बर्दाश्त करते हैं....तो यह दुनिया में और स्थानों तक भी फैल सकता है, हो सकता है भारत के काफी करीब भी."
लिंडनर ने आगे कहा, "अभी भी समय है, हम भारत को अपने विचार बता रहे हैं. अगर इस तरह का युद्ध को उकसावा एक नया नियम बन गया तो सबका नुकसान होगा और हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बात को भारत में स्वीकारा जाएगा और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्पष्टीकरण में या मत में या मतदान के स्वरूप में कुछ बदलाव आएगा."
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि रूस को लेकर अभी तक भारत की स्थिति का "समाधान नहीं निकला है" और इस पर अमेरिका भारत से "अभी भी बातचीत कर रहा है." इसी बयान के बाद सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ था, जिससे भारत गैरहाजिर रहा था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
कहते हैं मदद करने वाला भगवान होता है. यूनाइटेड किंग्डम में इन दिनों एक प्लंबर को लोग भगवान के दूत की तरह पूज रहे हैं. इसके पीछे की कहानी बहुत दिलचस्प है. दरअसल जेम्स एंडरसन नाम के इस प्लंबर ने इंटरनेट पर एक ऐसी रसीद डाली जिसके बाद लोग उसके तारीफों के कसीदे पढ़ने लगे. इस रसीद में काम करने के एवज में जो रकम मांगी गई है वो है- ज़ीरो मतलब शून्य. आप सोच रहे होंगे कि ज़ीरो अमाउंट की रसीद में ऐसी क्या खास बात है कि लोग तारीफ कर रहे हैं.
दरअसल एंडरसन ने 91 साल की एक बुजुर्ग महिला के घर में प्लंबिंग का काम किया. ये बुजुर्ग महिला अक्यूट ल्यूकेमिया से पीड़ित हैं. एंडरसन ने उन्हें जो बिल थमाया उसमें एक भी पैसा चार्ज नहीं किया. पूरी तरह से फ्री सर्विस दी. उसने जब ये स्टोरी शेयर की तो लोगों ने उसकी खूब वाहवाही की.
दिव्यांग और बुज़ुर्गों की करते हैं मदद
एंडरसन ने सिर्फ इसी बुजुर्ग महिला की मदद नहीं की. दरअसल 2017 में एंडरसन ने अपना प्राइवेट बिजनेस पूरी तरह बंद कर दिया और खुद को बुजुर्ग तथा दिव्यांग लोगों की मदद के लिए झोंक दिया. एंडरसन शारीरिक रूप से अक्षम और बुजुर्ग लोगों की मदद करते हैं और पूरी तरह फ्री सर्विस देते हैं. हैरानी की बात ये है कि इस फ्री सर्विस की वजह से उनपर करीब 8000 पॉन्ड का कर्ज भी हो गया. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
मुफ्त सेवा देने के लिए चलाया कैंपेन
एंडरसन ने मेट्रो लुक को बताया कि कर्ज की वो परवाह नहीं करते. एंडरसन ने इस मुफ्त सेवा के लिए फंडरेजिंग कैंपेन चलाया जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया. मात्र 42 दिनों के इस कैंपेन में लोगों ने एंडरसन को 49 हजार पॉन्ड से ज्यादा की मदद की. इस कैंपेन के दौरान एंडरसन ने उन लोगों के भावुक वीडियोज भी शेयर किए जिनकी मदद उन्होंने की थी. एंडरसन के मुताबिक वो इस बात की कोशिश करते हैं कि उनके देश में कोई दिव्यांग या बुजुर्ग बेजोड़ ठंड या पैसे न होने की वजह से ब्वॉयलर ठीक न कराने के कारण परेशान ना हो. पैसे न होने की वजह से किसी की मौत न हो. एंडरसन की ये कहानी सबके लिए सबक है कि मदद करने वाले से बड़ा कोई नहीं होता.