अंतरराष्ट्रीय
अगर किसी के पास चांद पर परमाणु बिजली संयंत्र लगाने का अच्छा आइडिया है, तो अमेरिकी सरकार इसके बारे में जानना चाहती है.
नासा और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने चंद्रमा की सतह पर परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए सुझाव मांगे हैं. अंतरिक्ष एजेंसी नासा इडाहो स्थित अमेरिकी ऊर्जा विभाग के संघीय प्रयोगशाला के साथ साझेदारी में चंद्रमा पर एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रही है. इस दशक के अंत तक दोनों मिलकर चांद पर सूर्य-स्वतंत्र ऊर्जा स्रोत स्थापित करना चाहती है.
देश की शीर्ष संघीय परमाणु अनुसंधान प्रयोगशाला में फिशन सरफेस पावर प्रोजेक्ट के प्रमुख सेबास्टियन कॉर्बिसिएरो ने एक बयान में कहा, ''इस परियोजना का उद्देश्य चंद्रमा पर एक विश्वसनीय, उच्च-शक्ति प्रणाली प्रदान करना है जो इंसान के अंतरिक्ष खोज में एक महत्वपूर्ण अगला कदम है. और इसे हासिल करना हमारी मुट्ठी में है.''
अगर चंद्रमा की सतह पर परमाणु रिएक्टर लगाने की योजना सफल होती है तो मंगल के लिए भी इसी तरह की योजना तैयार की जाएगी. इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद इंसान को लंबे समय तक वहां रहने में सक्षम बनाना है. नासा का मानना है कि पर्यावरणीय परिस्थितियों की चिंता किए बिना चंद्रमा या मंगल पर बिजली संयंत्र होने चाहिए ताकि मनुष्य इन ग्रहों पर लंबे समय तक रह सकें.
नासा के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मिशन निदेशालय के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जिम राउटेर ने कहा, ''मुझे उम्मीद है कि फिशन सतह बिजली प्रणालियों से चंद्रमा और मंगल के लिए बिजली वास्तुकला के लिए हमारी योजनाओं को बहुत लाभ होगा और यहां तक कि पृथ्वी पर उपयोग के लिए नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा.''
यह परमाणु ऊर्जा संयंत्र जमीन पर बनने के बाद तैयार अवस्था में चंद्रमा पर भेजा जाएगा. परमाणु रिएक्टर यूरेनियम ईंधन पर निर्भर करेगा, जबकि थर्मल प्रबंधन प्रणाली रिएक्टर को ठंडा रखने में मदद करेगी. न्यूक्लियर पावर प्लांट अगले दस साल तक चांद की सतह पर 40 किलोवाट बिजली पैदा कर पाएगा.
कुछ अन्य मांगों में यह शामिल है कि यह मानव सहायता के बिना खुद को बंद और चालू करने में सक्षम हो. इसके अलावा नासा ने चंद्रमा पर उतरने वाले अंतरिक्ष यान से बिजली संयंत्र को अलग करने और मोबाइल सिस्टम की तरह काम करने और चंद्रमा पर विभिन्न स्थानों पर आसानी से जाने की क्षमता जैसी सुविधाओं का प्रस्ताव रखा है.
नासा के प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि बिजली संयंत्र चार मीटर के सिलेंडर के अंदर फिट हो सकता है और इसकी लंबाई छह मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. जबकि इसका वजन 6,000 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए. ये डिजाइन और प्रस्ताव अगले साल 19 फरवरी तक नासा को भेजे जा सकते हैं.
इडाहो नेशनल लेबोरेटरी पहले भी नासा की कई परियोजनाओं का हिस्सा रही है. प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने मंगल पर नासा के रोवर परसिवरेंस पर रेडियोआइसोटोप ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने में मदद की थी.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
दुनिया में कई अजीबोगरीब जानवर होते हैं जिनके बारे में लोग कम जानते हैं. ये सभी अपनी बनावट और विशेषता के कारण विचित्र होते हैं मगर हाल ही में एक ऐसे कुत्ते की चर्चा हो रही है जो दूसरे कुत्तों से बिल्कुल अलग नजर आता है. इस कुत्ते का गला किसी जिराफ के गले की तरह या किसी डायनासोर की गर्दन की तरह काफी लंबा है इसलिए ये कुत्ता इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है.
ब्रोडी नाम का ये कुत्ता एजावाख प्रजाति का है जो ग्रे हाउंड और विपेट ब्रीड से काफी जुड़ा हुआ है. जब ब्रोडी बच्चा था तब वो एक तेज रफ्तार कार से भिड़ गया था जिसके बाद उसको काफी चोट आई थी. तब लूइसा क्रुक नाम की महिला ने उसकी जान बचाई थी. इस हादसे के बाद ब्रोडी का एक सामने वाला पैर कंधा समेत काटना पड़ा. आपको बता दें एजावाख प्रजाति के कुत्तों की गर्दन पहले से ही काफी लंबी होती है और जब कुत्ते का एक पैर कंधे समेत काट दिया गया तो उसकी गर्दन और भी ज्यादा लंबी लगने लगी.
लूइसा ने बताया कि जब उन्होंने ब्रोडी को पहली बार देखा था तब वो अपने पैरों पर चल भी नहीं पा रहा था मगर उन्हें उसी वक्त वो बहुत खूबसूरत लगा. लूइसा ने डेली स्टार वेबसाइट से बात करते हुए बताया कि एजावाख कुत्तों का गला पहले से ही लंबा रहता है मगर जब से उसका एक पैर कंधे समेत काटा गया तब से उसकी गर्दन और लंबी लगने लगी है.
ब्रोडी को देखने से ऐसा लगता है कि कुत्ते की सिर्फ एक गर्दन है जिससे तीन पैर जुड़े हुए हैं. लूइसा ने बताया कि वो ब्रोडी को बहुत प्यार करती हैं और उसके साथ उनका बॉन्ड बेहद स्पेशल है. लूइसा के पास और भी कई कुत्ते हैं मगर उनके सबसे ज्यादा प्यार ब्रोडी से है. उन्होंने कहा कि जब वो किचेन में खाना बनाती रहती हैं तो ब्रोडी उनके साथ ही खड़ा हो जाता है. उन्होंने ब्रोडी को फाइटर की तरह पाला है इसलिए वो अपनी कंडीशन से हार नहीं मानता है.
नई दिल्ली, 23 नवंबर| चीन की जन्म दर 1978 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई है। यह ऐसे समय पर हुआ है, जब सरकार जनसांख्यिकीय संकट को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है।
द गार्जियन ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया है।
चीन के सरकारी विभाग नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में जन्म दर प्रति हजार लोगों पर 8.5 दर्ज की गई है, जो 1978 के बाद से सबसे कम है।
चीन के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि तमाम सरकारी स्कीम के बाद भी 2020 में देश में प्राकृतिक ग्रोथ रेट घटकर 1.45 प्रति हजार तक पहुंच चुकी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे के जन्म पर दशकों की हस्तक्षेपवादी नीतियों और उच्च जीवन लागत सहित हालिया दबावों के बाद संभावित जनसंख्या में गिरावट को रोकने के लिए सरकार दबाव में है।
सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि चीन में बच्चों की जन्म दर उस वक्त बुरी तरह से गिरी है, जब चीन की सरकार बच्चों की जन्म दर को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
रिपोर्ट में हालांकि नाटकीय गिरावट का कारण नहीं बताया गया है, लेकिन जनसांख्यिकीविदों ने प्रसव उम्र की महिलाओं की गिरती संख्या और परिवार के पालन-पोषण की बढ़ती लागत की ओर इशारा किया है।
आंकड़ों से पता चला है कि चीन में जन्म दर पिछले कई सालों से लगातार गिरती जा रही है और 'एक बच्चे की नीति' में ढील देने के बाद भी चीन के लोग अब बच्चों को जन्म देने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं।
बता दें कि चीन विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और हाल के वर्षो में दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को खत्म करने के बावजूद चीन में युवा आबादी तेजी से कम हो रही है और जन्म दर घट रही है, जिसने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। (आईएएनएस)
-संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 23 नवंबर| पाकिस्तान में लापता लोगों के परिवारों ने बताया कि अधिकारियों को अदालतों के माध्यम से अपने प्रियजनों को वापस लाने के लिए मजबूर करने के उनके प्रयास असफल रहे हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि मामलों को 1980 के दशक के मध्य में दर्ज किया गया है, मगर 2001 में तथाकथित 'आतंक के खिलाफ युद्ध' की स्थापना के बाद से पाकिस्तान की खुफिया सेवाओं द्वारा नियमित रूप से इस अभ्यास का इस्तेमाल मानवाधिकार रक्षकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और पत्रकारों को लक्षित करने के लिए किया गया है, जिसमें सैकड़ों पीड़ितों के भाग्य अभी भी अज्ञात हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अली इम्तियाज ने कहा कि जब अदालत ने तलब किया, तो खुफिया एजेंसियों या अधिकारियों में से कोई भी अदालत में पेश नहीं हुआ।
ऐसे मामलों में, जब अधिकारी अदालत में पेश हुए थे, तब भी उन्होंने परिवारों को उनके सवालों के जवाब नहीं दिए।
सैमी बलूच ने बताया कि जब अधिकारी अदालत के सामने पेश हुए, तो उन्होंने दावा किया कि उनके पिता अलगाववादी के रूप में प्रशिक्षण लेने के लिए अफगानिस्तान गए थे, लेकिन वे इन दावों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखा सके।
रिपोर्ट में कहा गया है, "दुर्भाग्य से ये आरोप और निराधार दावे अधिकारियों तक सीमित नहीं हैं: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दो लोगों से बात की, जो उनके मामलों की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों के ऐसे निराधार दावों और आरोपों का सामना कर रहे हैं। एक व्यक्ति ने बताया कि न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि उसका पति भाग गया है और वह गायब नहीं हुआ है।"
शबाना मजीद ने एक ऐसे ²श्य का वर्णन किया, जहां वह गायब हुए अन्य परिवारों के साथ अदालत में चल रही सुनवाई में भाग ले रही थी, अपने लापता प्रियजनों के बारे में जवाब और न्याय के लिए एक न्यायाधीश से भीख मांग रही थी और न्यायाधीश ने चिल्लाते हुए और कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हुए परिवारों को फटकार कर जवाब दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्याय प्रणाली तक पहुंचने वाले लोगों के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यवहार किया जाना चाहिए; इस मामले में जज का आचरण इस अधिकार का उल्लंघन है। इन मामलों में प्रगति की कमी, जहां गायब हुए परिवारों के साथ सहानुभूति या मानवता के बिना व्यवहार किया जाता है, जबरन गायब होने के मामलों के आसपास की कठिनाइयों और उन परिवारों के संघर्षों का संकेत है जो अपने लापता प्रियजनों के लिए सूचना और न्याय के लिए लड़ रहे हैं।
2011 में, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर, पाकिस्तान के आंतरिक (गृह) मंत्रालय ने गायब होने वाले लोगों के लिए एक जांच आयोग की स्थापना की, जिसे सीओआईईडी कहा जाता है।
इस आयोग का कार्य एक 'गायब' व्यक्ति के स्थान का पता लगाना है, यह पता लगाना है कि कौन जिम्मेदार है (चाहे राज्य, व्यक्ति या संस्थान)। इसमें प्रावधान है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राथमिकी दर्ज की गई है या नहीं और कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं की सिफारिश की गई है।
सीओआईईडी की सितंबर 2021 की मासिक रिपोर्ट के अनुसार, इसकी स्थापना के बाद से इसे 8,122 मामले प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 2,274 अनसुलझे हैं।
सितंबर 2021 में आयोग ने 27 मामलों का निपटारा किया, जहां 24 लोगों का पता लगाया गया, 13 घर लौट आए, छह नजरबंदी केंद्रों में कैद थे, पांच को जेल में बंद कर दिया गया था और तीन को जबरन गायब होने के मामला नहीं माना गया था।
नागरिक समाज और लापता लोगों के परिवारों, जिनका सीओआईईडी पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, ने आयोग की आलोचना की है कि वह जबरन गुमशुदा होने के मामलों की जांच करने या आपराधिक जिम्मेदारी के संदिग्ध लोगों को न्याय दिलाने के लिए इसमें निहित शक्तियों का उपयोग नहीं करता है।
2020 में, अंतर्राष्ट्रीय न्याय आयोग ने कहा कि ऑपरेशन के नौ वर्षों में सीओआईईडी ने अपराध के लिए जबरन गायब होने के एक भी अपराधी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल से बात करने वाले लापता पीड़ितों के 50 परिवारों ने बताया कि कई सुनवाई के बाद, जिनके मामले सीओआईईडी के समक्ष थे, उन्हें कोई जवाब या न्याय नहीं मिला है।
सभी परिवार जिनके मामले सीओआईईडी से पहले थे और जिन्होंने एमनेस्टी इंटरनेशनल से बात की है, वे अभी भी अपने प्रियजनों के बारे में किसी भी जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। (आईएएनएस)
तेल की कीमतों ने अमेरिकी राष्ट्रपति को परेशान कर दिया है. ओपेक देश उनकी बात मान नहीं रहे तो उन्होंने भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से साथ आने का आग्रह किया है.
उत्पादन बढ़ाने के लिए तेल उत्पादक देशों पर अमेरिका का दबाव लगभग बेकार गया है. अब वह भारत और जापान आदि देशों से अपनी बचत से तेल निकालने को कह रहा है. लेकिन इस पूरे वाकये से यह सबक भी मिला है कि तेल उत्पादक देश चाहें भी तो ज्यादा तेल उत्पादन नहीं कर सकते.
ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) और उसके सहयोगी देशों ने 2020 में जो पाबंदियां सप्लाई पर लगाई थीं, वे हटाना शुरू तो किया है लेकिन उसकी रफ्तार उतनी नहीं है जितनी अमेरिका चाहता है. इसलिए कीमतें तीन साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैं.
रूस को मिलाकर बने ओपेक प्लस देशों ने उत्पादन बढ़ाने के अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है. वह रोजाना चार लाख बैरल उत्पादन बढ़ाने की अपनी योजना पर कायम हैं. उनका कहना है कि अगर इससे ज्यादा तेजी से उत्पादन बढ़ाया गया तो 2022 में कीमतें बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं.
रिजर्व में हाथ डालेगा अमेरिका
ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि ऊर्जा कीमतों को कम करने के लिए अमेरिका ने एशियाई देशों के साथ मिलकर अपने आपातकालीन स्टॉक में से कर्ज पर तेल देने की योजना बनाई है जिसका ऐलान मंगलवार को हो सकता है.
अमेरिका में गैसोलीन और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बहुत ज्यादा बढ़ने से राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकप्रियता को खासा धक्का पहुंचा है. इसका असर अगले साल होने वाले कांग्रेस चुनावों में उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है.
इसलिए उनके पास फिलहाल आपातकालीन स्टॉक में से तेल निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. इस आपातकालानी स्टॉक (स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व, एसपीआर) के लिए भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ मिलकर अदला-बदली की योजना बना गई है.
कैसे होती है अदला-बदली
जो बाइडेन ने एशियाई देशों से भी आग्रह किया है कि अपने अपने एसपीआर में से तेल निकालें. भारत और जापान ऐसा करने के रास्ते खोजने में लग गए हैं. एशियाई देशों के साथ मिलकर अमेरिका की यह कोशिश तेल की कीमतें करने के अलावा तेल उत्पादक देशों के लिए एक तरह की चेतावनी भी है कि उन्हें बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कीमतें बढ़ने से रोकने के लिए अतिरिक्त उत्पादन करना चाहिए. ओपेक देश और रूस दो दिसंबर को उत्पादन नीति पर चर्चा के लिए मिलने वाले हैं.
अब तक अमेरिका पेरिस स्थित इंटरनेशनल ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के साथ मिलकर तेल का उत्पादन और कीमतें स्थिर करने के लिए काम करता रहा है. जापान और दक्षिण कोरिया दोनों 30 सदस्यों वाली आईईए का हिस्सा हैं जबकि चीन और भारत सहयोगी देश हैं.
एसपीआर की अदला-बदली के तहत तेल कंपनियां भंडारों से तेल ले सकती हैं, लेकिन उन्हें वह तेल ब्याज लौटाना होता है. अमेरिका ने अब तक तीन बार ही एसपीआर से तेल निकालने की इजाजत दी है. 2011 में लीबिया में युद्ध के वक्त, 2005 में कटरीना तूफान के दौरान और 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान ऐसा किया गया था.
क्या है एसपीआर?
स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व यानी एसपीआर ऐसे तेल भंडार होते हैं जिन्हें विभिन्न देश आपातकाल में इस्तेमाल के लिए रखते हैं. अमेरिका के पास दुनिया के सबसे बड़े एसपीआर हैं जिनके तहत लुईजियाना और टेक्सस में 71.4 करोड़ बैरल तेल रखा जा सकता है. 1975 के तेल संकट के बाद अमेरिका ने ये भंडार बनाए थे. 4 सितंबर तक इन भंडारों में अमेरिका के पास 62.13 करोड़ बैरल तेल था.
दुनिया के सबसे बड़े आपातकालीन तेल भंडार रखने वाले देशों में वेनेजुएला, सऊदी अरब, कनाडा, ईरान, इराक, रूस, कुवैत, यूएई, लीबिया, नाइजीरिया, कजाखस्तान, कतर, चीन, अंगोला, अल्जीरिया और ब्राजील शामिल हैं.
भारत के पास मात्र 3.69 करोड़ बैरल तेल आपातकालीन भंडारों में रखा है, जो साढ़े नौ दिन का काम चला सकता है. लेकिन उसके तेल शोधक कारखानों में भी 64.5 दिन के लायक कच्चा तेल रखा जाता है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
दो सदी पहले पेरिस में किसानों ने भूमिगत मशरूम उगाने की एक क्रांतिकारी विधि का आविष्कार किया था. लेकिन आज कुशल किसानों की कमी के कारण अनूठी कृषि विरासत खतरे में है.
विडंबना यह है कि परंपरागत रूप से उगाए जाने वाले सफेद बटन मशरूम और उनके अधिक स्वादिष्ट भूरे रंग वाले मशरूम की मांग हमेशा की तरह अधिक है. कुछ सदी पहले पेरिस में किसानों ने चूना पत्थर की खानों के चक्रव्यूह में मशरूम के उत्पादन के साथ प्रयोग किया, जिससे मशरूम की खेती में क्रांति आई.
ये किसान न केवल एक विशेष प्रकार के मशरूम की खेती करने में सफल हुए बल्कि बाद में इस प्रकार के मशरूम को एक नियमित राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत के रूप में भी जाना जाने लगा. आज मशरूम की खेती की ऐसी अनूठी विरासत लुप्त होती दिख रही है क्योंकि ऐसे मशरूम उगाने के लिए गिने-चुने किसान ही बचे हैं.
मांग तो है लेकिन किसान नहीं
किसान शौआ-मौआ वांग कहते हैं, "यह ग्राहकों को खोजने का सवाल नहीं है, मैं वह सब कुछ बेचता हूं जो मैं पैदा कर सकता हूं."
पेरिस क्षेत्र में वांग वांग सबसे बड़ी भूमिगत खेती गुफा चलाते हैं, जो वास्तव में सीन नदी के ऊपर झांकते हुए पहाड़ की तलहटी में डेढ़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैली सुरंगों का एक जाल है.
वांग पेरिस के कुछ सबसे प्रसिद्ध और पुरस्कार विजेता शेफ को अपने मशरूम बेचते हैं. उनके मशरूम स्थानीय सुपरमार्केट में भी बिकते हैं. उनके मशरूम थोक बाजार में लगभग साढ़े तीन यूरो प्रति किलोग्राम के भाव से बिकते हैं, जो काफी अधिक है.
वांग को हाल ही में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा. सैकड़ों किलोग्राम मशरूम, जिन्हें 'सांप छतरियां' भी कहा जाता है, मजदूरों की कमी के कारण बर्बाद हो गए. वांग के पास माल उठाने और स्टोर करने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं थे. केवल 11 कर्मचारी ही काम पर लौट पाए, जबकि बाकी बीमारी के कारण गैरहाजिर रहे. वांग कहते हैं, ''दिन भर अंधेरा होता और मजदूर पूरे दिन काम नहीं करना चाहते.''
चैंपियंस ऑफ पेरिस मशरूम
वांग फ्रांस के उन पांच किसानों में से एक हैं जो ऐसे दुर्लभ मशरूम उगाते हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में "चैंपियंस ऑफ पेरिस" के रूप में जाना जाता है. पेरिस के उत्तर में लंबे समय से खोदी गई खदानों से मशरूम का उत्पादन और कम हो गया है.
19वीं सदी के अंत तक ऐसे 250 तक किसान थे. उस समय बड़ी संख्या में किसानों ने 'शाही मशरूम' की ओर रुख किया. इस प्रकार के मशरूम की खेती तब वर्साय में राजा लुई चौदहवें द्वारा शुरू की गई थी. राजा ने असाधारण प्रसिद्धि प्राप्त की. तब किसानों ने यह भी पता लगाया कि इस मशरूम उत्पादन का तापमान, आर्द्रता और अंधेरा साल भर कैसे प्राप्त किया जा सकता है.
उन्होंने पाया था कि अगर खाद आधारित सब्सट्रेट ऐसे गहरे भूमिगत क्षेत्र में रखे जाते हैं जहां तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित किया जा सकता है और अंधेरा उत्पत्ति को बढ़ावा देगा, तो एगारिकस बिस्पोरस (मशरूम) साल भर बढ़ेगा.
पेरिस शहर का तेजी से विस्तार और विशेष रूप से शहर के भूमिगत मेट्रो नेटवर्क के निर्माण ने 1900 की शुरुआत में मशरूम उत्पादकों को शहर से बाहर धकेलना शुरू कर दिया. 1970 के दशक में शहर के उपनगरों में लगभग 50 भूमिगत खदानें थीं जहां मशरूम उगाए जाते थे और अक्सर यह काम पीढ़ियों से चला आ रहा था.
विदेशों से मशरूम के सस्ते आयात ने स्थानीय स्तर पर ऐसे दुर्लभ और कीमती मशरूम की खेती और उत्पादन के अवसरों को और कम कर दिया है. अब नीदरलैंड्स, पोलैंड और चीन में पैदा हुए मशरूम फ्रांस में जगह बना रहे हैं.
एए/वीके (एएफपी)
पश्चिमी बुल्गारिया में एक बस में आग लगने से कम से कम 45 लोगों की मौत हो गई है. अधिकारियों ने घटना की पुष्टि की है.
यह हादसा स्थानीय समयानुसार सुबह दो बजे के क़रीब हुआ. हादसा बोस्नेक गांव के पास हुआ.
देश के गृह मंत्रालय के फ़ायर सेफ़्टी विभाग के प्रमुख निकोलाई निकोलोव का कहना है कि मारे गए लोगों में बच्चे भी शामिल हैं.
ख़बरों के मुताबिक़, यह बस तुर्की से उत्तरी मैसेडोनिया जा रही थी.
मंगलवार को हुए इस हादसे के बाद घटनास्थल के आसपास के इलाक़े को सील कर दिया गया है.
बीटीवी के अनुसार, प्रधानमंत्री ज़ोरान ज़ेव ने घटना पर चर्चा के लिए बुल्गारियाई समकक्ष से बात की है. (bbc.com)
अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य में कल एक तेज़ रफ़्तार कार क्रिसमस परेड को रौंदते हुए आगे बढ़ गई थी. इस हादसे में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई है और छोटे बच्चों समेत क़रीब 48 लोग घायल भी हुए है.
मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का कहना है कि गाड़ी के ड्राइवर पर जानबूझकर पांच लोगों की हत्या का अभियोग चलेगा. पुलिस ने ड्राइवर का नाम डेरेल एडवर्ड ब्रूक्स बताया है.
जांच अधिकारियों का कहना है कि आगे की जांच के आधार पर उन पर और आरोप लग सकते हैं. हालांकि पुलिस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह 'आतंकवादी हमला' नहीं था.
पीड़ितों में कई स्कूली बच्चे और बुज़ुर्ग भी शामिल हैं.
इस हादसे में घायल हुए दर्जनों लोग अस्पताल में भर्ती हैं. पुलिस ने बताया कि घटना के तुरंत बाद घायलों को आस-पास के छह अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया.
हादसे के बाद 18 बच्चों को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया.
घायलों की देखभाल करने वालों ने इस घटना को हाल के समय की अब तक की ऐसी सबसे बड़ी घटना बताया है जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे भी पीड़ित हैं.
बच्चों का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि कुछ बच्चों के सिर में गंभीर चोटें आई हैं और कुछ की हड्डियां टूट गई हैं.
राज्य के मेयर शॉन रेली ने इस घटना को "भयानक, संवेदनहीन त्रासदी" बताया है.
राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि वह इस घटना से जुड़ी हर स्थिति पर बारीक नज़र बनाए हुए हैं. घटना के पीड़ितों की मदद के लिए एक सामुदायिक कोष बनाया गया है. (bbc.com)
-अतीत शर्मा
नई दिल्ली, 23 नवंबर : रूस, अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के बारे में बहुत 'आशावादी' नहीं है, लेकिन पड़ोसी देशों में स्थिति को अस्थिर करने वाले आतंकवादियों के बारे में गंभीर रूप से चिंतित है।
मास्को चिंतित है कि अफगानिस्तान से आतंकवादी मध्य एशियाई क्षेत्र के राज्यों में प्रवेश कर सकते हैं और वहां से राज्य की सीमा के रूसी-कजाख खंड के माध्यम से रूस में प्रवेश कर सकते हैं।
रूसी सुरक्षा परिषद के उपसचिव अलेक्जेंडर ग्रेबेनकिन ने सरकारी समाचार पत्र रोसिस्काया गजेटा को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि 'अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन' तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान में हुए घटनाक्रम से आशावाद का कोई कारण नहीं दिखता।
19 नवंबर को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बैठक के दौरान अफगान क्षेत्र से उत्पन्न खतरों पर व्यापक रूप से चर्चा की गई, जहां राज्य की सीमा पर बिगड़ती स्थिति का विश्लेषण किया गया था।
ग्रीबेनकिन ने अखबार को बताया, "आबादी की दरिद्रता और अपने ही नागरिकों के खिलाफ न्यायेतर प्रतिशोध की पृष्ठभूमि के खिलाफ इस देश में सामाजिक-राजनीतिक स्थिति में और गिरावट नशीले पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी और अनियंत्रित प्रवास के पैमाने में उल्लेखनीय वृद्धि का एक वास्तविक खतरा पैदा करती है।"
शीर्ष अधिकारी ने कहा, "यह कट्टरपंथी विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध और सैन्य अभियानों में अनुभव रखने वाले व्यक्तियों पर भी लागू होता है।"
इंडियानैरेटिव डॉट कॉम ने अक्टूबर में पुतिन द्वारा स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) के सुरक्षा प्रमुखों की वार्षिक बैठक में स्वीकार किए जाने के बारे में बताया था कि सीरिया और इराक में संघर्ष क्षेत्रों से युद्ध के रास्ते पर आतंकवादियों को तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान में पुनर्निर्देशित किया जा रहा है।
पुतिन ने सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया सेवाओं के सीआईएस प्रमुखों की बैठक में कहा था, "सीरिया और इराक में युद्ध करने का अनुभव रखने वाले आतंकवादियों को वहां खींचा जा रहा है। इसलिए, यह संभव है कि आतंकवादी सीआईएस देशों सहित पड़ोसी देशों में स्थिति को अस्थिर करने की कोशिश कर सकते हैं।"
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में इस महीने की शुरुआत में आयोजित 'अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' के दौरान इस क्षेत्र के लिए व्यापक प्रभाव वाले काबुल में अस्थिरता भी एजेंडे में शीर्ष पर थी।
रूस और ईरान के अलावा पांच मध्य एशियाई देशों - कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों ने बातचीत के दौरान क्षेत्र में प्रासंगिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के उपायों पर विचार-विमर्श किया।
ग्रीबेनकिन ने रोसिस्काया गजेटा को दिए अपने साक्षात्कार में इस बात पर जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी और चरमपंथी संगठनों के सदस्यों के रूसी क्षेत्र में प्रवेश के जोखिम, साथ ही साथ तोड़फोड़ और आतंक के साधन बहुत वास्तविक हैं।
(सामग्री इंडियानैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत है)
अल्बर्ट आइंस्टाइन की एक दुर्लभ और बहुत मूल्यवान हस्तलिपि पेरिस में नीलाम होने वाली है. आखिर क्या है भौतिक विज्ञान के कई मूल सिद्धांतों की खोज करने वाले इस महान वैज्ञानिक के दस्तावेज में?
इस हस्तलिपि में आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत के पीछे की तैयारी का विवरण है. नीलामी के आयोजकों को उम्मीद है कि इससे दो से तीन मिलियन यूरो के बीच धनराशि मिल सकती है.
नीलामी आगुते कंपनी कर रही है लेकिन उसके लिए इसकी मेजबानी क्रिस्टीज कंपनी कर रही है. क्रिस्टीज ने एक बयान में कहा, "इस बात में कोई शक नहीं है कि यह नीलामी के लिए लाया जाने वाली अभी तक की आइंस्टाइन की सबसे कीमती हस्तलिपि है."
बहुमूल्य हस्तलिपि
54 पन्नों के इस दस्तावेज को आइंस्टाइन और उनके सहयोगी मिचेल बेसो ने स्विट्जरलैंड के ज्यूरिक में 1913 से 1914 के बीच अपने हाथों से लिखा था. क्रिस्टीज का कहना है कि बेसो की बदौलत ही हस्तलिपि को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजो कर रखा जा सका.
क्रिस्टीज का कहना है कि यह "लगभग एक चमत्कार है" क्योंकि संभव है कि खुद आइंस्टाइन ने इसे बस एक साधारण सा दस्तावेज समझा होगा और उसे संभाल कर रखने की जरूरत नहीं समझी होगी.
क्रिस्टीज ने यह भी कहा कि इस हस्तलिपि से "बीसवीं शताब्दी के सबसे महान वैज्ञानिक के मानस में" झांकने का एक दिलचस्प मौका मिलता है. जर्मनी में पैदा हुए आइंस्टाइन का 76 साल की उम्र में 1955 में निधन हो गया था.
जीनियस यानी आइंस्टाइन
उन्हें इतिहास के सबसे महान भौतिक शास्त्रियों में से एक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने सापेक्षता सिद्धांत की खोज कर भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी. उन्होंने क्वॉन्टम मेकैनिक्स के सिद्धांत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
सापेक्षता और क्वॉन्टम मेकैनिक्स को आधुनिक भौतिक विज्ञान के दो स्तंभों के रूप में माना जाता है. घन और ऊर्जा के रिश्ते को समझाने वाले उनके फॉर्मूले ई=एमसी स्क्वायर को "दुनिया का सबसे मशहूर इक्वेशन" भी कहा जाता है.
आइंस्टाइन को 1921 में भौतिक विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. बाद में उनकी छवि एक जीनियस वैज्ञानिक आइकॉन के रूप में भी प्रचलित हो गई.
सीके/एए (एएफपी)
अफगानिस्तान के शासक तालिबान ने टीवी चौनलों को फरमान जारी किया है कि महिला कलाकारों वालें प्रोग्राम ना दिखाएं. 20 साल पहले जब तालिबान सत्ता में था, तब महिलाओं के अधिकारों को बुरी तरह कुचल दिया गया था.
अफगानिस्तान के मीडिया को यह पहला निर्देश जारी किया गया है. नैतिकता मंत्रालय ने यह आदेश जारी किया है जिसमें महिला टीवी पत्रकारों को समाचार पेश करते वक्त इस्लामिक हिजाब पहनने का भी निर्देश दिया गया है.
मंत्रालय ने टीवी चैनलों ये यह भी कहा है कि ऐसी फिल्में या अन्य प्रोग्राम प्रसारित ना किए जाएं जिनमें पैगंबर मोहम्मद या अन्य पूज्य हस्तियों को दिखाया गया हो. मंत्रालय ने इस्लामिक और अफगान मूल्यों का पालन ना करने वाले कार्यक्रमों और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने का भी आग्रह किया है.
ये नियम नहीं, निर्देश हैं
नैतिकता मंत्रालय के प्रवक्ता हकीफ मोहाजिर ने पत्रकारों को बताया, "ये कोई नियम नहीं बल्कि धार्मिक दिशा-निर्देश हैं.” इन नए दिशा-निर्देशों को रविवार को लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर साझा किया.
अगस्त में देश की सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने बार-बार कहा था कि वे बदल गए हैं और उदारवादी तरीके से शासन करेंगे. लेकिन एक के बाद कई तरह के ऐसे नियम लागू किए जा रहे हैं जिन्होंने महिला अधिकारों पर काम करने वालों की चिंताएं बढ़ा दी हैं.
कुछ समय पहले ही विश्वविद्यालयों में महिलाओं के पहनावे को लेकर नियम जारी किए गए थे. मीडिया की आजादी के वादे और दावे करने के बावजूद कई महिला पत्रकारों के साथ मार-पीट की खबरें भी आ चुकी हैं.
दो दशक में हुई तरक्की
टीवी चैनलों के लिए जारी नए दिशा निर्देश तब आए हैं जबकि लगभग दो दशक तक लोकतांत्रिक सरकार के तहत कई तरह के कार्यक्रम बनते और प्रचलित होते रहे हैं. पश्चिम समर्थित सरकार के तहत अफगानिस्तान ने देश में खासी तरक्की की थी. दर्जनों नए चैनल स्थापित हुए और इस क्षेत्र में खासा निजी निवेश भी हुआ.
इन दो दशकों में अफगानिस्तानी टीवी चैनलों ने दर्शकों के लिए विभिन्न तरह के कार्यक्रम बनाए जिनमें अमेरिकन आइडल से मिलता-जुलता टैलेंट शो भी शामिल है. इसके अलावा म्यूजिक वीडियो के लिए मुकाबले भी टीवी पर दिखते रहे. साथ ही भारत और तुर्की के बने टीवी शो भी दिखाए जाते रहे हैं.
पिछली बार अफगानिस्तान ने 1996 से 2001 के बीच देश पर शासन किया था. तब देश में कोई मीडिया चैनल नहीं थे. टीवी चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे. सिनेमा और अन्य किस्म के मनोरंजन को अनैतिक माना जाता था.
उस दौर में यदि कोई टीवी देखता पकड़ा जाता था तो उसे सजा दी जाती थी और उसका टीवी तोड़ दिया जाता था. वीडियो प्लेयर रखने वाले को सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारने जैसी कठोर सजाएं भी दी जाती थीं. तब एकमात्र रेडियो स्टेशन होता था जिसका नाम था वॉइस ऑफ शरिया. उस रेडियो स्टेशन पर सरकारी और इस्लामिक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते थे.
वीके/सीके (एएफपी)
ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन अपने ग्राहकों का डाटा सेव करती है. लेकिन उसमें कैसी-कैसी जानकारियां रिकॉर्ड होती हैं, यह जानकर लोग हैरान रह गए. निजता और सुविधा के बीच की यह उलझन बहुत बड़ी है.
अमेरिका के वर्जीनिया में सांसद इब्राहिम समीरा को ये तो पता था कि अमेजॉन उनकी निजी जानकारियां जमा करती है लेकिन जब उनके सामने आया कि यह ई कॉमर्स कंपनी उनके बारे में क्या-क्या जानती है, तो समीरा के होश फाख्ता हो गए. अमेरिकी ई कॉमर्स कंपनी अमेजॉन के पास समीरा के फोन में मौजूद 1,000 से ज्यादा कॉन्टैक्ट नंबर थे. उसे ये पता था कि समीरा ने पिछले साल 17 दिसंबर को कुरान का कौन सा हिस्सा सुना था. कंपनी को हर उस चीज की जानकारी थी जो उन्होंने इंटरनेट पर सर्च की थी. इनमें वे सर्च भी शामिल थीं जिन्हें समीरा निजी मानते हैं. वर्जीनिया के हाउस ऑफ डेलीगेट्स के सदस्य इब्राहिम समीरा पूछते हैं, "वे सामान बेच रहे हैं या आम लोगों की जासूसी कर रहे हैं?”
इसी साल की शुरुआत में वर्जीनिया ने एक कानून पास किया है. अमेजॉन का ही बनाया यह कानून राज्य के निजता अधिकारों के बारे में है. समीरा उन सांसदों में से हैं जिन्होंने इस कानून का विरोध किया था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुरोध पर समीरा ने अमेजॉन से पूछा कि बतौर ग्राहक कंपनी ने उनके बारे में क्या-क्या जानकारियां जमा की हैं.
अमेरिका में अमेजॉन अपने ग्राहकों के बारे में बहुत विस्तृत जानकारियां जमा करती है. नए नियम हैं कि ग्राहक अमेजॉन से पूछ सकते हैं कि उनकी क्या-क्या जानकारियां जमा की गई हैं. इस रिपोर्ट के लिए रॉयटर्स के सात संवाददाताओं ने भी कंपनी से अपनी जानकारियां मांगीं.
अमेजॉन अपनी डिवाइस आलेक्सा के अलावा अपनी विभिन्न ऐप जैसे किंडल ई-रीडर, ऑडिबल, वीडियो और म्यूजिक प्लैटफॉर्म आदि के जरिए ग्राहकों के बारे में बहुत सा डेटा जमा करती है. आलेक्सा से जुड़ी डिवाइस के घर के अंदर की रिकॉर्डिंग होती है और बाहर लगे कैमरे हर आने जाने वाले को रिकॉर्ड करते हैं.
सब जानती है अमेजॉन
इन जानकारियों के आधार पर अमेजॉन आपकी कद-काठी, वजन, नस्ल, रंग, राजनीतिक झुकाव, पसंद-नापसंद आदि का आसानी से अंदाजा लगा सकती है. उसे यह भी पता है कि आप किस तारीख को किससे मिले थे और क्या बात की थी.
रॉयटर्स के एक रिपोर्टर के बारे में मिली जानकारियों के मुताबिक दिसंबर 2017 और जून 2021 के बीच अलेक्सा ने 90 हजार रिकॉर्डिंग की थीं, यानी रोजाना लगभग 70 रिकॉर्डिंग. इनमें उस रिपोर्टर के बच्चों के नाम और उनके पसंदीदा गाने तक जाहिर थे.
अमेजॉन ने बच्चों की आपसी बातचीत भी रिकॉर्ड की, जिसमें वे कह रहे थे कि मम्मी-पापा को खेलने जाने के लिए या वीडियो गेम खरीदने के लिए कैसे मनाएं. कुछ रिकॉर्डिंग परिवार के सदस्यों की आपसी बातचीत की भी थीं जिनमें वे आलेक्सा के जरिए घर के अलग-अलग हिस्सों में बैठकर एक दूसरे से बात कर रहे थे. एक रिकॉर्डिंग में एक बच्चे को आलेक्सा से पूछते सुना जा सकता है, "आलेक्सा, वजाइना क्या होता है.”
रिपोर्टर को अंदाजा नहीं था कि अमेजॉन इन सारी रिकॉर्डिंग को सुरक्षित रखती है. कंपनी का कहना है है कि आलेक्सा को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह कम से कम चीजें रिकॉर्ड करे.
ग्राहकों की सुविधा के लिए
एक बयान अमेजॉन ने कहा कि उसके वैज्ञानिक और इंजीनियर सेवाओं और तकनीक को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. कंपनी की सफाई है कि जब ग्राहक अपना खाता बनाते हैं तो उन्हें बताया जाता है कि रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखी जाएंगी.
अमेजॉन ने कहा कि निजी जानकारियों का डेटा ग्राहकों के लिए सेवाओं को बेहतर बनाता है और उनके हिसाब के प्रॉडक्ट उपलब्ध करवाने के काम आता है. जब कंपनी से पूछा गया कि समीरा के कुरान सुनने की रिकॉर्डिंग क्यों सुरक्षित रखी गई तो उसने कहा कि ऐसा डाटा यह सुविधा देता है कि ग्राहक ने जहां से छोड़ा था, दोबारा वहीं से शुरू कर सके.
कंपनी के मुताबिक ग्राहकों के लिए इस डाटा को डिलीट करने का एकमात्र तरीका अपना खाता बंद कर देना है. हालांकि, उसके बाद भी कानूनी आवश्यकता के तहत कुछ डेटा जैसे कि ग्राहक ने क्या खरीदा, यह जानकारी रखी जाती है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
सियोल, 22 नवंबर| दक्षिण कोरिया से व्हिस्की का आयात साल के पहले 10 महीनों में 70 फीसदी से अधिक बढ़ गया है, क्योंकि कोरोना महामारी के बीच ज्यादा लोगों ने घर पर शराब पी है। यह जानकारी सोमवार को सामने आई। योनहाप न्यूज एजेंसी ने कोरिया सीमा शुल्क सेवा और स्थानीय शराब उद्योग के आंकड़ों के हवाले से कहा कि जनवरी-अक्टूबर की अवधि में आयात का मूल्य 9.321 करोड़ डॉलर था, जो एक साल पहले की तुलना में 73.1 प्रतिशत ज्यादा है।
यह 2014 के बाद से देश के व्हिस्की आयात में पहली वार्षिक बढ़ोतरी है।
उद्योग के सूत्रों ने इस वृद्धि को इस तथ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया कि महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के बीच लोगों की बढ़ती संख्या घर पर शराब पी रही है।
दक्षिण कोरिया में 2007 से 26.46 करोड़ डॉलर के शिखर पर पहुंचने के बाद से व्हिस्की आयात मंदी के दौर से गुजर रहा था।
मंदी ने 2016 में देश के कठोर भ्रष्टाचार विरोधी कानून और 2018 में 52 घंटे के कार्य सप्ताह के कार्यान्वयन के बाद किया।
सख्त सामाजिक दूरी करने के उपाय भी जिम्मेदार रहे क्योंकि सियोल में कई बार बंद करने के लिए मजबूर किए गए।
आयात में उछाल से विदेशी व्हिस्की निर्माताओं की स्थानीय सहायक कंपनियों को इस साल बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिली।
पर्नोड रिकार्ड कोरिया ने भी वित्त वर्ष 2020 (जुलाई 2020-जून 2021) में अपना टर्नओवर 31.6 प्रतिशत सालाना आधार पर 10.1 करोड़ तक देखा गया, इसके परिचालन फायदे में 66.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
ब्रिटिश मादक पेय कंपनी डियाजियो पीएलसी की दक्षिण कोरियाई इकाई डियाजियो कोरिया कंपनी की बिक्री उसी वित्तीय वर्ष में 3.6 प्रतिशत कम हुई, लेकिन इसकी परिचालन आय 85 प्रतिशत बढ़ गई। (आईएएनएस)
सियोल, 22 नवंबर| दक्षिण कोरिया के हापचेओन काउंटी में एक मंदिर से प्रार्थना की आवाज के बारे में शिकायत करने वाले एक पड़ोसी की कथित तौर पर हत्या करने के आरोप में एक बौद्ध भिक्षु को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने सोमवार को यह जानकारी दी। योनहाप समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने बताया कि साठ साल के भिक्षु, जिसकी पहचान अज्ञात है, उस पर आरोप है कि उसने रविवार को सियोल से 350 किलोमीटर दक्षिण में हापचेओन में मंदिर से प्रार्थना के स्तर को लेकर मुद्दा उठाने वाले पीड़ित को पीट-पीट कर मार डाला है।
कथित तौर पर कुछ समय के लिए मंदिर से पहले से रिकॉर्ड की गई प्रार्थना ध्वनियों के जोर से बजाने को लेकर पड़ोसी का मंदिर के साथ विवाद था।
अधिकारियों ने कहा कि माना जाता है कि शिकायत पर गुस्से में आकर साधु ने अपराध किया है।
जांचकर्ताओं ने भिक्षु के लिए गिरफ्तारी वारंट अनुरोध दायर करने की योजना बनाई है। (आईएएनएस)
लंदन, 21 नवंबर पौधे पर आधारित एक एंटीवायरल उपचार कोरोनावायरस के सभी स्ट्रेन यहां तक की अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट को अवरुद्ध करने में प्रभावी पाया गया। यूके में नॉटिंघम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि डेल्टा वेरिएंट, अन्य स्ट्रेन की तुलना में यह कोशिकाओं में जल्दी जुड़कर पास की कोशिकाओं को संक्रमित करता है।
दो अलग-अलग सार्स-सीओवी-2 वेरिएंट के साथ सह-संक्रमण में, डेल्टा वेरिएंट ने अपने सह-संक्रमित भागीदारों को भी बढ़ाया है।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि हाल ही में वैज्ञानिकों के एक ही समूह द्वारा मूल सार्स-सीओवी-2 सहित अन्य वायरस को अवरुद्ध करने के लिए वैज्ञानिकों के एक ही ग्रुप द्वारा खोजी गई एक नई प्राकृतिक एंटीवायरल दवा, जिसे थापसीगारगिन (टीजी) कहा जाता है, सभी नए सार्स-सीओवी-2 जिसमें डेल्टा वेरिएंट भी शामिल है, उसके इलाज में उतना ही प्रभावी है।
अपने पिछले अध्ययनों में, टीम ने दिखाया कि पौधे से प्राप्त एंटीवायरल, छोटी खुराक पर सार्स-सीओवी-2 सहित तीन प्रमुख प्रकार के मानव श्वसन वायरस के खिलाफ एक अत्यधिक प्रभावी ब्रॉड-स्पेक्ट्रम होस्ट-केंद्रित एंटीवायरल जन्मजात प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाता है।
जर्नल विरुलेंस में प्रकाशित इस नवीनतम अध्ययन में, टीम ने यह पता लगाने के लिए निर्धारित किया कि सार्स-सीओवी-2 के उभरते अल्फा, बीटा और डेल्टा वेरिएंट एक-दूसरे के सापेक्ष कोशिकाओं में एक प्रकार के संक्रमण के रूप में कितनी अच्छी तरह गुणा करने में सक्षम हैं। सह-संक्रमण- जहां कोशिकाएं एक ही समय में दो प्रकारों से संक्रमित होती हैं।
टीम यह भी जानना चाहती थी कि टीजी इन उभरते हुए रूपों को रोकने में कितना प्रभावी था।
तीनों में से, डेल्टा वेरिएंट ने कोशिकाओं में गुणा करने की उच्चतम क्षमता दिखाई, और यह सीधे पड़ोसी कोशिकाओं में फैलने में सक्षम था। संक्रमण के 24 घंटे में इसकी प्रवर्धन दर अल्फा वेरिएंट की तुलना में चार गुना और बीटा वेरिएंट से नौ गुना ज्यादा थी।
सह-संक्रमण में, डेल्टा वेरिएंट ने अपने सह-संक्रमित भागीदारों के गुणन को बढ़ाया।
इसके अलावा, अल्फा और डेल्टा या अल्फा और बीटा के साथ सह-संक्रमण ने गुणन तालमेल दिया, जहां कुल नए वायरस का उत्पादन संबंधित सिंगल वेरिएंट संक्रमणों के योग से अधिक था।
इसी तरह, टीजी सक्रिय संक्रमण के दौरान सभी वेरिएंट को रोकने में प्रभावी था। (आईएएनएस)
विश्वविद्यालय में पशु चिकित्सा और विज्ञान के स्कूल में मुख्य लेखक प्रोफेसर किन चाउ चांग ने कहा, "हमारे नए अध्ययन ने हमें डेल्टा वेरिएंट के प्रभुत्व में बेहतर अंर्तदृष्टि प्रदान की है। भले ही हमने दिखाया है कि यह वेरिएंट स्पष्ट रूप से सबसे संक्रामक है और सह-संक्रमण में अन्य रूपों के उत्पादन को बढ़ावा देता है, हमें यह दिखाते हुए खुशी हो रही है कि टीजी उन सभी के खिलाफ उतना ही प्रभावी है ।"
चांग ने कहा, "एक साथ ये परिणाम टीजी की एंटीवायरल क्षमता को पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्टिक और एक सक्रिय चिकित्सीय एजेंट के रूप में इंगित करते हैं।"
दुबई, 21 नवंबर | अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने रविवार को अंतरिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ज्योफ एलार्डिस को नियुक्त किया। एलार्डिस आठ महीने से ज्यादा समय से अंतरिम सीईओ के तौर पर सेवा दे रहे थे। 1991 से 1994 तक ऑस्ट्रेलियाई घरेलू क्रिकेट में 14 मैचों में विक्टोरिया का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व क्रिकेटर एलार्डिस ने मनु साहनी की जगह ली थी, जिन्हें चार महीने तक निलंबित रखने के बाद तत्काल प्रभाव से जुलाई में पद से मुक्त कर दिया गया था।
आईसीसी सीईओ होने से पहले, एलार्डिस ने आठ साल तक आईसीसी के महाप्रबंधक (क्रिकेट) के रूप में भी काम किया। इससे पहले, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
एलार्डिस ने एक बयान में कहा, "आईसीसी के सीईओ के रूप में नियुक्त होना एक बड़ा सौभाग्य है और मैं खेल का नेतृत्व करने के अवसर के लिए ग्रेग और आईसीसी बोर्ड को धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि हम एक रोमांचक सफर में प्रवेश कर रहे हैं। मेरा ध्यान हमारे खेल के लिए सही काम करने और दीर्घकालिक सफलता और स्थिरता प्रदान करने के लिए सदस्यों के साथ मिलकर काम करने पर होगा।"
उन्होंने कहा, "मैं पिछले आठ महीनों में अपनी प्रतिबद्धता और समर्थन के लिए आईसीसी कर्मचारियों को भी धन्यवाद देना चाहता हूं और मैं इस तरह की प्रतिभाशाली टीम के साथ क्रिकेट की सेवा करना जारी रखना चाहता हूं।"
आईसीसी अध्यक्ष ग्रेग बार्कले ने कहा, "मुझे खुशी है कि ज्योफ स्थायी तौर पर आईसीसी सीईओ की भूमिका निभाने के लिए सहमत हो गए हैं। उन्होंने आईसीसी टी20 विश्व कप 2021 की सफल डिलीवरी के दौरान बेहद चुनौतीपूर्ण अवधि का नेतृत्व किया। वह अगले दशक के लिए खेल को नया आयाम देने के लिए हमारे सदस्यों के साथ मिलकर काम करने के लिए सही व्यक्ति हैं।" (आईएएनएस)
काबुल, 21 नवंबर| दुनिया भर के कई देशों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आनंद के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए विश्व बाल दिवस मनाया जाता है, मगर युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में कई बच्चों को अपने परिवारों को जीवित रहने में मदद करने के लिए सड़क पर काम करना पड़ता है। 14 वर्षीय मलिक ने शनिवार को समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया, "मैं स्कूल जाता था, लेकिन आजकल नहीं जाता, क्योंकि युद्ध और गरीबी ने हमें जकड़ लिया है और जीवित रहने के लिए मेरे पिता ने मुझे गाय चराने के लिए कहा है। उन्होंने दूध बेचकर परिवार का खर्च जुटाने के लिए एक गाय खरीदी है।"
तीन साल के लिए स्कूल छोड़ने पर दुख व्यक्त करते हुए मलिक ने कहा कि उसके पिता बेरोजगार हैं और परिवार के बड़े बेटे के रूप में उसे आजीविका कमाने के लिए काम करना पड़ता है।
अपनी गाय चराने के अलावा, मलिक कुछ पैसे कमाने के लिए सड़क पर ग्राहकों के लिए चीजें बेचता है।
काम करने वाले लड़के ने कहा कि युद्ध उसकी गरीबी का मुख्य कारण है और पिछले चार दशकों के दौरान युद्ध में सब कुछ नष्ट हो गया।
एक प्राथमिक विद्यालय में पांचवीं कक्षा का छात्र अमीनुल्ला पोपलजई भी अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित है, क्योंकि उसे स्कूल से घर लौटने के बाद काम करना पड़ता है।
उसने कहा, "मेरे वृद्ध पिता के पास नौकरी या आय का कोई साधन नहीं है, इसलिए मुझे अपने परिवार की मदद करने के लिए काम करना पड़ता है।"
उसे यह भी डर है कि अगर उसके परिवार के खर्च का बोझ बढ़ गया तो उसे एक दिन स्कूल छोड़ना पड़ सकता है।
काबुल निवासी अजीज ने बताया, "हमारे बच्चों को शिक्षा की जरूरत है और मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान के बच्चों को स्कूल जाने के लिए सहयोग देने का अनुरोध कर रहा हूं।"
अजीज के अनुसार, कई अफगान बच्चों के घर में कमाने वाले नहीं हैं, इसलिए उन्हें अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने के लिए आधे दिन स्कूल जाना पड़ता है और आधे दिन काम करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र सहायता एजेंसियों के अनुसार, आज लाखों बच्चों सहित 2.2 करोड़ से अधिक अफगान भोजन की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि युद्धग्रस्त देश को मानवीय सहायता की आपूर्ति में किसी भी तरह की देरी आने वाली सर्दियों में तबाही साबित हो सकती है। (आईएएनएस)
-क्रिस्टीना जे. ऑर्गाज़
कंप्यूटर की दुनिया में पहले अधिकतर टेक्स्ट कंटेंट हुआ करते थे जिन्हें कीबोर्ड पर टाइप किया जाता था.
इंटरनेट ने दुनिया को एक छोटे से डिब्बे में समेटना शुरू कर दिया. फिर आया मोबाइल युग जो अपने साथ लाया कैमरे.
मोबाइल की वजह से पूरी दुनिया में इंटरनेट बहुत अधिक देखा जाने लगा. हाल में जब इंटरनेट की स्पीड पहले से और तेज़ हुई तो यहां सबसे अधिक वीडियोज़ देखे जाने लगे.
हम डेस्कटॉप से वेब से मोबाइल और टेक्स्ट कंटेंट से फ़ोटो से वीडियो की दुनिया तक पहुंचे. लेकिन क्या ये इस टेक्नोलॉजी का अंत है? या इसके आगे भी कुछ हो सकता है?
फ़ेसबुक के जनक मार्क ज़करबर्ग ने हाल ही में इसका जवाब मेटावर्स के रूप में दिया है. उनके मुताबिक मोबाइल इंटरनेट की अगली पीढ़ी मेटावर्स बनेंगे.
ये मेटावर्स क्या हैं, जिसे फ़ेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां बनाने में जुटी हैं. और इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था को कैसे फायदा पहुंच सकता है?
तो सबसे पहले ये बता दें कि मेटावर्स वर्चुअल रियलिटी के बाद की दुनिया यानी ऑग्मेंटेड रियलिटी पर आधारित हैं.
विभिन्न संसाधनों और कंपनियों के सहयोग से इन्हें बनाने में कई वर्ष लग सकते हैं.
तो वस्तुओं और सेवाओं के ज़रिए अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जब उस तरह के संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी जो मौजूद नहीं हैं, तो संभव है कि नई कंपनियां भी बनेंगी.
क्रांतिकारी बदलाव
जानकार इस बात पर एकमत हैं कि कोई एक कंपनी पूरे साइबर वर्ल्ड को बनाने और उसे बनाए रखने में सक्षम नहीं होगी.
ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस का अनुमान है कि 2024 तक मेटावर्स का बाज़ार 800 बिलियन डॉलर तक का हो जाएगा.
और बैंक ऑफ़ अमेरिका ने मेटावर्स को उन 14 टेक्नोलॉजी में शामिल किया है जो हमारी ज़िंदगी में क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रही हैं.
हाल ही में बैंक ऑफ़ अमेरिका थीमैटिक रिपोर्टः द 14 टेक्नोलॉजी दैट विल रिवोल्यूशनाइज़ ऑर लाइव्स में जानकारों ने लिखा, "मेटावर्स में अनगिनत वर्चुअल वर्ल्ड होंगी और ये एक दूसरे को वास्तविक दुनिया से जोड़े रखेंगी."
"लंबे समय से चल रही इंडस्ट्री और मार्केट जैसे कि- फाइनैंस और बैंकिंग, रिटेल और एजुकेशन, हेल्ट और फिटनेस के साथ-साथ एडल्ट बिजनेस में भी इससे बदलाव आएगा तो आप काम पर हों या फुरसत में इनकी मौजूदगी होगी और ये अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएंगी."
कई तकनीक के जनक और 2012 से गूगल के इंजीनियरिंग डायरेक्टर अमेरिका के रेमंड कुर्ज़वेल कहते हैं, "इस दशक के अंत में, यानी 2030 में, हम वास्तविक दुनिया के बजाय मेटावर्स में अपना अधिक समय गुजारेंगे."
दुनिया में इस जैसे चीज़ें पहले से मौजूद
वैसे बात ये भी सच है कि यह पूरी तरह से नई चीज़ भी नहीं है. बहुतेरे ऑनलाइन वीडियो गेम्स में वर्चुअल वर्ल्ड का दशकों से इस्तेमाल चला आ रहा है.
वे मेटावर्स तो नहीं है लेकिन उनकी कई चीज़ें मेटावर्स से मिलती हैं.
विश्लेषण और निवेश कंपनी विस्डम ट्री में डिजिटल एसेट के निदेशक बेंजामिन डीन कहते हैं, "मेटावर्स नए नहीं हैं. नया है इसमें किया जा रहा निवेश और लोगों के बीच डिजिटल चीज़ों की बढ़ती स्वीकार्यता."
वे कहते हैं, "टेक्नोलॉजी बहुत तेज़ी से बदल रही है. हाल के वर्षों में औद्योगिक देशों की अधिकांश आबादी (50 फ़ीसद से ज़्यादा) को अब ये याद नहीं है कि इंटरनेट के युग से पहले का जीवन कैसा था. ये बड़े बदलाव आते रहेंगे, ख़ास कर उन देशों में जहां स्मार्टफ़ोन हर जगह मौजूद हैं और उन्हें इस्तेमाल करने वालों की औसत आयु बाकियों से कहीं कम है."
उन्होंने कहा, "मैंने एक दशक पहले इसे वर्चुअलाइजेशन ऑफ़ वर्ल्ड का नाम दिया था."
मार्क ज़करबर्ग के मुताबिक "मेटावर्स की डिजिटल दुनिया में आप तुरंत ही बिना घर से निकले ही दफ़्टर या दोस्त की पार्टी में या फिर अपने माता-पिता के साथ बातचीत के लिए एक कमरे में टेलीपोर्ट हो जाएंगे."
लेकिन आज जिस वर्चुअल रियलिटी का इस्तेमाल विशेषकर वीडियो गेम्स में होता है मेटावर्स में मनोरंजन, गेम्स, कॉन्सर्ट्स, सिनेमा, काम, शिक्षा जैसी कई अन्य चीज़ों के शामिल होने की उम्मीद है.
लिहाजा उन क्षेत्रों में नई कंपनियों और टेक्नोलॉजी भी नई आएंगी.
कन्सर्ट, कंटेंट और मनोरंजन
एरियाना ग्रांड, मार्शमेलो या रैपर ट्रैविस स्कॉट सभी ऑनलाइन वीडियो गेम फोर्टनाइट में देखे जा चुके हैं, जिसमें ये दिखाया गया कि मेटावर्स में कॉन्सर्ट जैसे कार्यक्रमों का भविष्य क्या हो सकता है.
बीते वर्ष अप्रैल में 1.23 करोड़ फैन्स रीयल टाइम में ऑनलाइन मौजूद थे जब ट्रैविस स्कॉट ने किड क्यूडी के साथ लिखे गाने को रिलीज़ किया था.
वाल्ट डिज़नी के सीइओ बॉब चापेक ने बताया कि ये समूह अब अपने थीम पार्कों को वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में उतारने की तैयारी कर रहा है.
बैंक ऑफ़ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक, "जेनेरेशन ज़ेड इस बदलाव को देखेगी, वो मेटावर्स और होलोग्राम्स के इस्तेमाल देखेगी. वो वर्चुअल दुनिया में बड़ी मात्रा में कंटेंट को बनते देखेगी. और इससे इंडस्ट्री को फायदा पहुंच सकता है."
मूवी इंडस्ट्री (डिजनी), टेलिविज़न (डिस्कवरी चैनल), खेल (फॉक्स स्पोर्स्ट्स), म्यूजिक (यूनिवर्सल म्यूजिक ग्रुप, लाइव नेशन), ओटीटी (नेटफ्लिक्स), न्यूज़पेपर (न्यूयॉर्क टाइम्स) ने थ्रीडी में हाथ आजमाने शुरू कर दिए हैं.
वर्चुअल उपस्थिति
कोविड-19 ने पूरी दुनिया को रोक दिया लेकिन जो नहीं रुका वो है वर्चुअल वर्क यानी आप कहीं भी बैठ कर दफ़्तर का काम कर रहे हों.
फ़ेसबुक में वैसे ही दफ़्तर की परिकल्पना है जहां एक मीटिंग रूम में वर्चुअल बैठकें आयोजित की जाती हैं. और लोग अपने अपने कंप्यूटर या लैपटॉप या टैब या मोबाइल से उसमें भाग लेते हैं.
लेकिन ऐसा करने वाला फ़ेसबुक अकेला दफ़्तर नहीं है.
माइक्रोसॉफ़्ट ने हाल ही में माइक्रोसॉफ़्ट टीम के लिए मेटावर्स तैयार करने की बात की है. महामारी के दौरान इस वर्चुअल माध्यम का लोगों ने मीटिंग के लिए बहुत इस्तेमाल किया था.
कंपनी के मुताबिक वो इस वर्चुअल टूल का इस्तेमाल इवेंट्स के आयोजन, बैठकों और नेटवर्किंग के लिए भी करना चाहती है.
कन्सल्टिंग फर्म पीडब्ल्यूसी का कहना है कि वर्चुअल दफ़्तर के माहौल का ट्रेनिंग सेक्टर को बहुत फायदा होगा.
इसके जानकार 2020 की अपनी एक रिपोर्ट में कहते हैं, "पहले से ही कई सेक्टर ने अपने ट्रेनिंग कार्यक्रमों के लिए वर्चुअल रियलिटी के दरवाज़े खोल दिये हैं."
क्या हैं चुनौतियां?
जानकार इस बात पर एकमत हैं कि मेटावर्स कैसे काम करेंगे ये अभी देखना बाकी है.
आईबीएम के पूर्व इंजीनियर थॉमस फ्रे कहते हैं कि इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर, रीयल टाइम में बड़ी संख्या में लोगों का आपस में बातचीत करना, भाषाई बाधाएं और वेब पेज खोलने के लिए क्लिक करने पर इसके लोड होने में लगने वाला समय, ये सब मेटावर्स के लिए मुख्य चुनौतियां हैं.
इसके लिए कंप्यूटर, ग्राफिक कार्ड और वीडियो कहीं अधिक मजबूत बनाने होंगे. फिलहाल इस क्षेत्र में एनवीडीए, एमएमडी और इंटेल जैसी कंपनियां काम कर रही हैं.
उन सभी कंपनियों के लिए जो पहले से माइक्रोचिप बना रही हैं, इन सभी टेक्नोलॉजी को विकसित करने के लिए एक नई कंपनी बनानी पड़ सकती हैं.
एक और क्षेत्र हैं जिसमें मेटावर्स से क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है. और ये है शिक्षा का क्षेत्र.
बीओए मेरिल लिंच के स्ट्रैटेजिस्ट मार्टिन ब्रिग्स, हैम इसराइल, फेलिक्स ट्रान लिखते हैं, "मूल विचार, सालों से चले आ रहे पढ़ाने के तरीके से सामंजस्य बिठाना है."
वो लिखते हैं, "किसी विषय को पढ़ाते वक़्त छात्र कैसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं उसके मुताबिक चैप्टर बदले जा सकते हैं- जैसे कि सिर झुकाना या यहां तक कि सो जाना. अतिरिक्त क्विज़, वीडियो और विस्तार से समझाने को इसमें जोड़ा जा सकता है ताकि छात्रों को पढ़ने और चैप्टर समझने में आसानी हो."
उच्च शिक्षा में वो सभी संकेत मिल रहे हैं कि यूनिवर्सिटी अपने यहां वर्चुअल कैंपस बनाएंगी, जिससे उनके छात्रों की संख्या बढ़ सकती है.
खगोल शास्त्र की पढ़ाई में और मेडिसिन या टेलीकेयर में, कई नई सेवाओं के साथ अनंत संभावनाएं हैं.
हेल्थकेयर के क्षेत्र में कोरोना महामारी के दौरान तो देख ही चुके हैं कि किस तरह लोग डिजिटल माध्यम से चिकित्सकीय समाधान तलाश रहे थे.
अमेज़न या लिब्रे मर्काडो जैसी ऑनलाइन कंपनियों ने देखा कि कैसे कोरोना के दौर में उनका कारोबार बहुत अधिक बढ़ गया और बैंक ऑफ़ अमेरिका का मानना है कि मेटावर्स की दुनिया में लोग और भी वर्चुअल ख़रीदारी करेंगे.
बेंजामिन डीन का मानना है कि इन सभी बिजनेस के लिए वैकल्पिक मुद्राएं भी चलन में हो सकती हैं जो डॉलर, यूरो, येन, पेसो जैसी मौजूदा करेंसी से साथ साथ अस्तित्व में रहेंगी.
वे कहते हैं, फिजिकल और वर्चुअल रियलिटी के बीच की रेखा धुंधली हो गई है जो अगले कुछ दशकों तक बनी रहेगी. (bbc.com)
ब्रिटिश विश्विद्यालयों में यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं लेकिन उनसे निपटने का कोई ठोस ढांचा नहीं है. कैंपसों में हिंसा के खिलाफ आई शिकायतों पर दबे छुपे कार्रवाई करना, उच्च शिक्षण संस्थानों के रवैये की पोल खोलता है.
ब्रिटेन के सौ विश्वविद्यालयों में हाल ही में हुए दो ऑनलाइन सर्वे में पुरुष छात्रों ने पिछले दो साल के दौरान बलात्कार, उत्पीड़न या किसी अन्य यौन अपराध में लिप्त होने की बात स्वीकार की. पांच सौ चौवन छात्रों पर किए गए सर्वे में 63 ने महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच जाहिर करते हुए माना कि उन्होंने कभी ना कभी यौन हिंसा की है. ये रिपोर्ट एक बहुत बड़ी समस्या का बहुत छोटा लेकिन अहम सुबूत सामने रखती है. इससे पहले भी विश्वविद्यालयों में यौन अपराधों पर रिपोर्टें आती रही हैं हांलाकि उच्च शिक्षा में यौन हिंसा का ये मसला जटिलताओं से भरा है. हिंसा की घटनाएं आम हैं लेकिन इस पर आंकड़े जुटाना इतना आसान नहीं है.
उदाहरण के लिए ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं लेकिन वे यौन हिंसा पर खुलकर बात करने से कतराते हैं. इसकी तह में सांस्कृतिक वजहें तो हैं ही, विश्वविद्यालय के रवैये और छात्रों के अकादमिक भविष्य पर उसके असर का डर भी उन्हें कुछ बोलने से रोकता है. उच्च शिक्षा में यौन हिंसा पर शोध और लॉबी करने वाली संस्था 1742 ग्रुप से जुड़ीं डॉक्टर अद्रिजा डे कहती हैं कि भारतीय या दक्षिण एशियाई छात्र ही शिकायत करने से डरते हैं, ऐसा नहीं है.
अद्रिजा कहती हैं, "भविष्य का डर किसी भी छात्र-छात्रा को बोलने से रोकता है लेकिन भारतीय घरों में कुछ खास किस्म की बातें आम हैं जैसे एक लड़की ने मुझसे कहा कि अगर मैंने ऐसी किसी भी बात का जिक्र किया तो वापस बुलाकर मेरी शादी कर दी जाएगी.” छात्रों में डर अगर एक बात है तो ध्यान देने वाला दूसरा पहलू ये भी है कि जहां शिकायतें दर्ज हुईं, क्या वहां कोई ठोस नतीजा निकला.
चुप्पी और गुप-चुप कार्रवाई
अमेरिका से ब्रिटेन के कार्डिफ शहर स्थित रॉयल वेल्श कॉलेज ऑफ म्यूजिक ऐंड ड्रामा में पढ़ने आईं सिडनी फेडर का अनुभव कैंपस में हिंसा रोकने की नीयत पर सवालिया निशाना लगाता है. 2017 में अपनी स्नातक डिग्री के आखिरी साल में एक रिहर्सल के दौरान सिडनी को यौन हिंसा झेलनी पड़ी. कॉलेज की लाइब्रेरी में काम करने वाले एक साथी छात्र की इस करतूत की शिकायत उन्होंने अधिकारियों से की. सिडनी से इस घटना के बारे में एक बार पूछताछ हुई लेकिन कॉलेज की जांच में क्या हुआ, इसे गुप्त रखा गया.
सिडनी बताती हैं, "मुझे ना कुछ बताया गया ना ही कार्रवाई के नतीजे के बारे में संपर्क किया गया. बाद में जब मैंने कानूनी केस किया तब पता चला कि उस लड़के ने अपराध स्वीकार किया था लेकिन मुझे इस सबसे बिल्कुल अलग रखा गया. उसे सजा मिली या नहीं मिली इसका भी कुछ पता नहीं चला बल्कि उसने बाकायदा अपनी पढ़ाई वहीं से पूरी की." सिडनी ने जिस लड़के के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी बाद में कॉलेज की करीब एक दर्जन लड़कियों ने उस लड़के के अवांछनीय व्यवहार की बात उठाई लेकिन ये कोई गंभीर मसला बनकर मीडिया में छाया हो, ऐसा नहीं हुआ. सिडनी ने हिंसा झेलने वाली लड़कियों के साथ एक मोर्चा बना लिया जिसमें बहुत से विश्वविद्यालयों की छात्राएं शामिल हैं.
दरअसल विश्वविद्यालयों में यौन हिंसा पर जुबानी जमा-खर्च के अलावा उनसे निपटने में कोई गंभीरता दिखती नहीं है. ब्रिटेन के 140 विश्वविद्यालयों की प्रतिनिधि संस्था यूनिवर्सिटीज यूके ने 2016 में एक टास्क फोर्स गठित की जिसने विश्वविद्यालयों में यौन हिंसा समेत छात्रों के दुर्व्यवहार से निपटने के लिए गाइडलाइन जारी की. गौरतलब है कि ये महज सलाहें हैं, हिंसा के मामलों में कार्रवाई को दिशा देने के लिए विश्वविद्यालय स्वतंत्र हैं. यानी कोई बाध्यकारी नियम-कायदे नहीं बनाए हैं. यौन अपराधों के लिए किसी विशेष कमेटी या निश्चित सेल जैसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है.
न्याय बनाम व्यावसायिक हित
ये सवाल उठना लाजमी है कि विश्वविद्यालय आखिर अपने छात्र-छात्राओं के साथ हो रही हिंसा या दुर्व्यवहार के मामलों पर सख्ती दिखाने के बजाय दबाना-छिपाना क्यों चाहते हैं. 1752 ग्रुप के साथ मिलकर रिसर्च कर रहीं ऐरिन शैनन का मानना है कि ब्रिटेन में विश्वविद्यालय एक व्यवसाय है और छात्र उसके ग्राहक. कोई भी बिजनेस गलत वजहों से खबरों में आने का जोखिम नहीं उठाना चाहता. एरिन बताती हैं कि बहुत कम विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां शिकायत दर्ज करने या मदद की कोई प्रक्रिया रखी गई है. हालांकि कुछ विश्वविद्यालयों में सामने आए मामलों की संख्या पिछले कुछ सालों में खासी बढ़ी है.
ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी एक स्वतंत्र नियामक संस्था ऑफिस फॉर स्टूडेंट ने साल 2020 में रखे प्रस्तावित उपायों में विश्वविद्यालयों को हिदायत थी कि अगर कैंपस में होने वाली यौन हिंसा पर शिकायत, कार्रवाई और मदद के समुचित प्रबंध नहीं होते हैं तो संस्थानों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग बंद हो सकती है. इन प्रस्तावों पर संस्था दो साल बाद दोबारा नजर डालेगी यानी यहां भी धीमी चाल और कारगर योजना जैसा कुछ नहीं रखा गया. स्थिति को देखते हुए अद्रिजा डे दलील देती हैं कि अगर सवाल बदलाव का है तो वो इस तरह के आधे-अधूरे तरीकों से नहीं लाया जा सकता.
ये समस्या दरअसल विश्वविद्यालयों में ताकत के ढांचे की मरम्मत और कैंपस संस्कृति को ठीक करने से जुड़ी है. फिलहाल जितनी भी आवाजें उठ रही हैं वो सभी हिंसा झेल चुकी छात्राओं या शोधकर्ताओं की तरफ से हैं. दुनिया भर के छात्रों का गढ़ होने पर गर्व करने वाले ब्रिटेन के पास उन छात्र-छात्राओं को सुरक्षित माहौल देने का इरादा नहीं है. आवाजें उठी हैं और उठती रहेंगी लेकिन उनकी गूंज का असर समस्या को जड़ से उखाड़ने में फिलहाल कामयाब नहीं हुआ है.
जर्मन उपभोक्ता बड़ी शिद्दत से अपनी इस्तेमाल की हुई बोतलें लौटा देते हैं. जर्मनी में बोतल जमा करने की योजना भला कैसे काम करती है? क्या ये मॉडल दूसरे देश भी अपना सकते हैं?
डॉयचे वैले पर इरीने बानोस रुइज की रिपोर्ट-
शनिवार की सुबह है और जर्मनी के शहर कोलोन के एक सुपरबाजार में लोग बोतलों और डिब्बों से भरे झोले लिए कतार में लगे हैं. लेकिन वे यहां कुछ खरीदने नहीं बल्कि उन्हें लौटाने आए हैं. प्रक्रिया आसान है. जब वो अपने सॉफ्ट ड्रिंक खरीदते हैं, तो दुकानदारों को उसकी कीमत के साथ एक निश्चित डिपॉजिट का भुगतान भी करते हैं. जर्मन भाषा में इसे कहा जाता है फांड यान जमा राशि. जब उपभोक्ता अपनी बोतलें और डिब्बे, स्टोर को लौटाते हैं, तो उन्हें अपना पैसा वापस मिल जाता है.
एनवायरन्मेंटल एक्शन जर्मनी (डीयूएच) नाम के एक एनजीओ में चक्रीय अर्थव्यवस्था का काम देखने वाले टॉमस फिशर ने डीडब्ल्यू को बताया, "2003 से पहले, करीब तीन अरब डिस्पोजेबल बोतलें और डिब्बे, हर साल पर्यावरण में फेंक दिए जाते थे.” लेकिन इन दिनों, जर्मनी को इस बात का गर्व है कि इस डिस्पोजेबल सामग्री की वापसी की दर 98 प्रतिशत है. फिशर कहते हैं, "अब इससे ज्यादा ऊंची दर मिल पाना नामुमकिन है.”
जर्मनी की फांड प्रणाली में दो किस्म की बोतलें आती हैं. पहली वे जिनमें उत्पादक की निर्धारित की हुई डिपॉजिट राशि होती है, आठ यूरो सेंट से लेकर 25 यूरो सेंट तक. और उन्हें कई कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है और वे कांच या पीईटी प्लास्टिक की बनी होती हैं. दूसरी किस्म के तहत, सिर्फ एकबारगी इस्तेमाल के डिब्बे या कंटेनर आते हैं और फिर उन्हें रिसाइकिल कर दिया जाता है. इन पर डिपॉजिट सरकार निर्धारित करती है और वो है 25 यूरो सेंट.
उपभोक्ताओं के लिए फांड सिस्टम यूं तो खाली बोतलों को एक मशीन में डालना भर है लेकिन उसके बाद जो होता है वो प्रक्रिया जरा पेचीदा है.
बोतलों का रोमांचकारी सफर
जब कोई रीफिल हो सकने वाली बोतल, मान लीजिए कोला की बोतल, सुपरमार्केट में लौटाई जाती है तो उसके साथ ही शुरू होता है उसका एक लंबा सफर. पेय पदार्थ का थोक विक्रेता ऐसी बहुत सारी खाली बोतलों को ट्रक में भर कर छंटाई केंद्र तक ले जाता है जहां उसे उसी आकार की दूसरी बोतलों के साथ रखा जाता है. इसके बाद उसी किस्म की बोतल का उपयोग करने वाले उत्पादकों के पास वो बोतल पहुंचाई जाती है. वहां उसे साफ किया जाता है, दोबारा नया माल भरा जाता है और फिर से बेचने के लिए दुकान में उपलब्ध करा दिया जाता है.
जर्मन पर्यावरण एजेंसी (यूबीए) के मुताबिक ऐसी एक कांच की बोतल को, गुणवत्ता में गिरावट आए बिना 50 बार भरा जा सकता है. दोबारा इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक बोतलों की रीफिल दर 25 की होती है. यानी 25 दफे इस्तेमाल हो सकती हैं. लेकिन सिंगल यूज वाली बोतलों का रास्ता अलग होता है. स्टोर से उन्हें इकट्ठा करने के बाद उन्हें रिसाइक्लिंग प्लांट को रवाना कर दिया जाता है. जहां उनके टुकड़े टुकड़े कर और उनकी गिट्टियां बना दी जाती हैं और उनसे फिर नयी प्लास्टिक बोतलें, कपड़ा या दूसरा सामान बनता है जैसे डिटर्जेंट के डिब्बे.
पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प क्या
दोबारा इस्तेमाल और एकबारगी इस्तेमाल वाली बोतलों की जमा प्रणाली से कच्चे माल, ऊर्जा और सीओटू उत्सर्जन की बचत होती है. मुख्यतः इसलिए क्योंकि नई बोतलों को बनाने में फॉसिल ईंधन की खपत कम हो जाती है, ये कहना है यूबीए में कार्यरत पैकेजिंग के विशेषज्ञ गेरहार्ड कोश्चिक का. और मिलेजुले प्लास्टिक वाले झोले से उलट, सिंगल यूज बोतलों को रिसाइकिल कर उनमें खाद्य स्तर की सामग्री भरी जा सकती है. इस आधार पर डिस्काउंट वाले सुपर बाजार जैसे आल्डी और लीडल ज्यादातर सिंगल यूज कंटेनर बेचते हैं. उनका दावा है कि उनकी रिसाइक्लिंग गतिविधियां पर्यावरण के लिए अच्छी हैं.
लीडल के प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "कुछ साल पहले जो स्थिति थी उसकी तुलना में हम 70 फीसदी कम पीईटी सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं.” इससे सिंगल यूज सामान की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. कोका-कोला जर्मनी में सस्टेनेबिलिटी विभाग की प्रमुख उवे क्लाइनर्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए जरूरी है कि हमें अपने ड्रिंक्स डिस्काउंट वाले स्टोरों में रखने होंगे.”
कोका-कोला कंपनी में दोबारा इस्तेमाल होने वाली बोतलों की खपत 2015 में 56 फीसदी से गिरकर 42 फीसदी रह गई थी. प्लास्टिक कचरे में कमी लाने के लिए प्रयासरत एनजीओ के एक समूह "ब्रेक फ्री फ्रॉम प्लास्टिक” के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े प्लास्टिक प्रदूषकों में पेप्सिको के साथ साथ कोका-कोला का नाम भी आता है. वैसे जर्मनी में कोका-कोला के पेय, दोबारा इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक बोतलों में आते हैं और कुछ कांच की बोतलों में.
डिस्काउंट देने वाला लीडल स्टोर श्वार्त्स ग्रुप का है. अपने उत्पादों के लिए वो अब सिंगल यूज बोतलें बनाता है. कंपनी के मुताबिक, वो रिसाइकिल की हुई पीईटी सामग्री इस्तेमाल करती है. सिर्फ लेबल और ढक्कन ही 100 फीसदी रिसाइकिल प्लास्टिक के नहीं बने होते हैं. वैसे पर्यावरणविदों का कहना है कि फिर से इस्तेमाल होने वाली बोतलें सिंगल यूज़ पैकेजिंग के मुकाबले ज्यादा पर्यावरण अनुकूल होती हैं.
डीयूएच के मुताबिक 100 प्रतिशत रिसाइकिल सामग्री से बनी सिंगल यूज प्लास्टिक बोतलें बाजार में अपेक्षाकृत रूप से कम ही हैं. इसके अलावा, डीयूएच के मुताबिक हर रिसाइक्लिंग में सामग्री भी बर्बाद होती है. ऐसा कोई करीबी लूप नहीं है जिसमें सामग्री की खूबियों में गिरावट आए बगैर उसे अनिश्चित समय के लिए एक नये उत्पाद में बदला जा सके. इनमें से कई बोतलों के उत्पादन में जीवाश्म ईंधनों से मिलने वाले कच्चे माल की जरूरत होती है. फिशर कहते हैं, "जर्मनी में सिंगल यूज वाली पीईटी बोतलों में औसतन, 26 प्रतिशत रिसाइकिल सामग्री होती है.”
इसके अलावा, यूबीए के गेरहार्ड कोश्चिक के मुताबिक दोबारा इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक बोतलों को दोबारा इस्तेमाल होने वाले पीईटी दानों में तोड़ा जा सकता है. ऐसा तब होता है जब बोतल को रीफिल करने की मियाद पूरी हो जाती है. यानी जब उसे मौलिक रूप में दोबारा इस्तेमाल करना और संभव नहीं रह जाता. कोश्चिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम लोग हमेशा इसी क्षेत्र से दोबारा इस्तेमाल होने वाले कंटेनर खरीदने की सिफारिश करते हैं.” वो कहते हैं कि रिसाइक्लिंग का विकल्प सबसे सही तभी होता है जब बोतल को दोबारा भरना मुमकिन नहीं रह जाता. "वैसे ज्यादा अच्छा तो ये है कि कचरे से परहेज ही रखा जाए.”
लेबल लगाने में झंझट और दुविधा
सिंगल यूज बोतलों से अलग री यूज होने वाली बोतलों के लिए कोई अनिवार्य समान चिन्ह नहीं है. और लेबलिंग अलग अलग हो सकती है. जिसमें "वापसी लायक बोतल”, "जमा होने वाली बोतल”, "वापस होने लायक” या "दोबारा इस्तेमाल लायक बोतल” जैसी शब्दावलियां डाली जा सकती हैं.
खुदरा विक्रेताओं को ये निशान लगाना होता है कि उनके स्टोर में उपलब्ध बोतलें क्या एक बार या कई बार इस्तेमाल वाली हैं. लेकिन दुकान या सुपरबाजार में बिकने वाली, एक बार इस्तेमाल की बोतलों के लिए अकेला इन-स्टोर चिन्ह ही काफी माना जाता है. जर्मन एनजीओ, प्रकृति और जैवविविधता संरक्षण संघ (एनएबीयू) जैसे पर्यावरण संगठन इसे नाकाफी बताते हुए इसकी आलोचना करते हैं.
हाल के एक सर्वे के मुताबिक, जर्मनी में अधिकांश उपभोक्ता अब ये पहचानने लगे हैं कि बोतल सिंगल यूज वाली है या मल्टी यूज वाली, लेकिन 42 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो अब भी ये सोचते हैं कि तमाम डिपॉजिट बोतलें, जिनमें सिंगल यूज वाली भी शामिल होती हैं, सब की सब दोबारा भरी जाती हैं.
जमा-वापसी प्रणाली से किसका फायदा?
सिंगल यूज़ वाली बोतलें बेचने वाले स्टोर, दोबारा इस्तेमाल होने वाली चीजों से जुड़ी लॉजिस्टिक लागतों से बचते हैं. उन्हें रिसाइक्लिंग से भी फायदा होता है और उच्च स्तर वाले पीईटी की आगे की बिक्री से भी. क्लाइनर्ट कहती हैं, "आपको रिसाइकिल किए हुए पीईटी के लिए तेल से बने कच्चे पीईटी की तुलना में ज्यादा भुगतान करना होगा.” लेकिन पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ये जरूरी है.
ये बिजनेस इतना आकर्षक हो चला है कि सुपर बाजार चेन लीडल ने तो अपना रिसाइक्लिंग ग्रुप ही बना डाला है. फिशर कहते हैं, डिस्काउंट स्टोरों के लिए "हर बोतल एक तोहफा है.” यहां तक कि जो बोतलें लौटाई न जा सकीं हों, चाहे रीफिल हो चाहे सिंगल यूज़ बोतल हो, उन स्टोरों के लिए खूब मुनाफा जुटाती हैं जो उन्हें बेचते हैं. हर साल जर्मन पेय बाजार में 16.4 अरब एकल उपयोग वाली बोतलों की भरमार हो जाती है. और उनमें से वापस न होने वाली डेढ़ फीसदी बोतलें भी खुदरा विक्रेताओं को 18 करोड़ यूरो तक का मुनाफा कमा कर देती हैं.
दूसरे देशों के लिए मॉडल?
जर्मनी की सरकारी पर्यावरण एजेंसी यूबीए कहती है कि सभी देशों के लिए एक ही गोली अचूक नहीं हो सकती है. हर संदर्भ में बारीकी से जांचपरख कर ही बताया जा सकता है कि कौन सा तरीका कहां के लिए उपयुक्त या सबसे सही होगा. लेकिन लंबे समय से डिपॉजिट प्रणालियों का विरोध करती आ रही बड़ी कंपनियों के रवैये में भी बदलाव आने लगा है.
कोका-कोला यूरोप के पब्लिक पॉलिसी सेंटर के वरिष्ठ निदेशक वाउटर फरम्युलेन ने डीडब्ल्यू को ईमेल से बताया कि "पूरे यूरोप में जहां कोई भी प्रमाणित कामयाब विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, वहां हम एक सुव्यवस्थित, उद्योग-स्वामित्व वाली जमा वापसी योजनाओं का समर्थन करते हैं.”
बॉटल डिपॉजिट स्कीमों का समर्थन करने वाले स्पेनी एनजीओ रिटोर्ना के प्रवक्ता सीजर सांचेज मानते हैं कि सामाजिक दबाव और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर पहले से कड़े यूरोपीय कानून के दबाव में कंपनियों का रवैया बदला है. इस कानून के मुताबिक 2029 तक 90 प्रतिशत प्लास्टिक बोतलों को रिसाइकिल वास्ते अलग अलग इकट्ठा करना होगा. वो कहते हैं, "समाज समाधान चाहता है और मेरा मानना है कि डिपॉजिट वाली स्कीम स्पेन समेत दूसरे देशों में जल्द ही लागू होगी.”
जर्मनी में भी, पर्यावरण समूह जमा स्कीम को सभी किस्म के कांच और टेट्रा पैक्स जैसी कार्टन पैकेजिंग के लिए लागू करने पर जोर डाल रहे हैं. फिशर कहते हैं, "इन डिब्बों का इस्तेमाल जैम या शहद रखने के लिए भी संभव हो सकेगा. तमाम उत्पाद फिर से इस्तेमाल हो सकते हैं, और हम यही चाहते हैं.” (dw.com)
जॉर्जिया स्थित गोनियो लैंडफिल से काला सागर की हवा, मिट्टी और पानी सभी प्रदूषित हो रही है. सरकार ने इसे बंद करने की योजना बनाई है जिसके बाद कचरा चुनने वाले कई लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं.
डॉयचे वैले पर होली यंग की रिपोर्ट-
गोनियो लैंडफिल औद्योगिक और घरेलू कचरे का पहाड़ बन चुका है. इस लैंडफिल पर चलते हुए गोचा दुम्बात्से कहते हैं, "देखो, हमने अपनी धरती के साथ क्या किया है.” यहां हर दिन सैकड़ों ट्रक बचे हुए खाने से भरी थैलियां, प्लास्टिक, स्क्रैप, इंजन ऑयल, और टूटे हुए कांच डंप करते हैं. जगह-जगह पर आग लगने की वजह से हमेशा धुंआ निकलता रहता है. हवा जलते हुए कचरे की बदबू से भरी हुई है. गायों का झुंड प्लास्टिक की थैलियां चबाती नजर आती हैं.
यह लैंडफिल, जॉर्जिया के दूसरे सबसे बड़े शहर बटुमी से करीब 10 किलोमीटर दूर है. बटुमी काला सागर के किनारे स्थित है जहां काफी ज्यादा कसीनो हैं. इसलिए, इस शहर को दूसरा लास वेगस भी कहा जाता है. 1960 के दशक में यह इलाका सोवियत संघ के कब्जे में था. उसी समय इस जगह पर कचरा डंप करने की शुरुआत हुई थी. अब यह लैंडफिल करीब 74 एकड़ में फैल चुका है. इसकी ऊंचाई करीब 50 फीट हो गई है.
दुम्बात्से की उम्र 34 साल है. वह दिहाड़ी मजदूर हैं. साथ ही, सामुदायिक कार्यकर्ता के तौर पर भी काम करते हैं. वह लैंडफिल के पास ही कचरे के ढेर पर मिले सामान से बनाई गई झोपड़ी में रहते हैं. उनके जैसे ही 20 अन्य परिवार भी यहां रहते हैं. सभी इस लैंडफिल पर कचरा बीन कर गुजर-बसर करते हैं. यहां रहने वाले अधिकांश लोग या तो काफी ज्यादा गरीब हैं या जुए की लत की वजह से कर्ज में डूबे हुए हैं. कई ऐसे लोग भी हैं जो अबखासिया से भागकर आए हैं और यहां रह रहे हैं.
अबखासिया 1930 के दशक से सोवियत संघ के गणराज्य जॉर्जिया का हिस्सा था. सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में जॉर्जिया ने सोवियत संघ से आजादी का ऐलान किया. इसके बाद, अबखासिया में भी लोगों ने अपने देश को जॉर्जिया से अलग आजाद देश बनाने के लिए विद्रोह कर दिया. इससे देश में गृह युद्ध छिड़ गया और हालात आज तक सामान्य नहीं हुए हैं. इस देश ने खुद को आजाद मुल्क घोषित कर दिया है, लेकिन सिर्फ पांच देशों ने ही इसे मान्यता दी है.
दुम्बात्से ने एक हरे तालाब की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह पारिस्थितिक आपदा है. वे लोग इसी तालाब की पानी का इस्तेमाल करते हैं. उनका मानना है कि लैंडफिल की वजह से ही यहां के जल स्रोत प्रदूषित हो गए हैं. यहां के बच्चे अक्सर बीमार रहते हैं.
देश में सालाना 11 लाख 17 हजार 396 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है. यह कचरा 33 लैंडफिल और 1,100 अवैध और अनियमित डंप साइटों के बीच डंप कर दिया जाता है. पिछले साल अदजारा के आसपास के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र से 83,838 टन कचरा गोनियो पर डंप किया गया था. यह काम बटुमी नगरपालिका की देख-रेख में किया जाता है.
विश्व बैंक के अनुसार, गोनियो वर्तमान में जॉर्जिया में सबसे बड़ा और सबसे खतरनाक डंपसाइट है. यहां न तो कचरे का उचित प्रबंधन किया जाता है और न ही यह यूरोपीय संघ के स्वच्छता मानकों के अनुरूप है.
कुछ दशक पहले, 70 वर्षीय नतेला बेरिद्से और उनके पति गाय पालते थे और खेती करते थे. जब से लोगों ने गोनियो पर कचरा डालना शुरू किया, खेती होनी बंद हो गई. जमीन और पानी, दोनों जहरीला हो गये. बेरिद्से कहती हैं, "किसी ने हमारी मदद नहीं की. हमने जिंदगी जीने के लिए मजबूरन कचरा बीनने का काम शुरू किया.”
स्वतंत्र पारिस्थितिकीविद् और अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ काखा गुचमानिद्से कहते हैं, "गोनियो लैंडफिल इस इलाके के मुख्य प्रदूषकों में से एक है. यह हवा, मिट्टी, और समुद्र को प्रदूषित करता है. यहां कचरे के निपटारे के लिए कभी भी उचित प्रबंधन नहीं किया गया. यहां तक कि बाड़ भी नहीं लगाई गई.”
इस इलाके के पास ही चोरोखी डेल्टा मौजूद है. यह डेल्टा प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है. काला सागर के जरिए दूसरे जगहों पर जाने वाले समुद्री जीवों का ठिकाना है लेकिन यहां भी जहरीला पानी रिसता हुआ पाया गया है.
उचित प्रबंधन नहीं होने की वजह से लैंडफिल जलवायु पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं. कार्बनिक अपशिष्ट के विघटित होने पर उत्पन्न गैस में 40-60% मीथेन होता है. यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए काफी अधिक हानिकारक है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, जैविक कचरे का विघटन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 5% का योगदान देता है.
लैंडफिल सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंता का भी विषय है. सैकड़ों लोग लैंडफिल पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं. उनके पास न तो किसी तरह का सुरक्षा उपकरण होता है और न ही स्वास्थ्य बीमा.
मिर्जा इस लैंडफिल पर बोतलें, धातु, एल्यूमीनियम, और तांबे खोजते हैं. वह इन कचरों को बटुमी में रीसाइक्लिंग कंपनी को 5.45 यूरो (करीब 458 रुपया) प्रति बैग के हिसाब से बेचते हैं. वह कहते हैं, "यह बहुत ही खतरनाक काम है.” यहां काम करने वाले कई लोग अक्सर जहरीले कचरे से जख्मी हो जाते हैं. उनकी तबीयत काफी खराब हो जाती है.
अदजारा के वित्त और अर्थव्यवस्था मामलों के उप-मंत्री टॉर्निके कुचावा ने कहा, "लैंडफिल पर स्वच्छता से जुड़े किसी मानक का पालन नहीं किया जाता है. इसे जल्द से जल्द बंद करना काफी जरूरी है.” उन्होंने पुष्टि की कि काला सागर में जहरीला पानी रिस रहा है और खाने वाले सामान भी जहरीले हो सकते हैं.
यूनिसेफ ने 2019 में बताया कि अदजारा क्षेत्र के 80% बच्चों के खून में खतरनाक रूप से लेड का स्तर बढ़ गया है. इसके पीछे की वजह देश में लैंडफिल जैसी खतरनाक साइटें बताई गई थीं.
2009 में अदजारा की सरकार ने गोनियो डंपसाइट को बंद करने की योजना की घोषणा की. 2015 में, इसके पुनर्निर्माण और विकास के लिए यूरोपीय बैंक से 3 मिलियन यूरो और स्वीडिश अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी से 4 मिलियन यूरो प्राप्त हुआ, ताकि कचरे के निपटारे के लिए ठोस व्यवस्था बनाई जा सके.
कुचावा के अनुसार, बटुमी से लगभग 45 किलोमीटर उत्तर में त्सत्स्खलौरी में नई साइट निर्माणाधीन है और 2022 में खुलेगी. वहां यूरोपीय संघ के मानकों का पालन किया जाएगा. जैसे, मीथेन गैस को संग्रहित करने के लिए अलग से इकाई तैयार की जाएगी.
कचरा प्रबंधन केंद्र सरकार के हरित विकास के वादे का महत्वपूर्ण हिस्सा है. जॉर्जिया ने प्रतिबद्धता जताई है कि वह यूरोपीय संघ के लक्ष्यों की तरह ही 2025 तक 50 प्रतिशत प्लास्टिक कचरों को रिसाइक्लिंग करने लगेगा और 2030 तक 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरों को.
2019 के बाद से, जॉर्जिया में सभी नगर पालिकाओं के लिए अलग-अलग तरह के कचरे को अलग-अलग जमा करना अनिवार्य कर दिया गया है. हालांकि, पारिस्थितिक विज्ञानी गुचमानिद्से के मुताबिक, अभी यह बात सिर्फ कागजों में है. जमीन पर इसका पालन नहीं हो रहा है. वह कहते हैं, "कचरे का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए, नियमों में लगातार बदलाव होते रहना चाहिए. तब जाकर बेहतर समाधान हो पाएगा.”
वहीं, मिर्जा को लगता है कि रीसाइक्लिंग से ज्यादा लाभ है. उन्हें डर है कि नए लैंडफिल के चालू होने से उनकी आय खत्म हो जाएगी क्योंकि नया लैंडफिल मौजूदा जगह से काफी दूर है. वह खतरनाक होने के बावजूद लैंडफिल पर काम करते रहना चाहते हैं.
दुम्बात्से को भी आधिकारिक वादों पर काफी कम भरोसा है. वह कहते हैं कि कोई भी इस लैंडफिल पर काम करने वालों से बात करने नहीं आया है. अदजारा में वित्त और अर्थव्यवस्था मंत्रालय के एक प्रवक्ता के मुताबिक, गोनियो लैंडफिल पर रहने वाले दुम्बात्से जैसे लोग सरकारी योजनाओं में शामिल नहीं हैं या मुआवजे के हकदार नहीं हैं.
कचरे के ढेर पर जगह-जगह आग लगी हुई है. बदबूदार धुंआ निकल रहा है. उसी कचरे के ढेर पर मिर्जा के बगल में मौजूद दुम्बात्से कहते हैं, "हम बिना किसी सुविधा के अपनी जिंदगी जीते रहेंगे. इसी कूड़े के ढेर पर जिंदगी गुजार लेंगे.” (dw.com)
उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस अमेरिका की ऐसी पहली महिला बन गई हैं, जिन्हें थोड़े समय के लिए राष्ट्रपति की शक्तियां दी गईं. दरअसल, ये शक्तियां राष्ट्रपति जो बाइडन के रेगुलर हेल्थ चेकअप कराने के दौरान दी गईं.
57 वर्षीय हैरिस को 85 मिनट के लिए राष्ट्रपति की शक्तियां दी गई थीं, जिस समय शुक्रवार को बाइडन अपने रूटीन कोलोनोस्कॉपी (आंतों की जांच) के दौरान एनेस्थीसिया में थे.
व्हाइट हाउस ने बताया है कि डेमोक्रेट नेता बाइडन ने संसद के नेताओं को स्थानीय समयानुसार सुबह 10.10 बजे शक्तियों के हस्तांतरण के बारे में सूचित किया और फिर वापस 11.35 बजे उन्होंने शक्तियों को वापस ले लिया.
बाइडन के डॉक्टर ने ऑपरेशन के बाद बयान जारी किया और कहा कि बाइडन अब स्वस्थ हैं और अपने कार्यभार को संभालने में सक्षम हैं.
यह मेडिकल जांच राष्ट्रपति के 79वें जन्मदिन की शाम को वॉशिंगटन के बाहर वॉल्टर रीड सैन्य अस्पताल में हुई थी.
वो ऐसी पहली महिला और पहली काली और दक्षिण एशियाई अमेरिकी महिला हैं जो अमेरिका के उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनी गई हैं. अमेरिकी लोकतंत्र के 250 साल लंबे इतिहास में आज तक कोई भी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है.
अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन के अंदर राष्ट्रपति की शक्तियों के हस्तांतरण की प्रक्रिया दर्ज है. यह तब हो सकता है, जब राष्ट्रपति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में सक्षम न हो.
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि इन परिस्थितियों में शक्तियों का अस्थायी ट्रांसफ़र अभूतपूर्व नहीं था और अमेरिकी संविधान के हिसाब से यह प्रक्रिया का हिस्सा है.
उन्होंने अपने बयान में कहा, "साल 2002 और 2007 में इसी प्रक्रिया को अपनाया गया था, जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश अमेरिका के राष्ट्रपति थे."
राष्ट्रपति जब व्हाइट हाउस लौटे तो वो मुस्कुरा रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा, "मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं."
राष्ट्रपति बाइडन के डॉक्टर केविन ओ'कोनर ने कहा, "राष्ट्रपति बाइडन स्वस्थ और ऊर्जावान बने हुए हैं, 78 वर्षीय बाइडन राष्ट्रपति के कार्यभार को सफलतापूर्वक संभालने के लिए सक्षम हैं."
राष्ट्रपति की मेडिकल जांच में क्या पाया गया
राष्ट्रपति के डॉक्टर ने कहा कि कोलोनोस्कॉपी के दौरान एक 'बिनाइन पॉलिप' पाई गई, जिसे आसानी से निकाल दिया गया.
ओ'कोनर ने कहा कि राष्ट्रपति की चाल में पहले की तुलना में 'प्रत्यक्ष रूप से थोड़ी सख़्ती है.' उनका कहना था कि यह उम्र बढ़ने के साथ उनकी रीढ़ की हड्डी के कारण है.
बाइडन अमेरिका के सबसे उम्रदराज़ राष्ट्रपति हैं और उन्होंने अपना अंतिम पूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण दिसंबर 2019 में कराया था.
ऐसे अनुमान भी लगाए जाते रहे हैं कि इतनी उम्र होने के बाद बाइडन 2024 में राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनाव लड़ेंगे. इसको लेकर ख़ुद बाइडन भी उम्मीद जता चुके हैं.
बाइडन ने देश के लोगों से वादा किया था कि वो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में अपने स्वास्थ्य की जानकारियों को लेकर अधिक पारदर्शी रहेंगे.
साल 2019 में रिपब्लिकन नेता ट्रंप वॉल्टर रीड अस्पताल पहुँचे थे और उस समय की प्रेस सेक्रेटरी स्टेफ़नी ग्रीशम ने बताया था कि वो अज्ञात कारणों से अस्पताल गए थे. हालांकि, बाद में यह साफ़ किया गया कि ट्रंप कोलोनोस्कॉपी के लिए गए थे.
ट्रंप के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जब जवाल उठे तो उनके डॉक्टर ने उनके स्वास्थ्य को लेकर सवालों के जवाब दिए थे.
राष्ट्रपति बाइडन के डॉक्टर ने उनकी मेडिकल रिपोर्ट जारी करते हुए यह बताया है कि वो 'स्वस्थ, ऊर्जावान' हैं और 'राष्ट्रपति के पदभार की ज़िम्मेदारियां संभालने में पूरी तरह फ़िट हैं.'
बेलारूस के नेता अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने बीबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में कहा कि यह बिल्कुल संभव है कि उनकी सेना ने प्रवासियों को पोलैंड में दाख़िल होने में मदद की.
हालांकि उन्होंने इस बात से इनकार किया कि प्रवासियों को इसके लिए आमंत्रित किया गया था.
बेलारूस के नेता लुकाशेंको पहले भी इस दावे से इनकार करते रहे हैं कि बेलारूस यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का बदला लेने के लिए सीमा पर प्रवासियों को भेज रहा है.
हज़ारों की संख्या में प्रवासी जिनमें मुख्य रूप से मध्य-पूर्व के शणार्थी शामिल है,बेलारूस के रास्ते पोलैंड में दाख़िल होने की कोशिश कर रहे हैं.
एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में लुकाशेंको ने बीबीसी से कहा कि "हम स्लाव हैं. हमारे पास दिल है. हमारे सैनिकों को पता है कि प्रवासी जर्मनी जा रहे हैं."
उन्होंने कहा, "हो सकता है कि किसी ने उनकी मदद की हो और असल में अगर किसी ने ऐसा किया भी है तो भी मैं इस पर ग़ौर नहीं करूंगा."
यूरोपीय संघ, नेटो और अमेरिका ने बेलारूस पर प्रवासियों को लुभाने का आरोप लगाया है. हालांकि बेलारूस के नेता ऐसे किसी भी आरोप को निराधार बताते हैं.
बीबीसी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “मैंने यूरोपीय संघ से कहा है कि मैं सीमा पर मौजूद प्रवासियों को हिरासत में नहीं लेने जा रहा हूँ, या तो मैं उन्हें बॉर्डर पर ही रोके रखने भी नहीं जा रहा क्योंकि वे मेरे देश में नहीं आ रहे हैं, वे आपके देश जा रहे हैं.”
“हां, लेकिन यह ज़रूर है कि मैंने उन्हें न्योता देकर यहाँ नहीं बुलाया है. अगर वास्तविक तौर पर कहूँ तो मैं नहीं चाहता कि वे बेलारूस के रास्ते से होकर जाएं.”
लुकाशेंको साल 1994 से सत्ता में हैं लेकिन पिछले साल जब वह एक बार फिर राष्ट्रपति के रूप में चुनकर आए तो पश्चिमी देशों ने उनकी काफ़ी आलोचना की थी और यूरोपीय संघ ने मान्यता नहीं दी थी.
हज़ारों प्रदर्शनकारियों और विपक्षी कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया. विपक्ष की नेता स्वेतलाना तिखानोव्सकाया को जीत का दावा करने के साथ ही बेलारूस से बाहर कर दिया गया.
स्वेतलाना की टीम ने शुक्रवार को लिए गए इस साक्षात्कार के लिए बीबीसी की निंदा भी की है. अपनी आलोचना में उनकी ओर से कहा गया कि यह इंटरव्यू एक तानाशाह को रास्ता मुहैया कराने जैसा है.
बाद में स्वेतलाना की ओर से बीबीसी को कहा गया कि इस इंटरव्यू ने लुकाशेंको के झूठ और प्रोपेगेंडा के प्रचार के लिए मंच देने का काम किया है.
राष्ट्रपति भवन में इस इंटरव्यू के दौरान बेलारूस के नेता से जब शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों को मारे-पीटे जाने का सवाल किया और इस घटना से संबंधित एक वीडियो दिखाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा- ठीक है, ठीक है. मैं इसे मानता हूं.
उन्होंने आगे कहा कि – आपने ओक्रेस्टिना डिटेंशन सेंटर में लोगों को मारा गया. लेकिन वहां पुलिस को भी मारा-पीटा गया और आपने वह नहीं दिखाया.
जमा देने वाली ठंड में फँसे प्रवासी
प्रवासियों में से ज़्यादातर युवक हैं, लेकिन इनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, ज़्यादातर लोग मध्य-पूर्व और एशिया से हैं और वे बेलारूस के सीमावर्ती इलाक़े में तंबू में डेरा डाले हुए हैं. इनके एक तरफ़ पोलिश गार्ड और दूसरी तरफ बेलारूस के गार्ड हैं, ये लोग दोनों के बीच फँसे हुए हैं.
सीमा पर रात में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और हाल के हफ़्तों में यहाँ कई लोगों की मौत हो चुकी है. (bbc.com)
जिस इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर भारत में विपक्षी पार्टियां तमाम तरह के सवाल उठाती हैं अब पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार उसी ईवीएम को अपने यहाँ के चुनावों में अपनाने जा रही है.
विपक्ष के कड़े विरोध के बीच पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार बुधवार को संसद के संयुक्त सत्र में चुनाव सुधार विधेयक (संशोधन) 2021 पारित करने में कामयाब रही.
इस क़ानून के तहत पाकिस्तान के आगामी चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा और विदेश में रहने वाले पाकिस्तानियों को इंटरनेट के ज़रिए मतदान का अधिकार मिलेगा.
इन नए विधेयक के पास होने के बाद विपक्षी पार्टी के नेताओं ने सदन में ख़ूब हंगामा और वॉकआउट किया. इसके बाद सभी विपक्षी दलों के नेता भविष्य की कार्रवाई पर विचार करने के लिए नेता प्रतिपक्ष शहबाज़ शरीफ़ के कमरे में एकत्रित हुए.
संसद भवन के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए, शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि ये दिन "संसद के इतिहास में सबसे काले दिन" के रूप में याद किया जाएगा.
जमात-ए-इस्लामी के आमिर सिराजुल हक़ ने कहा कि नए क़ानून "अगले चुनाव में चोरी करने" के लिए पारित किए गए.
संयुक्त सत्र 11 नवंबर को बुलाया जाना था, लेकिन इमरान सरकार ने विपक्ष की नाराज़गी को देखते हुए और अपने सहयोगियों की आपत्ति के कारण इसे रद्द कर दिया था.
हालांकि, सभी सहयोगियों को साथ लाने के बाद, राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने बुधवार दोपहर को सत्र की बैठक बुलाई.
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष, बिलावल भुट्टो-ज़रदारी ने भी अपने पिता आसिफ़ अली ज़रदारी के साथ सत्र में भाग लिया.
संसद में विधेयक के पारित होने के बाद, योजना मंत्री असद उमर ने विपक्ष पर तंज़ कसते हुए ट्वीट किया कि- हफ़्तों तक इस संयुक्त बैठक के ज़रिए सरकार गिराने का ख़ूब शोर किया गया लेकिन वे शायद भूल गए कि 'इज़्ज़त और अपमान अल्लाह के हाथ में होता है'.
विपक्ष ने विधेयक को पास कराने के लिए की गई वोटिंग में धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. विपक्ष ने तर्क दिया कि नेशनल असेंबली, 2007 के नियमों के अनुसार, सरकार को संयुक्त सत्र में विधेयक पारित कराने के लिए नेशनल असेंबली और सीनेट की कुल सदस्यता के बहुमत की आवश्यकता होती है, जो संख्या 222 है.
हालांकि, सरकार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार, किसी विधेयक को पारित कराने के लिए संयुक्त बैठक के दौरान उपस्थित सदस्यों के आम बहुमत की आवश्यकता होती है.
नेशनल असेंबली के स्पीकर असद क़ैसर ने फैसला सुनाया कि ये वोटिंग संविधान संगत है.
स्पीकर और सरकार ने मिलकर संसद के नियमों की धज्जियां उड़ाईं- विपक्ष
सदन के बाहर मीडिया से बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि नियमों की उपेक्षा कर ये विधेयक पारित कराया गया.
शरीफ़ ने कहा, ''स्पीकर साहब ने मुझसे कहा था कि मैं अपनी पार्टी (पीटीआई) लाइन से अलग अपने विचार रखूंगा और निष्पक्ष रहूंगा लेकिन उन्होंने इसके ठीक उलट काम किया. हमने उनसे कहा कि आप ग़लत कर रहे हैं लेकिन वो नहीं माने.''
''बतौर नेता प्रतिपक्ष ये मेरा अधिकार है कि मैं प्वाइंट ऑफ़ एक्शन पर बात करूं लेकिन मेरी तमाम गुजारिशों के बाद भी उन्होंने मेरे माइक की आवाज़ बंद कर दी.
''पीटीआई और स्पीकर के गठजोड़ ने सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाईं.''
उन्होंने कहा, ''उनके वोट की गिनती ग़लत है, हमने स्पीकर से कहा कि वोट काउंट ग़लत है. उनके पास इतने सदस्य मौजूद ही नहीं हैं, लेकिन उन्होंने नहीं सुना और 221 वोटों पर अड़े रहे.''
''संयुक्त सत्र के नियम 10 के मुताबिक़ बहुमत के लिए कम से कम 222 वोट होने चाहिए वो सरकार के पास नहीं थे, हमारे नियमों का हवाला देने के बाद भी स्पीकर मनमानी करते रहे.''
''आज पाकिस्तान के लिए काला दिन है. उस ईवीएम को देश में लाया जा रहा है, जिसे चुनाव आयोग ख़ारिज कर चुका है. दुनिया के कितने देशों ने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया है, केवल आठ देश हैं जो इसे इस्तेमाल करते हैं. हम तो पहले ही आरटीएस (रिज़ल्ट ट्रांसमिशन सिस्टम) से परेशान हैं. इसने देश में एक जाली हूक़ूमत को सत्ता में बैठा दिया है. महंगाई से पाकिस्तान के 22 करोड़ लोगों की कमर टूट चुकी है, अब ये सरकार ईवीएम को हमारे ऊपर थोपना चाह रही है. स्पीकर ने क़ानून-क़ायदों को पांव तले रौंद कर बिल पास करवाया.''
''निराश होकर हमने वॉकआउट किया और मीडिया के पास आए हैं ताकि लोगों को बता सकें कि आवाम की किस्मत के साथ कैसे खिलवाड़ किया गया है.''
वोटिंग से पहले सदन में नेता प्रतिपक्ष शहबाज़ शरीफ़ ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार ने ये सत्र बुलाने में देरी की क्योंकि उसके पास महत्वपूर्ण विधेयकों पर वोट हासिल करने के लिए बहुमत नहीं था.
शहबाज़ ने कहा, "अगर आज संशोधन के ज़रिए इन क़ानूनों को बर्बाद कर दिया गया तो देश और इतिहास नेशनल असेंबली के अध्यक्ष को माफ़ नहीं करेगा."
इसके जवाब में, स्पीकर असद क़ैसर ने कहा कि वह सत्र के दौरान नियमों का उल्लंघन नहीं होने देंगे.
उन्होंने सदन को सर्वसम्मति का महत्व याद दिलाते हुए कहा कि ''राष्ट्रीय कार्य योजना सहित सभी महत्वपूर्ण क़ानूनों को सभी की सहमति के माध्यम से हासिल किया गया था.''
शहबाज़ शरीफ़ ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को 'ईविल एंड विशियस' यानी 'बुरी और शातिर मशीन' बताया और कहा कि सरकार ने चुनावी संशोधनों पर आम सहमति बनाने के लिए ईमानदार कोशिश नहीं की.
शहबाज़ ने कहा कि सरकार और उसके सहयोगी महत्वपूर्ण विधेयकों को बर्बाद करना चाहते हैं. ये "ग़ैर-क़ानूनी" और संसद की परंपराओं के विपरीत है.
शहबाज़ शरीफ़ ने नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद क़ैसर को एक पत्र लिखकर बिलों को सर्वसम्मति के बिना पारित करने में जल्दबाज़ी को लेकर अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी.
उन्होंने कहा कि ''शुरू में इस संयुक्त सत्र में देरी हुई क्योंकि सरकार ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ चर्चा करेगी.''
''अध्यक्ष महोदय आपने मुझे और पूरे संयुक्त विपक्ष को एक पत्र भेजा, जवाब में मैंने सुझाव और अपना व्यापक जवाब भेजा लेकिन हमें आपसे कोई जवाब नहीं मिला.''
सरकार की विपक्ष के साथ चर्चा के प्रस्ताव पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ''ये अधिक समय पाने की सरकार की 'चाल' थी ताकि सरकार ज़रूरी वोट जुटा सके. इस मुद्दे पर चर्चा करने का सरकार का कोई इरादा नहीं था."
उन्होंने कहा कि ''चुनाव के दौरान हमेशा धांधली के आरोप लगते रहते हैं. यह इतिहास में पहली बार है जब चुनाव से पहले धांधली के आरोप लगे हैं.''
उन्होंने दावा किया कि "चुनी गई सरकार" ईवीएम लाना चाहती है क्योंकि वह अब लोगों से वोट मांगने की स्थिति में नहीं है.
शहबाज़ ने स्पीकर से संयुक्त सत्र स्थगित करने को कहा ताकि चुनावी संशोधन के मामले पर "व्यापक चर्चा" हो सके.
उन्होंने कहा, ''पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) जो देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने के लिए ज़िम्मेदार है, उसने भी अतीत में ईवीएम को लेकर आपत्ति जताई थी. इसके बावजूद सरकार इन क़ानूनों को पारित करना चाहती है.''
''जिस पार्टी ने कभी लोकतंत्र, पारदर्शिता और बदलाव की बात की थी, वह अब 'काला क़ानून' पारित करना चाहती है.''
शाहबाज़ ने स्पीकर क़ैसर को संबोधित करते हुए कहा, ''यदि आप इस काले क़ानून को पारित होने देंगे, तो इससे पाकिस्तान को भारी नुक़सान होगा जिसके ज़िम्मेदार आप और सत्ता दल दोनों होंगे. "
शहबाज़ ने यह भी कहा कि कई देश ईवीएम को पूरी तरह ख़ारिज कर चुके हैं.
सरकार को आर्थिक मोर्चों पर फेल बताते हुए उन्होंने कहा, ''सरकार इस मुद्दे पर जितनी ऊर्जा लगा रही है उतनी ही ऊर्जा मुद्रास्फीति से निपटने में लगाती तो हमें अंतर दिखता. लेकिन उन्हें उसकी चिंता नहीं हैं. उन्हें केवल लोगों के वोट हासिल किए बिना सत्ता में बने रहने की चिंता है.''
'ये काला क़ानून नहीं, कालेपन को मिटाने वाला क़ानून है'
विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने सदन में अपने भाषण की शुरुआत इसे "ऐतिहासिक दिन" बताते हुए की. उन्होंने कहा कि इससे चुनावी प्रक्रिया "और भी पारदर्शी" बनेगी.
अपने विपक्षी शहबाज़ शरीफ़ पर निशाना साधते हुए उन्होने कहा, ''शहबाज़ ने कहा कि सरकार काला क़ानून लाना चाहती है. बिल्कुल नहीं, सरकार अतीत के कालेपन को धोना चाहती है.''
मंत्री ने कहा कि सरकार क़ानून को बर्बाद नहीं करना चाहती है, हमने विपक्षी सदस्यों से परामर्श किया था ताकि उनकी सुझावों को बिल में शामिल किया जा सके लेकिन "आपने तो ध्यान ही नहीं दिया."
क़ुरैशी ने उस आरोप को भी ख़ारिज कर दिया कि सरकार ने संख्या के अभाव में पहले सत्र रद्द किया था. उन्होंने कहा, "अगर हमारे पास नंबर नहीं होते तो हम आज ये बिल कैसे पेश कर पाते? सरकार में एकजुटता है और हमारे सहयोगी हमारे साथ खड़े हैं."
सदन में किसके पास कितने नंबर
दोनों सदनों में सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगियों के पास कुल 221 वोट हैं, जिनमें 179 वोट नेशनल असेंबली और 42 वोट सीनेटर से हैं.
दूसरी ओर, विपक्ष के पास कुल 219 वोट हैं, जिनमें 162 वोट नेशनल असेंबली और 57 वोट सीनेटर के हैं.
नेशनल असेंबली में कुल 341 सीट हैं, जिनमें से एक सीट ख़ाली है और सीनेट के 99 सदस्यों में से एक सीट निलंबित है. इस तरह कुल मिलाकर 440 वोट दोनों सदनों के पास है.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, पीटीआई के पास 156 असेंबली सदस्य और 27 सीनेटर हैं, जो कुल मिलाकर 183 हैं. इसकी सहयोगी पार्टी एमक्यूएम-पी के पास सात असेंबली सदस्य और तीन सीनेटरों के साथ कुल 10 वोट हैं. बीएपी के पास पाँच असेंबली सदस्य और नौ सीनेटरों के साथ कुल 14 वोट हैं.
पीटीआई की ही सहयोगी पीएमएल-क्यू के पास पाँच असेंबली सदस्य और एक सीनेटर के साथ छह वोट है. जीडीए के पास तीन असेंबली सदस्य और एक सीनेटर के कुल चार वोट हैं और एक-एक सदस्य जेडब्ल्यूपी, एएमएलपी के पास हैं. इसके अलावा एक निर्दलीय सदस्य का वोट भी पीटीआई के समर्थन में है. इस तरह दोनों सदनों में कुल 221 वोट इमरान ख़ान सरकार के पास रहे.
वहीं विपक्ष की बात करें तो पीएमएल-एन के पास 83 वोट असेंबली सदस्यों के हैं और 16 सीनेटरों के वोट हैं, जिनकी संख्या कुल मिलाकर 99 हैं. पीपीपी के पास 56 असेंबली सदस्य और 21 सीनेटर हैं और इस तरह कुल 77 वोट हैं.
एमएमएपी (जेयूआई-एफ़) के पास 15 असेंबली सदस्य और पाँच सीनेटर हैं जो कुल 20 हुए. बीएनपी-एम के पास चार असेंबली सदस्यों और दो सीनेटरों के साथ छह वोट हैं. एएनपी में एक असेंबली सदस्य और दो सीनेटर हैं.
जमात-ए-इस्लामी में एक सीनेटर है. पीकेएमएपी और एनपी में दो-दो सीनेटर हैं और तीन असेंबली सदस्य हैं. इसके अलावा दिलावर खान के छह सीनेटरों के साथ दोनों सदनों के मिलाकर कुल विपक्षी वोटों की संख्या 219 रही. (bbc.com)
नई दिल्ली, 19 नवंबर| पाकिस्तान की कानून और न्याय की संसदीय सचिव मलीका बोखारी ने शुक्रवार को खुलासा किया कि आदतन दुष्कर्मियों के 'रासायनिक बधियाकरण' के प्रावधान को आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 से हटा दिया गया है। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कानून मंत्री फारोग नसीम के साथ, बोखारी ने काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई) द्वारा उठाई गई आपत्तियों के आलोक में कहा कि सीआईआई ने दुष्कर्मियों के लिए रासायनिक बधिया की सजा पर आपत्ति जताई थी और इसे गैर-इस्लामिक बताया।
बुधवार को संसद के संयुक्त सत्र में पारित होने से पहले इस खंड को बाद में विधेयक से हटा दिया गया था, बोखारी ने कहा, "संविधान का अनुच्छेद 227 यह भी गारंटी देता है कि सभी कानून शरिया और पवित्र कुरान के तहत होने चाहिए, इसलिए हम कोई कानून पारित नहीं कर सकते, जो इन मूल्यों के खिलाफ जाता हो।"
उन्होंने कहा कि कानून मंत्री के मार्गदर्शन में एक सरकारी समिति द्वारा विस्तृत विचार-विमर्श के बाद चूक की गई।
दुष्कर्म विरोधी (जांच और परीक्षण) विधेयक, 2021 के बारे में, नेशनल असेंबली (एमएनए) के सदस्यों ने कहा कि पिछले कानून में खामियां थीं जो पीड़ितों को न्याय के प्रावधान में बाधा डालती थीं, इसलिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक नया कानून पेश किया गया था। (आईएएनएस)