अंतरराष्ट्रीय
आण्विक ऊर्जा के समर्थकों का दावा है कि इसकी बदौलत हमारी अर्थव्यवस्थाएं प्रदूषण फैलाने वाले फॉसिल ईंधनों से छुटकारा पा सकती हैं. लेकिन तथ्य क्या कहते हैं? क्या एटमी ऊर्जा वाकई जलवायु को बचाने में मदद कर सकती है?
डॉयचे वैले पर योशा वेबर की रिपोर्ट-
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के ताजा वैश्विक आंकड़े जलवायु संकट के खिलाफ विश्व की कोशिशों पर सवाल उठाते हैं. उत्सर्जनों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों के एक समूह, ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (जीसीपी) के, पिछले दिनों प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले 2021 में सीओटू उत्सर्जन में 4.9 प्रतिशत का उछाल आया है.
2020 में कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के चलते उत्सर्जनों में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी. बहुत से पर्यवेक्षक इस साल इसके फिर से बढ़ने की आशंका जता रहे थे लेकिन इतना उछाल आ जाने का उन्हें भी अंदाजा नहीं था. ऊर्जा सेक्टर ही ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जन करने वाला सेक्टर बना हुआ है. 40 प्रतिशत उत्सर्जन इसी सेक्टर से होता है और ये दर बढ़ती जा रही है.
लेकिन एटमी ऊर्जा की क्या स्थिति है? इस विवादास्पद ऊर्जा स्रोत के समर्थक कहते हैं कि बिजली उत्पादन का ये क्लाइमेट-फ्रेंडली यानी जलवायु-अनुकूल तरीका है. जब तक हम व्यापक विकल्प तैयार नहीं कर पाते तब तक के लिए एटमी ऊर्जा ही वो चीज है जिसका इस्तेमाल करते रहा जा सकता है. हाल के सप्ताहों में, खासकर कॉप26 जलवायु बैठकों में, एटमी ऊर्जा की वकालत करन वाले लोग ऐसे बयान दे रहे हैं जिन पर ऑनलाइन हंगामा मचा हुआ है- जैसे कि "अगर आप एटमी ऊर्जा के खिलाफ हैं तो इसका मतलब आप जलवायु बचाने के खिलाफ हैं" और "एटमी ऊर्जा वापसी करके रहेगी." लेकिन क्या वाकई इसमें कुछ दम भी है?
क्या एटमी ऊर्जा शून्य उत्सर्जन वाला स्रोत है?
नहीं. एटमी ऊर्जा भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. वास्तव में कोई भी ऊर्जा स्रोत पूरी तरह से उत्सर्जन-मुक्त नहीं हैं. एटमी ऊर्जा की बात आती है तो इसमें यूरेनियम निकालने, उसको लाने ले जाने और प्रोसेसिंग के दौरान उत्सर्जन होता है. एटमी ऊर्जा संयंत्रों की लंबी और पेचीदा निर्माण प्रक्रिया से भी सीओटू निकलती है. जिन ठिकानों की मियाद पूरी हो जाती है उनको ढहाने में भी गैस उत्सर्जित होती है. और आखिरी पर जरूरी बात ये है कि एटमी कचरे को सख्त स्थितियों में यहां से वहां ले जाना और स्टोर करना पड़ता है- इस दौरान भी उत्सर्जन होता है.
फिर भी इसकी वकालत करने वालों का दावा है कि एटमी ऊर्जा उत्सर्जन-मुक्त है. इनमें ऑस्ट्रिया की एक परामर्शदाता कंपनी एन्को भी है. उसने नीदरलैंड्स सरकार के आर्थिक मामलों और जलवायु नीति मंत्रालय के लिए तैयार किए गए अध्ययन को, 2020 के आखिरी दिनों में जारी किया था. नीदरलैंड्स में एटमी ऊर्जा के भविष्य की संभावित भूमिका को लेकर किए गए इस अध्ययन में एटमी ऊर्जा के पक्ष में दलीलें दी गई थीं. इसके मुताबिक "एटमी ऊर्जा के चयन के पीछे मुख्य कारक हैं, बिना सीओटू उत्सर्जन वाली आपूर्ति की विश्वसनीयता और सुरक्षा." एन्को की स्थापना अंतरराष्ट्रीय एटमी ऊर्जा एजेंसी के जानकारों ने की थी और ये आण्विक क्षेत्र के उद्यमियों के साथ नियमित रूप से काम करती है, इसलिए निहित स्वार्थो से पूरी तरह बरी नहीं है.
पर्यावरणीय मुहिम चलानेवाले समूह, साइंटिस्ट्स फॉर फ्यूचर (एस4एफ) ने कॉप26 में एटमी ऊर्जा और जलवायु पर एक केंद्रित एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था. समूह बिल्कुल अलग ही नतीजे पर पहुंचा था. उसके मुताबिक, "मौजूदा समस्त ऊर्जा प्रणाली को मद्देनजर रखते हुए कहा जा सकता है कि एटमी ऊर्जा किसी भी तरह सीओटू निरपेक्ष नहीं है." इस रिपोर्ट के एक लेखक और बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी से जुड़े बेन वीलर ने डीडबल्यू को बताया कि "एटमी ऊर्जा के प्रस्तावक बहुत सारे कारकों पर गौर करने में चूक जाते हैं." इसमें वे उत्सर्जन स्रोत भी हैं जिनका जिक्र ऊपर किया गया है. डीडब्ल्यू ने भी जिन तमाम अध्ययनों की समीक्षा की उनमें एक ही चीज पाई, एटमी ऊर्जा उत्सर्जन-मुक्त नहीं है.
एटमी ऊर्जा में कितनी सी ओटू पैदा होती है?
नतीजे महत्त्वपूर्ण रूप से अलग अलग हैं. वे इस बात पर निर्भर करते हैं कि क्या हम सिर्फ बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को ही देख रहे हैं या फिर एक एटमी ऊर्जा संयंत्र के समूचे जीवनचक्र को मद्देनजर रख रहे हैं. मिसाल के लिए, संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन कमेटी (आईपीसीसी) की 2014 में जारी एक रिपोर्ट में- प्रति किलोवॉट-घंटा 3.7 से 110 ग्राम सीओटू उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था.
लंबे समय से माना जाता रहा है कि एटमी संयंत्रों से प्रति किलोवॉट घंटा औसतन 66 ग्राम सीओटू पैदा होती है. हालांकि वीलर मानते हैं कि वास्तविक आंकड़े और अधिक होंगे. जैसे ज्यादा कड़े सुरक्षा निर्देशों के चलते, पिछले दशकों में बने संयंत्रों की तुलना में, नये ऊर्जा संयंत्र निर्माण के समय ज्यादा मात्रा में सीओटू पैदा करते हैं.
एटमी ऊर्जा संयंत्रों की समूची लाइफ-साइकिल पर- यानी यूरेनियम निकालने से लेकर एटमी कचरे के भंडारण तक - केंद्रित अध्ययन दुर्लभ हैं. कुछ शोधकर्ताओं ने इस ओर इशारा किया है कि इस बारे में डाटा अभी भी नहीं है. नीदरलैंड्स स्थित संस्था वर्ल्ड इन्फॉर्मेशन सर्विस ऑन एनर्जी (डब्लूआईएसई- वाइज) ने अपनी एक लाइफ-साइकिल स्टडी के तहत हासिल हुई गणना में पाया कि एटमी संयंत्र, प्रति किलोवॉट घंटा 117 ग्राम सीओटू उत्सर्जित करते हैं. यह गौरतलब है कि वाइज एटमी ऊर्जा विरोधी समूह है. इसलिए ये अध्ययन भी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं है.
समूचे जीवन चक्र पर केंद्रित ऐसे दूसरे अध्ययन भी सामने आए हैं जिनके नतीजे समान हैं. कैलिफॉर्निया की स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी में वायुमंडल ऊर्जा कार्यक्रम के निदेशक मार्क जेड जेकबसन ने प्रति किलोवॉट घंटा 68 से 180 ग्राम सीओटू की जलवायु कीमत निकाली है.
दूसरे ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले कितनी जलवायु-अनुकूल है एटमी ऊर्जा?
अगर गणना में एक एटमी संयंत्र के समूचे जीवन चक्र को शामिल करते हैं तो एटमी ऊर्जा निश्चित रूप से कोयला या प्राकृतिक गैस जैसे फॉसिल ईंधनों से अव्वल ही आएगी. लेकिन अगर नवीनीकृत ऊर्जा से तुलना करें तो तस्वीर पूरी तरह से अलग हो जाती है.
जर्मन सरकार की पर्यावरण एजेंसी (यूबीए) के एक नये लेकिन अभी तक अप्रकाशित डाटा और वाइज के आंकड़ों के मुताबिक, सौर पैनलों के मुकाबले एटमी ऊर्जा से प्रति किलोवॉट घंटा 3.5 गुना अधिक सीओटू निकलती है. तटों पर लगी पवनचक्कियों की ऊर्जा से तुलना करें तो यह आंकड़ा 13 गुना अधिक सीओटू का हो जाता है. पनबिजली परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली की तुलना में एटमी ऊर्जा 29 गुना कार्बन पैदा करती है.
ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू पाने के लिए एटमी ऊर्जा का सहारा?
दुनियाभर में एटमी ऊर्जा के प्रतिनिधि और कुछ राजनीतिज्ञ भी एटमी शक्ति के विस्तार की बात कहते रहे हैं. जैसे जर्मनी में दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी ने एटमी ऊर्जा संयंत्रों का समर्थन किया है और उन्हें 'आधुनिक और साफ' करार दिया है. इस पार्टी ने उसी ऊर्जा स्रोत की ओर लौटने का आह्वान किया है जिसे जर्मनी ने 2022 के आखिर तक पूरी तरह से हटा देने का प्रण किया है. और देशों ने भी नये एटमी प्लांट बनाने की योजनाओं का समर्थन किया है. उनकी दलील है कि उसके बिना ऊर्जा सेक्टर जलवायु के लिए और नुकसानदेह होगा. लेकिन बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वीलर समेत दूसरे कई ऊर्जा विशेषज्ञों का नजरिया अलग है.
वीलर कहते हैं, "एटमी ऊर्जा का योगदान कुछ ज्यादा ही आशावादी ढंग से देखा जाता है जबकि वास्तव में एटमी संयंत्र के निर्माण में इतना समय खर्च होता है, और इतनी लागत आ जाती है कि जलवायु परिवर्तन पर उसका असर दिखने लग जाता है. बिजली तो बहुत देर बाद मिल पाती है." वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट के लेखक माइकल श्नाइडर उनकी बात से सहमत हैं. वह कहते हैं, "एटमी ऊर्जा संयंत्र, पवन या सौर के मुकाबले करीब चार गुना महंगे पड़ते हैं और उन्हें बनाने में पांच गुना ज्यादा समय लग जाता है. जब आप इन तमाम चीजों को मद्देनजर रखते हैं, तो आप पाते हैं कि एक नये एटमी संयंत्र को पूरी तरह तैयार होने में 15 से 20 साल खप जाते हैं."
वह इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि एक दशक के भीतर दुनिया को ग्रीनहाउस गैसों पर काबू भी पाना है. श्नाइडर कहते हैं, "अगले 10 साल में एटमी ऊर्जा इस मामले में कोई उल्लेखनीय योगदान देने की स्थिति में नहीं है." लंदन स्थित अंतरराष्ट्रीय मामलों के थिंक टैंक चैडहैम हाउस में पर्यावरण और समाज कार्यक्रम के उपनिदेशक एंटनी फ्रोगाट कहते हैं, "मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन के प्रमुख वैश्विक समाधानों में एटमी ऊर्जा का उल्लेख नहीं आता है." वह कहते हैं कि एटमी ऊर्जा की बेशुमार लागत, उसके पर्यावरणीय नतीजे और उसे लेकर जनसमर्थन की कमी- जैसी तमाम दलीलें उसके खिलाफ एक साथ खड़ी हैं.
एटमी फंडिंग का रुख अक्षय ऊर्जा की ओर
एटमी ऊर्जा से जुड़ी ऊंची लागतों की वजह से वे महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधन भी अवरुद्ध हो जाते हैं जिनका इस्तेमाल यूं अक्षय यानी नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने में किया जा सकता है. एटमी ऊर्जा विशेषज्ञ और नीदरलैंड्स में ग्रीनपीस से जुड़े एक्टिविस्ट यान हावरकाम्प्फ यह भी कहते हैं कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से ज्यादा बिजली मिल सकती हैं जो ज्यादा तेज और सस्ती पड़ती है. उनके मुताबिक "एटमी ऊर्जा में निवेश किया हुआ प्रत्येक डॉलर इस लिहाज से सच्ची और आपात जलवायु कार्रवाई से विमुख हुआ डॉलर है. और इसीलिए एटमी ऊर्जा जलवायु-मित्र नही है."
इसके अलावा एटमी ऊर्जा खुद जलवायु परिवर्तन से प्रभावित रही है. दुनियाभर में गर्मियों के दौरान बढ़ती तपिश में कई एटमी ऊर्जा संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा है या पूरी तरह रोक देना पड़ा है. अपने रिएक्टरों को ठंडक पहुंचाने के लिए संयंत्रों को आसपास के जलस्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है, कई नदियां सूख चुकी हैं या सूख रही हैं, तो पानी का मिलना भी दूभर होता जा रहा है.
माइकल श्नाइडर ने डीडबल्यू से कहा, "एटमी ऊर्जा के ‘नवजागरण' की शेखी बघारना एक बात है लेकिन उससे जुड़े तमाम हालात कुछ और ही कहते हैं." उनके मुताबिक "एटमी उद्योग सालों से सिकुड़ता आ रहा है." वह कहते हैं, "पिछले 20 साल में 95 एटमी प्लांट ऑनलाइन हो चुके हैं और 98 बंद किए जा चुके हैं. अगर आप इस समीकरण से चीन को बाहर रखें तो एटमी ऊर्जा संयंत्रों की संख्या पिछले दो दशकों में 50 तक गिर चुकी है. एटमी उद्योग फल-फूल नहीं रहा है." (dw.com)
पूर्वोत्तर सीरिया पिछले करीब 70 सालों का सबसे बुरा सूखा झेल रहा है. तुर्की से तनाव के बीच तापमान में बढ़ोत्तरी और अनापशनाप मौसम ने और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
डॉयचे वैले पर दानिला साला, बार्ट फॉन लाफेर्ट, शावीन मोहम्मद की रिपोर्ट-
सितंबर की धूप ओलिव पेड़ों के पुराने बागान पर ढल रही है, और अहमद महमूस अलहरी, सोच में डूबे एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर आ-जा रहे हैं. 52 साल के अलहरी एक सूखी लकड़ी को तोड़कर धूल भरी, धूसर जमीन पर गिरा देते हैं.
वो याद करते हुए कहते हैं, "मेरे भाई और मैंने यहां एक बार 8,000 पेड़ लगाए थे. सिर्फ ओलिव के पेड़ नहीं थे, नींबू के भी थे और अंगूर की बेलें थीं. जब इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने हमारा पानी का कनेक्शन काट डाला तो हमारे 3,000 पेड़ मर गए. हमने सोचाः अब इससे ज्यादा बुरा क्या होगा. लेकिन इस साल और तीन हजार पेड़ सूख कर खत्म हो गए क्योंकि हमारे पास पानी नहीं है.”
ये हाल तब है जबकि अलहरी का गांव अयीद साघीर सीरिया की सबसे बड़ी नदी, फरात (यूफ्रेटस) पर बने तबका बांध से महज तीन किलोमीटर दूर ही है. इस गांव में एक हजार लोग रहते हैं. अलहरी के ओलिव बागान से बांध का विशाल असद जलाशय भी दिख जाता है.
2020 से जलाशय में पानी का लेवल छह मीटर गिर गया है. फरात नदी इतना नीचे बह रही है कि आसपास के गांवों और खेतों को पानी की सप्लाई देन वाले पम्पिंग स्टेशन भी नदी के पानी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के डाटा के मुताबिक फरात पर बने करीब 200 पम्पों में से एक तिहाई पम्प 2021 में जलस्तर में कमी से प्रभावित थे और इलाके के 50 लाख से ज्यादा लोगों के पास पर्याप्त पानी नहीं था.
किस वजह से हो रहा है जलसंकट?
वैश्विक स्तर पर, मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) क्षेत्र जलवायु संकट से सबसे बुरी तरह प्रभावित इलाकों में से है. संयुक्त राष्ट्र खाद और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक सीरिया में बरसात का मौसम दो महीने देरी से 2020-21 की सर्दियों में शुरू हुआ और निर्धारित अवधि से दो महीने पहले खत्म भी हो गया. इसके अलावा एफएओ ने पाया कि अप्रैल महीने की बेतहाशा गर्मी से कई स्थानों पर फसल का भारी नुकसान हुआ. मानवाधिकार मामलों में समन्वय के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के मुताबिक, इन गर्मियों में सीरिया 70 साल का सबसे बुरा सूखा झेल रहा है. संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी ने पूर्वोत्तर सीरिया में 75 फीसदी खेत की फसल और 25 फीसदी सिंचित फसलों के नुकसान का अंदाजा लगाया है.
तुर्की से सीरिया की ओर बहने वाली फराद नदी के जलस्तर में कमी ने हालात को और बिगाड़ दिया है. सीरिया में यूनिसेफ के प्रतिनिधि बो विक्टर नाइलुंड कहते हैं, "फरात नदी में पानी का अपर्याप्त बहाव लाखों लोगों की रोजमर्रा की जिंदगियों पर सीधा असर डालता है. सीरिया के कम से कम तीन जिलों- दाइर-एज-जोर, रक्का और अलेप्पो में पीने के पानी की किल्लत हो गई है. समाधान के लिए जितना जल्दी संभव हो सके, क्षेत्रीय स्तर पर तत्काल संवाद की जरूरत है.”
फरात नदी तुर्की, सीरिया और इराक से होते हुए बहती है. तुर्की की ओर नदी पर अतातुर्क बांध बना है. 1987 में निर्माण पूरा होने के बाद तुर्की ने वादा किया था कि वो 500 घनमीटर प्रति सेकंड से ज्यादा की सालाना औसत से फरात का पानी सीरिया की ओर जाने देगा. लेकिन इन गर्मियों में वो मात्रा भी घटकर 215 घनमीटर प्रति सेकंड रह गई.
तुर्की और सीरिया को जलापूर्ति
किसान अहमद महमूद अलहरी, इस हालात के लिए तुर्की को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार मानते हैं. वो कहते हैं, "तुर्की हमें सूखे में झोंक देना चाहता है, आईएस और उसमे कोई अंतर नहीं.” करीब तीन साल तक कथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) का अयीद साघीर गांव पर कब्जा था. लेकिन 2017 में कुर्दों की अगुवाई वाले गठबंधन सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) ने आईएस को इलाके से खदेड़ दिया.
तबसे ये इलाका, कुर्दिश पीवाईडी पार्टी की अगुआई में- उत्तर और पूर्वी सीरिया का स्वायत्त प्रशासन (एएएनईएस) कहलाता है. तुर्की का आरोप है कि पीवाईडी, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) की सीरियाई शाखा है और इसीलिए वो उसे एक आतंकी संगठन की तरह देखता है.
अलहरी की तरह, अयीद साघीर के की लोग मानते हैं कि तुर्की जानबूझकर पानी को रोक रहा है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि नाइलुंड कहते हैं कि इसका कोई सबूत अभी नहीं मिला हैः "हम देख रहे हैं कि पानी काफी कम हो गया लेकिन हमें और अधिक विश्लेषण करना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है.” तुर्की के विदेश मंत्रालय ने इस विषय पर डीडबल्यू की कई कोशिशों के बावजूद बात नहीं की.
बिजली सप्लाई और स्वास्थ्य पर असर
पानी की कमी के गंभीर नतीजे सिर्फ खेती तक महदूद नहीं हैं. यूनिसेफ के मुताबिक खराब पानी की वजह से डायरिया जैसी बीमारियों के मामले ज्यादा आने लगे हैं, खासकर बच्चों में. पानी की कमी का असर बिजली सप्लाई पर भी पड़ रहा है. पूर्वोत्तर सीरिया में करीब 30 लाख लोग बुनियादी रूप से फरात नदी पर बने तीन जलबिजली ऊर्जा संयंत्रो से अपनी बिजली हासिल करते हैं.
अयीद साघीर गांव के पूर्व में 200 किलोमीटर दूर हसाका क्षेत्र में तो जलसंकट और भयानक है. हसाका को सीरिया की रोटी की टोकरी कहा जाता था. एक दौर में वहां देश का करीब आधा अन्न उगाया जाता था. आज क्षेत्रीय राजधानी अल-हसाका के उत्तरी छोर पर निर्मित जलाशय सिकुड़ कर छोटे-मोटे तालाब बन गए हैं जहां लड़के नंगे हाथों से मछलियां पकड़ते हैं.
शहर की खाबुर नदी से पीने का पानी आता था लेकिन बारिश न होने से वो भी सूख चुकी है. फिलहाल अल-हसाका के लोगों के पास ले-देकर तुर्क सीमा के पास अलाउक वॉटर पम्पिंग स्टेशन ही बचा है. लेकिन पिछले दो साल से 460,000 लोगों को पीने का पानी सप्लाई करने वाला स्टेशन रुक रुक कर ही काम कर रहा है.
अलाउक जलसंयंत्र पर विवाद
अल-हसाका शहर के डिप्टी मेयर माज्दा अमीन कहते हैं कि "जबसे तुर्की ने सेरे कानिये (अरबी में रसअल आइन) पर 2019 में कब्जा किया और अलाउक का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया, तबसे हालात खासतौर पर बिगड़ते आ रहे हैं.”
अक्टूबर 2019 में तुर्क सेना उत्तरी सीरिया में दाखिल हो गई थी और उसने वहां कथित आतंकवादी हमलों को रोकने के दिखावटी उद्देश्य के तहत 30 किलोमीटर का "बफर जोन” बना डाला था. उसी दायरे में अलाउक का पम्पिंग स्टेशन भी पड़ता है. फिलहाल वो काम तो कर रहा है लेकिन इस साल जनवरी से 90 दिन ऐसे रहे जब पम्प पूरी तरह बंद पड़ा रहा और 140 दिन ऐसे थे जब उसका इस्तेमाल सिर्फ आधी क्षमता पर हुआ.
तुर्की ने उत्तर और पूर्वी सीरिया स्वायत्त प्रशासन (एएएनईएस, आनेस) पर स्टेशन की बिजली सप्लाई काटने का आरोप लगाया है. अलाउक को संयुक्त राष्ट्र जैसे किसी तटस्थ प्रशासन के तहत रखने की कोशिशें भी अब तक नाकाम ही रही हैं. नाइलुंड कहते हैं कि यूनिसेफ की पंप स्टेशन तक कोई सीधी पहुंच नहीं है.
अल-हसाका के लोग अब ट्रकों में भरकर लाए विशाल पानी के टैंकों से अपना पीने का पानी लेते हैं. लेकिन ये पानी महंगा है. 1,000 लीटर की कीमत करीब 6,000 लीरा यानी करीब दो यूरो है. इस इलाके के लिए ये रकम बहुत बड़ी है जहां औसत तनख्वाह हर महीने सिर्फ 53 यूरो के बराबर बैठती है.
दूरहोतापानी, महंगाहोतापानी
मोहम्मद आब्दो कहते हैं, "हम लोग अपने बेटे की पगार पर निर्भर रहते हैं. वो सेना में बतौर ड्राइवर ढाई लाख लीरा प्रति माह कमाता है. और हर महीने 60 हजार लीरा पानी में निकल जाते हैं- और वो पानी पूरा भी नहीं पड़ता.”
60 साल के मोहम्मद आब्दो खसमान इलाके में रहते हैं. और कई महीने जिला परिषद् के चेयरमैन के पद पर रहे हैं. आब्दो कहते हैं कि खसमान के निवासी हताश हैं क्योंकि उनके खेत पूरी तरह सूख चुके हैं.
उनकी शिकायत है कि "हमें भुलाया जा रहा है, कोई हमारी मदद नहीं करता है, न कोई सहायता संगठन- कोई नहीं.” आब्दो नाराज हैं- नगरपालिका पर, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पर लेकिन सबसे ज्यादा तुर्की पर. "अगर वो लड़ाई चाहता है तो सीमाओं पर आकर लड़े, लेकिन पानी को हथियार न बनाए,” वो कहते हैं. "भला ये भी कोई ज़िंदगी है. हमें तो खत्म किया जा रहा है- आहिस्ता आहिस्ता.” (dw.com)
अच्छी खबर! आपको क्रिसमस तोहफे में वही किताब है, जिसका आपको बेसब्री से इंतजार था. लेकिन क्या आप तब भी खुश होंगे, जब इसे पुराने सामानों की दुकान से खरीदा गया हो.
डॉयचे वैले पर जीनेटे स्विएंक की रिपोर्ट-
क्रिसमस के त्यौहार पर एक अच्छी खबर! क्रिसमस पेड़ के नीचे बतौर तोहफा एक किताब आपका इंतजार कर रही है. लेकिन आपकी खुशी फीकी तो नहीं पड़ेगी ना अगर आपको पता चले कि वो तोहफा कबाड़ी बाजार से है?
कोलोन में दिसम्बर की दुपहरी, आसमान में बदली छाई है और पानी भी बरस रहा है. आम सड़कों के उलट शहर के फ्रीजनप्लात्स पर ऑक्सफैम के किफायती स्टोर की खिड़कियों के पास खूब चहल-पहल है. हर बुधवार की दोपहर इन खिड़कियों में रखे सामान की अदला-बदली होती है या उन्हें फिर से सजाकर रखा जाता है. इस सप्ताह का डिसप्ले क्रिसमस के नाम है इसलिए सुनहरे मनकों जैसी सजावटी चीजों, कटोरों, शैम्पेन की बोतल और मिलते-जुलते कांच से खिड़कियां सज चुकी हैं.
वॉलन्टियर यहां जो कुछ भी बेचते हैं वो दान में आया हुआ है. और कमोबेश हर चीज सेकंड हैंड यानी पुरानी और इस्तेमाल की हुई है. सारा मुनाफा ऑक्सफैम को जाता है, जो उसके मुताबिक विकास लक्ष्यों को पूरा करने में खर्च होता है.
10 साल से फ्रीजनप्लात्स स्टोर में काम कर रहीं स्टेफी म्युलर कहती हैं, "क्रिसमस के दौरान सजावटी सामान के अलावा सबसे ज्यादा बिकने वाली चीजों में किताबें और छोटी छोटी प्यारी सी चीजें जैसे कप या खिलौने भी होते हैं.” स्टेफी के पास क्रिसमस के सीजन के लिए कपड़ों के अलावा दूसरे कई सामान की मांग बढ़ती ही जा रही है.
उनकी बात की तस्दीक करते हैं, पश्चिमी और दक्षिणी जर्मनी की ऑक्सफैम दुकानों के क्षेत्रीय प्रबंधक माथियास शॉल. वो कहते हैं, "कई वर्षों से हम लोग देखते आ रहे हैं कि देश भर में फैली, सेकंड हैंड सामान की हमारी 55 दुकानों में साल का अंत आते आते चीजों की मांग बढ़ जाती है. क्रिसमस आते आते, सालाना औसत की अंदाजन 10 प्रतिशत ऊपर की सेल हो जाती है.
क्या इसका मतलब ये है कि ज्यादा लोग आज पुराने, इस्तेमाल किए हुए- यानी टिकाऊ- उपहारों से खुश हैं?
सेकंड हैंड चीजों की सामाजिक स्वीकार्यता
कम से कम ये तो दिखता ही है कि सेकंड हैंड, मुख्यधारा में आ रहा है. आचार संबंधी उपभोग पर जर्मनी की ई-कॉमर्स कंपनी ऑटो ग्रुप के 2020 के अध्ययन में 73 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे सेकंड हैंड फैशन सामग्री या पुराना फर्नीचर खरीदने या बेचने के इच्छुक रहे हैं.
इस स्टडी के अगुआ और रुझानों के बारे में शोध करने वाले पीटर विप्परमान के मुताबिक उपभोक्ता के व्यवहार या खरीदारी के पैटर्न में ये बदलाव अपेक्षाकृत युवा पीढ़ियों में ज्यादा देखा जा रहा है जो अपनी जरूरत भर की और काम के लायक चीज के इस्तेमाल को ही तवज्जो देते हैं. नयी चीजें खरीदने में और उसके लिए ज्यादा खर्च करने में उनकी दिलचस्पी कम रहती है.
विप्परमान के मुताबिक ये रुझान सिर्फ फैशन और पहनावे तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि रोजमर्रा के उपभोक्ता सामान और आवागमन को लेकर भी यही ट्रेंड है. वो कहते हैं, "नये का मतलब अब ब्रैंड-न्यू यानी बिल्कुल नये से नहीं रह गया है. आज ये ज्यादा जरूरी है कि जरूरत पड़ने पर आप गाड़ी चला लें, उसके लिए आपके पास अपनी कार होना जरूरी नहीं रह गया है.”
सेकंड हैंड यानी पुराने सामान की दुनिया अपनी बेरौनक सी कबाड़ी बाजार वाली छवि से भी निकल रही है. विशाल इंटरनेट प्लेटफॉर्मों पर, जहां लोग इस्तेमाल किया सामान खरीदते और बेचते हैं, वहां अब "सेकंड हैंड” के बजाय "प्रीलव्ड” यानी "पहले से पसंदीदा” जैसे शब्दावली अपनी जगह बना रही है.
ऐसा ही सेकंड हैंड फैशन का एक इंटरनेट प्लेटफॉर्म है- विंटेड, जो पहले क्लाइडरक्राइजल के नाम से जाना जाता था. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और द नीदरलैंड्स में हाल के विंटेड सर्वे में 56 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे क्रिसमस के लिए मिलेजुले सेकंडहैंड और नये तोहफे ले या दे सकते हैं. 14 फीसदी लोगों को कहना था कि इस साल उनका इरादा विशेष रूप से सेकंड हैंड तोहफे ही खरीदने का है.
फैशन गतिविधियों पर शोध करने वाले कोलोन स्थित एक जर्मन फैशन संस्थान में ट्रेंड विश्लेषक कार्ल टिल्लएस्सन के मुताबिक, ऐसे पीयर-टू-पीयर यानी सहभागी प्लेटफॉर्म, जहां यूजर एक दूसरे से सीधे खरीद और बेच सकते हैं, वे सेकंड हैंड बाजार के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन बन कर उभरे हैं.
वो कहते हैं, "सेकंड हैंड बाजार के सामने एक गंभीर चुनौती है, और वे ये कि हर पुरानी चीज का एक मुमकिन खरीदार भी होना चाहिए. लेकिन इंटरनेट ये संभव करता है और बहुत ही कम लागत में और साफ-सुथरे ढंग से, किसी फालतू तामझाम, परिवहन या भंडारण के बिना.”
‘पहले से पसंदीदा' सामान कितना टिकाऊ?
टिल्लएस्सन कहते हैं कि सेकंडहैंड प्लेटफॉर्मों पर बहुत से खरीदारों और विक्रेताओं के जेहन में पहले-पहल सस्टेनेबिलिटी यानी टिकाऊपन की बात नहीं रहती है. बोस्टन स्थित एक कंसल्टिंग ग्रुप ने छह देशों के 7,000 लोगों पर किए अपने सर्वे में पाया कि सिर्फ 36 फीसदी लोग ही खरीदारी के वक्त टिकाऊ वाले तर्क से जा रहे थे. उनकी ज्यादा तवज्जो अच्छी कीमत, प्रोडक्ट की बड़ी रेंज और मौजूदा रूझानों पर ही थी.
टिल्लएस्सन कहते हैं कि जनरेशन जेड कहलाने वाली, 20वीं सदी के आखिरी दशक और 21वीं सदी के पहले दशक के बीच पैदा हुई पीढ़ी के लिए सेकंडहैंड कपड़े एक तरह के फास्ट फैशन की तरह देखे जाते हैं. जो भी चीज वे और नहीं इस्तेमाल करना चाहते उसे फौरन बेच देते हैं. ये नये फास्ट फैशन की उस दुनिया से अलग रवैया है- जहां सस्ते नये कपड़े खरीदे जाते हैं, थोड़े से समय के लिए पहने जाते हैं और फिर फेंक दिए जाते हैं.
बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी में आर्थिक शिक्षा और टिकाऊ उपभोग की विभागीय प्रमुख, वायोला मस्टर के मुताबिक सैद्धांतिक रूप से, लोगों का सेकंड हैंड सामान खरीदना, सस्टेनिबिलिटी के लिए एक सकारात्मक कदम है.
वो कहती हैं, "और उत्पाद खरीदने के साथ ही साथ ये नहीं चल सकता. ये एक विशुद्ध प्रतिक्षेपी प्रभाव है यानी वापस टकरा जाने वाली स्थिति हैः मैंने पैसा बचाया, क्योंकि मैंने एक सेकंड हैंड सामान सस्ते में खरीदा. इसलिए अब अपनी बचत को दूसरी किसी और चीज को खरीदने में खर्च करने लायक हूं- ऐसे रवैये से कुछ हासिल नहीं होता है.”
सेकंड हैंड उपहार किसे पसंद आते हैं?
लेकिन क्या ये सही होगा कि, नये सामान के साथ ही एक पुराना स्कार्फ भी तोहफे में शामिल करने के बजाय सिर्फ उसी स्कार्फ को गिफ्ट कर दिया जाए जो किसी का पहले से पसंदीदा रहा है? टिल्लएस्सन कहते हैं कि ये वाकई निर्भर करता है उपहार पाने वाले की उम्र पर. नयी और युवा पीढ़ी के लोग सेकंड हैंड उपहार पसंद करते हैं, पुरानी पीढ़ी को ये पसंद नहीं कि कोई उन्हें पुरानी चीज बतौर उपहार दे जाए.
वो कहते हैं कि "इसका संबंध अद्वितीयता के विचार से है. कि वो चीज सिर्फ मेरे लिए ही बनी थी और इसके पहले इस्तेमाल पर मेरा ही हक है - ये विचार मेरे ख्याल से पुरानी पीढ़ियों के जेहन में गहरे धंसा रहता है.” ऐसी धारणा की तस्दीक करते हैं ट्रेंड रिसर्चर विप्परमान. वो कहते हैं, "उपभोग और स्वामित्व, सामाजिक प्रभाव या उपस्थिति का एक शक्तिशाली संकेत होते हैं, जबकि इस्तेमाल किया हुआ सामान सामाजिक कमजोरी का निशान माना जाता है.”
किसी को कुछ देने का मनोविज्ञान
मस्टर कहती हैं कि जब लोग कोई उपहार देते हैं, तो वे अपने बारे में भी एक बयान दे रहे होते हैं. वे कंजूस नहीं दिखना चाहते हैं. उनके मुताबिक, "ये बात विशेषकर तब लागू होती है जब कि उपहार देने वाले और लेने वाले करीबी नहीं है. ऐसे रिश्तों में इसीलिए हम अक्सर विशुद्ध नये उपहारों की ओर उन्मुख होते हैं.”
इस समस्या से निजात पाने का एक टिकाऊ तरीका ये हो सकता है कि लोगों को किसी सेकंडहैंड दुकान या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का गिफ्ट कार्ड भेंट कर दिया जाए.
आइखश्टैट-इन्गोलश्टाड्ट की कैथलिक यूनिवर्सिटी में व्यापार प्रबंधन के मानद् प्रोफेसर बर्न्ड स्ट्राउस, उपहार देने और कूटनीति, संचार और अलिखित नियमों के बीच जुड़ाव को भलीभांति समझते हैं. देने के मनोविज्ञान पर केंद्रित उनकी एक किताब भी हाल में प्रकाशित हुई है.
उन्होंने डीडबल्यू को बताया, "वे उपहार बड़े ही बुरे लगते हैं जो दया दिखाने या कृपा करने की तरह देखे जाते हैं, जिनमें उपहार देने वाले ये संदेश दे रहे होते हैं कि लेने वाले में बदलाव लाने की उनकी आकांक्षा है.” वह कहते हैं, "सेकंड-हैंड उपहार देते हुए आपको इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखने की जरूरत है.”
लेकिन आमतौर पर, प्रयोगसिद्ध अध्ययनों से पता चलता है कि उपहार में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है उसका प्रतीकात्मक मूल्य. इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो विशुद्ध रूप से नया है या कुछ पुराना.
स्ट्राउस कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि उपहार में कितनी समानुभूति या सौहार्द मिला हुआ है, उसके लिए कितने जतन किए गए हैं या उस तोहफे में किसी किस्म का त्याग भी झलकता है या नहीं.”
मिसाल के लिए, किसी को पारिवारिक गहने भेंट करने में त्याग की भावना के साथ एक महान सांकेतिक मूल्य भी हो सकता है. लेकिन वो बात बिल्कुल अलग होती है जब कभी न पहने गए कफलिंक को रफादफा करने के लिए उसे किसी को गिफ्ट देकर अपना पिंड छुड़ा लिया जाए. स्ट्राउस कहते हैं, "ये निर्भर करता है कि जिसे उपहार मिल रहा है, उस व्यक्ति की रुचियों और स्वाद का ध्यान रखा गया है या नहीं.” (dw.com)
मास्को, 18 दिसम्बर| क्रेमलिन के आलोचक एलेक्सी नवलनी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में 7 ब्रिटिश नागरिकों को रूस में प्रवेश करने से रोक दिया गया है। ये जानकारी रूस के विदेश मंत्रालय ने साझा की है। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ब्रिटेन की सरकार ने नवलनी को जहर दिए जाने का बेतुके इल्जाम की वजह से अगस्त 2021 में 7 रूसी नागरिकों के खिलाफ प्रतिबंध लगाया था। अब हम उसी के बदले में 7 ब्रितानियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रहे है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मंत्रालय के हवाले से कहा कि लंदन की सख्त कार्रवाइयों के जवाब में रूस ने 7 ब्रितानियों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है, जो रूस विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं।
बयान में कहा गया कि "हम एक बार फिर ब्रिटिश नेतृत्व से अपने देश के प्रति टकराव की नीति को छोड़ने का आह्वान करते हैं। किसी भी अनुचित कदम का जवाब दिया जाएगा।" (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 18 दिसम्बर| संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तालिबान से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली टीम के जनादेश को 12 महीने तक बढ़ाने का फैसला किया है। यह फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि जो लोग तालिबान से जुड़े हैं वे अफगानिस्तान की शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वसम्मति से रिज्योलेशन 2611 को अपनाते हुए, 15 सदस्यीय परिषद ने निगरानी दल को रिज्योलेशन 2255 में लगाए गए उपायों के गैर-अनुपालन के मामलों पर जानकारी एकत्र करने और सदस्य राज्यों के अनुरोध पर क्षमता निर्माण सहायता की सुविधा प्रदान करने का निर्देश दिया है।
इसने निगरानी दल को गैर-अनुपालन का जवाब देने के लिए की गई कार्रवाई पर समिति को सिफारिशें प्रदान करने का निर्देश दिया। परिषद ने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डाला कि निगरानी दल को प्रभावी ढंग से, सुरक्षित रूप से और समय पर अपने जनादेश को पूरा करने के लिए आवश्यक समर्थन प्राप्त हो।
परिषद ने इस प्रस्ताव में उपायों के कार्यान्वयन की सक्रिय रूप से समीक्षा करने और अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का समर्थन करने के लिए आवश्यक समायोजन पर विचार करने का भी निर्णय लिया। (आईएएनएस)
जिनेवा, 18 दिसम्बर| यूनिसेफ की निवर्तमान कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा कि तेजी से फैल रहे ओमिक्रॉन कोविड -19 वेरिएंट के खिलाफ लड़ाई में दुनिया भर के स्कूलों को बंद करना अंतिम उपाय होना चाहिए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने 'फोर' के हवाले से शुक्रवार को एक बयान में कहा, "जहां तक संभव हो, स्कूलों को पूरी तरह बंद होने से बचना चाहिए।"
"जब कोविड -19 सामुदायिक प्रसारण बढ़ता है और कड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय एक आवश्यकता हो जाते हैं, तो स्कूल निश्चित ही बंद करने के लिए अंतिम स्थान होना चाहिए।
यूनिसेफ प्रमुख ने कहा, "बड़े पैमाने पर स्कूल बंद होना बच्चों के लिए विनाशकारी होगा ..।"
"हमें स्कूलों को खुला रखने के लिए हर संभव प्रयास जारी रखना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी में भी निवेश बढ़ाना चाहिए कि कोई बच्चा पीछे न छूटे।"
यूनिसेफ प्रमुख के पद से मुक्त होने वाले फोर ने कहा कि अगला साल बाधित शिक्षा का एक और साल नहीं हो सकता है।
"यह वर्ष ऐसा होना चाहिए कि शिक्षा, और बच्चों के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता दी जाए।"
फोर ने जुलाई में पारिवारिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक के रूप में इस्तीफा देने की अपनी मंशा की घोषणा की।
व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी कैथरीन रसेल को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा फोर की जगह लेने के लिए नियुक्त किया गया है।
फोर ने कहा कि वह अपने पद पर तब तक बनी रहेंगी जब तक कोई उत्तराधिकारी पदभार ग्रहण नहीं कर लेता।
रसेल ने कहा कि वह अगले साल की शुरूआत में कार्यकारी निदेशक के रूप में शुरूआत करेंगी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 दिसम्बर| अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) हमदुल्ला मोहिब ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी अपनी जान बचाने और खुद को फांसी से बचाने के लिए देश छोड़कर भाग गए।
उन्होंने रेडियो लिबर्टी के साथ एक साक्षात्कार में यह टिप्पणी की।
मोहिब के अनुसार, अमेरिका और तालिबान द्वारा 29 फरवरी, 2020 को एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद अफगान गणराज्य का पतन शुरू हो गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व एनएसए ने कहा कि गनी का भागना अप्रत्याशित था और तालिबान के साथ सत्ता परिवर्तन पर एक समझौते पर पहुंचने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल उसी दिन दोहा का दौरा करने वाला था।
मोहिब ने कहा, "हम लोया जिरगा (नेशनल असेंबली) बुलाने और सत्ता परिवर्तन के बारे में तालिबान के साथ बातचीत करने के लिए दोहा जाने की तैयारी कर रहे थे।"
मोहिब ने कहा कि वह अमेरिका में रह रहे हैं, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति अभी भी यूएई में ही हैं। उन्होंने संकेत दिया कि गनी आने वाले समय में अपनी बात रखेंगे।
15 अगस्त को, काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया था, जिसके बाद उसने इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान की सत्ता चलाने के लिए कार्यवाहक सरकार का गठन किया। (आईएएनएस)
दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी विचित्र बनावट के कारण चर्चा में रहते हैं. कई लोगों को तो गंभीर बीमारियां हो जाती हैं जिसके चलते वो अन्य लोगों से काफी अलग नजर आने लगते हैं. ऐसे लोगों को समाज में अपनी जगह बनाने में काफी तकलीफ होती है. आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो वैसे तो 22 साल की है मगर एक 8 साल की बच्ची के शरीर में फंसी हुई है. इस वजह से अक्सर लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं और वो हर दिन अपने आपको लेकर जूझती है.
शौना रे को जब लोग देखते हैं तो महज 8-9 साल की बच्ची समझते हैं. मगर सच तो ये है कि वो 22 साल की महिला हैं जो अपनी उम्र से काफी छोटी नजर आती हैं. वैसे बढ़ती उम्र में कम दिखाई देना हर किसी को पसंद है मगर शौना की समस्या ये है कि वो सिर्फ चेहरे से ही नहीं, कद और अपनी शारीरिक बनावट से भी 8 साल की बच्ची जितनी लगती हैं.
दुर्लभ कैंसर को महिला ने दी थी मात
हाल ही में टीएलसी ने शौना पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका विज्ञापन सामने आ चुका है और जल्द ही ये डॉक्यूमेंट्री लोगों को देखने को मिलेगी. जब से एड में लोगों ने शौना को देखा है, तब से ही उनकी चर्चा शुरू हो गई है और हर कोई ये जानना चाहता है कि शौना की ये स्थिति कैसे हो गई है. दरअसल, शौना जब 6 महीने की थीं तब वो बेहद दुर्लभ किस्म के ब्रेन कैंसर से ग्रसित हो चुकी थीं. यूं तो ट्रीटमेंट से उन्होंने कैंसर को मात तो दे दी थी पर कीमोथेरपी का ऐसा साइड इफेक्ट हुआ कि दवाओं ने उनके पीयूष ग्रंथि को उसका काम करने से रोक दिया. गौरतलब है कि पीयूष ग्रंथि इंसान का कद और शरीर की बनावट को बढ़ाने में मदद करती है. जैसे ही ये ग्रंथि डॉर्मेंट स्थिति में आई, वैसे ही उनकी लंबाई बढ़ना बंद हो गई.
3 फीट 10 इंच है महिला की हाइट
हैरानी की बात ये है कि शौना की लंबाई सिर्फ 3 फीट 10 इंच है. वो अपने आप को 8 साल की बच्ची के शरीर में कैद महिला कहती हैं. इस बात का उन्हें बहुत दुख है. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें रोजमर्रा की चीजों में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. जब वो दोस्तों के साथ बार में ड्रिंक करने जाती हैं तो वहां से उन्हें कर्मी भगाने लगते हैं. यही नहीं, उन्हें देखकर उनसे कोई प्यार नहीं करना चाहता इसलिए वो ब्लाइंड डेटिंग प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर के डेट पर जाती हैं मगर उनके डेट उन्हें देखते ही शॉक हो जाते हैं.
चीन की सबसे बड़ी प्रॉपर्टी डेवलपर रही एक कंपनी का कहना है कि उसका अपने वेल्थ मैनेजर से संपर्क टूट गया जिसके पास कंपनी के 313 मिलियन डॉलर थे.
वेल्थ मैनेजर के पास कंपनी को निवेश संबंधी सलाह देने की ज़िम्मेदारी थी.
चाइना फॉर्च्यून लैंड डेवलपमेंट ने कहा कि ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स में पंजीकृत चाइना क्रिएट कैपिटल ने उसकी तरफ़ से निवेश किया था.
फॉर्च्यून लैंड ने बताया कि उसने बीज़िंग पुलिस के पास मामले की शिकायत की है.
पहले ही कर्ज़ में डूबी इस रियल एस्टेट कंपनी के लिए ये दोहरे झटके की तरह है.
इस महीने कंपनी ने अरबों डॉलर के बॉन्ड्स पर डिफॉल्ट होने के बाद अपने कर्ज़ों के पुनर्गठन को लेकर जानकारी दी थी.
इस हफ़्ते शंघाई स्टॉक एक्सचेंज में दाखिल एक दस्तावेज के अनुसार, साल 2018 में फॉर्च्यून लैंड की विदेशी शाखाओं में से एक ने विंग्सकेंगो लिमिटेड नाम की एक कंपनी से निवेश प्रबंधन सेवाएं लेने के लिए एक सौदा किया था.
दस्तावेज के अनुसार विंग्सकेंगो लिमिटेड के बताए अनुसार फॉर्च्यून लैंड ने चाइना क्रिएट कैपिटल को 313 मिलियन डॉलर भेजे थे.
फॉर्च्यून लैंड ने कहा कि कि उसने 2022 के अंत में समझौता पूरा होने तक इस निवेश से 7% से 10% का सलाना ब्याज मिलने की उम्मीद की थी.
कर्ज़ पुनर्गठन की योजना
कंपनी ने बताया कि वो अब क्रिएट कैपिटल से संपर्क नहीं कर पा रही है. उसके पास ये पता लगाने का कोई तरीक़ा नहीं है कि इन पैसों का उसके मौजूदा और भविष्य के लाभ पर क्या असर पड़ेगा.
चीन का रियल एस्टेट उद्योग कर्ज संकट से गुज़र रहा है. ऐसे में देश की दूसरी कई बड़ी रियल स्टेट कंपनियों की तरह हाल के महीनों में फॉर्च्यून लैंड के शेयरों में भी गिरावट आई है.
इसके शंघाई-सूचीबद्ध शेयरों ने इस साल अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा ना करने के चलते अपने मूल्य का 70% से अधिक खो दिया है.
हालांकि, फॉर्च्यून लैंड ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि लेनदारों के एक समूह ने एक कर्ज़ पुनर्गठन योजना को मंजूरी दे दी है. कर्ज़ में डूबी इस कंपनी को इससे राहत की सांस मिली थी.
फॉर्च्यून लैंड चीन के कर्ज़ में डूबे प्रॉपर्टी डेवलपर्स में से एक है, जो पिछले साल इस क्षेत्र में अत्यधिक कर्ज़ को लेकर सरकारी की व्यापाक कार्रवाई के चलते दबाव में आ गई थी.
इस क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एवरग्रांडे पर लगभग 300 अरब डॉलर का कर्ज़ है. यह कर्ज़ में फंसी सबसे हाई-प्रोफाइल कंपनी रही है और हाल ही में कुछ विदेशी बॉन्ड पर ब्याज का भुगतान नहीं कर पाई है.
इस बीच प्रतिद्वंद्वी कंपनी कैसा ने पिछले हफ़्ते मैच्योर हो चुके 40 करोड़ डॉलर के बॉन्ड का भुगतान नहीं किया था. कंपनी पर विदेशों से लिया गया 12 अरब डॉलर का कर्ज़ है.(bbc.com)
कोसोवो युद्ध की समाप्ति के दो दशक बीत चुके हैं, लेकिन वहां के लोग इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं. इस देश के नागरिक अभी भी अपने लापता रिश्तेदारों के जीवित रहने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन अब उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं.
कोसोवो युद्ध 28 फरवरी 1998 को शुरू हुआ और 11 जून 1999 को समाप्त हुआ. कोसोवो अल्बानियाई विद्रोही समूह, कोसोवो लिबरेशन आर्मी ने पूर्व युगोस्लाविया सशस्त्र बलों का सामना किया और इसमें सर्बिया और मोंटेनेग्रो के सैनिक शामिल थे. युद्ध जो कि एक साल और तीन महीने तक चला, उसने लगभग 13,000 स्थानीय अल्बानियाई नागरिकों और लड़ाकों को मार डाला और 90 प्रतिशत लोग विस्थापित हो गए.
कोसोवो के हजारों नागरिक अभी भी लापता हैं. इनमें से कई लापता लोगों को पहले विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध के दौरान हिरासत में लिया गया और फिर मार दिया गया. ऐसे पीड़ितों के शवों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया था. कोसोवो के अधिकारियों ने सर्बिया पर उन जगहों तक पहुंच नहीं देने का आरोप लगाया जहां सामूहिक कब्रों में कई लोगों को एक साथ दफनाया गया है.
इंतजार में बुजुर्ग हो गए माता-पिता
82 साल के मुस्लिम अल्बानी जिरकिनी कहते हैं, "मेरे परिवार में युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है." उनके बेटे रेशट अब भी लापता हैं. वे कहते हैं, "मेरी पत्नी अभी भी रात में उसके कदमों की आवाज सुनती है."
युद्ध समाप्त होने के कई सालों तक कई देशों के फॉरेंसिक विशेषज्ञ उन कब्रों पर मृतकों की पहचान करने में व्यस्त रहे, जिन्हें पहुंच दी गई थी और मृतकों के अवशेषों को पहचानने के बाद वारिसों को सौंप दिया गया था. इन व्यक्तियों की पहचान के बाद उनका विवरण युद्ध अपराध दस्तावेजों में भी दर्ज किया गया था.
कोसोवो के अधिकारियों का कहना है कि 1,600 से अधिक लोग अब भी लापता हैं. कोसोवो के नागरिक अभी भी उनके अवशेषों की लौटाने की मांग कर रहे हैं. युद्ध के बाद एक हजार से अधिक लापता मृतकों की पहचान की गई थी. सर्बिया और कोसोवो के बीच कई अनसुलझे मुद्दों में लापता व्यक्तियों की तलाश भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
सर्बिया ने अभी तक कोसोवो को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दी है जबकि अमेरिका समेत कई पश्चिमी और अन्य देशों ने कोसोवो के साथ द्विपक्षीय संबंध स्थापित किए हैं.
जिरकिनी और उनकी पत्नी जैसे और भी कई परिवार हैं, जो अपनों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं. जिरकिनी जैसे लोगों का कहना है कि उनके लापता बच्चों की वापसी की उम्मीदें धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं.
बोस्निया में लापता लोगों की तलाश
कोसोवो का पड़ोसी बोस्निया अभी भी लापता लोगों की तलाश कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि वे सेरेब्रेनित्सा में और अधिक सामूहिक कब्रें ढूंढ पाएंगे. सेरेब्रेनित्सा में लगभग 8,000 मुस्लिम पुरुष और किशोर सर्बियाई सेना द्वारा मारे गए थे.
सेरेब्रेनित्सा मेमोरियल सेंटर के प्रवक्ता अल्मासा स्लेहवोविच ने कहा कि अधिक सामूहिक कब्रों को खोजना मुश्किल होता जा रहा है, लेकिन एक हजार लापता लोगों के अवशेष अभी भी खोजे जा रहे हैं.
कोसोवो की राजधानी प्रिस्टिना में एक प्रदर्शनी का शीर्षक है "ए टूंब बेटर दैन अ मिसिंग ग्रेव." यहां एक डिजिटल घड़ी लगी है जो यह बता रही है कि कितने घंटे और मिनट बीत चुके हैं जब परिवार ने आखिरी बार अपने प्रियजनों को देखा था. प्रदर्शनी के आयोजक ड्रिटॉन सलमानी कहते हैं, "लापता लोगों के परिवार अपने मृतकों को दफनाए बिना मरना नहीं चाहते हैं."
एए/वीके (एएफपी)
जापान के ओसाका शहर में एक इमारत में आग लगने से कम से कम 27 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जा रही है.
पब्लिक ब्रॉडकास्टर एनएचके के मुताबिक़, पुलिस इस मामले की जाँच कर रही है और आग लगने के कारणों का पता करने की कोशिश कर रही है.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, आग लगने के कारण पीड़ितों को "कार्डियोपल्मोनरी अरेस्ट" का सामना करना पड़ा. इसका मतलब यह हुआ कि इन लोगों के फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया है.
इस हादसे का जो वीडियो सामने आया है उसमें साफ़ दिखाई दे रहा है कि दर्जनों की संख्या में दमकलकर्मी आग पर काबू पाने में लगे हुए हैं और इमारत की खिड़कियाँ आग की लपटों से काली पड़ चुकी हैं.
स्थानीय अग्निशमन विभाग ने बताया कि उन्हें शुक्रवार सुबह इस हादसे की जानकारी मिली. उन्हें आग पर काबू पाने में क़रीब आधे घंटे का समय लग गया.
यह इमारत ओसाका में एक व्यस्त जगह पर है. (bbc.com)
कतर की महिला अधिकार कार्यकर्ता नूफ अल-मादीद ने कहा था कि अगर वह सोशल मीडिया पर नहीं लिख रही हैं, तो वह मर चुकी हैं. नूफ ने अपने परिवार से खतरा जताया था. 13 अक्टूबर, 2021 के बाद से ही नूफ ने कोई पोस्ट नहीं डाली है.
डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-
"मैंने जिंदगी जी. खुद को कत्ल होने से बचाने के लिए जो हो सकता था, किया."
"कतर लौट आने का मुझे अब भी कोई पछतावा नहीं है. मुझे अच्छी तरह पता था कि ऐसा हो सकता है."
ये पंक्तियां कतर की महिला अधिकार कार्यकर्ता नूफ अल-मादीद के कुछ आखिरी ट्वीटों का हिस्सा हैं. नूफ सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय और मुखर रहती थीं. वह कतर में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की आलोचक थीं. महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करती थीं. अपनी सोशल मीडिया पोस्टों में उन्होंने कई बार आशंका जताई थी कि उनकी हत्या की जा सकती है.
यह आरोप भी लगाया था कि उनका परिवार पहले भी तीन बार उन्हें मारने की कोशिश कर चुका है. नूफ ने यह भी कहा था कि अगर वह सोशल मीडिया पर नहीं लिख रही हैं, तो इसका मतलब है वह मर चुकी हैं. 13 अक्टूबर की शाम से ही नूफ के सोशल मीडिया अकाउंट मौन हैं.
इस चुप्पी के चलते मानवाधिकार संगठन नूफ के लिए आशंकित हैं. इनमें से ही एक संस्था है, गल्फ सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (जीसीएचआर). यह गैर-सरकारी संगठन खाड़ी देशों में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले दर्ज करता है. जीसीएचआर का कहना है कि उसे मिली खबरों के मुताबिक, नूफ की या तो हत्या कर दी गई है या फिर उन्हें बंदी बना लिया गया है.
क्या है नूफ की कहानी?
नूफ 23 साल की हैं. घर में उनपर काफी बंदिशें थीं. मार्च 2021 में 'ह्यूमन राइट्स वॉच' (एचआरडब्ल्यू) को दिए एक इंटरव्यू में नूर ने अपनी आपबीती सुनाई थी, "सालों तक घर में मेरा उत्पीड़न होता रहा. मेरे कहीं आने-जाने पर पाबंदी थी. मुझे सिर्फ स्कूल जाने की इजाजत थी. वहां से सीधे घर लौटना होता था. मैं हुक्म न मानती, तो मुझे मार पड़ती."
नूफ ने बताया था कि एक समय ऐसा आया, जब उन्हें अपनी जिंदगी और शारीरिक गरिमा पर खतरा महसूस होने लगा. वह घर छोड़कर जाना चाहती थीं. मगर कतर के कानून में महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध हैं. 25 साल से कम की कुंआरी लड़कियां अपने पुरुष अभिभावक (पिता, भाई, चाचा, दादा) की इजाजत के बिना देश से बाहर नहीं जा सकती हैं. शादीशुदा महिलाएं अपने पति की इजाजत बिना बाहर तो जा सकती हैं. लेकिन पति चाहे, तो अदालत में अर्जी देकर पत्नी की यात्रा बैन करवा सकता है.
घर से भाग गईं नूफ
12 नवंबर, 2019 को 21 साल की नूफ ने चुपके से अपने पिता का मोबाइल चुराया. इस मोबाइल से उन्होंने 'मैटरश ऐप' खोला. यह कतर के मिनिस्ट्री ऑफ इंटीरियर का ऐप है. गाड़ी चलाने के लाइसेंस से लेकर चालान भरने तक, दो सौ से भी ज्यादा सेवाएं इस ऐप से जुड़ी हैं. नूफ ने पिता के मोबाइल से यह ऐप खोला और अपनी विदेश यात्रा के लिए जरूरी उनकी रजामंदी को खुद ही प्रॉसेस कर दिया. फिर वह बेडरूम की खिड़की फांदकर एयरपोर्ट पर पहुंची. यहां से वह पहले यूक्रेन और फिर ब्रिटेन गईं. नूफ ने ब्रिटेन में शरण मांगी.
घर छोड़कर जाने के करीब दो साल बाद 30 सितंबर, 2021 को नूफ कतर लौटने के लिए ब्रिटेन से निकलीं. उन्होंने ब्रिटेन में शरण के लिए दी गई अपनी अर्जी भी वापस ले ली. इसकी वजह बताते हुए नूफ ने एक वीडियो में कहा कि कतरी प्रशासन ने उन्हें जरूरी सुरक्षा मुहैया करने का वादा किया है. यह आश्वासन भी दिया है कि लौटने के बाद उनके मानवाधिकारों का भी सम्मान किया जाएगा.
लौटने के बाद क्या हुआ?
नूफ के मुताबिक, कतर लौट आने के बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. उन्होंने अधिकारियों से सुरक्षा मांगी. नूफ ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्हें मदद नहीं मिल रही है. नूफ ने आशंका जताई कि उनकी हत्या हो सकती है. ट्विटर पर डाले गए एक वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया कि परिवार ने तीन बार उनकी जान लेने की कोशिश की है.
नूफ के मुताबिक, उनका उत्पीड़न करने वालों में उनके पिता मुख्य थे. उन्हीं की वजह से वह घर छोड़कर भागी थीं. लेकिन कतर लौटने के बाद वह जिस होटल में ठहरी हुई थीं, उनके पिता वहां भी पहुंच गए. नूफ ने अपने ट्वीट में कतर के शासक तमीम बिन हमद अल थानी से भी मदद मांगी थी. नूफ ने लिखा था, "शेख तमीम ही मेरी जान पर मंडरा रहे इस खतरे से मुझे बचा सकते हैं."
रोजाना कई पोस्ट करने वाली नूफ ने 13 अक्टूबर, 2021 के बाद से ही कोई पोस्ट नहीं डाली है. इसके पहले उन्होंने अपने फॉलोअरों से कहा था कि अगर वह सोशल मीडिया पर चुप हो जाती हैं, तो वे उनकी परवाह करें. उनके लिए आवाज उठाएं. इसीलिए उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर नूफ के लिए लिखना शुरू किया. #whereisNoof हैशटैग लगाकर वे सवाल करने लगे कि नूफ सुरक्षित हैं या नहीं.
15 अक्टूबर को एचआरडब्ल्यू ने भी नूफ का मुद्दा उठाते हुए उनकी सुरक्षा के लिए चिंता जताई. एचआरडब्ल्यू की वरिष्ठ महिला अधिकार शोधकर्ता रोथना बेगम ने न्यूज एजेंसी एएफपी से कहा, "वह खतरे में हैं."
मारे जाने की आशंका
अब जीसीएचआर ने दावा किया है कि उन्हें मिली जानकारियों के मुताबिक, नूफ या तो मारी जा चुकी हैं या कैद में हैं. 14 दिसंबर को संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि उच्च अधिकारियों ने नूफ को मिली पुलिस सुरक्षा हटवा दी थी. पुलिस को यह निर्देश भी दिया गया कि वे नूफ को उसके परिवार के हवाले कर दें. जीसीएचआर ने आशंका जताई कि 13 अक्टूबर की शाम परिवार ने नूफ को अगवा कर लिया. शायद इसी रात परिवार के सदस्यों ने नूफ को मार दिया.
यह डर भी जताया जा रहा है कि अगर हत्या की खबर सही न भी हो, तो भी नूफ को कैद में रखने की आशंका बनी हुई है. हो सकता है उन्हें अलग-थलग रखा गया हो. सोशल मीडिया तक उनकी पहुंच रोक दी गई हो. उनसे अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गई हो. जीसीएचआर के मुताबिक, उन्होंने इन खबरों का सच जानने की कोशिश की. लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर कोई भी आधिकारिक बयान देने से इनकार कर दिया.
प्रशासन की ओर से मीडिया को दी गई जानकारी में कहा गया है कि नूफ सुरक्षित हैं. सेहतमंद हैं. मगर प्रशासन ने इन दावों की पुष्टि से जुड़ा कोई सबूत नहीं दिया है. (dw.com)
कोपेनहेगन, 17 दिसम्बर| यूरोप के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के क्षेत्रीय कार्यालय ने लोगों से इस छुट्टियों के मौसम में सावधानी बरतने का आग्रह किया है, क्योंकि यूरोप के क्षेत्र अब गंभीर कोरोना मामलों का सामना कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ यूरोप के क्षेत्रीय निदेशक हैंस क्लूज ने एक बयान में कहा, कि "यूरोपीय क्षेत्र ओमिक्रॉन के मामले बढ़ने से पहले डेल्टा वेरिएंट का केंद्र था।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूएचओ ने कहा, कोरोनावायरस का खतरा हमेशा से ही गंभीर रहा है, पहले डेल्टा वेरिएंट के की वजह से कोरोना मामलों में बढ़ोतरी हुई और अब ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण बढ़ते मामलों की वजह से फैल रहा है।
क्लूज ने आगे बताया कि "हमें वायरस से निपटने के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है। हम टीके, बूस्टर खुराक, कोरोना टेस्ट, मास्क की मदद से कोरोना मामलों से निपट सकते हैं। ये सभी हमें वायरस से सुरक्षित रखने में मदद करेंगी।"
"हम इस महामारी से 2020 से लड़ रहे हैं हैं। ऐसे में हमने इसका साथ लंबा सफर तय किया है। हमने एकजुटता के कई प्रेरक उदाहरण देखे हैं। हम जानते हैं कि कैसे खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखना है। ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामले फैलने से कुछ बदला नहीं हैं। स्थिति जस की तस है। डब्ल्यूएचओ, यूरोप के साथ लगातार संपर्क में हैं और विशेषज्ञ अधिक जानकारी मिलने पर लोगों के साख इसे साझा करेंगे। "
क्लूज ने कहा कि ओमिक्रॉन मामलों के बढ़ने के साथ ही गलत खबरें और सूचनाएं ज्यादा तेजी से फेल रही हैं। इसलिए लोगों को सतर्क रहना चाहिए। (आईएएनएस)
टोक्यो, 17 दिसम्बर| जापान के ओसाका प्रान्त में शुक्रवार को एक इमारत में आग लगने से 27 लोगों के मारे जाने की आशंका है। इसकी पुष्टि अधिकारियों ने की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने स्थानीय अग्निशमन विभाग के हवाले से कहा कि आग जेआर ओसाका स्टेशन के पास स्थित इमारत की चौथी मंजिल पर लगी। आग को सुबह करीब 10.45 बजे (स्थानीय समयानुसार) बुझा दिया गया है।
विभाग ने बताया कि सुबह करीब 10.20 बजे आग लगने की सूचना मिली।
आग लगभग 20 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैल गई थी।
आग लगने के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। (आईएएनएस)
-हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 17 दिसंबर | बांग्लादेश, जो कभी पाकिस्तान का पूर्वी विंग हुआ करता था, गुरुवार को 50 साल का हो गया, जिसका जन्म 1971 में खूनी पैरॉक्सिज्म के बाद हुआ था।
बांग्लादेश का जन्म पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि उसका पूर्वी विंग टूट गया था। हालांकि, पश्चिमी विंग के निवासियों के बीच 1971 में जो इनकार था, वह अभी भी कई पाकिस्तानियों की राष्ट्रीय चेतना में व्याप्त है।
ढाका पतन की यादों के माध्यम से चलते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति और सैन्य प्रमुख जनरल या'ा खान के बयान को याद किया जाता है। उन्होंने कहा था कि युद्ध जीत तक जारी रहेगा, एक दूसरे स्तर के समाचापत्र ने कुछ बिंदुओं का विवरण देने की स्वतंत्रता ली, जिन्हें कई लोग सही विवरण कहते हैं।
अखबार ने कहा कि 'भारतीय सैनिकों ने ढाका में प्रवेश किया था और भारत और पाकिस्तान के स्थानीय कमांडरों के बीच एक व्यवस्था के बाद लड़ाई बंद हो गई थी'।
वास्तविकता का खंडन प्रबल हुआ, क्योंकि ढाका पश्चिमी पाकिस्तान के निवासियों के लिए गिर गया था, जबकि अधिकांश पूर्वी विंग के लिए, यह लिबरेशन था। दो शर्तो ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि सेंसरशिप ने पश्चिमी पाकिस्तान के निवासियों को अंधेरे में रखा था और जमीन की स्थिति से अनजान थे।
आज स्वतंत्र बांग्लादेश के गठन के 50 साल बाद भी कई सवाल और कारण बहस के घेरे में हैं। पाकिस्तान में, बहस ज्यादातर पर इन सवालों पर केंद्रित है :
* दशकों तक पूर्वी पाकिस्तान की आबादी को दूसरे दर्जे का नागरिक क्यों माना जाता रहा?
* पूर्वी पाकिस्तान को राज्य से अलग क्यों किया गया?
पश्चिमी पाकिस्तान के प्रांतों को मिलाने की अयूब खान की वन यूनिट योजना पूर्वी विंग के संख्यात्मक बहुमत का मुकाबला करने के लिए थी।
उस समग्र घटना की जांच के लिए एक आयोग का भी गठन किया गया था जिसमें पूर्वी पाकिस्तान टूट गया था। आयोग को हमूदुर रहमान आयोग कहा जाता था। दुर्भाग्य से, आयोग की जांच रिपोर्ट अभी तक आधिकारिक रूप से जारी नहीं की गई है।
बहुत से लोग मानते हैं कि जांच रिपोर्ट की सामग्री तत्कालीन संघीय सरकार की नीतियों के अभियोग के रूप में काम करती है।
यह भी एक सच्चाई है कि भारत ने देश के आंतरिक मामलों में दखल देने में अपनी भूमिका निभाई। हालांकि, यह एकजुट पाकिस्तान की कमजोरी थी जिसने किसी भी बाहरी हस्तक्षेप के रास्ते खोले।
1970 के चुनावों के बाद बहुसंख्यकों को सरकार बनाने के उनके अधिकारों से वंचित करना कई गलतियों में से एक थी। उस समय, मार्च 1971 में पूर्वी विंग में एक सैन्य अभियान शुरू करना व्यावहारिक माना जाता था, जिसमें हजारों लोग भारत भाग गए, जबकि दोनों पक्षों के कई निर्दोष लोग मारे गए। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 16 दिसम्बर | शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म टिकटॉक कथित तौर पर 'टिकटॉक लाइव स्टूडियो' नाम के एक नए डेस्कटॉप स्ट्रीमिंग सॉफ्टवेयर की टेस्टिंग कर रहा है। टेकक्रंच के अनुसार, एक बार आपके डेस्कटॉप पर डाउनलोड हो जाने के बाद, नया विंडोज प्रोग्राम यूजर्स को अपने टिकटॉक खाते से लॉग इन करने और सीधे टिकटॉक लाइव पर स्ट्रीम करने की अनुमति देता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यक्रम के भीतर, उपयोगकर्ता चैट फीचर के माध्यम से दर्शकों के साथ संवाद कर सकते हैं और कंप्यूटर, फोन या गेमिंग कंसोल से कंटेंट को स्ट्रीम कर सकते हैं।
शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म ने टेक वेबसाइट को बताया कि यह कार्यक्रम वर्तमान में केवल कुछ हजार यूजर्स के लिए पश्चिमी बाजारों में उपलब्ध है।
रिपोर्ट के अनुसार, "इस सुविधा के परीक्षण में टिकटॉक के लिए एक स्पष्ट लाभ यह है कि रचनाकारों को अपने दर्शकों को ट्विच या यूट्यूब गेमिंग पर स्ट्रीम देखने के लिए कहने के बजाय, अपने ऐप के भीतर रहने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।"
हाल ही में कहा गया है कि टिकटॉक अक्टूबर 2021 के लिए दुनिया भर में सबसे अधिक डाउनलोड किए जाने वाले गैर-गेमिंग ऐप के रूप में उभरा है, जिसे 57 मिलियन से अधिक इंस्टॉल किया गया है।
पिछले साल, भारत सरकार ने चीनी फर्मों द्वारा विकसित 59 ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें बाइटडांस के टिकटॉक और पबजी मोबाइल शामिल था। यह चिंता व्यक्त की गई थी कि ये ऐप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल थे। (आईएएनएस)
ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने एक्स लिंग वाले पासपोर्ट को खारिज कर दिया है. खुद को नर या मादा दोनों ही नहीं मानने वाले लोगों के लिए यह पासपोर्ट कई देशों में जारी हो चुका है.
क्रिस्टी ऐलान-केन 1995 से पासपोर्ट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन वह नहीं चाहते कि उनके पासपोस्ट पर एम (मेल) या एफ (फीमेल) लिखा जाए. वह चाहते हैं कि उन्हें एक्स लिखा पासपोर्ट जारी हो. अक्टूबर में जब अमेरिका ने एक्स लिंग वाला पासपोर्ट जारी किया तो क्रिस्टी को लगा कि उनका सपना पूरा होने वाला है.
लेकिन ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट ने क्रिस्टी की सारी उम्मीदें तोड़ दी हैं. यूके के सुप्रीम कोर्ट ने एक्स लिंग वाला पासपोर्ट खारिज कर दिया है. युनाइटेड किंग्डम के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून व्यवस्था नर-मादा विभाजन के आधार पर बनी है और एक्स लिंग वाला पासपोर्ट इस व्यवस्था को कमजोर करेगा.
आहत हैं कार्यकर्ता
इस पासपोर्ट के पक्ष में अभियान चला रहे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमानवीकरण और अपमानजनक बताया है. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन अब उन देशों से जुदा हो गया है जिन्होंने बिना किसी लिंग पर आधारित पासपोर्ट जारी किए हैं.
क्रिस्टी ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ECHR) में अपील की जाएगी. ऑस्ट्रेलिया, भारत और आइसलैंड समेत 12 देश ऐसा पासपोर्ट जारी कर चुके हैं. लेकिन क्रिस्टी ने कहा कि उन्हें ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर ज्यादा हैरत नहीं हुई है. जबकि अमेरिका मीडिया से बातचीत में क्रिस्टी ने कहा, "युनाइटेड किंग्डम में न्याय नहीं है. अगर कोई नर या मादा नहीं है तो उसे अपने दस्तावेजों पर कोई लिंग अपनाने के लिए मजबूर करना गलत है. यह अपमानजनक है. यह अमानवीकरण है.”
कानून में नर-मादा का फर्क
ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट के अध्यक्ष ने एकमत से लिए गए फैसले में लिखा कि सरकार का लक्ष्य देश की रक्षा करना है, खर्च घटाना है और "यह सुनिश्चित करना है कि कानून और प्रशासन के तहत लैंगिक विषय पूरी तरह वैध रहें.”
फैसले में कहा गया है कि ऐसा कोई कानून ही नहीं है जिसमें अ-लिंगी लोग मान्य हों लेकिन कई कानून ऐसे हैं जहां नर या मादा के रूप में लोगों को स्पष्टतौर पर मान्यता दी गई है. अदालत ने यह भी कहा कि क्रिस्टी के साथ सीमा पर पासपोर्ट को लेकर किसी तरह का भेदभाव नहीं हुआ है, जैसा कि एक फ्रांसीसी ट्रांसजेंडर महिला के साथ हुआ था क्योंकि वह अपने दस्तावेजों में लिंग नहीं बदल पा रही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "शायद सबसे जरूरी बात यह है कि अपीलकर्ता की शारीरिक दिखावट और पासपोर्ट पर लिंग के लिए इस्तेमाल एफ मार्कर में कोई स्पष्ट फर्क नही है.”
पासपोर्ट जारी करने के लिए जिम्मेदार ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने इस फैसले का स्वागत किया है. ईमेल से समाचार एजेंसी रॉयटर्स को भेजे एक जवाब में गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वागतयोग्य बताया.
वीके/एए (रॉयटर्स)
बर्लिन में दो साल पहले सरेआम हुई एक हत्या के मामले में रूसी जासूसी एजेंसी एफएसबी के दोषी पाए जाने के बाद जर्मनी ने रूस के दो अफसरों को निष्कासित कर दिया है. 2019 में सेंट्रल बर्लिन में यह हत्या हुई थी.
बर्लिन की एक अदालत ने रूसी नागरिक वादिम करासिकोव को चेचेन मूल के एक व्यक्ति को दोषी पाया और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई. मुकदमे की सुनवाई के दौरान सरकारी वकीलों ने दलील दी कि करासिकोव रूस की जासूसी एजेंसी एफएसबी के सीधे निर्देश पर काम कर रहा था.
सरकारी वकीलों ने कहा कि रूसी अधिकारियों ने ही करासिकोव के लिए छद्म पहचान वादिम सोलोकोव के नाम से तैयार की थी. हत्या से पहले वह कई यूरोपीय देशों से होता हुआ कई दिन में बर्लिन पहुंचा था. 23 अगस्त 2019 को उसने सेंट्रल बर्लिन में जॉर्जिया के एक नागरिक की बहुत करीब से गोली मारकर हत्या कर दी. उसी दिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.
जर्मनी ने उठाया सख्त कदम
बुधवार को सुनाए गए इस फैसले के बाद जर्मनी की नई विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने रूसी राजदूत सर्गई नेचायेव को समन किया था. बेयरबॉक ने मीडिया को बताया, "हमने उन्हें बताया कि दूतावास के दो सदस्य हमारे देश में नहीं रह सकते.”
बेयरबॉक ने चेचेन व्यक्ति की हत्या को ‘सरकार द्वारा हत्या' बताते हुए कहा कि इस घटना ने जर्मनी के कानून और संप्रभुता का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने रूसी समकक्ष सर्गई लावरोव से भी बात की और उन्हें स्पष्ट तौर पर बताया कि जर्मनी रूस के साथ एक ईमानदार बातचीत चाहता है.
बेयरबॉक ने कहा, "यह अंतरराष्ट्रीय कानून और आपसी सम्मान पर आधारित होनी चाहिए.”
रूस ने कहा, जवाब देंगे
उधर रूस का कहना है कि बुधवार को अदालत द्वारा सुनाया गया फैसला "राजनीतिक” है और रूस-विरोधी भावनाओं के आधार पर लिया गया है. रूस के नेचायेव ने कहा, "हम इस फैसले को पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित मानते हैं जो जर्मनी और रूस के पहले से तनावपूर्ण रिश्तों को और खराब करेगा.”
घटना में रूस की मिलीभगत के दावों को बकवास बताते हुए रूसी राजदूत ने कहा कि अदालत का फैसला एक शत्रुतापूर्ण कदम है जिसका जवाब दिया जाएगा.
2019 में जिस चेचन नागरिक की हत्या हुई थी, उसे रूसी सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादी माना गया था. उस पर चेचन्या रूसी फौजों के खिलाफ लड़ने के अलावा मॉस्को मेट्रो में बम धमाकों में शामिल होने का भी आरोप था.
अदालत में क्या हुआ?
जज ओलाफ आरनोल्डी ने कहा, "जून 2019 में रूस की केंद्रीय सरकार के कुछ हिस्सों ने उसे बर्लिन में कत्ल कर देना का फैसला किया. यह रूस द्वारा आत्मरक्षा में उठाया गया कदम नहीं था. यह सरकारी आतंकवाद से ज्यादा कुछ भी नहीं है. इसका मकसद एक मिसाल स्थापित करना था.”
इससे पहले कारिसकोव के वकील ने अदालत से कहा था कि उनके मुवक्किल को वादिम सोकोलोव समझा जाना चाहिए जो रूस का रहने वाला एक कंस्ट्रक्शन इंजीनियर है और वह वादिम करासिकोव नाम के किसी शख्स को नहीं जानता.
लेकिन जज आरनोल्डी ने कहा कि इस बारे में कोई संदह नहीं है कि जिस व्यक्ति ने गोली चलाई वह वादिम करासिकोव है. यूक्रेन के अधिकारियों ने करासिकोव की पहचान से जुड़े कई सबूत उपलब्ध करवाए थे जिनमें यूक्रेन की एक महिला से उसकी शादी की तस्वीरें भी थीं. मुकदमा दर्ज करते वक्त जर्मन अधिकारियों ने दावा किया था कि करासिकोव एफएसबी की स्पेशल यूनिट का कमांडर है.
बर्लिन में हत्या करने से पहले करासिकोव एक पर्यटक के तौर पर यूरोप में घूमा था. पहले वह पेरिस गया और उसके बाद पोलैंड गया. जज ने करासिकोव को उम्रकैद सुनाते हुए कहा, "चार बच्चों ने अपना पिता खो दिया. दो लोगों ने अपना भाई खो दिया.” करासिकोव के वकील ने इस फैसले के खिलाफ अपील करने की बात कही है.
वीके/एए (एपी, डीपीए)
ब्रसेल्स, 16 दिसम्बर| यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय ग्रीन डील की एक प्रमुख प्रतिबद्धता को पूरा करते हुए पर्यावरण अपराध पर कार्रवाई के लिए एक नए यूरोपीय संघ (ईयू) निर्देश के प्रस्ताव को अपनाया है।
प्रस्ताव सदस्य राज्यों को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ आपराधिक कानून के उपाय करने के लिए बाध्य करता है। यह नए पर्यावरणीय अपराधों को परिभाषित करता है, प्रतिबंधों के लिए न्यूनतम स्तर निर्धारित करता है और कानून प्रवर्तन सहयोग की प्रभावशीलता को मजबूत करता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह यूरोपीय संघ के देशों को पर्यावरणीय अपराधों की रिपोर्ट करने वाले लोगों का समर्थन और सहायता करने के लिए भी बाध्य करता है।
आयोग ने कहा कि प्रस्ताव का लक्ष्य प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा में मदद करना है।
यूरोपीय आयोग के कार्यकारी उपाध्यक्ष फ्रैंस टिमरमैन ने कहा, "हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के जानबूझकर विनाश से मानवता के रूप में हमारे अस्तित्व को खतरा है।"
"कानून तोड़ने वालों को दण्ड से मुक्ति के साथ काम करने देना प्रकृति और जैव विविधता की रक्षा, जलवायु संकट से लड़ने, प्रदूषण को कम करने और कचरे को खत्म करने के हमारे सामूहिक प्रयासों को कमजोर करता है। गंभीर दुर्व्यवहारों को गंभीर प्रतिक्रिया के साथ पूरा किया जाना चाहिए।"
प्रस्ताव के तहत, नए पर्यावरणीय आपराधिक अपराधों में अवैध लकड़ी का व्यापार, जहाज पुनर्चक्रण और पानी की निकासी शामिल है। पर्यावरणीय आपराधिक अपराधों की मौजूदा परिभाषाओं को भी स्पष्ट किया गया है।
आयोग पर्यावरणीय अपराधिक प्रतिबंधों के लिए एक सामान्य न्यूनतम भाजक निर्धारित करने का प्रस्ताव करता है। आयोग ने कहा कि जहां अपराध किसी व्यक्ति की मौत या गंभीर चोट का कारण बनते हैं या होने की संभावना है, सदस्य राज्यों को कम से कम दस साल तक की कैद का प्रावधान करना होगा।
प्रस्ताव अब यूरोपीय संसद और परिषद को प्रस्तुत किया जाएगा। (आईएएनएस)
लंदन. ब्रिटेन में अब तक के सबसे अधिक दैनिक कोरोना वायरस के केस रिकॉर्ड किए गए हैं. न्यूज एजेंसी एएफपी ने बुधवार को बताया कि यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने महामारी की शुरुआत के बाद से अब तक के सबसे अधिक 78,610 दैनिक कोरोना वायरस केस दर्ज किए हैं. ब्रिटिश स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि अगले कुछ दिनों में मामलों की संख्या में और इजाफा हो सकता है.
स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि यूरोप, क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारियां कर रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि संक्रमण में इस तेज गति से हो रही वृद्धि आखिर में लोगों को निराश कर देगी. जनवरी 2022 में संक्रमण और इसके केस सर्वाधिक हो सकते हैं. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि यूरोपीय संघ ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए तैयार है. यहां करीब 66 प्रतिशत आबादी पूरी तरह से टीकाकरण करा चुकी है. लेकिन तेजी से बढ़ रहे कोरोना वायरस के मामलों ने चिंता बढ़ा दी है.
उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि साल के अंत में होने वाले कार्यक्रमों और समारोहों में बाधा आएगी. यह भी आशंका है कि इस बार फिर क्रिसमस पर महामारी के कारण हमें घरों के अंदर रहना पड़े.
यूरोपीय संघ के देशों में टीकाकरण की दर में काफी अंतर है. पुर्तगाल और स्पेन में यह दर अधिक है तो कुछ जगह यह दर बेहद कम है. यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के अनुसार, बुल्गारिया में सिर्फ 26.6% लोगों ने पूरी तरह से टीकाकरण किया है.
सरकार ने अलर्ट का लेवल भी बढ़ाया.
यूके सरकार ने देश के कोरोना वायरस अलर्ट लेवल को तीन से चार तक बढ़ा दिया है. COVID-19 के ओमिक्रॉन वेरिएंट में यहां बेतहाशा वृद्धि हुई है. यहां 1,239 नए मामले सामने आए हैं. इसके साथ ही यूके कुल 3,137 केस हो गए. यूके स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी (यूकेएचएसए) की सलाह पर यूनाइटेड किंगडम के सभी हिस्सों – इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) ने अलर्ट लेवल बढ़ा दिया है.
तेहरान, 16 दिसंबर| संयुक्त राष्ट्र में ईरानी राजदूत माजिद तख्त-रवांची ने कहा कि उनका देश 'सत्यापन योग्य गारंटी' की मांग करता है कि अन्य पक्ष ईरान के परमाणु कार्यक्रम का उल्लंघन नहीं करेंगे। प्रेस टीवी ने बुधवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, तख्त-रवांची ने एक बयान में कहा, "ईरान जेसीपीओए को बहाल करने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए, वियना में हमारे प्रस्ताव जेसीपीओए और संकल्प 2231 के अनुरूप हैं।"
उन्होंने कहा कि ईरान ने जल्द से जल्द एक अच्छे समझौते पर पहुंचने के लिए अपने वातार्कारों के साथ अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति, गंभीरता और रचनात्मक जुड़ाव का प्रदर्शन किया है।
ईरानी दूत ने कहा कि यह अन्य पक्षों के लिए यह साबित करने का समय है कि वे अपनी सभी जेसीपीओए प्रतिबद्धताओं को प्रभावी ढंग से और अच्छे विश्वास के साथ स्वीकार करने और लागू करने के लिए तैयार हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत अमेरिकी पूर्व सरकार ने 2015 के परमाणु समझौते से वाशिंगटन को वापस ले लिया, जिसे औपचारिक रूप से 2018 में संयुक्त व्यापक कार्य योजना के रूप में जाना जाता है और ईरान के खिलाफ प्रतिबंध फिर से लगाए गए हैं। जवाब में, ईरान ने 2019 में समझौते के तहत अपनी कुछ प्रतिबद्धताओं को छोड़ना शुरू कर दिया। (आईएएनएस)
-सुमी खान
'ढाका, 16 दिसंबर| शहीद बौद्धिक दिवस पर धरती के सबसे प्रतिभाशाली दिमागों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अवामी लीग के सदस्य और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे साजीब वाजेद जॉय ने मंगलवार को कहा कि जो चले गए, अगर वे जीवित होते तो देश और भी अच्छा होता।
शहीद बौद्धिक दिवस 14 दिसंबर को उन बुद्धिजीवियों को मनाने के लिए मनाया जाता है जो 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान विशेष रूप से 25 मार्च और 14 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों द्वारा मारे गए थे।
साजीब वाजेद सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) पर बांग्लादेश सरकार के सलाहकार के रूप में भी काम करते हैं। उन्होंने 14 दिसंबर को एक खास दिन के रूप में याद करते हुए फेसबुक पोस्ट में लिखा, "यह देश को अभी भी सदमे की याद दिलाता है।"
"1971 में जब पाकिस्तान की सेना हिल गई और देश के विभिन्न हिस्सों में आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया, उन्होंने अपने स्थानीय सहयोगियों से पाकिस्तानी सेना द्वारा उठाए गए रजाकर, अल-बद्र और अल-शम्स का उपयोग करने वाले बुद्धिजीवियों और पेशेवरों को मार डाला। हमें बौद्धिक रूप से दिवालिया बनाने के लिए उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर उनकी हत्या कर दी।"
सुनियोजित हत्याओं के पीछे की बुरी मंशा पर निशाना साधते हुए, सजीब वाजेद ने कहा, उनका लक्ष्य एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में दुनिया में बांग्लादेश की गरिमा को नकारना था। यही कारण है कि उन्होंने इस धरती के सबसे अच्छे बेटों के जीवन को काट दिया जो कर सकते थे देश को आगे बढ़ाया है।
उन्होंने कहा, कवियों, साहित्यकारों, पत्रकारों, शिक्षकों, इंजीनियरों, चिकित्सकों, कलाकारों, गायकों और फिल्म निमार्ताओं जैसे बुद्धिजीवियों ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के हर चरण में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
मुक्ति संग्राम में भाग लेने के लिए पूरे देश को प्रेरित करने में उनकी भूमिका को पहचानने के अलावा, साजीब वाजेद ने मुजीब नगर सरकार बनाने, देश को विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित करने और एक सौंपने जैसे रणनीतिक कदमों में अपनी भूमिका निभाने के लिए उनकी प्रशंसा की। उनमें से प्रत्येक के लिए सेक्टर कमांडर, बांग्लादेश सरकार के विभिन्न संगठनों की स्थापना, इन संगठनों में सक्षम लोगों की नियुक्ति, और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित करना। (आईएएनएस)
लंदन. वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को एक शोध परिसर स्थापित करने के लिए 50 मिलियन पाउंड (5 अरब 3 करोड़ 52 लाख रुपये) देने का वादा किया है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बुधवार को कहा कि कंपनी की सीरम लाइफ साइंसेज यूनिट के जरिए यह निवेश किया गया है. शोध भवन का नाम सीरम के मालिकों, पूनावाला परिवार के नाम पर रखा जाएगा. यह वादा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राजेनेका और एसआईआई के बीच सहयोग पर आधारित है.
बता दें भारत में कोविशील्ड नाम से प्रचलित कोविड रोधी टीके का मूल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ही हुआ है. भारत में सीरम इस वैक्सीन का निर्माण कर रही है. SII ने जेनर के R21/Matrix-M मलेरिया शॉट का बड़े पैमाने पर उत्पादन और विकास करने के लिए जेनर इंस्टीट्यूट के साथ भी करार किया है. टीका अभी ट्रायल स्टेज में है.
SII की स्थापना 1966 में पुणे में साइरस पूनावाला ने की थी. साल 2019 में, साइरस को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा मानद उपाधि से भी सम्मानित किया गया था. फिलहाल अदार पूनावाला इसे चला रहे हैं. वहीं उनकी पत्नी नताशा पूनावाला सीरम लाइफ साइंसेज की प्रमुख हैं. पूनावाला ने सितंबर में ऑक्सफ़ोर्ड बायोमेडिका में 5 अरब रुपये का निवेश किया था ताकि COVID-19 रोधी टीके बनाने वाले प्लांट के विकास में मदद की जा सके.
हाल ही में SII के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अदार पूनावाला ने कहा था कि अगले छह महीने में बच्चों के लिए कोविड-19 का टीका लाने की योजना है. पूनावाला ने कहा कि ‘कोवोवैक्स’ टीके का परीक्षण चल रहा है और यह तीन साल और उससे अधिक की आयु के बच्चों को हर तरह से सुरक्षा प्रदान करेगा. फिलहाल कोविशील्ड और कोविड-19 के अन्य टीकों को 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए मंजूरी प्राप्त है.
पूनावाला ने कहा था, ‘हमने बच्चों में ज्यादा गंभीर रोग नहीं देखे हैं. सौभाग्य से बच्चों के लिए दहशत नहीं है. हालांकि, हम बच्चों के लिए छह महीने में एक टीका लेकर आएंगे, उम्मीद है कि यह तीन साल और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए होगा. ’ उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि भारत में दो कंपनियां हैं जिन्हें लाइसेंस प्राप्त है और उनके टीके जल्द उपलब्ध होंगे.
मेक्सिको सिटी, 15 दिसंबर| उत्तरी हैती में एक ईंधन-वाहक ट्रक में विस्फोट होने से 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए। मीडिया और सरकारी अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, हैती के उत्तरी बंदरगाह शहर कैप-हैतीन में विस्फोट हुआ, प्रधानमंत्री एरियल हेनरी ने मंगलवार को सरकार और हैती के लोगों की ओर से अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए ट्वीट किया।
उन्होंने कहा कि पीड़ितों की याद में तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा करते हुए प्रभावित लोगों की मदद के लिए क्षेत्र के अस्पतालों को तैयार रखा जाएगा।
कैप-हैतीयन के उप महापौर पैट्रिक अल्मोनर ने रिपोर्टो के हवाले से कहा, एक मोटरसाइकिल से बचने की कोशिश के बाद ईंधन-वाहक ट्रक पलट गया और स्थानीय निवासियों ने टैंकर की गैस लेने के लिए दौड़ लगाई।
डिप्टी मेयर ने कहा कि विस्फोट में आसपास के लगभग 20 घर भी जल गए। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मरने वालों की संख्या बढ़ती रहेगी, क्योंकि अपने घरों में मरने वाले लोगों की अभी तक गिनती नहीं हुई है।
हैती के पूर्व प्रधानमंत्री क्लाउड जोसेफ ने मंगलवार को ट्वीट किया कि वह इस खबर से स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा कि वह सभी लोगों के दर्द और दुख को साझा करते हैं।
विस्फोट ऐसे समय में हुआ है, जब कैरेबियाई राष्ट्र ईंधन की कमी का सामना कर रहा है।
इस साल की शुरुआत में, पोर्ट-ऑ-प्रिंस और अन्य शहरों के अस्पतालों ने बिजली जनरेटर के लिए बेहद कम ईंधन भंडार की सूचना दी थी।
-सैबल गुप्ता
कोलकाता, 15 दिसंबर | जब 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के आत्मसमर्पण के बाद एक स्वतंत्र बांग्लादेश का उदय हुआ, तब एक इतिहास रचा गया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अगले दिन एक 29 वर्षीय निहत्थे भारतीय सेना अधिकारी ने बांग्लादेश के तत्कालीन भावी प्रधानमंत्री - शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना सहित उनके परिवार को बचाया था।
वीरचक्र से सम्मानित कर्नल अशोक कुमार तारा (सेवानिवृत्त), जो उस समय 29 वर्ष के थे, को शेख मुजीब के परिवार को बचाने का काम सौंपा गया था। उन्होंने धानमंडी स्थित मुजीब के घर को पाकिस्तानी सेना के चंगुल से छुड़ाया था। शेख मुजीब स्वयं तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान की एक जेल में थे। उन्हें उस वर्ष की शुरुआत में पाकिस्तानी सेना के 'ऑपरेशन सर्चलाइट' के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था।
कर्नल तारा ने एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "उन्हें (परिवार को) ढाका के धनमंडी नामक स्थान पर नजरबंद रखा गया था। मैं केवल दो सैनिकों के साथ वहां गया था और मेरे पास कोई हथियार नहीं था।"
घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने सोचा, अगर मैं हथियारों और अन्य सैनिकों के साथ वहां गया, तो पाकिस्तानी सेना डर सकती है और लोगों पर फायरिंग शुरू कर सकती है। इससे परिवार को नुकसान हो सकता है। 12 लोग थे। मैंने रिस्क लिया और 17 दिसंबर को सुबह 9 बजे वहां बिना हथियार के गया।"
"मैंने अपनी हिम्मत और बुद्धि से पाकिस्तानियों का सामना करने का फैसला किया। मैंने अपना हथियार अपने 2 जवानों के पास छोड़ दिया और उन्हें पीछे रहने के लिए कहा। मैं, बिना हथियार के अकेला ही उस घर की ओर बढ़ा। मैंने घर के पास पहुंचकर पूछा कि क्या अंदर कोई है भी? उन्होंने (वहां तैनात पाकिसतानी सैनिकों ने) पंजाबी में जवाब दिया और पंजाबी होने के नाते, मैं समझ गया। उन्होंने मुझे कहा- रुको, वरना गोली मार देंगे।"
उन्होंने याद किया, "मैंने उनसे कहा कि मैं एक सेना अधिकारी हूं और आपको बताने आया हूं कि पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया और जवाब में उन्होंने मुझे अभद्र भाषा में गाली दी, लेकिन मैं चुप रहा, क्योंकि मुझे पता था कि मेरा काम क्या है, मेरा लक्ष्य क्या है। संयोग से, एक भारतीय हेलीकॉप्टर उस घर के ऊपर से उड़ा। मैंने तुरंत उन्हें हेलीकॉप्टर को देखने के लिए कहा और पूछा, क्या आपने कभी अपने ऊपर एक भारतीय हेलीकॉप्टर देखा है? वे प्रभावित हुए, लेकिन कहा कि वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से आत्मसमर्पण के बारे में पूछेंगे।"
उन्होंने कहा, "उस समय, मैं गेट पर था, राइफल की संगीन मेरे शरीर के दाहिने हिस्से को छू रही थी। मैंने उन्हें बताया कि कोई संचार नहीं है, क्योंकि टेलीफोन लाइनें कट गई हैं। मैंने उनसे कहा कि यदि तुम लोग देरी करते हो, तो मुक्ति वाहिनी आएगी और भारतीय सेना आएगी और तुम्हें मार डालेगी। तुम्हारा परिवार, जो पाकिस्तान में इंतजार कर रहा है, तुमसे नहीं मिल पाएगा और तुम्हारे शरीर का क्या होगा, कल्पना नहीं कर सकते।"
"यह बात 25 मिनट तक चलती रही। उन्होंने घर पर गोलियां भी चलाईं। मैं हिल गया और उनसे कहा कि इससे मुझ पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इससे तुम लोगों को मुझसे ज्यादा नुकसान होगा। तुम सब 12 लोग हो, सभी मारे जाओगे और कभी अपने घर नहीं पहुंचोगे। अगर आत्मसमर्पण करते हो, तो मैं एक भारतीय सेना अधिकारी के रूप में वादा करता हूं कि तुम सबको मुख्यालय ले जाऊंगा, ताकि आप पाकिस्तान में अपने घर पहुंच सकें। किसी तरह, वे सहमत हुए और आत्मसमर्पण कर दिया।"
"फिर मैंने घर का दरवाजा खोला, और जो पहली महिला बाहर आई, वह शेख मुजीबुर रहमान की पत्नी थीं। उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा 'तुम मेरे बेटे हो और भगवान ने तुम्हें हमें बचाने के लिए भेजा है।' उनके पीछे शेख हसीना अपने 3 साल के बेटे रसूल और अपनी बहन के साथ खड़ी थीं।"
कर्नल अशोक कुमार तारा को अक्टूबर, 2012 में शेख हसीना ने पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए बांग्लादेश आमंत्रित किया था। यह पुरस्कार 'मुक्ति युद्ध के मित्र' का सम्मान था।(आईएएनएस)