अंतरराष्ट्रीय
-भवेश सक्सेना
चीन के मीडिया की मानें तो चीन के कंट्रोल वाली असेट मैनेजमेंट फर्म हुआरोंग के प्रमुख रहे शीर्ष असेट बैंकर लाई शायोमिन को हाल में मौत के घाट उतार दिया गया. इससे पहले 8 जनवरी को हू हुआईबेंग को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. हू चीन विकास बैंक के पूर्व चेयरमैन रहे. यह वही बैंक है जो चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के लिए फंड का सबसे बड़ा स्रोत रहा. खास बात यह है कि ये दोनों ही सज़ाएं भ्रष्टाचार के मामलों में दी गईं. भ्रष्टाचार के लिए मौत की सज़ा देने पर चर्चा के बीच जानिए कि किन देशों में ऐसे प्रावधान हैं और भारत में क्या रुख है.
इससे पहले आपको जान लेना चाहिए कि चीन में लाई को रिश्वतखोरी के जिस केस में मौत की सज़ा दी गई, वो क्या है. लाई पर पिछले दस सालों के दौरान करीब 26 करोड़ डॉलर की रिश्वत लेने के आरोप थे. कोर्ट ने इसे ‘बेहद दुर्भावनापूर्ण इरादा’ करार देकर 5 जनवरी को मौत की सज़ा सुनाई थी. लेकिन चीन इकलौता देश नहीं है, जो भ्रष्टाचार के मामले में मौत की सज़ा देता है.
सज़ा-ए-मौत के लिए बदनाम रहा चीन
पहले आंकड़ों की ज़ुबानी बात करें तो चीन दुनिया में सबसे बड़ा ‘मृत्युदाता’ सिस्टम है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक चीन में मौत की सज़ा संबंधी डेटा को गोपनीय रखा जाता है इसलिए यहां वास्तविक आंकड़ों का सिर्फ अनुमान ही लग पाता है. उदाहरण के तौर पर एमनेस्टी ने 2019 में 20 देशों में 657 मौत की सज़ाओं का आंकड़ा बताते हुए कहा कि इसमें चीन में दिए गए हज़ारों मृत्युदंड शामिल नहीं किए गए.
चीन में कनविक्शन की दर 99 फीसदी है. मौत की सज़ा को लेकर पारदर्शिता के दावे खोखले साबित होते रहे हैं. साथ ही, भ्रष्टाचार के मामलों में मौत की सज़ा देना चीन में नई बात नहीं है. कई शहरों के उप मेयर रहे शू माइयोंग को 2011 में मौत की सज़ा दी गई थी और कहा गया था कि शू पर 5 करोड़ डॉलर की रिश्वतखोरी के इल्ज़ाम सही पाए गए. 2007, 2008 और 2010 में भी रिश्वत के केसों में आरोपियों को मारे जाने के मामले चर्चित रहे थे.
चीन के नक्शे-कदम पर उत्तर कोरिया
नॉर्थ कोरिया में जबसे शासन किम जोंग उन के हाथों में गया है, तबसे मौत की सज़ा को लेकर गोपनीयता बढ़ गई है. ताज्जुब की बात तो यह है कि नॉर्थ कोरिया में दिए गए मृत्युदंड के बारे में जानने के लिए दक्षिण कोरिया के सूत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
उत्तर कोरिया में सज़ा-ए-मौत का सबसे विवादास्पद केस 2013 में चांग सोंग थएक की मौत का था. किम के अंकल कई अहम पदों पर रहे थे और कहा गया था कि भ्रष्टाचार के आरापों के चलते उन्हें मार डाला गया. इसी तरह, दक्षिण कोरियाई सूखें ने ही बताया था कि 2015 में जनरल प्योन को भी करप्शन के आरोपों के चलते ही मौत दी गई. 2015 में करीब 50 अधिकारी करप्शन से लेकर दक्षिण कोरिया टीवी सीरियल देखने के आरोपों के चलते मार डाले गए थे.
इराक का कुख्यात केस
एमनेस्टी ने लिखा कि चीन के अलावा सबसे ज़्यादा मौत की सज़ा के मामले जिन देशों में रहे, उनमें इराक, ईरान, इजिप्ट और सऊदी अरब में रहे. इराक में भ्रष्टाचार के मामले में मौत दिए जाने का सबसे बदनाम केस 2010 का था जब अली हसन अल मजीद उर्फ केमिकल अली को मार डज्ञला गया था. केमिकल अली पर कई संगीन आरोपों के साथ ही खुल्लम खुल्ला करप्शन के आरोप प्रमुख थे.
ईरान भी गुपचुप देता है मौत
ईरान ह्यमन राइट्स के मुातबिक 2013 में जबसे हसन रूहानी प्रेसिडेंट बने, तबसे हज़ारों लोगों को मौत की सज़ा दी जा चुकी है. हालांकि सरकारी अधिकारियों को बड़े गुपचुप ढंग से मौत की सज़ा दी जाती है और इन केसों का खुलासा नहीं किया जाता. करप्शन तो है ही, ईरान में मौत की सज़ा का कारण सरकार के खिलाफ अफवाह फैलना भी हो सकता है.
यहां भी करप्शन की सज़ा मौत!
इंडोनेशिया ने 2013 से मौत की सज़ा को फिर लागू किया. यहां करप्शन के गंभीर मामलों में मौत की सज़ा देने का कानून है. थाईलैंड में रिश्वतखोरी के लिए मौत की सज़ा विदेशी अधिकारियों तक को दी जा सकती है, लेकिन अब तक ऐसा कोई केस नहीं रहा है. वियतनाम में अगर भ्रष्टाचार करीब 13 हज़ार डॉलर से ज़्यादा का हो तो सज़ा-ए-मौत मिल सकती है.
मोरक्को, फिलीपीन्स, लाओस और म्यांमार भी इस लिस्ट में हैं, जहां भ्रष्टाचार के मामलों में मौत की सज़ा मुमकिन है. अब आपको बताते हैं कि इस मामले में भारत का रुख क्या है.
भारत में क्या कहता है कानून?
करप्शन के मामले में भारत में मौत की सज़ा दिए जाने जैसा कोई केस अब तक नहीं रहा है. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डरों के घोटाले के एक मामले में साफ कहा था कि ‘हम भ्रष्टाचार के मामले में मृत्युदंड नहीं दे सकते.’ लेकिन, इस विषय में चर्चा रही और कहा जाता रहा कि भारत में भ्रष्टाचार की ज़डें बहुत गहरी हैं इसलिए सख्त कदम उठाने होंगे.
नवंबर 2020 में एडवोकेट सूर्यक्रषम ने सरकारी अधिकारियों द्वारा किसानों से रिश्वत मांगने के आरोप लगाकर जो याचिका दायर की थी, उस पर मद्रास हाईकोर्ट की बेंच ने कहा था कि केंद्र सरकार को चीन, उत्तर कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड व मोरक्को जैसे देशों की तरह रिश्वतखोरी जैसे भ्रष्टाचार मामलों में मौत की सज़ा जैसे सख्त प्रावधान करने के बारे में सोचना चाहिए. (news18.com)
लंदन. चीन द्वारा पिछले साल गर्मियों में सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किए जाने के बाद से हांगकांग से हजारों लोग अपने घर छोड़कर ब्रिटेन पहुंचे गए हैं. इनमें से कुछ लोगों को इस बात का डर है कि लोकतंत्र की मांग वाले प्रदर्शनों का समर्थन करने के कारण उन्हें दंडित किया जा सकता है और कुछ लोगों का कहना है कि उनके जीवन जीने के तरीके और नागरिकों की स्वतंत्रता पर चीन का अतिक्रमण असहनीय हो गया है, इसलिए वे अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की खातिर विदेश जाकर बसने पर मजबूर हैं. इनमें से कई लोग कभी वापस नहीं लौटने का मन बना चुके हैं. कुछ दिन पहले ही चीन ने ब्रिटेन को ओवरसीज पासपोर्ट को मान्यता देने से इनकार कर चुका है.
हांगकांग में व्यावसायी और दो बच्चों की मां सिंडी ने कहा कि वह हांगकांग में आराम से रह रही थीं और वहां उनकी एवं उनके परिवार की कई सम्पत्तियां हैं. उन्होंने कहा कि उनका कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन उन्होंने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बावजूद सब छोड़कर अपने परिवार के साथ ब्रिटेन आने का फैसला किया.
स्वतंत्रता, निष्पक्ष चुनाव, आजादी.. सब छिन गया
लंदन में पिछले सप्ताह पहुंची सिंडी ने कहा, ‘जो चीजें हमारे लिए महत्व रखती हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निष्पक्ष चुनाव, आजादी, सब छीन लिया गया है. यह अब वह हांगकांग नहीं है, जिसे हम जानते थे.’ ब्रिटेन पहुंची हांगकांग की वांग ने अपना पूरा नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि वह हांगकांग से बाहर जल्द से जल्द निकालना चाहती थीं, क्योंकि उन्हें डर था कि बीजिंग उन्हें बाहर जाने से रोक देगा.
ब्रिटेन ने हांगकांग के लिए कर रखी है बड़ी घोषणा
वांग की ही तरह लंदन पहुंचे 39 वर्षीय फैन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यदि आपको पता है, कि कब मुंह बंद करना है, तो आपको हांगकांग में दिक्कत नहीं होगी, लेकिन मैं यह नहीं करना चाहता. मैं यहां कुछ भी कह सकता हूं.’ब्रिटेन ने जुलाई में घोषणा की थी कि वह हांगकांग के 50 लाख लोगों के लिए विशेष आव्रजन मार्ग खोलेगा, ताकि वे ब्रिटेन में रह सकें, काम कर सकें और अंतत: यहां बस सकें.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि यह प्रस्ताव दर्शाता है कि ब्रिटेन हांगकांग के साथ अपने ‘मजबूत संबंधों के इतिहास’ का सम्मान कर रहा है. हांगकांग पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था, लेकिन बाद में इस समझौते के साथ वह 1997 में चीन के अधीन आया कि उसकी पश्चिमी शैली की आजादी और राजनीतिक स्वायत्ता बरकरार रहेगी.
‘ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज’ वीजा के लिए रविवार से आवेदन आधिकारिक रूप से आमंत्रित किए जाएंगे, लेकिन कई लोग पहले की ब्रिटेन पहुंच चुके हैं. पात्र हांगकांग निवासी अभी छह महीने के लिए ब्रिटेन आ सकते हैं, लेकिन रविवार से वे पांच साल तक देश में रहने एवं यहां काम करने के अधिकार के लिए आवेदन कर सकते है. इसके बाद, वे यहां बसने और अंतत: ब्रितानी नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.
हांगकांग को लेकर क्यों चीन से खुलकर दुश्मनी मोल ले रहा ब्रिटेन?
अब ब्रिटेन और चीन में बढ़ी तनातनी
ब्रिटेन सरकार ने कहा कि जुलाई से ‘ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज’ (बीएनओ) दर्जे वाले करीब 7,000 लोग ब्रिटेन पहुंचे हैं. इस बीच, चीन ने कहा है कि वह अब ‘ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज’ पासपोर्ट को वैध यात्रा दस्तावेज अथवा पहचान पत्र के रूप में मान्यता नहीं देगा. चीन का यह बयान हांगकांग के लाखों लोगों को नागरिकता देने की ब्रिटेन की योजना के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ने के बीच आया है.
हांगकांग में चीन ने लागू किया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता झाओ लिजिआन ने शुक्रवार को इस आशय की घोषणा की थी. उन्होंने यह घोषणा ब्रिटेन की इस घोषणा के कुछ घंटों बाद आई कि हांगकांग के लोग बीएनओ वीजा के लिए रविवार से आवेदन लेना शुरू कर देगा. इस योजना के तहत हांगकांग के 54 लाख लोग ब्रिटेन में अगले पांच वर्षों के लिए रहने और काम करने के पात्र हो जाएंगे और उसके बाद वह नागरिकता के लिए आवेदन दे सकते हैं. गौरतलब है कि हांगकांग में लोकतंत्र की मांग को लेकर कई महीने तक प्रदर्शन हुए जिसके बाद चीन ने वहां नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर दिया था. इसके बाद ही ब्रिटेन ने हांगकांग के लोगों को नागरिकता देने की योजना पर बात की थी. (news18.com)
इस्लामाबाद. देर से ही सही लेकिन पाकिस्तान में भी अब कोरोना टीकाकरण का रास्ता साफ होता जा रहा है. पाकिस्तान की इमरान सरकार अभी तक कोरोना टीके का एक भी डोज खरीद तो नहीं पाई है, लेकिन चीन ने उसे 5 लाख डोज मुफ्त में दी है, जिसे लाने के लिए पाकिस्तान से विमान भेजा गया है. चीनी डोज के पहुंचने से पहले पाकिस्तान उस समय गदगद हो गया जब उसके लिए 1.70 करोड़ भारतीय टीके मुफ्त मिलने का रास्ता साफ हो गया. उसे कोवाक्स प्रोग्राम के तहत यह खैरात मिलने जा रही है. पाकिस्तान ने सबसे पहले ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी की ओर से तैयार किए गए टीके कोविशील्ड को ही सबसे पहले आपातकालीन मंजूरी दी, लेकिन इमरान खान की सरकार के खजाने में ना तो इतने रुपए हैं कि वे टीके खरीद सकें और ना ही इतनी हिम्मत की भारत सरकार से टीका मांग ले. हालांकि, पाकिस्तान ने इसे बैकडोर से पाने की कोशिश के तहत राज्य सरकारों और निजी सेक्टर को खरीद की छूट दे दी थी.
इस बीच रविवावर को इमरान खान के विशेष विशेष सहायक (स्वास्थ्य) डॉ. फैसल सुल्तान ने घोषणा की कि अगले महीने (फरवरी) से पाकिस्तान को एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन भी मिलने जा रही है. उन्होंने बताया कि 60 लाख डोज की डिलिवरी मार्च तक हो जाएगी तो जून तक 1.70 करोड़ डोज मिल जाएंगे. असद उमर ने ट्वीट किया, ''कोविड वैक्सीन मोर्चे पर खुशखबरी. कोवाक्स से मिले लेटर में 2021 की पहली छमाही में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 1.70 करोड़ डोज मिलने की बात कही गई है. फरवरी से शुरुआत होने के बाद मार्च तक 60 लाख डोज उपलब्ध हो जाएंगे. हमने 8 महीने पहले कोवाक्स प्रोग्राम पर हस्ताक्षर किए थे.''
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ''यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सिनोफार्मा (चाइनीज वैक्सीन कंपनी) से 5 लाख डोज मिलने के बाद पहली तिमाही में 70 लाख डोज एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के मिलने जा रहे हैं. इन्हें लोगों को मुफ्त में दिया जाएगा. पाकिस्तान में टीकाकरण अगले सप्ताह शुरू होने जा रहा है और सबसे पहले हेल्थकेयर वर्कर्स को टीका लगाया जाएगा.'' (news18.com)
इस्लामाबाद. पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या मामले में आरोपियों की रिहाई को निलंबित करने के सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया है. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को सुनवाई के दौरान पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय से आरोपी को रिहा करने के फैसले को निलंबित करने का अनुरोध किया, ताकि वह इस मामले पर विस्तार से बहस कर सकें. लेकिन शीर्ष अदालत ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.
बता दें, गुरूवार को डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या मामले में अलकायदा आतंकी अहमद उमर सईद शेख और उसके तीन साथियों को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था. इस फैसले पर अमेरिका ने कड़ी नाराजगी जताई थी. पर्ल के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को "न्याय की पूर्ण हत्या" कहा था.
इसके बाद पाकिस्तान ने कहा था कि वो पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अमेरिकी मूल के पत्रकार डेनियल पर्ल के हत्यारों की रिहाई के मामले को रिव्यू करेगा. पाकिस्तानी सरकार ने कहा था कि वो सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए फैसले के संबंध में सिंध प्रान्त के प्रशासन द्वारा चलाई जा रही रिव्यू प्रक्रिया में भाग लेगी. जिस फैसले के तहत 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' के पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या करने वाले हत्यारे उमर सईद शेख और उसके तीन सथियों को रिहा कर दिया गया है.
क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि साल 2002 में पाकिस्तान के शहर कराची में डेनियल पर्ल की हत्या कर दी गई थी. डेनियल पर्ल ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख थे. साल 2002 में डेनियल पर्ल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और अलकायदा के बीच संबंधों पर एक खबर के लिए कराची में जानकारी जुटा रहे थे. इसी दौरान उनका अपहरण कर लिया गया और बाद में उनका सिर कलम करके उनकी हत्या कर दी गई थी. (news18.com)
-फ़्लोरा ड्ररी
म्यांमार सेना ने ऐलान किया है कि उन्होंने देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली है. सेना आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया है.
साथ ही देश के मुश्य शहरों की सड़कों पर सैनिक तैनात कर दिए गए हैं और संचार व्यवस्थाओं पर सीमित रोक लगा दी गई है.
अब से 10 साल पहले सेना ने सत्ता का हस्तांतरण जनता की चुनी हुई सरकार को किया था.
तख्तापलट की ख़बर से देश में एक बार फिर डर का माहौल पैदा हो गया है. साल 2011 में ही यहां पांच दशकों से चले आ रहे दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था. सोमवार तड़के ही आंग सान सू ची और अन्य राजनेताओं की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर देश में नाउम्मीदी के उस दौर को ज़िंदा कर दिया है जिससे ये देश एक बार बाहर निकल चुका था.
सू ची और उनकी एक वक्त की प्रतिबंधित रह चुकी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी ने 2015 में बीते 25 वर्षों में देखे गए सबसे स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के बाद देश का नेतृत्व किया.
सोमवार सुबह पार्टी को अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करना था. लेकिन हुआ कुछ. संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में परदे के पीछे से सेना ने म्यांमार पर कड़ी पकड़ बना रखी थी. इसमें सबसे बड़ा योगदान म्यांमार के संविधान का है जिसमें संसद की सभी सीटों का एक चौथाई हिस्सा सेना के हाथों में रहता है और देश के सबसे शक्तिशाली मंत्रालयों का नियंत्रित करने की गारंटी सेना को देता है.
ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर ये हुआ क्यों? और अब आगे क्या होने वाला है?
संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची सहित राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
'ट्रंप जैसे चुनावी फ्रॉड के दावे'
बीबीसी के दक्षिण एशिया संवाददाता जोनाथन हेड ने बताया है कि सोमवार को म्यांमार की संसद का पहला सत्र होना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बीते साल नवंबर में होने वाले चुनाव में आंग सान सू ची की पार्टी एनएलडी को 80 फ़ीसदी वोट मिले. ये वोट आंग सान सू ची की सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लगने वाले आरोपों के बावजूद मिले.
इन नतीज़ों के बाद सेना के समर्थन प्राप्त विपक्षी पार्टी ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया. इस आरोप को एक बयान की शक्ल देते हुए नए कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने हस्ताक्षर के साथ बयान जारी किया और इसके साथ ही देश में साल भर लंबा आपातकाल लागू हो गया.
म्यांमार के कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने अपने बयान में कहा, "चुनाव आयोग 8 नवंबर को हुए आम चुनाव में वोटर लिस्ट की बड़ी गड़बड़ियों को ठीक करने में असफ़ल रहा है."
लेकिन इस आरोप को साबित करने के लिए उनके पास पुख़्ता सबूत नहीं थे.
ह्यूमन राइट वॉच, एशिया के डिप्टी डायरेक्टर फ़िल रॉबर्टसन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ज़ाहिर तौर पर आंग सान सू ची को चुनाव में बड़ी जीत मिली. लेकिन नतीजे आने के बाद चुनावों में धांधली के आरोप लगाए गए. ये सब कुछ ट्रंप के दावों जैसा लग रहा था जहां आरोपों को साबित करने के कोई सबूत नहीं थे."
नवंबर में हुए चुनावों में सेना के समर्थन वाली यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवेलपमेंट पार्टी (यूएसपीडी) भले ही चुनाव जीतने से पीछे रह गई हो लेकिन इससे सेना का जो संसद में दख़ल है वो कम नहीं होने वाला था. साल 2008 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया जिसके तहत सेना के पास 25 फ़ीसदी सीटों का आधिकार होता है. साथ ही तीन अहम मंत्रालय- गृह, रक्षा और सीमाओं से जुड़े मामलों के मंत्रालय का अधिकार पूरी तरह से सेना के पास होता है.
तो क्या एनएलडी की जीत के बाद संविधान में संशोधन किए जाने की संभावना थी?
बीबीसी दक्षिण एशिया के संवाददाता जोनाथन हेड कहते हैं कि इसके आसार ना के बराबर थे क्योंकि ऐसा करने के लिए सदन में 75 फीसदी समर्थन की ज़रूरत है. जो तब तक असंभव है जब तक सेना के पास संसद में 25 फ़ीसदी वोट हैं.
जापान में रह रहे म्यांमार के लोग सेना के विरोध में सड़कों पर उतर चुके हैं.
यंगून (रंगून) में मौजूद पूर्व पत्रकार आए मिन ठंट ने बीबीसी को बताया कि "सोमवार को जो हुआ उसके पीछे एक अन्य वजह भी हो सकती है. सेना के लिए ये एक शर्म की बात हो गई होगी क्योंकि उन्हें चुनाव में हार की उम्मीद नहीं थी. जिनके परिवार वाले सेना में हैं उन्होंने भी उनके खिलाफ़ ही वोट किया होगा."
वो ये भी कहती हैं, "ये समझना होगा कि देश में सेना अपने आपको किस तरह देखती है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया आंग सान सू ची को 'राष्ट्रमाता' कहती है लेकिन सेना यहां खुद को 'राष्ट्रपिता' मानती है."
नतीजतन, जब सत्ता की बात आती है तो यहां सेना "दायित्व और हक़" की भावना महसूस करती है. हाल के सालों में म्यांमार अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दिशा में अधिक खुला है, माना जाता है कि ये सेना को पसंद नहीं आया.
मिन कहती है कि यहां सेना किसी भी बाहरी को ख़तरे की तरह देखती है. मिन का मानना है कि कोरोना महामारी और अल्पसंख्यक रोहिंग्या को मताधिकार से वंचित रखने पर अंतराष्ट्रीय आलोचनाओं ने भी सेना के लिए इस तरह का कदम उठाने का ये वक्त उपयुक्त बना दिया.
हालांकि मिन कहती हैं कि जो कुछ हुआ है उससे वो स्तब्ध हैं.
भविष्य में क्या होगा?
ज़ाहिर है कि जानकार भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आख़िर सेना ने ऐसा अभी क्यों किया क्योंकि इससे सेना को कोई बड़ा फ़ायदा होता नज़र नहीं आ रहा है.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के एशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े जेरार्ड मैकैथी कहते हैं, "यह ध्यान देने वाली बात है कि वर्तमान प्रणाली म्यांमार की सेना के लिए काफी फायदेमंद है. इसमें वाणिज्यिक हितों और राजनीतिक कवर में पूरी तरह से स्वायत्तता, बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय निवेश है. सब कुछ सेना के हाथों में है."
जेरार्ड कहते हैं कि ये भी हो सकता है कि सेना विपक्षी पार्टी यूएसडीपी को आगे के चुनाव में बेहतर और मज़बूत बनाने के लिए ये कर रही है.
वहीं ह्यूमन राइट वॉच के फ़िल रॉबर्टसन मानते हैं कि सेना का ऐसा क़दम म्यांमार को एक बार फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर देगा. दूसरी ओर देश के भीतर भी इस कारण गुस्सा पैदा होगा.
वह कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि म्यांमार के लोग इस क़दम को आसानी से स्वीकार कर लेंगे. लोग एक बार फिर सैन्य सत्ता वाले भविष्य की ओर नहीं बढ़ना चाहते. देश को लोग आंग सान सू ची को सैन्य सत्ता के ख़िलाफ़ एक चट्टान के तौर पर देखते हैं."
"लोगों को उम्मीद है की बातचीत से ये मुद्दा सुलझा लिया जाएगा. लेकिन अगर इसके ख़िलाफ़ बड़े प्रदर्शन होने लगे तो देश के बीतर संकट की स्थिति पैदा होने का ख़तरा हो सकता है."
जम्मू, 1 फरवरी| संघर्ष विराम उल्लंघन की एक और घटना में, पाकिस्तान ने सोमवार को जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास बिना उकसावे के फायरिंग शुरू कर दी और मोर्टार से गोले दागे। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल देवेंद्र आनंद ने कहा, "शाम सात बजकर 45 मिनट पर, पाकिस्तान ने पुंछ के मानकोट सेक्टर में बिना उकसावे के संघर्ष विराम का उल्लंघन किया।"
उन्होंने कहा, "भारतीय सेना ने भी इसका करारा जवाब दिया।"
पाकिस्तान हाल के वर्षो में जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन करता आ रहा है।
सीमा पार गोलाबारी के कारण एलओसी के करीब रहने वाले हजारों लोगों की जान लगातार खतरे में है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 1 फरवरी | पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने खिलाफ 8 फरवरी से शुरू होने वाले सीनेट महाभियोग ट्रायल के लिए एक नई कानूनी टीम की घोषणा की है। उन्होंने पहले की टीम से प्रमुख अटॉर्नी और चार अन्य वकीलों के निकल जाने के बाद यह घोषणा की है। द हिल न्यूज वेबसाइट के मुताबिक, रविवार को जारी एक बयान में ट्रंप ने कहा कि नई टीम का नेतृत्व वकील डेविड स्कोन और ब्रूस एल. केस्टर जूनियर करेंगे।
पोलिटिको न्यूज आउटलेट ने शनिवार को अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि साउथ कैरोलाइना के एक वकील बुत बावर्स जो ट्रंप के ट्रायल की अगुवाई करने वाले थे और कथित तौर पर एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार थे, उन्होंने ट्रंप की कानूनी टीम को छोड़ दिया, जिसके बाद ट्रंप ने नई कानूनी टीम की घोषणा की है।
न्यूज रिपोर्ट में कहा गया है कि एक और वकील लेवर डेबोराह बारबियर भी टीम के साथ नहीं हैं।
साथ ही शनिवार रात, सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि तीन अन्य वकीलों, जोश हॉवर्ड, जॉनी गैसर और ग्रेग हैरिस भी टीम से निकल गए हैं।
13 जनवरी को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने कैपिटल हिल में 6 जनवरी को हुए दंगों के बाद ट्रंप पर दूसरी बार महाभियोग चलाया, जो इमारत के बाहर उनके हजारों समर्थकों को संबोधित करने के बाद हुआ था। (आईएएनएस)
दुबई, 1 फरवरी| दुबई की एक अदालत ने एक भारतीय व्यापारी द्वारा पुलिस को 200,000-दिरहम (54,448 डॉलर) रिश्वत की पेशकश करने के आरोप में व्यापारी को दो साल की जेल की सजा सुनाई है। एक मीडिया रिपोर्ट में सोमवार को यह जानकारी दी गई। गल्फ न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुबई की अदालत ने 51 वर्षीय भारतीय व्यवसायी को पिछले साल जून में दो पुलिसकर्मियों को 10,000-10,000 दिरहम की पेशकश करने का दोषी पाया था। व्यवसायी ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जाने पर रिश्वत की पेशकश की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने दो अन्य भारतीय पुरुषों को भी इस मामले में दोषी करार दिया और व्यवसायी का समर्थन करने और उसे उकसाने के लिए दो साल की जेल की सजा सुनाई, क्योंकि वे रिश्वत की रकम पुलिस अधिकारियों को सौंपने के लिए लाए थे।
जेल की सजा पूरी होने के बाद तीनों को डिपोर्ट किया जाएगा। (आईएएनएस)
कभी मजदूरों को कोई छुट्टी नहीं मिला करती थी. फिर हफ्ते में एक दिन और दो दिन की छुट्टी मिली. अब नया आयडिया, हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी. बढ़िया है ना? जापान में इसे लागू करने के बारे में सोचा जा रहा है.
डॉयचेवेले पर जूलियान रायल की रिपोर्ट
कोरोना महामारी से पैदा स्थिति के बीच जापान में नए वर्किंग कल्चर की मांग उठ रही है. जापान की संसद इस बारे में बहस कर रही है कि क्या कंपनियों को अपने कर्मचारियों को चार दिन काम और तीन दिन के वीकेंड का ऑफर देना चाहिए. उम्मीद है कि इससे कर्मचारियों पर काम का दबाब घटेगा और "कारोशी" का जोखिम कम होगा. जापानी भाषा में इस शब्द का इस्तेमाल अत्यधिक काम के कारण होने वाली मौत के लिए होता है.
जापान के कर्मचारी दफ्तर में बहुत देर तक काम करने और अपनी सालाना छुट्टियां ना लेने के लिए मशहूर हैं. कई लोगों को लगता है कि अगर छुट्टी ले ली तो इससे ऑफिस के दूसरे साथियों को परेशानी हो सकती है. लेकिन कोरोना महामारी के दौर में कई चीजें बदल रही हैं और नए बदलावों की मांग उठ रही है. जापानी संसद में सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद कुनिको इनोगुची ने प्रस्ताव रखा है कि पारंपरिक तौर पर सोमवार से शुक्रवार तक पांच दिन काम करने की बजाय कर्मचारियों को सिर्फ चार दिन ही काम करने की अनुमति दी जाए.
कई कंपनियों में पहले ही फ्लेक्सिबल वर्किंग सिस्टम पर अमल हो रहा है. लेकिन कोरोना महामारी ने जापान के कॉरपोरेट कल्चर में बड़े बदलाव के लिए जारी बहस को गंभीर बना दिया है. इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि तीन दिन के वीकेंड के प्रस्ताव को कर्मचारियों और कंपनियों की तरफ से समर्थन मिलेगा. ओसाका की हनान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर तेरुओ साकुरादा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैं तो कहूंगा कि कंपनियों की तरफ से इसकी संभावना दिए जाने की बजाय इसे अनिवार्य बनाया जाए."
आदर्श था निकम्मा होना
प्राचीन ग्रीस के दार्शनिकों के बीच काम को निंदनीय माना जाता था. अरस्तू ने काम को आजादी विरोधी बताया तो होमर ने प्राचीन ग्रीस के कुलीनों के आलसीपने को अभीष्ठ बताया. उस जमाने में शारीरिक श्रम सिर्फ महिलाओं, मजदूरों और गुलामों का काम था.
प्रोफेसर साकुरादा कहते हैं, "जापान का आर्थिक तंत्र बहुत ज्यादा दबाव में है. महामारी ने स्थिति को और खराब किया है. हमें जरूरी बदलाव करने होंगे ताकि यह पर्याप्त मजबूत बना रहे और भविष्य में कंपनियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके."
हाल के दशकों में जापानी अर्थव्यवस्था का फोकस मैन्युफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर और फाइनेंशियल सर्विसेज की तरफ गया है. यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि जापान की मौजूदा 12.6 करोड़ की जनसंख्या इस सदी के आखिर तक घटकर 8.3 करोड़ हो सकती है.
साकुरादा कहते हैं कि वर्किंग कल्चर में इसलिए भी बदलाव जरूरी है, ताकि लोग काम के बोझ के तले ना मरे. 2016 में सरकार के एक अध्ययन में पता चला कि जापान में हर पांच में से एक व्यक्ति के कारोशी की तरफ जाने का जोखिम है. एक चौथाई जापानी कंपनियों में कर्मचारियों को हर महीने लगभग 80 घंटे का ओवरटाइम करना होता है जिसमें ज्यादातर के लिए भुगतान नहीं होता है. इसी का नतीजा है कि जापान में हर साल सैकड़ों लोग दिल के दौरे और अन्य बीमारियों से मर रहे हैं. कई बार काम के दबाव में कई लोग आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.
तरक्की
इंसान की फितरत में है आगे बढ़ना. वह एक जगह रुका नहीं रह सकता. अगर कंपनी अपने कर्मचारियों को ऐसा अहसास करा रही है कि अगले 10-20 सालों में भी उनकी कोई तरक्की नहीं होगी और वे वही काम करते रहेंगे, तो ऐसे में कर्मचारियों को रोक कर रखना मुश्किल है.
अप्रैल 2019 में लागू एक कानून के मुताबिक कोई कंपनी महीने में अपने कर्मचारी से 100 घंटे से ज्यादा का ओवरटाइम नहीं करा सकती है. इसका उल्लंघन करने पर कंपनियों पर जुर्माना लगाया जाता है. आलोचक कहते हैं कि इस कानून में कई खामियां हैं. साकुरादा को उम्मीद है कि काम के दिनों को घटाकर इन्हें दूर किया जा सकता है.
माइक्रोसॉफ्ट जापान और मिजुहो फाइनेंशियल ग्रुप ने एक स्कीम शुरू की जिसके तहत कर्मचारी काम के दिनों में से कोई एक दिन चुन सकते हैं जिस दिन वे काम नहीं करना चाहते. वहीं कपड़ों के कारोबार में लगी कंपनी फास्ट रिटेलिंग ने 2015 में सबसे पहले अपने कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन काम करने का ऑफर दिया था. कंपनी की प्रवक्ता पेई ची तुंग कहती हैं, "हमने कई बदलाव किए हैं ताकि हमारे कर्मचारी अच्छे माहौल में काम कर पाएं क्योंकि हम अपनी प्रतिभाओं को बनाए रखना चाहते हैं."
सांसद इनोगुची के प्रस्ताव पर अमल करने के लिए सरकार की तरफ से वित्तीय समर्थन की जरूरत होगी, खासकर शुरुआती चरण में सिर्फ चार दिन काम शुरू करने वाली कंपनियों के लिए. इस प्रस्ताव की राह में सबसे बड़ी बाधा बुजुर्ग और पारपंरिक सोच रखने वाले मैनेजर लेवल के कर्मचारी हो सकते हैं, जिन्होंने अपना खून पसीना बहाकर जापान को आर्थिक पावरहाउस बनाया है. कम दिन काम करने प्रस्ताव पर उन्हें लगेगा कि नई पीढ़ी कंपनी और देश के प्रति अपनी वचनबद्धता को लेकर लापरवाही दिखा रही है.
नेपीती. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद वहां के सैन्य प्रशासन ने देश में सभी यात्री उड़ानें रोक दी है. इस बीच, म्यांमार के ताजा घटनाक्रम से चीन की टेंशन बढ़ गई है. चीन, म्यांमार का महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है और उसने यहां खनन, आधारभूत संरचना और गैस पाइपलाइन परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘म्यांमार में जो कुछ हुआ है, हमने उसका संज्ञान लिया है और हम हालात के बारे में सूचना जुटा रहे हैं.’
चीन-म्यांमार के रिश्तों में दूरियां भी आई हैं
चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अधिनायकवादी शासकों का समर्थन करती रही है. हालांकि, म्यांमार में चीनी मूल के अल्पसंख्यक समूहों और पहाड़ी सीमाओं के जरिए मादक पदार्थ के कारोबार के खिलाफ कार्रवाई करने के कारण कई बार रिश्तों में दूरियां भी आई हैं.
म्यांमार में हवाई अड्डे बंद
उधर, म्यांमार में अमेरिकी दूतावास ने अपने फेसबुक पेज पर कहा कि यांगून के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को जाने वाली सड़क सोमवार को बंद कर दी गई हैं. यह देश का सबसे बड़ा शहर है. उसने ट्विटर पर लिखा कि ‘खबरों से संकेत मिलता है कि म्यामां में सारे हवाई अड्डे बंद दिये गये हैं.
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट, एक साल के लिए सेना के कब्जे में देश
अमेरिका की घटना पर पूरी नजर
अमेरिकी दूतावास ने यह कहते हुए ‘सुरक्षा अलर्ट’ भी जारी किया कि उसे म्यांमार की नेता आंग सान सू की को हिरासत में लेने और यांगून समेत कुछ स्थानों पर इंटरनेट सेवाएं बंद कर देने की जानकारी मिली है. उसने कहा, ‘बर्मा (म्यांमार) में नागरिक और राजनीतिक अशांति की संभावना है और हम स्थिति पर नजर रखेंगे.’ बता दें कि अमेरिका म्यांमार के पुराने नाम बर्मा का उपयोग करता है.
इस याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि देश ने अतीत में बहुत सारी सांप्रदायिक हिंसा देखी भी है, लेकिन आज सोशल मीडिया के दौर में यह आक्रामकता केवल क्षेत्रीय या स्थानीय आबादी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पूरे देश को अपने साथ ले लेती हैं. अफवाहें, व्यंग्य और घृणा एक स्थानीय सांप्रदायिक झड़प में आग लगाने का काम करती है परंतु यही आग सोशल मीडिया के जरिए तुरंत पूरे देश में फैल जाती है. इसने स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष और राष्ट्रीय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीच सामाजिक दूरी को कम कर दिया है.आज एक स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष को कुछ ही सेकंड्स में राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा सकता है.
सोशल मीडिया हानिकारक भूमिका
दलील में कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया एक हानिकारक भूमिका निभा रहा है और इस दुरुपयोग को रोकने का समय आ गया है. याचिका में यह तर्क दिया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइटें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं. क्योंकि इनका उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और मैच फिक्सिंग, आतंकवाद, हिंसा भड़काने और अफवाह फैलाने वाले उपकरण के रूप में किया जा रहा है. याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया इंस्ट्रूमेंट्स जैसे ब्लॉग्स, माइक्रोब्लॉग्स, डायलॉग बोड्र्स, एसएमएस और शायद सबसे ज्वलंत समस्या यानी सोशल नेटवर्किंग वेब साइट्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप इत्यादि हैं.
रूस में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान 5,100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार में किया गया है. विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी की पत्नी यूलिया को भी हिरासत में लिया गया है. सरकार ने सुरक्षा बलों की अभूतपूर्व तैनाती की है.
रविवार को रूस के कई शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे. उनकी मांग है कि विपक्षी नेता नावाल्नी को रिहा किया जाए. राजधानी मॉस्को में सैकड़ों लोगों ने "आजादी" और "पुतिन इस्तीफा दो" के नारों के साथ प्रदर्शन किया. दंगा नियंत्रक पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने की कोशिश की. बाद में वे मात्रोस्काया तिशिना जेल की तरफ चले गए जहां नावाल्नी को रखा गया है.
स्थिति पर नजर रखने वाले एक समूह ओवीडी इंफो ने कहा है कि पुलिस ने अब तक 5,100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. अकेले राजधानी मॉस्को में 1,600 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें नावाल्नी की पत्नी यूलिया नावाल्नाया भी शामिल हैं. विपक्षी कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी है. प्रदर्शन में हिस्सा लेने से पहले यूलिया ने इंस्टाग्राम पर लिखा था, "अगर आज हम खामोश रहे तो कल वे हममें किसी को भी प्रताड़ित करेंगे."
नावाल्नी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कट्टर आलोचक हैं और उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हैं. पिछले दिनों जर्मनी से मॉस्को लौटते ही नावाल्नी को गिरफ्तार कर लिया गया था. बीते साल अगस्त में नावाल्नी को जहर देने की कोशिश की गई, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए जर्मनी लाया गया था.
रूसी विरोध का चेहरा
रूस में विरोध करने वालों के बीच एक बुलंद आवाज और मजबूत छवि अलेक्सेई नावाल्नी की है. नावाल्नी ने 2008 में एक ब्लॉग लिख कर रूसी राजनीति और सरकारी कंपनियों के कथित गंदे कामों की ओर लोगों का ध्यान खींचा. उनके ब्लॉग में लिखी बातें अकसर इस्तीफों की वजह बनती हैं जो रूस की राजनीति में दुर्लभ बात है.
डीडब्ल्यू की मॉस्को संवाददाता एमिली शेरविन का कहना है कि रविवार को पुलिस और प्रदर्शनकारियों में चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा. उन्होंने ट्वीट किया, "जब भी पुलिस प्रदर्शन वाली जगह पर लोगों को जाने से रोकती थी, तो नावाल्नी के कार्यालय की तरफ से टेलीग्राम पर प्रदर्शन की नई जगह की घोषणा हो जाती. यह अभूतपूर्व है और बेलारूस की याद दिलाता है."
नावाल्नी की टीम का कहना है कि उन्होंने रूस के अलग-अलग 11 टाइमजोनों को देखते हुए देश के 100 शहरों में प्रदर्शनों की योजना बनाई है. मॉस्को में सड़कों पर उतरे लोगों का कहना है कि बात सिर्फ नावाल्नी की नहीं है, बल्कि वे एक बेहतर रूस हासिल करने के लक्ष्य के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं जहां जीने के लिए बेहतर परिस्थितियां हों. एक युवा प्रदर्शनकारी ने एमिली शेरविन को बताया, "मैं इसलिए सड़क पर हूं क्योंकि मेरे देश में जो हो रहा है, उसमें मेरी हिस्सेदारी होनी चाहिए. मुझे यहां रहना है." एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, "यह बहुत अपमान की बात है. उन्होंने हमारा सब कुछ चुरा लिया. मैं एक तेल भंडार के पास रहती हूं और वे लोगों से सब कुछ चुरा रहे हैं."
वहीं, एक प्रदर्शनकारी ने राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना साधते हुए कहा, "मेरा दो साल का बेटा है. अगर पुतिन अगले 16 साल तक सत्ता में रहते हैं, जैसा कि उन्होंने योजना बनाई है, तो मेरा बेटा तो बस उनके राज में ही बड़ा होगा और मुझे नहीं लगता कि उससे कुछ भला होने वाला है."
रूस में सरकार विरोधी प्रदर्शन
प्रदर्शनकारी कहते हैं कि वे एक बेहतर रूस चाहते हैं
चौतरफा निंदा
पुलिस ने चेतावनी दी थी कि रविवार को होने वाले प्रदर्शन गैरकानूनी हैं. गृह मंत्रालय ने कहा कि इनमें हिस्सा लेने वाले को जेल भेजा जाएगा. मॉस्को में प्रदर्शनकारियों की आवाजाही को रोकने के लिए पुलिस ने अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए.
अमेरिका ने रूस में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई की आलोचना की है और नावाल्नी को रिहा करने की मांग की है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने ट्वीट किया, "लगातार दूसरे हफ्ते शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों के खिलाफ रूसी अधिकारियों ने जिस तरह सख्त बल प्रयोग किया है, अमेरिका उसकी निंदा करता है."
रूस ने अमेरिकी आलोचना पर पलटवार करते हुए इसे रूस के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी बताया है.
यूरोपीय आयोग के उपाध्यक्ष जोसेफ बोरेल ने भी रूस के घटनाक्रम की आलोचना की है और इसे रूसी अधिकारियों की तरफ से "बल का अनुचित प्रयोग" बताया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, "लोगों को दमन के भय के बिना प्रदर्शन करने का अधिकार होना चाहिए. रूस को अपनी अंतरराष्ट्रीय वचनबद्धताओं का पालन करना चाहिए."
नावाल्नी को रूसी अधिकारियों ने 2014 में मिली निलंबित सजा की शर्तों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. इसी हफ्ते एक अदालत तय करेगी कि उन्हें साढ़े तीन साल की कैद दी जाए या नहीं. रविवार को हुए प्रदर्शन से पहले कई और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया.
एके/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
ओटावा, 1 फरवरी | कनाडा में कोविड-19 महामारी से मरने वालों की संख्या 20,000 से अधिक हो गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, कनाडा में मौत का आंकड़ा 20,016 है, जबकि मामले बढ़कर 782,467 हो गए हैं।
ओंटारियो और क्यूबेक में कोविड मामलों और मौतों में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है।
दोनों प्रांतों ने लगभग 16,000 मौतों के साथ सबसे अधिक मौतें दर्ज की हैं।
ओंटारियो में 6,180 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि क्यूबेक में 9,700 से अधिक लोगों की मौत हुई है।
टोरंटो में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि होने के छह सप्ताह बाद 9 मार्च, 2020 को पहली मौत दर्ज की गई थी।
29 जनवरी को, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कोविड-19 और इसके वेरिएंट के प्रसार को रोकने के लिए गैर-आवश्यक यात्रा के खिलाफ नए उपायों की घोषणा की।
अब तक, कनाडा में 952,296 कोविड-19 वैक्सीन की खुराक दी गई है, जबकि देश भर में 2.2 करोड़ से अधिक परीक्षण भी किए गए हैं। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 1 फरवरी । बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि जियाउर रहमान, हुसैन मुहम्मद इरशाद और खालिदा जिया की पूर्ववर्ती सरकारों ने 1971 मुक्ति संग्राम और भाषा आंदोलन के गौरवशाली इतिहास से उनके पिता और राष्ट्र के जनक बंगबंधु का नाम मिटाने के प्रयास में पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के कई दस्तावेजों को नष्ट कर दिया है।
हसीना ने रविवार को यहां जतिया संसद भवन में मुजीब बोरशो कार्यक्रम, मुजीब बोरशो की वेबसाइट 2020-2021 और उनके भाषण के डिजिटल संस्करण के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, "यह साबित हो चुका है कि इतिहास को कभी भी मिटाया नहीं जा सकता है।"
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आईएसआई दस्तावेजों के 14 संस्करणों में से सात को पहले ही प्रकाशित कर चुकी है जो मुख्य रूप से बंगबंधु के खिलाफ थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के वास्तविक इतिहास को उन संस्करणों को पढ़ने से समझा जा सकता है।
बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हसीना ने कहा कि वह सभी आगंतुकों की पुस्तकों को विभिन्न देशों की सरकारों और राज्यों के प्रमुखों और आम लोगों की टिप्पणियों के साथ संरक्षित कर रही हैं, ताकि लोगों को इतिहास से जुड़ी चीजों के बारे में पता चल सके।
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि संसद की देश के लोकतंत्र की निरंतरता में भूमिका है क्योंकि लोगों के प्रतिनिधियों को यहां लोगों के कल्याण के बारे में कुछ कहने की गुंजाइश मिलती है।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार संसद को चलाने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं पैदा कर रही थी, लेकिन विपक्ष में रहते हुए उनके बुरे अनुभव थे।
उन्होंने निष्पक्ष तरीके से संसद चलाने के लिए स्पीकर को धन्यवाद दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने मुजीब बोरशो को 16 दिसंबर तक बढ़ा दिया है, क्योंकि उनके पास देश की आजादी की स्वर्ण जयंती और राष्ट्र के जनक की जन्म शताब्दी मनाने की योजना है। अगर आने वाले दिनों में कोरोनोवायरस की स्थिति में सुधार होता है।
उन्होंने कहा कि बंगबंधु का सपना था कि वह लोगों को एक अलग देश दें और मुस्कान लाएं, लेकिन वह अपनी इच्छा को पूरी तरह से पूरा नहीं कर सके क्योंकि 15 अगस्त 1975 को उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी। (आईएएनएस)
रोचेस्टर (अमेरिका). रोचेस्टर पुलिस ने रविवार को पुलिस अधिकारियों के ‘बॉडी कैमरा’ के दो वीडियो जारी किए हैं, जिसमें अधिकारी नौ वर्षीय एक बच्ची को काबू में करने के लिए कुछ स्प्रे करते नजर आ रहे हैं और बच्ची के हाथ भी बंधे हैं. पुलिस का कहना है कि वह ‘पेपर स्प्रे’ था. इस वीडियो को लेकर अमेरिकी पुलिस की काफी किरकिरी हो रही है.
‘डेमोक्रेट एंड क्रॉनिकल’ की खबर के अनुसार रोचेस्टर की मेयर लवली वॉरेन ने ‘शुक्रवार को हुए इस हादसे की पीड़ित बच्ची’ को लेकर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा, ‘मेरी भी 10 साल की एक बेटी है.... एक मां के तौर पर यह वीडियो आप कभी नहीं देखना चाहेंगे.’
चिल्ली रही थी बच्ची
खबर के अनुसार शुक्रवार को ‘पारिवारिक विवाद’ की खबर मिलने के बाद कुल नौ अधिकारी मौके पर पहुंचे थे. अपने पिता से अलग करने की कोशिश करते समय बच्ची की वीडियो में चिल्लाने की आवाज सुनाई दे रही है. उप पुलिस प्रमुख आंद्रे एंडरसन ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन बच्ची को आत्मघाती बताया.
उन्होंन कहा, ‘वह खुद को मारना चाहती थी और वह अपनी मां की भी हत्या करनी चाहती थी.’उन्होंने बताया कि अधिकारियों ने उसे गश्ती गाड़ी में बैठाने की कोशिश की लेकिन उसने उन्हें लात मारनी शुरू कर थी. पुलिस विभाग ने बताया कि बच्ची को नियंत्रित करने के लिए यह कार्रवाई ‘आवश्यक’ थी.
उसने कहा कि ‘नाबालिग की सुरक्षा और अभिभावक के अनुरोध के बाद’ बच्ची के हाथ बांधे गए थे और एम्बुलेंस आने तक उसे पुलिस के वाहन में बैठाया गया था. पुलिस प्रमुख सिनथिया हैरिएट सुलिवन ने रविवार को बताया कि बच्ची पर ‘पेपर स्प्रे’ छिड़का गया था. हालांकि उन्होंने अधिकारियों की इस कारवाई का बचाव नहीं किया.
उन्होंने कहा, ‘मैं यहां खड़े होकर यह नहीं कहने वाली कि नौ साल की बच्ची पर पेपर स्प्रे करना ठीक था.. क्योंकि ऐसा नहीं है.' उन्होंने कहा, ‘एक विभाग के तौर पर जो हम हैं, यह उसको प्रदर्शित नहीं करता और हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे कि ऐसा दोबारा ना हो.’ पुलिस ने बताया कि बच्ची को बाद में ‘रोचेस्टर जनरल हॉस्पिटल’ ले जाया गया। ‘उसका वहां इलाज किया गया’ और बाद में उसे परिवार के हवाले कर दिया गया. रोचेस्टर पुलिस विभाग पिछले साल डेनियल प्रूड के मामले में भी सवालों के घेरे में आ गया था, जब उसके कुछ अधिकारियों ने प्रूड के सिर को किसी कपड़े से ढक उसका मुंह फुटपाथ में दबा दिया था. (news18.com)
वाशिंगटन, 1 फरवरी। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर अमेरिका ने सख्त प्रतिक्रिया दी है और वहां की सेना को चेताया है. अमेरिका ने कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रयास के खिलाफ है जो किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करता है. अमेरिका ने साफ शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रयास के खिलाफ कार्रवाई करेगा.
अमेरिका की म्यांमार के हालात पर नजर
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन पास्की ने कहा कि अमेरिकी स्थिति पर नजर बनाए हुए है और वह म्यांमार के लोगों के साथ है. उन्होंने कहा, 'हम म्यांमार की लोकतांत्रिक संस्थान और सरकार को अपना समर्थन और सहयोग दे रहे हैं. वहां की सेना से आग्रह करते हैं कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पाल करने और कानून का राज चले दे और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करे.'
राष्ट्रपति बाइडन को दी गई जानकारी
अमेरिका उन खबरों से बेहद नाराज है जिसमें सेना ने म्यांमार की सत्ता पर एक साल के लिए कब्जा करने की खबर है. सेना ने स्टेट काउंसलर आंग सान सू की समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया है. अमेरिका के राष्ट्रीय सलाहकार ने राष्ट्रपति जो बाइनड को घटना के बारे में जानकारी दी है.
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट, एक साल के लिए सेना के कब्जे में देश
बता दें कि सेना ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की घोषणा कर दी है. आंग सान सू की को घर में नजरबंद कर दिया है. म्यांमार के ऑनलाइन पोर्टल म्यांमार नाउ ने अज्ञात सूत्रों के हवाले से बताया है कि सू की और उनकी पार्टी के अध्यक्ष को सोमवार तड़के गिरफ्तार कर लिया गया है. म्यांमार में सेना के टेलीविजन चैनल ने बताया कि सेना ने एक वर्ष के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है. (news18.com)
न्यूयॉर्क, 1 फरवरी | कैलिफोर्निया में भारतीय मूल के एक कानूनी प्रवर्तन अधिकारी को इन आरोपों के साथ गिरफ्तार किया गया है कि उन्होंने खुद पर गोली लगने के झूठे आरोप लगाए हैं और दावा किया है कि बॉडी कैमरे के चलते उन्होंने खुद को बुलेट लगने से बचा लिया है। अधिकारियों ने इस घटना की जानकारी दी है।
शेरिफ कार्यालय ने कहा, जासूसों ने अपने सबूतों में पाया कि सांता क्लारा काउंटी में एक शेरिफ डिप्टी सुखदीप गिल ने एक मनगढ़ंत कहानी बनाई है, जिसके चलते उन्हें 29 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
जनवरी, 2020 की इस घटना में उन्हें एक हीरो की तरह से सराहा गया है, जिसने अपनी बताई कहानी में अविश्वसनीय ढंग से भागने का वर्णन किया था।
गिल ने दावा किया था कि उन्होंने गांव के किसी सड़क के किनारे अपने ऑफिस की गाड़ी पार्क की थी, तभी घात लगाए बदमाशों ने उन पर हमला किया और बंदूक से उन पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा था कि बॉडी कैमरे की वजह से एक गोली उन पर लगने से चूक गई। बॉडी कैमरों का उपयोग पुलिस कर्मी अकसर अपने पहनने के लिए करते हैं, जिससे उनकी कई तरह की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है।
अब इसे लेकर किसी नतीजे पर आने से पहले जासूसों की एक टीम ने जांच शुरू की और पाया कि घात लगाने और गोली चलाने की घटना में कोई सच्चाई नहीं थी।
शेरिफ कार्यालय ने आगे बताया कि स्थानीय अभियोजक द्वारा उन पर झूठी रिपोर्ट बनाने और गाड़ी व कैमरे को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए गए हैं। (आईएएनएस)
मोगादीशू, 1 फरवरी | सोमालिया की राजधानी मोगादीशू में एक कार बम धमाके में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई और कई अन्य बुरी तरह घायल हो गए। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, यह धमाका रविवार शाम 5 बजे आदेन अद्दे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा के पास एक सुरक्षा चौकी के समीप स्थित अफरीक होटल के नजदीक हुआ। इस होटल में सरकारी अधिकारी भी आते रहते हैं।
इस कार में विस्फोटक लदा हुआ था। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यह विस्फोट आतंकी संगठन अल-शबाब ने किया है। उन्होंने कहा, इस हमले में पांच लोगों के मारे जाने की मैं पुष्टि कर सकता हूं। विस्तृत जानकारी बाद में दूंगा।
अल-शबाब ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि इस होटल में आने वाले सरकारी अधिकारी उनके निशाने पर थे। अपुष्ट खबरों में कहा गया है कि इस हमले में पूर्व रक्षा मंत्री बाल-बाल बच गए और होटल के अंदर लोगों को भी बचा लिया गया है।
गौरतलब है कि सोमालिया में 8 फरवरी को राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। (आईएएनएस)
म्यांमार की सेना ने तख्तापलट करते हुए देश की कमान अपने हाथ में ले ली है. सेना ने म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची, राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई नेताओं को हिरासत में लेने के बाद एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया है.
(dw.com)
म्यांमार की नेता सू ची, राष्ट्रपति विन मिंट और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रैसी (एनएलडी) के कई वरिष्ठ नेताओं को सोमवार तड़के सेना ने कार्रवाई करते हुए हिरासत में ले लिया. सेना ने इसके बाद देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया. म्यांमार की शक्तिशाली सेना की इस कार्रवाई की चौतरफा आलोचना हो रही है. संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने म्यांमार के इस घटनाक्रम पर चिंता जाहिर की है. एनएलडी के प्रवक्ता मायो नयुंट ने कहा, "हमने सुना है कि उन्हें सेना ने हिरासत में ले लिया है... अब जो स्थिति हम देख रहे हैं, हमें यह मानना होगा कि सेना तख्तापलट कर रही है."
म्यांमार की सत्तारूढ़ एनएलडी ने सोमवार को कहा कि देश की सेना ने रात भर चले छापे के दौरान सू ची को हिरासत में ले लिया और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को सैन्य तख्तापलट में "उठा" लिया. सेना की ओर से संचालित टीवी पर सोमवार को कहा गया कि सेना ने देश को अपने कब्जे में ले लिया है और एक साल के लिए आपातकाल घोषित किया है. सेना का कहना है कि उसने पूर्व जनरल मिंट स्वे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया है. मायो नयुंट ने जनता से अपील करते हुए कहा, "मैं लोगों से आग्रह करता हूं कि वे जल्दबाजी में प्रतिक्रिया न करें और मैं चाहता हूं कि वे कानून के मुताबिक काम करें."
राष्ट्रीय टीवी प्रसारण बंद
सैन्य कार्रवाई के कुछ घंटों बाद सरकारी प्रसारक एमआरटीवी ने कहा कि वह कुछ तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहा है और प्रसारण जारी रखने में सक्षम नहीं होगा. म्यांमार रेडियो और टेलीविजन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, "मौजूदा संचार समस्याओं के कारण हम विनम्रतापूर्वक आपको सूचित करना चाहेंगे कि म्यांमार रेडियो पर प्रसारण जारी नहीं रख पाएंगे." देश के सबसे बड़े शहर यंगून में एक चश्मदीद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सिटी हॉल के बाहर के सैनिकों को तैनात किया गया है. यंगून में सोमवार सुबह इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं. इंटरनेट निगरानी सेवा नेटब्लॉक के मुताबिक सोमवार को म्यांमार की राष्ट्रीय इंटरनेट कनेक्टिविटी सामान्य से 75 फीसदी कम हो गई.
दशकों से देश पर राज कर चुकी सेना और सरकार के बीच तनाव बीते कुछ समय में बढ़ा है. पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव को लेकर सेना संतुष्ट नहीं थी और वह चुनाव में धोखाधड़ी का मुद्दा उठा रही थी. हालांकि म्यांमार के राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग ने सेना की ओर से लगाए गए चुनावों में धोखाधड़ी होने के आरोपों से इनकार कर दिया था. सू ची की पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. म्यांमार के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि नेताओं को चुनावी धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पिछले हफ्ते म्यांमार के सेना प्रमुख जनरल मिन आंग लाइ ने सेना को संबोधित करते हुए तख्तापलट का संकेत दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर देश में कानून का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है तो "आवश्यक" कदम उठाए जा सकते हैं. हालांकि शनिवार को सेना ने एक बयान में कहा था कि लाइ के बयान का गलत मतलब निकाला गया.
तख्तापलट की आलोचना
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने म्यांमार की स्थिति पर चिंता जताई है. एंटोनियो के प्रवक्ता स्टेफानी दुजारक ने एक बयान में कहा, "काउंसलर सू ची, राष्ट्रपति और कई वरिष्ठ नेताओं को नई संसद के सत्र के पहले हिरासत में लिए जाने की महासचिव कड़ी निंदा करते हैं." दूसरी ओर व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका उन रिपोर्टों से चिंतित है कि म्यांमार की सेना ने देश के लोकतांत्रिक बदलाव को खोखला कर दिया है और आंग सांग सू ची को गिरफ्तार किया है. उनके मुताबिक इस घटना के बारे में राष्ट्रपति जो बाइडेन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जानकारी दी है.
भारत ने भी स्थिति पर चिंता जताई है और एक बयान में कहा है कि वह बारीकी से घटना पर नजर बनाए हुए है. भारत ने कहा कि उसने हमेशा ही म्यांमार में लोकतांत्रिक बदलाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का समर्थन किया है. सू ची ने 1988 में सैन्य-विरोधी प्रदर्शनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 2012 के संसदीय चुनाव से पहले कई सालों तक उन्हें नजरबंद किया गया था.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
निखिला नटराजन
न्यूयार्क, 1 फरवरी| कोरोना की मार झेल रही अमेरिकी जनता फिलहाल कोविड राहत अनुदान पाने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है, लेकिन इसी बीच उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस द्वारा एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू के कारण उनकी बहुत फजीहत हो रही है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार कांग्रेस के माध्यम से जनता को 1.9 ट्रिलियन डॉलर की महत्वाकांक्षी महामारी राहत देने की कोशिश में जुटी है। लेकिन, अभी योजना पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई है।
हैरिस के इस इंटरव्यू के कारण कई डेमोक्रेट नेता भी बुरी तरह नाराज हैं। उन्होंने इस प्रस्तावित महामारी राहत पैकेज को वेस्ट वर्जिनिया के लिए एक बड़ा मुद्दा बताए जाने के कारण हैरिस की आलोचना की। डेमोकट्र नेता हैरिस के बयान को अनुचित और औचित्यहीन बता रहे हैं।
गौरतलब है कि हैरिस का यह बयान उस वक्त आया जब इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि आखिर लोगों को महामारी राहत पैकेज मिलने में कितने दिन लगेंगे। इस पर हैरिस ने कहा कि वेस्ट वर्जिनिया के लिए यह एक बड़ा मुद्दा है। यहां हर सात में से एक परिवार भूखा है, हर छह में से एक परिवार मकान का किराया नहीं दे पा रहा है और हर चार में से एक छोटे कारोबारी या तो अपना धंधा कर रहे हैं या कर चुके हैं। इसलिए यह न केवल वेस्ट वर्जिनिया, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा मुद्दा है।
उनके इस इंटरव्यू पर अपनी प्रतिक्रिया में वेस्ट वर्जिनिया के सीनेटर जो मैनचिन ने कहा कि मैंने इंटरव्यू देखा। मैं यह विश्वास ही नहीं कर पा रहा हूं। हम कोई बीच का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए हम सबको साथ आना होगा। यह साथ मिलकर काम करने का कोई तरीका नहीं है। (आईएएनएस)
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेने के लिए तख़्तापलट कर लिया है. इससे पहले म्यांमार की सेना ने नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची को गिरफ़्तार कर लिया था. उनकी पार्टी के प्रवक्ता ने बयान जारी कर इसकी जानकारी दी थी. बीते कुछ समय से, सरकार और सेना के बीच हाल ही में संपन्न हुए चुनाव के नतीजों को लेकर तनाव जारी था.
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने नवंबर महीने में हुए चुनाव में भारी अंतर से जीत हासिल की थी लेकिन सेना का दावा है कि चुनाव प्रक्रिया में धोखाधड़ी हुई है. सेना ने सोमवार को संसद की बैठक को स्थगित करने का आह्वान किया है.
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी के प्रवक्ता ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से कहा, 'सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिंट और दूसरे नेताओं को तड़के हिरासत में ले लिया गया था'. उन्होंने आशंका जताई कि आने वाले समय मे उन्हें भी हिरासत में लिया जा सकता है.
अपने समर्थकों और आम लोगों के आक्रोश को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा है, "मैं अपने लोगों से कहना चाहता हूं कि जल्दबाज़ी में कदम न उठाएँ और क़ानून के मुताबिक चलें."
बीबीसी दक्षिण-पूर्व एशिया के संवाददाता जॉनथन हेड का कहना है कि म्यामांर की राजधानी नेपीटाव और मुख्य शहर यंगून में सड़कों पर सैनिक मौजूद हैं.
उन्होंने कहा है कि ये पूरी तरह तख़्तापलट लगता है जबकि पिछले हफ़्ते तक सेना उस संविधान का पालन करने की बात कर रही थी जिसे सेना ने ही दस साल पहले बनाया था.
इस संविधान के तहत सेना को आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है लेकिन आंग सान सू ची जैसे नेताओं को हिरासत में लेना एक ख़तरनाक और उकसाने वाला कदम हो सकता है जिसका कड़ा विरोध देखा जा सकता है.
वहीं, बीबीसी बर्मा सेवा ने बताया कि राजधानी में टेलीफ़ोन और इंटरनेट सेवाएं काट दी गई हैं.
चुनाव में क्या हुआ था?
बीती 8 नवंबर को आए चुनावी नतीजों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83% सीटें जीत ली थीं. इस चुनाव को कई लोगों को आंग सान सू ची सरकार के जनमत संग्रह के रूप में देखा. साल 2011 में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद से ये दूसरा चुनाव था.
लेकिन म्यांमार की सेना ने इन चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए हैं. सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के अध्यक्ष के ख़िलाफ़ शिकायत की गई है.
हाल ही में सेना द्वारा कथित भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने की धमकी देने के बाद तख़्तापलट की आशंकाएं पैदा हो गई हैं. हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है.
कौन हैं आंग सान सू ची?
आंग सान सू ची म्यांमार की आज़ादी के नायक रहे जनरल आंग सान की बेटी हैं. 1948 में ब्रिटिश राज से आज़ादी से पहले ही जनरल आंग सान की हत्या कर दी गई थी. सू ची उस वक़्त सिर्फ दो साल की थीं.
सू ची को दुनिया भर में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला के रूप में देखा गया जिन्होंने म्यांमार के सैन्य शासकों को चुनौती देने के लिए अपनी आज़ादी त्याग दी.
साल 1991 में नजरबंदी के दौरान ही सू ची को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया. 1989 से 2010 तक सू ची ने लगभग 15 साल नज़रबंदी में गुजारे.
साल 2015 के नवंबर महीने में सू ची के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने एकतरफा चुनाव जीत लिया. ये म्यांमार के इतिहास में 25 सालों में हुआ पहला चुनाव था जिसमें लोगों ने खुलकर हिस्सा लिया.
म्यांमार का संविधान उन्हें राष्ट्रपति बनने से रोकता है क्योंकि उनके बच्चे विदेशी नागरिक हैं. लेकिन 75 वर्षीय सू ची को म्यांमार की सर्वोच्च नेता के रूप में देखा जाता है.
लेकिन म्यांमार की स्टेट काउंसलर बनने के बाद से आंग सान सू ची ने म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में जो रवैया अपनाया उसकी काफ़ी आलोचना हुई.
साल 2017 में रखाइन प्रांत में पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या मुसलमानों ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ली थी.
इसके बाद सू ची के अंतरराष्ट्रीय समर्थकों ने बलात्कार, हत्याएं और संभावित नरसंहार को रोकने के लिए ताकतवर सेन की निंदा नहीं की और ना ही अत्याचारों को स्वीकार किया.
कुछ लोगों ने तर्क दिया कि वह एक समझदार राजनेता हैं जो कि एक ऐसे बहु-जातीय देश का शासन चलाने की कोशिश कर रही हैं जिसका इतिहास काफ़ी जटिल है.
लेकिन सू ची ने 2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान जो सफाई पेश की, उसके बाद उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति ख़त्म हो गई.
हालांकि, म्यांमार में आंग सान सू ची को द लेडी की उपाधि हासिल है और बहुसंख्यक बौद्ध आबादी में वह अभी भी काफ़ी लोकप्रिय हैं. लेकिन ये बहुसंख्यक समाज रोहिंग्या समाज के लिए बेहद कम सहानुभूति रखता है.
नई दिल्ली, 1 फरवरी| अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत आबिदा हुसैन ने खुलासा किया है कि ओसामा बिन लादेन ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का समर्थन और वित्त पोषण (फंडिंग) किया था। आबिदा ने कहा, हां, उन्होंने (ओसामा बिन लादेन) एक समय मियां नवाज शरीफ का समर्थन किया था। हालांकि, यह एक जटिल कहानी है।
उन्होंने एक निजी टेलीविजन चैनल जियो टीवी के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "वह (ओसामा) नवाज शरीफ की वित्तीय सहायता करते थे।"
खबर के मुताबिक पाकिस्तान ने खबर दी थी कि नवाज शरीफ की सरकार में कैबिनेट के पूर्व सदस्य रहे हुसैन ने याद किया कि एक समय बिन लादेन लोकप्रिय था और अमेरिकियों समेत हर किसी को पसंद था, लेकिन बाद में उन्हें अजनबी माना गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव हारने के बाद उन्हें नवाज शरीफ के पहले प्रीमियर के दौरान राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया था।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में दूत के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उनका अधिकांश संवाद राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान के साथ हुआ करता था।
खान ने उन्हें 18 महीने में पाकिस्तान द्वारा अपना परमाणु कार्यक्रम पूरा करने तक अमेरिकी को बातचीत में व्यस्त रखने का जिम्मा सौंपा था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनयिकों, सीनेटरों और कांग्रेसियों सहित अमेरिकी प्रशासन परमाणु कार्यक्रम के निष्पादन के खिलाफ पाकिस्तान को सलाह देता था।
चूंकि परमाणु कार्यक्रम राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में था, इसलिए उन्होंने कहा कि उनकी अधिकांश बातचीत उनके साथ हुई करती थी, न कि प्रधानमंत्री के साथ। इसकी वजह यह भी है कि रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान को किसी पर भरोसा नहीं था। (आईएएनएस)
-आसिफ खान
जयपुर/जोधपुर. जोधपुर के एक परिवार के बुजुर्ग ने सरहद पार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारत आने की गुहार लगाई है. ये कहानी एक ऐसे परिवार की जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान में रह गया और दूसरा हिस्सा हिंदुस्तान का नागरिक बन चुका है. अब इस परिवार में शादी है और पिता पाकिस्तान में है. अब ये भारत आना चाहते हैं लेकिन आ नहीं पा रहा. क्योंकि उसके पास वीजा नहीं है.
आज से कोई सात-आठ साल पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहने वाला ये परिवार भारत आ गया था और जोधपुर में अपने रिश्तदारों के साथ यहीं बस गया. साल भर पहले सबको भारत की नागरिकता मिल गई, लेकिन इस परिवार का पिता पाकिस्तान में ही रह गया. पिता का नाम कल्याण सिंह सोढ़ा हैं और पाकिस्तान में सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके है. जोधपुर के इस पाक से आए परिवार में 16 फरवरी को बड़े बेटे की शादी है. परिवार चाहता है कि पिता इस शादी में शिरकत करें लेकिन कल्याण सिंह को भारत का वीजा नहीं मिल पा रहा है.
इस परिवार के सामने पाकिस्तान में सबसे ज्यादा मुश्किल इनके शादी ब्याह के रिश्तों की आ रही थी. इनके सभी रिश्तेदार राजस्थान में रहते है और संगे संबंधी भी. इसलिए ये भारत में ही बसना चाहते है. सभी लोग यहां बस भी चुके हैं, लेकिन पिता वहां से नहीं आ पा रहे थे. लिहाजा बेटा भारत सरकार से गुहार लगा रहा है कि उनके पिता को भारत आने की अनुमति दी जाए. बेटे ने विदेश मंत्रालय से लेकर पीएमओ तक को मेल किया है और सभी को ट्वीट पर टैग करते हुए अपनी परेशानी के बारे में बताया लेकिन फिलहाल विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.
वीडियो में नज़र आ रहे कल्याण सिंह इस समय पाकिस्तान में है और लगातार भारतीय एंबेसी के संपर्क में है लेकिन फिलहाल कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही. कल्याण सिंह सिंध में अपना सब कुछ बेचकर राजस्थान आना चाह रहे है और यहीं की नागरिकता चाहते है लेकिन बात बन नहीं रही. (news18.com)
नेपीडॉ. म्यांमार की सेना ने दावा किया है कि वह संविधान की रक्षा और पालन करेगी और कानून के मुताबिक ही काम करेगी. सेना का यह दावा देश में तख्तापलट की साजिश रचे जाने की खबरों के बीच आया है, जिसके मुताबिक सेना सत्ता अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही थी. बता दें, म्यांमार में 1962 में तख्तापलट किया गया था जिसके बाद 49 साल तक सेना का शासन रहा. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐंटोनियो गुतारेस और म्यांमार में पश्चिमी राजदूतों ने इसे लेकर आशंका जाहिर की थी. इसके बाद देश की सेना तत्पदौ ने कहा है कि उसके कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है. सेना ने कहा है, 'तत्पदौ 2008 के संविधान की रक्षा कर रही है और कानून के मुताबिक ही काम करेगी. कुछ संगठन और मीडिया जो चाहते हैं, उसे मान लिया है और लिखा है कि तत्पदौ संविधान को खत्म कर देगी.'
वहीं, सेना के इस बयान को आंग सान सू ची की सत्ताधारी नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने उपयुक्त सफाई बताया है. NLD प्रवक्ता म्यो न्युंट ने कहा है, 'पार्टी चाहती थी कि सेना ऐसा संगठन हो जो चुनाव को लेकर लोगों की इच्छाओं को स्वीकार करे.' नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी. म्यांमार का संविधान सेना को संसद में 25 प्रतिशत सीटें और तीन मंत्रालय का अधिकार देता है. दूसरी तरफ, विश्लेषक भी मान रहे हैं कि सेना ने तख्तापलट का अपना इरादा बदल दिया है. म्यांमार के विश्लेषक रिचर्ड हॉर्सी ने कहा है कि सेना के तख्तापलट की चेतावनी से पीछे हटने का क्या मतलब है और देश की स्थिरता पर इसका क्या असर होगा, यह तब पता चलेगा जब और ज्यादा जानकारी सामने आएगी, जो अभी तक छिपी हुई है.
सेना ने दी थी चेतावनी
संसद के नए सत्र से पहले सेना ने चेतावनी दी थी कि चुनाव में वोट के फर्जीवाड़े की शिकायत पर अगर ऐक्शन नहीं लिया गया तो सेना एक्शन लेगी. दरअसल, इस हफ्ते राजनीतिक तनाव बढ़ गया था जब सेना के प्रवक्ता ने तख्तापलट की संभावनाओं को खारिज करने से इनकार कर दिया था. वहीं, कमांडर इन चीफ ने यहां तक कह दिया था कि अगर संविधान का पालन नहीं किया गया तो उसे वापस ले लिया जाएगा. उन्होंने पहले ऐसा किए जाने की घटनाओं का जिक्र भी किया था. वहीं, सेना ने सफाई दी है कि कमांडर इन चीफ संविधान की अहमियत समझाना चाहते थे. (news18.com)
वॉशिंगटन, 31 जनवरी | अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद स्टीफेन लिंच वैक्सीन लगाने के बाद भी कोरोनावायरस पॉजिटिव पाए गए हैं। वो मैसाचुसेट्स से सांसद हैं।
द हिल न्यूज वेबसाइट ने शनिवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा कि लिंच को फाइजर और बायोएनटेक की कोविड-19 वैक्सीन की दूसरी खुराक मिली थी और वो 20 जनवरी को राष्ट्रपति जो बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने से पहले कोरोना निगेटिव थे।
सांसद प्रवक्ता, मौली रोज टार्पी ने एक बयान में शनिवार को कहा, आज दोपहर अमेरिकी प्रतिनिधि स्टीफन एफ. लिंच का कॉविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है।
टार्पी ने कहा कि लिंच को आइसोलेट कर दिया गया है और आने वाले हफ्ते में प्रॉक्सी से मतदान करेंगे।
हालांकि लिंच में बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं।
यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार, टीकाकरण के बाद शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण होने में कुछ हफ्ते लगते हैं।
इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति टीके के बाद भी वायरस से संक्रमित हो सकता है। (आईएएनएस)
वुहान: डब्ल्यूएचओ की टीम ने रविवार को चीन के हुबई प्रांत की राजधानी वुहान के उस बाजार का दौरा किया, जिसे कोरोना वायरस के फैलने का सबसे पहला केंद्र माना जाता है.कोरोना वायरस के उत्पत्ति का पता लगाने में जुटी विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की टीम ने रविवार को चीन में वुहान की सीफूड मार्केट का दौरा किया. एक साल पहले इसी जगह पर वायरस के बड़े पैमाने पर संक्रमण का पता चला था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम के सदस्य हुन्नान सीफूड मार्केट का जायजा लेने पहुंचे, जिससे पिछले साल जनवरी में ही सील कर दिया गया था. टीम के सदस्यों को चारों ओर से घेरेबंदी वाले इस परिसर में ले जाया गया, हालांकि किसी अन्य को जाने की इजाजत नहीं मिली. डब्ल्यूएचओ की टीम का यह दौरा काफी पहले प्रस्तावित था, लेकिन चीन की ओर से इसमें देरी की गई. डब्ल्यूएचओ की टीम को चीन में 14 दिनों तक क्वारंटाइन भी रहना पड़ा. विशेषज्ञ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे यह वायरस जानवरों खासकर चमगादड़ से इंसानों तक पहुंचा.
हालांकि डब्लूएचओ की जमीनी स्तर पर जांच बेहद प्रारंभिक चरण में है. टीम के सदस्य भी वायरस के स्रोत का पता चलने की उम्मीदों को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है. वायरस दुनिया भर में 20 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को काफी गहरी चोट पहुंचाई है. फूड मार्केट के दौरे के बाद जब मीडिया ने विशेषज्ञों से सवाल पूछे तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया. सुरक्षाकर्मियों ने मीडियाकर्मियों को वहां से जाने को कह दिया.
एक मीडिया कर्मी ने जब चिल्लाकर पूछा कि क्या डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ चीन के इस मांस बाजार तक जाने की मंजूरी मिलने से संतुष्ट हैं तो एक सदस्य ने हाथ उठाकर सांकेतिक सहमति जताई.चीन के सरकारी मीडिया संगठन ग्लोबल टाइम्स ने पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें हुन्नान को कोरोना वायरस का केंद्र मानने को गलत ठहराया गया है. उसका कहना है कि लगातार हुई जांच से पता चलता है कि बाजार से कोरोना वायरस का विस्फोट नहीं हुआ था.
उसने यह दावा किया कि संभवतः कोरोना वायरल कोल्ड चेन उत्पादों के जरिये वुहान तक या पशुओं के मांस बाजार तक पहुंचा. चीनी अधिकारी भी मांस बाजार में जंगली पशुओं के मांस से कोरोना वायरस के फैलने की बात करते रहे हैं. इसी के बाद से चीन में ऐसे खुले मांस बाजार पर शिकंजा कसा गया है. गंदगी भरे वातावरण में यहां कुत्ते, बिले, सांप और अन्य जंगली जीव-जंतुओं का मांस खुले में बेचा जाता है. (khabar.ndtv.com)