अंतरराष्ट्रीय
कहा जा रहा है कि वहां की परिस्थितियां ऐसी हैं जिनमें जीवन पनप सकता है. नया खोजा गया "रहने लायक" ग्रह पानी के लिहाज से ना तो बहुत ज्यादा गर्म है और ना ही बहुत ज्यादा ठंडा.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
ब्रिटिश रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने इसके बारे में जानकारी दी है. सोसायटी ने लिखा है कि एक ग्रह पुराने छोटे से सफेद क्षुद्र ग्रह के चारों ओर चक्कर लगा रहा है. रिसर्चरों के लिए यह खोज बिल्कुल नई है. खोज करने वाले रिसर्चरों के दल के प्रमुख जेय फारिही यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर हैं. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा है, "यह टीम के लिए एक झटके जैसा था." उनका कहना है कि अगर इसकी पुष्टि हो जाती है तो यह पहली बार होगा कि एक सफेद क्षुद्र ग्रह का चक्कर लगाने वाले ग्रह पर जीवन की संभावना हो.
फारिही का कहना है, "जब हमें कोई ग्रह मिलता है तो आमतौर पर इसका मतलब है कि वहां और भी बहुत कुछ है." रिसर्चरों को जहां इस ग्रह के होने की उम्मीद है वहां सफेद क्षुद्रग्रह का चक्कर लगाने वाले 65 चांद के बराबर आकार के खगोलिय पिंड हो सकते हैं. उनकी आपस में दूरी नहीं बदलती है क्योंकि ग्रह का गुरुत्वाकर्षण उन पर असर डालता है. इस हिसाब से ग्रह को इसके आसपास ही होना चाहिए. वैज्ञानिकों के लिए अब अगला कदम होगा इस ग्रह के अस्तित्व का सीधा सबूत ढूंढना.
हमारा सूरज भी किसी वक्त एक सफेद क्षुद्रग्रह में बदल जाएगा. कुछ अरब सालों में पहले यह एक लाल विशालकाय आकृति में बदलेगा फिल चपटा होगा और फिर पड़ोस के बुध और शुक्र ग्रह के साथ सहयोग बंद कर देगा. आखिर में खगोलिय निहारिका में एक ठंडा सफेद क्षुद्रग्रह ही बाकी बचेगा. ज्यादातर तारे इस तरह के राख की गेंद में बदल जाएंगे जिनका आकार पृथ्वी के बराबर होगा.
सफेद क्षुद्रग्रह की कक्षा में मौजूद ग्रहों पर पानी के तरल रूप में रहने की परिस्थितियां होंगी या नहीं यह उनकी दूरी पर निर्भर करेगा. बहुत ज्यादा करीब के ग्रह बहुत गर्म होगें जबकि बहुत दूर के ग्रह बेहद ठंडे.
अंतरिक्षविज्ञानियों ने जिस इलाके का पता लगाया है वहां परिस्थितियां "बिल्कुल सही" हैं. खोजा गया ग्रह अपने तारे की परिक्रमा पृथ्वी से सूर्य की दूरी की तुलना में 60 गुना कम दूरी पर रह कर रहा है. (dw.com)
एक नई रिसर्च से पता चला है कि कोरोना वायरस गर्भवती महिला के प्लेसेंटा में घुस कर उसे नुकसान पहुंचाता है. इसके नतीजे में संक्रमित महिला के अजन्मे बच्चे की मौत हो सकती है.
यह किसी भी गर्भधारण में सामान्य रूप से नहीं होता है लेकिन कोविड-19 से पीड़ित महिलाओं में इसका जोखिम ज्यादा है. अधिकारियों का मानना है कि टीका लगाने से इस तरह के मामले रोके जा सकते हैं.
अमेरिका समेत 12 देशों के रिसर्चरों ने 64 अजन्मे और जन्म के तुरंत बाद मर गए चार बच्चों की प्लेसेंटा और शव परीक्षा से मिले ऊतकों का विश्लेषण किया है. इन सभी मामलों में माओं को वैक्सीन नहीं लगा था और गर्भावस्था के दौरान वो कोविड-19 से संक्रमित हो गईं.
गर्भनाल को नुकसान
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फाइनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के पैथेलॉजिस्ट डॉ जेफरी गोल्डस्टाइन का कहना है कि इस रिसर्च ने रिपोर्ट किए गए कुछ मामलों के सबूतों को मजबूती दी है. यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि कोविड-19 से जुड़े अजन्मे बच्चों की मौत के पीछे संभावित कारण भ्रूण में संक्रमण की बजाय प्लेसेंटा को हुआ नुकसान है. डॉ गोल्डस्टाइन इस रिसर्च में शामिल नहीं थे.
इस रिसर्च की रिपोर्ट गुरुवार को आर्काइव्स ऑफ पैथोलोजी एंड लेबोरेट्री मेडिसिन में प्रकाशित हुई है. इससे पहले मिले सबूतों से पता चला था कि कोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिलाओं में अजन्मे बच्चे की मौत की आशंका सामान्य की तुलना में ज्यादा है. खासतौर से कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से. वैक्सीन को गर्भवती महिलाओं के लिए भी जरूरी बताया जा रहा था और साथ ही यह भी कि संक्रमित होने की स्थिति में उनके लिए ज्यादा परेशानी का जोखिम है.
कैसे नुकसान पहुंचाता है वायरस
रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक डॉ डेविड श्वार्त्स का कहना है कि अकसर संक्रमण प्लेसेंटा में घुस कर भ्रूण को नुकसान पहुंचाता है. इसी वजह से भ्रूण की मौत हो जाती है. जीका वायरस के मामले में ऐसा ही होता है.
डॉ श्वार्त्स और उनकी टीम यह देखना चाहते थे कि क्या कोरोना वायरस भी ऐसा ही करता है. उन्हें बिल्कुल उलट नतीजा देखने को मिला. इस मामले में प्लेसेंटा खुद ही संक्रमित और बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. डॉ श्वार्त्स का कहना है, "बहुत से मामलों में प्लेसेंटा के 90 फीसदी हिस्से को क्षति पहुंची थी जो बहुत डरावनी स्थिति है."
सामान्य प्लेसेंटा के ऊतक सेहतमंद लाल वर्ण के और गद्देदार होते हैं. जिन नमूनों का इन्होंने अध्ययन किया उनमें वे कठोर थे और उनके ऊतक बदरंग हो कर मर चुके थे. कई बार प्लेसेंटा को दूसरी चीजों से भी नुकसान होता है लेकिन डॉ श्वार्त्स का कहना है कि उन्होंने और किसी कारण से इस तरह का, इतना ज्यादा और लगातार नुकसान नहीं देखा है. प्लेसेंटा वो अंग है जो गर्भवास्था के दौरान बनती है और गर्भाशय को जोड़े रखती है. यह अंबिलिकल कॉर्ड यानी गर्भनाल से जुड़ी होती है और मां के रक्त से ऑक्सीजन और पोषण ले कर बच्चे तक पहुंचाती है.
अजन्मे बच्चों की मौत
वायरस संभवतया रक्तप्रवाह के जरिए ही प्लेसेंटा तक पहुंचता है. इसकी कोशिकाएं प्रोटीन जमा करती हैं. फिर असामान्य सूजन होती है जिसके कारण रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह रुक जाता है. रिसर्चरों का कहना है कि इसके बाद प्लेसेंटा के ऊतकों की मौत हो जाती है. कुछ भ्रूणों में कोरोना वायरस भी मिले हैं लेकिन गर्भाशय में घुटन के सबूत प्लेसेंटा की क्षति की और मौत का कारण बनने के संकेत दे रहे हैं.
नवंबर में सेंटर्स ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन रिपोर्ट ने बताया कि अमेरिका मेंकोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिलाओं की हर 80 में से एक अजन्मे बच्चे की मौत हुई. यानी 20 हफ्ते के बाद भ्रूण की मौत हो गई थी. अगर गैरसंक्रमित महिलाओं में देखें तो यह आंकड़ा 155 में एक का था.
उच्च रक्तचाप, कुछ पुरानी बीमारियां और भ्रूण की असामान्य स्थिति भी अजन्मे बच्चे की मौत की आशंका बढ़ा सकती है. ये सारे कारण कोविड-19 से प्रभावित महिलाओं पर भी असर करते हैं. अभी यह साफ नहीं है कि ओमिक्रॉन का संक्रमण अजन्मे बच्चों की मौत का कारण बनता है या नहीं. यह रिसर्च ओमिक्रॉन वायरस का संक्रमण शुरू होने से पहले की गई थी.
एनआर/आईबी (एपी)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के 49 वर्षीय नेता और सांसद आमिर लियाक़त हुसैन इन दिनों ख़ूब चर्चा में हैं.
दरअसल, लियाक़त हुसैन ने ट्विटर पर ये जानकारी दी है कि उन्होंने 18 साल की सैयदा दानिया से शादी की है और ये उनकी तीसरी शादी है. दोनों की उम्र में क़रीब 31 साल का फ़ासला है.
लियाकत हुसैन के ट्वीट से ठीक एक दिन पहले ही उनकी दूसरी पत्नी सैयदा तूबा अनवर ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में तलाक़ की जानकारी दी थी.
उन्होंने लिखा था, "भारी मन से, मैं लोगों को अपने जीवन में हुए बदलाव की जानकारी देना चाहती हूँ. मेरा परिवार और क़रीबी दोस्त जानते हैं कि 14 महीने अलग रहने के बाद, ये साफ़ था कि अब सुलह की कोई उम्मीद नहीं है और मुझे अदालत से खुला लेने का विकल्प चुनना पड़ा."
तूबा अनवर ने इसी पोस्ट में लिखा है, "मैं बता नहीं सकती कि ये कितना मुश्किल रहा लेकिन मैं अल्लाह पर ऐतबार करती हूँ. मैं सभी से अपील करूंगी कि मुश्किल भरे इस समय में मेरे फ़ैसले का सम्मान किया जाए."
पेशे से टीवी होस्ट, 28 साल की तूबा अनवर और लियाक़त हुसैन ने 2018 में शादी की थी. उस समय लियाक़त हुसैन की पहली पत्नी ने दावा किया था कि उन्हें फ़ोन पर तलाक़ दिया गया था.
लियाकत हुसैन की पहली पत्नी सैयदा बुशरा इक़बाल ने उस समय इंस्टाग्राम पोस्ट के ज़रिए ये बताया था कि कैसे उनके पति ने दूसरी बीवी के सामने फ़ोन कॉल पर उन्हें तलाक़ दिया. उन्होंने आरोप लगाया था कि लियाक़त ने ऐसा तूबा के कहने पर किया.
लियाक़त हुसैन ने बताया कि उन्होंने दक्षिण पंजाब के लोधरान में रहने वाले सआदत परिवार की सैयदा दानिया शाह से निक़ाह किया है, जिनकी उम्र 18 साल है. लियाकत हुसैन ने अपने शुभचिंतकों से दुआ की अपील की.
आमतौर पर पति-पत्नी के बीच उम्र में 31 साल का फ़ासला असामान्य होता है. पाकिस्तान में कानून 18 साल की उम्र में शादी की इजाज़त देता है. लेकिन हुसैन की शादी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पाकिस्तान में कम उम्र की दुल्हनों को प्राथमिकता दी जाती है और इस मुल्क में क्या ये आम बात हो चली है?
पाकिस्तानी ट्विटर यूज़र सोहनी लियाक़त हुसैन की शादी पर लिखती हैं, "हर वैध चीज़ हमेशा सही नहीं होती. क्या एक 50 साल के आदमी का 18 साल की लड़की से शादी करना वैध है? हाँ. लेकिन दूल्हे की उम्र से तुलना करें तो क्या लड़की अभी बच्ची है? हाँ. जब वो पैदा हुई थी तब दूल्हा 32 साल का था."
सोहनी ने एक और ट्वीट में लिखा, "जब आप अपने से बहुत छोटे किसी किशोरावस्था में रहने वाले से शादी करते हैं, तो आप एक ग़लत शक्ति संतुलन बनाते हैं. आपका व्यक्तित्व और जीवन पूरी तरह बन चुका होता है. लेकिन एक 18 साल के किशोर या किशोरी का नहीं. आप उन्हें जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं और इसलिए आमिर जैसे आदमी ऐसा करते हैं."
इस शादी की आलोचना करने वाली सोहनी अकेली नहीं हैं. फ़लक नाम की एक अन्य यूज़र लिखती हैं, "बहुत से उम्रदराज़ लड़के युवा लड़कियों को अपने इशारों पर चलाने के लिए उनसे रिश्ता जोड़ते हैं और इसे ये कहकर जायज़ ठहराते हैं कि वे "नाबालिग़" नहीं हैं. क्या वे ये नहीं सोचते कि जब वे 25 साल के थे तब वो लड़की सिर्फ़ 10 साल की रही होगी??"
महीन ग़नी लिखती हैं, "असल दुर्भाग्य ये है कि अधिकांश पाकिस्तानी पुरुष आमिर लियाक़त जैसे ही हैं. अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक बच्ची जैसी दुल्हन खोजते हैं ताकि समाज में दबदबा बना सकें. ये ज़हरीला चलन जारी है और पूरी तरह स्वीकार्य भी."
हालांकि, आलोचनाओं के बीच कई यूज़र ये भी कह रहे हैं कि हर पाकिस्तानी पुरुष आमिर लियाक़त जैसा नहीं है.
पहले भी उड़ी थी शादी की अफ़वाह
साल 2021 में अभिनेत्री और मॉडल हानिया ख़ान ने दावा किया कि वो लियाक़त हुसैन की पत्नी हैं. इसके बाद लियाक़त हुसैन ने एक वीडियो संदेश जारी कर इन अफ़वाहों को विराम दिया था.
उन्होंने वीडियो मेसेज में कहा कि उनकी सिर्फ़ एक पत्नी है, जिनका नाम तूबा है.
सुंदरता की वजह से कम उम्र की दूल्हन खोजते हैं पाकिस्तानी?
इस मुद्दे पर बीबीसी उर्दू ने कई लोगों से बात की और कम उम्र की लड़की से शादी के पीछे कई कारण सामने आए, जिनमें से सबसे पहला और बड़ा है सुंदरता.
कराची के रहने वाले समीर ख़ान के तीन बच्चे हैं. ख़ान ने बीबीसी को बताया, "जब हम लड़की देखने जाते हैं तो सुंदरता देखते हैं लेकिन जब हम लड़की के लिए दूल्हा खोजते हैं तो हम लड़के की उम्र नहीं बल्कि उसका पैसा और शिक्षा देखते हैं."
समीर ख़ान कहते हैं, "मैं अपने बेटे के लिए कम उम्र की दुल्हन लाऊंगा ताकि वो लंबे समय तक ख़ूबसूरत दिखे. मुझे लगता है कि 80 फ़ीसदी लोग सुंदर बहू चाहते हैं." पर क्या सिर्फ़ सुंदरता ही अकेली वजह है?
इस पर समीर ख़ान कहते हैं, "कम उम्र की लड़की खोजने के पीछे एक और बड़ा कारण ये है कि उम्र जितनी कम होगी बच्चे पैदा करने के लिए उतना समय होगा. शादी की शुरुआत में बच्चों की योजना न हो तो बाद में भी पति-पत्नी के पास इसके लिए समय होता है."
"युवा लड़कियां आसानी से कंट्रोल में आती हैं"
कराची की रहने वाली आयशा (बदला हुआ नाम) अपने शादी के अनुभव के आधार पर ये स्वीकार करती हैं कि कम उम्र की दुल्हन खोजने के पीछे ये वजह होती है कि एक पुरुष अपने बच्चों को स्वस्थ रहते हुए अच्छे से पाल लेगा.
हालांकि, वो एक और कारण बताती हैं. उनका कहना है, "हर कोई दुनिया पर राज करना चाहता है. ख़ासतौर पर सास चाहती हैं कि उन्हें ऐसी बहू मिले जिन्हें अपने तरीक़े से चलाया जा सके. इसके लिए कम उम्र की लड़कियां ही चाहिए होती हैं. ज़्यादा उम्र की लड़कियों के पास अपनी सोच होती है और वे उसी तरह काम करती हैं. ऐसे में उनपर नियंत्रण पाना मुश्किल होता है."
"हालात अब बदल रहे हैं"
रावलपिंडी में सालों से मैरिज ब्यूरो चलाने वालीं अफज़ल ने बीबीसी उर्दू से बातचीत के दौरान कहा कि अब स्थितियां और प्राथमिकताएं बदल रही हैं. जब लड़के के माता-पिता हमारे पास आते हैं तो कम उम्र की दूल्हनों पर बात नहीं करते. उन्होंने कहा कि अब तो कई शादियों में लड़कियों की उम्र ज़्यादा होती है.
वो कहती हैं कि इसका दूसरा पहलू भी है. अब "कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुष भी अब घबराते हैं. वे इन युवा लड़कियों की अलग सोच और व्यवहार को समझ नहीं पाते हैं."
सिंगापुर के नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइसेंज में प्रेम चंद दोमारजो ने बीबीसी उर्दू को बताया कि दक्षिण एशिया में पति और पत्नी की उम्र में सबसे ज़्यादा फ़ासला बांग्लादेश में देखने को मिलता है और इसके बाद पाकिस्तान का नंबर आता है.
दोमारजो के मुताबिक़, बांग्लादेश में औसतन पति अपनी पत्नी से उम्र में साढ़े आठ साल बड़े होते हैं तो वहीं पाकिस्तान में ये फ़ासला पाँच साल से ज़्यादा का है.
दोमारजो के शोध के मुताबिक, पाकिस्तान में बीते 35 सालों से स्थिति में कुछ ख़ास बदलाव देखने को नहीं मिला है. दोमारजों कहते हैं कि इस फ़ासले के पीछे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं जो हर देश में अलग हैं.
लेकिन साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनीसेफ़ ने बताया था कि बीते एक दशक में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी में दुनियाभर के अंदर 20 प्रतिशत की कमी हुई है.(bbc.com)
चीन ने लिथुआनिया से होने वाले मांस, दूध और बीयर के आयात पर रोक लगा दी है. ताइवान का साथ देने का कारण यूरोपीय देश लिथुआनिया पर चीन की भृकुटी तनी हुई है.
चीन ने लिथुआनिया के खिलाफ कुछ कड़े कदम उठाए हैं. लिथुआनिया में जानवरों से संबंधी उत्पादों के लिए जिम्मेदार एक सरकारी एजेंसी ने गुरुवार को बताया कि चीन ने उनके गोमांस, दुग्ध-उत्पादों और बीयर के आयात पर रोक लगा दी है.
एजेंसी के मुताबिक चीन के कस्टम विभाग ने उन्हें सूचित किया है कि ‘दस्तावेजों की कमी' के कारण निर्यात रोका जा रहा है. एक बयान जारी कर एजेंसी ने कहा, "ऐसा नोटिस हमें पहली बार मिला है क्योंकि अगर कोई सूचना उपबल्ध नहीं होती तो जो देश आयात कर रहे होते हैं वे पहले उस सूचना के बारे में पूछताछ करते हैं.” गुरुवार को ही चीन की एजेंसी ने बिना कोई वजह बताए बस इतना कहा था कि लिथुआनिया से गोमांस का आयात रोका जा रहा है.
पिछले कुछ समय से दोनों देशों के संबंध तनावग्रस्त हैं. इसकी शुरुआत तब हुई जब लिथुआनिया ने ताइवान को अपने यहां अनौपचारिक दूतावास खोलने की इजाजत दे दी. यह कदम चीन को नागवार गुजरा क्योंकि वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. उधर ताइवान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार राज करती है.
‘सीनाजोरी का जवाब दें'
ऑस्ट्रेलिया का दौरा कर रहे लिथुआनिया के विदेश मंत्री गैब्रिएलस लैंसबर्गिस ने बुधवार को कहा था कि व्यापार को बदला लेने के तौर पर इस्तेमाल करने वाले देशों को "एक जैसी सोच रखने वाले देशों द्वारा याद दिलाया जाना चाहिए कि उनके पास इस तरह की सीनाजोरी का जवाब देने के तौर-तरीके और नियम-कायदे हैं.”
ब्रिटेन ने सोमवार को ऐलान किया था कि वह भी विश्व व्यापार संगठन में चीन के खिलाफ यूरोपीय संघ की शिकायत में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की तरह साथ देगा. यूरोपीय आयोग का कहना है कि संघ के सदस्य देश लिथुआनिया का चीन के साथ व्यापार पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले दिसंबर में 91 प्रतिशत तक कम हो गया.
लिथुआनिया की एजेंसी ने कहा कि दिसंबर की शुरुआत से ही उनके देश ने चीन को गोमांस समेत अन्य खाद्य उत्पादों का निर्यात नहीं किया है. वहां की प्रधानमंत्री इंगरीदा सिमोनाइट ने गुरुवार को कहा, "जहां तक मैं जानती हूं, चीन के इस कदम से कोई व्यवहारिक समस्या पैदा होने वाली नहीं है क्योंकि अब हम चीन को ये उत्पाद निर्यात नहीं करते. निर्यातक अन्य बाजारों की ओर बढ़ गए हैं. जैसा कि चीन कह रहा है, अगर समस्या प्रक्रिया से जुड़ी है या प्रशासनिक है तो उसे बहुत आसानी से हल कर लिया जाएगा.”
‘गलतियां सुधारें'
गोमांस पर लगाई गई रोक पर तो चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियां ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने लिथुआनिया को अपनी गलतियां सुधारने की सलाह दी. उन्होंने कहा, "लिथुआनिया को सच्चाई का सामना करना चाहिए, अपनी गलतियां सुधारनी चाहिए और सही रास्ते पर आकर ‘एक चीन' के सिद्धांत का पालन करना चाहिए. उसे गलत और सही के बीच घालमेल से बचना चाहिए.”
ताइवान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जोएन वू ने चीन के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने इसे ‘एकतरफा' और ‘दादागीरी' बताया और आरोप लगाया कि यह नई मिसाल है कि चीन कैसे लिथुआनिया की विदेश नीति बदलने की कोशिश कर रहा है.
चीन की पाबंदियों से राहत पहुंचाने के लिए ताइवान ने लिथुआनिया से अपना आयात बढ़ा दिया है. हाल ही में उसने रम का आयात शुरू किया है.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा गोमांस आयातक है लेकिन लिथुआनिया से उसका आयात नाममात्र ही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2021 में उसने लिथुआनिया से 775 टन गोमांस का आयात किया था जबकि उसका कुल आयात 23.6 करोड़ टन था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
फ्रेंच नेशनल एसेंबली में प्रतिस्पर्धी खेलों में हिजाब जैसे प्रतीकों पर बैन का प्रस्ताव खारिज हो गया. राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया. अप्रैल 2022 में फ्रांस के राष्ट्रपति का चुनाव है.
फ्रांस की लैंगिक समानता मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने हिजाब पर मुस्लिम महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का समर्थन किया है. इस समर्थन का संदर्भ फ्रांस में फुटबॉल से जुड़ी गवर्निंग बॉडी 'फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन' के एक फैसले से जुड़ा है. इसके मुताबिक, मैच खेलने के दौरान खिलाड़ी ऐसी कोई चीज नहीं पहन सकते, जिनसे उनकी धार्मिक पहचान जाहिर होती हो. इनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला हिजाब और यहूदी लोगों द्वारा लगाई जाने वाली खास टोपी 'किप्पा' भी शामिल हैं.
हिजाब लगाने वाली खिलाड़ी कर रही हैं विरोध
फ्रांस की मुस्लिम फुटबॉल खिलाड़ी इस प्रतिबंध का विरोध कर रही हैं. इनसे जुड़ा एक संगठन है, ले हिजाबुस. यह फ्रांस की उन महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की संस्था है, जो हिजाब पहनने के चलते मैच नहीं खेल पा रही हैं. नवंबर 2021 में इस संस्था ने फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन के प्रतिबंध को कानूनी चुनौती दी. संगठन की दलील है कि यह प्रतिबंध भेदभाव करता है. साथ ही, यह धर्म मानने के उनके अधिकार में भी दखलंदाजी करता है.
'ले हिजाबुस' 9 फरवरी को अपनी मांगों के समर्थन में फ्रेंच संसद के आगे एक विरोध प्रदर्शन करना चाहता था. मगर प्रशासन ने सुरक्षा संबंधी कारणों से इसकी इजाजत नहीं दी. इस संस्था की शुरुआत करने वालों में शामिल फुन्न जवाहा ने जनवरी 2022 में न्यूज एजेंसी एएफपी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था, "हम बस फुटबॉल खेलना चाहती हैं. हम हिजाब की समर्थक नहीं हैं, हम बस फुटबॉल प्रशंसक हैं."
इस मुद्दे पर पार्टियों में असहमति
फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में दो महीने का समय बचा है. चुनावी माहौल के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता से जुड़े कानून काफी सख्त हैं. यहां धर्म और सरकार दोनों के बीच विभाजन काफी स्पष्ट है. फ्रेंच सीनेट में दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व है. जनवरी 2022 में पार्टी एक कानून का प्रस्ताव लाई. इसमें सभी प्रतिस्पर्धी खेलों में ऐसे प्रतीकों पर बैन लगाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनसे किसी की धार्मिक पहचान जाहिर होती हो.
9 फरवरी को संसद के निचले सदन 'नेशनल असेंबली' में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया. यहां राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की 'रिपब्लिक ऑन द मूव पार्टी' और उसके सहयोगी बहुमत में हैं. इसी पर टिप्पणी करते हुए 10 फरवरी को मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने एलसीआई टेलिविजन से कहा, "कानून कहता है कि ये महिलाएं हिजाब लगाकर फुटबॉल खेल सकती हैं. मौजूदा समय में फुटबॉल मैदानों पर हिजाब लगाने के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है. मैं चाहती हूं कि कानून का सम्मान किया जाए." मोरैनो ने आगे कहा, "सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं जैसे चाहें, वैसे कपड़े पहन सकती हैं. मेरा संघर्ष उन्हें सुरक्षित करना है, जिन्हें पर्दा करने पर मजबूर किया जाता है."
क्या कहता है फ्रेंच कानून
फ्रांस का धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा कानून हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है. इसमें सार्वजनिक जगहों पर लोगों के धार्मिक प्रतीक पहनने पर पाबंदी नहीं है. एक अपवाद है, चेहरे को पूरी तरह ढकना. फ्रांस यूरोप का पहला देश था, जिसने 2011 में घर से बाहर नकाब लगाने, यानी चेहरे को पूरी तरह ढकने पर बैन लगाया था. सरकारी संस्थानों के कर्मचारियों पर भी अपना धर्म प्रदर्शित करने की मनाही है. यह पाबंदी स्कूली बच्चों पर भी लागू है.
फ्रांस के कई दक्षिणपंथी नेता हिजाब पर भी रोक लगाना चाहते हैं. उनका मानना है कि हिजाब इस्लामिकता के समर्थन में दी गई राजनैतिक अभिव्यक्ति है. वे हिजाब को फ्रेंच सिद्धांतों के भी खिलाफ मानते हैं. हालिया सालों में दक्षिणपंथी नेताओं ने ऐसे प्रस्ताव भी दिए हैं कि स्कूली ट्रिप पर अपने बच्चों के साथ जाने वाली मांओं के हिजाब लगाने पर भी पाबंदी हो. वे शरीर को पूरी तरह ढकने वाले स्विम सूट 'बुर्किनी' को भी प्रतिबंधित करना चाहते हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के दक्षिणपंथी सांसद एरिक सियोटी ने नेशनल असेंबली में प्रस्ताव खारिज होने के बाद माक्रों की पार्टी की आलोचना की. उन्होंने कहा, "इस्लामिज्म हर जगह अपनी सत्ता थोपना चाहता है." सत्ताधारी पार्टी के विरोध के बीच उन्होंने कहा, "पर्दा महिलाओं के लिए कैद है. यह अधीनता का प्रतीक है."
2014 में इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (आईएफएबी) ने महिला खिलाड़ियों को मैच के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दी थी. बोर्ड ने माना था कि हिजाब धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक प्रतीक है. वहीं फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन का कहना है कि बैन लगाकर वह केवल फ्रेंच कानूनों का पालन कर रहा है. फिलहाल यह मामला अदालत में है. फ्रांस की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत इस मामले में 'ले हिजाबुस' की अपील पर फैसला सुनाएगी.
एसएम/एमजे (एएफपी)
इस्लामिक स्टेट ने हजारों यजीदी महिलाओं और लड़कियों को गुलाम बनाया. यजीदी समाज जहां इन महिलाओं को वापस अपना रहा है, वहीं बलात्कार और जबरन बनाए गए संबंधों से हुए बच्चों को अपनाने के लिए वह तैयार नहीं है.
रोजा बरकत के गुनहगार हराये जा चुके हैं. मगर उन्होंने अतीत में जो अत्याचार किए, उसके आतंक से रोजा आज भी आजाद नहीं हो सकी हैं. वह 11 साल की थीं, जब इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने पकड़कर उन्हें गुलाम बना लिया था. 2014 में इस्लामिक स्टेट ने उत्तरी इराक पर अपना नियंत्रण बनाने के बाद हजारों की संख्या में यजीदी महिलाओं और लड़कियों को गुलाम बनाया. रोजा इनमें से ही एक थीं.
कौन हैं यजीदी?
यजीदी एक प्राचीन धर्म है. यह एक ईश्वर में यकीन करता है. इसकी जड़ें ईसाई धर्म की शुरुआत से भी करीब 2,000 साल पुरानी हैं. यजीदी अपने धर्म में शैतान की अवधारणा को नहीं मानते. उनका यकीन है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना कमजोर नहीं कि शैतान जैसे किसी और ताकतवर का अस्तित्व सहन करे. ऐसे में शैतान की बात करना या फिर यह कहना कि शैतान जैसी कोई चीज होती है, यजीदियों में ईशनिंदा मानी जाती है.
यजीदियों के धार्मिक विश्वास के केंद्र में एक फरिश्ता है, जिन्हें 'मेलेक टाउस' कहा जाता है. यजीदी इन्हें ही धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हैं. इनका चित्रण मोर के रूप में किया जाता है. यजीदी जन्म से इस धर्म का हिस्सा होते हैं. यानी, किसी और का यजीदी में धर्मांतरण संभव नहीं है. अगर कोई यजीदी किसी और धर्म के अनुयायी से शादी कर ले, तो उसके पार्टनर का धर्म ही उसका धर्म मान लिया जाएगा. यजीदियों की सबसे पवित्र धार्मिक जगह 'लालिश' है. यह शहर उत्तरी इराक के एक पहाड़ की घाटी में बसा है.
क्या हुआ यजीदियों के साथ?
2014 में पड़ोसी सीरिया से आगे बढ़ते हुए इस्लामिक स्टेट का इराक में भी विस्तार शुरू हुआ. आईएसआईएस यजीदियों को काफिर मानता था. उसका मानना था कि यजीदियों का या तो धर्मांतरण कर देना चाहिए, या फिर उन्हें मार देना चाहिए. चूंकि याजिद कुर्दिश एथनिक समूह का भी हिस्सा हैं, इसलिए भी उन्हें लंबे समय से प्रताड़ना झेलनी पड़ रही थी. आईएसआईएस के आने से स्थितियां और बदतर हो गईं. ऐसे में बड़ी संख्या में यजीदी इराक छोड़कर भागने लगे.
उत्तरी इराक में सिंजर नाम की एक जगह है. यह जगह सिंजर नाम की एक पहाड़ी श्रृंखला के पास बसी है. सिंजर में यजीदी अल्पसंख्यकों की काफी बसाहट थी. अगस्त 2014 में आईएसआईएस ने सिंजर पर हमला किया और यहां बड़े स्तर पर नरसंहार किया. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, यहां लगभग 5,000 यजीदी पुरुष मार डाले गए. लगभग 7,000 महिलाओं और बच्चों को अगवा कर लिया गया. इन्हें गुलाम बनाकर कई-कई बार खरीदा और बेचा गया. बलात्कार किया गया. पकड़े गए यजीदी लड़कों को भी भीषण यातनाएं दी गईं. उन्हें मारकर, भूखा रखकर जबरन युद्ध लड़ने को मजबूर किया गया.
क्या जीवन पहले जैसा हो पाएगा?
रोजा भी सिंजर की रहने वाली थीं. अगस्त 2014 में आईएसआईएस उन्हें गुलाम बनाकर सीरिया ले गया. उन्हें कई बार बेचा गया. कई बार उनका बलात्कार किया गया. इतनी कम उम्र में रोजा मां बन गईं. अब वह 18 साल की हैं. उनका बच्चा मर चुका है. इन सालों की यातनाओं ने रोजा से बहुत कुछ छीन लिया है. यहां तक कि वह अपनी मातृभाषा 'कुरमांजी' भी बहुत कम बोल पाती हैं.
2019 में आईएसआईएस की हार हुई. बड़ी संख्या में उसके लड़ाके गिरफ्तार कर लिए गए. उनकी पत्नियों और बच्चों को डिटेंशन कैंपों में बंद कर दिया गया. रोजा जैसी गुलाम बनाई गई यजीदी महिलाएं आजाद तो हुईं, लेकिन सामान्य जीवन में लौट पाना अब भी बहुत मुश्किल था. एक तरफ सालों तक झेली गई यातनाओं की पीड़ा थी. वहीं, एक बड़ी तकलीफ यह भी थी कि इनमें से ज्यादातर महिलाओं के पास वापस लौटकर जाने के लिए कोई घर नहीं था. उनके सामने एक बड़ा सवाल यह था कि उनका परिवार और समाज उन्हें अपनाएगा या नहीं.
रोजा के नाखूनों पर लगा लाल नेल पॉलिश मिटने लगा है. उंगलियां घबराहट में उनकी बंधी हुई चोटी को टटोलती हैं. वह कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि लौटकर मैं अपने लोगों का सामना कैसे करूंगी." आईएसआईएस के जिन लड़ाकों ने सालों तक उन्हें गुलाम रखा, वे कहते थे कि रोजा के लिए अब वापस लौटने के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं. अगर वह लौटती भी हैं, तो परिवार और समाज उन्हें वापस नहीं अपनाएगा. रोजा ने इन बातों पर यकीन कर लिया था.
रोजा की कहानी, उनकी मनोस्थिति उन जैसी सैकड़ों यजीदी महिलाओं की मौजूदा जिंदगी का सारांश है. ये महिलाएं सालों तक झेली गई यातनाओं से अब भी आतंकित हैं. उनके साथ जो हुआ, वे अब तक उससे नहीं उबर सकी हैं. वहीं उन्हें वापस अपनाने के सवाल पर अब भी यजीदी समाज ऊहापोह में उलझा है. 'यजीदी हाउस' उत्तरपूर्वी सीरिया में काम कर रही एक संस्था है. इसके उपप्रमुख फारुक तुजु बताते हैं, "जिसके साथ 12 की उम्र में बलात्कार हुआ, 13 साल में वह मां बन गई, ऐसी बच्ची से आप क्या उम्मीद करते हैं? इतनी यातनाएं और दहशत झेलने के बाद वे अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पाती हैं. वे कहीं की नहीं हैं."
बार-बार बिकने से बचने के लिए धर्म बदला
पिछले हफ्ते उत्तर-पश्चिमी सीरिया में अमेरिकी स्पेशल फोर्सेज ने एक विशेष ऑपरेशन किया. इसमें आईएसआईएस का सरगना अबू इब्राहिम अल-हाशिमी अल-कुरैशी मारा गया. 3 फरवरी, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उसके मारे जाने की जानकारी दी. 2019 में अबू बकर अल-बगदादी के मारे जाने के बाद अबू इब्राहिम ने खुद को खलीफा घोषित किया था. माना जाता है कि यजीदी महिलाओं को गुलाम बनाने में अबू इब्राहिम की बड़ी भूमिका थी.
उसके मारे जाने के बाद न्यूज एजेंसी एपी ने रोजा से मुलाकात की. वह 'यजीदी हाउस' द्वारा चलाए गए एक सेफ हाउस में रहती हैं. अबू इब्राहिम की खबर सुनकर रोजा ने कहा कि अब इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह अपनी आपबीती सुनाती हैं. बताती हैं कि सबसे पहले उन्हें जिस इराकी ने खरीदा था, वह उनके पिता से भी बड़ा था. उसने रोजा को मजबूर किया था कि वह उसकी पत्नी को 'मां' कहें. यह वाकया बताते हुए रोजा अब भी कांप जाती हैं.
कुछ महीने बाद उस इराकी ने रोजा को किसी और के हाथों बेच दिया. बार-बार बेचे जाने की यातना से बचने के लिए रोजा ने धर्म परिवर्तन कर लिया. तब आईएसआईएस के लड़ाकों ने रोजा की शादी लेबनान के एक शख्स से करवा दी. वह आदमी आईएसआईएस के लिए खाने और हथियारों की आपूर्ति करता था. रोजा बताती हैं, "वह बाकियों से बेहतर था." 13 साल में रोजा मां बनीं. बेटे का नाम रखा, हूद.
वे आईएसआईएस की राजधानी रक्का में रहती थीं. एक बार रोजा ने यह पता लगाने की जिद की कि उनकी बड़ी बहनों के साथ क्या हुआ. रोजा की बहनें भी उन्हीं की तरह गुलाम बना ली गई थीं. रोजा जानना चाहती थीं कि उनकी बहनें और माता-पिता जिंदा भी हैं कि नहीं. कुछ हफ्तों के बाद रोजा का पति एक तस्वीर लेकर आया. यह तस्वीर रक्का के गुलाम बाजार की थी, जहां यजीदी लड़कियां बेची जाती थीं. इस तस्वीर में बेची जा रही एक यजीदी महिला दिख रही थी. वह रोजा की ही बहन थी. रोजा वह तस्वीर याद करते हुए बताती हैं, "वह कितनी बदल गई थी."
बेटे का क्या हुआ?
2019 की शुरुआत में जब आईएसआईएस का नियंत्रण कमजोर होने लगा, तो रक्का से लोग भागने लगे. रोजा भी अपने पति के साथ भागकर पहले देर अल-जोर और फिर बगूज चली आईं. बगूज आईएसआईएस का आखिरी मजबूत ठिकाना था. 2019 में अमेरिका के समर्थन वाली कुर्दिश डेमोक्रैटिक फोर्सेज ने बगूज को घेर लिया. औरतों और बच्चों को सुरक्षित बाहर आने की जगह दी गई. इसी समय रोजा भी सामने आ सकती थीं. अपनी यजीदी पहचान बताकर सुरक्षा मांग सकती थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
मार्च 2019 में अपने बेटे हूद को साथ लेकर वह आईएसआईएस लड़ाकों की पत्नियों के साथ शहर से भाग गईं. आईएसआईएस समर्थकों की मदद से उन्होंने एक स्मगलिंग रूट पकड़ा और उत्तर-पश्चिमी सीरिया के इदलिब प्रांत में आ गईं. रोजा का पति बगूज की लड़ाई में मारा गया था. इसलिए इदलिब में रोजा आईएसआईएस सदस्यों की विधवाओं के एक ठिकाने पर रहने लगीं. इसके आगे रोजा के साथ क्या हुआ, यह स्पष्ट नहीं है. शुरुआत में रोजा ने अधिकारियों को बताया था कि उन्होंने अपने बेटे को इदलिब में छोड़ा और काम की तलाश में निकल गईं. मगर न्यूज एजेंसी एपी से बात करते हुए रोजा ने कहा कि उनका बेटा एक हवाई बमबारी में मारा गया. जब एपी ने उनसे स्पष्टीकरण मांगी, तो रोजा का जवाब था, "यह बहुत मुश्किल है. मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती हूं."
एक तस्वीर से सामने आया अतीत
रोजा बताती हैं कि एक तस्कर की मदद से वह देर अल-जोर पहुंचीं. यहां उन्हें काम भी मिल गया. वह तुर्की जाकर नई जिंदगी शुरू करना चाहती थीं. इसके लिए वह पैसे भी जोड़ रही थीं. मगर फिर जनवरी 2021 में कुर्दिश फोर्सेज ने रोजा को पकड़ लिया. गिरफ्तारी के समय वह एक घर में छुपी हुई थीं. यहां से वह तस्करों की मदद लेकर सीरिया-तुर्की सीमा पार करना चाहती थीं. रोजा को कई दिनों तक हिरासत में रखकर पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बारे में वह बताती हैं, "मैं अपनी यजीदी पहचान को छुपाने की हर मुमकिन कोशिश की." रोजा ने जांचकर्ताओं से कहा कि देर अल-जोर की हैं. इलाज के लिए तुर्की जाना चाहती हैं.
मगर जांचकर्ताओं को रोजा की बातों पर भरोसा नहीं हुआ. उन्हें रोजा के मोबाइल में एक पुरानी तस्वीर मिली. इसमें एक यजीदी लड़की गुलाम बाजार में बेची जाती दिख रही थी. जांचकर्ताओं ने जब इस तस्वीर पर रोजा से स्पष्टीकरण मांगा, तब जाकर कहानी खुली. यह रोजा की बहन की तस्वीर थी. वही तस्वीर, जो कभी रोजा के पति ने उन्हें दिखाई थी.
रोजा कहती हैं, "मेरे मुंह से निकल गया कि वह मेरी बहन है." रोजा की यजीदी पहचान का पता लगने के बाद जांचकर्ताओं ने उन्हें सीरिया के बरजान गांव में बने एक सेफ हाउस में पहुंचा दिया. यहां यजीदी समुदाय ने रोजा का स्वागत किया. उस अनुभव को याद करते हुए रोजा बताती हैं, "उन्होंने इतने अपनेपन से मुझसे बात की. उनका लगाव देखकर, उनका प्यार देखकर मैं हैरान थी. मैं जैसी हूं, उसी रूप में मेरा स्वागत किया गया था."
बच्चों का क्या होगा?
आईएसआईएस की हार को दो साल से ज्यादा समय हो चुका है. लेकिन 2,800 से ज्यादा यजीदी महिलाएं और बच्चे अब भी लापता हैं. फारुक तुजु बताते हैं कि इनमें से कई महिलाओं ने सबसे रिश्ते संपर्क तोड़ लिया है. वे अपने समुदाय से बाहर नई जिंदगी शुरू करने की कोशिश कर रही हैं. उन्हें लगता है कि अगर वे लौटेंगी, तो शायद मार डाली जाएं. कई महिलाएं बच्चे छीन लिए जाने के डर से नहीं लौटती हैं.
इराक के यजीदी समुदाय ने सिंजर लौटने वाली महिलाओं के आगे शर्त रखी है. ये महिलाएं अगर वापसी चाहती हैं, तो उन्हें अपने बच्चे छोड़ने होंगे. इसलिए कि इन बच्चों के पिता आईएसआईएस का हिस्सा थे. सिंजर लौटने वाली कई यजीदी महिलाओं से कहा गया था कि सीरिया के कुर्द परिवार उनके बच्चे गोद ले लेंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ. दर्जनों छोड़ दिए गए बच्चे उत्तरपूर्वी सीरिया के यतीमखानों में पहुंचा दिए गए हैं. इन बच्चों का क्या भविष्य होगा, इसे लेकर यजीदी समुदाय के बीच बहस चल रही है.
"मुझे वक्त चाहिए"
2019 में यजीदियों की सर्वोच्च धार्मिक काउंसिल ने यजीदी समाज से आईएसआईएस के अत्याचारों की शिकार महिलाओं को वापस अपनाने को कहा. फिर कुछ दिनों बाद काउंसिल ने कहा कि महिलाओं को वापस अपनाया जाएगा. लेकिन उनके साथ हुए बलात्कार से जो बच्चे पैदा हुए, उन्हें नहीं अपनाया जाएगा. तुजु कहते हैं, "यह हमारी गलती है. हम इसे स्वीकार करते हैं. हमने बच्चों को अपनी मांओं के साथ नहीं रहने दिया." तुजु ने बताया कि अब भी कई यजीदी महिलाएं अल-होल कैंप में रह रही हैं. इस कैंप में हजारों की संख्या में महिलाएं हैं. इनमें से ज्यादातर आईएसआईएस सदस्यों की पत्नियां, विधवाएं और बच्चे हैं.
रोजा अभी सिंजर वापस लौटने के लिए तैयार नहीं हैं. उनका समूचा परिवार लापता है. वे सब जिंदा हैं या नहीं, ये भी नहीं पता. वहां किसके पास लौटा जाए. लौटने के लिए क्या बचा है. रोजा इन सवालों के जवाब खोज रही हैं. वह कहती हैं, "मुझे वक्त चाहिए. अपने लिए समय चाहिए."
एसएम/आरपी (एपी)
मोगादिशु, 11 फरवरी| सोमालिया की राजधानी मोगादिशु में एल गाब जंक्शन पर हुए एक आत्मघाती हमले में कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई और 13 अन्य घायल हो गए। यह जानकारी पुलिस और चिकित्सा सूत्रों ने दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमाली पुलिस के प्रवक्ता अब्दीफतह अदन हसन, जिन्होंने गुरुवार सुबह 10:30 बजे घटना की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि एक आत्मघाती हमलावर ने अपनी कमर में विस्फोटक जैकेट पहनकर खुद को उड़ा लिया, जिससे कई लोग हताहत हुए।
अमीन एम्बुलेंस निदेशक अब्दिकादिर अब्दिर्रहमान ने सिन्हुआ को बताया कि उन्होंने कई घायल लोगों को अस्पतालों में पहुंचाया है।
अब्दिर्रहमान ने कहा, "हमारी टीम ने विस्फोट स्थल से 13 घायल लोगों और 6 शव भी देखे हैं।"
प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि विस्फोट बहुत बड़ा था और इससे निवासियों में दहशत फैल गई।
आतंकवादी समूह अल-शबाब ने अशांत शहर में गुरुवार को हुए बम विस्फोट की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके लड़ाकों ने निचले सदन के आगामी सांसदों का चयन करने वाले प्रतिनिधियों को निशाना बनाया। (आईएएनएस)
लंदन,11 फरवरी | लंदन मेट्रोपॉलिटन पुलिस (मेट) की प्रमुख आयुक्त क्रेसिडा डिक ने गुरुवार को ब्रिटेन के शीर्ष पुलिस अधिकारी के रूप में इस्तीफा देने की घोषणा की।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डिक, देश के सबसे बड़े पुलिस बल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। वह कई मुद्दों पर दबाव में थीं।
पुलिस प्रमुख ने कहा कि उनका फैसला गुरुवार को लंदन के मेयर सादिक खान से मिलने के बाद आया।
उन्होंने एक बयान में कहा कि यह स्पष्ट है कि मेयर को अब मेरे नेतृत्व में बने रहने के लिए पर्याप्त विश्वास नहीं है। उन्होंने मेरे पास मेट्रोपॉलिटन पुलिस सेवा के आयुक्त के रूप में पद छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।
डिक ने कहा कि मेयर के अनुरोध पर वह मेट और उसके नेतृत्व की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए थोड़े समय के लिए रुकने के लिए सहमत हुईं है।
वह उस अवधि के दौरान मेट में शीर्ष पर रही है जिसमें आतंकवादी हमले, ग्रेनफेल आग, विरोध प्रदर्शन और महामारी देखी गई थी। डिक ने कई घटनाओं के प्रभाव को भी स्वीकार किया जिन्होंने बल की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
उसने कहा कि महिला नागरिक सारा एवर्ड की एक सेवारत मेट पुलिस अधिकारी द्वारा हत्या, और कई अन्य भयानक मामलों ने हाल ही में पुलिस सेवा पर लोगों का विश्वास कम किया है।
सिटी हॉल के एक बयान में, खान ने कहा कि नस्लवाद, लिंगवाद, समलैंगिकता, भेदभाव और कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए तत्काल बदलाव की आवश्यकता है, और वह आयुक्त की प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं। (आईएएनएस)
हमलावरों ने गुरुवार तड़के लीबिया के प्रधानमंत्री अब्दुल हमीद दाबीबा की कार पर फायरिंग की, लेकिन वे हमले में बाल-बाल बच गए. हमला ऐसे समय पर हुआ है जब सरकार के नियंत्रण पर तीव्र गुटीय तकरार जारी है.
सरकार से जुड़े एक करीबी सूत्र ने कहा कि फायरिंग उस वक्त हुई जब प्रधानमंत्री अब्दुल हमीद दाबीबा घर लौट रहे थें. सूत्र ने साफ तौर पर इसे हत्या की कोशिश बताया है. लेकिन हमलावर फरार हो गए. घटना की जांच के आदेश दिए गए हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने घटना या उसके बाद की कोई तत्काल तस्वीर या वीडियो फुटेज नहीं देखी है, या घटना के अन्य गवाहों से बात नहीं की है.
अगर पुष्टि की जाती है, तो दाबीबा की हत्या का प्रयास लीबिया के नियंत्रण पर संकट को बढ़ा सकता है, क्योंकि उन्होंने कहा था कि वह गुरुवार को बाद में पूर्व में स्थित संसद द्वारा उसे बदलने के लिए निर्धारित वोट की उपेक्षा करेंगे.
सशस्त्र बलों ने हाल के हफ्तों में राजधानी में अधिक हथियार और सैन्य उपकरण जुटाए हैं, जिससे आशंका है कि राजनीतिक संकट लड़ाई को गति दे सकता है.
फरवरी 2011 में पड़ोसी देश ट्यूनीशिया में क्रांति से प्रेरित लीबिया के लोग तानाशाह मुआम्मर गद्दाफी के खिलाफ उठ खड़े हुए, जो 1969 के विद्रोह का नेतृत्व करने के बाद सत्ता में आए थे. संयुक्त राष्ट्र ने मार्च में नागरिकों को तानाशाही से बचाने के लिए एक सैन्य अभियान को मंजूरी दी थी. नाटो ने लीबिया की तानाशाही ताकतों को कमजोर करते हुए गद्दाफी की सेना पर हमले शुरू किए थे. इसी के बाद से ही लीबिया में शांति और स्थिरता नहीं है.
दाबीबा को मार्च में संयुक्त राष्ट्र समर्थित राष्ट्रीय एकता सरकार (जीएनयू) के प्रमुख के रूप में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य देश के विभाजित संस्थानों को एकजुट करना और शांति प्रक्रिया के हिस्से के रूप में दिसंबर में होने वाले चुनाव की निगरानी करना था.
संसद, जिसने ज्यादातर गृहयुद्ध के दौरान पूर्वी बलों का समर्थन किया, ने जीएनयू को अमान्य घोषित कर दिया है और गुरुवार को एक और सरकार बनाने के लिए एक नए प्रधानमंत्री के नाम पर मतदान होगा.
दाबीबा ने इस सप्ताह एक भाषण में कहा कि वह चुनाव के बाद ही सत्ता सौंपेंगे और संयुक्त राष्ट्र के लीबिया सलाहकार और पश्चिमी देशों ने कहा है कि वे जीएनयू को मान्यता देना जारी रखेंगे.
संसद और और एक अन्य राजनीतिक निकाय ने देश के अस्थायी संविधान में संशोधन करने के बाद संसद ने इस हफ्ते कहा था कि इस साल कोई चुनाव नहीं होगा. इस घोषणा ने कई लीबियाई लोगों को निराश किया जिन्होंने मतदान के लिए पंजीकरण कराया था.
एए/सीके (रॉयटर्स)
अमेरिकी न्याय विभाग ने 3.6 अरब से अधिक मूल्य की हैक हुई क्रिप्टोकरंसी बरामद करने का ऐलान किया है. 2016 में हैकिंग के जरिए क्रिप्टोकरंसी चोरी करने के आरोप में न्यूयॉर्क के एक जोड़े को गिरफ्तार किया गया है.
अमेरिकी न्याय विभाग ने इसे क्रिप्टोकरंसी हैकिंग का सबसे बड़ा मामला बताया है. उसने मंगलवार को कथित तौर पर हैकिंग में शामिल एक जोड़े को गिरफ्तार किया. संघीय कानून प्रवर्तन अधिकारियों का कहना है कि 2016 में बिट फीनिक्स वर्चुअल करंसी एक्सचेंज से पैसा हैक किया गया था. इसी मामले में मैनहैट्टन में मंगलवार सुबह दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया. उन पर हैकिंग के जरिए पैसे चुराने और लेनदेन छिपाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने का आरोप है. दंपति को प्रारंभिक सुनवाई के लिए अदालत में पेश किया गया था.
दंपति पर मनी लॉन्ड्रिंग और अमेरिका को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की साजिश में शामिल होने का आरोप है. डिप्टी अटॉर्नी जनरल लीजा ओ'मोनाको ने कहा, "आज की गिरफ्तारी और विभाग द्वारा अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय बरामदगी यह दर्शाती है कि क्रिप्टोकरंसी अपराधियों के लिए कोई सुरक्षित आश्रय नहीं है."
उन्होंने कहा, "डिजिटल गुमनामी बनाए रखने के असफल प्रयास में आरोपी ने जटिल क्रिप्टोकरंसी लेनदेन के माध्यम से पैसे चुराए."
कैसे मिला धन वापस?
अधिकारियों ने कहा कि 2016 हैक हुए बिटक्वाइन का मूल्य 7.1 करोड़ डॉलर था. उसे दूसरे वैलेट में ट्रांसफर कर दिया गया. अब उसका मूल्य 4.5 अरब डॉलर से अधिक हो गया है.
जांचकर्ताओं को एक वॉलेट मिली जिसमें 2,000 से अधिक बिटक्वाइन खाते थे जांच के दौरान, जांचकर्ता अल्फा बे नामक एक डार्क वेब मार्केट तक पहुंचने में सफल रहे. अमेरिकी न्याय विभाग ने 2017 में इस डार्क वेब मार्केट पर प्रतिबंध लगा दिया था. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने लिचेंस्टाइन, मॉर्गन और उनके व्यवसायों द्वारा नियंत्रित एक दर्जन से अधिक खातों में चोरी की गई धनराशि को ट्रैक किया. जिसका इस्तेमाल 2016 में बिट फीनिक्स को बिटक्वाइन चोरी करने के लिए हैक करने के लिए किया गया था.
अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने लिचेंस्टाइन, मॉर्गन और उनके व्यवसायों द्वारा नियंत्रित एक दर्जन से अधिक खातों से पैसे की चोरी का भी पता लगाया. अभियोजकों का कहना है कि बिटक्वाइन एटीएम से लाखों डॉलर निकाले गए. चोरी के पैसे से सोना, एनएफटी और वॉलमार्ट के उपहार कार्ड खरीदे गए.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
सियोल, 10 फरवरी | वैश्विक वैक्सीन वितरण प्लेटफॉर्म, कोवैक्स फैसिलिटी ने उत्तर कोरिया के लिए आवंटित कोविड-19 वैक्सीन की कुल संख्या को कम कर दिया है, क्योंकि डिलीवरी होनी बाकी है। यूनिसेफ ने गुरुवार को इसका खुलासा किया। योनहाप न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिसेफ के कोविड-19 वैक्सीन मार्केट डैशबोर्ड के अनुसार, उत्तर कोरिया को कुल 1.54 मिलियन टीके आवंटित किए गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 8.11 मिलियन खुराक है।
गैवी वैक्सीन गठबंधन के एक प्रवक्ता जो कार्यक्रम का सह-नेतृत्व करते हैं उन्होंने कहा कि कोवैक्स इस साल 'जरूरत-आधारित' वैक्सीन वितरण में स्थानांतरित हो रहा है और उत्तर में पहले से आवंटित टीके अब प्रासंगिक नहीं हैं।
महामारी के खिलाफ लंबे समय तक सीमा नियंत्रण के बीच उत्तर कोरिया को अब तक कोई कोरोना वायरस वैक्सीन नहीं मिली है।
यह अभी तक किसी भी पुष्टि किए गए मामलों या मौतों की रिपोर्ट नहीं करता है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 फरवरी | पाकिस्तान में सिंध के नौकोट में दो युवतियों का अपहरण कर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने का मामला सामने आया है। यही नहीं, आरोपियों ने महिलाओं की सड़क पर परेड (जुलूस) भी कराई। समा टीवी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों के एक समूह ने राजपूत और टांगरी जनजाति के दो सदस्यों के बीच स्वतंत्र विवाह के बाद दो महिलाओं पर अपमान का बदला लेने के लिए इस घटना को अंजाम दिया।
कांस्टेबल गुलजार टांगरी सहित कम से कम 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मुख्य संदिग्ध अली नवाज टांगरी अभी भी फरार है।
परिवार के मुताबिक, राजपूत जनजाति का एक शख्स उनकी 18 साल की बेटी को 2 फरवरी को शादी करने के लिए कराची ले गया था।
पुलिस ने कहा है कि अपहरण की सूचना नहीं दी गई थी और दोनों समूह अपने दम पर मामले को सुलझा रहे थे।
6 फरवरी को, टंगरी समूह ने परिवार पर हमला किया और उनके घर में घुसकर हवाई फायरिंग शुरू कर दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवार के मुताबिक, दर्जनों हथियारबंद लोगों ने परिवार को पीटा और 18 साल की बहू और 14 साल की बेटी का अपहरण कर लिया।
18 वर्षीय पीड़िता ने पुलिस पर इस मामले में शामिल होने का आरोप लगाया है। पीड़िता ने कहा, अली नवाज टंगरी हमें उस घर में ले गया, जहां एक पुलिस कांस्टेबल गुलजार टंगरी मौजूद था और फिर दोनों लोग हमें बन्नी ले गए।
उन्होंने कहा, हमारे साथ मारपीट की गई, सड़कों पर परेड कराई गई और पूरी रात सामूहिक दुष्कर्म किया गया।
7 फरवरी को, पीड़ित परिवार ने नौकोट जादो रोड पर धरना दिया और पुलिस तथा स्थानीय प्रशासन से उन्हें न्याय देने की मांग की।
18 वर्षीय पीड़िता ने पुलिस के दावे का खंडन किया और कहा है कि कांस्टेबल गुलजार ने अपनी संलिप्तता का उल्लेख नहीं करने के लिए उन्हें रिश्वत दी थी।(आईएएनएस)
जिनेवा, 9 फरवरी | ओमिक्रॉन के बीए.2 उप प्रकार के विश्व स्तर पर फैलने की आशंका है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह मूल ओमिक्रॉन स्ट्रेन से संक्रमित लोगों में पुन: संक्रमण का कारण बनेगा या नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी जानकारी दी है।
सीएनबीसी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के कोविड-19 तकनीकी नेतृत्व मारिया वान केरखोव के अनुसार, बीए.2 सबवेरिएंट, जो वर्तमान में प्रमुख बीए.1 वेरिएंट की तुलना में अधिक संक्रामक है, संभवत: अधिक सामान्य हो जाएगा।
वान केरखोव ने मंगलवार को डब्ल्यूएचओ के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाइव स्ट्रीम किए गए एक प्रश्न और उत्तर सत्र के दौरान कहा, "बीए.2 बीए.1 की तुलना में अधिक पारगम्य है, इसलिए हम बीए.2 को दुनिया भर में बढ़ते हुए देखने की उम्मीद करते हैं।"
वैन केरखोव ने कहा, डब्ल्यूएचओ यह देखने के लिए बीए.2 की निगरानी कर रहा है कि क्या सबवेरिएंट उन देशों में नए संक्रमणों की वृद्धि का कारण बनता है, जिनमें तेजी से वृद्धि देखी गई और फिर ओमिक्रॉन मामलों में तेज गिरावट आई।
उन्होंने कहा कि शोध अभी भी जारी है, लेकिन दोनों में से किसी एक के कारण होने वाले संक्रमण की गंभीरता में अंतर का कोई संकेत नहीं है।
हालांकि ओमिक्रॉन तेजी से फैलता है, यह अल्फा और डेल्टा वेरिएंट की तुलना में हल्के संक्रमण का कारण बनता है।
डेनमार्क में शोधकर्ताओं ने पाया है कि बीए.2 बीए.1 की तुलना में लगभग 1.5 गुना अधिक संक्रमणीय है और यह उन लोगों को संक्रमित करने में अधिक कुशल है जिन्हें टीका लगाया गया है और यहां तक कि बढ़ाया भी गया है। हालांकि, जिन लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है, उनमें असंक्रमित लोगों की तुलना में इसके फैलने की संभावना कम होती है।
वैन केरखोव ने कहा कि टीके गंभीर बीमारी और मृत्यु को रोकने में अत्यधिक प्रभावी हैं, हालांकि वे सभी संक्रमणों को नहीं रोकते हैं। उन्होंने लोगों से टीकाकरण करने और घर के अंदर मास्क पहनने का आह्वान किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ के कोविड घटना प्रबंधक डॉ. आब्दी महमूद ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि बीए.2 उन लोगों को फिर से संक्रमित कर सकता है जिनको पहले बीए.1 था।
यह जानकारी इस बात पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है कि वायरस कितना फैल सकता है। यूके में एक अध्ययन में पाया गया कि ओमिक्रॉन से संक्रमित होने वाले दो-तिहाई लोगों ने कहा कि उन्हें पहले भी कोविड था।
(आईएएनएस)
कर्नाटक में हिजाब पहनने को लेकर छिड़ी बहस मंगलवार को एक वायरल वीडियो की वजह से और गरमा गई है और इसे लेकर लगातार प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं.
इस वीडियो में दिखता है कि मांड्या ज़िले के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में हिजाब पहनी एक छात्रा अपनी बाइक पार्क कर क्लास की ओर बढ़ती है और एक भीड़ उसके पीछे लग जाती है.
भगवा गमछा-पाटा ओढ़े और उग्र नारेबाज़ी करते लोग जय श्री राम के नारे लगाते हुए छात्रा की ओर बढ़ते हैं जिसके बाद वो भी जवाब में भीड़ की ओर पलटकर दोनों हाथ उठाकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाने लगती है.
कौन है ये छात्रा
मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार उग्र नारे लगाती भीड़ के सामने डटी इस छात्रा का नाम मुस्कान है जो मैसूर-बेंगलुरु हाइवे पर स्थित पीईएस कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स में बी. कॉम. द्वितीय वर्ष की छात्रा है.
घटना के बारे में मुस्कान ने अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ''मैं असाइनमेंट जमा करने जा रही थी, मेरे कॉलेज में घुसने से पहले ही कुछ छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण परेशान किया गया था, वो रो रही थीं. मैं यहां पढ़ने आती हूं, मेरा कॉलेज मुझे ये कपड़े पहनने की इजाज़त देता है. भीड़ में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी छात्र मेरे कॉलेज के लोग थे, बाक़ी सब बाहरी लोग थे. जिस तरह से वे बर्ताव कर रहे थे उसने मुझे परेशान किया और मैंने उसका जवाब दिया.''
मगर उन्होंने कहा कि उन्हें कॉलेज के प्रिंसिपल और अन्य कर्मचारियों के अलावा उनकी हिंदू सहपाठियों का भी समर्थन मिला.
मुस्कान ने कहा, ''मेरे कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल ने कभी बुर्का पहनने से नहीं रोका. कुछ बाहरी लोग आकर हम पर दबाव बना रहे हैं, हमें रोकने वाले ये लोग कौन हैं? क्यों हमें इनकी बात सुननी चाहिए?''
मुस्कान ने टीवी चैनल एनडीटीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा, "जब मैं कॉलेज गई तो वो मुझे भीतर नहीं जाने दे रहे थे क्योंकि मैंने बुर्का पहना हुआ था.
मैं किसी तरह अंदर आ गई, जिसके बाद वो जय श्री राम के नारे लगाने लगे. तो मैंने भी अल्लाहु अकबर चिल्लाना शुरू कर दिया.
मुस्कान ने इस इंटरव्यू में कहा कि 'भीड़ में सिर्फ 10 प्रतिशत लड़के कॉलेज के थे. बाक़ी बाहर के थे'.
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने हिजाब विवाद को लेकर ट्वीट किया, "बिकिनी हो, घूंघट हो, जीन्स या फिर हिजाब, महिलाओं की मर्ज़ी है कि वे अपनी पसंद के कपड़े पहनें." प्रियंका ने आगे लिखा है कि ये अधिकार महिलाओं को भारत के संविधान ने दिया है. महिलाओं को सताना बंद करें.''
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कहा है - मैं सलाम करता हूँ इस बेटी की बहादुरी को, मैं सलाम करता हूँ उस बच्ची के माँ-बाप को जिन्होंने इस बेटी को इतना बहादुर बनाया."
भीम आर्मी के प्रमुख और दलित राजनेता चंद्रशेखर आज़ाद ने लिखा है, "कर्नाटक में बीबी मुस्कान नाम की बहादुर बहन के साथ जो हुआ है उसने भाजपा के 'सुशासन' की पोल खोल दी है. भाजपा सरकार अपने संरक्षण में गुंडे पालती है, उन गुंडों का इस्तेमाल हिंसा में करती है. जनसरोकार के हर एक मुद्दे पर विफल रही भाजपा अब ऐसे मुद्दों को हवा दे रही है."
कर्नाटक में बीबी मुस्कान नामी बहादुर बहन के साथ जो हुआ है उसने भाजपा के 'सुशासन' की पोल खोल दी है। भाजपा सरकार अपने संरक्षण में गुंडे पालती है, उन गुंडों का इस्तेमाल हिंसा में करती है। जनसरोकार के हर एक मुद्दे पर विफल रही भाजपा अब ऐसे मुद्दों को हवा दे रही है।
आलोचना
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता संजू वर्मा ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाने वाली छात्रा को एक कट्टरपंथी और गुमराह लड़की बताया है.
संजू वर्मा ने ट्वीट किया, "अल्लाहु अकबर के नारे लगाने वाली उस गुमराह और कट्टरपंथी लड़की ने बहादुरी वाला कोई काम नहीं किया है. ज़्यादातर इस्लामिक देशों ने भी हिजाब पर रोक लगा दी है. जो लोग #HijabisOurRight को ट्रेंड करवा रहे हैं, उन्हें अगर 18वीं सदी की मानसिकता में रहने का शौक़ है तो मदरसा चले जाएं."
विश्व हिंदू परिषद ने कर्नाटक में हिजाब मामले पर जारी विवाद पर चेतावनी देते हुए कहा है कि 'हिजाब की आड़ में अराजकता से बाज आएं जिहादी व उनके पैरोकार'.
वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि कर्नाटक के उडुपी से शुरू हुआ विवाद दरअसल हिजाब की आड़ में जिहादी अराजकता फैलाने का षड़यंत्र है.
पाकिस्तान में भी प्रतिक्रिया
वीडियो में अल्लाहु अकबर कहने वाली छात्रा को पाकिस्तान में भी खूब समर्थन मिल रहा है.
पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी पीटीआई ने ये वीडियो ट्वीट कर लिखा है - "बहादुरी की मिसाल! अल्लाहु अकबर. मोदी राज में भारत में बस तबाही हो रही है. जिन्ना सही थे."
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने भी भारत के कर्नाटक राज्य में हिजाब पहनने को लेकर चल रहे विवाद पर अपनी राय रखी है.
उन्होंने ट्वीट कर कहा है - "मुसलमान लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस मौलिक अधिकार से किसी को वंचित करना और हिजाब पहनने के लिए आतंकित करना पूरी तरह दमनकारी है. दुनिया को ये समझना चाहिए कि ये मुसलमानों की घेटो (एक समुदाय की तंग बस्ती) में रहने को मजबूर करने की भारत की योजना का हिस्सा है."
वहीं इमरान ख़ान सरकार में मंत्री चौधरी फ़वाद हुसैन लिखते हैं, "मोदी के भारत में जो हो रहा है वह भयानक है. अस्थिर नेतृत्व में भारतीय समाज का तेज़ी से पतन हो रहा है. किसी अन्य कपड़े की तरह ही हिजाब पहनना भी निजी पसंद है जो विकल्प हर नागरिक को मिलना चाहिए.''
पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के राजनीतिक सलाहकार और पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के प्रवक्ता रह चुके हुसैन हक़्क़ानी ने भी इस वीडियो को शेयर किया है.
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हक़्क़ानी ने साथ ही लिखा है, "जब 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में हिजाब लगाने वाली मस्लिम लड़कियों को परेशान किया गया था तो राष्ट्रपति बुश ने कहा था ये अमेरिकी भावना नहीं है. शायद नरेंद्र मोदी को भी भारत भर में होती ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए खुलकर ऐसा ही कुछ बोलना चाहिए. ये कहीं से भी सही नहीं है."
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने एक ट्वीट में लिखा है - "मार्टिन लूथर किंग ने एक बार कहा था "नफ़रत से नफ़रत नहीं मिट सकती, केवल मोहब्बत से ये मुमकिन है." इस घटना देखें, एक अकेली मुस्लिम लड़की को अतिवादी हिंदुओं की एक भीड़ परेशान कर रही है. अकेली लड़कियों को घेर नफ़रत को ना बढ़ाएँ."
पाकिस्तानी पत्रकार यासिफ़ वायरल वीडियो को शेयर करते हुए लिखते हैं, "जिस अंदाज़ में इन्होंने अल्लाहु अकबर कहा, वह ये दिखाता है कि ये असल शेरनी हैं. और जिस तरह से भारत में भारतीय मुसलमानों और मुस्लिम लड़कियों के साथ व्यवहार किया जाता है, उससे साबित होता है कि जिन्ना सही थे."
भारत में रह रही बांग्लादेश की जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन ने कर्नाटक के कॉलेज में हिजाब पहनी छात्रा के वायरल वीडियो की तुलना खूंखार चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट से कर दी है. उन्होंने लिखा है, "अल्लाहु अकबर की आवाज़ मुझे आईएसआईएस के सिर काटने वाले वीडियो की याद दिलाती है."
हिजाब विवादः क्या है पूरा मामला?
हिजाब पहनने का मामला तब सुर्ख़ियों में आया जब कर्नाटक में उडुपी के एक प्री-यूनिवर्सिटी गवर्नमेंट कॉलेज की लगभग आधा दर्जन छात्राओं ने हिजाब उतारने से इनकार कर दिया.
दूसरे वर्ष की इन छात्राओं ने हिजाब उतारकर क्लास में बैठने की अपीलों को ख़ारिज कर दिया. जब इन छात्राओं की बात नहीं सुनी गई तो इन्होंने प्रदर्शन शुरू कर दिया. ये मामला तब और बढ़ गया जब उडुपी ज़िले के कॉलेज में लड़कियों के हिजाब के जवाब में कुछ छात्र भगवा शॉल पहन कर चले आए थे.
इसके बाद लड़कियों ने भी भगवा शॉल पहन कर जुलूस की शक्ल में एक प्राइवेट कॉलेज में घुसने की कोशिश की. मामला तूल पकड़ता गया और राजनीतिक पार्टियां भी इस विवाद में कूद पड़ीं.
हिजाब पहनने से रोके जाने पर छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है. लिहाज़ा उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता.(bbc.com)
रिश्तेदारों के साथ प्रजनन के कारण पाकिस्तान में बहुत ज्यादा जीन संबंधी बीमारियां फैल चुकी हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक जब तक मौलवी ये नहीं समझेंगे तब तक ये बीमारियां फैलती रहेंगी.
डॉयचे वैले पर एस. खान की रिपोर्ट-
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में रहने वाले 56 साल के गफूर हुसैन शाह एक टीचर हैं और आठ बच्चों के पिता भी. पाकिस्तान के कबाइली रिवाजों की जिक्र करते हुए शाह कहते हैं कि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने बच्चों की शादी रिश्तेदारी में ही करेंगें.
लेकिन शाह को रिश्तेदारी के दायरे में की जाने वाली ऐसी शादियों का जोखिम मालूम है. 1987 में शाह की शादी अपनी ममेरी बहन से हुई. इस शादी से हुए तीन बच्चे जीन संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं. डीडब्ल्यू से बात करते हुए शाह ने कहा कि एक बेटे के मस्तिष्क का सामान्य रूप से विकास नहीं हुआ. एक बेटी को स्पीच डिसऑर्डर है और एक बेटी को सुनने में दिक्कत होती है.
टीचर शाह कहते हैं, "मुझे सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि वे पढ़ लिख नहीं सके." पत्नी और अपनी ढलती उम्र का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "मुझे हमेशा उनकी चिंता लगी रहती है....मेरी पत्नी और मेरे जाने के बाद उनकी देखभाल कौन करेगा?"
ऐसी शादियों की वजह से होने वाली जीन संबंधी बीमारियों के बारे में जानते हुए भी शाह खुद को मजबूर महसूस करते हैं. वह कहते हैं कि बच्चों की शादी रिश्तेदारी में कराने को लेकर उन पर समाज का बहुत दबाव है. बड़े पारिवारिक दायरे के भीतर बच्चों की शादी से इनकार करने वाले अकसर बहिष्कृत से कर दिए जाते हैं.
शाह कहते हैं कि एक बेटे और दो बेटियों की शादी उन्हें करीबी रिश्तेदारी में करनी पड़ी. शाह के परिवार की मेडिकल हिस्ट्री में रक्त संबंधी बीमारियां (ब्लड डिसऑर्डर), सीखने की क्षमता संबंधी दोष, अंधापन व बहरेपन के मामले सामने आ चुके हैं. डॉक्टर इसके लिए करीबी दायरे के भीतर प्रजनन को जिम्मेदार ठहराते हैं.
पाकिस्तान में जेनेटिक म्यूटेशन की समस्या
पाकिस्तान में जेनेटिक म्यूटेशन को लेकर 2017 में एक रिपोर्ट आई. इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की जनसंख्या की हेट्रोजिनस कंपोजिशन में एक ही विरासत वाली संतानों का स्तर बहुत ऊंचा है. इसी के कारण जीन संबंधी बीमारियां सामने आ रही हैं.
रिपोर्ट, पाकिस्तान का जेनेटिक म्यूटेशन डाटाबेस पेश करती है. इस डाटाबेस की उन म्यूटेशंस को ट्रैक किया जा सकता है जो इस तरह की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं. डाटाबेस के मुताबिक पाकिस्तान में सामने आने वाली अलग अलग किस्म की जीन संबंधी 130 बीमारियों के मामले में 1,000 से ज्यादा म्यूटेशनों का पता चला है.
हुमा अरशद चीमा एक डॉक्टर हैं. वह पैदाइश से लेकर वयस्क होने तक बच्चों के स्वास्थ्य, व्यवहार और उनकी मनोदशा पर नजर रखती हैं. जीन संबंधी बीमारियों की एक्सपर्ट चीमा ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा कि करीबी दायरे में प्रजनन की वजह से पाकिस्तान पर जीन संबंधी बीमारियां बोझ बन गई हैं.
डॉक्टर चीमा के मुताबिक जिन जातियों या कबीलों में परिवार के भीतर शादी आम है, वहां खास डिसऑर्डरों को देखा जा सकता है. पाकिस्तान में फिलहाल विरासती ब्लड डिसऑर्डर थैलेसेमिया सबसे आम है. इस बीमारी में खून की लाल रक्त कणिकाएं ऑक्सीजन को नहीं सोख पाती हैं.
अनुवांशिक बीमारियों का पता लगाने वाली जेनेटिक टेस्टिंग और प्री नैटल स्क्रीनिंग अभी पाकिस्तान में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है. चीमा के मुताबिक देश के ज्यादा अस्पतालों और क्लीनिकों में जेनेटिक बीमारियों का इलाज करने की क्षमता भी नहीं है.
चेचेरे या ममेरे भाई बहनों से शादी क्यों?
कराची में रहने वाले हेल्थ एक्सपर्ट शिराज उद दौलाह के मुताबिक परिवार के भीतर शादियों का रिश्ता इस्लाम की परंपराओं से जुड़ा है, " मैंने मौलवियों से कहा कि वे जीन संबंधी बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद करें, लोगों को समझाएं कि चेचेरे या ममेरे भाई बहन के साथ होने वाली शादियां जेनेटिक बीमारियां को बढ़ाने में भूमिका निभा रही हैं."
शिराज उद दौलाह के मुताबिक मौलवियों ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. मौलवियों ने दावा किया कि ऐसी शादियां इस्लाम के शरिया कानून और पैंगबर मोहम्मद की परंपराओं के मुताबिक होती हैं.
अपने परिवार में ऐसी बीमारियों से जूझने वाले टीचर शाह कहते हैं कि ज्यादातर परिवार ऐसी शादियां इसीलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका धर्म ये कहता है. शाह के मुताबिक अगर सरकार भी ऐसी शादियों को गैरकानूनी घोषित करे, तो उसे भी तीखे विरोध का सामना करना पड़ेगा.
पाकिस्तान के दुर्गम इलाकों में कबाइली और जातीय सिस्टम आज भी बहुत मजबूत है. चीमा के मुताबिक पंजाब में आज भी कास्ट सिस्टम बहुत ताकतवर है. इसके कारण अंतर्जातीय विवाह नहीं होते हैं और जीन संबंधी बीमारियों के लिए मुफीद माहौल बनता है.
पाकिस्तान के पश्चिमी सूबे बलोचिस्तान में कबाइली सिस्टम बहुत मजबूत है. गुलाम हुसैन बलोच, बलोचिस्तान के रहने वाले हैं. हुसैन के मुताबिक अपने कबीले के बाहर शादी करना एक बड़ा सामाजिक गुनाह सा है. सिंध प्रांत में भी कबीले या कास्ट के बाहर शादी करने पर हत्याएं तक हो जाती हैं.
स्वास्थ्य अधिकारी का पक्ष
मार्च 2020 में पंजाब की प्रांतीय सरकार ने जेनेटिक बीमारियों को रोकने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया. अब लाहौर के चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में मुफ्त जेनेटिक स्क्रीनिंग सर्विस शुरू की गई है. जर्मन कंपनी सेंटोजीन डायग्नोस्टिक और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं.
चीमा कहती हैं प्री नैटल स्क्रीन के जरिए बच्चे में जीन संबंधी बीमारी का पता लगाया जा सकता है. इससे मां बाप को फैसला करने में मदद मिलेगी. अनुवांशिक बीमारी का जल्द पता चलने पर इलाज में भी मदद मिलेगी.
पंजाब हेल्थ डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहा, "हमने जेनेटिक डिसऑर्डर के शक में पाकिस्तान के 30,000 परिवारों की स्क्रीनिंग की है."
हेल्थ एक्सपर्ट शिराज उद दौलाह के मुताबिक जरूरत लोगों की मानसिकता बदलने की है, "धार्मिक मामलों में लोग आंख बंद करके भरोसा करते हैं और वे कोई भी तर्क सुनना नहीं चाहते हैं." शिराज आगे कहते हैं, "अगर सरकार सारे मौलवियों से कहे कि वे बढ़ती जीन संबंधी बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाएं और उसे कजिन के साथ शादी से जोड़े तो शायद ज्यादा पाकिस्तानी ध्यान देंगे." (dw.com)
यूरोपीय संघ ने 2030 कर अपनी चिप सप्लाई चार गुना करने की योजना बनाई है. पहले अमेरिका और अब ईयू इस मामले में एशिया पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर बढ़ रहे हैं.
एक नए चिप एक्ट के साथ यूरोपीय संघ ने 42 अरब यूरो (करीब 48 अरब डॉलर) खर्च करने की योजना लॉन्च कर दी है. सार्वजनिक और निजी फंडों में अरबों का खर्च कर ब्लॉक माइक्रोचिप के निर्माण के मामले में आत्मनिर्भर बनना चाहता है.
इससे पहले अमेरिका ने भी इसी इरादे से करीब 52 अरब डॉलर के निवेश की अपनी योजना के बारे में बताया था. अमेरिका में भी खुद सेमीकंडक्टरों का निर्माण कर एशियाई बाजारों से निर्भरता खत्म करने का लक्ष्य है.
ईयू को क्यों जरूरत पड़ गई?
कुल 27-देशों के यूरोपीय संघ का लक्ष्य सेमीकंडक्टर सेक्टर में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना है. ऐसा करने की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि संघ एक साल से भी लंबे समय से सप्लाई चेन की समस्या झेल रहा है.
सेमीकंडक्टर के नाम से लोकप्रिय माइक्रोचिप ज्यादातर दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में बनते हैं. इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन बनाने से लेकर कारों तक में होता है. हाल के सालों में इन चिपों की सप्लाई पर लगाम लगने के कारण तमाम पश्चिमी देशों में इनकी कमी के कारण अनगिनत एसेंबली लाइनें ठप पड़ी गईं और ऑर्डर पूरा करने में लंबी देरी देखने को मिली.
यूरोपीय परिषद की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लायन ने कहा है कि चिप एक्ट रिसर्च, डिजाइन, टेस्टिंग को जोड़ने और यूरोप और राष्ट्रीय स्तर पर निवेश में सामंजस्य बैठाने का काम करेगा. ईयू की इस घोषणा के बाद यूरोपीय ऑटोमोबाइल निर्माताओं के संघ ACEA ने एक बयान जारी कर अपनी प्रतिक्रिया दी. ऐसे एक्ट की जरूरत को लेकर लॉबिंग करने वाले संघ ACEA ने ईयू से अपील की कि वह बाहर से होने वाली सप्लाई पर अपनी निर्भरता घटाएं ताकि भविष्य में कभी यूरोप के अहम उद्योग धंधों को ऐसा नुकसान ना उठाना पड़े.
एशिया की ओर से प्रतिस्पर्धा
फिलहाल चिप निर्माण के सबसे बड़े ठिकाने ताइवान, चीन और दक्षिण कोरिया में हैं. इस एक्ट के लिए 43 अरब यूरो जुटाने के लिए ईयू 3 अरब यूरो मौजूदा ईयू बजट से लेगा और 11 अरब यूरो का निवेश होगा. बाकी की रकम यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के उस फंड से आएगी जो अपने अपने स्तर पर सेमीकंडक्टर की सप्लाई के लिए तय की गई थी.
इस अरबों यूरो की योजना को ईयू के सदस्य देशों के अलावा यूरोपीय संसद की आधिकारिक मंजूरी मिलनी बाकी है. संसद में जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसे देश इसका समर्थन तो वहीं नीदरलैंड्स और नॉर्डिक देश इसका विरोध कर सकते हैं. चिप के मामले में यूरोप को जल्दी कदम उठाने होंगे वरना दूसरी ओर दक्षिण कोरिया अपने दबदबे को कायम रखने के लिए बहुत बड़ी बड़ी छूट का ऑफर देने को तैयार है.
अकेले ताइवान की चिप निर्माता कंपनी TSMC ही अगले 12 महीने में नए सेमीकंडक्टर के लिए नए प्लांट लगाने पर 40 से 44 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना चुकी है. वहीं, अमेरिकी कंपनी इंटेल आने वाले महीनों में यूरोप में चिप निर्माण की कई नई फैक्ट्रियां लगाने की घोषणा कर सकती है.
आरपी/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)
जर्मनी, फ्रांस और पोलैंड के नेताओं ने कहा कि वे यूरोप में युद्ध को रोकने के लक्ष्य में एकजुट हैं. यूक्रेन संकट को हल करने की कोशिशों के बीच बर्लिन में नेताओं ने विचार विमर्श किया.
तीनों नेताओं ने क्रेमलिन से "सार्थक संवाद" में शामिल होने का भी आह्वान किया है. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा ने यूक्रेन संकट पर मंगलवार शाम राजधानी बर्लिन में बातचीत की. रूसी सेना ने बीते कई हफ्तों से यूक्रेन को तीन तरफ से घेरा हुआ है. यूक्रेन की उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा के करीब एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिक तैनात हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रूसी सेना युद्ध में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान भी तैनात कर चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ अपनी बैठक के बाद नए सिरे से शॉल्त्स ने वादा किया कि वहां रूस के लिए "दूरगामी परिणाम" होंगे यदि वह यूक्रेन पर आक्रमण करता है. हालांकि, मॉस्को ने यूक्रेन पर हमले के किसी भी इरादे से इनकार किया है.
नेताओं ने क्या कहा?
जर्मन सरकार द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, "नेताओं ने यूक्रेन की सीमा पर तनाव कम करने और यूरोप में सुरक्षा पर सार्थक बातचीत शुरू करने के लिए रूस से कहा है. यूक्रेन के खिलाफ किसी भी रूसी सैन्य आक्रमण के गंभीर परिणाम होंगे और इसकी भारी कीमत चुकानी होगी."
माक्रों और डूडा की उपस्थिति में पत्रकारों से बात करते हुए, शॉल्त्स ने कहा कि वर्तमान स्थिति और यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन के निहितार्थ पर नाटो सहयोगियों की एक समान स्थिति है. उन्होंने कहा, "हमारा सामान्य लक्ष्य यूरोप में युद्ध से बचना है."
उन्होंने कहा, "यूक्रेनी सीमा पर रूसी सेना की तैनाती गंभीर चिंता का विषय है और हमारा विश्लेषण बहुत समान है. हम मानते हैं कि यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का और उल्लंघन अस्वीकार्य है और इसका दूरगामी राजनीतिक प्रभाव होगा."
पोलिश राष्ट्रपति डूडा ने कहा कि तीनों देश मॉस्को और कीव के बीच तनाव कम करने के अपने प्रयास जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, "हमें युद्ध से बचने के लिए रास्ता खोजना होगा और यह अभी हमारा सबसे महत्वपूर्ण काम है. मुझे यकीन है कि हम उस लक्ष्य को हासिल कर लेंगे. मुझे लगता है कि आज सबसे महत्वपूर्ण चीज एकता और एकजुटता है."
फ्रांस के राष्ट्रपति माक्रों ने यूरोप की सीमाओं पर तनाव कम करने के लिए मॉस्को के साथ सुरक्षा वार्ता का आह्वान किया है. माक्रों ने कहा, "हमें रूस को सार्थक वार्ता में शामिल करने के तरीके और साधन खोजने के लिए मिलकर काम करना चाहिए."
बर्लिन में मंगलवार की बैठक से एक दिन पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और माक्रों ने मॉस्को में मुलाकात की थी. माक्रों से मुलाकात के दौरान पुतिन ने कहा था यूरोप में सुरक्षा को लेकर रूस और फ्रांस की साझा चिंताएं हैं और फ्रांस ने बरसों से यूक्रेन विवाद हल करने की दिशा में काम किया है. रूसी नेता ने कहा कि माक्रों के साथ बातचीत लाभदायक रही जिसमें ठोस चर्चा हुई. उन्होंने यह भी कहा कि माक्रों के कुछ सुझाव 'यथार्थवादी' हैं और भविष्य में मिलकर कदम उठाने का आधार बन सकते हैं.
माक्रों "नॉरमंडी फॉर्मेट" शांति वार्ता को पुनर्जीवित करने की मांग कर रहे हैं- जिसका उद्देश्य पूर्वी यूक्रेन में लड़ाई को समाप्त करना है, जिसमें अब तक 14,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. नॉरमंडी फॉर्मेट" के नेता आखिरी बार 2019 में पेरिस में मिले थे. हालांकि, इसमें शामिल चार देश फ्रांस, जर्मनी, रूस और यूक्रेन के दूतों को गुरुवार को बर्लिन में मिलना है.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)
एक अमेरिकी रक्षा एजेंसी ने कहा कि 10 करोड़ डॉलर के सौदे की बदौलत चीन के दबाव के बीच ताइवान अपने मिसाइल रक्षा प्रणाली को अत्याधुनिक बनाने पर खर्च बढ़ा सकेगा.
पेंटागन ने सोमवार को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने द्वीप की मिसाइल रक्षा प्रणालियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ताइवान को अपने मिसाइल के आधुनिकीकरण और मिसाइल रक्षा प्रणाली को अत्याधुनिक बनाने के लिए 10 करोड़ डॉलर की मंजूरी दी है.
अमेरिकी सुरक्षा सहयोग एजेंसी (डीएससीए) ने एक बयान में कहा कि पैट्रियट हवाई सुरक्षा प्रणाली को उन्नत बनाए जाने से सहयोगी देश की सुरक्षा मजबूत होगी और वह राजनीतिक स्थिरता कायम रखने, सैन्य संतुलन बनाए रखने और क्षेत्र का आर्थिक विकास करने में सक्षम होगा. बयान में कहा गया, "पैट्रियट मिसाइलों के आधुनिकीकरण के लिए उपकरणों और सेवाओं के इस प्रस्तावित विक्रय से अमेरिका के सहयोगी देश की विश्वसनीय सुरक्षा हो सकेगी."
डीएससीए ने कहा, "यह प्रस्तावित बिक्री अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और एक विश्वसनीय रक्षात्मक क्षमता बनाए रखने के लिए सहयोगी देश के निरंतर प्रयासों का समर्थन करके अमेरिकी राष्ट्रीय, आर्थिक और सुरक्षा हितों की सेवा करती है." एजेंसी ने कहा कि मुख्य ठेकेदार रेथियॉन टेक्नोलॉजीज और लॉकहीड मार्टिन होंगे.
चीनी उकसावे का सामना
ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने एक ट्वीट में हथियारों की बिक्री के लिए विदेश विभाग को धन्यवाद दिया. मंत्रालय ने कहा कि सौदा एक महीने के भीतर लागू होने की उम्मीद है. ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि उसने इस फैसले का "बहुत स्वागत" किया. मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "चीन के निरंतर सैन्य विस्तार और उत्तेजक कार्रवाइयों के सामने, हमारा देश एक ठोस रक्षा के साथ अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखेगा और ताइवान और अमेरिका के बीच घनिष्ठ सुरक्षा साझेदारी को गहरा करना जारी रखेगा."
अमेरिका और चीन के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे समझौते के तहत, वॉशिंगटन "एक-चीन" नीति का पालन कर रहा है. इस राजनीतिक स्थिति के मुताबिक अमेरिका ताइवान की राजधानी ताइपे को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के बजाय बीजिंग के साथ सभी मुद्दों को निपटाने के लिए बाध्य है. ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है, लेकिन चीन इसे अपने देश का हिस्सा मानता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में ताइवान के साथ "पूर्ण एकीकरण" के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
ताइवान ने अपने वायु रक्षा क्षेत्र में चीनी वायु सेना द्वारा उकसाने वाली उड़ानों की शिकायत की है. इसी साल 23 जनवरी को ताइवान के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने अपने वायु रक्षा क्षेत्र में 39 चीनी लड़ाकू विमानों को राडार में पकड़ा.
पिछले महीने, अमेरिका में चीन के राजदूत ने कहा कि अगर वॉशिंगटन ने ताइवान की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया तो दोनों शक्तियां सैन्य संघर्ष में उलझ सकती हैं.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया हर साल हजारों युवाओं को अपने यहां आकर घूमने, अस्थायी रूप से रहने और काम करने के लिए विशेष वीजा देता है. लेकिन यह वीजा भारतीयों को नहीं दिया जाता, जबकि अन्य वीजा पाने वालों में भारतीय सबसे आगे हैं.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया कि घूमने के साथ-साथ काम करने के लिए जो लोग उसके यहां जाना चाहते हैं उनकी वीजा फीस माफ कर दी जाएगी. इस ऐलान पर कई देशों के युवा खुश हो सकते हैं लेकिन सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया जाने वाले भारत के लोग नहीं.
ऑस्ट्रेलिया का बैकपैकर्स वीजा, जिसे आधिकारिक तौर पर सबक्लास 417 और सबक्लास 462 वीजा कहा जाता है, भारतीयों को नहीं मिल सकता. यह वीजा 18 से 30 वर्ष तक के युवाओं को अस्थायी रूप से ऑस्ट्रेलिया में रहने और काम करने और पढ़ने का अधिकार देता है.
कोविड के दौरान बंद रहने के बाद यह योजना अब फिर से शुरू कर दी गई है और चूंकि ऑस्ट्रेलिया इस वक्त कामगारों की भयंकर कमी से जूझ रहा है तो उसने ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करने के मकसद से इस वीजा को मुफ्त में देने का ऐलान भी किया है.
पिछले हफ्ते वहां के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने कहा, "हम बैकपैकर्स के लिए अपनी सीमाएं खोल रहे हैं. और अगर वे तीन महीने के भीतर यहां आएंगे तो उन्हें छूट भी देंगे. यहां आने के बाद उनकी वीजा फीस वापस कर दी जाएगी.”
क्या है बैकपैकर्स वीजा?
1975 में शुरू किया गया यह वीजा स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद दुनिया को जानने निकलना चाहने वाले युवाओं को ऑस्ट्रेलिया में घूमने के साथ-साथ छोटे-मोटे काम करने के लिए आकर्षित करने के मकसद से शुरू किया गया था.
हमेशा कामगारों की कमी से जूझने वाले देश ऑस्ट्रेलिया के लिए यह दोनों हाथों में लड्डू जैसी योजना साबित हुई. एक तो उसे वीजा फीस और पर्यटकों के रूप में धन मिला और खेतों व अन्य मौसमी उद्योगों में काम करने के लिए कर्मचारी भी मिले.
इस वीजा के तहत ऑस्ट्रेलिया घूमना चाहने वालों को अधिकतम 12 महीने के लिए यह वीजा दिया जाता है. इसी वीजा की फीस 495 डॉलर्स (लगभग 26,000 हजार रुपये) है जिसे फिलहाल लौटाया जा रहा है. आम टूरिस्ट वीजा से यह अलग है क्योंकि इस वीजा पर आने वाले लोग काम करने और पढ़ने के अधिकार रखते हैं.
देश के गृह मंत्रालय के मुताबिक वीजा सबक्लास 417 और सबक्लास 462 वीजा चुनिंदा देशों के 18 से 30 साल के युवाओं को (कनाडा, फ्रांस और आयरलैंड के मामले में यह आयु सीमा 18 से 35 वर्ष है) काम करने और चार महीने तक पढ़ाई करने का अधिकार देता है.
भारतीयों को नहीं मिलता यह वीजा
ऑस्ट्रेलिया का बैकपैकर्स वीजा सिर्फ 19 देशों के लोगों को मिल सकता है. ये देश हैं बेल्जियम, कनाडा, साइप्रस, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, आयरलैंड, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, माल्टा, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, स्वीडन, ताइवान और युनाइटेड किंग्डम.
ऑस्ट्रेलिया की विभिन्न वीजा श्रेणियों के लिए अप्लाई करने वालों में भारतीय सबसे ऊपर हैं. स्टूटेंड वीजा सबसे ज्यादा भारतीय छात्रों को ही मिलता है. इसके अलावा टूरिस्ट वीजा पर भी सबसे ज्यादा भारतीय ही ऑस्ट्रेलिया आते हैं. इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया में बैकपैकर्स वीजा पाने वालों की श्रेणी में भारतीय शामिल नहीं हैं.
सबसे ताजा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 में एक लाख 96 हजार लोगों ने ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश किया. इनमें से सबसे ज्यादा लोग सिंगापुर (3,170) से आए. दूसरे नंबर पर यूके (2,790) और तीसरे नंबर पर भारत (2,310) था. लेकिन यह उन परिस्थितियों के आंकड़े हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद थीं और चुनिंदा वीजा धारकों को ही देश में प्रवेश की अनुमति थी.
इन आंकड़ों की तुलना अगर कोविड के पहले के हालात से की जाए तो पर्यटन से लेकर ऑस्ट्रेलिया का स्थायी वीजा और नागरिकता लेने वालों में भारतीयों की संख्या हाल के सालों में लगातार सबसे ऊपर रही है. इसलिए विशेषज्ञ हैरत जताते हैं कि भारतीयों को अब तक बैकपैकर वीजा के लिए क्यों योग्य नहीं माना गया है.
बातचीत जारी है
मेलबर्न स्थित ‘एजुकेशन ऐंड माइग्रेशन एक्सपर्ट्स' की डायरेक्टर और माइग्रेशन मामलों की विशेषज्ञ चमनप्रीत कहती हैं कि भारत को इस श्रेणी में शामिल करने के बारे में शामिल करने पर विचार तो लंबे समय से चल रहा है लेकिन उस पर अमल अब तक नहीं हो पाया.
चमन प्रीत बताती हैं, "ऑस्ट्रेलिया बैकपैकर्स वीजा अपने यहां कामगारों की कमी की भरपाई करने के लिए देता है. यूरोप से युवा यहां घूमने आते हैं और खेती के सीजन में खेतों में या अन्य उद्योगों में काम करते हैं, जो ऑस्ट्रेलिया की जरूरत है. इस लिहाज से देखा जाए तो भारत ऑस्ट्रेलिया का बड़ा साझीदार बन सकता है क्योंकि उसके पास विशाल मानव संसाधन हैं.”
जुलाई 2019 में ऑस्ट्रेलिया ने बैकपैकर्स वीजा श्रेणी के देशों की संख्या में विस्तार का ऐलान किया था. तब के इमिग्रेशन मंत्री डेविड कोलमन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया इस वीजा श्रेणी के विस्तार के लिए 13 देशों से बात कर रहा है. इनमें भारत के अलावा ब्राजील, मेक्सिको, फिलीपीन्स, स्विट्जरलैंड, फिजी, सोलोमन आइलैंड्स, क्रोएशिया, लातविया, लिथुआनिया, ऐंडोरा, मोनाको और मंगोलिया शामिल हैं. लेकिन यह बातचीत अब तक आगे नहीं बढ़ पाई है. (dw.com)
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप दोबारा पद पाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उनकी रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है और उन्होंने अच्छा-खासा धन भी जुटाया है. क्या वाकई ट्रंप दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बन सकते हैं?
डॉयचे वैले पर कार्ला ब्लाइकर की रिपोर्ट-
हाल ही में टेक्सस में हुई एक रैली में डॉनल्ड ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन के बारे में बात की. और वही राग फिर अलापा कि कैसे 2020 का चुनाव वह हारे नहीं थे बल्कि जीत उनसे चुरा ली गई. उन्होंने कहा, "2020 के चुनाव में धांधली हुई और इसके बारे में सब जानते हैं.” हालांकि इन दावों को सिरे से खारिज किया जा चुका है और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट भी चार राज्यों के चुनावी नतीजों को पलटने के मुकदमे में रद्दी की टोकरी में डाल चुका है.
ट्रंप का यह अंदाज जाना-पहचाना है. राजनीतिक समाचार देने वाली वेबसाइट द हिल में प्रचार अभियानों के मामलों के संपादक ब्रैंडन कोनराडिस कहते हैं 2016 के चुनाव में भी वह ऐसा ही करते थे, तब भी रैलियों में उन्होंने निराधार दावे किए और चुनाव जीता भी.
डॉयचे वेले से बातचीत में ब्रैंडन कहते हैं, "ट्रंप वही कर रहे हैं जो वह हमेशा करते हैं. यानी अपने कट्टर समर्थकों के सामने वे बातें कहना जो वे सुनना चाहते हैं. यह अब भी कामयाब नुस्खा है.”
तरकश में नए तीर भी
वैसे डॉनल्ड ट्रंप ने अपने तरकश से कुछ नए तीर भी निकाले हैं. जैसे कि पिछले हफ्ते कॉनरो में एक रैली में उन्होंने 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी कैपिटॉल पर चढ़ाई करने वालों के समर्थक में जोरदार भाषण दिया. ट्रंप ने कहा, "अगर मैं दोबारा चुनाव लड़ा और जीता, तो हम 6 जनवरी वाले लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करेंगे. और अगर इसका अर्थ उन्हें माफी देना है तो हम उन्हें माफी भी देंगे क्योंकि उनके साथ अन्याय हो रहा है.”
6 जनवरी 2021 को अमेरिका में जो हुआ उसे अमेरिका के समकालीन लोकतांत्रिक इतिहास के काले दिनों में गिना जाता है.
उस दिन सैकड़ों लोगों की भीड़ कैपिटॉल हिल बिल्डिंग में घुस गई और तोड़फोड़ मचाई. वे लोग कांग्रेस के उस सत्र को रोकना चाहते थे जिसमें जो बाइडेन की राष्ट्रपति चुनाव की जीत को औपचारिक मंजूरी दी जा रही थी. उस घटना में पांच लोगों की मौत हुई थी. तब से 700 लोगों पर आरोप तय किए जा चुके हैं.
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में राजनीतिक प्रबंधन पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर माइकल कॉर्नफील्ड कहते हैं, "जब ट्रंप ऐसी भड़काऊ बातें कहते हैं तो उनका सबसे बड़ा मकसद होता है लोगों का ध्यान खींचना.”
अपनी ही पार्टी में विरोध
कॉनरो में लोगों को माफी देने वाल ट्रंप का बयान उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के लोगों को भी रास नहीं आ रहा है. कई लोगों ने सामने आकर इस विचार का विरोध किया है. ट्रंप के सहयोगी रहे लिंजी ग्राहम ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि वे लोग जेल जाएंगे क्योंकि वे इसी के हकदार हैं.
न्यू हैंपशर के गवर्नर क्रिस सुनूनू भी उन आरोपियों को माफी देने के खिलाफ हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या उन आरोपियों को माफी मिलनी चाहिए तो उन्होंने समाचार चैनल सीएनएन से कहा, "बेशक नहीं. हे भगवान, बिल्कुल नहीं.”
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के लिए यह विरोध मायने नहीं रखता क्योंकि इन बातों को वे ऐसे लोगों के लिए कहते ही नहीं हैं. कॉनराडिस कहते हैं, "इस आलोचना की परवाह ट्रंप को नहीं है. वह अपने खास समर्थकों से बात कर रहे हैं. वह उन लोगों से बात कर रहे हैं जिन्होंने कैपिटॉल पर चढ़ाई की थी. जो उनके कट्टर समर्थक हैं और जो भी हो जाए, वे ट्रंप के लिए ही वोट करेंगे.”
75 वर्षीय ट्रंप ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह तीन साल बाद यानी 2024 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगे या नहीं. लेकिन, यदि वह चुनाव मैदान में उतरने का फैसला करते हैं तो अपने कट्टर समर्थकों को उन्हें साथ लेकर चलना होगा. फिलहाल तो उनके बयान ‘अगर मैं चुनाव लड़ा और जीता' से शुरू होते हैं, जिसमें कई संकेत छिपे हैं.
समर्थन तो भारी है
कॉनराडिस कहते हैं, "जाहिर है, कुछ भी हो सकता है. लेकिन अभी जो हालात हैं उनमें तो वह निश्चित रूप से दोबारा चुनाव लड़ना चाहते हैं और इसकी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. वह नहीं चाहते कि लोग उन्हें भूल जाएं. सुर्खियों में रहना उन्हें पसंद है.”
वैसे कॉर्नफील्ड ज्यादा मुतमईन नहीं हैं. वह कहते हैं, "वह लोगों का मनोरंजन करने वाले व्यक्ति हैं जिन्हें एक अहम राजनीतिक पद मिला और उनका एक अहम राजनीतिक भूतकाल भी है. लेकिन जहां तक भविष्य की सवाल है तो वो अब हवा-हवाई है.”
ट्रंप अगर चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो हालात उनके लिए बुरे नहीं दिखते. जनवरी के आखिर में द हिल ने एक सर्वेक्षण प्रकाशित किया था. 2024 के लिए आठ संभावित उम्मीदवारों पर किए गए इस सर्वेक्षण में ट्रंप को 57 प्रतिशत वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसांतिस थे जिन्हें सिर्फ 12 फीसदी मत मिले.
इस बीच डॉनल्ड ट्रंप ने अच्छा खासा धन भी जुटा लिया है. 2021 की दूसरी छमाही में उन्होंने 5.1 करोड़ डॉलर जमा किए जिसके बाद उनके पास कुल चंदा 12.2 करोड़ डॉलर हो गया है. कॉनराडिस कहते हैं कि इनमें से ज्यादातर पैसा आम अमेरिकी लोगों ने दिया है. वह कहते हैं, "इसी से पता चल जाता है कि उनके पास कितना समर्थन है.” (dw.com)
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से हुई बातचीत के बाद रूस के राष्ट्रपति ने कहा है कि कुछ सुझाव ऐसे आए हैं जिन पर भविष्य में मिलकर काम करने के बारे में सोचा जा सकता है.
सोमवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने मॉस्को में रूसी नेता व्लादीमीर पुतिन से मुलाकात की. यह मुलाकात तब हुई है जब पश्चिमी देशों को आशंका है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने वाला है. और रूस भी अपनी एक लाख से ज्यादा फौज यूक्रेन की सीमा पर जमा करके पश्चिमी देशों से मांगें मनवाने पर अड़ा है.
बातचीत में माक्रों ने पुतिन से कहा कि उम्मीद है उनकी यह मुलाकात यूक्रेन संकट से बढ़े तनाव को कम करने में मददगार साबित होगी. बैठक की शुरुआत में ही माक्रों ने कहा, "यह चर्चा उस दिशा में कदम बढ़ाने की शुरुआत हो सकती है, जिस ओर हम जाना चाहते हैं, यानी तनाव कम करने की ओर.”
युद्ध टालने की उम्मीद
माक्रों ने युद्ध टालने की और "परस्पर भरोसे, स्थिरता और सबको नजर आने वाले तत्व” बनाने की उम्मीद भी जताई. पुतिन के साथ बैठक के बाद माक्रों ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने ‘ठोस सुरक्षा गारंटी' देने वाले कुछ प्रस्ताव पेश किए हैं.
माक्रों ने कहा, "राष्ट्रपति पुतिन ने मुझे भरोसा दिलाया कि वह इस दिशा में विमर्श को लेकर तैयार हैं और यूक्रेन की स्थिरता और क्षेत्रीय संप्रभुता बनाए रखना चाहते हैं.” माक्रों ने कहा कि हालांकि मतभेद बने हुए हैं लेकिन दोनों के बीच कई साझा तत्व भी नजर आए हैं.
दोनों नेताओं के बीच संकट के सबसे अहम बिंदू यानी यूक्रेन की नाटो सदस्यता को लेकर भी चर्चा हुई. माक्रों ने पुतिन से कहा कि किसी देश के नाटो की सदस्यता ग्रहण करने के अधिकार छीनने से यूरोप में नई सुरक्षा व्यवस्था बनाने का मकसद कामयाब नहीं हो सकता.
पुतिन ने क्या कहा?
व्लादीमीर पुतिन ने कहा कि यूरोप में सुरक्षा को लेकर रूस और फ्रांस की साझा चिंताएं हैं और फ्रांस ने बरसों से यूक्रेन विवाद हल करने की दिशा में काम किया है. रूसी नेता ने कहा कि माक्रों के साथ बातचीत लाभदायक रही जिसमें ठोस चर्चा हुई. उन्होंने यह भी कहा कि माक्रों के कुछ सुझाव ‘यथार्थवादी' हैं और भविष्य में मिलकर कदम उठाने का आधार बन सकते हैं.
पुतिन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यूक्रेन की स्थिति को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सकता है. उन्होंने कहा, "रूस पश्चिम के साथ समझौते की भरपूर कोशिश करेगा.” हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि मिंस्क समझौतों का कोई विकल्प नहीं है और यूक्रेन को उनका सम्मान करना चाहिए.
साथ ही पुतिन ने चेतावनी भी दी कि अगर यूक्रेन नाटो की सदस्यता ग्रहण करता है तो और क्रीमिया को वापस लेने की कोशिश करता है तो यूरोपीय देशों को रूस के साथ सैन्य संघर्ष झेलना होगा. उन्होंने कहा कि ऐसे संघर्ष में जीत किसी की नहीं होगी.
यूक्रेन की सीमा के पास फौज के जमावड़े को लेकर हो रही रूस की आलोचना पर उन्होंने कहा, "नाटो सदस्य हमारे क्षेत्र में हमारी सेना की गतिविधियों पर हमें भाषण देते हैं और उसे यूक्रेन पर रूस के हमले का खतरा बताते हैं.” उन्होंने नाटो पर आरोप लगाया कि वे यूक्रेन की सेना को हथियार और प्रशिक्षण के जरिए सैन्य ढांचे को रूस की सीमा के नजदीक ला रहे हैं.
वीके/सीके (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स, इंटरफैक्स)
चांसलर बनने के बाद ओलाफ शॉल्त्स पहली बार अमेरिका के दौरे पर हैं. यूक्रेन संकट के बीच अमेरिका समेत कुछ साझेदार जर्मनी की दोस्ती पर शक जताने लगे हैं.
यूक्रेन के मुद्दे पर अपना पक्ष साफ तौर पर न रख पाने की वजह से जर्मनी की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. विपक्षी दल और आलोचक कह रहे हैं कि बढ़ते विवाद के बीच चांसलर ओलाफ शॉल्त्स म्यूट मोड में चले गए हैं. जर्मन मीडिया में भी अमेरिका और जर्मनी के रिश्तों की तल्खी पर आशंकाएं जताई जा रही हैं. जर्मनी की प्रतिष्ठित पत्रिका डेय श्पीगल ने जनवरी में एक रिपोर्ट छापी जिसमें कहा गया कि शॉल्त्स अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात का समय ही नहीं निकाल पा रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने तुरंत इसका खंडन किया.
लेकिन मामला ठंडा नहीं पड़ रहा है. ओलाफ शॉल्त्स सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के नेता हैं. एसपीडी के ही पूर्वी चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के रूस और रूसी कंपनियों के साथ अच्छे ताल्लुक रहे हैं. हाल ही में अपने भारत दौरे पर विवादित बयान देने की वजह से जर्मन नौसेना के शीर्ष अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ा है. लेकिन पूर्व चांसलर श्रोएडर अब भी उसी अधिकारी की तरह रूस की कार्रवाई को तर्कपूर्ण सा बता रहा हैं. यह बैकग्राउंड भी शॉल्त्स को परेशान कर रहा है.
रूस के साथ नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन प्रोजेक्ट के कारण जर्मनी और अमेरिका के रिश्तों में पहले भी तल्खी दिख चुकी है. डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तो रिश्ते बेहद कमजोर पड़ गए. बाइडेन के व्हाइट हाउस में आने के बाद रिश्ते सुधरे जरूर हैं लेकिन कितने, इसका पता यूक्रेन संकट से चलेगा. अमेरिका और पूर्वी यूरोप के देश नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन का विरोध करते रहे हैं. अब यूक्रेन को हथियार न देने के कारण जर्मनी की आलोचना हो रही है.
तेज होती आलोचनाओं के बीच अमेरिका रवाना होने से पहले शॉल्त्स ने सार्वजनिक टीवी चैनल जेडडीएफ से बात करते हुए कहा कि नाटो के लिए जितना पैसा जर्मनी देता है, उतना और यूरोप में कोई नहीं देता. शॉल्त्स के मुताबिक जर्मनी कुछ नहीं कर रहा है, ये कहना ठीक नहीं है.
मुलाकात का माहौल पहले से ही तय है
वॉशिंगटन में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात से पहले एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने जोर देते हुए कहा कि यूक्रेन के मामले जर्मनी की भूमिका अहम है. अमेरिकी अधिकारी ने यह भी कहा कि वे बर्लिन के साथ मिलकर यूक्रेन पर हमले की स्थिति में रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों पर भी चर्चा कर रहे हैं.
चांसलर शॉल्त्स अमेरिका के बाद यूक्रेन और रूस का भी दौरा करने वाले हैं. फरवरी के तीसरे हफ्ते में कीव और मॉस्को पहुंचने से पहले शॉल्त्स लात्विया, लिथुएनिया और एस्टोनिया भी जाएंगे. यूक्रेन संकट से उपजते तनाव को कम करने के लिए अब फ्रांस भी पहले के मुकाबले ज्यादा सक्रिय हो चुका है. फिलहाल फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों मॉस्को में हैं. आने वाले दिनों में जर्मनी चांसलर से भी माक्रों की मुलाकात होगी. यूरोपीय संघ के सबसे ताकतवर दो देश जर्मनी और फ्रांस पोलैंड के राष्ट्रपति से भी बातचीत करेंगे.
एक दूसरे पर दबाव बनाते रूस और नाटो
रूसी सेना ने बीते कई हफ्तों से यूक्रेन को तीन तरफ से घेरा है. यूक्रेन की उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा के करीब एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिक तैनात हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रूसी सेना युद्ध में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान भी तैनात कर चुकी है. रूस ने यूक्रेन के पड़ोसी देश बेलारूस में भी 30,000 सैनिक भेजे हैं. मॉस्को का कहना है कि वह बेलारूस के साथ सैन्य अभ्यास करेंगे. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि युद्ध जैसा माहौल बनाकर रूस नाटो से कुछ मांगें मनवाने की कोशिश कर रहा है.
जनवरी में रूसी विदेश मंत्री सेरगई लावरोव ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से बातचीत की. उस दौरान रूस ने अमेरिका के सामने कई शर्तें रखीं. इन शर्तों में यूक्रेन को कभी नाटो में शामिल न करने और पूर्वी यूरोप से नाटो की सैन्य तैनाती और मशीनरी हटाने की मांग भी शामिल है.
पूर्वी यूरोप में रूस के साथ सीमा साझा करने वाले लात्विया, नॉर्वे और एस्टोनिया नाटो के सदस्य हैं. रूस की सीमा से थोड़ा सा दूर बसा लिथुएनिया भी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) में शामिल है. नाटो में कुल 30 देश शामिल हैं. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच महाशक्ति बनने की होड़ के बीच 1949 में नाटो की स्थापना हुई. तब नाटो का मकसद यूरोप के देशों को सोवियत संघ से बचाना था.
ओएसजे/आरपी (डीपीए, एपी, एएफपी)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान जल्द ही रूस के दौरे पर जा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो पिछले दो दशकों में ये पहली बार किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का रूस दौर होगा.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने एक अख़बार के हवाले से जानकारी दी है कि ये दौरा 23 से 26 फ़रवरी तक का हो सकता है. वहीं रूस की सरकार (क्रेमलिन) की ओर से कहा गया है कि वो इसके तारीख़ की घोषणा करेगी.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अभी हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की है. विंटर ओलंपिक के बीच चीन के दौरे पर पहुंचे इमरान ख़ान इसी रविवार को जिनपिंग से मिले.
एक संयुक्त बयान में दोनों देशों ने अपनी चिंताओं और अहम हितों से जुड़े मुद्दों पर एक दूसरे को मदद देने की बात दोहराई है.
बता दें कि शिनजियांग प्रांत में कथित तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और दूसरे पश्चिमी देश इस विंटर ओलंपिक का बहिष्कार कर चुके हैं.
इमरान ख़ान के रूस के दौरे को पश्चिमी देशों के लिए एक संदेश की तरह देखा जा रहा है. ख़ासकर तब, जब अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद पाकिस्तान में सैन्य ठिकाना देने से इमरान ने अमेरिका को मना कर दिया था. साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने पद संभालने के बाद से इमरान ख़ान को फ़ोन ही नहीं किया.
ऐसे में यूक्रेन संकट के बीच चीन के बाद इमरान ख़ान का रूस दौरा पश्चिमी देशों के लिए संदेश है.
बताया जा रहा है कि इमरान ख़ान और व्लादिमीर पुतिन के बीच द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ साझा हितों वाले क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी बातचीत होगी.
पीटीआई के मुताबिक़, 17 जनवरी को ख़ान और पुतिन के बीच बातचीत हुई थी जिसमें दोनों ने द्विपक्षीय सहयोग और क्षेत्रीय, अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर विचार साझा किए.
इस दौरान इमरान ख़ान ने पुतिन के उस बयान की भी तारीफ़ की, जिसमें पुतिन ने कहा था कि पैग़बर मोहम्मद का अपमान करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत नहीं आता है.
इमरान ख़ान ने ये भी कहा था कि दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने और साझा सहयोग पर ज़ोर देने को लेकर बात हुई है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और रूस के बीच रिश्ते बेहतरी की तरफ़ जा रहे हैं. ये भी कहा गया कि दोनों ही देशों को प्रमुखों ने एक दूसरे को अपने देश आने का निमंत्रण दिया था.
पिछले महीने बताया जा रहा था कि इस्लामाबाद और मास्को, व्लादिमीर पुतिन के पाकिस्तान दौरे को लेकर योजना बना रहे थे. दो सालों के दौरान दोनों ही देश दौरे को लेकर चर्चा कर रहे थे लेकिन कोरोना समेत कई कारणों की वजह से ये दौरा पूरा नहीं हो सका.
पीटीआई ने अख़बार के हवाले से कहा है कि पुतिन के दौरे से पहले मॉस्को कुछ ''महत्वपूर्ण'' तैयार करना चाहता था.
पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान और रूस के बीच के रिश्ते पहले की कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए बेहतर हुए हैं. अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में जो खटास आई है, ये भी एक वजह है कि इस्लामाबाद, मॉस्को के और क़रीब होता चला गया.
क़रीब 9 साल के गैप के बाद पिछले साल रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पाकिस्तान पहुंचे थे और राष्ट्रपति पुतिन की ओर से ये कहा था कि रूस, पाकिस्तान की हरसंभव मदद करने को तैयार है.
दोनों देशों के बीच सिर्फ़ कारोबारी रिश्ते ही मज़बूत नहीं हुए हैं बल्कि रूस चाहता है कि पाकिस्तान को हथियार बेचे जाएं. अब तक कोई मौकों पर ये भारत के विरोध की वजह से नहीं हो सका है.
रूस और पाकिस्तान साल 2016 से नियमित तौर पर जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज़ कर रहे हैं ये भी दोनों देशों के बीच के रिश्तों को दर्शाता है. साथ ही दोनों देश कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी साझा विचार रखते हैं.
ऐसे में अब इमरान ख़ान अगर रूस के दौर पर जाते हैं तो यूक्रेन में चल रहे तनाव के बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों की निगाह तो रहेगी ही, साथ ही भारत भी इस दौरे पर बारीक़ नज़र रखना चाहेगा.
यूक्रेन संकट की बात करें तो यूक्रेन की सीमाओं पर रूस के सैनिकों की तैनाती और इसे लेकर पश्चिमी देशों के विरोध पर दुनियाभर की नज़र है.
अमेरिका का कहना है कि रूस की ये कोशिश अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए ख़तरा है. वहीं रूस लगातार कहता आया है कि यूक्रेन पर हमला करने की उसकी योजना नहीं है.
चीन का रुख रूस की तरफ़ है और पश्चिमी देश भी ये देख रहे हैं रूस का समर्थन करते कौन से देश दिख रहे हैं. (bbc.com)
-हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 7 फरवरी| पाकिस्तान की मौजूदा खराब आर्थिक स्थिति शिक्षित युवाओं पर भारी पड़ रही है, जिनमें से 31 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार हैं और वे बिगड़ती स्थिति के बीच भविष्य के अवसरों के बारे में अनिश्चित हैं। एक नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स (पीआईडीई) द्वारा जारी रोजगार की स्थिति पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के 31 प्रतिशत से अधिक युवा वर्तमान में बेरोजगार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन 31 फीसदी में से 51 फीसदी महिलाएं हैं, जबकि 16 फीसदी पुरुष हैं, जिनमें से कई के पास पेशेवर डिग्री भी है। पाकिस्तान की करीब 60 फीसदी आबादी 30 साल से कम उम्र की है।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है, 6.9 प्रतिशत की वर्तमान बेरोजगारी दर एक चिंता का कारण बनी हुई है और रोजगार के अवसर नहीं होने का मुद्दा पाकिस्तान में सुर्खियां बटोर रहा है।
इसमें कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं ग्रामीण और पुरुष समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक बेरोजगार हैं।
दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कामकाजी आयु वर्ग का एक बड़ा हिस्सा श्रम बल का हिस्सा भी नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, ये लोग या तो हतोत्साहित वर्कर हैं या उनके पास आय के अन्य साधन हैं।
बेरोजगारी की चौंकाने वाली दर नीतिगत पहलों के माध्यम से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार के दावों को नकारती है।
पीआईडीई ने यह भी खुलासा किया कि आश्चर्यजनक रूप से कामकाजी आयु वर्ग का एक बड़ा हिस्सा श्रम शक्ति का हिस्सा भी नहीं है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये लोग या तो निराश श्रमिक हैं या उनके पास आय के अन्य साधन हैं।
इसमें यह भी कहा गया है कि घोषणाओं और नीतिगत पहलों के बावजूद, महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) आश्चर्यजनक रूप से कम है।
रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि शिक्षा को रामबाण और सभी अवसरों की कुंजी माना जाता है, लेकिन वास्तविकता हमें अन्यथा दिखाती है।
पीआईडीई ने खुलासा किया कि एलएफएस के अनुसार, स्नातक बेरोजगारी बहुत अधिक है। इसमें कहा गया है कि पेशेवर लोगों सहित डिग्री वाले 31 प्रतिशत से अधिक युवा बेरोजगार हैं, जिनमें 51 प्रतिशत महिलाएं और 16 प्रतिशत पुरुष हैं।
इसमें कहा गया है कि ग्रामीण स्नातक बेरोजगारी शहरी की तुलना में बहुत अधिक है, जो एक अन्य चिंताजनक कारक है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में खुदरा और थोक व्यापार सेवा (सर्विस) क्षेत्र का सबसे बड़ा नियोक्ता बना हुआ है, जबकि पशुधन सहित कृषि, ग्रामीण पाकिस्तान में अधिकतर लोगों को रोजगार प्रदान करती है।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में सार्वजनिक रोजगार बेहतर वेतन वाली नौकरियों के अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों के लिए प्रसिद्ध वरीयता, इसलिए उचित प्रतीत होती है क्योंकि सरकारी में मासिक वेतन निजी क्षेत्र की नौकरियों की तुलना में काफी अधिक है।
इसमें कहा गया है कि एलएफएस ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में एक तिहाई युवाओं को सिस्टम से अलग कर देता है क्योंकि वे न तो नियोजित हैं और न ही नामांकित हैं।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि युवा महिलाओं के लिए स्थिति अधिक खराब बनी हुई है और इनमें 60 प्रतिशत न तो काम कर रहीं हैं और न ही पढ़ाई कर पा रहीं हैं। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह के कुर्रम जिले में पाकिस्तानी सेना की एक चौकी को अफगानिस्तान के अंदर से निशाना बनाया गया. पाकिस्तानी तालिबान के संघर्ष-विराम समझौते से हटने के बाद से इस तरह के हमले बढ़े हैं.
पाकिस्तान आर्मी पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत के कुर्रम जिले में अफगानिस्तान के अंदर से सेना की चौकी पर आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं, जिसमें उसके कम से कम पांच जवान मारे गए. बयान के मुताबिक पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने भी फायरिंग का जवाब दिया, जिसमें आतंकियों को भी भारी नुकसान हुआ है, हालांकि इस बात की पुष्टि किसी स्वतंत्र सूत्र ने नहीं की है.
हमलावरों ने कथित तौर पर अफगानिस्तान के खोस्त प्रांत से सटे एक चौकी अंगोर तांगी को निशाना बनाया और सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच गोलीबारी रविवार रात करीब आठ बजे शुरू हुई और कई घंटों तक चली. हमले में कई पाकिस्तानी सैनिकों के घायल होने की भी खबर है.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) या पाकिस्तान तालिबान, जिसने काबुल के पतन के बाद अफगान तालिबान के साथ एक संबद्ध को नवीनीकृत किया है. उसने रविवार के हमले की जिम्मेदारी ली है. उसने एक बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है. पिछले नवंबर में पाकिस्तानी सरकार और टीटीपी के बीच एक संघर्षविराम समझौता हुआ था, लेकिन यह कुछ दिनों बाद टूट गया, और तब से समूह के हमले तेज हो गए हैं.
आईएसपीआर ने एक बयान में कहा, "अफगानिस्तान के अंदर, अंतरराष्ट्रीय सीमा के दूसरी ओर कुर्रम जिले में आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सैनिकों पर गोलियां चलाईं." बयान में कहा गया है, "पाकिस्तान के खिलाफ गतिविधियों के लिए आतंकवादियों द्वारा अफगान क्षेत्र के इस्तेमाल की पाकिस्तान कड़ी निंदा करता है और उम्मीद करता है कि अफगान की अंतरिम सरकार भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ इस तरह की गतिविधियों की अनुमति नहीं देगी."
पाकिस्तानी आंतरिक मंत्री शेख राशिद अहमद ने भी एक बयान में कहा, "जैसा कि वादा किया गया था, तालिबान सरकार को इस तरह के सीमा पार आतंकवादी हमलों को रोकना चाहिए." सेना ने कहा कि अफगानिस्तान के अंदर के आतंकवादियों ने भी पाकिस्तान-अफगान सीमा पर बाड़ को नुकसान पहुंचाने के कई प्रयास किए. आईएसपीआर के बयान में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों के खिलाफ देश की सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और "हमारे बहादुर सैनिकों के बलिदान से हमारे संकल्प को और मजबूती मिलेगी."
अफगान तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी ने रॉयटर्स से कहा, "हम अन्य देशों, विशेष रूप से अपने पड़ोसियों को आश्वस्त करते हैं कि किसी को भी अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों करने के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी."
खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत का कुर्रम जिला पहले तहरीक-ए-तालिबान की गतिविधियों का केंद्र रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां स्थिति अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रही है. इस जिले का एक हिस्सा अफगान राज्य खोस्त से मिलता है और दूसरा छोर अफगान राज्य नंगरहार से सटा हुआ है.
पाकिस्तान-अफगान सीमा पर हमले से कुछ दिन पहले विद्रोहियों ने बलूचिस्तान प्रांत में दो हमले किए थे. पाकिस्तानी सेना का कहना था कि दो सैन्य चौकियों पर हुए हमलों में कम से कम 20 आतंकी और नौ सैनिक मारे गए. पिछले हफ्ते हुए हमले की जिम्मेदारी नवगठित बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी ने ली थी.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)