अंतरराष्ट्रीय
रूस यूक्रेन युद्ध अपने 11वें दिन में पहुंच गया है. जानिए, युद्ध के 10वें दिन क्या-क्या हुआ-
- युद्ध के 10वें दिन यूक्रेन के दो शहरों मारियुपोल और वोल्नोवांख़ा में अस्थायी संघर्ष विराम लागू हुआ. दोनों मुल्कों में मानवीय कॉरिडोर बनाने पर सहमति हुई. लेकिन कुछ घंटों बाद यूक्रेनी अधिकाारियों ने रूसी सेना पर संघर्ष विराम का आरोप लगाया और कहा कि हमले रोके नहीं गए जिस कारण लोगों को वहां से बाहर निकालना मुश्किल हो गया है.
- संघर्ष विराम लागू होने के कुछ देर बाद मारियुपोल के प्रशासन ने कहा कि रूसी हमले के कारण उन्हें लोगों को निकालने की प्रक्रिया टालनी पड़ रही है.
- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी है कि कोई भी देश अगर यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करता है तो उसे यूक्रेन में युद्ध में शामिल माना जाएगा. इससे पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से कहा था कि रूसी हवाई हमलों से यूक्रेन को बचाने के लिए उसे नो-फ्लाई ज़ोन घोषित किया जाए. हालांकि, नेटो ने ये कहते हुए इससे इनकार कर दिया था कि ऐसा करने से यूरोप में नेटो के दूसरे सहयोगियों तक युद्ध के फ़ैलने का ख़तरा बढ़ सकता है.
- काले सागर के पास मौजूद खे़रसोन में क़रीब 2000 आम नागरिकों ने रूसी हमले के विरोध में प्रदर्शन किया.
- सैमसंग, पेपाल, कपड़ों के ब्रांड ज़ारा और प्राडा ने रूस में अपना कारोबार रोका. इससे पहले हर्मेस, केरिंग और शनाल ने रूस में अपना काम बंद कर दिया था.
- मास्टरकार्ड और वीज़ा रूस में काम बंद करेंगे
- जानीमानी पेमेन्ट कंपनी मास्टरकार्ड और वीज़ा ने यूक्रेन पर रूस के हमले के विरोध में रूस में अपना कारोबार बंद करने का ऐलान किया है. मास्टरकार्ड ने एक बयान जारी कर कहा कि उसका नेटवर्क रूसी बैंकों को सपोर्ट नहीं करेगा और देश के बाहर जारी किए कार्ड रूसी एटीएम मशीनों पर काम नहीं करेंगे. वहीं, वीज़ा ने कहा है कि वो आने वाले दिनों में देश के भीतर सभी तरह के ट्रांज़ेक्शन पर रोक लगा देगा, वित्तीय संस्थानों द्वारा रूस के बाहर जारी किए गए कार्ड भी रूस में नहीं चलेंगे.
- डीज़ल पेट्रोल बेचने वाली कंपनी शेल ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष में उसे रूस से तेल खरीदने का "मुश्किल फ़ैसला" लेना पड़ रहा है. कंपनी ने कहा है कि यूरोपीय बाज़ार में कच्चे तेल की ज़रूरी आपूर्ति पूरी करने के लिए उन्होंने रूस से कच्चा तेल खरीदा है. कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, "वैकल्पिक स्रोतों से आ रहा तेल वक़्त रहते बाज़ार तक नहीं पहुंच सकता था, इससे तेल सप्लाई में बाधा आने का डर था."
- कंपनी ने कहा कि रूस से मिल रहा कच्चा तेल वैश्विक तेल आपूर्ति के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है. इस कारण मुश्किल वक़्त में उसे रूसी तेल खरीदने का फ़ैसला करना पड़ रहा है. हालांकि, कंपनी ने कहा है कि रूस से सीमित मात्रा में खरीदे जा रहे तेल से मिलने वाले लाभ को मानवीय राहत के रूप में यूक्रेन को दिया जाएगा. दुनिया के कच्चे तेल की सप्लाई का 8 फीसदी रूस से मिलता है.
- यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने शनिवार को कहा है कि उन्होंने स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क से बात की है. बाद में उन्होंने घोषणा की कि कंपनी इस सप्ताह यूक्रेन को और स्टालिंक इंटरनेट टर्मिनल भेजने वाली है. स्टारलिंक के ज़रिए लो ऑर्बिट सैटलाइट की मदद से धरती पर इंटरनेट सेवा मुहैय्या कराई जाती है.
- एलन मस्क से बात करने के बाद ज़ेलेंस्की ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि दोनों के बीच भविष्य की स्पेस परियोजनाओं को लेकर भी बात हुई है लेकिन इस पर आगे चर्चा युद्ध के बाद होगी. (bbc.com)
पाकिस्तान के एक प्रमुख विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर जमकर हमला बोला है.
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने लॉन्ग मार्च में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "पीपुल्स पार्टी ने जनरल ज़िया, जनरल मुशर्रफ़ का मुक़ाबला किया है, आप तो एक कठपुतली हैं जिसे चुना गया है."
बिलावल ने आगे कहा कि इमरान ख़ान सरकार आठ मार्च तक ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे दे वर्ना उसके बाद उनको भागने की भी जगह नहीं मिलेगी.
बिलावल ने कहा, "कठपुतली का कोई भविष्य नहीं है. उन्हें तो लंदन भागना है और हमारा तो मरना जीना अवाम के साथ है."
उन्होंने कहा कि अब वक़्त आ गया है कि इस "निकम्मी सरकार" को जनता की ताक़त से घर भेज दिया जाए.
बिलावल ने कहा, "अब वक़्त आ गया है कि सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए. अब सब इसके पक्ष में हैं तो पहले नहीं थे. जनता चाहती है कि नया चुनाव हो और नई सरकार बने."
विपक्ष के तमाम दावों को ख़ारिज करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री शेख़ रशीद ने कहा कि इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा.
अख़बार जंग के अनुसार शेख़ रशीद ने कहा, बेसब्री से मुंह जल जाएगा. उन्होंने कहा, "सत्ता के भूखे लोग याद रखें ऐसे भी हालात बन सकते हैं कि आपके हाथ कुछ भी न आए."
उधर रक्षा मंत्री परवेज़ ख़टक भी अविश्वास प्रस्ताव पर कहा, "विपक्ष अगर हमारे 10 सासंद तोड़ेगा तो हम उनके 15 सांसद तोड़ेंगे. इमरान ख़ान को अल्लाह ही गिरा सकता है, विपक्ष नहीं गिरा सकता."
अख़बार जंग के अनुसार रक्षा मंत्री ने कहा, "इमरान ख़ान के डर के कारण विपक्षी पार्टियां एकसाथ आ गईं हैं. उनके पास सरकार के ख़िलाफ़ कोई एजेंडा नहीं है." (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि सरकार के पास इस बात की जानकारी है कि शुक्रवार को पेशावर के शिया जामा मस्जिद में हुए धमाके में शामिल दहशतगर्द कहां से आए थे.
शुक्रवार को पेशावर के क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार स्थित शिया मस्जिद में हुए धमाके में कम से कम 57 लोग मारे गए थे और क़रीब 200 लोग घायल हुए थे.
अख़बार दुनिया के अनुसार इमरान ख़ान ने कहा, "मैं इस मामले की ख़ुद निगरानी कर रहा हूं. इस हवाले से अब हमें तमाम जानकारियां मिल गईं हैं. इसलिए पूरी ताक़त से उनके पीछे जा रहे हैं."
पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के एक संगठन जाफ़रिया-ए-पाकिस्तान के प्रमुख अल्लामा सैय्यद साजिद अली नक़वी ने तीन दिनों का शोक मनाने और रविवार को देश भर में विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है.
एक और शिया संगठन मजलिस-ए-व हदत-ए-मुस्लिमीन के महासचिव अल्लामा अहमद इक़बाल रिज़वी ने कहा है कि अगर सुरक्षा के प्रभावी इंतज़ाम किए जाते तो यह हादसा कभी नहीं होता. (bbc.com)
इकबाल अहमद
अफ़ग़ानिस्तान के अंतरिम गृहमंत्री और तालिबान के वरिष्ठ नेता सिराजुद्दीन हक़्क़ानी पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं.
अख़बार डॉन के अनुसार हक़्क़ानी एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल हुए और उनकी तस्वीरें भी सामने आईं हैं. हाल तक वो अमेरिका की तरफ़ से जारी मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल थे.
हक़्कानी शनिवार को काबुल में अफ़ग़ान पुलिस अधिकारियों के पासिंग आउट परेड में शामिल हुए थे. इस कार्यक्रम को अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय टीवी चैनल पर भी लाइव प्रसारित किया गया था.
कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद तालिबान ने ख़ुद इस कार्यक्रम में शामिल होते हुए सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी की है.
इस दौरान पुलिस अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "आपकी संतुष्टि और आपको आश्वस्त करने के लिए मैं मीडिया और अवाम के सामने आया हूं."
अब तक सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की सिर्फ़ एक ही तस्वीर सामने आई थी जिसमें उनका चेहरा बहुत ही धुंधला दिखता है.
पिछले साल अगस्त में तालिबान के काबुल में दाख़िल होने के बाद वो तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों और विदेशी मेहमानों से लगातार मिलते रहे लेकिन उन मुलाक़ातों की कोई तस्वीर सार्वजनिक नहीं की जाती थी.
एक बार वो एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए भी देखे गए लेकिन उसमें भी उनका चेहरा नहीं दिखाया गया था.
सिराजुद्दीन हक़्क़ानी आज भी अमेरिका के एफ़बीआई के मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में हैं और उनके बारे में ख़बर देने वाले को एक करोड़ डॉलर इनाम देने की घोषणा है. (bbc.com)
कीव, पांच मार्च (एपी)। रूसी सैनिकों ने यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर आधी रात को किए गए हमले के बाद कब्जा कर लिया है। इस हमले के दौरान वहां पर आग लग गई थी जिसको लेकर पूरी दुनिया में कुछ समय के लिए परमाणु विकिरण से तबाही होने की चिंता बढ़ गई थी।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र और यूक्रेन के अधिकारियों ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि शुक्रवार के हमले के बाद दमकल कर्मियों ने आग को बुझा दिया है और कोई विकिरण नहीं हुआ है।
इस बीच, रूस द्वारा यूक्रेन के विभिन्न शहरों पर हमले जारी हैं।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफे मारियानो ग्रोसी ने यूक्रेन के दक्षिणी शहर इनेरहोदर स्थित जापोरिजिया परमाणु संयंत्र पर हमले के बारे में कहा कि रूसी ‘‘मिसाइल’’ प्रशिक्षण केंद्र पर गिरा न कि वहां मौजूद छह रिएक्टरों में से किसी पर।
इस हमले ने दुनिया की चिंता बढ़ा दी और आशंका पैदा हो गई कि वर्ष 1986 में हुए चर्नोबिल हादसे से भी बड़ी आपदा पैदा हो सकती है। रात को एक भावुक भाषण में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि उन्हें आशंका है कि धमाका ‘‘सभी का खात्मा कर सकता है। यूरोप को खत्म कर सकता है। यूरोप को खाली कर सकता है।’’
हालांकि, स्वीडन से लेकर चीन तक के अधिकारियों ने कहा कि विकिरण के स्तर में वृद्धि नहीं हुई है।
अधिकारियों ने बताया कि रूसी सैनिकों ने पूरे इलाके को अपने कब्जे में ले लिया है लेकिन संयंत्र पर कार्यरत कर्मचारी अपना कार्य कर रहे हैं। ग्रोसी ने हमले के बाद कहा कि केवल एक रिएक्टर 60 प्रतिशत क्षमता के साथ काम कर रहा है।
उन्होंने बताया कि आग से दो लोग झुलस गए हैं। हालांकि, यूक्रेन के सरकारी परमाणु संयंत्र परिचालक एनेरहोतम ने बताया कि तीन यूक्रेनी सैनिकों की मौत हुई है जबकि दो अन्य घायल हुए हैं।
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के प्रवक्ता लॉन कीर्बि ने कहा, ‘‘यह प्रकरण रेखांकित करता है कि कितनी लापरवाही के साथ रूसियों ने अकारण हमला किया है।’’
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में यूक्रेन के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत सर्गेई किस्लित्सिया ने कहा कि आग रूसी गोलाबारी का नतीजा था और उन्होंने रूस पर ‘परमाणु आतंकवाद’ का आरोप लगाया।
वहीं, इस हमले से 1986 के चर्नोबिल परमाणु दुघर्टना की याद ताजा हो गयी और उससे भी भयावह स्थिति की आशंका पैदा हो गई।
परमाणु विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि तकनीशियनों, प्रबंधकों की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि परमाणु संयंत्र सुरक्षित तरीके से चलते रहे।
इस बीच, पूर्वी यूरोप और स्कैंडिवियन देशों में विकिरण की स्थिति में मददगार आयोडिन टैबलेट की मांग बढ़ गई है।
(ललित के झा)
वाशिंगटन,पांच मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि यूक्रेन पर रूस का हमला केवल इस देश (यूक्रेन) पर हमला नहीं है, बल्कि यूरोप और वैश्विक शांति पर हमला है।
बाइडन ने शुक्रवार को फिनलैंड के राष्ट्रपति के साथ बातचीत के बाद संवाददाताओं से कहा कि दोनों देश कुछ वक्त से लगातार संपर्क में हैं।
बाइडन ने कहा कि उन्होंने मिलकर रूसियों के खिलाफ संयुक्त प्रतिक्रिया दी है और यूक्रेन के खिलाफ अकारण तथा गैर उकसावे वाले आक्रमण के लिए रूस की जवाबदेही तय कर रहे हैं।
बाइडन ने व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में कहा,‘‘ और हम सहमत हैं कि यह सिर्फ यूक्रेन पर हमला नहीं है,बल्कि यूरोप की सुरक्षा और वैश्विक शांति तथा स्थिरता पर भी हमला है।’’
इससे पहले दिन में बाइडन ने पोलैंड के राष्ट्रपति एंद्रेज डुडा से बातचीत की और रूस के यूक्रेन पर हमले के खिलाफ देशों की प्रतिक्रिया पर भी बातचीत की।
व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा,‘‘ बाइडन ने पोलैंड की सुरक्षा और सभी नाटो सहयोगियों की रक्षा की अमेरिका की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।’’
बयान में कहा गया कि उन्होंने नाटो के खिलाफ रूस के किसी भी हमले को रोकने और गठबंधन की मजबूती के लिए 9,000 अमेरिकी बलों की तैनाती के लिए पोलैंड की साझेदारी का आभार जताया,जिसमें हाल के हफ्तों में वहां तैनात किए गए 4,700 अतिरिक्त जवान शामिल हैं।
विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ब्रसेल्स में शुक्रवार को कहा कि अमेरिका ने यूरोप में अतिरिक्त 7,000 सैनिकों को भेजा है और नाटो के पूर्वी बेडे को मजबूत करने के लिए अपने बलों की तैनाती में बदलाव किए हैं।
उन्होंने कहा,‘‘ हम रूस के खिलाफ अपने कड़े आर्थिक प्रतिबंधों को और सख्त कर रहे हैं।’’ (भाषा)
कीव, पांच मार्च (एपी)। रूसी सेना शनिवार से यूक्रेन के दो क्षेत्रों में संघर्ष-विराम पर सहमत हो गई है, ताकि वहां फंसे नागरिकों को सुरक्षित निकाला जा सके। रूस की सरकारी न्यूज एजेंसियों ने यह जानकारी दी।
आरआईए नोवोत्सी और तास न्यूज एजेंसी ने रूसी रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के हवाले से बताया कि मॉस्को यूक्रेनी बलों के साथ कुछ निकासी मार्गों पर संघर्ष-विराम के लिए सहमत हो गया है, ताकि नागरिकों को दक्षिण-पूर्व में रणनीतिक लिहाज से अहम बंदरगाह शहर मारियुपोल और पूर्वी शहर वोल्नोवाखा से सुरक्षित निकालने में मदद मिल सके।
हालांकि, यूक्रेनी सेना की तरफ से अभी संघर्ष-विराम की कोई पुष्टि नहीं की गई है और फिलहाल यह भी स्पष्ट नहीं है कि निकासी मार्ग कब तक खुले रहेंगे।
वाशिंगटन, 5 मार्च | राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक नए कानून पर हस्ताक्षर किया है जिसके बाद सीबीएस न्यूज रूस से बाहर निकलने वाला लेटेस्ट मीडिया आउटलेट बन गया है। इसके अंतर्गत चल रहे मॉस्को-कीव युद्ध के बारे में 'फर्जी समाचार फैलाने' के लिए जेल की सजा का प्रावधान है। शुक्रवार को, सीबीएस न्यूज के प्रवक्ता ने कहा कि आउटलेट 'वर्तमान में रूस से प्रसारित नहीं हो रहा था क्योंकि हम आज पारित किए गए नए मीडिया कानूनों को देखते हुए अपनी टीम के लिए परिस्थितियों की निगरानी कर रहे हैं'।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन ने शुक्रवार को उस कानून पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत यूक्रेन में युद्ध के बारे में 'फर्जी खबर' फैलाने के आरोप में 15 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है।
कानून, वास्तव में, रूस में स्वतंत्र रिपोटिर्ंग को रोक देगा, जहां समाचार आउटलेट्स को यूक्रेन में संघर्ष को 'युद्ध' के रूप में संदर्भित करने की अनुमति नहीं है।
इससे पहले दिन में, सीएनएन, ब्लूमबर्ग और एबीसी न्यूज सहित अन्य प्रमुख अमेरिकी आउटलेट्स ने भी घोषणा की थी कि वे युद्ध के परिणामस्वरूप रूस से प्रसारण निलंबित कर रहे हैं।
सीएनएन के एक प्रवक्ता ने कहा कि नेटवर्क 'रूस में प्रसारण बंद कर देगा, जबकि हम स्थिति का मूल्यांकन करना जारी रखेंगे।'
एबीसी न्यूज, जिसके रूस में कई संवाददाता काम कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि "रूस में आज पारित नए सेंसरशिप कानून के कारण, एबीसी न्यूज सहित कुछ पश्चिमी नेटवर्क आज रात देश से प्रसारित नहीं हो रहे हैं। हम स्थिति का आकलन करना और निर्धारित करना जारी रखेंगे कि क्या इसका मतलब जमीन पर हमारी टीमों की सुरक्षा के लिए है।"
बीबीसी और सीबीसी न्यूज सहित अन्य वैश्विक समाचार आउटलेट्स ने भी रूस में परिचालन निलंबित कर दिया है।
जबकि सीबीसी न्यूज ने कहा कि यह "रूस में पारित नए कानून के बारे में बहुत चिंता थी, जो यूक्रेन और रूस में मौजूदा स्थिति पर स्वतंत्र रिपोटिर्ंग को अपराधीकरण करने के लिए प्रतीत होता है।" (आईएएनएस)
काबुल, 5 मार्च | यूनिसेफ ने कहा कि उसने जारी मानवीय संकट के बीच अफगानिस्तान के बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के उद्देश्य से अपने 2 अरब डॉलर के लक्ष्य का 15 प्रतिशत जुटाया है। टोलो न्यूज ने अनुसार, यूएन एजेंसी ने एक रिपोर्ट में कहा कि यूनिसेफ अफगानिस्तान ह्यूमैनिटेरियन एक्शन फॉर चिल्ड्रन (एचएसी) अपील संगठन के इतिहास में सबसे बड़ी है, जिसका मूल्य 2022 के लिए 2 अरब डॉलर है। भागीदारों के उदार योगदान के लिए धन्यवाद।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान की तबाह अर्थव्यवस्था ने विभिन्न पक्षों के बच्चों को प्रभावित किया है, कई गंभीर कुपोषण और अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं और कई अन्य अपने परिवारों के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए बाल श्रम में लगे हुए हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, 17 प्रांतों में 1,031 सुविधाओं में 10,200 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली बुनियादी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ 2,475,535 लोग पहुंचे।
जनवरी 2022 के मध्य में शुरू किए गए चार दिवसीय राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण अभियान के माध्यम से पांच साल से कम उम्र के लगभग 8.6 मिलियन बच्चों तक पहुंचा गया।
8,982 समुदाय आधारित शिक्षा कक्षाओं के माध्यम से कुल 281,302 बच्चों को शिक्षा सेवाओं के साथ पहुंचाया गया।
लगभग 3,240 बच्चों (897 लड़कियों) ने यूनिसेफ समर्थित कार्यक्रमों के माध्यम से सुरक्षात्मक सेवाएं प्राप्त कीं।
यह आंकड़ा तब आया है जब संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संगठनों ने अफगानिस्तान में मानवीय तबाही पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। (आईएएनएस)
लक्जमबर्ग के विदेश मंत्री ने यूक्रेन को नो फ्लाई जोन न बनाने की चेतावनी दी है. नाटो देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में उन्होंने कहा कि ऐसा किया तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
यूक्रेन के कई अहम शहरों में जारी रूसी हमले के बीच यूरोपीय देशों और नाटो के अधिकारियों की लगातार बैठकें हो रही हैं. शुक्रवार को नाटो देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने का मुद्दा भी उठा. इस मांग का विरोध करते हुए लक्जमबर्ग के विदेश मंत्री ज्यां असेलबॉर्न ने कहा इससे विवाद और ज्यादा भड़केगा.
असेलबॉर्न ने कहा, नो फ्लाई जोन "कौन लागू करवाएगा?" उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर नाटो ने यूक्रेन युद्ध में दखल दिया तो इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं. साथी विदेश मंत्रियों से बातचीत के दौरान असेलबॉर्न ने कहा, "मुझे लगता है कि हमारे पैर जमीन पर ही रहने चाहिए."
असेलबॉर्न के इन बयानों से पहले स्पेन के विदेश मंत्री खोसे मानुएल अल्बारेस ने कहा था कि नो फ्लाई जोन के मुद्दे पर बातचीत नाटो के विदेश मंत्री की बैठक के दौरान होगी. यूक्रेनी राष्ट्रपति और कई नेता भी रूसी हमले को कमजोर करने के लिए यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने की मांग करते आ रहे हैं.
क्या होता है नो फ्लाई जोन
नो फ्लाई जोन (एनएफजेड) उस इलाके को कहा जाता है, जिसके ऊपर विमानों के उड़ान भरने पर प्रतिबंध हो. आम तौर पर ऐसा सुरक्षा कारणों से किया जाता है. शांतिपूर्ण माहौल में, अहम आयोजनों के दौरान कई देश किसी खास इलाके या शहर को एनएफजेड घोषित करते हैं.
दूसरी तरफ सैन्य संघर्ष में नो फ्लाई जोन बहुत संवेदनशील मुद्दा बन जाता है. नो फ्लाई जोन घोषित करने वाले देश या संगठन के लड़ाकू विमान, एनएफजेड इलाके की निगरानी करते हैं. अगर कोई दूसरा विमान नो फ्लाई जोन में घुसता है तो उसे जबरदस्ती नीचे उतारा या फिर गिराया जा सकता है. 1990 के दशक में इराक और बोस्निया में संघर्ष के दौरान इन देशों को नो फ्लाई जोन घोषित किया गया था. हाल के बरसों में कुछ समय तक पूर्वी यूक्रेन, सीरिया और लीबिया को नो फ्लाई जोन घोषित किया जा चुका है.
लेकिन पूरे यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने का सीधा मतलब है, रूस से सीधा टकराव. अगर नाटो यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करता है तो उसे निगरानी के लिए अपने फाइटर जेट यूक्रेन के ऊपर उड़ाने होंगे. और इस दौरान नाटो का सीधा सामना रूसी विमानों और हेलिकॉप्टरों से होगा. यही वजह है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन समेत नाटो के तमाम नेता यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने से साफ इनकार कर रहे हैं.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही चेतावनी दे चुके है कि अगर कोई तीसरा देश इस संघर्ष में कूदा तो वह अपने इतिहास का सबसे बुरा दौर देखेगा.
"यूक्रेन विवाद में बेलारूस की भूमिका नहीं"
इस बीच रूस का साथ देने के कारण दबाव झेल रहे बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको ने शुक्रवार को सरकारी मीडिया के जरिए देश को संबोधित करते हुए कहा, "बेलारूस की सेना ने स्पेशल ऑपरेशंस में हिस्सा नहीं लिया है और आगे भी इसमें हिस्सा लेने का कोई इरादा नहीं है." यूक्रेन की उत्तरी सीमा बेलारूस से लगती है. दोनों देशों के बीच 1,084 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है.
यूक्रेन में रूसी सेना के दाखिल होने से ठीक पहले लुकाशेंको ने मॉस्को जाकर रूसी राष्ट्रपति से मुलाकात की थी. फरवरी में बेलारूस में रूसी सेना का बड़ा जमावड़ा लगा, जिसे उस वक्त सामान्य सैन्याभ्यास बताया गया. बाद में बेलारूस की तरफ से भी रूसी सेना यूक्रेन में दाखिल हुई.
पड़ोस में छिड़े तीखे सैन्य संघर्ष के बीच लुकाशेंको ने बेलारूसी जनता से कहा, "आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है." 67 साल के लुकाशेंको को पश्चिमी मिलिट्री एक्सपर्ट पुतिन की कठपुतली कहते हैं. बेलारूसी राष्ट्रपति पर आरोप हैं कि उन्होंने यूक्रेन युद्ध में रूसी सेना की भरपूर मदद की. जनता को संबोधित करते हुए लुकाशेंको ने यह भी कहा कि बेलारूस को यूक्रेन के संघर्ष में घसीटने की भरसक कोशिशें की जा रही हैं.
20 जुलाई 1994 से राष्ट्रपति पद पर बैठे लुकाशेंको को यूरोप का आखिरी तानाशाह भी कहा जाता है. यह बात किसी से नहीं छुपी है कि यूक्रेन में घुसने वाले रूसी विमानों, हेलिकॉप्टरों और मिसाइलों को लुकाशेंको ने बेलारूस में सुरक्षित ठिकाना मुहैया कराया. इसके साथ ही बेलारूस ने खुद को बार बार रूस और यूक्रेनी अधिकारियों की बातचीत के लिए मेजबान के तौर पर भी पेश किया.
यूक्रेन सरकार का दावा है कि एक समय उनके देश में बेलारूस की फौज भी या तो लड़ रही थी या लड़ने की तैयारी कर रही थी.
ओएसजे/एके (डीपीए, एएफपी)
यूक्रेन की राजधानी कीव में एक भारतीय छात्र को कथित तौर पर गोली मार दी गई. केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने गुरुवार को समाचार एजेंसी एएनआई को यह जानकारी दी. यह घटना रूसी गोलाबारी में एक छात्र की मौत के कुछ दिनों बाद हुई है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
यूक्रेन में फंसे भारतीयों छात्रों की निकलने कोशिशों के बीच एक छात्र को गोली लग गई है. राजधानी कीव से लौट रहे एक छात्र को गोली लगी और उसे इलाज के लिए आधे रास्ते से वापस कीव ले जाया गया है. पौलेंड में मौजूद केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने मीडिया से कहा, "आज, हमने रिपोर्टें सुनीं कि कीव छोड़ने वाले एक छात्र को गोली मार दी गई. उसे वापस कीव ले जाया गया. यह सब लड़ाई में हो रहा है."
भारत ने चार मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में तैनात किया है, जिससे छात्रों को भारत वापस भेजने में मदद की जा सके. मंत्री यूक्रेन के पड़ोसी देशों के अधिकारियों के साथ संपर्क साधकर छात्रों को विशेष उड़ानों से भारत भेज रहे हैं. भारत ने यूक्रेन में फंसे छात्रों को निकालने के लिए मिशन गंगा शुरू किया है. यूक्रेन जैसा हाल हिंद-प्रशांत में नहीं होने देंगेः क्वॉड
एक मार्च को एक भारतीय मेडिकल छात्र नवीन शेखरप्पा की यूक्रेन के खारकीव शहर में गोलाबारी में मौत हो गई थी. नवीन अपने और साथी छात्रों के लिए भोजन खरीदने के लिए सुपरमार्केट गए थे. नवीन का शव अब तक भारत नहीं पहुंच पाया है. नवीन के पिता केंद्र सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि उनके बेटे का शव किसी तरह से भारत लाया जाए.
इससे पहले बुधवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की थी और यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने पर चर्चा की थी. खारकीव में फंसे भारतीय छात्रों ने बुधवार को शिकायत की थी कि उन्हें निकलने से रोका जा रहा है. कुछ छात्रों का कहना था कि उन्हें ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया गया या फिर उतार दिया गया. कुछ छात्रों ने पिटाई की शिकायत भी की थी. यूक्रेन युद्ध: भारत पर बढ़ रहा रूस से दूरी बनाने का दबाव
भारत यूक्रेन के पड़ोसी देश रोमानिया, हंगरी और पोलैंड से विशेष उड़ानों के जरिए अपने नागरिकों को निकाल रहा है. (dw.com)
रूस पर लगाए गए तमाम आर्थिक प्रतिबंधों के पूरी दुनिया पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं. इसकी मुख्य वजह है विमानन, समुद्री और कार उद्योगों में इस्तेमाल किया जाने वाला रूसी कच्चा माल.
यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूसी बैंकों, रूसी रईसों और अन्य संस्थाओं पर वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं. हालांकि रूसी कमोडिटी निर्यातक वीएसएमपीओ-एवीआईएसएमए (VSMPO-Avisma) पर अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगा है, जो विमान निर्माता कंपनी बोइंग और एयरबस को टाइटेनियम की आपूर्ति करता है.
एयरबस ने कहा है कि वह अपनी आधी टाइटेनियम मांग के लिए रूस पर निर्भर है, जबकि एक अमेरिकी उद्योग सूत्र ने कहा कि वीएसएमपीओ-एवीआईएसएमए बोइंग की जरूरतों का एक तिहाई मुहैया कराता है. इस बीच कुछ रूसी बैंकों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्विफ्ट से भी अलग कर दिया है. यह कदम टाइटेनियम सहित कई रूसी निर्यातों की आपूर्ति को भी प्रभावित कर सकता है.
टाइटेनियम का उत्पादन कहां होता है?
टाइटेनियम स्पंज कीमती धातु टाइटेनियम खनिज कणों से बनता है और इसका इस्तेमाल कई उद्योगों में किया जाता है. चीन इस समय दुनिया में टाइटेनियम स्पंज का सबसे बड़ा उत्पादक है. यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक पिछले साल वैश्विक टाइटेनियम उत्पादन 2,10,000 टन था, जिसमें चीन का 57 प्रतिशत हिस्सा था. जापान 17 फीसदी के साथ दूसरे और रूस 13 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर था. पिछले साल कजाखस्तान ने 16,000 टन और यूक्रेन ने 3,700 टन का उत्पादन किया था.
बैंक से लेकर वोदका तक रूस का अलगाव बढ़ रहा है
ये आंकड़े बताते हैं कि रूस का टाइटेनियम भंडार बहुत बड़ा नहीं है. लेकिन वह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यूएसजीएस का कहना है, "2021 में यूक्रेन टाइटेनियम खनिज का प्रमुख स्रोत था, जिसे रूस में आयात किया गया था." वियतनाम और मोजाम्बिक समेत कुछ अन्य देशों में भी यह खनिज संपदा है.
यूएसजीएस का अनुमान है कि यूक्रेन ने पिछले साल 5,25,000 टन टाइटेनियम खनिज सांद्र का उत्पादन किया था.
टाइटेनियम के प्रमुख आयातक
आयात और निर्यात कंसल्टेंसी सीआरयू का कहना है कि चीन टाइटेनियम का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है, जिसने पिछले साल 16,000 टन से अधिक टाइटेनियम स्पंज खरीदा. अमेरिका ने 2020 में 19,000 टन ऐसे स्पंज का आयात किया, लेकिन एक साल बाद यह आयात घटकर 16,000 टन हो गया.
जापान, चीन और अमेरिका को सबसे अधिक टाइटेनियम स्पंज निर्यात करता है. सीआरयू के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद निर्माण और विमानन उद्योगों में हालिया सुधार ने टाइटेनियम स्पंज की कीमत बढ़ा दी है.
इस धातु का इस्तेमाल मुख्य रूप से एयरोस्पेस उद्योग में किया जाता है. विमान के लैंडिंग गियर और विमान के ब्लेड के अलावा, इसका उपयोग टर्बाइनों के निर्माण में भी किया जाता है. समुद्री उद्योग में टाइटेनियम शीट का इस्तेमाल जहाज और पनडुब्बियां बनाने के लिए किया जाता है और ऑटो क्षेत्र में इसे इंटरनल कंबशन इंजन के पुर्जे तैयार करने के लिए किया जाता है.
धातु की रक्षा के अलावा यह तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करता है. इसका इस्तेमाल मानव जोड़ों के लिए कृत्रिम विकल्प के निर्माण और दंत प्रत्यारोपण में भी किया जाता है.
एए/ओएसजे (रॉयटर्स)
यूक्रेन ने रूस पर वैक्यूम बम इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. बेहद विध्वंसक होने के कारण आबादी वाले इलाकों में वैक्यूम बम का इस्तेमाल बैन है. ऐसा क्या है जो वैक्यूम बमों को इतना खतरनाक बनाता है?
डॉयचे वैले पर मार्कुस ल्यूटिके की रिपोर्ट-
अमेरिका में तैनात यूक्रेन की राजदूत ने रूस पर थर्मोबैरिक हथियार इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. यह दावा कितना सही है, इसकी अब तक पुष्टि नहीं हो सकी है. वॉशिंगटन में अमेरिकी नेताओं से मुलाकात के बाद सोमवार को यूक्रेनी राजदूत ओक्साना मार्कारोवा ने कहा, "उन्होंने आज वैक्यूम बम इस्तेमाल किया, जो जेनेवा संधि के तहत प्रतिबंधित है."
क्या होते हैं वैक्यूम बम
वैक्यूम बमों को एयरोसोल बम या फ्यूल एयर बम भी कहा जाता है. वैक्यूम बम असल में एक थर्मोबैरिक हथियार है. यह नाम ग्रीक भाषा से जुड़ा है और इसका अर्थ है, ताप और दबाव. ज्यादातर पारंपरिक हथियार पेट्रोलियम फ्यूल और ऑक्सीडाइजिंग एजेंट को मिलाकर बनाए जाते हैं. लेकिन वैक्यूम बम में 100 फीसदी पेट्रोलियम फ्यूल होता है. फटने के लिए इसे बाहरी ऑक्सीजनन की जरूरत पड़ती है.
वैक्यूम बम में पहली बार हल्का सा धमाका होता है, जो ईंधन को एक गुबार की तरह फैला देता है. इसके तुरंत बाद, दूसरे चरण में इस गुबार में एक तेज धमाका होता है. इस तरह थर्मोबैरिक हथियार आसपास हवा में मौजूद ऑक्सीजन को सोखकर भीषण धमाका करते हैं.
पुतिन की परमाणु धमकी में कितना दम
वैक्यूम बम बहुत तबाही मचाते हैं. फरवरी 2000 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक शोध का हवाला देते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, "धमाके के करीब रहने वालों का नामोनिशान मिट जाता है. उसके दायरे में आने वाले कई किस्म की अंदरूनी और गुम चोटों का शिकार बनते हैं, जैसे कान के पर्दे फटना, कान के भीतर अंगों पर बेहद बुरी चोट, गंभीर दौरे पड़ना, फेफड़ों और अंदरूनी अंगों में छेद होना और संभावित अंधापन."
क्या ये हथियार तैनात किए गए?
26 फरवरी 2022 को अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन के रिपोर्टर फ्रेडेरिक प्लाइटजन ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया. इस विडियो पोस्ट में कहा गया, "सीएनएन की टीम ने यूक्रेन में रूसी थर्मोबैरिक 'वैक्यूम बम' लॉन्चर देखा है." प्लाइटजन ने लिखा, "रूसी सेना ने थर्मोबैरिक रॉकेट शूट करने वाला टीओएस-1 हेवी फ्लेमथ्रोअर तैनात किया है....बेल्गोरोद के दक्षिण में."
म्यूनिख की जर्मन मिलिट्री यूनिवर्सिटी के फ्रांक जावर इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, "हमें पता है कि उस इलाके में रूसियों ने इस तरह के हथियार सिस्टम तैनात किए हैं."
रूस पर आरोप लग रहे है कि उसने यूक्रेन के ओख्तिरका शहर में वैक्यूम बम इस्तेमाल किए. सोशल मीडिया चैनलों पर इन बमों के कथित धमाकों के वीडियो और फोटो शेयर हो रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस के प्रवक्ता के मुताबिक अभी तक इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है, "लेकिन अगर यह आरोप सही निकले तो यह संभावित एक युद्ध अपराध है." (dw.com)
बीजिंग. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत से जारी तनाव के बीच चीन ने रक्षा खर्च को बढ़ाने का फैसला किया है. चीन ने शनिवार को रक्षा को लेकर यह बड़ी घोषणा की है. खास बात है कि चीन लगातार डिफेंस सेक्टर में अपने खर्च में इजाफा कर रहा है. जिसके चलते देश के पास एक मजबूत सेना तैयार हो गई है, यह सेना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के सशस्त्र बलों को चुनौती दे रही है. चीन में संसद सत्र शुक्रवार से शुरू हो गया है.
एपी के अनुसार, चीन ने साल 2022 के लिए रक्षा क्षेत्र के खर्च में 7.1 फीसदी बढ़ाकर 22900 करोड़ डॉलर करने की घोषणा कर दी है. पिछले वर्ष में चीन ने खर्च में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि की थी. हालांकि, बीते कुछ समय से चीन लगातार सैन्य क्षमता बढ़ा रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी खबरें आई थी कि चीन ने सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं. रक्षा बजट के मामले में चीन अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है.
सरकार का कहना है कि खर्च में हुई बढ़त का ज्यादातर हिस्सा जवानों के कल्याण के लिए जाएगा. ऑब्जर्वर्स का कहना है कि बजट में चीन हथियारों की खरीदी को छोड़ा गया है. इनमें से अधिकांश को घरेलू स्तर पर ही तैयार किया जाता है. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की सैन्य शाखा होने के चलते पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की सियासी भूमिका भी काफी बड़ी है.
शी जिनपिंग के मौजूदा कार्यकाल का अंतिम संसद सत्र
यूक्रेन को लेकर वैश्विक उथल-पुथल के बीच चीन में शुक्रवार को संसद का वार्षिक सत्र शुरु हुआ. वहीं राष्ट्रपति शी जिनपिंग का 10 साल का कार्यकाल इस साल समाप्त होने वाला है और वह अभूतपूर्व तौर पर तीसरा कार्यकाल शुरू करने की तैयारी में हैं. चीन का वार्षिक संसद सत्र शुक्रवार को शुरू हुआ जिसमें राष्ट्रीय विधानमंडल, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) और सलाहकार निकाय चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीपीसीसी) शामिल हैं.
सीपीपीसीसी ने अपना सत्र शुरू किया जिसमें राष्ट्रपति शी और अन्य नेताओं ने हिस्सा लिया. सीपीपीसीसी में में 2,200 सदस्य हैं और इनमें से ज्यादातर सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) द्वारा मनोनीत हैं.
एनपीसी दो सप्ताह से अधिक समय तक वार्षिक विधायी कार्य करेगा जिसमें प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री ली क्विंग द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली कार्य रिपोर्ट को मंजूरी देना शामिल है. इसमें चीन अपने वार्षिक आर्थिक प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार करेगा और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अन्य आर्थिक पहलों के अलावा नए रक्षा परिव्यय की घोषणा करेगा.
(भाषा इनपुट के साथ)
-अब्दुलजलील अब्दुरासुलोव
अपनी पत्नी इरीना और बेटी सोफ़िया के साथ ओलेग
रूस के हमलों से बचकर यूक्रेन से भाग रहे एक परिवार को रूसी सैनिकों ने मार दिया है.
इस परिवार के रिश्तेदारों ने बीबीसी को बताया है कि उन पर दक्षिणी यूक्रेन में एक सुरक्षा चौकी पर हमला किया गया. कुल पांच लोगों की मौत हो गई.
इस लेख की कुछ जानकारियां पाठकों को विचलित कर सकती हैं.
24 फ़रवरी को जब रूस की सेनाओं ने यूक्रेन पर आक्रामण शुरू किया तब दक्षिणी शहर खेरसोन में रहने वाले फेडको परिवार ने जान बचाकर भागने की कोशिश की.
ये परिवार ग्रामीण क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के पास जा रहा था. ये इलाक़ा खेरसोन के मुक़ाबले अधिक सुरक्षित था.
पुलिसकर्मी ओलेग पीछे ही रुक गए थे क्योंकि हमले के बाद पुलिस विभाग हाई अलर्ट पर था.
उनके पिता उनकी पत्नी इरीना और दो बच्चों, छह साल की सोफिया और दो महीने के ईवान को लेने के लिए आए थे.
इस परिवार के गांव पहुंचने के कुछ देर बाद ही रूस की सेना यहां पहुंच गई थी. ये सैनिक क्राइमिया से यूक्रेन पहुंचे थे. रूस ने साल 2014 में यूक्रेन के इस प्रायद्वीप पर क़ब्ज़ा किया था.
यहां से घुसी रूसी सेना तेज़ी से यूक्रेन के इलाक़ों में आगे बढ़ी थी क्योंकि उसे किसी भारी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा था.
बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई थी. परिवार को चिंता थी कि वो फिर से लड़ाई के बीच फंस जाएंगे इसलिए ये लोग गांव छोड़कर दूसरे गांव नोवा काखोव्का की तरफ़ बढ़े, जहां उनके रिश्तेदार रहते हैं.
अब वो एक बड़े समूह में थे जो दो कारों में सवार था. एक मैं ओलेग के मौसा-मौसी और भाई-बहने थीं. दूसरी कार में उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चे थे.
यात्रा के दौरान उन्हें एक बांध से गुज़रना था जो पहले से ही रूस की सेना के नियंत्रण में था. ये बांध नाइप्रो नदि पर है जो यूक्रेन को दो हिस्सो में बांटती है.
पहली कार रूसी सैनिकों की सुरक्षा चौकी को पार कर गई थी लेकिन दूसरी गाड़ी उनकी नज़र से ओझल हो गई.
ओलेग के भाई डेनिस यूक्रेन के चेर्केसी शहर से मोबाइल के ज़रिए परिजनों की लोकेशन पर नज़र रखे हुए थे.
शाम को पांच बजकर 13 मिनट पर डेनिस ने अपनी मां के फ़ोन पर कॉल किया.
वो बताते हैं, "मैं अपनी मां को नोवा काखोव्का ना जाने के लिए समझाने की कोशिश कर रहा था. मैं उनसे कह रहा था कि ओडेसा जाओ, वहां मेरा एक फ्लैट है."
वो बताते हैं, उसी पल मैंने अपनी मां की चीख सुनीं, वो कह रहीं थीं, हे ईश्वर, वो एक बच्चा है, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो.
वो बताते हैं कि उनकी भाभी भी चिल्ला रहीं थीं.
वो बताते हैं, "फिर मैंने गोली चलने की आवाज़ सुनी. कार रुक गई थी, गाड़ी का खुला दरवाज़ा बीप की आवाज़ कर रहा था. मैंने बच्चे को रोते हुए सुना. वो रोए जा रहा था. फिर मैंने और गोलियां चलने की आवाज़ सुनी."
डेनिस हतप्रभ थे, वो समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है और वो इस स्थिति में क्या कर सकते हैं.
उनकी मौसी जिनका नाम भी इरीना है, बदहवासी में अपनी बहन को फ़ोन करने की कोशिश कर रहीं थीं.
ईरीना ने कार में मौजूद सभी के फ़ोन लगाए लेकिन किसी ने नहीं उठाया. घंटियां बजती रहीं. अब इरीना परेशान हो गईं थीं, उन्होंने तय किया कि लौटकर देखें क्या हुआ है.
इरीना चैकप्वाइंट पर पहुंची और कार के बारे में पूछा तो एक सैनिक ने बताया कि वो गड्डे में पड़ी है.
सैनिक ने बताया कि ड्राइवर ने अधिकारी के आदेश का पालन नहीं किया और उन्हें कुचलने की कोशिश की.
इरीना बताती हैं कि वो सैनिकों के सामने गिड़गिड़ाईं और अपने पति के साथ कार के पास जाने की भीख मांगी. दो सैनिक उनके पति ओलेक्सेंदर को कार के पास लेकर गए. पूरी गाड़ी गोलियों से छलनी थी. कार के आगे पीछे और चारों तरफ़ गोलियों के निशान थे.
इवान को एक सैनिक ने कार से बाहर निकाला. वो रो रहा था.
"मैंने सैनिकों को बताया कि सोफ़िया भी कार में थी, पिछली सीट पर बैठी थी, और मैं कार की तरफ दौड़ी."
ओलेक्सेंदर बताते हैं, "मैंने उसे देखा, उसके सीने में गोली ने सुराख़ कर दिया था. तीन वयस्क, ओलेग के माता-पिता और पत्नी की मौत हो चुकी थी."
सोफ़िया अभी जीवित थी. इवान अब चुप हो गया था. इरीना और ओलेक्सेंदर उन्हें अपनी कार में लेकर आए और अस्पताल की तरफ़ दौड़े.
लेकिन डॉक्टर इन बच्चों को बचा नहीं सके.
अस्पताल जाकर पता चला कि इवान को भी गोली लगी थी.
ओलेक्सेंदर बताते हैं, "उसे कान में गोली लगी थी जो पीछे सिर से होते हुए निकल गई थी. उसका चेहरा साफ़ था लेकिन पीछे से सिर ख़ून में सना था. लेकिन वो ज़िंदा था और रो रहा था."
वो बताते हैं कि इस दौरान रूस के सैनिक वहीं थे लेकिन उन्होंने कार के पास जाकर किसी को देखने की कोई कोशिश नहीं की.
इरीना अब अपने आप को संभाल नहीं पा रही हैं. वो कहती हैं, "मुझे यक़ीन नहीं होता कि वो सब अब नहीं हैं. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि हमारे साथ ऐसा हो गया है. मैं हर वक़्त बस रोती रहती हूं."
रूस की सेना ने अगले दिन परिवार को उनके शव उठाने की अनुमति दी. शवों का परीक्षण करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि सभी को कई गोलियां लगी थीं.
बीबीसी ने इस घटना पर रूस का पक्ष जानने के लिए रूस के रक्षा मंत्रालय से संपर्क किया है. (bbc.com)
नई दिल्ली. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच लगातार यूक्रेनी शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं का स्वदेश लौटना जारी है. यहां लौटकर वे हालात बयान कर रहे हैं, वे बेहद भयावह हैं. जैसे- 22 साल का आदित्य. यूक्रेन की टेर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे हैं. वे बताते हैं, ‘युद्धग्रस्त इलाकों से पड़ोसी देशों की सीमाओं पर जा रहे लड़के-लड़कियों के शरीर ठंड से गल रहे हैं. पैदल या ठुंसी हुई टैक्सियों से आगे बढ़ते हुए अपना सामान वहीं छोड़कर चल रह हैं. ठंड से गर्मी पाने के लिए दूसरों का पड़ा हुआ और जरूरी होने पर अपना भी सामान जला रहे हैं. किसी के पास खाने या पीने का सामान है तो कई लोग उसी को बांटकर अपनी भूख-प्यास मिटा रहे हैं.’
अभी 3 मार्च को विशेष विमान से दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे आदित्य के मुताबिक, ‘जब 24 फरवरी को युद्ध शुरू हुआ तो हर किसी को यूक्रेन की सीमाओं की ओर भागते देखा. हम 5 दोस्तों ने भी वहां से निकलने का फैसला किया. पोलैंड से लगने वाली शेनी बॉर्डर हमारे इधर से करीब 200 किलोमीटर दूर है. हमने मिलकर टैक्सी से जाने का फैसला किया. लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने हमें वहां से बहुत दूर ही छोड़ दिया. इसके बाद हमें आगे 2-3 दिन पैदल सफर करना पड़ा. सीमा चौकी शेनी बॉर्डर से करीब 3 किलोमीटर पहले है. वहां हमें रोक लिया गया. वहां हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया. यहां तक लड़कियों से भी. हमने देखा वहां अन्य छात्र-छात्राएं 4-4 दिन से बैठे हुए हैं. उस पार जाने के इंतजार में. तब हमारी उम्मीद टूट गई. एक बार तो लगा वापस टेर्नोपिल चले जाते हैं. हालांकि 6-7 घंटे बाद हमें सीमा पार जाने की इजाजत मिल गई.’
उन्होंने बताया, ‘रास्ते में हमारे पास खाने-पीने और अन्य जरूरत की चीजें खत्म होने लगीं. तब हमने जगह-जगह अन्य लोगों का जो सामान पड़ा मिला, उसमें से अपने काम की चीजें निकालकर इस्तेमाल कीं. रास्ते में पड़े दूसरों के और अपने भी कम इस्तेमाल वाले सामान को जलाकर शरीर को गर्म रखने का बंदोबस्त किया.’ इतना बताने के दौरान कई बार आदित्य की आंखें नम हो जाती हैं. उनकी मानें तो अभी कई लोगों का तो यूक्रेन में पता नहीं चला है कि वे कहां हैं. इनमें उनका दोस्त हिमेश भी है. वह 9 दिनों से लापता है. अभी 3 महीने पहले ही वह पढ़ने के लिए यूक्रेन आया था. मेडिकल की पहले साल की पढ़ाई कर रहा था. अब पता नहीं कहां, किस हाल में होगा.
ऐसे ही 19 साल की इकरा भी आदित्य के साथ ही लौटी हैं. वे ‘इंडिया टुडे’ से बातचीत के दौरान कहती हैं, ‘हमारे कॉलेज के कोऑर्डिनेटर ने हमारी बहुत मदद की. उन्होंने हमारे लिए बस का इंतजाम किया. ताकि हम रोमानिया बॉर्डर तक जा सकें. हालांकि बस ने हमें जहां छोड़ा, वहां से 5 दिन पैदल चलकर हम सीमा तक पहुंचे. हमें अपना सामान रास्ते में ही छोड़कर आना पड़ा क्योंकि इसके सिवा कोई चारा नहीं था. मुझे खारकीव में पढ़ने वाले साथियों के लिए बहुत डर लग रहा है. जब लड़ाई शुरू हुई, तब हमारे निकलने तक हमें अपने इर्द-गिर्द सिर्फ एक ही धमाका सुनाई दिया था. खारकीव में तो लड़ाई पूरे चरम पर है. पता नहीं, वे लोग कैसे होंगे.’ इतना बताने तक इकरा भी भावुक हो जाती हैं. वे यूक्रेन की फैंक्विस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं.
यूक्रेन से लौटने वाले करीब-करीब हर छात्र-छात्रा की ऐसी ही कहानियां हैं. और इधर, दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने बच्चों का इंतजार कर रहे माता-पिता की आंखें पथराई जा रही हैं. यहां उतरने वाली हर विशेष उड़ान के साथ उन्हें उम्मीद बंधती है कि शायद इसमें उनका बच्चा वापस आ गया होगा. किसी-किसी की यह उम्मीद पूरी होती है तो चेहरे खिल जाते हैं. लेकिन जिनका इंतजार कुछ और घंटे बढ़ जाता है, उनके दिलों में आशंका बैठ जाती है कि क्या पता उनकी संतान सही-सलामत लौट भी पाएगी या नहीं.
अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत यानी आईसीसी ने यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराध के खिलाफ जांच करने का एलान किया है. युद्ध अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक तय किए गए हैं. आखिर कैसे पता चलता है कि युद्ध अपराध हुआ है?
डॉयचे वैले पर मोनीर गाएदी की रिपोर्ट-
रूस के सैनिक यूक्रेन में लगातार हवाई हमले और टैंकों से नागरिक ठिकानों को निशाना बना रहे हैं. इन हमलों ने युद्ध अपराध की आशंका पैदा कर दी है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि रूसी सेना यूक्रेन में "अविवेकपूर्ण हमले" कर रही है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने नागरिक इलाकों में रूस के मिसाइल हमले को युद्ध अपराध कहा है. मंगलवार को रूसी सेना ने खारकीव के फ्रीडम स्क्वेयर पर हवाई हमला किया. बुधवार को भी टीवी टावर और कई रिहायशी इमारतों पर बमबारी हुई. इनमें कई लोगों की जान भी गई है. अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत आईसीसी ने कहा है कि वो युद्ध अपराध की आशंकाओं को खंगालने के लिए जांच शुरू करने जा रहे हैं. बुधवार को एक बयान में अभियोजक करीम ए ए खान ने कहा है कि जांच शुरू करने के लिए "उचित आधार" मौजूद हैं और सबूतों को जमा करने का काम शुरू कर दिया गया है.
युद्ध के नियम
युद्ध अपराधों के लिए खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय मानक तय किए गए हैं और इन्हें मानवता के खिलाफ अपराध से बिल्कुल अलग रखा गया है. किसी जंग के दौरान मानवता से जुड़े नियमों के गंभीर उल्लंघन के रूप में युद्ध अपराध की परिभाषा दी गई है. रोम स्टेच्यू ऑफ द इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के तरफ से दी गई यह परिभाषा 1949 की जिनेवा कंवेंशन से निकली थी. इसका विचार यहां से आया कि किसी इंसान को सरकार या किसी देश की सेना की कार्रवाई के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
नरसंहार की रोकथाम करने वाला संयुक्त राष्ट्र का विभाग युद्ध अपराध को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध से अलग कर के देखता है. युद्ध अपराध किसी घरेलू संघर्ष या फिर दो देशों के बीच हो सकते हैं, जबकि नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध शांति काल में या फिर सेना की किसी समूह या निहत्थे लोगों पर की गई कार्रवाई होती है.
उन गतिविधियों की एक लंबी सूची है जिन्हें युद्ध अपराध माना जाता है. इसमें लोगों को बंधक बनाना, जानबूझ कर हत्या करना, प्रताड़ना या फिर युद्ध बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और बच्चों को युद्ध में जाने पर विवश करना भी शामिल है. हालांकि व्यवहार में बहुत कुछ ऐसा है जहां पर युद्ध अपराध की परिभाषा धुंधली पड़ जाती है.
टोरोंटो यूनिवर्सिटी के मंक स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स एंड पब्लिक पॉलिसी के मार्क केर्स्टन कहते हैं, "युद्ध के कानून अकसर आम लोगों की मौत नहीं रोक पाते हैं. हर आम नागरिक की मौत अनिवार्य रूप से गैरकानूनी नहीं है." शहरों या गांवों पर हमला, आवासीय परिसरों या स्कूलों पर बमबारी यहां तक कि नागरिक समूहों की हत्या भी अनिवार्य रूप से युद्ध अपराध नहीं है, अगर उनकी सेना की जरूरतों के हिसाब से यह उचित हो. यही काम युद्ध अपराध हो जाएंगे अगर इसका नतीजा बेवजह के विध्वंस, पीड़ा और मौत तो हो मगर सेना को उस हमले का फायदा ना मिले.
अंतर, समानता और सावधानी
किसी आदमी ने या फिर सेना ने युद्ध अपराध किया है या नहीं यह पता लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून ने तीन सिद्धांत दिए हैंः अंतर, समानता और सावधानी. समानता सेनाओं को किसी हमले का जवाब अत्यधिक हिंसा से देने से रोकती है. केर्स्टन ने डीडब्ल्यू से कहा, "उदाहरण के लिए अगर एक सैनिक मरता है तो आप जवाबी कार्रवाई में पूरे शहर पर बम नहीं गिरा सकते."
अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस कमेटी के मुताबिक उन चीजों को भी निशाना बनाने की मनाही है जिनसे, "संयोगवश आम लोगों की जान गई हो, आम लोग घायल हुए हो या फिर किसी नागरिक सामान को नुकसान हुआ हो और जो सेना को संभावित फायदा मिलने के लिहाज से अत्यधिक सीधी और ठोस कार्रवाई हो."
सावधानी के लिए जरूरी है कि सभी पक्ष संघर्ष को पूरी तरह से टालें या फिर आम लोगों को होने वाला नुकसान कम से कम रखें. केर्स्टेन का कहना है कि आखिरकार, "अंतर का सिद्धांत यह कहता है कि आपको लगातार नागरिक, युद्धरत आबादी और चीजों में अंतर करना है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह काम मुश्किल हो सकता है, "उदाहरण के लिए ऐसे बैरक पर हमला करना जहां लोग हों और वो कहें कि युद्ध में हिस्सा नहीं ले रहे हैं तो यह युद्ध अपराध होगा. इसी तरह से किसी ऐसे सैन्य अड्डे को निशाना बनाया जहां रखे जेनरेटर अस्पताल को बिजली देते हों."
आम लोगों और सैनिकों के बीच फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है. केर्स्टन का कहना है, "देशद्रोही होते हैं, सादे कपड़ों में अधिकारी होते हैं, हमला करने वाले जंग में हर वक्त खुद को छिपाए रखते हैं, ये सब बहुत सामान्य सी चालें हैं."
समय से मुकाबला
जब आईसीसी अभियोजकों के पास यह मानने के लिए वजहें होती हैं कि युद्ध अपराध हुआ है तो वे सबूत ढूंढने के लिए जांच शुरू करते हैं. इसके जरिए उन खास बिंदुओं की तलाश की जाती है जिनसे किसी व्यक्ति को उस अपराध का दोषी ठहराया जा सके. केर्स्टन का कहना है, "यूक्रेन के युद्ध में हुए अपराधों के लिए ये वही पल हैं जिनकी ओर हम बढ़ रहे हैं."
तेजी बहुत जरूरी है नहीं तो सबूत बिगड़ जाएंगे या फिर खत्म हो जाएंगे. अभियोजकों के लिए ऐसे संदिग्ध अपराधों की सफल जांच करना और मुश्किल हो जाता है जब संघर्ष में एक पक्ष ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की हो या फिर गवाह मौजूद ना हों. (dw.com)
यूक्रेनी नेताओं ने कहा है कि जेपरजिया परमाणु बिजली संयंत्र में आग लग गई है. इस संयंत्र को रूसी सेना ने घेर लिया था और इस पर लगातार गोलीबारी की जा रही थी.
यूक्रेन के जेपरजिया में स्थित यूरोप के सबसे बड़े परमाणु बिजली संयंत्र में आग लगने की खबर है. रूसी गोलबारी के बाद यह आग लगी है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने कहा है कि संयंत्र के इर्दगिर्द विकिरण के स्तर में कोई बदलाव नहीं देखा गया है.
जेपरजिया में रात भर से गोलाबारी हो रही थी. यूक्रेन के ऊर्जा मंत्रालय ने बताया कि आग संयंत्र के उस हिस्से में लगी है, जहां ट्रेनिंग दी जाती है. यह खबर लिखे जाने तक अग्निशमनकर्मी आग पर काबू पाने में कामयाब नहीं हो पाए थे.
संयंत्र के निदेशक ने यूक्रेन24 नामक टीवी चैनल को बताया कि परिसर विकिरणों से सुरक्षित है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इस घटना के बाद कहा कि रूस की गोलाबारी की वजह से परमाणु खतरा पैदा हो गया था.
खेरसॉन पर कब्जा
रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के एक अहम बंदरगाह पर कब्जा कर लिया है और एक दूसरे बंदरगाह पर घेरा डाल दिया है. रूसी सैनिक यूक्रेन को समुद्री किनारों से काटना चाहते हैं. रूसी सैनिकों का कहना है कि उन्होंने यूक्रेन के खेरसॉन पर नियंत्रण कर लिया है. स्थानीय यूक्रेनी अधिकारियों ने भी इसकी पुष्टि की है.
काले सागर के इस तटवर्ती शहर की सरकारी इमारतों पर अब रूसी सैनिकों का कब्जा है. हालांकि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि वो अब भी काम कर रहे हैं और जितना संभव है, आम लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. एक हफ्ते पहले शुरू हुए हमले के बाद रूस के कब्जे में जाने वाला यह यूक्रेन का पहला शहर है. खेरसॉन के बाद ऐसा लग रहा है कि रूसी सैनिकों ने मिकोलेव का रास्ता पकड़ लिया है. काले सागर के किनारे मौजूद यह शहर यूक्रेन का एक अहम बंदरगाह और जहाज बनाने का केंद्र है.
रूसी सैनिकों ने कई मोर्चों पर अपना हमला तेज कर दिया है. हालांकि सैनिकों और टैंकों का एक बड़ा दस्ता राजधानी कीव के बाहर कई दिनों से अटका हुआ है. गुरुवार को एक और रणनीतिक रूप से अहम बंदरगाह वाले शहर मारियोपोल के बाहरी इलाकों में भारी बमबारी हुई. यह शहर पूरी तरह से अंधेरे, अकेलेपन और डर में घिर गया है. शहर की बिजली और फोन लाइन मोटे तौर पर चली गई है. घरों और दुकानों में खाने और पानी की कमी है. फोन नहीं चलने के कारण राहतकर्मियों को यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि घायलों को कहां ले कर जायें.
यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में हालत और भी खराब है. यहां पिछले तीन दिन से भारी बमबारी हो रही है. पूरा शहर धूल और धुएं से अटा पड़ा है. गिरती छतों और बमों की चपेट में आने से बचने के लिए लोग भाग कर ट्रेन स्टेशन पहुंच रहे हैं और ट्रेनों में सवार हो रहे हैं. उन्हें यह भी नहीं पता कि जाना कहां है.
कीव से 25 किलोमीटर दूर सैनिक कारवां
गुरुवार सुबह युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि रूस की जमीनी सेना रुक गई है और रूस ने हवाई हमलों का मुंह खोल दिया है. उन्हें यूक्रेनी रक्षा तंत्र से जवाब दिया जा रहा है. राष्ट्रपति ने कहा, "कीव ने मिसाइल और बम के हमले की एक और रात झेली है हमारा एयर डिफेंस काम कर रहा है. खेरसॉन, इज्युम और उन सारे शहरों ने जिन पर हवाई हमला हुआ है, उन्होंने कुछ भी नहीं छोड़ा है." कीव में मौजूद पत्रकारों ने भी बुधवार की रात कई मिसाइलों के धमाकों की आवाजें सुनी. कई मिसाइलों को यूक्रेन के एयर डिफेंस सिस्टम की मदद से बेकार भी किया गया.
किसी वॉर फिल्म जैसा दिखने लगा है यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव
इस बीच रूसी सैनिकों का करीब 65 किलोमीटर लंबा काफिला जो मंगलवार की सुबह यूक्रेन की तरफ बढ़ा था वह अब भी कीव के बाहर 25 किलोमीटर की दूरी पर खड़ा है. यूक्रेनी सैनिकों ने कीव में घुसने के रास्तों पर सख्त मोर्चेबंदी कर रखी है. आम लोगों ने भी हथियार उठा लिए हैं और इसमें 60 साल से ज्यादा की उम्र वाले बुजुर्ग भी हैं.
500 रूसी सैनिकों की मौत
अब तक कम से कम 227 आम लोगों की मौत दर्ज हुई है और 525 लोग घायल हुए हैं. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त के हैं. आयुक्त ने माना है कि यह संख्या असल के मुकाबले बहुत कम है. यूक्रेन ने पहले कहा था कि 2000 से ज्यादा आम लोगों की मौत हुई है.
रूस ने युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार गुरुवार को बताया है कि उसके करीब 500 सैनिकों की मौत हुई है और लगभग 1600 सैनिक घायल हैं. यूक्रेन ने अपने सैनिकों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं दिया है. यूक्रेन के मिलिट्री जनरल स्टाफ ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि 9000 रूसी सैनिक युद्ध में हताहत हुए हैं. इसमें यह भी साफ नहीं किया गया है कि इसमें घायल सैनिकों की संख्या भी शामिल है या नहीं.
यूक्रेन पर हमले के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों का जर्मनी को भी होगा तगड़ा नुकसान
सात दिन की लड़ाई में यूक्रेन के करीब 2 फीसदी से ज्यादा लोग देश के बाहर जाने के लिए मजबूर हुए हैं. पूरे युक्रेन में ट्रेन स्टेशनों पर भारी भीड़ आ रही है. लोगों के हाथ में कंबल में लिपटे बच्चे हैं और वो पहिए वाली सूटकेस धकेलते हुए वहां पहुंचने की कोशिश में हैं जहां पहुंच कर वो शरणार्थी बन जाएंगे. तकरीबन 10 लाख से ज्यादा लोग जो यूक्रेन से हाल के दिनों में बाहर गए हैं उनमें कम से कम 200 अनाथ बच्चे भी हैं जो हंगरी पहुंचे हैं. उनकी मानसिक और शारीरिक स्थित ठीक नहीं है. इनमें से कई बच्चों ने बमबारी के दौरान घंटों तक जमीन के नीचे बने शेल्टरों में छिप कर जान बचाई है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने 4.4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन में इस युद्ध के कारण 40 लाख लोगों के शरणार्थी बनने की आशंका जताई है. यूरोपीय संघ ने इन लोगों को अस्थायी रेजिडेंट परमिट देन की बात कही है. इसके आधार पर इन्हें 27 देशों में पढ़ाई या काम करने का अधिकार मिल जायेगा. इस प्रस्ताव को अभी सदस्य देशों की मंजूरी मिलनी बाकी है, हालांकि सदस्य मोटे तौर पर इस मामले में सहमति जता चुके हैं.
दूसरे दौर की बातचीत
यूक्रेन के अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल रूस के साथ युद्धविराम पर बातचीत शुरू हो गई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोडल्याक इसका नेतृत्व कर रहे है. इससे पहले पोडोल्याक ने ट्वीटर पर जानकारी दी कि वो बातचीत में शामिल होने के लिए दूसरे सदस्यों के साथ हैलीकॉप्टर में बैठ चुके है. उनके साथ प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसद डेविड अराखामिया ने कहा है कि वो रूस के साथ मानवीय गलियारे पर बातचीत करना चाहते हैं. बातचीत शुरू होने से पहले रूसी विदेश मंत्री ने कहा है कि रूसी सैनिक यूक्रेन के सैनिक ठिकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई में जुटे रहेंगे. उनका यह भी कहना है कि यूक्रेन पर शासन कौन करेगा यह यूक्रेन के लोग तय करेंगे.
रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी व्लादिमीर मेडिंस्की कर रहे हैं. उनका कहना है कि बातचीत के प्रस्तावों में सैन्य तकनीकी, मानवीय, अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक मसले शामिल हैं. बेलारूस और रूस के मुताबिक यह बातचीत बेलारूस के ब्रेस्ट इलाके में होगी जिसकी सीमा पोलैंड से लगती है.
रूस में आखिरी बचे उदारवादी रेडियो स्टेशन एखो मोस्कवी बंद हो गया है. रेडियो के संपादक का कहना है कि यूक्रेन में जंग की कवरेज को लेकर उस पर बहुत दबाव आ गया था जिसके बाद कंपनी बोर्ड को भंग करने का फैसला किया गया है. यह स्टेशन रूस में समाचार और सम सामयिक विषयों के प्रसारण का प्रमुख केंद्र था. मंगलवार को इसका प्रसारण बंद होने के बाद भी यह यूट्यूब पर चल रहा था. रूस की स्वतंत्र मीडिया पर कई सालों से सरकार दबाव बनाती आ रही है. बहुत से चैनल और प्रसारण केंद्र पहले ही बंद हो चुकी हैं.
रूसी लोगों पर युद्ध का असर
रूस पर लगे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण वहां काम करने वाली बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना काम समेटना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही रूस के बेहद अमीर लोगों पर भी होगा. इन लोगों की संपत्तियां यूरोपीय देशों में हैं और ये अपने बच्चों को यूरोप के महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने भेजते हैं. फ्रेंच अधिकारियों ने गुरुवार को बताया कि उन्होंने इगोर सेचिन के एक यॉट को जब्त कर लिया है. इगोर सेचिन व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी और रूस की प्रमुख तेल कंपनी रोजनेफ्ट के मालिक हैं.
इस बीच रूस के एक और रईस रोमान अब्रामोविच ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि वो फुटबॉल क्लब प्रीमियर लीग चेल्सी को बेचने की कोशिश में हैं. यह सौदा कम से कम 2.5 अरब डॉलर का होगा. अब्रामोविच ने क्लब की बिक्री से मिलने वाले पैसे को यूक्रेन के युद्ध पीड़ितों की मदद के लिए देने का एलान किया है.
रूस के आमलोगों पर भी प्रतिबंधों का असर दिख रहा है. ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम काम नहीं कर रहा है और एटीएम मशीनों से भी पर्याप्त नगदी नहीं मिल पा रही है. ऐसे में लोगों को खरीदारी करने में दिक्कत हो रही है. आने वाले दिनों में यह परेशानी और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है. रूबल की कीमत घट गई है और चीजों की महंगाई काफी ज्यादा बढ़ गई है.
एनआर/एडी(रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
यूक्रेन का खारकीव शहर बर्बाद हो गया है. एक बड़ी आबादी जान बचाने के लिए भाग चुकी है. जो नहीं भाग पाए हैं, वे डरकर छुपे हुए हैं. इस तबाही के बीच भी कई लोगों को अपना फर्ज याद है. पढ़िए ऐसी ही एक पत्रकार की आपबीती.
धमाके, हवाई बमबारी और मिसाइल हमले की चेतावनी देते सायरन और तबाह हो चुके घर. यूक्रेन के खारकीव की रहने वाली ओलेना ओस्टैपचेनको जब अपने शहर की बर्बादी, इसकी आपबीती सुनाना शुरू करती हैं, तो मिसाल देने के लिए उन्हें जो इकलौता संदर्भ याद आता है वह है, सोवियत संघ के दौर में बनी दूसरे विश्वयुद्ध की भयावहता बयान करने वाली फिल्में. ओलेना के शहर में अभी जो हो रहा है, उससे मिलता-जुलता बस यही उदाहरण उनकी स्मृति में है.
खारकीव, यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यह रूस की सीमा के पास बसा है और यहां ज्यादातर लोग रूसी भाषा बोलते हैं. 24 फरवरी को तड़के जब रूस ने अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला किया, तो उसके शुरुआती निशाने की परिधि में खारकीव भी था.
इस बात को अब एक हफ्ते से ज्यादा वक्त हो चुका है. इस दौरान खारकीव पर लगातार हमले हो रहे हैं. उसके आसमान से मिसाइलों की जैसे बारिश हो रही है. रिहाइशी इलाके और प्राशासनिक इमारतें तहस-नहस हो चुकी हैं. देखकर लगता है मानो 40 का दशक लौट आया हो. जैसे यह शहर अचानक ही वापस विश्व युद्ध के दौर में पहुंच गया हो.
क्यों युद्ध शुरू होने तक रुके रहे लोग?
ओलेना पत्रकार हैं. वह एक ऑनलाइन समाचार वेबसाइट के लिए लिखती हैं. अपने शहर का हाल बताते हुए वह कहती हैं, "हमने किताबों में युद्ध का जो हाल पढ़ा है, फिल्मों में जैसा देखा है, यह वैसा ही कोई दृश्य लगता है." एक हफ्ते पहले तक यहां लगभग 14 लाख लोगों का बसेरा था, लेकिन अब बहुत से लोग जान बचाकर भाग गए हैं. ओलेना कहती हैं कि वे भागने वाले लोग सीधे-सादे, सरल लोग थे. क्योंकि उन्होंने भागने की जल्दी नहीं दिखाई. जब तक युद्ध उनके दरवाजे तक नहीं पहुंच गया, वे रुके रहे. ओलेना, उनके आखिरी घड़ी तक रुके रहने की वजह बताती हैं, "हमने सोचा, हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. रूसी पक्का हम पर बम नहीं गिराएंगे."
ओलेना, उनका 25 साल का बेटा जो अभिनेता है और उसके पार्टनर ने अबतक अपना शहर छोड़ा है. वे घर में हैं, लेकिन बाहर कदम रखने से भी डरते हैं. घर भी सुरक्षित नहीं लगता. वे गलियारे और बाथरूम में रहते हैं. उनका डर बेवजह नहीं है. शहर के कई लोग बस इसलिए मारे गए क्योंकि वे जरूरत का सामान लेने घर से निकले थे. अब यहां सामान्य जिंदगी नामुमकिन सी हो गई है.
न्यूज एजेंसी एएफपी से बात करते हुए ओलेना कहती हैं, "आज थोड़ी शांति थी. जिंदगी में थोड़ी सुगबुगाहट आई थी, लेकिन जैसे ही किसी प्लेन की आवाज कानों में पड़ती है, वह क्रूर सा खौफ लौट आता है. हमने बचपन में जो फिल्में देखी थीं, उनमें ऐसा ही होता था."
बेटे के लिए रुक गईं ओलेना
गोलीबारी शुरू होने के पहले ओलेना ने सोचा था कि वह अपना शहर खारकीव नहीं छोड़ेंगी. फिर चाहे यह यूक्रेन के पास रहे, या इसपर रूस का कब्जा हो जाए. मगर अब वह असहाय महसूस करती हैं. कहती हैं, "बम धमाकों और मिसाइलों के मुकाबले मैं कुछ नहीं कर सकती हूं." दो दिन पहले ओलेना ने भागने का मन बनाया. वह तैयार थीं, लेकिन उनका बेटा एक अस्पताल में वॉलंटियर बन गया.
वह नहीं भागना चाहता है, सो अब ओलेना भी कहीं नहीं जाएंगी. वह रुक गई हैं क्योंकि डरती हैं कि अगर वह गईं, तो इतनी अकेली हो जाएंगी कि शायद अपना मानसिक संतुलन खो देंगी. उन्हें उम्मीद है कि उनके रुकने से शायद उनके बेटे को कुछ राहत मिले. ओलेना को लगता है कि वह अपने बेटे को मना लेंगी कि वह कोई जोखिम ना उठाए, अपनी जान दांव पर ना लगाए.
ओलेना का शहर कभी बहुत गुलजार, जिंदादिल था. सोवियत संघ के जमाने में वह कुछ समय के लिए यूक्रेन की राजधानी भी रहा था. लेकिन आज वह पहचाना नहीं जाता. शहर का सार्वजनिक यातायात थम गया है. सड़क पर राहगीर और साइकल सवार भी दिखने बंद हो गए हैं. राजधानी कीव की तरह खारकीव की मेट्रो सुरंगें भी हवाई बमबारी से बचने के लिए शेल्टर में तब्दील कर दी गई हैं. बिजली, पानी और हीटिंग सिस्टम की आपूर्ति भी कई बार रोकी जाती है. सुपरमार्केट कुछ देर के लिए खुलते हैं, लेकिन ज्यादातर रैक खाली हैं. मीट की तो खासतौर पर तंगी है.
किससे मिलती है हिम्मत?
इस हिंसा और निराशा के बीच भी ओलेना को जो एक चीज आगे बढ़ा रही है, वह है उनका काम. उनकी पत्रकारिता. लोगों तक खबर पहुंचाने का उनका फर्ज. वह भी तब, जब यह तक पक्का नहीं कि उन्हें वेतन मिलेगा भी कि नहीं. मिलेगा, तो कब मिलेगा. ओलेना कहती हैं, "यह मुझे खुद को बटोरने में मदद करता है."
3 मार्च को यूक्रेन और रूस के बीच फिर से वार्ता होने की उम्मीद है. मगर ओलेना को इस बातचीत से कुछ बड़ी राहत मिलने की बहुत आस नहीं है. वह कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि हम किस चीज से उम्मीद लगा सकते हैं." ओलेना अपनी निराशा में संकेत देती हैं कि शायद अब एक ही उपाय शेष है. शायद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सत्ता से बेदखल करके ही यह युद्ध रुक सकेगा.
पेरिस के ग्रीवां संग्रहालय ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक मोम की प्रतिमा को हटा दिया है. संग्रहालय का कहना है कि यूक्रेन पर पुतिन के हमले के विरोध में मूर्ति को हटाया गया.
ग्रीवां संग्रहालय का कहना है कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने हाल के दिनों में पुतिन की प्रतिमा को तोड़ने की कोशिश की है, जिससे उसे नुकसान पहुंचा है. पुतिन की यह मोम की प्रतिमा साल 2000 में बनाई गई थी. अब इस प्रतिमा को म्यूजियम के गोदाम में रखा गया है. ग्रीवां संग्रहालय ने यह भी कहा कि वह पुतिन की प्रतिमा को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की मूर्ति से बदल सकता है.
ग्रीवां संग्रहालय के निदेशक इवेज डेलोमिओ ने फ्रांसीसी रेडियो ब्लू को बताया, "पुतिन जैसे व्यक्ति के चरित्र को दुनिया के सामने पेश करना हमारे लिए संभव नहीं है. संग्रहालय के इतिहास में पहली बार हम हाल की ऐतिहासिक घटनाओं के कारण ऐसा कर रहे हैं."
उन्होंने बताया कि सप्ताहांत में संग्रहालय पहुंचे दर्शकों ने प्रतिमा पर हमले किए और उसे क्षतिग्रस्त कर दिया. उन्होंने कहा, "जो हुआ उसके परिणामस्वरूप, हमने और हमारे कर्मचारियों ने फैसला किया कि हम इस प्रतिमा के बाल और इसकी स्थिति को रोज-रोज ठीक नहीं कर सकते."
संग्रहालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह साफ नहीं है कि पुतिन की प्रतिमा को प्रदर्शनी में कब दोबारा लगाया जाएगा. किसी वॉर फिल्म जैसा दिखने लगा है यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव
"हीरो बन गए जेलेंस्की"
संग्रहालय में पुतिन की प्रतिमा को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रखा गया था. संग्रहालय के निदेशक से जब यह पूछा गया कि अब पुतिन की मूर्ति की जगह कौन लेगा, तो डेलोमिओ ने कहा कि शायद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की.
उन्होंने कहा, "शायद राष्ट्रपति जेलेंस्की की प्रतिमा को पुतिन की मूर्ति से बदल दिया जाएगा. वह विरोध जारी रख और अपने देश से नहीं भागकर हीरो बन गए हैं. वे दुनिया के इतिहास में आज की तारीख में अपने लिए जगह बना सकते हैं."
2014 में रूस द्वारा क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद एक महिला ने इस प्रतिमा पर हमला किया था और मूर्ति के सिर पर चाकू से वार किया था. यूक्रेन पर हमले के साथ ही दुनियाभर में यूक्रेन के समर्थन में प्रदर्शनों का दौर जारी है. लोग रूस से हमले रोकने के लिए कह रहे हैं.
यूक्रेन पर रूस के हमले की चौतरफा निंदा हो रही है. पश्चिम देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं लेकिन पुतिन इन प्रतिबंधों के दबाव में फिलहाल आते नहीं दिख रहे हैं. 2014 में रूस ने जब क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने साथ मिला लिया तभी से उस पर प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया था. इसके बाद रूसी राष्ट्रपति के आलोचक आलेक्सी नावाल्नी को 2020 में जहर देने के बाद ये सिलसिला और आगे बढ़ा था. यूक्रेन पर हमले के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों का जर्मनी को भी होगा तगड़ा नुकसान
पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दावा किया कि सैन्य ऑपरेशन का लक्ष्य नागरिकों की रक्षा करना और यूक्रेन का "विसैन्यीकरण" सुनिश्चित करना है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के राष्ट्राध्यक्षों ने गुरुवार शाम एक औचक मुलाकात की. क्वॉड संगठन की इस बैठक में यूक्रेन के हवाले से ताइवान पर बातचीत हुई.
गुरुवार को एकाएक हुई क्वॉड देशों की वर्चुअल बैठक में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं ने कहा कि यूक्रेन जैसी घटना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए. यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ ताइवान को लेकर बढ़ती चिंताओं के दौरान यह बैठक हुई जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा शामिल हुए.
यूक्रेन पर रूस के हमले का हवाला देते हुए जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कहा, "हम इस बात पर सहमत हुए हैं कि यथास्थिति में बलपूर्वक एकतरफा बदलाव की इजाजत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नहीं दी जा सकती.” किशिदा का इशारा चीन द्वारा ताइवान पर हमले की संभावना की ओर था. ताइवान खुद को एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश मानता है जबकि चीन उसे अपना हिस्सा बताता है.
चीन के हमले के खतरे के बीच अमेरिकी अधिकारी पहुंचे ताइवान
बैठक के बाद किशिदा ने पत्रकारों को बताया, "हम इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि यह घटना (यूक्रेन का युद्ध) इस बात को और अहम बना देती है कि एक आजाद और खुला हिंद-प्रशांत क्षेत्र कितना जरूरी है.”
चीन का नाम लिए बिना बातचीत
नेताओं ने बैठक के दौरान इसी तरह की टिप्पणियां कीं, जिनका इशारा चीन की ओर था. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा, "जो यूक्रेन में हो रहा है, उसे हम हिंद-प्रशांत में नहीं होने दे सकते. हम एक स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत बनाए रखने को प्रतिबद्ध हैं, जहां छोटे देशों को बड़ी ताकतों से डरने की जरूरत ना हो.”
इसी महीने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की सालाना बैठक हुई थी. आने वाले महीनों में इन राष्ट्राध्यक्षों का जापान में मिलने का कार्यक्रम है लेकिन गुरुवार की बैठक का एकाएक ऐलान हुआ. बैठक के बाद जारी एक साझा बयान में क्वॉड नेताओं ने दोहराया कि क्षेत्र में सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए और वे सैन्य, आर्थिक व राजनीतिक दबाव से मुक्त रहें.
ताइवान: रक्षा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने समझौते को दी मंजूरी
हालांकि साझा बयान में ताइवान का जिक्र नहीं किया गया लेकिन कहा गया कि नेताओं ने यूक्रेन विवाद और मानवीय संकट पर बात की. बयान के मुताबिक, "वे इस बात पर सहमत हुए कि मानवीय सहायता और आपदा राहत-बचाव की एक प्रक्रिया बनाए जाने की जरूरत है जो भविष्य में क्वॉड देशों को मानवीय चुनौतियों से निपटने में मददगार साबित होगी.”
ताइवान ने किया स्वागत
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्वीट कर कहा कि इस बैठक में क्वॉड नेताओं ने "हिंद-प्रशांत समेत, पूरी दुनिया में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति हमारी वचनबद्धता पर बात की.”
वॉशिंगटन में ताइवान के प्रतिनिधि कार्यालय ने क्वॉड की इस प्रतिबद्धता का स्वागत किया है. उन्होंने एक बयान में कहा, "ताइवान क्षेत्र के सभी शांतिप्रिय साझीदारों के साथ स्थिरता और प्रगति की दिशा में काम करता रहेगा.”
साझा बयान के मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि "क्वॉड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और प्रगति के अपने मुख्य लक्ष्य पर केंद्रित रहे.” भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन संकट में कूटनीतिक हल की ओर लौटने की जरूरत पर बल दिया.
क्वॉड सदस्यों में भारत एकमात्र देश है जिसने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की निंदा नहीं की है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर मतदान से भी परहेज किया है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
वाशिंगटन, 4 मार्च| अमेरिकी राज्य मैरीलैंड के मोंटगोमरी काउंटी में एक अपार्टमेंट परिसर में विस्फोट के बाद पांच लोगों घायल हो गए, जिससे उनकी हालत गंभीर है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, चार मंजिला अपार्टमेंट परिसर का एक हिस्सा, वाशिंगटन डीसी के बाहर कई किलोमीटर दूर, काले, सुलगते मलबे के ढेर में समा गया।
मोंटगोमरी काउंटी के फायर चीफ स्कॉट गोल्डस्टीन के अनुसार, गुरुवार सुबह करीब 10.30 बजे दमकलकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे और इमारत में आग लगने और ढहने से पहले वे कुछ निवासियों को वहां से निकालने में सफल रहे।
गोल्डस्टीन ने संवाददाताओं से यह भी कहा कि लगभग 125 से 150 अग्निशामकों ने मामले को लेकर कहा था कि आग कैसे लगी यह बताना मुश्किल है।
मोंटगोमरी काउंटी फायर एंड रेस्क्यू के प्रवक्ता पीट पिरिंगर ने कहा कि सात से आठ लोग आग की चपेट में आए थे, हालांकि उन्हें ज्यादा चोटें नहीं लगी हैं, उनमें से कुछ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
यह स्पष्ट रूप से एक बहुत दुखद घटना है, मोंटगोमरी काउंटी के कार्यकारी मार्क एलरिच ने बाद में कहा, काउंटी के अधिकारी अपार्टमेंट के निवासियों को आश्रय और अन्य सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाएंगे।
मैरीलैंड के गवर्नर लैरी होगन ने कहा कि राज्य के अधिकारी लोगों की सहायता करने के लिए मोंटगोमरी काउंटी के अधिकारियों के संपर्क में हैं। (आईएएनएस)
-समरा फ़ातिमा और मोहम्मद ज़ुबैर ख़ान
"मुझे अगर एक चारपाई मिल जाए, एक रोटी और उसके साथ खाने को कोई सालन मिल जाये तो मैं ख़ुश रहूंगा. मुझे ज़िंदा रहने के लिए किसी तरह की ऐश की ज़रुरत नहीं है... हालांकि, हमारी ज़िंदगी बहुत रंगीन गुज़री है और यूक्रेन में हमारे यहां होने वाली महफ़िलों का कोई जवाब नहीं. लोग सड़क पर आपके साथ सेल्फ़ी लेते हैं. बहुत से लोग आकर कहते हैं कि हम आपसे बहुत प्रभावित हैं. लेकिन मैंने इसे अपनी आदत नहीं बनाई है."
ये शब्द पाकिस्तानी मूल के अरबपति मोहम्मद ज़हूर के हैं, जिन्हें 'कीएव का शहज़ादा' भी कहा जाता है. दुनिया उन्हें 'स्टील किंग' और यूक्रेन की एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की एक बड़ी हस्ती के रूप में जानती है.
उनकी पत्नी ने साल 2008 में मिसिज़ वर्ल्ड का ख़िताब जीता था और यूक्रेन की एक मशहूर गायिका हैं.
मोहम्मद ज़हूर ने यूक्रेन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों का ज़िक्र किया है. पिछले 11 वर्षों से, वह यूक्रेन में म्यूज़िक एवार्ड का आयोजन कर रहे हैं, जो उनके अनुसार "ग्रैमी" से कम नहीं हैं.
यूक्रेन पर रूसी हमले से दो दिन पहले वह अपनी आठ वर्षीय जुड़वां बेटियों को लेकर लंदन चले गए थे. जब मैंने लंदन में उनसे मुलाक़ात की, तो उनकी यूक्रेनी पत्नी यूक्रेन की सीमा के पास थी और देश छोड़ने की कोशिश कर रही थी.
बाद में हमें बताया गया कि वह अब यूक्रेन से निकल चुकी हैं.
कराची का एक छात्र यूक्रेन का सबसे अमीर व्यक्ति कैसे बना?
मैं पहली बार लंदन में इतने शानदार घर में दाख़िल हो रही थी. जब मैं उनका इंटरव्यू करने पहुंची तो उन्होंने ख़ुद दरवाज़ा खोला और एक 'जेंटल मेन' की तरह मेरा कोट लेकर हैंगर पर टांग दिया.
जैसे-जैसे हम घर में दाख़िल हो रहे थे, मेरे दिल में एक के बाद एक नए सवाल जन्म ले रहे थे, जिनके बारे में मैं पहले से सोच कर नहीं गई थी. अगर लंदन का घर इतना शानदार है, तो मोहम्मद ज़हूर का यूक्रेन का घर कैसा होगा? क्या यह वाक़ई सच है कि सपने चाहे कितने भी बड़े क्यों न हों, सच हो सकते हैं?
'स्टील किंग' बनने के बाद उन्होंने सारी स्टील मिलें बेच क्यों दीं? अब तक के व्यवहार को उनकी विनम्रता समझूं या पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव? और मैंने ये सारे सवाल इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछे.
साथ ही यह भी समझने की कोशिश की कि कराची के एक छात्र से यूक्रेन के सबसे अमीर व्यक्ति बनने तक का सफ़र आख़िर कैसे पूरा हुआ.
कराची के रहने वाले मोहम्मद ज़हूर को आज पूरी दुनिया में स्टील की दुनिया का माहिर माना जाता है. वह साल 2008 तक सीधे तौर पर स्टील कारोबार से जुड़े हुए थे. यूक्रेन और ब्रिटेन सहित दुनिया में उनकी कई स्टील मिलें थीं. आने वाले वर्षों में, उन्होंने यूक्रेन और दुनिया भर में अपनी स्टील मिलें बेच दी.
इस समय वह दुनिया भर में स्टील के कारोबार पर सलाह और लेक्चर देने के अलावा, निवेश के कारोबार से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा, यूक्रेन में उन्होंने कई वर्षों तक यूक्रेन में 'कीएव पोस्ट' नामक एक समाचार पत्र चलाया था. उनका दावा है कि अख़बार अपनी निष्पक्ष नीतियों और सरकार की आलोचना के कारण लोकप्रिय हुआ था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे बेच दिया.
हम अभी इंटरव्यू की तैयारी कर ही रहे थे कि घर के बग़ीचे में खेल रही चार बच्चियां बार-बार मेरा ध्यान अपनी तरफ़ खींच रही थीं. मुझे इस बात की चिंता थी कि लगभग एक ही उम्र की चार बच्चियां इस घर में क्या कर रही हैं. वहां मौजूद मोहम्मद ज़हूर के दामाद ने मुझे बताया कि दो बेटियां उनकी हैं और दो ज़हूर की हैं.
वह मोहम्मद ज़हूर की पहली शादी से होने वाली बेटी के पति हैं.
ज़हूर की पहली पत्नी अब मास्को में रहती है और मास्को के साथ भी उनका गहरा संबंध रहा हैं. वह 13 साल तक मास्को में भी रहे. वहां भी उनके दोस्त रहते हैं.
ज़हूर ने ख़ुद बताया कि उनकी दूसरी पत्नी कमालिया ऐसे कई शॉज़ में गा चुकी हैं, जहां राष्ट्रपति पुतिन भी मेहमानों में शामिल थे. कमालिया के पिता मास्को से हैं और उनकी मां यूक्रेन से हैं, लेकिन कमालिया ख़ुद को यूक्रेनी ही मानती हैं.
हमलों की तमाम संभावनाओं के बावजूद कमालिया अपना देश नहीं छोड़ना चाहती थी. ज़हूर ने बताया, कि "22 फरवरी को, जब दुनिया भर के समाचार चैनल हमले की संभावना जाता रहे थे, तब भी वो यही कह रही थी कि रूसी हमारे भाई हैं और वे हम पर हमला नहीं करेंगे." इसलिए उन्होंने बच्चियों के साथ ज़हूर को पहले लंदन भेजा ख़ुद वहीँ रह गई थी.
ज़हूर ने कहा, "सरकार सहित 100 प्रतिशत लोग ये समझ रहे थे कि हमला नहीं होगा." मेरे उन सभी के साथ अच्छे संबंध हैं. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की मेरे और मेरी पत्नी के भी अच्छे दोस्त हैं. मैं हमेशा उनसे पूछता रहता था कि क्या करना चाहिए?'
उन्होंने कहा, 'सब यही कहते थे कि हमारी भी ख़ुफ़िया जानकारी है और हमें ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा है. आप बिल्कुल चिंता न करें. हमें नहीं लगता कि रूस हमला करेगा, वे सिर्फ़ वार्ता के लिए ऐसा करना चाहते हैं."
कराची से यूक्रेन तक का सफ़र
मोहम्मद ज़हूर का जन्म पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था. उनके पिता ख़ुशहाल ख़ान ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत के मानसेहरा जिले के हसनैना गांव के रहने वाले हैं. ख़ुशहाल ख़ान पाकिस्तान बनने से पहले ही कराची चले गए थे.
इस इंटरव्यू के दौरान मोहम्मद ज़हूर ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया कि "मेरी सफलता में मेरे पिता की तरबियत, मां की दुआओं और अल्लाह की मर्ज़ी का बहुत बड़ा हाथ है."
उन्होंने बताया, कि "हम कराची में रहते थे और उस समय हमें यह बात अच्छी नहीं लगती थी कि हमारे पिता की सरकारी नौकरी के बावजूद हमारा जीवन दूसरों की तरह सम्मानजनक और शानदार नहीं था. मेरे पिता सिंध के डिप्टी अकॉउंटेंट जनरल थे. यह एक बहुत बड़ा पद था. लेकिन उनके साथ के लोग कारों में आते थे, जबकि मेरे पिता करीब 15 साल पुरानी साइकिल से आते-जाते थे. हमारी भी यही आदत थी. लेकिन आगे चल कर इसी चीज़ ने मेरी ज़िंदगी में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई."
मोहम्मद ज़हूर के देश से बहार निकलने के सफ़र की शुरुआत 1974 में उस समय हुई, जब उनका सेलेक्शन सोवियत संघ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए हुआ. उस समय, वह कराची में एनईडी यूनिवेर्सिटी में इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष के छात्र थे.
छात्रवृत्ति के लिए चुने गए 42 बच्चों में से कुछ को सेंट पीटर्सबर्ग, कुछ को मास्को और कुछ को डोनेट्स्क भेजा गया, जिनमें ज़हूर भी शामिल थे.
डोनेट्स्क में अपने छात्र जीवन के दिनों को याद करते हुए, उनके चेहरे पर एक मुस्कान दिखाई देती है. वो बताते हैं कि "अपने साथ जाने वालों में सबसे जल्दी रूसी भाषा मैंने सीखी, जिससे मुझे आगे बढ़ने में बहुत मदद मिली. इस बीच, कुछ सफल और कुछ असफल मुहब्बतें भी हुई, और शिक्षा के साथ साथ, मैंने दोस्त बनाने के अलावा जीवन के कई महत्वपूर्ण अनुभव भी किए."
अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से शादी कर ली थी, जो बाद में उनके साथ पाकिस्तान में भी रहीं. इस छात्रवृत्ति की शर्त थी कि अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें वापस जाकर पांच साल तक पाकिस्तान स्टील मिल में काम करना होगा.
उनके मुताबिक़ जब वे पढ़ाई पूरी करके पाकिस्तान लौटे तो समस्याओं का एक ढेर उनका इंतज़ार कर रहा था.
पाकिस्तान स्टील मिल में पहली नौकरी
उन्होंने बताया कि सोवियत संघ से शिक्षा प्राप्त करने के बाद पाकिस्तान वापस जाने पर उन्हें पहले स्टील मिल के सुरक्षा विभाग में तैनात किया गया और बाद में निर्माण विभाग में ट्रांसफ़र कर दिया गया. दोनों ही विभागों का काम उनकी डिग्री से जुड़ा हुआ नहीं था.
उन्होंने मेटलर्जी में इंजीनियरिंग की थी. लेकिन उन्हें उनकी शिक्षा और कौशल के अनुसार काम नहीं दिया गया. उनके अनुसार विपरीत परिस्थितियों और रवैयों के बावजूद उन्होंने इतना शानदार परफॉर्म किया, कि जब उन्होंने वो नौकरी छोड़ने का मन बनाया तो उस समय के स्टील मिल के चेयरमेन ने उनका इस्तीफ़ा सात बार रिजेक्ट किया था.
ज़हूर ने बताया, कि "मेरे पास ऐसे बहुत सारे अवसर थे, जब मैं सिर्फ़ एक हस्ताक्षर कर के बहुत सारे पैसे कमा सकता था." लेकिन पापा की तरबियत का ऐसा असर था कि वो हो नहीं पाया."
सोवियत संघ वापसी
इस बीच, मास्को में एक कंपनी को किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रुरत थी जो उन्हें पाकिस्तान के साथ व्यापार करने में मदद कर सके. और रूसी भाषा में माहिर होने और क़ाबिलियत की वजह से, ज़हूर को इस नौकरी के लिए चुन लिया गया. और इस तरह वे मास्को पहुंच गए.
मोहम्मद ज़हूर ने बताया, कि "80 के दशक के अंत में मास्को पहुंच कर, मैंने स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति शुरू कर दी थी. साथ ही, मैंने अपनी कंपनी से कहा कि यहां से स्टील ले कर जाना एक फायदेमंद सौदा हो सकता है. स्टील मिलों में मुझे लगभग सभी लोग जानते थे."
इस कारोबार में उनकी कंपनी ने पाकिस्तान को स्टील भेजना शुरू कर दिया, लेकिन इस बिक्री के बदले में पाकिस्तान से भुगतान नक़द के बजाय कपड़े के रूप में होता था. उन्होंने बताया कि इस काम में मुनाफ़ा बेशुमार यानि बाज़ार में मौजूदा मुनाफ़े से कई गुना ज़्यादा था.
ज़हूर बताते हैं "तीन साल के अंदर, मेरी सेलरी एक हज़ार से बढ़कर और बोनस मिलाकर 50 हज़ार डॉलर हो गई थी, और दूसरे मद में मेरे ऊपर, ऑफ़िस आने जाने का ख़र्च, किराया और अन्य खर्चों सहित लगभग डेढ़ लाख डॉलर ख़र्च होते थे.
फिर कई कारणों की वजह से उन्होंने सोचा कि क्यों न वो अपना ख़ुद का कारोबार शुरू करें.
उन्होंने बताया "उस समय, मैंने थाईलैंड के एक कारोबारी के साथ एक कंपनी शुरू की, जिसमें 51 प्रतिशत शेयर उसका और 49 प्रतिशत शेयर मेरा था.
और इस तरह स्टील की दुनिया पर राज करने की उनकी यात्रा शुरू हुई. धीरे-धीरे यूरोप और फिर दुनिया भर में उनके ऑफ़िस खुलने लगे.
स्टील किंग
साल 1996 में, उन्होंने डोनेट्स्क में उसी स्टील मिल को ख़रीद लिया, जहां उन्होंने छात्र जीवन में अपना आख़िरी प्रेक्टिकल पूरा करके डिग्री हासिल की थी.
ज़हूर डोनेट्स्क स्टील मिल के मालिक ज़रूर बन गए थे, लेकिन उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उन्होंने बताया कि "हमने इसे बनाना शुरू कर दिया था. हमने अत्याधुनिक और बहुत ही शानदार मिल बनाई."
मोहम्मद ज़हूर ने बताया कि उसके बाद उन लोगों ने अमेरिका और दुनिया के विभिन्न देशों में स्टील मिलें लगाईं थी, जो बहुत ही सफलता से चल रही थीं. और यूक्रेन में उनके संबंध बढ़ चुके थे.
और इसी दौरान आर्थिक स्थिति के चलते अख़बार 'कीएव पोस्ट' बंद होने वाला था, जिसे मोहम्मद ज़हूर ने ख़रीद लिया और मीडिया इंडस्ट्री में क़दम रख दिया.
कीएव पोस्ट की लोकप्रियता और बिक्री
मोहम्मद ज़हूर के मुताबिक़, ''यूक्रेन के उस समय के माहौल में कीएव पोस्ट को चलाना बहुत मुश्किल था. लेकिन मैंने निवेश करने के बाद उसकी संपादकीय व्यवस्था को आज़ाद रखा था. उन्होंने अपनी संपादकीय टीम से कहा था कि निष्पक्ष रह कर शानदार अख़बार चलाना है. इसका साप्ताहिक सर्कुलेशन 30 हज़ार थी. उस समय यूक्रेन की आबादी 40 मिलियन थी."
लेकिन कई सालों तक अख़बार को सफलतापूर्वक चलाने के बाद उन्हें इसे बेचना पड़ा.
मोहम्मद ज़हूर ने कहा कि इस दौरान "हमने उस समय की सरकारों की भी कड़ी आलोचना की" और बाद में उन्होंने इस शर्त पर अख़बार बेच दिया था कि इसे बंद नहीं किया जाएगा और इसकी स्वतंत्र नीति जारी रहेगी, लेकिन कुछ समय पहले किसी कारण से यह बंद हो गया और उन्होंने सुना है कि इसे अब दोबारा लॉन्च किया जाएगा.
बुलंदी पर होते हुए स्टील मिलों की बिक्री
मोहम्मद ज़हूर ने बताया कि चीन ने साल 2008 के ओलंपिक की मेज़बानी की थी. इसकी तैयारी के लिए चीन दुनिया भर से स्टील ख़रीद रहा था. उन्होंने भी ख़ूब बेचा, लेकिन इसके साथ ही चीन के अंदर तेज़ी से स्टील मिलें लगनी शुरू हो गई.
उन्होंने कहा, कि "जब मैंने इस स्थिति को देखा, तो मुझे एहसास हो गया कि चीन की स्टील मिलों के चलने के बाद यह कारोबार फ़ायदेमंद नहीं रहेगा."
इस स्थिति को समझते हुए उन्होंने साल 2008 में अपने स्टील के कारोबार को पूरी तरह से बेच दिया. अब तक वो अपनी कंपनी के अकेले मालिक बन चुके थे, क्योंकि साल 2004 में उन्होंने अपने पार्टनर से सारे शेयर ख़रीद लिए थे.
मोहम्मद ज़हूर ने कहा था कि समय ने साबित कर दिया कि उनका फ़ैसला सही था. अब वे दुनिया भर में निवेश करते हैं. उन्होंने बताया "मेरा निवेश लगभग 10 करोड़ डॉलर है."
पत्नी और बच्चों का पाकिस्तान से लगाव
ज़हूर के घर में, हर कोई रूसी भाषा में बात करता है. लेकिन जब उनकी बड़ी बेटी से मेरी मुलाक़ात हुई, तो उन्होंने मुझसे उर्दू में पूछा, "आप कॉफी पियेंगी?" तब मुझे पता चला कि वो रूसी दीखते ज़रूर हैं लेकिन उनका रिश्ता पकिस्तान से भी जुड़ा हुआ है. उसने बताया कि कोरोना से पहले, वे हर साल पाकिस्तान जाते थे और उन्हें बॉलीवुड फ़िल्में बहुत पसंद हैं.
ज़हूर के घर में ज़्यादातर यूक्रेनी खाने बनते हैं, लेकिन पाकिस्तानी खाने भी पसंद किये जाते हैं.
मोहम्मद ज़हूर ने बताया, कि उनकी पत्नी कमालिया पाकिस्तान में चैरिटी का बहुत काम करती हैं. उनके मुताबिक़, साल 2005 में आए भूकंप के दौरान उन्होंने यूक्रेन से उपकरण ले जाकर पाकिस्तान में एक फील्ड अस्पताल बनाने में मदद की थी.
ज़हूर ने कहा, कि 'इस घटना के दो साल बाद तक कमालिया वहां जाती रही. उन्होंने कश्मीर के एक गांव को सशक्त बनाया. वहां एक यूक्रेनी फील्ड अस्पताल की व्यवस्था की. इसके अलावा, इस्लामाबाद में मौजूद कार्डियोलॉजी सेंटर में बच्चों में हृदय रोग पर शोध के लिए धन उपलब्ध कराया."
उनके मुताबिक कमलिया इसी तरह के कई सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के साथ संपर्क में रहकर चैरिटी का काम कर रही हैं. वो जिस विनम्रता के साथ अपने प्रशंसकों से मिलती हैं वह भी ज़हूर को बेहद पसंद है.
कमालिया को पाकिस्तानी गायिका नाज़िया हसन के गाने बहुत पसंद हैं और वो उन्हें सीख कर बहुत से संगीत कार्यक्रमों में गा भी चुकी है. पाकिस्तान दिवस के मौके पर उन्होंने पाकिस्तानी दूतावास में 'दिल दिल पाकिस्तान' गाकर मेहमानों का दिल जीत लिया था.
यह एक मुश्किल सवाल था और जवाब में उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा कि 'पाकिस्तान मेरा जन्मस्थान है, और मेरा पासपोर्ट ब्रिटेन का है, लेकिन मैं जन्म के बाद अगर किसी स्थान को अपना घर मानता हूं, तो वह यूक्रेन है, क्योंकि इस देश में मैंने शिक्षा हासिल की है, इस देश में मैंने दो बार शादी की और सारा पैसा वहीं कमाया. मैंने वहां लोगों को रोज़गार दिया, सोशल वर्क किये और वहीँ मेरे दोस्त हैं, जिनमें से कुछ ज़िंदा हैं और कुछ अब मर चुके हैं. मैं पाकिस्तानी राजनीति के बारे में भी ज़्यादा नहीं जानता, लेकिन मैं यूक्रेन में जितना रहा हूं पूरे मन से रहा हूं.
यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण कारोबार को होने वाले संभावित नुक़सान के बारे में पूछे जाने पर भी उन्होंने बहुत ही धैर्य से जवाब दिया, कि उन्होंने अपनी सारी संपत्ति किसी एक स्थान या क्षेत्र में नहीं रखी, इसलिए वह ज़्यादा चिंतित नहीं होते.
लेकिन साथ ही, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह ख़ुशक़िस्मत हैं कि अल्लाह ने उन्हें इतना दिया जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी.
एक गहरी सांस लेकर मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि "जब 48 साल पहले में यूक्रेन आया था, तो मेरे पिता ने मुझे 120 डॉलर दिए थे. उस व्यक्ति की यही हैसियत थी और वो इतने ही दे सकते थे."
"उन 120 डॉलर को मैं 48 साल से खर्च कर रहा हूं, और अभी भी मेरे पास कुछ बचे हुए हैं." (bbc.com)
नई दिल्ली, 4 मार्च | यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मायखायलो पोडोलयक ने ट्वीट किया है कि उन्होंने और अन्य अधिकारियों ने बेलारूस में रूसी प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। उन्होंने एजेंडे में प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया है - तत्काल युद्धविराम और लगातार गोलाबारी झेल रहे गांवों और शहरों से नागरिकों की सुरक्षित निकासी।
सीएनएन मुताबिक, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में कहा, "बातचीत चलेगी।"
लावरोव ने दावा किया कि यूक्रेनी पक्ष ने जानबूझकर आने में देरी की और कहा कि यूक्रेन संयुक्त राज्य की कठपुतली है।
साथ ही गुरुवार को क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि एक रूसी प्रतिनिधिमंडल बेलारूस में अपने यूक्रेनी समकक्षों की प्रतीक्षा कर रहा है।
उन्होंने कहा, "हमारा प्रतिनिधिमंडल बीती रात वहां मौजूद था। यह यूक्रेन के वातार्कारों का पूरी रात और फिर सुबह इंतजार कर रहा था। वे अभी भी इंतजार कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि वे आज पहुंचेंगे।"
दूसरे दौर की वार्ता के लिए दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल बुधवार को मिलने वाले थे।
सोमवार को पहले दौर की वार्ता पांच घंटे तक चली और बिना किसी सफलता के खत्म हो गई।(आईएएनएस)
कोलंबो, 4 मार्च| श्रीलंका की जलसीमा में भारतीय मछुआरों के प्रवेश के खिलाफ उत्तरी मछुआरा संघ और एक पर्यावरण कार्रवाई समूह की याचिका पर श्रीलंका की अपील अदालत सुनवाई करेगी। भारतीय मछुआरों के श्रीलंकाई समुद्र में प्रवेश करने के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए पुलिस महानिरीक्षक को आदेश देने की मांग वाली रिट याचिका पर 5 मई को सुनवाई होनी है।
अपनी याचिका में उत्तरी प्रांत के मछुआरा संघ और पर्यावरण न्याय केंद्र ने दावा किया कि श्रीलंकाई जल में भारतीय ट्रॉलरों का प्रवेश श्रीलंका के मछुआरों की आजीविका, राष्ट्रीय मछली उत्पादन, मछली पकड़ने की निर्यात आय और श्रीलंका के समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र से वंचित करता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीलंका के ऐतिहासिक जल और प्रादेशिक समुद्र में पिछले कुछ महीनों में भारतीय ट्रॉलरों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ने की सूचना में अचानक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि यह नौसेना और पुलिस की उन विदेशी मछुआरों को गिरफ्तार करने में विफलता का परिणाम है जो अवैध रूप से श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की कि भारत और श्रीलंका के बीच समझौतों का उल्लंघन करते हुए भारतीय मछुआरे नियमित रूप से अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) को पार करते हैं और मछली पकड़ने के संचालन के लिए श्रीलंका के ऐतिहासिक जल और क्षेत्रीय समुद्र में प्रवेश करते हैं। (आईएएनएस)